पिडियाट्रिक गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग के उद्घाटन का दिन रहेगा पूरी जीवन याद
बच्चों के चेहरे पर मुस्कान के लिए लगा दिया 28 साल
पीजीआइ के नींव प्रो.याचा 28 साल की सेवा के बाद कहा अलविदा
देश का पहला पिडियाट्रिक गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग स्थापित किया
प्रदेश में मिलने लगा बच्चों को इलाज
उठ खडे होते है मुसाफिर जिन्हे दूर जाना होता है....इसी मंत्र को आत्मसात कर बच्चों के चहरे पर मुस्कान लाने के लिए जीवन के 28 साल पीजीआइ को देने वाले संजय गांधी पीजीआइ के पिडियाट्रिक गैस्ट्रो इंट्रोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो.एसके याचा ने आज संस्थान को अलविदा कह दिया। नींव के पत्थर रहे प्रो.याचा ने अपनी विशेषज्ञता के विकास के साथ ही संस्थान के विकास के लिए कई काम किए। प्रो.याचा ने देश में पहली बार बाल पेट रोग विशेषज्ञता वाला विभाग स्थापित किया इसके साथ बच्चों के पेट की तमाम बीमारियों के इलाज का तरीका यहां स्थापित करने के साथ पूरे देश को बताया। प्रो.याचा ने कहा कि जिस दिन हमारे विभाग का उद्घाटन हुआ वह दिन हमारे यादगार दिन है। वर्ष 1991 में पहली बार संस्थान के गैस्ट्रो इंट्रोलाजी विभाग में कदम रखा तब से इसी क्षेत्र में काम किया। हमारे देश में बाल पेट रोग विशेषज्ञों आज की कमी है और पहले भी थी इसलिए इनके लिए काम करने का लक्ष्य रहा। बच्चों और बडों में इलाज और पेट की बीमारी अलग होती है इसलिए अलग से विभाग स्थापित करने के लिए प्रस्ताव रखा जिसे संस्थान प्रशासन ने स्वीकार कर हर स्तर पर कोशिश किया जिसके फल स्वरूप देख का पहला पिडियाट्रिक गैस्ट्रो इंट्रोलाजी विभाग 2005 में विधिक रूप से स्थापित हो गया। वार्ड सहित अन्य सुविधा 2008 में स्थापित हो गयी जिसके बाद से काम करना शुरू कर दिया। इस दौरान देश में पहली बार डीएम कोर्स शुरू हुआ। इसके साथ ही न्यू ओपीडी भवन का प्लानिग, पीएमएसवाई के तहत के नए विभाग की स्थापना, सब डीन सहित कई काम संस्थान के विकास के लिए काम किए।
यह है उपलब्धि
- 94 एवार्ड
-570 लेक्चर
- 170 रिसर्च पेपर
- अब 60 डीएम पिडियाट्रिक गैस्ट्रोइंट्रोलाजी देश को दिए
जब सिरिंज से चढाया खून बची बच्चे की जान
हीमो स्प्रे के लिए कंपनी से किया बता घर लेने गए डाक्टर
कुमार संजय। लखनऊ
प्रो.याचा ने कहा कि तमाम मेडिकल कंडीशन जीवन में आया लेकिन आभी एक साल पहले एक बच्चा खून की उल्टी करते हुए विभाग में पहुंचा उस दिन इतवार का दिन था । सब लोग रिलेक्स मूड में थे मुक्षे सूचना मिली वार्ड पहुंचा दो देखा कि बच्चा का बीपी लो है , पल्स नहीं मिल रही है लगा कि कुछ भी हो सकता है। इसी बीच खून मंगवाया तुरंत सिरिंज से खून चढाया जिससे तेजी से उसके शरीर में खून पहुंचा थोडा सुधार हुआ। बच्चे के पेट में अल्सर के खून निकल रहा था जिसके लिए हीमो स्प्रे की जरूरत थी जो जल्दी नहीं मिलता है। हमने एक कंपनी से बात किया तुरंत एक डाक्टर को उसके पास भेज कर स्प्रे मंगा कर कर इंडोस्कोप कर अल्सर से रक्त स्राव बंद किया वह बच्चा आज भी ठीक है। इस केस मैं उस हर अधिवेशन में रखता हूं जहां पर ब्लीडिंग की बात होती है। सिरिंज से खून चढाने पर रेजीडेंट डाक्टरों ने बाद में सवाल किया तो बताया कि ड्रिप से चढाते तो खून धीरे-धीरे जाता ऐसे में बच्चे की जान भी जा सकती है। इमरजेंसी मैनेजमेंट का एक अलग तरीका डाक्टरों ने सीखा। सिरिंज से ऐसी स्थिति में खून चढाने का तरीका अनुभव की देन थी।
बच्चे के पेट में भरा था पानी
बच्चे को बड चैरी सिंड्रोम की परेशानी थी जिसमें पोर्टल वेन में रूकावट हो जाती है जिसके कारण यह वेन फट जाती है। इसी बीमारी के कारण पेट में पानी भी भरा था। वेन की बाइडिंग कही और हुई थी जिसके बाद अल्सर के खून बह रहा था। इंडोस्कोप कर पानी भी निकाला गया।