बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

जरूर करें रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र एवं उसका हिंदी अर्थ

  



रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र एवं उसका हिंदी अर्थ प्रस्तुत है-


जटा टवी गलज्जल

प्रवाह पावि तस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंग तुंग मालिकाम्‌।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥


उनके बालों से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र है,

और उनके गले में सांप है जो हार की तरह लटका है,

और डमरू से डमट् डमट् डमट् की ध्वनि निकल रही है,

भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको संपन्नता प्रदान करें।


 


जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।

धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥


मेरी शिव में गहरी रुचि है,

जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित है,

जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं?

जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है,

और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं।


 


धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।

कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥


मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे,

अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी जिनके मन में मौजूद हैं,

जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज की पुत्री पार्वती हैं,

जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, जो सर्वत्र व्याप्त है,

और जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करते हैं।


 


जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।

मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥


मुझे भगवान शिव में अनोखा सुख मिले, जो सारे जीवन के रक्षक हैं,

उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है,

ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है,

जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले से ढंका है।


 


सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।

भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥


भगवान शिव हमें संपन्नता दें,

जिनका मुकुट चंद्रमा है,

जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं,

जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है,

जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है।

 


ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥


शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें,

जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिनगारी से नष्ट किया था,

जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं,

जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं।




करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।

धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥


मेरी रुचि भगवान शिव में है, जिनके तीन नेत्र हैं,

जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया,

उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद्... की घ्वनि से जलती है,

वे ही एकमात्र कलाकार है जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर,

सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं।


 


नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥


भगवान शिव हमें संपन्नता दें,

वे ही पूरे संसार का भार उठाते हैं,

जिनकी शोभा चंद्रमा है,

जिनके पास अलौकिक गंगा नदी है,

जिनकी गर्दन गला बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है।


 


प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।

स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥


मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है,

पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ,

जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है।

जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,

जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,

जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,

और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।


 


अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥


मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं

शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण,

जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया,

जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया,

जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं,

और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।


 


जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।

धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥


शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड ढिमिड

तेज आवाज श्रंखला के साथ लय में है,

जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण,

गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई।


 


दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥


मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता,

जो रखते हैं सम्राटों और लोगों के प्रति समभाव दृष्टि,

घास के तिनके और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति,

सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति,

सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति?


 


कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥


मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहते हुए,

अपने हाथों को हर समय बांधकर अपने सिर पर रखे हुए,

अपने दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए,

महान मस्तक और जीवंत नेत्रों वाले भगवान को समर्पित?


 


इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥


इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुनाता है,

वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति पाता है।

इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं है।

बस शिव का विचार ही भ्रम को दूर कर देता है।


सद्‌गुरु: रावण शिव का महान भक्त था, और उनके बारे में अनेक कहानियां प्रचलित हैं। एक भक्त को महान नहीं होना चाहिये लेकिन वह एक महान भक्त था। वह दक्षिण से इतनी लंबी दूरी तय कर के कैलाश आया- मैं चाहता हूँ कि आप बस कल्पना करें, इतनी लंबी दूरी चल के आना – और वो शिव की प्रशंसा में स्तुति गाने लगा। उसके पास एक ड्रम था, जिसकी ताल पर उसने तुरंत ही 1008 छंदों की रचना कर डाली, जिसे शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जाना जाता है।


उसके संगीत को सुन कर शिव बहुत ही आनंदित व मोहित हो गये। रावण गाता जा रहा था, और गाने के साथ–साथ उसने दक्षिण की ओर से कैलाश पर चढ़ना शुरू कर दिया। जब रावण लगभग ऊपर तक आ गया, और शिव उसके संगीत में मंत्रमुग्ध थे, तो पार्वती ने देखा कि एक व्यक्ति ऊपर आ रहा था।



अब ऊपर, शिखर पर केवल दो लोगों के लिये ही जगह है। तो पार्वती ने शिव को उनके हर्षोन्माद से बाहर लाने की कोशिश की। वे बोलीं, "वो व्यक्ति बिल्कुल ऊपर ही आ गया है"।





अब ऊपर, शिखर पर केवल दो लोगों के लिये ही जगह है। तो पार्वती ने शिव को उनके हर्षोन्माद से बाहर लाने की कोशिश की। वे बोलीं, “वो व्यक्ति बिल्कुल ऊपर ही आ गया है”। लेकिन शिव अभी भी संगीत और काव्य की मस्ती में लीन थे। आखिरकार पार्वती उनको संगीत के रोमांच से बाहर लाने में सफल हुईं। और जब रावण शिखर तक पहुंच गया तो शिव ने उसे अपने पैर से धक्का मार कर नीचे गिरा दिया। रावण, कैलाश के दक्षिणी मुख से फिसलते हुए नीचे की ओर गिरा। ऐसा कहा जाता है कि उसका ड्रम उसके पीछे घिसट रहा था और जैसे-जैसे रावण नीचे जाता गया, उसका ड्रम पर्वत पर ऊपर से नीचे तक, एक लकीर खींचता हुआ गया।अगर आप कैलाश के दक्षिणी मुख को देखें तो आप बीच में से ऊपर से नीचे की तरफ आता एक निशान देख सकते हैं ।

सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

न कहीं मोक्ष है न कहीं जन्नत है..जो है यहीं हैं.

 



न कहीं मोक्ष है न कहीं जन्नत है..जो है यहीं हैं..!!

(पवन सिंह)

मरने के बाद न कहीं "मोक्ष" है और न कहीं "जन्नत"  न ही हैवन है न ही स्वर्ग है और न उनके दरवाजे आपके लिए खुले हैं। इन सभी शब्दों की ठीक -ठाक दुकानदारी और इनका थोक का व्यापार यहीं धरती पर ही चल रहा है...!! थोड़ा सा स्वामी विवेकानंद की ओर लौट लेते हैं जब वह कहते हैं कि- "मैं उस ईश्वर का सेवक हूं जिसे अज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं! मैं किसी ऐसे ईश्वर को नहीं मानता जो मेरे जीते-जी मुझे रोटी न दे सके मरने के बाद स्वर्ग देगा..!! विवेकानंद की जब भी बात होती है मुझे 1893 में अमरीका के शिकागो की धर्म संसद में उनका दिया गया एक भाषण याद आता है जिसे मूल रूप से बतौर एक लेख सितंबर, 2017 में पहली बार प्रकाशित किया गया था..!! इस भाषण के कुछ कोट्स यूं हैं- "सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है...उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है...न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए....यदि ये "ख़ौफ़नाक राक्षस" नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज़्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है.... लेकिन उनका वक़्त अब पूरा हो चुका है... मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा....चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम...!!

मोक्ष/स्वर्ग/ जन्नत/हैवन के चक्कर में आम आदमी को धर्म के व्यापारियों और सत्ताधीशों के नापाक गठजोड़ ने ऐसा फांसा है कि आदमी का स्वविवेक ही गायब हो चुका है। वह बस भेड़ों के मानिंद मुंह उठाए बस बेतहाशा भागा चला जा रहा है। वह न तो तर्क सुनने को राजी है न ही सच...बस बेतहाशा पागलपन की हदों को तोड़ भागा हुआ है मोक्ष, जन्नत और हैवन को लपकने के लिए। दरअसल जो मैं पूरे देश भर में और उसके बाहर यायावर की तरह से घूमता-टहलता हुआ देखता रहता हूं उससे मुझे जो एहसास हुआ है वह ये कि मोक्ष, स्वर्ग, जन्नत, हैवन..सब कुछ आपके जीते-जी केवल यहीं है।  आप यदि सशक्त हैं.. समृद्ध हैं..तो आप मोक्ष सा आनंद ले रहे हैं..खूबसूरत बार और बार में बालाएं..म्यूजिक..नृत्य..मंहगी शराब...मंहगी गाडियां, आपकी गाड़ियों का गेट खोलने के लिए मोक्ष की अभिलाषा रखने वाला  अदना सा कर्मचारी.. महंगे फल.. शानदार भोजन... लेकिन भोजन परोसता मोक्षाभिलाषी कर्मचारी...अब आप तय करें कि जीते जी जन्नत है या मरने के बाद..!! जो लोग मोक्ष.. जन्नत और हैवन बेच रहे हैं.. दरअसल वहीं मोक्ष व जन्नत के असल मजे ले रहे हैं...वो मोक्ष बेचते-बेचते राल्स रायल कार और फाइव स्टार आरामगाहों के लंबरदार हो जाते हैं और आप मोक्ष/जन्नत की चाह में पूरी जिंदगी एक अदद साइकिल/मोटरसाइकिल/स्कूटी पर निपटा देते हैं..!! मोक्ष/जन्नत बेचने वाले फुटपाथ पर सो रहे लोगों को निपटा कर मजे लेते हैं और निपट चुके लोगों के परिजन फिर भी मोक्ष/स्वर्ग/जन्नत की चाह में लगे रहते हैं..!! अब बताइए जीते-जी मोक्ष/स्वर्ग का मजा कौन मार रहा है.. फुटपाथ पर सोने वाला या महंगी कार से आपको पटरा कर देने वाला..!!!  मुझे तो कतई मोक्ष नहीं चाहिए...जैसे कबीर जी को नहीं चाहिए था इसलिए वो बनारस से खिसक कर नर्क आ गये ..मतलब मगहर..!!! मैं तो बार-बार इस धरती पर आना चाहूंगा ..70-80 साल इनज्वाय करना चाहूंगा..अब तक ज्ञात एक मात्र जीवन से भरे इस गृह के खूबसूरत नजारों, पहाड़ों, ग्लैशियरो, झरनों, जंगलों, सागरों व सरोवरों का जन्नत सा लुफ्त उठाना चाहूंगा..!! ये पृथ्वी और इसकी खूबसूरती ही दरअसल असल जन्नत और स्वर्ग है..!! धंधेबाजों ने इसे नरकलोक बता रखा है..!! जिस तरह से इस का दोहन हो रहा है बेशक 100-150 सालों में ये नर्क ही बन जायेगी ... लेकिन जब तब ये धरा स्वर्ग, जन्नत और हैवन है तब तक तो जीते-जी मस्त मजे लें..। खूब मेहनत करें और पैसा कमायें और उसे अपने आनंद के अलावा नेचर को बचाने में भी लगाये..!! यहीं मोक्ष और जन्नत का मजा लें...मोक्ष व स्वर्ग कहीं और नहीं है...!!

