बुधवार, 24 जनवरी 2018

.ताकि बुझे न किसी के घर का चिराग--पीजीआई के पीआरअो सोती जी का अभियान

.ताकि बुझे न किसी के घर का चिराग

इकलौते बेटे की सड़क हादसे में हुई मौत के बाद शुरू किया सड़क सुरक्षा अभियान

बेटे के जन्मदिन एवं पुण्यतिथि पर करते है बड़े कार्यक्रम




 ‘जाके पैर न फटे बिवाई वो का जानै पीर पराई’ इस कहावत को इन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ कर लिया। यहां हम बात कर रहे हैं सड़क हादसे में इकलौते बेटे की मौत का गम दबाए पीजीआइ के जनसंपर्क अधिकारी आशुतोष सोती की। हादसे में बेटे की मौत के कुछ दिन बाद ही बेटे के नाम से ‘शुभम सोती फाउंडेशन’ की स्थापना कर उन्होंने सड़क सुरक्षा जागरूकता अभियान शुरू कर दिया। इसके माध्यम से वह जन-जन को सड़क सुरक्षा के लिए जागरूक कर रहे हैं ताकि, किसी और के घर का चिराग न बुङो।1बेटे के जन्मदिन और पुण्यतिथि पर करते हैं कार्यक्रम : आशुतोष सोती इकलौते बेटे शुभम के जन्मदिन पांच जनवरी और पुण्यतिथि 15 जुलाई को सड़क सुरक्षा से सबंधित बड़े कार्यक्रम करते हैं। बेटे के जन्मदिन पर छात्र-छात्रओं को बुलाकर यातायात सुरक्षा के संबंधित प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता कराकर पुरस्कार वितरण करते हैं। रोड सेफ्टी पर काम कर रहीं संस्थाओं और ट्रैफिक पुलिस कर्मियों का सम्मान समारोह का आयोजन करते हैं। लाडले की पुण्यतिथि पर सड़क सुरक्षा कार्यक्रम का आयोजन कर सैकड़ों हेलमेट बांटकर ‘सिर सुरक्षित सब सुरक्षित’ बिना हेलमेट के दोपहिया वाहन न चलाने का संदेश जन-जन में प्रसारित करतें हैं।

सड़क हादसे आधे करने का लक्ष्य : आशुतोष सोती बताते हैं कि आकड़ों के मुताबिक हर चार मिनट में एक सड़क हादसा होता है। प्रति वर्ष पूरे देश में करीब डेढ़ लाख, प्रदेश में 15 हजार से अधिक और लखनऊ में 550 से अधिक लोगों की सड़क हादसे में मौत होती है। मरने वाले 70 प्रतिशत लोग 18 से 40 वर्ष के होते हैं। उन्होंने बताया कि उनका लक्ष्य है कि वह अपने जीवन काल में पूरे भारत में इतनी जागरूकता कर दे कि जन-जन प्रशिक्षित हो जाए और कम से कम हादसों की संख्या आधी हो जाए। उन्होंने कहा कि वह जल्द ही पीजीआइ संस्थान से स्वैछिक सेवानिवृत्ति लेकर पूरी तरह से रोड सेफ्टी जागरुकता करेंगे। 

पांच से 10 मिनट की लेट लतीफी को कवर करने में जाती है जानें : उन्होंने बताया कि शहर के अंदर होने वाले अधिकतर हादसे पांच से 10 मिनट की लेट लतीफी को कवर करने के कारण होते हैं। यह लोग ऑफिस, व्यवसायिक प्रतिष्ठान एवं स्कूल-कॉलेज जाने वाले एवं डिलीवरी मैन होते हैं। जो जल्दी पहुंचने के चक्कर में सड़क पर फर्राटा भरते हैं।

न्यूरोलाजी विभाग डीएम छात्रों के शुरू किया आउट रीच प्रोग्राम

पीजीआई के डाक्टर देखेंगे बाहरी इलाज की दुनिया


न्यूरोलाजी विभाग  डीएम छात्रों के शुरू किया आउट रीच प्रोग्राम

 रीहैबिलेटेशन एंड स्पेशल एजूकेशन सेंटर से  शुरूअात

कुमार संजय। लखनऊ


संजय गांधी पीजीआई का न्यूरोलाजी विभाग अपने डीएम छात्रों को तंत्रिका तंत्र के इलाज में चिकित्सा विज्ञान के अलावा दूसरे इलाज के तरीके के बारे में जानकारी देने के लिए आउट रीच प्रोग्राम शुरू किया है। विभाग के प्रमुख प्रो.सुनील प्रधान ने इसके लिए संस्थान से अनुमति ले ली है। इसकी शुरूअात विभाग उम्मीद संगठन द्वारा चलाए जा रहे है स्पेशल एजूकेशन सेंटर से किया।  सेरीब्रल पल्सी, डाउन सिड्रोम, स्ट्रोक सहित दूसरी परेशानियों के इलाज में दवाअों को अलावा फिजियोथिरेपी जिसमें वायस थिरेपी, विहैवियरल थिरेपी की अमह भूमिका है। इन थिरेपी के जरिए बच्चों और बडो में स्ट्रोक सहित दूसरी परेशानी के कारण शरीर के सुस्त  बडे अंगों को विशेष तरीके के एक्ससाइज के जरिए क्रिया शील किया जाता है। इससे बच्चों और बडो की जिंदगी अासान हो जाती है। संस्थान में हम लोग दवाअों से इलाज करते है साथ ही विशेष थिरेपी की सलाह भी देते है लेकिन यह विशेष थिरेपी विशेषज्ञ के देख-रेख  में होनी चाहिए । इन विशेष थिरेपी के बारे में यहां से डीएम करने वाले छात्रों को भी जानकारी होनी चाहिए जिससे यहां से निकलने के बाद वह मरीजों का हर पहलू से इलाज करें।  इसी उद्देश्य से आउट रीच प्रोग्राम शुरू किया है। इसके जरिए किताबी ज्ञान के अलावा इलाज की बाहरी दुनिया भी दिखाना भी संभव होगा। टीम में प्रो.संजीव झा,  प्रो. वीके पालीवाल, प्रो. विनीता के अलावा विभाग के अन्य सदस्य शामिल हुए । 

