रविवार, 10 फ़रवरी 2019

पीजीआई में ब्रांकोकान-2019-रिजि़ड ब्रांकोस्कोपी से दूर होगी मुख्य सांस नली की रूकावट

पीजीआई में ब्रांकोकान-2019


रिजि़ड ब्रांकोस्कोपी से दूर होगी मुख्य सांस नली की रूकावट
कैंसर मरीजों को मिलेगा इलाज के लिए मौका
रूकावट के कारण इलाज शुरू होने से पहले हो जाती है मौत


अब रिजिड ब्रांकोस्कोपी के जरिए मुख्य सांस नलिका की रूकावट को दूर कर खाने की नली, लंग , थायराड कैंसर के मरीजों को इलाज के लिए समय देना संभव हो गया है। संजय गांधी पीजीआई में आयोजित इटरवेंशनल  ब्रांकोस्कोपी पर आयोजित अधिवेशन में विभाग के प्रमुख प्रो.आलोक नाथ और प्रो. जिया हाशिम ने बताया कि खाने की नली, लंग , थायरायड, सारकोडोसिस सहित कई परेशानी में मुख्य सांस की नली में गांठ बन जाती है जिसके कारण मुख्य सांस नलिका में रूकावट के कारण शुरूआती दौर में मरीज की मौत हो जाती है इलाज करने तक का मौका नहीं मिलता है लेकिन अब रिजिड ब्रांकोस्कोपी के जरिए हम लोग गांठ को निकाल कर सांस नली की रूकावट दूर कर मरीज को इस लायक बना देते है कि वह कैंसर का इलाज ले सके । देखा गया है कि कई तरह के कैंसर में इलाज से जिंदगी लंबी हो जाती है। विशेषज्ञों ने बताया कि अब ब्रांकोस्कोपी और थोरोस्कोपी के जरिए फेफडे के कैंसर, टीबी सहित फेफडे की कई बीमारियों का पता काफी शुरूआती दौर में लगना संभव हो गया है जिससे इलाज की सफलता दर भी बढ़ी है। हम लोग अधिवेशन में इस तकनीक के बारे में लोगों को सिखा रहे हैं। 

लेजर से भी निकलाते है ट्यूमर
प्रो. जिया हाशिम और प्रो. अजमल ने बताया कि अब लेजर तकनीक भी आ गयी है जिसमें सांस की नली में रूकावट पैदा करने वाले ट्यूमर जो लेजर से जला देते हैं। इसकी सफलता दर अधिक है। बताया कि कर्ई बार लंबे समय तक सांस की नली में ट्यूब पडे रहे पर वहां पर स्टोनोसिस( छोटी गांठ) हो जाता है जिससे ट्यूब निकालने के बाद सांस लेने में परेशानी होती है। लेजर से हम लोग इस गांठ जला कर वहां पर दोबारा सिकुडन न हो इसके लिए स्टंट लगा ते हैं। 

बिना सीना खोले संभव होगी बायोप्सी

 बिना किसी चीरे के फेफडे की बायोप्सी संभव होगी। संस्थान के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग ने क्रायो ट्रास ब्रांक्रियल लंग बायोप्सी शुरू किया है। इसमें प्रोब के 70 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा कर फेफेडे में ले जाते है जिसमें फेफडे का हिस्सा चिपक जाता है । यह पांच मिमी तक होता है । पहले बायोप्सी से लिए अोपेन सर्जरी कर पड़ती थी। उत्तर भारत का तीसरा अस्पताल है जहां पर सीटीबीएलबी शुरू की गयी है। विभाग के प्रमुख प्रो. अालोक नाथ  और प्रो. अजमल खान ने बताया  कि इस तकनीक स्थापित होने के बाद फेफडे की बीमारी अाईएलडी ( इंटेरइस्टीसियल लंग डिजीज) और लंग कैंसर बीमारी का पता लगाने की दक्षता काफी बढ़ गयी है। इससे  इलाज की दिशा तय करने में काफी दक्षता अाएगी।   

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