भगत सिंह को कोट कर रहा हूं-"मनुष्य अपने विश्वास को ठुकराने का साहस नहीं कर पाता...ईश्वर में विश्वास रखने वाला हिन्दू पुनर्जन्म पर राजा होने की आशा कर सकता है... एक मुसलमान या ईसाई स्वर्ग में व्याप्त समृद्धि के आनन्द की और अपने कष्टों और बलिदान के लिये पुरस्कार की कल्पना कर सकता है... किन्तु मैं क्या आशा करूँ? मैं जानता हूँ कि जिस क्षण रस्सी का फ़न्दा मेरी गर्दन पर लगेगा और मेरे पैरों के नीचे से तख़्ता हटेगा, वह पूर्ण विराम होगा– वह अन्तिम क्षण होगा... मैं या मेरी आत्मा सब वहीं समाप्त हो जायेगी. आगे कुछ न रहेगा..एक छोटी सी जूझती हुई ज़िन्दगी, जिसकी कोई ऐसी गौरवशाली परिणति नहीं है, अपने में स्वयं एक पुरस्कार होगी– यदि मुझमें इस दृष्टि से देखने का साहस हो...।"

आदरणीय भगत सिंह कोट नंबर दो-"... यदि आपका विश्वास है कि एक सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और सर्वज्ञानी ईश्वर है, जिसने विश्व की रचना की, तो कृपा करके मुझे यह बतायें कि उसने यह रचना क्यों की? कष्टों और संतापों से पूर्ण दुनिया – असंख्य दुखों के शाश्वत अनन्त गठबन्धनों से ग्रसित! एक भी व्यक्ति तो पूरी तरह संतृष्ट नहीं है. कृपया यह न कहें कि यही उसका नियम है. यदि वह किसी नियम से बँधा है तो वह सर्वशक्तिमान नहीं है. वह भी हमारी ही तरह नियमों का दास है....कृपा करके यह भी न कहें कि यह उसका मनोरंजन है...!!!

इसलिए मरने के बाद कहीं कुछ नहीं है...हालांकि कश्मीरियों का केवल कश्मीर को लेकर कहना कि-"गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त; हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त"...मतलब अगर पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं हैं यहीं हैं यहीं हैं...मैं भी यही कहता हूं पृथ्वी पर ही स्वर्ग है ...पृथ्वी पर ही नर्क है...आप जीना कैसे चाहते हैं ये आप तय करें. पवन जी बात से मैं सहमत हूं लेकिन मेरा मानना है कि  आपका जो कर्म है उसी के आधार पर आपको अगला जन्म मिलेगा आप राजा के घर पैदा होगे या रंक के घर ,,,,,, क्योंकि यह दिखाता एक जीव पूरी जिंदगी गरीबी, भुखमरी में काट देता, मानसिक, शारीरिक विकलांग पैदा होता है..   एक जीव जंम के साथ तमाम सुविधा का भोग करता है, शरीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य होता है हर जीव का अलग भोग क्यों है यह आपके कर्क्योंम के आधार पर होता है।  पूर्व जन्म के कर्म अच्छे थे जिसके  का भोग वह कर रहा है,,,, कुछ भोग इसी पृथ्वी पर ,,,,,,,कुछ अगले जन्म में भुगतना पड़ता है............इस लिए पवन सिंह के बात से सहमत हूं कि पृथ्वी पर ही स्वर्ग है.........मरने के बाद जंम होना है ..........संभव है कि बहुत अच्छे कर्म है तो मोझ मिल जाए....

सावधान- श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाले वायरस का हो सकता है हमला

 

पीजीआई में डायग्नोस्टिक वायरोलॉजी वर्कशाप 


 


डेंगू के आलावा बीस और वायरस जिसमें कम हो सकता है प्लेटलेट्स


 


एआई के आधार पर बताया श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाला वायरस कर सकता है हमला


 


 


सतर्क रहे । भीड़-भाड़ में मास्क का इस्तेमाल करें। हाथ की सफाई पर ध्यान रखें क्यों कि कभी भी श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाला वायरस का हमला हो सकता है। यह सलाह संजय गांधी पीजीआई के सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग की प्रमुख प्रो. रूग्मी एस के मारक और पो. अतुल गर्ग ने विभाग में हैंड आन नेशनल वर्कशॉप के मौके पर आयोजित सीएमई में दी।


विशेषज्ञों ने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए पहले के आउट ब्रेक के डाटा के आधार पर आगे आने वाले वायरल आउट ब्रेक का अंदाजा लगा कर पहले से तैयारी की जा सकती है। विज्ञानियों ने इसी आधार पर अनुमान लगाया है कि अगला संक्रमण भी श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाली ही वायरस अटैक कर सकता है। किंग जार्ज मेडिकल विवि की प्रो. अमिता जैन ने बताया कि डेंगू के आलावा भी इबोला, मारबर्ग, केएफडी सहित बीस वायरस है जिनमें प्लेटलेट्स कम हो सकता है। प्लेटलेट्स कम होने के कारण रक्तस्राव की आशंका बो सकती है। किसी भी व्यक्ति में प्लेटलेट्स कम हो और डेंगू का संक्रमण नहीं है तो दूसरे वायरस के संक्रमण का परीक्षण करा कर इलाज की दिशा तय करनी चाहिए।


प्रो. अतुल गर्ग ने बताया कि वायरस के संक्रमण का पता लगाने के लिए परीक्षण तकनीक के विस्तार के लिए पहली बार वर्कशॉप का आयोजन किया जा रहा है जिसमें वायरस कल्चर से जीन सिक्वेंसिंग तक सिखाया जा रहा है। इससे परीक्षण के सुविधा देश के हर कोने में उपलब्ध होगी। दो सौ लोगों ने आवेदन किया था लेकिन हम देश हर कोने से 20 लोगों को वर्कशॉप के लिए चयनित किया।लोहिया संस्थान की डा. ज्योत्स्ना अग्रवाल, एसपीजीआई की डा. प्रेरणा कपूर ने बताया कि  दो या अधिक बीमारियों के सह-अस्तित्व और मलेरिया एवं टाइफाइड जैसी आम बीमारियों  के बारे में जानकारी दी।  न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो.वीके पालीवाल ने वायरल इंसेफेलाइटिस के बारे में जानकारी दी।  सीसीएम के डा. मोहन गुर्जर आईसीयू रोगियों में साइटोमेगालोवायरस संक्रमण और इसके पुनः सक्रिय होने से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में बताया।

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025

पीजीआई ने PESICON में फहराया सफलता के झंडे

 


संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान लखनऊ के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के रेजिडेंट्स चिकित्सको व संकाय सदस्यो ने PESICON 2025 में सर्वश्रेष्ठ शोध पुरस्कार जीते।

दिनांक 14 से 16 फरवरी, 2025 तक अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एआईएमएस), कोच्चि में आयोजित भारतीय बाल चिकित्सा एंडोस्कोपिक सर्जन (PESICON 2025) सम्मेलन में विभिन्न सत्रों में प्रतिष्ठित सर्वश्रेष्ठ पेपर पुरस्कार जीतकर संस्थान को गौरवान्वित किया है। इस राष्ट्रीय पीडियाट्रिक इंडोस्कोपिक सर्जरी सम्मलेन में, डॉ निशांत अग्रवाल व डॉ बीजू नायर ने दो-दो तथा डॉ तरुण कुमार एवं डॉ प्रतिभा नायक ने एक-एक शोध पत्र में सर्वश्रेष्ट शोधपत्र का पुरस्कार जीता। डॉ विजय उपाधयाय एवं डॉ अंकुर मंडेलिया ने सम्मलेन में SGPGI बाल शल्य चिकित्सा विभाग का नेतृत्व किया तथा आमंत्रित व्याख्यान भी दिया। डॉ अंकुर मंडेलिया व डॉ रोहित कपूर को पीडियाट्रिक इंडोस्कोपिक सर्जन का प्रतिष्ठित फ़ेलोशिप भी प्रदान किया गया।

 

यह सम्मेलन सभी पीडियाट्रिक एंडोस्कोपिक सर्जनों के लिए एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम था, जिसमे देश के प्रमुख विशेषज्ञ इस क्षेत्र में हुई नवीनतम प्रगति और नवाचारों पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हुये। एसजीपीजीआई की पीडियाट्रिक 

सर्जरी की टीम अपनी असाधारण शोध प्रस्तुतियों के साथ सामने आई, जिसमें पीडियाट्रिक सर्जरी में अग्रणी तकनीकों, केस सीरीज और मूल कार्य का प्रदर्शन किया गया।


एंडोस्कोपिक सर्जरी के विभिन्न पहलुओं पर अभूतपूर्व कार्य प्रस्तुत किए गये। शोधपत्रों को उनकी वैज्ञानिक दृढ़ता, नवीन दृष्टिकोण और बाल रोगियों के परिणामों में सुधार लाने में व्यावहारिक निहितार्थों के लिए सराहना मिली। 

पुरस्कार विजेता डॉ. तरुण कुमार ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त की, "ऐसे प्रतिष्ठित मंच पर जीतना हमारे लिए सम्मान की बात है। यह पीजीआई में हमारे विभाग द्वारा पोषित उच्च गुणवत्ता वाले प्रशिक्षण और उत्कृष्ट अनुसंधान के उपयुक्त वातावरण को दर्शाता है। पीडियाट्रिक सर्जन के रूप में यह हमारे लिए शुरुआत है और हमें उम्मीद है कि पीडियाट्रिक एंडोस्कोपिक सर्जरी की उन्नति में हम योगदान देना जारी रखेंगे।" 

