सोमवार, 5 अगस्त 2019

नहीं भूली सका आज तक 29 साल पहले की वह रात- एक विस्थापित कश्मीरी पंडित का दर्द

नहीं भूली सका आज तक 29 साल पहले की वह रात


श्रीनगर से रात 12 बजे छिपते-छिपाते पहुंचे थे जम्मू
कुमार संजय। लखनऊ

अप्रैल 1990 की वह रात आज तक नहीं भूल पाया हूं जिस रात को छिपते –छिपाते किसी तरह जम्मू पहुंचे साथ में  पिता, मा , भाई और भाभी के साथ । संजय गांधी पीजीआइ के एनेस्थेसिया विभाग में तैनात सीनियर टेक्नोलाजिस्ट किशोऱ कुमार कौल कहते है कि आज भी वह रात और महौल याद है। रोआं थर्रा जाता है। सब कुठ हम लोग सब कुछ गवां कहां खत्म होगा सफर सोचते हुए निकले थे लेकिन ईश्वर की कृपा रही कि 6 महीने बाद ही लखनऊ में सफर खत्म हुआ। स्थायी ठिकाना मिल गया जहां चैन की जिंदगी मिली। पिता मोहन लाल कौल का निधन कुछ साल पहले हो गया।  
 किशोऱ कौल कहते है कि  हिजबुल मुजाहिद्दीन गुट के आतंकियों ने धमकी दी कि यहां से छोड़ कर चले दो दिन में चले जाओ नहीं खत्म कर देंगे। हम लोग रात में बारह बजे सब तुछ छोड़ कर कुछ पैसा और कपड़े लेकर किसी तरह घर से निकले काफी दूर जाने के बाद एक टैक्सी मिली जो हम लोगों को लाकर जम्मू छोड़ दिया। जम्मू में शरणार्थी शिविरि में पहुंचने के बाद लगा कि अब जान बच जाएगी। ईश्वर की कृपा रही कि दस दिन के बाद मैं दिल्ली गया जहां पर गंगाराम अस्पताल में नौकरी मिल गयी। दस दिन में जम्मू से शिऴिर छोड़ कर हम लोग दिल्ली आ गए। उसी समय पीजीआइ लखनऊ में जगह निकली थी यहां सलेक्शन हो गया सितंबर लखनऊ में आ गया। जब से जिंदगी राह पकडी। भाई भोपाल में नौकरी करने चले गए। किशोर कहते है कि हमने ने वहां के आंतकी संगठनों का तांडव देखा है कि कैसे अपमानित करते थे। तमाम लोगों को वह मौत के घाट उतार दिए। हमारी बहन –बेटी को साथ बदसलूकी करते थे। हमारा घर श्री नगर जिले के हब्बा कदल मुहल्ले में बढ़िया घर था । वहां के कागजात में नाम दर्ज है । हम लोगों का वापस जाने का रास्ता अब खुल गया है बस आंतकी खत्म हो जाएं। बस हम लोगों को सुरक्षा मिले

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें