गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

पीजीआइ के नींव प्रो.याचा 28 साल की सेवा के बाद कहा अलविदा-जब सिरिंज से चढाया खून बची बच्चे की जान




पिडियाट्रिक गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग के उद्घाटन का दिन रहेगा पूरी जीवन याद   
बच्चों के चेहरे पर मुस्कान के लिए लगा दिया 28 साल 
पीजीआइ के नींव प्रो.याचा 28 साल की सेवा के बाद कहा अलविदा
देश का पहला पिडियाट्रिक गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग स्थापित किया
प्रदेश में मिलने लगा बच्चों को इलाज

उठ खडे होते है मुसाफिर जिन्हे दूर जाना होता है....इसी मंत्र को आत्मसात कर बच्चों के चहरे पर मुस्कान लाने के लिए जीवन के 28 साल पीजीआइ को देने वाले  संजय गांधी पीजीआइ के पिडियाट्रिक गैस्ट्रो इंट्रोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो.एसके याचा ने आज संस्थान को अलविदा कह दिया।  नींव के पत्थर रहे प्रो.याचा ने अपनी विशेषज्ञता के विकास के साथ ही  संस्थान के विकास के लिए कई काम किए। प्रो.याचा ने देश में पहली बार बाल पेट रोग विशेषज्ञता वाला विभाग स्थापित किया इसके साथ बच्चों के पेट की तमाम बीमारियों के इलाज का तरीका यहां स्थापित करने के साथ पूरे देश को बताया। प्रो.याचा ने कहा कि जिस दिन हमारे विभाग का उद्घाटन हुआ वह दिन हमारे यादगार दिन है। वर्ष 1991 में पहली बार संस्थान के गैस्ट्रो इंट्रोलाजी विभाग में कदम रखा तब से इसी क्षेत्र में काम किया। हमारे देश में बाल पेट रोग विशेषज्ञों आज की कमी है और पहले भी थी इसलिए इनके लिए काम करने का लक्ष्य रहा। बच्चों और बडों में इलाज और पेट की बीमारी अलग होती है इसलिए अलग से विभाग स्थापित करने के लिए प्रस्ताव रखा जिसे संस्थान प्रशासन ने स्वीकार कर हर स्तर पर कोशिश किया जिसके फल स्वरूप देख का पहला पिडियाट्रिक गैस्ट्रो इंट्रोलाजी विभाग 2005 में विधिक रूप से स्थापित हो गया। वार्ड सहित अन्य सुविधा 2008 में स्थापित हो गयी जिसके बाद से काम करना शुरू कर दिया। इस दौरान देश में पहली बार डीएम कोर्स शुरू हुआ। इसके साथ ही न्यू ओपीडी भवन का प्लानिग, पीएमएसवाई के तहत के नए विभाग की स्थापना, सब डीन सहित कई काम संस्थान के विकास के लिए काम किए। 

यह है  उपलब्धि
- 94 एवार्ड
-570  लेक्चर
- 170 रिसर्च पेपर
- अब 60 डीएम पिडियाट्रिक गैस्ट्रोइंट्रोलाजी देश को दिए

जब सिरिंज से चढाया खून बची बच्चे की जान
हीमो स्प्रे के लिए कंपनी से किया बता घर लेने गए डाक्टर
कुमार संजय। लखनऊ   
प्रो.याचा ने कहा कि तमाम मेडिकल कंडीशन जीवन में आया लेकिन आभी एक साल पहले एक बच्चा खून की उल्टी करते हुए विभाग में पहुंचा उस दिन इतवार का दिन था । सब लोग रिलेक्स मूड में थे मुक्षे सूचना मिली वार्ड पहुंचा दो देखा कि बच्चा का बीपी लो है , पल्स नहीं मिल रही है लगा कि कुछ भी हो सकता है। इसी बीच खून मंगवाया तुरंत सिरिंज से खून चढाया जिससे तेजी से उसके शरीर में खून पहुंचा थोडा सुधार हुआ। बच्चे के पेट में अल्सर के खून निकल रहा था जिसके लिए हीमो स्प्रे की जरूरत थी जो जल्दी नहीं मिलता है। हमने एक कंपनी से बात किया तुरंत एक डाक्टर को उसके पास भेज कर स्प्रे मंगा कर कर इंडोस्कोप कर अल्सर से रक्त स्राव बंद किया वह बच्चा आज  भी ठीक है। इस केस मैं उस हर अधिवेशन में रखता हूं जहां पर ब्लीडिंग की बात होती है। सिरिंज से खून चढाने पर रेजीडेंट डाक्टरों ने बाद में सवाल किया तो बताया कि ड्रिप से चढाते तो खून धीरे-धीरे जाता ऐसे में बच्चे की जान भी जा सकती है। इमरजेंसी मैनेजमेंट का एक अलग तरीका डाक्टरों ने सीखा।   सिरिंज से ऐसी स्थिति में खून चढाने का तरीका अनुभव की देन थी। 

बच्चे के पेट में भरा था पानी

बच्चे को बड चैरी सिंड्रोम की परेशानी थी जिसमें पोर्टल वेन में रूकावट हो जाती है जिसके कारण यह वेन फट जाती है। इसी बीमारी के कारण पेट  में पानी भी भरा था। वेन की बाइडिंग कही और हुई थी जिसके बाद अल्सर के खून बह रहा था। इंडोस्कोप कर पानी भी निकाला गया। 

सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

शरीर में सारे अंग उलट पुलट फिर भी पैंक्रियाज के ट्यूमर की हुई सर्जरी

उत्तर भारत का पहला मामला जिसमें हुई केवल पैक्रियाज के ट्यूमर की सर्जरी  


शरीर में सारे अंग उलट पुलट फिर भी  पैंक्रियाज के ट्यूमर की हुई सर्जरी

दस लाख में एक होते है जिनमें  सारे अंग सामान्य लोगों से उल्टा




दस लाख में एक व्यक्ति ऐसा होता जिसमें जंम से ही शरीर के अंदर के सारे भीतरी सामान्य लोगों से अलग उल्टे स्थान पर होते हैं। ऐसे में लोगों में सर्जरी के लिए विशेष प्लानिंग की जरूरत होती है क्योंकि सारे उपकरण और सर्जन के हाथ राइट हैंड पर सेट होते हैं। संजय गांधी पीजीआई के गैस्ट्रोसर्जन प्रो. आनंद प्रकाश अपने सहयोगी डा. विश्वनाथ, डा. सोमनाथ और एनेस्थेसिया विशेषज्ञ प्रो. आशीष कनौजिया के सहयोग से  एक ऐेसे से मरीज जिसके शरीर में सारे अंग उल्टे थे उसमें पैक्रियाज के ट्यूमर की सर्जरी सफलता पूर्वक करने में कामयाबी हासिल की है। यह उत्तर  भारत का पहला मामला है जिसमें इस तरह के मरीज में ट्यूमर की सर्जरी कर स्पलीन को भी बचाया गया है। प्रो. आनंद प्रकाश के मुताबिक 26 वर्षीय सगुन पेट की दर्द की परेशानी लेकर विहार से यहां रिफर हो आयी क्योंकि पेट दर्द के कारण जब वहां के डाक्टरों ने अल्ट्रासाउंड कराया तो देखा कि सब कुछ उल्टा है।  अमूमन ट्यूमरे के साथ स्पलीन भी निकाल दिया जाता है लेकिन हमने इसे बचाते हुए ट्यूमर निकाल दिया अब सगुन पूरी तरह ठीक है। 