मास पेशियां हो जाती है जाम

विशेषज्ञों का कहना है सेरीब्रल पल्सी होने पर शरीर के मास पेशियां जाम हो जाती है जिससे बच्चा रोटी का टुकडा तक नहीं पकड़ पाता है स्पेशल एक्ससाइज को जरिए धीरे-धीरे मांसपेशियों को लचीला बनाया जाता है। इसी तरह डाउन सिड्रोम होने पर कई तरह की परेशानी होती है । ब्रेन स्ट्रोक होने पर जिस अंग पर अधिक प्रभाव होता है उस अंग की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है जिसमें मजबूती लाना उद्देश्य होता है।  
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रविवार, 21 जनवरी 2018

सर्जरी के दौरान गलत टांका लगाने से मरीज की जान जा सकती है



पीजीआई में टांका लगाते वक्त सावधानी बरतें विषयक कार्यशाला का आयोजन


शरीर के किसी भी हिस्से की सर्जरी के दौरान टांका लगाते वक्त बहुत सजगता
बरतने की जरूरत है। सही टांका लगाने से मरीज को कोई दिक्कत नहीं होती है।
साथ ही उसका घाव जल्दी भर जाता है। ये जानकारी शनिवार को पीजीआई के
प्लास्टिक विभाग में आयोजित कार्यशाला में प्लास्टिक सर्जरी विभाग के
प्रमुख डॉ. राजीव अग्रवाल ने दी।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि जूनियर डॉक्टरों को बताया कि सर्जरी के दौरान
टांका ज्यादा ढीला और अधिक कसा हुआ नही लगाना चाहिए। दोनों स्थिति में
मरीज के लिए नुकसान दायक है। टांका कसा होने पर ऊतक नष्ट होने की वजह से
घाव भरता नहीं है। टांका ढीला होने पर घाव स्वत: नही भरता है बल्कि खुल
जाता है। टांका त्वचा  या शरीर के भीतरी हिस्से में लगाया जाता है।
इंडोक्राइन सर्जरी विभाग के डॉ. ज्ञान चंद ने बताया कि सर्जरी में टांका
की अहम भूमिका होती है। खासकर ह्दय, लिवर, आंत की सर्जरी के दौरान गलत
टांका लगाने से मरीज की जान जा सकती है। कार्यशाला में सीवीटीएस विभाग के
डॉ. शान्तनु पाण्डेय ने कार्यशाला में मौजूद रेजीडेंट और जूनियर डॉक्टरों
को सर्जरी के दौरान टांके की उपयोगिता के बारे में जानकारी दी। साथ ही ये
भी बताया गया कि टांका लगाने के दौरान कौन-कौन सावधानियां बरतनी चाहिए।

बेसिक लाइफ सपोर्ट से बच सकता है 70 फीसदी बच्चों का जीवन

बच्चों का जीवन बचाने के लिए पीजीआई सिखाया सीपीअार
बेसिक लाइफ सपोर्ट से बच सकता है 70  फीसदी बच्चों का जीवन

पहले था एबीसी लेकिन सीएबी का मंत्र जीवन बचाने में कारगर



पानी में डूबने, संक्रमण, कंरट लगने , दिल की बीमारी होने, सिर पर चोट लगने जैसी स्थितियों में कई बार बच्चे की सांस उखड़ने लगती है जिससे उसकी मौत भी हो सकती है । सही समय पर सही लाइफ सपोर्ट दे कर 75 से 80 फीसदी बच्चों को बचाया जा सकता है। संजय गांधी पीजीआई में बेसिक लाइफ सपोर्ट पर अायोजित वर्कशाप में संस्थान की बाल रोग विशेषज्ञ डा. पियाली भट्टाचार्य और इंडियन एकेडमी अाफ पिडियाट्रिक के जोनल कोआार्डीनेटर डा. अनंत केलकर ने बताया कि पहले बेसिक लाइफ सपोर्ट में एबीसी( एयर वे, ब्रीथिंग और कंप्रेशन ) का नियम था लेकिन अब सीएबी( कंप्रेशन, ब्रीथिंग और एयर वे ) हो गया है। गंभीर रूप से बीमार बच्चा जब भी अाए तो बाल रोग विशेषज्ञ को तुरंत उसके हार्ट को चलाने के लिए सही तरीके सीने का कंप्रेशन करना चाहिए । इसके बाद सांस की सामान्य करना चाहिए फिर एयर वे ( श्वसन तंत्र) की रूकावट को दूर करना चाहिए । विशेषज्ञों ने बताया कि हम लोग बाल रोग विशेषज्ञों को बेसिक लाइफ सपोर्ट के बारे में अान हैड ट्रेनिंग देेते है क्योंकि पढाई के दौरान इसकी प्रैक्टिस नहीं होती है। समय -समय पर नए अपडेट भी आते रहते है। ट्रेनिंग के दौरान ट्रेनर को भी ट्रेनिंग देते है। वर्कशाप में मध्य प्रदेश, छत्तीस गढ़ , अांध्र प्रदेश और यूपी से चालिस बाल रोग विशेषज्ञों को जीवन बचाने का हुनर सिखाया गया। 

शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

तो यह हैं देश के बडे अखबार..देनिक जागरण नंबर वन

मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल यानि एमआरयूसी ने वर्ष 2017 का रीडरशिप सर्वे जारी कर दिया है. भारत के सभी भाषाओं के अखबारों की कुल पाठक संख्या के आधार पर जो टाप ट्वेंटी की लिस्ट बनी है, उसमें नंबर एक पर दैनिक जागरण है.
अंग्रेजी अखबार टाइम्स आफ इंडिया भले ही अंग्रेजी अखबारों में नंबर वन हो लेकिन सभी भारतीय भाषाओं के अखबारों की कुल प्रसार संख्या के मामले में ग्यारहवें नंबर पर है. टीओआई से ज्यादा तो प्रभात खबर अखबार की रीडरशिप है. नंबर दो पर हिंदुस्तान अखबार है. नंबर तीन पर अमर उजाला है. दैनिक भास्कर को नंबर चार पर संतोष करना पड़ रहा है. पांचवें पर डेली थांती और छठें पर लोकमत है. सातवें नंबर पर राजस्थान पत्रिका है. बीसवें स्थान पर पत्रिका अखबार है जो राजस्थान पत्रिका समूह का ही अखबार है.
देखें Indian Readership Survey 2017 के आंकड़े...
Top 20 Newspapers of india : Total Readership
Dainik Jagran 7,03,77,000 नंबर एक
Hindustan 5,23,97,000 नंबर दो
Amar Ujala 4,60,94,000 नंबर तीन
Dainik Bhaskar 4,51,05,000 नंबर चार
Daily Thanthi 2,31,49,000 नंबर पांच
Lokmat 1,80,66,000 नंबर छह
Rajasthan Patrika 1,63,26,000 नंबर सात
Malayala Manorama 1,59,95,000 नंबर आठ
Eenadu 1,58,48,000 नंबर नौ
Prabhat Khabar 1,34,92,000 नंबर दस
Times of India 1,30,47,000 नंबर ग्यारह
Anandabazar Patrika 1,27,63,000 नंबर बारह
Punjab Kesari 1,22,32,000 नंबर तेरह
Dinakaran 1,20,83,000 नंबर चौदह
Mathrubhumi 1,18,63,000 नंबर पंद्रह
Gujarat Samachar 1,17,84,000 नंबर सोलह
Dinamalar 1,16,09,000 नंबर सत्रह
Daily Sakal 1,04,98,000 नंबर अठारह
Sandesh 1,01,52,000 नंबर उन्नीस
Patrika 96,23,000 नंबर बीस

मंगलवार, 16 जनवरी 2018

पीजीआई और मेडिकल विवि ने मांगा सतवें वेतन के अनुसार भत्ता...पीजीआई नियमावली बन रही है बाधा


मांगा सतवें वेतन अायोग के अनुसार भत्ता
नियमावली में बदलाव की मांग जिससे समय से मिले  हक



जागरणसंवाददाता। लखनऊ

संजय गांधी पीजीआई संस्थान प्रशासन ने सरकार से सतवें वेतन अायोग के समान वेतन और भत्ता  की मांग की है। संस्थान प्रशासन ने कहा है कि कर्मचारियों और अधिकारियों को एम्स दिल्ली के समान वेतन तो मिल गया है लेकिन भत्ते अभी इसके अनुरूप नहीं मिल रहे है ।  संस्थान ने प्रशासन ने इसे लागू करने के लिए अनुमति मांगी है। कर्मचारी महासंघ पीजीआइ की अध्यक्ष सावित्री सिंह, महामंत्री एसपी यादव, सलाहकार एवं टीएनए( ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन) के पदाधिकारी  एसके राय, अजय कुमार सिंह, कर्मचारी संघ के उपाध्यक्ष धर्मेश कुमार ,अमर सिंह ने कहा कि एम्स में भत्ते लागू हो गए है लेकिन यहां लागू नही हो पाया जिसे लागू करने की मांग हम लोग काफी दिनों से कर रहे हैं। पहले एम्स दिल्ली में जो जो भी लागू होता था संस्थान अपने स्तर से लागू करता था लेकिन संस्थान की नियमावली में एेसे बदला किया गया कि एम्स के वेतन और भत्ते तो मिलेंगे लेकिन लागू करने से पहले शासन से अनुमति लेनी होगी जिसके कारण समय से हम लोगों को हक नहीं मिल पा रहा है। संस्थान के संकाय सदस्यों को भी अभी एम्स के समान वेतन और भत्ते नहीं मिल रहे हैं।  केजीएमयू कर्मचारी परिषद के अध्यक्ष विकास सिंह से मांग पर विवि प्रशासन ने भी सातवें वेतन अायोग के मुताबिक भत्ते देने की अनुमति मांगी है। 




बाक्स ...
पीजीआई नर्सेज को एम्स की तर्ज पर नहीं चाहिए पुर्नगठन


कर्मचारी महासंघ की अध्यक्ष सावित्री सिंह, सहाकार अजय कुमार सिंह ने कहा कि नर्सेज के पुर्नगठन में एम्स की समतुल्यता स्वीकार नहीं है।  इससे हमारे कैडर में प्रमोशनल पदों की संख्या प्रभावित होगी। कहा कि नर्सेज और रेजीडेंट  डाक्टर के बीच और कोई सहायक नहीं है सभी काम हमी लोग करते हैं जबकि एम्स दिल्ली में एेसा नहीं है।