 विभाग के वरिष्ठ संकाय सदस्य डॉ. बसंत कुमार, डॉ. विजय दत्ता उपाध्याय और डॉ. अंकुर मंडेलिया नियमित रूप से एमसीएच रेजिडेंट्स डाक्टर को प्रोत्साहित करते हैं और विभाग द्वारा वर्तमान में किए जा रहे अभूतपूर्व कार्यो को प्रस्तुत करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। सम्मेलन में नवीनतम तकनीकी प्रगति पर इंटरैक्टिव सत्र, कार्यशालाएं और चर्चाएं भी शामिल थीं, जिसमें कई अंतरराष्ट्रीय वक्ताओं ने पीडियाट्रिक सर्जिकल नवाचारों पर अन्तर्दृष्टि साझा की।

रविवार, 16 फ़रवरी 2025

महाराजजी क्षमा कीजिए, अब नहीं होगी ऐसी गलती, पुराने मार्ग से करें पदयात्रा

 




महाराजजी क्षमा कीजिए, अब नहीं होगी ऐसी गलती, पुराने मार्ग से करें पदयात्रा 



संत प्रेमानंद का विरोध कर रहे एनआरआई सोसाइटी के लोग पहुंचे केली कुंज , संत प्रेमानंद महाराज की रात्रि यात्रा को लेकर विवाद में रहे एनआरआई ग्रीन सोसाइटी के लोग अब बैकफुट पर आ गए हैं। वह अब पश्चाताप के आंसू बहा रहे हैं। रविवार को सोसाइटी अध्यक्ष समेत अन्य लोग केली कुंज पहुंचे और क्षमा मांगी। दोबारा ऐसी गलती न करने का भी भरोसा दिया। इसके साथ ही महाराज से दोबारा पुराने मार्ग से पदयात्रा करने का आग्रह भी किया। बत्र स को से ना एनआरआई सोसाइटी के अध्यक्ष आशु शर्मा ने बताया कि वह संत प्रेमानंद महाराज से मिले और उन्होंने कहा कि उनकी सोसाइटी से गलती हुई है। इसके लिए क्षमा प्रार्थी हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने भ्रामक जानकारी फैलाकर विवाद को बढ़ाया जबकि हमारी ओर से कोई दुर्भावना नहीं थी। कुछ लोगों की बातों में आकर ऐसा कर दिया। संतों की नगरी में आप जैसे महान संत का कोई अपमान करके कैसे रह सकता है। उन्होंने संत से कहा कि हम संत प्रेमानंद महाराज से क्षमा मांगते एनआरआई ग्रीन सोसाइटी के आध्यक्ष आशु शर्मा। त हमारी वजह से किसी को कष्ट नहीं होगा संत प्रेमानंद महाराज ने सोसाइटी के अध्यक्ष से कहा कि जैसे ही हमें पाय लगा कि हमारी वजह से किसी को कष्ट हो रहा है तो हमने याच का मार्ग ही बदल दिया। हम किसी को कष्ट नहीं दे सकते। सभी लोगों से बोलना हम सभी से बहुत प्रेम करते हैं। ब्रजवासियों के आप हैं और ब्रजवासी आपके हैं। अगर कोई गलती हो गई है तो माफी भी आप ही देंगे। वह और सोसाइटी के लोग चाहते हैं कि पदयात्रा एक बार फिर से उसी मार्ग से पूर्व की तरह ही निकाली जाए। तीन किमी यात्रा मार्ग में रहती थी रौनक संत प्रेमानंद की रात्रि यात्रा के दौरान वृंदावन के तीन किलोमीटर के मार्ग में भक्तों की भीड़ उमड़ती थी। रंगोली सजाई जाती थी, संकीर्तन होते थे और सैकड़ों अस्थायी दुकानें भी लगती थीं जिससे स्थानीय लोगों की भी अच्छी कमाई होती भी सबकी नजरें महाराज जी के निर्णय पर एनआरआई सोसाइटी द्वारा पश्चाताप और  याचना के बाद अब सभी की नजरें संत प्रेमानंद महाराज पर टिकी हैं। भक्तों को उम्मीद है कि वे अपनी यात्रा पुनः शुरू करेंगे और वृंदावन की यह परंपरा एक बार फिर जीवंत हो जाएगी। कुछ लोग भी आए थे समर्थन में इस विवाद में बागेश्वर धाम के पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री भी कूद पड़े थे। उन्होंने प्रेमानंद के समर्थन में कहा था कि जिसे संत प्रेमानंद महाराज का विरोध करना है, वह बज छोड़कर नोएडा-दिल्ली चला जाए। हालांकि बाद में जब ब्रजवासियों ने उनके बयान पर नाराजगी जताई तो उन्होंने क्षमायाचना कर कहा कि ब्रजवासी मेरे प्राण हैं। लेकिन यात्रा बंद होने से दुकानदार भी मायूस हो गए। शनिवार को भी ब्रजवासियों ने प्रेमानंद महाराज से पुनः पदयात्रा की मांग की थी। अभी यह कार से आते थे और केली कुंज आश्रम के बाहर ही कार से उतरकर भक्तों को दर्शन देते हैं।

शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

पीजीआई टेक्नो कॉन 12 राज्य के तकनीकि विशेषज्ञों ने रखी अपनी बात

 

संजय गांधी पीजीआई संस्थान में , एनेस्थीसिया  विभाग के टेक्नोलॉजिसट संगठन का एनेस्थीसिया एवं ऑपरेशन थिएटर टेक्नोलॉजिस्ट  यूपी के द्वारा तृतीय नेशनल टेक्नोकान  2025 का आयोजन सी वी रमन ऑडिटोरियम एसजीपीजीआई में मनाया गया.


 इस आयोजन में देश भर के 12 राज्यों से लगभग 70 शहरों से सीएसडी ओटी तथा एनेस्थीसिया के टेक्नोलॉजिसट  ने अपनी प्रस्तुतियां दी व्याख्यान दिए और नई तकनीक और नई विधाओं के बारे में पोसटर प्रस्तुत किए गए.


 इस अवसर पर  एनेसथीसिया मे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कितना लाभप्रद  कितना उपयोगी इस विषय पर पीजीआई चंडीगढ़ से पधारी चंद्रकांता सैनी तथा वातावरण को किस तरह से प्रदूषण मुक्त होने से बचने के किया जा सकने वाले उपायों पर थोटा कीर्तना ने तथा सबसे महत्वपूर्ण   टेक्नोलॉजिसट किसी उधमिता से जुड़ते हैं तो उनको दी जाने वाली जानकारी को स्टेट टेक्नोलॉजिकल पार्क ऑफ इंडिया के संयोजक श्री श्याम कुमार ने अपने व्याख्यान में विस्तार से  समझाया. ओटी एनेस्थीसिया तथा आईसीयू के उपकरणों की देखभाल और उनसे संबंधित दस्तावेजों के तैयार करने में कितनी सावधानी बढ़ती जानी चाहिए और उपकरणों का इस्तेमाल जीवन रक्षा के क्षेत्र में किस तरह किया जा सकता है इस पर अंजीव श्रीवास्तव जी ने चर्चा करी साथ ही साथ एक विज्ञान प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया था जिसमें एनेस्थीसिया विभाग की जटिल प्रक्रियाओं और उनसे रूबरू कराने के लिए जो संयंत्र यंत्र और उपाय किए जाते हैं उनका छात्रों को उनके खुद के द्वारा संचालित करके उनको प्रशिक्षित भी किया गया किसी भी कार्यक्रम का उद्देश्य नव जन शक्ति और नई टेक्नोलॉजिसट  को जटिल प्रक्रियाओं और कठिन ट्रेनिंग से गुजरने की प्रेरणा और मार्गदर्शन देना ही इस आयोजन का उद्देश्य रहता है अन्य उत्पादों में जो भी उपकरण हाईटेक टेक्नोलॉजी से युक्त हैं उन्होंने भी अपने उपकरणों की विस्तृत जानकारी और उनको कैसे ऑपरेट किया जाए इसके बारे में चर्चा की गई इस अवसर पर निदेशक प्रोफेसर धीमान सर ने एनेस्थीसिया टेक्नोलॉजिस्ट  की भूमिका के बारे में विस्तार से उनके महत्व के बारे में उनके योगदान के बारे में सराहना करी ,  निदेशक  महोदय ने विशेष कर 

और जो नए उपकरण संस्थान में ही टेक्नोलॉजिसट  ने विकसित किए हैं या कर रहे हैं और आगे शीघ्र ही वह मार्केट में उपलब्धि भी होंगे उसके बारे में भी चर्चा की अवसर पर  की सीएमएस प्रोफेसर संजय धीराज ने टेक्नोलॉजिसट की भूमिका और उनके क्रियाकलापों और उनकी विशेषताओं के बारे में बताया  मेडिकल सुपरीटेंडेंट डा. प्रशांत अग्रवाल ने इस कार्यक्रम के आयोजको  और आए हुए अतिथियों को जो कि अपने-अपने क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं उनको साधुवाद दिया  इस अवसर पर संयोजक श्री राजीव सक्सेना ने देश भर के प्राइवेट कॉलेज से आए हुए अतिथियों और जो ऑर्गेनाइजेशन  हॉस्पिटल्स/ इंस्टिट्यूट रन कर रहे हैं उनके साथ एक एमओयू करने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि जो छात्र प्रशिक्षण प्राप्त करके निकलेंगे उनका रोजगार के लिए एक प्लेसमेंट सेल होने की बात रखी.