लेफ्ट के बजाए राइट साइड था दिल 
 इसे डाक्टरी भाषा में साइटस इनवरसेस टोटलिस कहते है जिसमें दिल लेफ्ट के बजाय राइट साइड, लिवर राइट के बजाय लेफ्ट, स्पलीन लेफ्ट के बजाय राइट , फेफडा में आपस में उल्टे था। हमने परीक्षण कराया तो पता चला कि पैक्रिया के पिछले हिस्से में ट्यूमर है जिसका इलाज केवल सर्जरी था लेकिन समस्या थी सब लेफ्ट हैंड होना था जिसके लिए पहले पूरी प्लानिंग किया।

स्पलीन निकले से बढ़ जाती है चेस्ट इंफेक्शन की आशंका
प्रो. आनंद प्रकाश ने बताया कि स्पलीन निकालने से चेस्ट इंफेक्शन की आशंका बढ़ जाती है। यह 26 साल की लड़की है पूरा जीवन पड़ा है ऐेसे में आगे भी कोई परेशानी न हो इस बात को ध्यान में रख कर स्पलीन को बचाया गया। 

सही समय पर ट्यूमर का चला पता नहीं तो जान पर होता खतरा

प्रो.आनंद प्रकाश ने बताया कि पेट में दर्द के साथ तुरंत आ गयी । कैंसर का प्राथमिक स्टेज  में पता चल गया जिससे इलाज काफी सफल हो गया यदि यही लेट स्टेज में आती तो काफी परेशानी खड़ी हो जाती । 

रविवार, 24 फ़रवरी 2019

पीजीआइ के प्रो.राजेश हर्षवर्धन मेडिकल कालेजों में सुधार के लिए सम्मानित

अब प्रदेश के मेडिकल कालेजों में मरीजों को सेट्रल आक्सीजन सिस्टम मिलेगा आक्सीजन 

पीजीआइ के प्रो.राजेश हर्षवर्धन मेडिकल कालेजों में सुधार के लिए सम्मानित


जांच रिपोर्ट से लेकर इलाज का विवरण हुआ आनलाइन




संजय गांधी पीजीआई के अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख प्रो. राजेश हर्षवर्धन को प्रदेश 6 मेडिकल कालेजों और दो कानपुर स्थित कैंसर और हृदय रोग संस्थान में तमाम संसाधन के साथ ई हास्पिटल बनाने में अहम भूमिका के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डा. रजनीश दूबे ने विशेष रूप से प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया है। प्रो. हर्ष वध्रर्न यह काम तय समय में अपने मूल काम के साथ शिद्दत के सात पूरा किया इससे मरीजों की सुरक्षा( फायर सेफ्टी इलेक्ट्रिकल सेफ्टी) , जांच रिपोर्ट, इलाज का विवरण, आक्सीजन की सेंट्रल सप्लाई सहित कई फायदे सीधे मरीजों को मिलना शुरू हो गया है। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने मेडिक एजूकेशन स्ट्रेटजी सेल बना था जिसमें तत्कानील विशेष सचिव चिकित्सा शिक्षा जयंत नारलीकर के आगुवाई में दो सदस्यी टीम बमायी गयी थी। टीम में एसजीपीजीआई के प्रो. राजेश शामिल थे। संस्थान के निदेशक प्रो. राकेश कपूर ने इन्हे सम्मानित किए जाने पर बाधाई देते हुए कहा कि प्रो.राजेश कुशल शिक्षक के साथ ही प्लानिंग पर काम करते हैं। 

युवा भी हो रहे है स्पाइन की परेशानी के शिकार- तीन हफ्ते से ज्यादा हाथ -पैर मेंदर्द व झनझनाहट बनारहे तो जांच कराएं

युवा भी हो रहे है स्पाइन की परेशानी के शिकार

तीन हफ्ते से ज्यादा हाथ -पैर मेंदर्द व झनझनाहट बनारहे तो जांच कराएं
स्पाइन सर्जरी पर आयोजित कार्यशाला में विशेषज्ञों ने दिएराय
जागरण संवाददाता। लखनऊ



 बैठते वक्त रीढ़ को सीधा रखें। हर घंटे एक साथ खड़ाहोने की आदत डालें। पैंट की पिछली जेब में पर्स रखकर कुर्सी पर न बैठें। इन बातोंका पालन करके आप कमर संबंधी बीमारियों से बच सकते हैं। इसके बाद भी कमर, हाथ पैरमें झनझनाहट हो तो चिकित्सक को दिखाएं। किसी भी कीमत पर तीन हफ्ते से ज्यादा दर्दको टालें नहीं।   

 एसजीपीजीआई के न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रोफेसर अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि युवाओंमें स्पाइन की बीमारी का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। इसकी मूल वजह से काम के बोझ कीवजह से लगातार सीट पर बैठे रहना। बैठते वक्त रीढ़ का ध्यान न रखना। पहले स्पाइनसंबंधी बीमारी 50 साल के बाद होती थी, लेकिन अब ज्यादातर मरीज 30 से 40 साल के बीचके आ रहे हैं। युवा भागदौड़ भरी जिदंगी में सेहत को नजरअंदाज कर देते हैं, जिसकानतीजा है कि बल्जिंग डिस्क जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैँ। इस बीमारी का इलाजतभी संभव है, जब इसके लक्षण और कारण के बारे में लोगों को अच्छे से पता हैं।
 

दर्द केसाथ झनझनाहट हो तो चिकित्सक को दिखाएं
कमर के दर्द को भले टालदें, लेकिन हाथ-पैर के दर्द को गंभीरता से लें। दर्द केसाथ झनझनाहट हो तो स्थितिगंभीर है। यह न्यूरो संबंधी समस्या हो सकती है। ऐसी स्थिति में तत्काल चिकित्सक कोदिखाना चाहिए। एक्सरेमेंं बीमारी पकड़ में नहीं आने पर एमआरआई कराई जाती है। दवाओंऔर कसरत से भी ये बीमारियां ठीक हो जाती है। दवाओं से आराम नहींं होने पर ही आपरेशनकिया जाता है। अब दूरबीन विधि आने से न्यूरो के सभी आपरेशन आसान हो गए हैं।
-प्रो. कमलेश कुमार, एसजीपीजीआई
 

लैपटॉप पर काम करते समय बरतें सावधानी
तमाम युवा लैपटॉप पर घंटों काम करतेरहते हैं। वे कभी बिस्तर पर लैपटॉप रखते हैंतो कभी पैर पर रखकर काम करते हैं। यहखतरनाक स्थिति है। ज्यादा दिन तक इस काम करने से न्यूरो संबंधी समस्या हो सकती है।खासतौर से कमर और गर्दन की डिस्क प्रभावित होती है। धीरे-धीरे नसों मेंं खिंचावहोने लगता है। ऐसी स्थिति मेंं कई बार आपरेशन तक की नौबत आ जाती है। इसलिए लैपटॉपको स्टैंड पर रखकर प्रयोग करें । लैपटॉप प्रयोग करते समय कमर और गर्दन सीधा रखें।
- प्रो. अनंत मेहरोत्रा, एसजीपीजीआई

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

पीजीआई में मिनिमल इनवेसिव पर वर्कशाप - स्लीप डिस्क की परेशानी से तीन से चार दिन में मिलेगी राहत

पीजीआई में मिनिमल इनवेसिव पर वर्कशाप

 स्लीप डिस्क  की परेशानी से तीन से चार दिन में मिलेगी राहत
मिनिमल इनवेसिव सर्जरी से बढ़े हुए डिस्क को निकाल कर कम किया जाता है नर्व पर प्रेशर
न्यूरो सर्जरी के कुल मामलों में से 50 फीसदी होती है स्पाइन की परेशानी
जागरण संवाददाता। लखनऊ

रीढ़ की हड्डी में कुशन का काम करने वाली डिस्क कोलेप्स होने पर हाथ-पैर में कमजोरी, दर्द की परेशानी होती है। कई बार इसके कारण रोज मर्रा का जीवन प्रभावित हो जाता है। अब मिनिमल इनवेसिव सर्जरी से तीन से चार दिन में हमेशा के लिए इन तमाम परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। इस तकनीक में जितना डिस्क अपने स्थान से बाहर निकल कर नर्व को दबा रहा है उसे निकाला जाता है। तीन से चार दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है। यह जानकारी संजय गांधी पीजीआई में आयोजित मिनिमल इनवेसिव सर्जरी पर आयोजित वर्कशाप में गवर्नमेंट सुपर स्पेशिएलटी हास्पिटल जबलपुर डा. वाईआर यादव, कोरिया के डा. कैगं टीकलीन, गंगाराम दिल्ली के डा. सत्यनाम छाबडा, पीजीआई लखनऊ के डा. अवधेश जायसवाल और डा. जय सरदारा ने दी। बताया कि स्पाइन में डिस्क कोलेप्स, ट्यूमर, गर्दन के पास क्रेनियों बर्टीब्रा जक्शन में परेशानी सहित कई परेशानी में अब ओपेन सर्जरी की जरूरत खत्म हो गयी है। न्यूरो सर्जरी में आने वाले कुल मामलों मे से 50 फीसदी मरीजों में स्पाइन की परेशानी होती है। इस सर्जरी में एक इंच से भी कम चीरा लगा कर माइक्रोस्कोप से देखते हुए वहां पहुंच कर डिस्क या हड्डी को निकाल कर नर्व पर प्रेशर कम किया जाता है। ट्यूमर होने पर ट्यूब से ट्यूमर को निकाल दिया जाता है। इसमें कम रक्तस्राव के साथ असप्ताल में रूकने का खर्च होने के कारण इलाज का खर्च कम हो जाता है। वर्कशाप में चार मरीज जिनके रीढ़ की हड्डी में स्लीप डिस्क और गर्दन के पास डिस्क में परेशानी वाले एक मरीज में सर्जरी कर नए न्यूरो सर्जन को दिखाया गया। 

90 फीसदी स्लीप डिस्क वाले में मरीजों को तीन महीने में मिल जाती है राहत
विशेषज्ञों ने बताया कि रीढ़ ही हड्डी में स्लीप डिस्क होने पर 90 फीसदी मरीजों में दर्द से राहत दवा और फिजियोथिरेपी से मिल जाती है केवल 10 फीसदी में सर्जरी की जरूरत पड़ती है। स्लीप डिस्क होने पर नर्व में सूजन हो जाता है जिसके कारण दर्द होता है दवा और आराम करने से सूजन कम हो जाता है। 

हाथ -पैर सुन्न और कमर में तेज दर्द तो न करें इंतजार
विशेषज्ञों ने बताया कि यदि हाथ-पैर सुन्न, लकवा , कमर में तेज दर्द की परेशानी है तो इन मामलों में तीन महीने इंजजार करने से बडी परेशानी खड़ी हो सकती है । इसमें जल्दी से जल्दी सर्जरी कर बढ़ी डिस्क को निकाल कर नर्व पर प्रेशर कम करना चाहिए। 

रीढ़ बचाने के लिए करें यह उपाय
-शरीर का वजन करें कम
- धूम्रपान से बचे
- एक दम से भारी समान न उठाएं
- गडढे में बाइक को रखें धीमा
- तैराकी को करें दिन चर्या में शामिल 

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

अब एलास्टोग्राफी से बिना चीरा लग जाएगा थायरायड कैंसर का पता



पीजीआई में इंटरनेशनल सोसाइटी आफ आंकोप्लास्टिक इंडोक्राइन सर्जन के अधिवेशन

अब एलास्टोग्राफी से बिना चीरा लग जाएगा थायरायड कैंसर का पता

100 फीसदी तक ठीक हो जाता है थायरायड कैंसर
तीन चरणों में दिया जाता है थायरायड कैंसर का इलाज