सोमवार, 15 जनवरी 2018

बंगलादेशी निशा की पीजीआई में चालिस हजार में हो गयी थायरायाड की सफल सर्जरी



बंगलादेश की निशा की पीजीआई में हुई थायरायड सर्जरी

चालिस हजार में हो गयी थायरायाड की सफल सर्जरी
 


कहां चार लाख का खर्च बताया, चालिस हजार में थायरायड ट्यूमर की सर्जरी हो गयी वह भी बिना किसी परेशानी यह कहना है कि बंगलादेश के ढाका की रहने वाली 61 वर्षीया लुतुफुन निशा और उनके बेटे लुतुफुन परवेज का । निशा के थायरायड ग्रंथि में ट्यूमर की परेशानी थी जिसके कारण गले में सूजन और खाना निगलने में परेशानी हो रही थी। इलाज केवल सर्जरी था वह किसी दक्ष हाथों से क्योंकि इस सर्जरी के दौरान अावाज जाने, पैराथायरायड ग्रंथि के क्षति ग्रस्त होने का खतरा रहता है। इनके बेटी भी थायरायड ग्रंथि में परेशानी थी जिसका इलाज सिंगापुर में कराया था तो पहले वहीं पर निशा की भी सर्जरी का प्लान वहां किया लेकिन वहां जब खर्च बताया कि चार से 6 लाख तो दूसरे विकल्प पर विचार करने लगे । ढाका में  भारतीय मूल के डा.राजीव ने संजय गांधी पीजीआई के इंडो सर्जन प्रो.अमित अग्रवाल के बारे में राय दी तो परवेज ने ई मेल से संपर्क किया। प्रो.अमित सहमति जतायी तो इन्हें वीजा मिला ।  लुतुफुन निशा नौ जनवरी को यहां अा गयी । दस जनवरी को भर्ती कर 11 जनवरी को  सर्जरी की गयी। सर्जरी के बाद वह बिल्कुल फिट है । मंगवार को इन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी। परवेज ने कहा कि पीजीआई का मैनेजमेंट सिस्मटम कारपोरेट अस्पताल से कम नहीं है।  

निशा में निकाला गया पूरा थायरायड 

थायरायड ग्रंथि ट्यूमर में यदि कैंसर नहीं तो इन्हे फालोअप पर अाने की जरूरत नहीं पडेगी। इलेक्ट्रानिक माध्यम से इन्हें समय -समय पर सलाह देते रहेंगे । प्रो.अमित अग्रवाल ने बताया कि कैंसर का शक था इस लिए बायोप्सी करायी है। इसी शक के कारण  ही  पूरा थायरायाड निकाल दिया है। अावाज सुरक्षित है।  पैराथायराड ग्रंथि में क्षति नहीं है। यदि कैंसर हुअा तो बचाव के लिए रेडियो अायोडीन थिरेपी दी जाती है जो ढाका में भी ले सकती है।  

यह तो जरूर लें सलाह 
गले में गांठ है तो गांठ है तो हम लोग एफएनएसी जांच के साथ गले का अल्ट्रासाउंड कराते है साथ टीएचएच हारमोन का स्तर देख कर तय करते है कि थायराय़ड ग्रंथि में ट्यूमर तो नहीं है। ट्यूमर होने पर हारमोन का स्तर बढ़ जाता है ।  खाना निगलने में परेशानी होती है।  

शनिवार, 13 जनवरी 2018

95 पर्सेंट पुरुष और 89 पर्सेंट महिलाएं डेली बेसिस पर मैस्टरबेशन

95 पर्सेंट पुरुष और 89 पर्सेंट महिलाएं डेली बेसिस पर मैस्टरबेशन
मैस्टरबेशन सेक्सुअली टेंशन को कम करने का सबसे अच्छा और हेल्दी तरीका है