टी ई जी परीक्षण से सर्जरी के दौरान रक्तस्राव रोकने में मिलेगी मदद

 

सेशन चेयर पर्सन डॉ दिव्या श्रीवास्तव एनस्थीसिया, डॉ राहुल गैस्ट्रो सर्जरी



पीजीआई में टेक्नोकांन-


 


टी  ई जी सर्जरी के दौरान रक्तस्राव  रोकने  लिए दवा तय करने में करता है मदद


किस मरीज किस तत्व की कमी से हो रहा रक्तस्राव लगेगा पता  




थ्रोम्बो इलास्टोग्राफी (टीईजी) परीक्षण सर्जरी के दौरान रक्तस्राव को नियंत्रित करने, थक्कारोधी उपचार की निगरानी करने, और रक्त के थक्के बनने की प्रक्रिया की सटीक जानकारी देने में मदद करता है। यह सर्जरी के परिणामों को बेहतर बनाता है। संजय गांधी पीजीआई में आयोजित एनेस्थीसिया एंड ओटी टेक्नोलॉजिस्ट एसोसिएशन ( टेक्नोकांन-2025) में संस्थान के एनेस्थीसिया टेक्नोलॉजिस्ट गजेंद्र सिंह ने बताया कि सर्जरी से पहले रक्त के थक्का बनाने की स्थिति जानने के लिए एपीटीटी, टीटी जांच होती है लेकिन इस जांच से रक्त का थक्का कितना मजबूत है।  कितने देर के लिए बन रहा है। किस तत्व की कमी के कारण रक्त का थक्का बनने में परेशानी है पता लगता है। सर्जरी के दौरान इस परीक्षण से किस तत्व की कमी है इसका पता लगाते हुए उसे पूरा कर रक्त स्राव को रोकने में मदद मिलती है। मरीज को पूरा रक्त नहीं चढ़ाना पड़ता है रक्त के किस अवयव की जरूरत है पता लगता है।


आयोजक राजीव सक्सेना ने बताया कि किसी रोगी को थक्कारोधी उपचार (जैसे कि एंटीकोगुलेंट दवाएं) दिया गया है, तो टीईजी  सर्जरी के दौरान दवा के प्रभाव की निगरानी करते हैं।  यह सुनिश्चित करता है कि थक्के का निर्माण सही समय पर हो और रक्तस्राव को नियंत्रित किया जा सके। बताया कि टीईजी जांच से फाइब्रिनोजेन के स्तर की निगरानी भी करता है, जो रक्त के थक्के बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सर्जरी के दौरान फाइब्रिनोजेन के स्तर का सही आकलन रक्तस्राव को रोकने में मदद कर सकता है।


मेडटेक आइडिया को देगा स्वरूप


मेडटेक( एसटीपीआई) के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर श्याम कुमार ने बताया कि ओटी में कई तरह के उपकरण का इस्तेमाल होता है। इन उपकरणों को संशोधित कर और सुरक्षित और सुविधाजनक बनाया जा सकता है। इसमें कैसे सुधार कर सकते है इसके बारे में टेक्नोलॉजिस्ट को सोचने की जरूरत है जो भी नया आइडिया उसे हमारे साथ शेयर करें मेडटेक हर स्तर पर मदद करेगा। टेक्नोकांन का उद्घाटन निदेशक प्रो.आर के धीमन ने करते हुए कहा कि टेक्नोलॉजिस्ट को शोध करने, शोध पत्र प्रस्तुत करने सहित कई स्तर पर संस्थान मदद करेगा। चिकित्सा अधीक्षक डा. प्रशांत अग्रवाल, मेडिटेक एसोसिएशन के अध्यक्ष डीके सिंह, महामंत्री सरोज वर्मा , टेक्नोलॉजिस्ट मनोज सिंह ने बताया कि एनेस्थीसिया टेक्नोलॉजिस्ट पर्दे के पीछे के हीरो है। सर्जरी की सफलता उनके हुनर पर निर्भर करती है।   


सेशन चेयर पर्सन डॉ दिव्या श्रीवास्तव एनस्थीसिया, डॉ राहुल गैस्ट्रो सर्जरी

एस आई पी करते हैं तो यह जानना है जरूरी

  SIP स्टॉपेज रेशियो चिंता का विषय है, लेकिन यह लॉन्ग टर्म ट्रेंड नहीं है

क्या है SIP स्टॉपेज रेशियो- म्यूचुअल फंड में पैसा लगाने वालों को जानना बेहद जरूरी है क्यों!

 क्या है SIP स्टॉपेज रेशियो- म्यूचुअल फंड में पैसा लगाने वालों को जानना बेहद जरूरी है क्यों!



 क्या है SIP स्टॉपेज रेशियो- म्यूचुअल फंड में पैसा लगाने वालों को जानना बेहद जरूरी है क्यों!

भारतीय निवेश बाजार में सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) एक सुरक्षित और अनुशासित निवेश ऑप्शन माना जाता है. लेकिन जनवरी 2025 में SIP स्टॉपेज रेशियो (SIP Stoppage Ratio) में जोरदार बढ़ोतरी देखी गई. जिससे निवेशकों के मन में क्या चल रहा है? उसकी जानकारी मिलती है. लेकिन जनवरी के डेटा ने पैसा लगाने वालों की टेंशन बढ़ा दी. आइए आपको विस्तार से बताते हैं. आखिर हो क्या रहा है.




क्या SIP निवेशक डर रहे हैं


SIP स्टॉपेज रेशियो क्या होता है? SIP स्टॉपेज रेशियो यह बताता है कि एक महीने में जितनी SIP बंद हुईं, वह नई SIP के मुकाबले कितने फीसदी हैं.



अगर SIP स्टॉपेज रेशियो ज्यादा होता है, तो इसका मतलब है कि ज्यादा निवेशक SIP बंद कर रहे हैं, जो बाज़ार में डर या सतर्क हो रहे हैं.


अगर SIP स्टॉपेज रेशियो कम होता है, तो निवेशक SIP को जारी रख रहे हैं, जिससे उनका बाज़ार में भरोसा झलकता है.


जनवरी 2025 में SIP स्टॉपेज रेशियो क्यों बढ़ गया? एक्सपर्ट्स ने  पर बताया कि शेयर बाजार में भारी उतार-चढ़ाव (Market Volatility) का असर दिखा है.


जनवरी 2025 में शेयर बाजार में भारी अस्थिरता देखने को मिली, जिससे कई निवेशकों ने घबराकर अपनी SIP रोक दी.


निफ्टी और सेंसेक्स अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचे थे, जिससे निवेशकों को डर हुआ कि अब बाज़ार गिर सकता है. कई लोगों ने मुनाफा बुक (Profit Booking) करके SIP रोकना बेहतर समझा.


महंगे वैल्यूएशन और गिरावट की आशंका (High Market Valuations & Fear of Correction)- कई म्यूचुअल फंडों के NAV (Net Asset Value) अपने रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गए थे. कुछ निवेशकों ने सोचा कि बाज़ार जल्द ही गिरेगा, इसलिए उन्होंने सही मौके का इंतजार करने के लिए SIP रोक दी.


नए निवेशकों की घबराहट (New Investors Panicking)- कोविड के बाद लाखों नए निवेशक SIP से जुड़े थे, लेकिन उन्होंने कभी बाज़ार में बड़ी गिरावट नहीं देखी थी. जब बाज़ार में थोड़ा नुकसान दिखा, तो उन्होंने SIP रोक दी, बजाय इसे जारी रखने के.


महंगाई (Inflation & Rising Interest Rates)- महंगाई दर बढ़ने और ब्याज दरों में बढ़ोतरी से कई निवेशकों ने अपने पैसे को FDs या डेट फंड्स में शिफ्ट किया.


इससे SIP स्टॉपेज रेशियो बढ़ा, क्योंकि लोग अधिक सुरक्षित निवेश विकल्प तलाशने लगे.



जो लोग भी एसआईपी में पैसा लगा रहे हैं उन्हें क्यों जानना चाहिए? जनवरी 2025 में SIP स्टॉपेज रेशियो: 109% है.  इसका मतलब है कि नई SIP से ज्यादा SIP बंद हो रही हैं, जो भारत में अब तक का सबसे अधिक SIP स्टॉपेज रेशियो है.


पिछले साल के आंकड़े-मई 2024: 88.38% (चुनाव से पहले निवेशकों में डर).मई 2020: 80.69% (कोविड-19 के कारण मार्केट क्रैश). जनवरी 2025 का 109% रेशियो सबसे ज्यादा है, जो दर्शाता है कि निवेशक ज्यादा सतर्क हो रहे हैं.


SIP निवेशकों के लिए क्या मायने रखता है? SIP निवेश फिर भी मजबूत है - ₹26,400 करोड़ का योगदान. SIP बंद होने के बावजूद, कुल निवेश राशि मजबूत बनी हुई है. कई निवेशकों ने छोटी SIP बंद कीं, लेकिन बड़ी SIP जारी रखी.


यह छोटे टाइम की टेंशन है या डर लंबे समय तक बना रहेगा?SIP हमेशा लंबे समय के लिए किए जाते हैं, लेकिन निवेशक छोटे उतार-चढ़ाव पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं. इतिहास बताता है कि SIP बंद होने के बाद भी नए निवेशक वापसी करते हैं जब बाज़ार स्थिर होता है.


निवेशकों को अधिक वित्तीय जागरूकता की ज़रूरत-SIP का असली फायदा बाज़ार गिरने के दौरान ही होता है, क्योंकि इससे निवेशक कम कीमत पर अधिक यूनिट खरीद सकते हैं.

निवेशकों को घबराने के बजाय SIP जारी रखनी चाहिए ताकि वे लंबे समय में अधिक लाभ कमा सकें.


SIP निवेशकों को क्या करना चाहिए?  सीएनबीसी आवाज़ पर एक्सपर्ट्स ने बताया लंबी अवधि के लिए निवेश जारी रखें


बाज़ार में उतार-चढ़ाव सामान्य है. SIP रोकने के बजाय उसे जारी रखने से ही सही फायदा मिलेगा.


बाज़ार को टाइम करने की कोशिश न करें-SIP रोकने से आप सबसे अच्छे रिटर्न देने वाले दिनों को मिस कर सकते हैं.रुपये कॉस्ट एवरेजिंग से फायदा तभी मिलेगा जब SIP चालू रहे.


अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करें-अगर आपको बाज़ार की अस्थिरता से डर लगता है, तो हाइब्रिड फंड्स, डेट फंड्स या गोल्ड ETF में निवेश करें.


SIP की राशि बढ़ाएं जब बाज़ार गिरे- अगर बाज़ार और गिरता है, तो SIP राशि बढ़ाने से ज्यादा फायदा मिलेगा.


SIP स्टॉपेज रेशियो – घबराहट या बदलाव? 109% SIP स्टॉपेज रेशियो चिंता का विषय है, लेकिन यह लॉन्ग टर्म ट्रेंड नहीं है.