अब बिना बायोप्सी के जानना संभव होगा कि गले में स्थित थायरायड  ट्यूमर सामान्य है या कैंसर । यह पता करने के लिए संजय गांधी पीजीआइ ने एलास्टोग्राफी तकनीक स्थापित किया है। संस्थान में आयोजित इंटरनेशनल सोसाइटी आफ आंकोप्लास्टिक इंडोक्राइन सर्जन के अधिवेशन में प्रो.अमित अग्रवाल और प्रो. ज्ञान चंद ने बताया कि एलास्टोग्राफी एक तरह का अल्ट्रा साउंड है जिसमें ट्यूमर में प्रेशर देखा जाता है जिसके आधार पर बिना किसी चीरा के कैंसर का पता लगा जाता है। इसके आधार पर इलाज की प्लानिंग की जाती है। विशेषज्ञों ने बताया कि थायरायड ग्रंथि का कैंसर ही ऐसा कैंसर है जिसका पूरा इलाज संभव है। समय से इलाज की दिशा जल्दी तय करनी होती है। बताया कि सौ थायरायड ट्यूमर के मामले में 20 से 25 फीसदी में कैंसर युक्त ट्यूमर देखा गया है। सर्जरी कर पूरी ग्रंथि निकाल देते है। इसके बाद रेडियोआयोडीन थिरेपी देते है जिससे कैंसर के बचे हुए सेल भी मर जाते हैं। इसके आलावा थायरायड सप्रेशन थिरेपी दी जाती है । इन तीन चरणों के इलाज के बाद कैंसर पूरी तरह ठीक हो जाती है। 
अधिवेशन के उद्घाटन में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा डा. रजनीश दूबे ने कहा कि सरकार हर स्तर पर संस्थान को सपोर्ट कर रही है । हमारे लिए संस्थान गर्व का विषय है। काम के जरिए संस्तान ने विश्व स्तर पर मुकाम हासिल कर लिया है। निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने कहा कि मार्च के अंत तक संस्थान में रोबोट आ जाएगा जिसके बाद रोबोटिक सर्जरी शुरू हो जाएगी।   

जरा सी गल्ती से चली जाती है आवाज
विशेषज्ञों ने बताया कि थायरायड की सर्जरी में जार सी गल्ती होने पर आवाज की नस कट जाती है जिससे आवाज चली जाती है। हम लोग सर्जरी के समय न्यूरो मानीटरिंग कर  आवाजा की नस को बचा लेते हैं। कई बार आवाज जाने के बाद मरीज आते है ऐसे में थायोप्लास्टी कर 65 फीसदी मामलों मे दोबारा आवाजा ला सकते हैं। 

कान के पीछे से निकला गले का ट्यूमर-पीजीआई में आइसोपीस

पीजीआई में आइसोपीस
कान के पीछे से निकला गले का ट्यूमर
गले पर बिना चीरा निकल जाएगा गले का ट्यूमर

गले में स्थित थायरायड ग्लैंड को रोबोट ने कान के पीछे से गले में पहुंच कर निकाल दिया। रोबोट को निर्देश अनुभवी रोबोटिक इंडो सर्जन देते रहे। रोबोट के कंसोल पर बैठे सेट किए कितने मिमी आंदर कैसे जाना है । कैसे पहुंच कर पूरी ग्रंथि को बाहर निकालना है। इस सर्जरी का शुक्रवार को संजय गांधी पीजीआई में आयोजित इंटरनेशनल सोसाइटी आफ आंकोप्लास्टिक इंडोक्राइन सर्जन(आईसोपीस) के वर्कशाप में किया गया। संस्थान के इंडो सर्जन एवं मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो.अमित अग्रवाल और आयोजक डा. सब्बारत्नम ने बताया कि आगले महीने संस्थान में रोबोटिक सर्जरी शुरू होने जा रही है। इस रोबोटिक सर्जरी से हम लोगों को काफी जानकारी मिली है। इसके आलावा चार और मरीजों में विभिन्न तरीके से थायरायड की सर्जरी हुई। इसके आलावा मुंह के जरिए और कांख के जरिए गले तक पहुंच थायरायड ग्लैड को निकाला गया। इन तकनीक से सर्जरी करने पर गले पर कोई निशान नहीं पड़ता।     



हारमोन असंतुल के कारण हो सकता है थायरायड में ट्यूमर
गले में स्थित थायरायड और पैरा थायरायड ग्रंथि में सूजन है तो सावधान हो जाएं। हारमोन असंतुलन की वजह से कई तरह की परेशानी हो सकती है। ग्रंथि में किसी तरह का ट्यूमर होने पर कई बार हारमोन असंतुलन हो सकता है। अब अल्ट्रासाउंड के अलावा इंट्रोआपरेटिव नर्व मानिटिरिंग तकनीक के जरिए गले के अंदर बिना किसी नुकसान के इन ग्रंथियों को निकालना संभव हो गया है। 


पैराथायरायड ग्रंथि में च्यूमर हो सकता है ह्डडी कमजोर
इंडोस्रजन प्रो.ज्ञान चंद ने बताया कि पैराथायरायड ग्रंथि में ट्यूमर होने पर हड्डी कमजोर हो जाती है। अब सर्जरी के दौरान ही पैराथायरायड ग्रंथि निकालने के बाद तुरंत इस हारमोन का स्तर देख कर सर्जरी की सफलता का पता लगाते हैं।
 
यह परेशानी तो इंडोसर्जन से लें सलाह

-गले में सामने की तरफ बीच में गांठ 
-गले के किनारे की तरफ गाठ
.आवाज में बदलाव
-सांस लेने में परेशानी
-खाना निगलने में परेशानी
-एक दम से लंबाई बढ़ना
- घेंघा
 