मैस्टरबेशन (हस्तमैथुन) अपनी कामुकता पर काबू पाने का एक कॉमन तरीका है। मैस्टरबेशन एक ऐसा टॉपिक है जिस पर खुलकर बातें नहीं होती हैं। यह वर्जित टॉपिक है, जिस पर लोग बात करने में शर्म महसूस करते हैं। इसके ठीक उलट आंकड़े बताते हैं 95 पर्सेंट पुरुष और 89 पर्सेंट महिलाएं डेली बेसिस पर मैस्टरबेशन करती हैं। मैस्टरबेशन से सेहत पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता है। यदि आप बहुत ज्यादा करते हैं या नशे की तरह लत पड़ गई है, तब आपको किसी सेक्सॉलजिस्ट से मिलने की जरूरत है।
मैस्टरबेशन के 10 फायदे
मैस्टबेरशन एक सेक्सुअल एक्सप्रेशन
दुनिया भर की कई हेल्थ रिपोर्ट की स्डटी करें तो पता चलता है कि मैस्टरबेशन सेक्सुअली टेंशन को कम करने का सबसे अच्छा और हेल्दी तरीका है। हेल्थ प्रफेशनल्स के मुताबिक अपने प्राइवेट पार्ट को टच करना बेहद नैचरल है। ऐसे में मैस्टबेशन को सेक्सुअल एक्सप्रेशन के रूप में ही देखा जाना चाहिए।आनंद में कोई कमी नहीं
पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का ऑर्गेजम (चरम आनंद) ज्यादा कॉम्पलेक्स होता है। पुरुषों को सामान्यतः स्पर्म निकलते वक्त आनंद आता है। अधूरी उत्तेजना और गलत सेक्स टेक्नीक महिलाओं के ऑर्गेजम को कम करता है। वक्त से पहले स्पर्म का गिरना और फोरप्ले में कमी महिलाओं के आनंद को कम करता है।
कितना मैस्टरबेशन बहुत ज्यादा
इसका कोई कट पॉइंट्स नहीं है। यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है, लेकिन औसत देखा जाए तो हफ्ते में तीन बार ठीक है।
मैस्टरबेशन नैचरल है
मैस्टरबेशन पूरी तरह से नैचरल प्रक्रिया है। इससे प्रजनन क्षमता पर किसी भी तरह का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। सेक्सुअली कमजोरी और कामुकता में कमी की बात भी पूरी तरह से अफवाह है। यहां तक कि जानवरों में बिल्ली, कुत्ते और बंदर भी मैस्टरबेशन करते हैं।
मैस्बेरशन से टेंशन खत्म
मैस्टरबेशन के दौरान धड़कन बढ़ जाती है। ब्लड का फ्लो भी बढ़ता है और मसल में सख्ती आती है। इन सारी शारीरिक प्रक्रियाओं के कारण तनाव से मुक्ति मिलती है। जैसे कि आप सेक्स के बाद राहत और तनाव से मुक्त महसूस करते हैं।
मैस्टरबेशन पूरी तरह से सेफ
अपनी कामुकता को काबू में रखने के लिए मैस्टरबेशन पूरी तरह से सेफ प्रक्रिया है।
सेक्सुअली डिसफंक्शन पर काबू
यदि पुरुष या महिला सेक्सुअली डिसफंक्शन से पीड़ित हैं तो मैस्टरबेशन से कई चीजें समझ सकते हैं। यदि पुरुषों में सेक्स के दौरान वक्त से पहल स्पर्म गिरने की समस्या है तो मैस्टरबेशन को लर्निंट टूल की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। आप इसमें सीख सकते हैं कि खुद पर कंट्रोल कैसे किया जाता है।
मैस्टरबेशन से रात में अच्छी नींद
जब आप सेक्सुअल क्लाइमेक्स पर होते हैं और फील गुड जोन में पहुंच जाते हैं तो इसका मतलब यह हुआ कि हॉर्मोन्स निकल चुके हैं। जब ऑक्सिटॉक्सिन और एंडोर्फिन हॉर्मोन्स रिलीज हो जाते हैं, तब आप फील गुड जोन में होते हैं। मैस्टरबेशन के दौरान इन हॉर्मोन्स के निकल जाने के बाद आप बेफिक्र होकर बिना किसी बेचैनी के सोते हैं। अच्छी नींद अच्छी सेहत के लिए बेहद जरूरी है। बहुत ही थकाऊ दिन के बाद रात में अच्छी नींद के लिए मैस्टरबेशन एक शानदार प्रक्रिया है।
पॉजिटिव मेंटल लेवल के लिए मैस्टरबेशन
जब आप मैस्टरबेशन के दौरान क्लाइमेक्स पर होते हैं, तब एंडोर्फिन हॉर्मोन्स रिलीज होता है। इस हॉर्मोन्स के रिलीज के बाद आपकी बेचैनी खत्म होती है और आपको मानसिक शांति मिलती है।

सोमवार, 8 जनवरी 2018

सामाजिक सरोकार मंच ने गरीब बच्चों के बांटा स्वेटर

सामाजिक सरोकार मंच ने गरीब बच्चों के बांटा स्वेटर



सामाजिक सरोकार मंच ने रामभरोसे मैकू लाल इंटर कालेज के गरीब बच्चों में स्वेटर का वितरण किया। कालेज के प्रधानाचार्य विमल साहू ने एेसे 60 बच्चों को लिस्ट दी थी जो इस ठंड में भी बिना स्वेटर का अाते थे। किसी तरह ठंड से बचाव करते थे। इस मौके पर संजय गांधी पीजीआई के प्रोफेसर एवं पद्म श्री  सुनील प्रधान. सामाजिक सरोकार मंच के संयोजक डा. पीके गुप्ता, अध्यक्ष अजय कुमार सिंह, पीजीआई कर्मचारी संघ की अध्यक्ष सावित्री सिंह ने कहा कि समाज के संवेदना को जानने और मदद करने की जज्बा सभी में होना चाहिए। थोडी-थोडी मदद से कोई भी बडा काम हो सकता है। मेयर संयुक्ता भाटिया ने मंच के संवेदना को सराहते हुए कहा कि रैन बसेरे की व्यवस्था किया है। बचाव के लिए अलाव जलवाया जा रहा है। समाज के एेसे संगठन अागे अाकर मदद करें।   

