शनिवार, 6 जनवरी 2018

95 साल की उम्र में भी रोटी के लिए जारी है जद्दोजहद

साभार हिंदी डाकिया  


95 साल के एक बुजुर्ग हैं। जूतों के डॉक्टर। बिल्कुल फिट। हां, आंखें कुछ कमजोर जरूर है। सब उन्हें मोची बाबा के नाम से बुलाते हैं। लड़खड़ाती जबान में वो अपना नाम बताते हैं, पर उसे समझना मुश्किल है। उदयगंज में रहते हैं। एक कोठरी में, छोटी सी। अपनी बुढ़िया और बेटी के साथ। बुढ़िया, जो हमेशा बीमार रहती हैं और बेटी, जिसकी शादी रुपयों की वजह से नहीं हो पा रही है। एक बेटा भी था, पर इलाज नहीं मिलने से उसकी मौत हो गयी।



मोची बाबा..रोजाना सुबह 8 बजते ही साइकिल के सहारे टुकुर-टुकुर योजना भवन पहुंचते हैं। झोला उतारते हैं। बोरी बिछाते हैं। पॉलिश, ब्रश, धागे..और दुकान सजकर तैयार। गठरी बनकर बैठ जाते हैं। घुटने मुंह को लगने लगते हैं। उसके बीच मुंह दबाकर जूतों को पॉलिश, सिलाई और रगड़ाई करते हैं। हाथ काम में और दिमाग घर की परेशानियों में व्यस्त रहता है। कुछ पूछो तो बताते हैं, उमर बीत गई जूतों की मरम्मत में। गवर्नरों से लेकर मुख्यमंत्रियों तक के जूते चमका चुका हूं। 



बाबा बताते हैं, नगर निगम वाले कभी-कभी सामान उठा ले जाते हैं। साइकिल के सहारे नगर निगम दफ्तर चला जाता हूं। साहब के हाथ-पैर जोड़कर सामान वापस ले आता हूं। पॉलिश से लेकर सिलाई तक से जो आमदनी होती है, उससे जैसे-तैसे गुजर बसर हो जाती है। कभी पैसा मांगता नहीं, पर साहब लोग बहुत कुछ दे देते हैं।






By- नीरज अंबुज

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