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

घबराएं नहीं, सात दिन में खत्म हो जाता है स्वाइन फ्लू- प्रो.जिया हाशिम एसजीपीजीआई



घबराएं नहीं, सात दिन में खत्म हो जाता है स्वाइन फ्लू


प्रश्न : मुङो सर्दी-जुकाम है। डर लगता है कहीं स्वाइन फ्लू तो नहीं, क्या करूं?
दीपक सिंह, फैजाबाद
उत्तर : अगर आपको ऐसा लगता है तो आप तुरंत डॉक्टर को दिखाएं और जांच करवाएं। स्वाइन फ्लू से बचने के लिए भीड़भाड़ वाले इलाके में जाने से बचें। संतुलित आहार लें, खूब पानी पीना चाहिए, अगर किसी को स्वाइन फ्लू हुआ है तो उसके संपर्क में न आएं।
प्रश्न : मेरे एक रिश्तेदार की मौत स्वाइन फ्लू से हो गई है? मैं उन्हें अस्पताल देखने गया था, कहीं मुङो तो यह नहीं होगा?
टीएन पांडेय, शक्तिनगर
उत्तर : अगर आप उन्हें देखने गए और उनका प्रयोग किया कोई चीज नहीं छुआ या देखने के दौरान उन्हें छींक या खांसी नहीं आई तो कोई दिक्कत वाली बात नहीं है। अगर ऐसा हुआ है तो डॉक्टर को दिखाएं और जांच करवा लें।
प्रश्न : मेरी प}ी को सीओपीडी है। खांसी और सांस लेने में बहुत दिक्कत है? स्वाइन फ्लू न हो इसके लिए क्या करें?
बसंत सिंह, गोमतीनगर
उत्तर : संतुलित आहार लें, खूब पानी पीये और उन्हें जो बीमारी है उसकी नियमित दवा लें, ताकि वह बढ़े नहीं। बीमार होने पर प्रतिरोधक क्षमता घटती है तो भी स्वाइन फ्लू या अन्य बीमारी होने का खतरा ज्यादा होता है।
प्रश्न : मुङो सांस लेने में दिक्कत व खांसी आती है, क्या करूं?
उमाकांत मिश्र, सीतापुर
उत्तर : देखिए आपको एलर्जी हो सकती है। यह धूल, धुएं, दाल में छौंका लगाने, काकरोज के कारण, जाले में फंगस होने के कारण, सीलन आदि की वजह से हो सकती है। आप एलर्जी का टेस्ट करवाएं।
प्रश्न : मेरी प}ी एलर्जी से पीड़ित हैं लेकिन वह इन्हेलर लेने से डरती है? इसका कोई साइड इफेक्ट होता है।
वासू, बहराइच
उत्तर : देखिए इन्हेलर पूरी तरह सुरक्षित है। इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। इसमें सूक्ष्म दवा सीधे फेफड़े में पहुंचती है और मरीज को जल्दी राहत मिलती है।
प्रश्न : मेरी प}ी को जब-कब सर्दी हो जाती है, फिर सांस फूलती है? क्या करें?
महेंद्र शुक्ला गोंडा
उत्तर : मौसम बदलने पर आम तौर पर ऐसा होता है। वह इन्हेलर का ढंग से प्रयोग करें और डॉक्टर की सलाह पर दवा लें।
प्रश्न : मेरी स्पेयर पार्ट की दुकान है, जनरेटर चलने से मुङो एलर्जी हुई और फिर ब्रांकाइटिस हो गई? चावल खा सकते है?
बृजलाल कश्यप, लखीमपुर
उत्तर : आप संतुलित आहार लें। चावल खा सकते हैं। इसे छोड़े न। डॉक्टर द्वारा बताई गई दवा नियमित लें।
प्रश्न : मैं अस्थमा की मरीज हूं, इन दिनों परेशानी ज्यादा बढ़ गई है क्या करूं?
अनीता गुप्ता, राजाजीपुरम
उत्तर : आप इन्हेलर ले रही हैं यह ठीक है, लेकिन दवा अपने डॉक्टर को दिखाकर उसकी डोज बढ़वा लें। धूल से बचें व ठंडी चीजों को न खाएं।
प्रश्न : मुङो पिछले एक महीने से सीने में दर्द है और सांस फूलती है? क्या करूं
अनुपम मिश्र, गोंडा
उत्तर : देखिए आपको एलर्जी हो सकती है आप चेस्ट का एक्स-रे करवाएं और खून की जांच करवाएं। अच्छे डॉक्टर को दिखाएं।
प्रश्न : मुङो जुकाम है, पहले नाक से पानी आता था, लेकिन शरीर में दर्द नहीं है? क्या करूं
कप्तान सिंह, हरदोई
उत्तर : आपको माइल्ड कॉमन कोल्ड हो गया है। पौष्टिक भोजन करें और पूरी नींद लें। चिंता की कोई बात नहीं।
प्रश्न : चार साल पहले मेरे दाएं फेफड़े से पानी निकाला गया था, अब मेरी फिर सांस फूलने लगी है? क्या करूं
इमरान अहमद सीतापुर
उत्तर : आप तुरंत एक्स-रे करवा लें। इससे पता चलेगा कि कहीं पुरानी बीमारी फिर से तो नहीं उभर रही, या फिर कोई नई बीमारी हुई है।
प्रश्न : मुङो सर्दी-जुकाम और जकड़न है तथा सांस भी फूलने लगी है, क्या करूं?
धर्मराज निषाद, सुलतानपुर
उत्तर : आपको एलर्जिक राइनाइटिस हो सकती है। आप किसी ईएनटी विशेषज्ञ से अपना इलाज करवाएं।
प्रश्न : मेरी प}ी को सांस लेने में दिक्कत बढ़ गई है, उनकी दवा पहले से चल रही है, लेकिन प्राब्लम कभी-कभी बढ़ जाती है?
बलदेव प्रकाश गुप्ता, गोला गोकर्णनाथ लखीमपुर खीरी
उत्तर : देखिए आप उन्हें दवा सही टाइम पर दें। अगर ज्यादा दिक्कत है तो दवा डॉक्टर से बदलवा लें या डोज बढ़वाएं। पौष्टिक भोजन करें, खूब पानी पीये और भीड़-भाड़ वाली जगह पर न जाएं। पानी का सेवन उनसे कहें खूब करें।
प्रश्न : मुङो खांसी और गले में दर्द है, क्या करूं?
सीमा शर्मा, हुसैनगंज
उत्तर : आप ठंडी चीजों व मसालेदार भोजन का सेवन न करें। गुनगुने पानी में नमक डालकर गरारा करें। आराम मिल जाएगा

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

पीजीआई में ब्रांकोकान-2019-रिजि़ड ब्रांकोस्कोपी से दूर होगी मुख्य सांस नली की रूकावट

पीजीआई में ब्रांकोकान-2019


रिजि़ड ब्रांकोस्कोपी से दूर होगी मुख्य सांस नली की रूकावट
कैंसर मरीजों को मिलेगा इलाज के लिए मौका
रूकावट के कारण इलाज शुरू होने से पहले हो जाती है मौत


अब रिजिड ब्रांकोस्कोपी के जरिए मुख्य सांस नलिका की रूकावट को दूर कर खाने की नली, लंग , थायराड कैंसर के मरीजों को इलाज के लिए समय देना संभव हो गया है। संजय गांधी पीजीआई में आयोजित इटरवेंशनल  ब्रांकोस्कोपी पर आयोजित अधिवेशन में विभाग के प्रमुख प्रो.आलोक नाथ और प्रो. जिया हाशिम ने बताया कि खाने की नली, लंग , थायरायड, सारकोडोसिस सहित कई परेशानी में मुख्य सांस की नली में गांठ बन जाती है जिसके कारण मुख्य सांस नलिका में रूकावट के कारण शुरूआती दौर में मरीज की मौत हो जाती है इलाज करने तक का मौका नहीं मिलता है लेकिन अब रिजिड ब्रांकोस्कोपी के जरिए हम लोग गांठ को निकाल कर सांस नली की रूकावट दूर कर मरीज को इस लायक बना देते है कि वह कैंसर का इलाज ले सके । देखा गया है कि कई तरह के कैंसर में इलाज से जिंदगी लंबी हो जाती है। विशेषज्ञों ने बताया कि अब ब्रांकोस्कोपी और थोरोस्कोपी के जरिए फेफडे के कैंसर, टीबी सहित फेफडे की कई बीमारियों का पता काफी शुरूआती दौर में लगना संभव हो गया है जिससे इलाज की सफलता दर भी बढ़ी है। हम लोग अधिवेशन में इस तकनीक के बारे में लोगों को सिखा रहे हैं। 