निवेशकों को SIP का असली फायदा तभी मिलेगा जब वे इसे जारी रखेंगे.  बाज़ार में अस्थिरता आती-जाती रहती है, लेकिन SIP दीर्घकालिक लाभ देता है.


निवेश SIP की तरह होता है - अगर आप शुरुआत में ही डरकर छोड़ देंगे, तो असली फायदा नहीं मिलेगा.

प्रेमानंद महाराज की है दिव्य दृष्टि


 संत प्रेमानंद महाराज इन दिनों चर्चा में हैं क्योंकि रात्रि में उनकी पदयात्रा बंद हो गई है। ऐसे में लाखों भक्तों का दिल टूट गया है, क्योंकि उनके भक्त उनके दर्शन करने के लिए लालायित रहते हैं। इसी बीच एक बुजुर्ग महिला शीला का वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें उन्होंने संत प्रेमानंद महाराज के राज खोले हैं। उन्होंने संत प्रेमानंद के बारे में खूब बातें की और बताया की वो पहले कैसे थे। साथ ही उनकी किडनी की बीमारी के बारे में भी बात की। आइए आप भी जान लीजिए शीला ने ऐसा क्या बोला संत के बारे में जो हो गया वायरल।


पहले कैसे थे प्रेमानंद

सबसे पहले ये जान लेते हैं कि शीला हैं कौन? दरअसल वो वृंदावन में रहने वाली महिला हैं जो साधु संतों की सेवा को धर्म मानती हैं। उनसे जब संत प्रेमानंद महाराज के बारे में पूछा गया कि आप ये बताइए कि क्या प्रेमानंद महाराज आपके यहां आते थे? इस पर महिला ने कहा हां वो सीधा बनारस से यहां आए थे उस समय वो बहुत ही फक्कड़ इंसान थे। वो रोज यहां संत रास बिहारी से मिलने के लिए आते थे। जब रास बिहारी जाने लगे तो प्रेमानंद उनके चरणों में पड़ गए और बोले मुझे भी ले चलो अपने साथ रास बिहारी ने कहा कि मैं तुम्हें कहां ले जाऊं। तुम वृंदावन चले जाओ वहां बिहारी जी हाथ पकड़ेंगे तुम्हारा तो तुम फिर वहां से नहीं आ पाओगे।


हो गई थी गंभीर बीमारी

शीला से जब पूछा गया कि संत प्रेमानंद महाराज बनारस में कैसे रहते थे। इस पर वो बोलीं कि जब वो बनारस में रहते थे तो उनकी लंबी-लंबी जटाएं थी। उनका और कोई दूसरा रूप था, अब तो वो पीले कपड़े पहनने लगे हैं। खाट पर पड़े रहते थे ऐसे ही। महिला ने बताया की उनकी किडनी खराब हो गई थी, हालांकि देने को तो बहुत लोग तैयार थे, लेकिन वो लेने के लिए तैयार नहीं थे। क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि किसी और को कष्ट हो।


प्रेमानंद महाराज की है दिव्य दृष्टि

शीला ने बताया कि प्रेमानंद महाराज की दिव्य दृष्टि है। वो आंगन में बैठे रहते थे तो उन्हें साधू नजर आते थे, जो हमें नजर नहीं आते थे। वो बोलते थे कि उन्हें दान दो खाना खिलाओ, लेकिन हमें दिखते नहीं थे तो वो खुद ही उन्हें छोड़ने के लिए बाहर दरवाजे तक जाते थे। महिला ने ये भी कहा कि बाबा कभी भी किसी से न तो बैंड बाजा लाने के लिए कहते है लोग खुद लेकर आते हैं। महिला बोली की वो बाबा के सामने कभी बोलती नहीं हैं

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

कोई बेटी बूढ़ी मां को तड़पता छोड़ गई, कोई पिता मासूम बेटा को ले जाने को नहीं

 कोई बेटी बूढ़ी मां को तड़पता छोड़ गई, कोई पिता मासूम बेटा को ले जाने को नहीं तैयार 


महाकुंभ में मिलन, विछोह और लाचारी की तीन कहानियां रसिक द्विवेदी जागरण महाकुंभ नगर अनगिनत भीड़। टोलियों में एक-दूसरे का हाथ पकड़कर चलते लोग। कुछ समूह तो रस्सी के घेरे में अपनों को साथ लिए हुए। कोशिश इस बात की कि कोई बिछड़े न। लेकिन, भीड़ के महासमुद्र में हजारों ऐसे लोग भी हैं जो बिछड़े और मिले भी। ऐसे ही लोगों में कुछ की कहानियां आंखें भिगो देंगी। मां को छोड़ गई बेटीः बिहार के समस्तीपुर की 75 वर्षीय अहिल्या देवी को साथ लेकर आई बेटी छोड़ गई। उनके पास पर्ची में एक फोन नंबर था। उसे मिलाया गया तो किसी दुर्गा देवी ने बात की। असहाय छोड़ देने का कारण जाना गया तो उत्तर मिला कि उन्हें हम नहीं जानते हैं। जब कहा गया कि पुलिस आपके घर पहुंचेगी तो दुर्गा देवी ने बताया कि चंद्रभान अहिल्या देवी के दामाद हैं। फोन नंबर उन्हीं का है। पहले तो चंद्रभान ने पल्ला झाड़ने की कोशिश की। दबाव पड़ा तो बताया कि हमारे गांव का एक सिपाही कुंभनहाने गया है। उसको अहिल्या देवी के पास भेजते हैं। काफी इंतजार के बाद सुनीत नाम का व्यक्ति अहिल्या को लेने पहुंचा। पड़ताल में जुटे स्वप्निल द्विवेदी बताते हैं कि पहले तो साफ नकार दिया गया। जोर दबाव पड़ा तो उसे माता जी को ले जाना पड़ा। 


तमिलनाडु की भामा जी जब हुईं असहायः


 तमिलनाडु में चेन्नई निवासी भामाजी मेले में अपनों से बिछड़ गईं। मोबाइल फोन भी गुम हो गया। तमिल के अलावा और किसी भाषा की जानकारी नहीं थी। जैसे तैसे कैंप में पहुंची। उनकी बातों को वायस ट्रांसलेट करके सारा माजरा समझा गया। फिर चेन्नई में उनके अपनों से वार्ता हुई। उसके बाद उनके घर वाले आए और भामाजी को ले गए। 




 त सात साल के बच्चे को गंगा किनारे छोड़ गई मां


 बेबसी ने रुलाया होगा और हालात ने तड़पाया होगा। विकल्प ढूंढे नहीं मिला होगा तभी तो मां अपने सात वर्ष के सुंदर से बालक को गंगा किनारे छोड़ गई। तीन दिनों से बालक संगम किनारे खोया-पाया केंद्र में है। मुजफ्फरपुर जिले के भरवारी में उसका घर है। पापा वहां बस अड्डे के पास चाय की दुकान लगाते हैं। बेटे ने पिता का नाम राधारमन सिंह बताते हुए मोबाइल फोन नंबर भी दिया। बात भी हुई। राधारमन ने साफ कहा कि बेटे को वह लेने नहीं आएंगे क्योंकि, इसकी मां तीन-चार विवाह कर चुकी है। वह बेगूसराय की रहने वाली है। हमसे छह माह का नन्हा बेटा है, उसे मेरे पास ही छोड़ गई है। मासूम पिता-माता के बीच क्या है, क्या नहीं? इन सबसे दूर बस एक ही सवाल करता है कि... का हमका हमरी मम्मी से मिलवावै आए हौ? 79 वर्ष पहले रखी गई थी खोया-पाया कैंप की नींव पूर्व सांसद रीता बहुगुणा जोशी बताती हैं कि 79 वर्ष पूर्व खोया-पाया कैंप की कल्पना को अमलीजामा पहनाया गया था। मृदुलासाराभाई, कमला बहुगुणा और इंदिरा गांधी के सतत प्रयास को पंडित रणजीत शिक्षा समिति द्वारा जारी रखा गया। 24 वर्ष पूर्व समिति में हेमवती नंदन बहुगुणा का नाम भी जोड़ दिया गया। इसका संचालन खुद देख रही हूं। उनके कैंप में ही 5300 लोगों को मिलाया जा चुका है। 2019 में 37 हजार लोगों को मिलवाया था। बिछड़े लोगों को मिलाने की शुरुआत 1954 में कुंभ में भगदड़ के बाद हुई थी। अब तक एक लाख से ज्यादा लोगों को अपनों से मिलवाया जा चुका है।


बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

गमछे में गंगा, पूरा गांव चंगा भला गमछे में भी गंगा

 