रविवार, 7 जनवरी 2018

छुट्टी पर होने के बाद भी पीजीआई के विशेषज्ञ दे रहे है सलाह

विंटर वेकेशन पर है तो क्या हुअा किसी की मदद हो जाए तो सबसे बडा सुकुन


छुट्टी पर होने के बाद भी पीजीआई के विशेषज्ञ दे रहे है सलाह

जैसा सुना था उससे भी अधिक है यह मददगार
कुमार संजय। लखनऊ

सीन -एक -  न्यूरोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो.सुनील प्रधान के कक्ष के सामने पडी कुर्सियों से सात -अाठ लोग इंतजार करते हुए। कहा कि वह तो छुट्टी पर है लेकिन मरीज के तीमरादारों ने कहा कि छुट्टी पर है क्या वह अभी अाएंगे हमारी परेशानी सुनेंगे उनसे बडी उम्मीद लेकिन दूर से अाएं है। इन्ही में से एक है   
गोरखपुर की मनोरमा मिश्र के तीमारदार जो संजय गांधी पीजीआई के प्रो.सुनील प्रधान के पास नाम सुनकर अाते है । प्रो.सुनील प्रधान से परिजनों की मुलाकात होती है। प्रो.प्रधान सारी रिपोर्ट देखने के बाद कहते है  कि ले अा अो तीमारदारा मरीज को यहां लाते है। इमरजेंसी में उनके रेजीडेंट डा.सुमित देखने के बाद भर्ती करने का फैसला लेते है। डा.सुमित पूरी बात प्रो.प्रधान को बताते है लेकिन वह अाठ रात में इमरजेंसी में खुद अाते है और देखने के बाद कहते है कि हार्ट की समस्या भी है वह कार्डियोलाजी के प्रो.सुदीप कुमार से खुद बात करते है । प्रो.सुदीप सारी स्थिति जानने के बाद अपने वार्ड में एमअाईसीयू में भर्ती कर लेते है । प्रो. प्रधान रोज खुद कार्डियोलाजी में जा कर मरीज को देखते है फिर उन्होंने वार्ड में शिफ्ट कर लिया जहां इलाज चल रहा है। प्रो. प्रधान इस विंटर वेकेशन पर है लेकिन मनोरमा की तरह कई मरीजों को अपने चेम्बर में देख कर सलाह देते रहते है। 
सीन दो- नेफ्रोलाजी विभाग के प्रो.नरायन प्रसाद का कक्ष जिसके सामने लगभग 15 लोग खडे है। इनसे भी कहा कि वह तो छुट्टी पर है लेकिन एक तीमारदार ने कहा कि यदि लखनऊ में तो वह जरूर अाएंगे ..इसी बीच विभाग के पीएस संतोष ने बताया कि हां सर अाएंगे । तभी प्रो.नरायन अाते है एक-एक करके सबको बुलाते है किसी को कहते है कि बुखार अा रहा है तो दवा खाने के बाद बताना। तभी देवरिया के रहने वाली सुमित्रा के परिजन अाते है कहते है कि चल फिर नहीं पा रही है। हालत ठीक नहीं है तुरंत प्रो.नरायन प्रसाद वार्ड में फोन कर किसी डाक्टर से बात करते है । सुमित्रा के परिजन को वार्ड भेजते है जहां उन्हे भर्ती कर लिया जाता है। सभी को सलाह देने के बाद खुद वार्ड की तरफ चल देते है। 
प्रो. प्रधान और प्रो.नरायन ने कहा कि यदि छुट्टी में शहर से बाहर है तो मदद संभव नहीं है लेकिन लखनऊ में है तो विभाग में अाते है । खुद को  लगता है किसी परेशान की मदद हो जाएगी । जिसके लिए यह प्रोफेशन चुना है।  तीमारदार और मरीजों ने कहा कि जितना सुना था उससे भी अधिक मददगार है। यह मिशाल उन लोगों के लिए है जो मरीजों के दर्द को दरकिनार जिम्मेदारियों से भागते है।

नर्सेज के कैडर पुनर्गठन में गड़बडी पर पीजीआई प्रशासन ने मांगा समय

नर्सेज के कैडर पुनर्गठन  में गड़बडी पर पीजीआई प्रशासन ने मांगा समय

पदों के अनुपात में गडबडी को ठीक करने की मांग
 संयुक्त निदेशक प्रशासन और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक  ने दिया अाश्वासन
जागरणसंवाददाता। लखनऊ

कर्मचारी महासंघ पीजीआइ की अध्यक्ष सावित्री सिंह , सलाहकार अजय कुमार सिंह , एसपी राय  , महामंत्री एसपी यादव  ने नर्सेज के कैडर पुनर्गठन में कमी पर सावल खडा किया था जिस पर शनिवार को संयुक्त निदेशक प्रशासन प्रो. उत्तम सिंह , मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो.अमित अग्रवाल ने बुलाकर पूरी बात सुनने के बाद  समय मांगा है । 
कर्मचारी नेताअों का कहना है कि कमियों को संस्थान प्रशासन ने स्वीकार कर लिया है। संस्थान में कुल नर्सेज की संख्या  1114  है। अनुपात में  गडबडी के कारण इंट्री लेवल नर्सिग ग्रेड टू के पद अधिक है लेकिन अागे प्रमोशनल पदों की संख्या कम हो गयी है।  उच्च पद  नर्सिग अाफीसर, असिस्टेंट नर्सिग सुपरिनटेंडेट, नर्सिग सुपरिनटेंडेंट के पदों की संख्या कम हो गयी है। 1114 की संख्या पर गणना के अनुसार  एएनएस की 153 है जबकि 186 होना चाहिए। सिस्टर ग्रेड वन का पद 235 रखा है जबकि 351 होना चाहिए। नर्सिग सुपरिनटेंड का पद 6 दिया जबकि नौ होना चाहिए। इंट्री लेवल ( नर्सेज ग्रेड टू) पर पदों की संख्या के अाधार पर उच्च पदों की संख्या तय की जाती है। कैडर रिसटचरिंग में अनुपात 2008 के अाधार पर रखा गया है उस समय कुल नर्सेज की संख्या 745 थी अब 1114 नर्सेज की संख्या है जिसके अाधार पर उच्च पदों की संख्या होनी चाहिए।  एनएसए पीजीआई के पदाधिकारी सुजान सिंह, सीमा शुक्ला ने भी पुनर्गठन पर सवाल खडा किया था।  नर्सेज के अलावा अन्य संवर्ग की भी एनामली को अधिकायों ने सुनने के बाद कहा है कि सभी के साथ न्याय होगा। 