लेजर से भी निकलाते है ट्यूमर
प्रो. जिया हाशिम और प्रो. अजमल ने बताया कि अब लेजर तकनीक भी आ गयी है जिसमें सांस की नली में रूकावट पैदा करने वाले ट्यूमर जो लेजर से जला देते हैं। इसकी सफलता दर अधिक है। बताया कि कर्ई बार लंबे समय तक सांस की नली में ट्यूब पडे रहे पर वहां पर स्टोनोसिस( छोटी गांठ) हो जाता है जिससे ट्यूब निकालने के बाद सांस लेने में परेशानी होती है। लेजर से हम लोग इस गांठ जला कर वहां पर दोबारा सिकुडन न हो इसके लिए स्टंट लगा ते हैं। 

बिना सीना खोले संभव होगी बायोप्सी

 बिना किसी चीरे के फेफडे की बायोप्सी संभव होगी। संस्थान के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग ने क्रायो ट्रास ब्रांक्रियल लंग बायोप्सी शुरू किया है। इसमें प्रोब के 70 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा कर फेफेडे में ले जाते है जिसमें फेफडे का हिस्सा चिपक जाता है । यह पांच मिमी तक होता है । पहले बायोप्सी से लिए अोपेन सर्जरी कर पड़ती थी। उत्तर भारत का तीसरा अस्पताल है जहां पर सीटीबीएलबी शुरू की गयी है। विभाग के प्रमुख प्रो. अालोक नाथ  और प्रो. अजमल खान ने बताया  कि इस तकनीक स्थापित होने के बाद फेफडे की बीमारी अाईएलडी ( इंटेरइस्टीसियल लंग डिजीज) और लंग कैंसर बीमारी का पता लगाने की दक्षता काफी बढ़ गयी है। इससे  इलाज की दिशा तय करने में काफी दक्षता अाएगी।   

फेफडे के पानी से होगी टीबी की पुष्टि-पीजीआई में ब्रांकोकान-2019

पीजीआई में ब्रांकोकान-2019

फेफडे के पानी से होगी टीबी की पुष्टि

शक के आधार पर नहीं खानी होगी टीबी की दवा
फेफडे के एक्स-रे में दिखता टीबी लेकिन होती है दूसरी परेशानी

जागरण संवाददाता। लखनऊ
अब टीबी की दवा केवल उन्ही को खानी पड़ेगी जिनको टीबी की बीमारी है। ब्रांकोस्कोपी के जरिए फेफडे से लवाज( तरल द्रव) लेकर उसमें टीबी की पुष्टि करना संभव हो गया है। कई बार टीबी के मरीज में बलगम नहीं आता है । ऐसे में टीबी की पुष्टि नहीं हो पाती है। इनमें लवाज लेकर जीन एक्सपर्ट जांच कराते है इससे पुष्टि हो जाती है। इस तकनीक से पुष्टि करने पर बिना वजह दवा खाने से मरीज बच जाते हैं। संजय गांधी पीजीआई मे आयोजित ब्रोकोस्कोपी पर आयोजित अधिवेशन में प्रो. जिया हाशिम ने बताया कि कई बार  एक्स-रे में टीबी जैसा फेफडा दिखायी पड़ता है इनमें परेशानी कैंसर, आईएलडी. एलर्जी ब्रांको  पल्मोनरी स्परजिलोसिस , सारकायड की परेशानी होती है। इसी  आधार पर टीबी की दवा चल जाती है। ब्रांकोस्कोपी से टीबी के आलावा दूसरी बीमारी की पुष्टि हो जाती है। प्रो.आलोक नाथ ने बताया कि जहां पर इस जांच की सुविधा नहीं है वहां पर 50 प्रतिशत तक लोगों को शक के आधार पर टीबी की दवा दी जाती है। 

टीबी के इलाज से पहले एमडीआऱ की पुष्टि जरूरी
प्रो.आलोक नाथ ने कहा कि टीबी की दवा शुरू करने से पहले एमडीआर( ड्रग रजिस्टेट) की पुष्टि कर लेनी चाहिए। देखा गया है कि फर्सट लाइन का इलाज शुरू कर दिया जाता उससे फायदा नहीं मिलता बाद में दूसरी दवाएं जोडी जाती है। इस लिए पहले से एमडीआऱ की पुष्टि कर ट्रीटमेंट प्लान करने की जरूरत है। 

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

इंटरवेंशनल पल्मोनरी पर तीन दिवसीय वार्षिक अधिवेशन -लंबे समय तक खासी तो न करे नजरअंदाज

इंटरवेंशनल पल्मोनरी पर तीन दिवसीय वार्षिक अधिवेशन 



लंबे समय तक खासी तो न करे नजरअंदाज

‘ब्रॉन्कोलॉजी’ पर विशेषज्ञ देंगे व्याख्यान

यदि लम्बे समय से व्यक्ति को खांसी आ रही है। इसे नजर अंदाज  न करे। तुरन्त डॉक्टर की परामर्श लें। अमूमन ये दिक्कत लोगों की सांस की नली एवं फेफड़े में संक्रमण की वजह से होती हैं। इसका सटीक पता लगाने के लिए डॉक्टर ब्रांन्कोस्कोपी की जांच करते हैं। इसकी जानकारी शुक्रवार को पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग द्वारा शुरू हुये तीन दिवसीय वार्षिक अधिवेशन ‘ब्रॉन्कोलॉजी’ में डॉक्टरों ने दी। 
इंडियन एसोशियन फॉर ब्रॉन्कोलॉजी और पीजीआई द्वारा आयोजित अधिवेशन पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. आलोक नाथ एवं संयोजक प्रो अजमल खान के नेतृत्व में किया गया है। शनिवार को कार्यशाला में विशेषज्ञ जूनियर डॉक्टरों को सामान्य तथा आधुनिक ब्रान्कोस्कोपिक तकनीकि के बारे में जानकारी देंगे। ताकि वो सांस  एवं फेफड़े के मरीजों को बेहतर इलाज दे सकें। कार्यक्रम के संयोजक प्रो अजमल खान बताते हैं कि सम्मेलन में 500 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। उदघाटन शनिवार को एम्स दिल्ली के निदेशक प्रो. रनदीप गुलेरिया करेंगे। सम्मेलन में पल्मोनरी मेडिसिन का डीएम कोर्स स्थापित करने वाले पल्मोनरी मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. एसके जिन्दल समेत कई विशेषज्ञ मौजूद रहेंगे।