गमछे में गंगा, पूरा गांव चंगा भला गमछे में भी गंगा

गमछे में गंगा, पूरा गांव चंगा भला गमछे में भी गंगा को बांधा जा सकता है? कोई कुछ भी कहे, मगर आस्था और विश्वास का जवाब है हां। जब भगवान प्रेम की डोर से बंधे हैं तो मां गंगा क्यों नहीं। यह कहता है मऊ निवासी सालिगराम का। संगम तट पर भ्रमण के दौरान इन्हीं बुजुर्ग सालिगराम ने अचानक मेरा ध्यान खींचा। दृश्य ही कुछ ऐसा था, सालिगराम पतित पावनी के अविरल प्रवाह से अंजुरी में जल भरकर लाते और मंत्र पढ़कर किनारे बिछे सफेद गमछे पर डालते जाते। त्रिवेणी का जल गमछे के नीचे बिछे पुआल से रिसकर त्रिवेणी की ही रेती में समाता जा रहा था। लेकिन धारा और गमछे के बीच सालिगराम की दौड़ जारी थी। मैंने उनके पास जाकर जैसे ही कुछ कहना चाहा तो मंत्र बुदबुदाते होठों पर अंगुली रखकर शांत रहने का इशारा किया। जिज्ञासावश मैं वहीं बैठकर उनकी यह साधना संपन्न होने का इंतजार करता रहा। खैर मेरी कौतूहल भरी प्रतीक्षा उनकी साधना के साथ समाप्त हुई और गमछा श्रद्धापूर्वक समेटकर रखा गया। मैंने छूटते ही पूछा, दादा ये क्या था ? किसी साधना को पूरी करने के आत्मविश्वास की चमक सालिगराम के चेहरे की झुर्रियों पर भारी पड़ रही थीं। हंसते हुए, जवाब मिला वे बंधना है बच्चा! बंधना काहे का? अरे ये बंधना बच्चों को नजर और टोने-टोटके से बचाता है, गर्भवती महिलाओं को पीड़ा से बचाता है। जब गांव में किसी को तकलीफ होती है तो इसी गमछे की चिट फाड़कर देता हूं, बांधने से ही तकलीफ दूर हो जाती है। अब यह गमछा नहीं, गंगा मैया हैं। इसकी रोज पूजा करता हूं। मंत्र पढ़कर 101 अंजुरी जल चढ़ाता हूं। सालभर यह गमछा लोगों के काम आता है और अगले कल्पवास में फिर आऊंगा।  हर साल कल्पवास में आता हूं और गंगा मैया को ऐसे ही लेकर जाता हूं। थोड़ा व्यंग्यात्मक होते हुए मैंने पूछा, किसी को फायदा होता भी है ? एक पल को उनकी नजरों में मेरे लिए उपहास और उपेक्षा का भाव नजर आया और चलते-चलते बोले, चला हो हमरे साथ तब्बै पता चली। कान में उनका आत्मविश्वास भरा दावा गूंज रहा था और मन मंथन में था कि क्या यह संभव है? आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के समय में यह बातें कितना मायने रखती हैं। इसके बावजूद टिटनेस, बौसीजी और तमाम टीकों के बीच सालिगराम का गमछा मुस्करा रहा था। खैर आस्था तो आस्था होती है, उसमें तर्क की जगह नहीं होती। जब बढ़ते प्रदूषण के बावजूद गंगा एक डुबकी से हमारे पाप चो देती है तो चिट भी दर्द हरती ही होगी। त्रिवेणी पर करोड़ों लोगों का आगमन सिर्फ एक डुबकी के लिए ही तो होता है। सामने हर-हर महादेव और जय गंगा मैया के जयकारों के साथ लोग लहरों का पुण्य लूट रहे थे और सालिगराम अपने शिविर को प्रस्थान कर चुके थे। मैं संगम तट पर पर खड़ा अपने सवालों की क्षुधापूर्ति आस्था के जवाबों से कर रहा था। इसके बावजूद सच यही है कि गंगा गमछे में जाकर पूरे गांव को चंगा कर रही हैं।

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

पूर्णिमा के पर्व पर श्रद्धालु बोले प्रयागराज का पूरा क्षेत्र संगम है

  




वसंत के बाद अपेक्षाकृत कठुआते पूस की पूर्णिमा से माघ मास के स्नान-दान, नियम-संयम के विधान पूर्णता को और हैं। कण-कण आहादित, हर मन श्रद्धा की डोर से बंधा और तन त्रिवेणी संगम की ओर है। संगम के तीरे माघ में ही फाल्गुन की ऊष्मा स्फुटित हो रही है। शीतल जल से बाहर निकलते ही हवा जैसे ही तन का स्पर्श करती हैं, रोम-रोम प्रफुल्लित हो उठता है। सनातन धर्म को समाहित किए एकादश मास कुछ ही घंटों में पूर्ण होगा। अध्यात्म दर्शन को ऊर्जान्वित करेगा। समुद्र मंथन प्रसंग से छलके बूंद-बूंद अमृत से आत्म तत्व को सराबोर कर जाएगा। वैदिक कालीन महाअनुष्ठान और विदा की बेला में गंग-जमुन की अंगनाई चहक उठी है। पुण्य के लिए तेजी से करोड़ों श्रद्धालुओं के कदम संगम की और अनवरत बढ़‌ते जा रहे हैं। बिहार के भागलपुर से अजय सिंह संगम में स्नान करने के लिए उत्साहित है। शास्त्र के ज्ञान के साथ ही छात्रों

को साहित्य के दर्शन ज्ञान का वह बोध कराते हैं। बोले- यह संगम में स्नान से ज्यादा क्षेत्र के दर्शन का महत्व है। एक ही स्थान पर देश और दुनिया के कितनी सभ्यताओं का मिलन हो रहा है, यही तो महाकुंभ हैं। मनीषियों ने माघ मास को विशेष पुण्यप्रद माना है। निर्णय सिंधु के अनुसार यह मास भगवान विष्णु को अति प्रिय है। इस मास में अंतिम दिन यानी माधी पूर्णिमा को किए गए स्नान-दान को अनंत फल देने वाला बताया गया है। इसी अभिलाषा के साथ ही हैदराबाद से इस स्वामी पूरे परिवार के साथ संगम में डुबकी लगाने पहुंचे थे। हालांकि भीड़ अत्यधिक होने के कारण वह संगम नोज तक नहीं पहुंच पाए, जिसके बाद उन्होंने वीआइपी घाट के बाद से स्नान करने का निर्णय लिया.. बोले प्रयागराज का पूरा क्षेत्र संगम है। यहां पर किसी भी घाट में स्नान करना त्रिवेणी के स्नान करना है। संतकबीर नगर से सरस्वती देवी टोली के साथ कहती है  कि आने में बहुत परेशानी हुई, लेकिन एक डुबकी लगाते ही अनंत सुख की अनुभूति हुई। यही त्रिवेणी के अमृत स्नान का चमत्कार है। घाट पर मौजूद संजय मिश्रा  बोले-धर्म, ज्ञान और संस्कृति दर्शन संगम मे देखने को मिल रहा है। भेद, भाव और विवाद को भूलकर लोग एक् साथ संगम में डुबकी लगा रहे हैं। समरसता का इससे बड़ा दर्शन की और नहीं हो सकता है। त्रिवेणी की महिमा को लेकर गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में 'माघ मकरगत रबि जब होई। तीरभपतिर्हि आव सब कोई॥ देख दनुज किंगर नर श्रेगी। सादर मज्जहिं सकल त्रिब्रेनों,' पंक्तियों से संपूर्ण प्रयागराज मे माघ मास पर्यंत स्नान की महत्ता का बखान किया है। महाकुंभ मे पुष्यामृत वर्षा का संतों-ऋषियो ने शास्त्रों में गान किया है। इसमे माघ की पूर्णिमा को सर्वोपरि स्थान दिया है। कहा है कि त्रिस्नावी अर्थात अंतिम तीन दिन और वह भी न कर पाएं तो माघ पूर्णिमा पर डुबकी संपूर्ण पुण्य फल प्रदान कर देती है।

आज १२ फरवरी पीजीआई में नहीं देखे जाएंगे नए मरीज

 



आज पीजीआई में नहीं देखे जाएंगे नए मरीज


बुधवार १२ फरवरी को संजय गांधी पीजीआई में सार्वजनिक अवकाश रहेगा संस्थान प्रशासन के मुताबिक नए मरीजों का पंजीकरण नहीं होगा। पुराने मैरिज जिनका कल दिखाने की डेट मिला है उनको देखा जाएगा जिन मरीजों को जांच जांच और सर्जरी की डेट दी गई है वह सभी प्रक्रिया होगी 24  घंटे लैब  चलेगा ओपीडी कलेक्शन का बंद रहेगा

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

पीजीआई प्रोफेसर महेंद्र भंडारी और प्रोफेसर एसएस अग्रवाल को दो बार मिला में नियुक्ति

 

पीजीआई के निदेशक का कार्यकाल आज होगा खत्म, मिल सकता है सेवा विस्तार

 संस्थान के 10 डॉक्टर भी निदेशक बनने की होड़ मे



पीजीआई के निदेशक डॉ. आरके धीमन का पांच साल का कार्यकाल सात फरवरी 2025 को पूरा हो जाएगा। पीजीआई को जनवरी में नैक ए प्लस प्लस मिलने के बाद से ही यह कयास लगाई जा रही थी कि निदेशक को सेवा विस्तार मिल सकता है।  पहली बार जब शासन स्तर से पीजीआई के 1983 एक्ट में संशोधन करते हुए निदेशक पद के लिए तीन साल तक कार्यकाल बढ़ाने का शासनादेश जारी हो गया तो अब यह पक्का माना जा रहा है कि कोई दूसरा निदेशक नहीं बन सकेगा। 

पीजीआई डॉक्टरों ने कर रखा आवेदन 

पीजीआई के निदेशक पद के लिए खुद संस्थान के ही 10 डॉक्टरों ने दावेदारी ठोकते हुए आवेदन कर रखे हैं। उसके अलावा देश भर से 42 डॉक्टरों ने निदेशक पद के लिए आवेदन किए हुए हैं। पीजीआई के इमरजेंसी मेडिसिन के प्रमुख डॉ. आरके सिंह, रेडियोथेरेपी के प्रमुख डॉ. शालीन कुमार, कॉर्डियोलॉजी के प्रमुख डॉ. आदित्य कपूर, नेफ्रोलॉजी के प्रमुख डॉ. नारायण प्रसाद, एंडोक्राइन सर्जरी के डॉ. गौरव अग्रवाल व अंजलि मिश्रा, न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के डॉ. अमिताभ आर्या, पैथालॉजी के डॉ. रामनवल राव, एनेस्थीसिया विभाग व वर्तमान में सीएमएस डॉ. संजय धीराज, सीसीएम की प्रमुख डॉ. बी. पोद्दार शामिल हैं। 

डॉ. राकेश कपूर को मिला था सेवा विस्तार 

पीजीआई निदेशक डॉ. आरके धीमन का कार्यकाल का सात फरवरी को अंतिम दिन है। पीजीआई निदेशक पर इससे पहले भी डॉ. राकेश कपूर को तीन माह का सेवा विस्तार मिला था। उनका कार्यकाल नवंबर 2014 से नवंबर 2019 तक था। उसके बाद वह फरवरी 2020 तक सेवा विस्तार पर रहे। वहीं, इससे पहले पीजीआई के निदेशक पद पर डॉ. एसएस अग्रवाल और डॉ. एम. भंडारी ही दो बार तैनाती दी गई। इन दोनों का कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया था, बल्कि निदेशक पद पर तैनाती दी गई थी। 