संविदा कर्मचारियों ने किया मिलन समारोह
संस्थान के आउट सोर्सिग  कर्मचारियों ने नव वर्ष पर मिलन समारोह का आायोजन किया जिसमें टेक्निकल, डाटा इंट्री, पेशेंट हेल्पर सहित  कई पदों पर काम कर रहें कर्मचारियों ने कहा कि इससे अापस में परिचय होता है और एकता को बल मिलता है। समारोह में कई संस्थान के कर्मचारी नेता भी मौजूद थे।

शनिवार, 6 जनवरी 2018

95 साल की उम्र में भी रोटी के लिए जारी है जद्दोजहद

साभार हिंदी डाकिया  


95 साल के एक बुजुर्ग हैं। जूतों के डॉक्टर। बिल्कुल फिट। हां, आंखें कुछ कमजोर जरूर है। सब उन्हें मोची बाबा के नाम से बुलाते हैं। लड़खड़ाती जबान में वो अपना नाम बताते हैं, पर उसे समझना मुश्किल है। उदयगंज में रहते हैं। एक कोठरी में, छोटी सी। अपनी बुढ़िया और बेटी के साथ। बुढ़िया, जो हमेशा बीमार रहती हैं और बेटी, जिसकी शादी रुपयों की वजह से नहीं हो पा रही है। एक बेटा भी था, पर इलाज नहीं मिलने से उसकी मौत हो गयी।



मोची बाबा..रोजाना सुबह 8 बजते ही साइकिल के सहारे टुकुर-टुकुर योजना भवन पहुंचते हैं। झोला उतारते हैं। बोरी बिछाते हैं। पॉलिश, ब्रश, धागे..और दुकान सजकर तैयार। गठरी बनकर बैठ जाते हैं। घुटने मुंह को लगने लगते हैं। उसके बीच मुंह दबाकर जूतों को पॉलिश, सिलाई और रगड़ाई करते हैं। हाथ काम में और दिमाग घर की परेशानियों में व्यस्त रहता है। कुछ पूछो तो बताते हैं, उमर बीत गई जूतों की मरम्मत में। गवर्नरों से लेकर मुख्यमंत्रियों तक के जूते चमका चुका हूं। 



बाबा बताते हैं, नगर निगम वाले कभी-कभी सामान उठा ले जाते हैं। साइकिल के सहारे नगर निगम दफ्तर चला जाता हूं। साहब के हाथ-पैर जोड़कर सामान वापस ले आता हूं। पॉलिश से लेकर सिलाई तक से जो आमदनी होती है, उससे जैसे-तैसे गुजर बसर हो जाती है। कभी पैसा मांगता नहीं, पर साहब लोग बहुत कुछ दे देते हैं।






By- नीरज अंबुज

शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

किसी के जीवन में न हो अंधियारा -शुभम सोती फाउंडेशन

किसी के जीवन में न हो अंधियारा -शुभम सोती फाउंडेशन


शुभम सोती फाउंडेशन के  अध्यक्ष आशुतोष सोती ने कहा कि जिस तरह सात साल पूर्व जुलाई 2010 में उनके जीवन में अंधियारा हो गया था वह किसी अन्य की जिंदगी में न हो। सिर पर हेलमेट न होने के कारण बेटे की सड़क हादसे में मौत हो गई थी। इतना कहते हुए उनका गला रूंध गया और उसके आगे कुछ बोलने में असमर्थ थे। पास में खड़ी आशुतोष की बहन मुक्ता शर्मा और बेटी अनायका सोती की भी अांख भर अायी। संदेश दिया कि हेलमेट अवश्य लगाएं-सिर सुरक्षित सब सुरक्षित, शराब पीकर वाहन न चलाएं। रॉन्ग साइड न चलें आदि स्लोगन खें भर आईं।सड़क सुरक्षा का संदेश देते हुए बुलेट से भारत भ्रमण कर चुके यूपी 32 बुलेटियर्स ग्रुप के अतुल मिश्र कहते हैं कि बाइक अधिक रफ्तार में कतई न चलाएं। अक्सर सड़क हादसे पांच से 10 मिनट की लेट लतीफी को कवर करने में जान चली जाती है।