साल में 15 हजार मरीज आते हैं
पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष प्रो आलोक नाथ बताते हैं कि पीजीआई के पल्मोनरी विभाग की स्थापना जुलाई 2009 में प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सेवा योजना के तहत की गई थी। उन्होंने बताया कि विभाग चार संकाय सदस्य तथा 14 सीनियर रेजीडेन्ट हैं। विभाग में सभी प्रकार की जांचे उपलबध हैं। विभाग ने सांस और फेफड़े के मरीजों को बेहतर इलाज देकर उत्तर भारत में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। डॉ. आलोक नाथ बताते हैं कि ओपीडी में करीब 15 हजार मरीज प्रत्येक वर्ष आते हैं।

बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

पीजीआई कर्मचारियों को मिलेगा एम्स के समान भत्ता--रेजीडेंट डाक्टर माने दिया समय



पीजीआई के डॉक्टर और कर्मियों के भत्ते का शासनादेश जारी
-7 वें वेतन आयोग के अनुसार ये भत्ते एक जुलाई 2017 से मिलेंगे

शासन ने बुधवार को पीजीआई के संकाय सदस्यों (डॉक्टरों) और कर्मचारियों को
एम्स दिल्ली के समान भत्ते के भुगतान का शासनादेश जारी कर दिया। सातवें
वेतन आयोग के अनुसार ये भत्ते संस्थान के समस्त संकाय सदस्यों, गैर संकाय
अधिकारी और विभिन्न संवर्ग के कर्मचारियों को एक जुलाई 2017 से मिलेंगे।
इसका लाभ डॉक्टरों समेत करीब तीन हजारों कर्मचारियों को मिलेगा। शासनादेश
जारी होने पर संस्थान के डॉक्टरों और कर्मचारियों ने योगी सरकार के प्रति
खुशी जतायी है।
पीजीआई के डॉक्टर, अधिकारी व कर्मचारी करीब छह माह से एम्स के समान भत्ते
की मांग कर रहे थे। बीती चार जनवरी को संस्थान के कर्मचारी एक दिन की
हड़ताल भी कर चुके हैं। कर्मचारियों की एक दिन की हड़ताल के बाद हरकत में
आयी सरकार ने 29 जनवरी को प्रयागराज में हुई कैबिनेट में पीजीआई के
डॉक्टरों और कर्मचारियों को एम्स के समान भत्ते देने के प्रस्ताव को
मंजूरी दी थी। जिसका शासनादेश बुधवार को प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं शिक्षा
रजनीश दुबे ने जारी कर दिया। शासनादेश जारी होने पर पीजीआई निदेशक डॉ.
राकेश कपूर, सीएमएस डॉ. अमित अग्रवाल, के अलावा डॉ. एसके अग्रवाल, डॉ.
अशोक कुमार, डॉ. एमएस अंसारी व डॉ. नारायण प्रसाद समेत संस्थान के
डॉक्टरों और कर्मचारियों ने खुशी जतायी है।


रेजीडेंट डॉक्टरों ने मंत्री से वार्ता के बाद हड़ताल टाली

लखनऊ। पीजीआई में प्रस्तावित हड़ताल को रेजीडेंट्स ने चिकित्सा एवं
शिक्षा मंत्री आशुतोष टण्डन से हुई सकारात्मक वार्ता के बाद टाल दी है।
हड़ताल टाले जाने के बाद पीजीआई प्रशासन ने राहत की सांस ली है।  बुधवार
की शाम पीजीआई में सात फरवरी से प्रस्तावित हड़ताल को लेकर संस्थान
प्रशासन पशोपेश में था। दिन भर से संस्थान के अफसर रेजीडेंट को मनाने में
जुटे थे।
पीजीआई निदेशक डॉ. राकेश कपूर, डॉ. एसके अग्रवाल व डॉ. सुशील गुप्ता के
नेतृत्व में पीजीआई रेजीडेंट एसो. के पांच सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल की
बुधवार की रात करीब आठ बजे कैबिनेट मंत्री आशुतोष टण्डन वार्ता हुई। श्री
टण्डन ने वार्ता में रेजीडेंट डॉ. आशुतोष पराशर, डॉ. अक्षय कुमार, डॉ.
अशोक शुक्ला व डॉ. अनिल गंगवार को भरोसा दिलाया कि सरकार रेजीडेंट के
वेतन और भत्ते को लेकर फिक्रमंद है। कार्रवाई चल रही है। मंत्री ने
रेजीडेंट से कुछ वक्त मांगा। जिस पर रेजीडेंट ने दो हफ्ते का समय दिया।
डॉ. अनिल गंगवार का कहना है कि मंत्री जी से वार्ता सकारात्मक रही। यदि
सरकार 15 दिन में आदेश जारी नही करती है तो रेजीडेंट हड़ताल करने के लिए
बाध्य होंगे।

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

शायर मुनव्वर राना पीजीआई में भर्ती

शायर मुनव्वर राना  पीजीआई में भर्ती
दिल में दर्द की परेशानी हालत में सुधार

मशहूर शायर मुनव्वर राना को पड़ा दिल में दर्द की परेशानी होने पर परिजनों ने पीजीआई में भर्ती कराया है। संस्थान के जी ब्लॉक स्थित कार्डियोलॉजी के वार्ड के प्राइवेट रूम एक में भर्ती मुनव्वर राना का इलाज हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो.सुदीप कुमार की देख -रेख में चल रहा है। मंगलवार को डॉक्टरों ने उनकी कई जांचे कराई। प्रोयसुदीप ने बताया कि डाबटीज की वजह से शरीर में पानी जमा हो रहा था जिसके कारण दिल में दर्द की परेशानी हो रही थी काफी हद तक कंडीशन को मैनेज कर दिया गया है।  श्री राना को सोमवार को दिल में दर्द की परेशानी होने पर परिजन उन्हें इमरजेंसी में लेकर पहुंचे। डॉक्टरों ने देखने के बाद उन्हें आईसीयू में भर्ती कर दिया था। प्रो.सुदीप के मुताबिक  राना की स्वास्थ्य में सुधार है। उन्हें वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया है। पीजीआई निदेशक प्रो राकेश कपूर और सीएमएस प्रो. अमित अग्रवाल ने श्री राना से मिलकर हालचाल लिया। सोमवार को उनके बीमार होने की जानकारी मिलने पर सोमवार को उनके शुभचिंतकों समेत रिश्तेदार मिलने पहुंचे