पीजीआई में अब तक निदेशकों का कार्यकाल 

पीजीआई के पहले निदेशक डॉ. बीसी जोशी दिसंबर 1982 से मई 1986 तक रहे।

 उसके बाद डॉ. बीबी सेठी अगस्त 1986 से अप्रैल 1990 तक,

 डॉ. केएन अग्रवाल, सितंबर 1990 से जुलाई 1993, डॉ. एसएस अग्रवाल अक्तूबर 1993 से मार्च 1997, डॉ. एम. भंडारी मार्च 1997 से मार्च 2000,

 डॉ. एसएस अग्रवाल मार्च 2000 से मार्च 2001, डॉ. एम. भंडारी मार्च 2001 से अगस्त 2003,

 डॉ. करतार सिंह अगस्त 2003 से अगस्त 2006, डॉ. एके महापात्रा सितंबर 2006 से सितंबर 2009, डॉ. आरके शर्मा सितंबर 2009 से सितंबर 2014, डॉ. राकेश कपूर नवंबर 2014 से नवंबर 2019 तक रहे। डॉ. आरके धीमन फरवरी 2020 से अब तक हैं।








सही समय पर न सोना और न उठाना बन रहा है तनाव का कारण

 

अधूरी नींद से बढ़ रहा विद्यार्थियों में तनाव


लखनऊ: देर रात तक पढ़ाई करना,

सुबह देर से उठना। नींद पूरी न होने से दिन भर सिर में भारीपन रहना। यह लक्षण छात्र-छात्राओं में तनाव बढ़ा रहे हैं। लवि के जंतु विज्ञान विभाग की ओर से राजधानी के विभिन्न स्कूलों में कक्षा नौ से 12वीं तक के 884 छात्र-छात्राओं पर शोध में यह तथ्य सामने आए हैं। शोध में छात्र छात्राओं में क्रोनोटाइप (किसी व्यक्ति की आंतरिक जैविक घड़ी के आधार पर सोने व जागने के लिए उसके पसंदीदा समय का विवरण) के साथ साथ उनकी लार लेकर नींद व तनाव के लिए मेलाटोनिन और कोर्टिसोल हामौस की जांच की गई थी। शोध रिपोर्ट को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद भेजी जाएगी।


विभाग की प्रो. शैली मलिक को वर्ष 2021 में सीएसटी से 'डेली पैटन्सं आफ क्लाक रिलेटेड फिजियोलाजी एंड विर्हवियर इन यंग स्टूडेंट्स' शोध प्रोजेक्ट मिला था। बताया कि लखनऊ के कई स्कूलों के कक्षा नौ से 12वीं तक के 13 से 19 वर्ष की आयु वाले छात्र-छात्राओं पर यह शोध पूरा हुआ है। इसमें तीन प्रकार की प्रश्नावली का प्रयोग किया गया। क्रोनोटाइप सर्वेक्षण


में एमईक्यू (प्रातःकालीन, सायंकालीन प्रश्नावली), नींद की गुणवत्ता के लिए पिट्सबर्ग स्लीप क्वालिटी स्केल (पीएसक्यूआई), दिन में नींद आने के लिए ईएसएस (एप्वोर्थ नींद संबंधित प्रश्न पत्रिका) और थकान के स्तर के लिए एफएसएस (थकान संबंधित प्रश्नपत्रिका) पर प्रश्न पूछे गए। क्रोनोटाइप में विद्यार्थियों की पूरे दिन की गतिविधियां देखी गईं। 40 प्रतिशत (354) छात्र-छात्राएं सुबह से ही अपने कार्यों को लेकर सक्रिय मिले। 50 प्रतिशत (442) छात्र-छात्राओं का कोई निश्चित समय नहीं निर्धारित था। उन्हें नीदर टाइम की श्रेणी में रखा गया। सायंकालीन प्रकार वालों में 10 प्रतिशत विद्यार्थी देर रात तक जागने और सुबह देर से दिन की शुरुआत करने में रुचि रखते हैं। इनको पर्याप्त नींद न मिलने की वजह से उनमें तनाव का स्तर बढ़ा मिला। उसकी


दिए गए सुझाव


• विद्यार्थियों के पढ़ने और सोने का समय निर्धारित होना जरूरी


• विद्यार्थियों के लिए फ्री आवर हो, जिसमें एक्टिविटी कराई जाएं


• अभिभावक बच्चों को तनाव से दूर रखने का प्रयास करें।


गुणवत्ता खराब थी। 30 प्रतिशत आबादी थकान से पीड़ित थी।

लार से हुई हार्मोंस की जांच परीक्षा और विना परीक्षा के दिनों में सभी छात्र-छात्राओं के दो हार्मोस मेलाटोनिन और मेलाटोनिन की जांच उनकी लार से की गई। मेलाटोनिन हामौस नींद से संबंधित है। शोध के अनुसार सुबह के समय और नीदर टाइम वाले 50 प्रतिशत विद्यार्थियों में हामाँस का स्तर यह सही था। 10 प्रतिशत वालों में रात के समय हार्मोस का स्तर उच्च नहीं था। लेकिन दोपहर के समय देखने पर स्तर उच्च पाया गया। परीक्षा के दौरान सभी छात्र-छात्राओं में मेलाटोनिन का स्तर कम पाया गया। मतलब उनकी नींद पूरी नहीं हो पा रही। कोर्टिसोल हामौस से विद्यार्थियों में सुबह और रात में जांच में तनाव देखा तो सुबह इसका स्तर बढ़ा पाया गया।

नेहरू ,अटल जी सोनिया गांधी ने भी कुंभ में किया था स्नान

 

संगम में डूबे मोदी-योगी के धार्मिक ध्रुवीकरण के नारे

महात्मा गांधी और कुंभ मेला

महात्मा गांधी का कुंभ मेले से जुड़ाव ऐतिहासिक रहा है। 1915 के हरिद्वार कुंभ के दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले से मुलाकात की थी। यह भेंट ऐतिहासिक थी, क्योंकि इसी दौरान गोखले ने गांधीजी को भारतीय समाज और राजनीति को नजदीक से समझने की सलाह दी थी। गोखले ने गांधीजी को कुंभ मेले की आध्यात्मिक और सामाजिक महत्ता बताते हुए उनसे इसमें स्नान करने का आग्रह किया। 1918 में जब प्रयागराज में कुंभ मेला आयोजित हुआ, तब देश में अंग्रेजों का शासन था और स्वतंत्रता संग्राम जोरों पर था। ब्रिटिश सरकार ने इस आयोजन पर कड़ी नजर रखी थी और कई नेताओं की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा रखा था। इसके बावजूद, महात्मा गांधी ने गुप्त रूप से प्रयागराज पहुंचकर संगम में स्नान किया। वे यहां एक साधु के आश्रम में ठहरे और बिना किसी प्रचार के कुंभ स्नान किया।

इस ऐतिहासिक स्नान का जिक्र गांधीजी ने बाद में 10 फरवरी 1918 को फैजाबाद में हुए कांग्रेस अधिवेशन में किया। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने ब्रिटिश सरकार की सख्ती के बावजूद कुंभ मेले में भाग लिया। इस घटना का उल्लेख राजकीय अभिलेखागार में मौजूद ब्रिटिश अफसरों की खुफिया रिपोर्ट में भी दर्ज है।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद: राष्ट्रपति के रूप में कुंभ में कल्पवासः 1954 के प्रयागराज कुंभ में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कुंभ मेले में कल्पवास किया। यह पहली बार था जब किसी राष्ट्राध्यक्ष ने आधिकारिक रूप से इस धार्मिक आयोजन में भाग लिया। संगम तट पर स्थित अकबर किले में उनके रहने की विशेष व्यवस्था की गई थी। राष्ट्रपति होने के बावजूद उन्होंने सादगी और आध्यात्मिक अनुशासन का पालन किया। उनकी उपस्थिति ने कुंभ मेले की धार्मिक और राष्ट्रीय महत्ता को और बढ़ाया। अब वह स्थान जहाँ डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कल्पवास किया था, "प्रेसिडेंट व्यू" के नाम से प्रसिद्ध है और कुंभ मेले में विशेष आकर्षण का केंद्र बन गया है।

पंडित नेहरू भी गये थे कुंभ

पंडित जवाहरलाल नेहरू का तो जन्म ही 14 नवंबर 1889 को गंगा किनारे बसे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। नेहरू ने अपनी आत्मकथा "टुवर्ड फ्रीडम" में गंगा के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए लिखा है: "गंगा, विशेष रूप से, भारत की नदी है, जिसके साथ हमारी सभ्यता के पूरे इतिहास में गहरा संबंध रहा है।" लेकिन वे आज के नेताओं की तरह ढकोसले बाज नहीं थे। जब 10 जनवरी 1938 को नेहरू की मां, स्वरूप रानी नेहरू, का निधन हुआ, तो नेहरू ने इलाहाबाद में संगम तट पर उनकी अस्थियों का विसर्जन किया था। इस अवसर पर ली गई एक तस्वीर में नेहरू जी गंगा में स्नान करते हुए दिखाई देते हैं। इस तस्वीर को कभी-कभी उनके कुंभ मेले में स्नान के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो सही नहीं है। 1954 के प्रयागराज कुंभ मेले में पंडित जवाहरलाल नेहरू गये जरूर थे, पर वे व्यवस्थाओं की समीक्षा करने के लिए पहुंचे थे। और राज्यसभा में दिए अपने बयान में उन्होंने साफ कहा था कि वे संगम में स्नान करने नहीं गए।

कामा मैकलीन की पुस्तक “Pilgrimage and Power: The Kumbh Mela in Allahabad from 1776-1954” में नेहरू की 1954 के कुंभ मेले की तस्वीर छपी है, जिसमें वह भीड़ के बीच नजर आ रहे हैं। मैकलीन लिखती हैं कि जब नेहरू से संगम में स्नान के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया—"मैंने शारीरिक रूप से नहीं, लेकिन अन्य रूप में स्नान किया।"