पीजीआई के रेजीडेंट डॉक्टर हड़ताल पर अड़े, प्रशासन मनाने में जुटा


पीजीआई के रेजीडेंट डॉक्टर हड़ताल पर अड़े, प्रशासन मनाने में जुटा

एम्स के समान वेतन और भत्ते देने के मुद्दे पर शासन के ढुलमुल रवैये से
खफ पीजीआई के रेजीडेंट डॉक्टरों ने हड़ताल का मूड बना लिया है। रेजीडेंट
एसो. ने पीजीआई प्रशासन को पत्र भेजकर सात फरवरी से संस्थान में हड़ताल
करने का ऐलान कर दिया है। हालांकि पीजीआई निदेशक समेत अन्य अधिकारी
लगातार रेजीडेंट को मानने में लगे हुये हैं।
पीजीआई रेजीडेंट एसो. के अध्यक्ष डॉ. आशुतोष परासर व सचिव डॉ. अक्षय का
कहना है कि 29 जनवरी को प्रयागराज में हुई कैबिनेट ने पीजीआई के संकाय
सदस्यों और समस्त कर्मचारियों को एम्स के समान वेतन और भत्ते देने की
मंजूरी दी। जबकि संस्थान के करीब 400 रेजीडेंट डॉक्टरों के साथ भेदभाव
किया गया। इससे रेजीडेंट डॉक्टरों में खासी नाराजगी है। बीते कई दिन से
रेजीडेंट ने अपनी मांगों के लिए कैंडिल मार्च से लेकर उच्च अधिकारियों से
कई बार वार्ता कर चुके हैं। कोर कमेटी के पदाधिकारी लगातार दूसरे दिन भी
उपवास कर काम किया। मंगलवार को रेजीडेंट ने आम सभा में ऐलान किया है कि
अब हड़ताल करने पर ही सरकार उनके मुद्दों का संज्ञान लेगी। हालांकि
हड़ताल की जानकारी मिलते ही पीजीआई निदेशक डॉ. राकेश कपूर ने रेजीडेंट
डॉक्टरों से मरीजों के हित में हड़ताल न करने की अपील की है। उनका कहना
है कि सरकार रेजीडेंट के मामले को लेकर फिक्रमंद है। थोड़ा वक्त लग रहा
है। तब तक रेजीडेंट डॉक्टर संस्थान में हड़ताल या अन्य ऐसी कोई गतिविधि न
करें। जिससे मरीजों को कोई दिक्कत हो।

पीजीआई में लैंप लाइटिंग सिरोमनी- नर्सेज को तकनीक और मानवता के बीच रखना होगा सामंजस्य

पीजीआई में लैंप लाइटिंग सिरोमनी
नर्सेज को तकनीक और मानवता के बीच रखना होगा सामंजस्य
व्यवहार नहीं ठीक तो काबलियत बेकार


काबलियत कितनी भी हो लेकिन व्यवहार ठीक नहीं है तो सब बेकार है।  यह खास तौर पर नर्सेज के ऊपर लागू होता है यदि वह मरीज से ठीक तरीके से बात नहीं करती है तो कितनी भी काबलियत हो वह मायने नहीं रखता । मरीज दर्द और परेशानी के साथ आता साथ में उसके तीमारदार भी परेशान होते है ।  वार्ड की नर्स से प्यार दो शब्द बोल दे तो उसकी आधी परेशानी अपने आप कम हो जाती है। संजय गांधी पीजीआई के नर्सिंग कालेज के स्थापना दिवस अौर लैंप लाइटिंग समारोह में संस्थान के निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने कहा कि मृदु भाषी बने। नर्सिग की पढाई कर रही छात्राअों के कहा कि वह अच्छी नर्स के साथ ही अच्छा इंसान बन कर यहां से निकलें। समारोह के मुख्य अतिथि  राज्य मंत्री स्वाती सिंह ने कहा कि नर्सेज लोगों के जीवन लैंप लाइिटंग करती है यह मां से भी ऊपर है क्योंकि कई बच्चों की रोज देख-रेख करती है। कहा कि परिवार के लोगों से भी बात करके उनकी परेशानी कम कर सकती । मरीज के घर वाले काफी परेशान होते हैं। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो. अमित अग्रवाल ने कहा कि   इस कभी अपना टेंपर लूज न करें। काम के दबाव के साथ अपने को सामान्य बनाए रखें। नर्स अस्पताल की हृदय है बिना इनके अस्पताल संभव नहीं है। कालेज आफ नर्सिग के नोडल आफीसर प्रो. संजय धीराज कहा कि  अब नई तकनीक और मानवीय संवेदना दोनों के साथ नर्स को सामंजस्य बनना है । दोहरा चैलेंज है जिसे स्वीकार करना है। आईसीयू में नई तकनीक की मशीने लगी है जिसे नर्स ही आपरेट करती है। एक्सजीक्यूटिव रजिस्ट्रार प्रो. सोनिया नित्यामंद, डीन प्रो.एसके मिश्रा ने कहा कि बिना नर्स के कोई भी इलाज या ट्रांसप्लांट संभव नहीं है। आईसीयू में तो परिवार के लोग जा ही नहीं सकते ऐसे में नर्सेज ही मरीज की सफाई से लेकर नर्सिग केयर सारा काम करती है। इस मौके पर एनेस्थेसिया विभाग के प्रमुख प्रो. अमित अग्रवाल, न्यूक्लीयर मेडिसिन के प्रो. एके शुक्ला, चीफ सेनटरी इंसपेक्टर बीपी शर्मा, कर्मचारी संघ की अध्यक्ष सावित्री सिंह सहित कई लोगों ने नर्सिग छात्रों को बधाई दी।     

बीएससी की छात्रों ने ली शपथ
लैंप लाइटिंग समारोह में अग्नि को साक्षी मानकर सेवा की शपत छात्रों ने लिया। पहले साल की किताबी पढाई के बाद अब यह छात्र वार्ड में मरीजों के साथ काम करके प्रैक्टिकल ज्ञान हासिल करेंगी। 

  
 
इन टापरों को मिला सम्मान
बीएससी फोर्थ ईयर- प्रथम- प्रियंका राय, दूसरा - राखी रावत , तीसरा- ऋतिका
बीएससी थर्ड ईयर- प्रथम- निकिता तिवारी, दूसरा- रसिका लाल, तीसरा- श्वेता रावत
बीएससी सेकेंड ईयर- मीनाक्षी मिश्रा, दूसरा स्थान- नेहा सिंह, तीसरा स्थान- शिखा भदौरिया
बीएसएसी फर्सट ईयर- प्रथम- दीपांशी, दूसरा -अंशिका सिंह , तीसरा स्थान- सुजैन पाल