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लाल बहादुर शास्त्री के सचिव सी.पी. श्रीवास्तव ने अपनी जीवनी में लिखा है कि नेहरू ने शास्त्रीजी के कुंभ स्नान के अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि "मुझे गंगा नदी से प्रेम है, लेकिन कुंभ में स्नान नहीं करूंगा।"

अन्य प्रधानमंत्रियों और राजनेताओं का कुंभ से संबंध

इंदिरा गांधी: इंदिरा गांधी का इलाहाबाद, गंगा नदी और कुंभ मेले से गहरा संबंध था। वह इलाहाबाद में पली-बढ़ीं, जहां उनके परिवार का निवास आनंद भवन स्थित है। गंगा नदी के तट पर बसे इस शहर में उनका बचपन बीता, जिससे गंगा के प्रति उनका विशेष लगाव विकसित हुआ। 1966 में, जब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में निधन हुआ, तो इंदिरा गांधी उनकी अस्थियां लेकर इलाहाबाद पहुंचीं और उन्हें गंगा नदी में विसर्जित किया, जो उनकी गंगा के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है। लेकिन उनके संगम में स्नान का कोई प्रमाण नहीं है।

भारतीय राजनीति के प्रखर समाजवादी नेता, अपनी स्पष्टवादिता और सिद्धांतों के प्रति अडिग पहचान वाले प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जन्म भी गंगा नदी के समीप उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को हुआ था। "बागी बलिया" के नाम से मशहूर बलिया की सबसे बड़ी झील सुरहाताल, कटहल नाले के माध्यम से गंगा से जुड़ी हुई है, और जिसने बलिया को एक समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान दी है। चंद्रशेखर गंगा को भारतीय संस्कृति की आत्मा और भारत की सांस्कृतिक-आध्यात्मिक चेतना की वाहक मानते थे।  1989 के कुंभ मेले में संतों-महंतों से संवाद के दौरान उन्होंने कहा था कि गंगा हमारी सभ्यता की पहचान है और इसकी पवित्रता को बनाए रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।  10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक भारत के नौवें प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर ने अपने छोटे लेकिन प्रभावशाली कार्यकाल में भी राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक विरासत के महत्व पर बल दिया। लेकिन धर्म के नाम पर आडंबर और धार्मिक भावनाओं को राजनीतिक लाभ के लिए उन्होंने कभी इस्तेमाल नहीं किया।  

नेहरू और चंद्रशेखर की तरह अटल बिहारी वाजपेयी का भी कुंभ मेले के प्रति विशेष सम्मान था। उन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को सदैव महत्व दिया। पर वे अंधविश्वासी नहीं, दार्शनिक थे। 2001 के प्रयागराज में आयोजित कुंभ महापर्व में तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने भाग लिया था। अटल जी भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रति गहरा सम्मान रखते थे, और कुंभ मेले जैसे आयोजनों के महत्व को भली-भांति समझते थे। प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने कुंभ मेले की व्यवस्थाओं की समीक्षा की और संतों-महंतों से मुलाकात की। लेकिन उनके संगम में स्नान करने का कोई प्रमाण नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थियों का संगम में विसर्जन जरूर किया गया था।

•      2001 में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने भी कुंभ मेले में भाग लिया और गंगा में डुबकी लगाई थी।•      2019 के अर्धकुंभ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा में डुबकी लगाई थी। 

मुगल सम्राट और कुंभ मेला

मुगल सम्राट अकबर ने 1583 के प्रयागराज कुंभ में भाग लिया था और इसी कुंभ के दौरान उन्होंने प्रयागराज में एक विशाल किला बनवाया था, जिसे आज भी "अकबर किला" कहा जाता है।जहांगीर ने अपने संस्मरण "तुजुक-ए-जहांगीरी" में 1612 के कुंभ मेले का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा कि किस प्रकार इस आयोजन में लाखों श्रद्धालु एकत्रित होते थे।1665 के कुंभ में औरंगजेब ने हिंदू संतों की बढ़ती शक्ति को देखकर इस मेले पर विशेष निगरानी रखने का आदेश दिया था।

ब्रिटिश गवर्नर जनरल और कुंभ

  • 1838 के कुंभ मेले के दौरान लॉर्ड विलियम बेंटिक ने भीड़ और अव्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए प्रशासनिक हस्तक्षेप किया था। यह पहला अवसर था जब अंग्रेजों ने मेले के संचालन में हस्तक्षेप किया।
  • 1858 के कुंभ मेले के दौरान लॉर्ड डलहौजी ने पहली बार मेले की जनगणना करवाई और इसे "दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला" बताया।
  • 1820 के दशक में ब्रिटिश अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने कुंभ मेले पर व्यापक अध्ययन किया और इसे पश्चिमी जगत में लोकप्रिय बनाया।

रोचक प्रसंग और किस्से

•      1867 कुंभ में साधु-संतों और अंग्रेजों की झड़प: प्रयागराज कुंभ में नागा साधुओं और ब्रिटिश अधिकारियों के बीच विवाद हुआ था, जिसमें कई साधु घायल हुए।•      1954 कुंभ त्रासदी: कुंभ मेले में भगदड़ मचने से 800 से अधिक लोग मारे गए थे।•      2025 महाकुंभ त्रासदी: इस साल महाकुंभ में भगदड़ मचने की छह घटनाओं का चर्चा हो रही है। दो बार आगजनी की घटनाएं भी हो चुकी हैं। सरकारी आंकड़ों में महज 30 लोगों के मरने की बातें कही गयी हैं। लेकिन सोशल मीडिया में सैकड़ों लोगों के मारे जाने और करीब 1500 लोगों के लापता होने की पुष्ट अपुष्ट खबरें चल रही हैं।

संसद में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने हजारों मृतक श्रद्धालुओं को श्रद्धांजलि देने की बात कही तो बवाल मच गया। दोनों नेताओं ने हादसे की जांच के लिए जेपीसी गठित करने और सर्वदलीय बैठक बुलाने की भी मांग की। पर सरकार खामोश है।

अनेक साधु संतों और शंकराचार्यों ने कुंभ को धार्मिक-राजनीतिक पर्यटन से जोड़ने और एक तथाकथित सनातनी भावनाओं को उभारने वाले इवेंट की तरह इस्तेमाल करने पर कड़ी आपत्ति जतायी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर अपनी मनमर्जी से अर्ध कुंभ को कुंभ और पूर्ण कुंभ को महा कुम्भ बनाने पर भी विरोध जताया गया है। भगदड़ में हुई मौतों का आंकड़ा न देने पर सवाल उठाते हुए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग की और कहा कि इस सरकार ने तो मृतकों का श्राद्ध या उनकी आत्मा की शांति के लिए मौन तक रखने का मौका नहीं दिया। उन्होंने कहा कि जो सरकार 2700 अत्याधुनिक कैमरों से मेले में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के आंकड़े जारी कर रही थी, वह मौतों और लापता लोगों की सूची नहीं दे पा रही। जिन हेलीकॉप्टरों को घायलों के अस्पताल ले जाने के लिए लगाना चाहिए था, उनसे हादसे के बावजूद फूल बरसाकर घाव पर नमक छिड़का जाता रहा।

सबसे दुखद तो यह था कि जहां योगी सरकार लाखों श्रद्धालुओं को राहत की मूलभूत सुविधाएं देने की बजाय डंडों से भगाती रही, मुसलमानों के मेला क्षेत्र में प्रवेश पर रोक लगाती रही, वहीं उनके कटोगे तो बंटोगे के नारे के बावजूद इलाहाबाद की मुस्लिम बस्तियों के हजारों लोगों ने लाखों श्रद्धालुओं को रहने खाने, दिनचर्या और राहत की सुविधाएं देकर गंगा-जमुनी एकता की मिसाल कायम की। प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान मौनी अमावस्या (29 जनवरी 2025) के दौरान हुई भगदड़ के बाद, प्रयागराज की गंगा-जमुनी तहजीब ने एक बार फिर मानवता और भाईचारे की मिसाल पेश की। स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने श्रद्धालुओं की मदद के लिए अपने घरों, स्कूलों और संस्थानों के दरवाजे खोल दिए, जिससे कई लोगों की जान बचाई जा सकी।

चाहे नखास कोहना, चौक, रौशनबाग, सेवई मंडी का इलाका हो या रानीमंडी से लेकर हिम्मतगंज का इलाका, इस सारे इलाके के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपने घरों के दरवाजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए। उन्होंने आराम के लिए दरी, चादर, प्लास्टिक बिछाई और चाय, बिस्किट, पूड़ी, सब्जी आदि का प्रबंध किया। दो दिनों तक हजारों श्रद्धालु यहां ठहरे रहे।

28 जनवरी की रात को, जिस दिन भगदड़ हुई, तो कोतवाली क्षेत्र में यादगार हुसैनी इंटर कॉलेज के प्रबंधक गौहर काज़मी ने कॉलेज खोलने का आदेश दिया। क्षेत्रवासियों के सहयोग से श्रद्धालुओं के ठहरने, खाने-पीने की सभी सुविधाएं प्रदान की गईं। कॉलेज परिसर का मैदान और कक्षाएं श्रद्धालुओं से भर गईं, जहां उनके आराम के लिए दरी, चादर, प्लास्टिक बिछाई गई थी और चाय, बिस्किट, पूड़ी, सब्जी का बंदोबस्त किया गया था।

इसी तरह चौक क्षेत्र के निवासियों ने मिलकर थके हुए श्रद्धालुओं को भोजन कराया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रावासों, जैसे शताब्दी छात्रावास, केपीयूसी, पीसी बनर्जी, सर सुंदरलाल छात्रावास, महादेवी वर्मा छात्रावास और कल्पना चावला छात्रावास की छात्राओं ने भी श्रद्धालुओं की सहायता में योगदान दिया।

इन प्रयासों ने प्रयागराज की गंगा-जमुनी संस्कृति और मानवता की गहरी जड़ों को उजागर किया, जहां सभी समुदायों ने मिलकर संकट के समय में एक-दूसरे की मदद की। और इसके साथ ही मोदी-योगी और भाजपा के धार्मिक ध्रुवीकरण के नारे संगम में डूब गये।