29.35 फीसदी बच्चों के अांख में मिली कोई न कोई परेशानी

29.35 फीसदी स्कूली बच्चों के अांख में मिली कोई न कोई परेशानी



48 सौ  बच्चों के अांख के परीक्षण के बाद मिली जानकारी

ग्रमीण क्षेत्र के बच्चों के बच्चो में शहरी के मुूकाबले अधिक है अांख की परेशानी
 कुमार संजय। लखनऊ
बच्चों की अांख की परेशानी दिन -ब-दिन बढ़ती जा रही है इन परेशानियों का समय से इलाज न होने पर इनमें रोशनी जाने की आशंका रहती है।  इंडियन जर्नल अाफ अाप्थेमोलाजी ने अपने रिपोर्ट में बताया है कि प्रदेश के  29.35 फीसदी बच्चों के अांख में कोई न कोई परेशानी है जिसका इलाज समय पर संभव है। सबसे अधिक परेशानी पांच से दस साल के उम्र के बच्चों में देखी गयी है । रिपोर्ट में कहा गया है कि अांख की परेशानी से ग्रस्त बच्चों में से 11 से 15 अायु वर्ग के 35.5 फीसदी बच्चों के अांख में परेशानी मिली जबकि पांच से 10 अायु वर्ग के 22.73 बच्चों के अांख में परेशानी मिली। विशेषज्ञों ने 4838 स्कूली बच्चों में अांख की परेशानी का अध्यन किया जिसमें धुंधला दिखने, नजदीक देखने, पलकों में सूजन, विटामिन ए की कमी, एल्रजी, एक अाख में जंम से रोशनी की कमी सहित कई परेशानी देखने को मिली। देखा गया कि स्क्रीनिंग में शामिल कुल बच्चों मे से 1420 बच्चों( 29.35 फीसदी) के अांख में किसी न किसी तरह की परेशानी देखने को मिली। देखा गया कि लड़के और लडकियों में अांख की परेशानी लगभग बराबर देखने को मिली। रिपोर्ट के मुूताबिक अांख की परेशानी ग्रामीण क्षेत्र के 30.5 फीसदी और शहरी क्षेत्र के 28.65 फीसदी बच्चो में परेशानी देखने को मिली। विटामिन ए की कमी ग्रामीण क्षेत्र के 3.03 और शहरी क्षेत्र के 1.15 फीसदी बच्चों में देखने को मिली। यह शोध शंकर नेत्रालय चेन्नई के डा. वीर सिंह के अगुवाई में सुभारती मेडिकल कालेज के डा.केपीएस मलिक, डा.वीके मलिक , डा. कीर्ती जैन ने किया। 

किस में मिली कौन सी परेशानी फीसदी

रीफरेक्टिव इरर( धुंधला दिखना) - 17.36
कनवरजेंश इन सफीएंसी( नजदीक का कम दिखना)- 2.79
वेलीफराइिटस( पलकों में सूजन) -2.11
विटामिन ए की कमी- 2.09
एलर्जी - 1.92
बैक्टीरियन कंजेक्टेवाइिटस- 0.95
एम्बीलायोपिया( जंम से एक अांख में कम रोशनी)- 0.41 
स्कुंयट(भेंगा) - 0.27


20 की  उम्र के पहले 30 फीसदी की नजर कमजोर
संजय गांधी पीजीआई के नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. अालोक कुमार का कहना है कि विटामिन ए की कमी को पूरा कर अांख को बचाया जा सकता है । ग्रामीण क्षेत्र में पोषण की कमी भी बडा कारण है। डा. अालोक का कहना है कि शोध रिपोर्ट के मुूताबिक  एक हजार में से 4.9  बच्चों में अांख की परेशानी है और एक हजार में से 0.62 बच्चों में अंधता की परेशानी है । देखा गया है कि बीस साल की उम्र से पहले 30 फीसदी बच्चों की नजर कमजोर हो जाती है केवल स्कूल स्क्रीनिंग प्रोग्राम को सही तरीके से लागू कर समय पर इलाज दिया जाए तो काफी बच्चों की रोशनी बचायी जा सकती है 


बुधवार, 3 जनवरी 2018

महिलाओं में बढ़ा कश का शौक, यूपी में हर छठी महिला को धूम्रपान की लत

महिलाओं में बढ़ा कश का शौक, यूपी में हर छठी महिला को धूम्रपान की लत

--महिलाओं में बढ़ा कश का शौक, यूपी में हर छठी महिला को धूम्रपान की लत
इसमें तंबाकू जनित उत्पादों का प्रयोग करने वाले पुरुषों का औसत 52.1 फीसद रहा।...

चकाचौंध भरा परिवेश युवतियों व महिलाओं के जीवन पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। बदलती जीवन शैली में शौकिया धूमपान का शुरू हुआ सिलसिला लत में तब्दील हो रहा है। स्थिति यह है कि यूपी की हर छठी महिला धूमपान कर रही है। यह पर्दाफाश 15 वर्ष से अधिक वयस्कों पर हुए सर्वेक्षण से हुआ।
ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (गेट्स) 2016-17 की फैक्ट शीट चौंकाने वाली वाले तथ्य सामने अाएं है।

गेट्स-2 सर्वे की रिपोर्ट में 15 वर्ष से अधिक लोगों को शामिल किया गया था। केंद्रीय परिवार कल्याण विभाग, डब्लूएचओ व टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुंबई द्वारा मल्टी स्टेज सैंपल डिजाइन तैयार किया गया। इसमें देश भर से कुल 74,037 लोगों को व यूपी से 1,685 पुरुष व 1,779 महिलाओं को शामिल किया गया।

इसमें पाया गया कि वर्ष 2009-10 में हुए सर्वे से धूमपान करने वालों की संख्या यूपी में बढ़ी है। इसमें तंबाकू जनित उत्पादों का प्रयोग करने वाले पुरुषों का औसत 52.1 फीसद रहा। वहीं महिलाओं का औसत 17.7 फीसद रहा। सुलभा ने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक हर छठी महिला तंबाकू का किसी न किसी फार्म में सेवन कर रही है। कई महिलाएं जहां मजदूरी करने वाली गुटखा, खैनी, बीड़ी का सेवन कर रही हैं। वहीं कई शौकिया सिगरेट व गुटखा शुरू करने के बाद लती हो गईं।

वयस्कों में गुटखा-खैनी का चलन बढ़ा
रिपोर्ट में कहा गया कि वर्ष 2009-10 में वयस्कों में जहां तंबाकू उत्पाद सेवन का औसत 33.9 था, वहीं 2016-17 में बढ़कर 35.5 फीसद हो गया। हालांकि इसमें धुआं वाले उत्पादों को औसत 14.9 फीसद से घटकर 13.5 फीसद रह गया, वहीं गुटखा, खैनी, पान-मसला का सेवन करने वाले वयस्क 25.3 फीसद से बढ़कर 29.4 फीसद हो गए।

उत्पादों के प्रचार में भी वृद्धि
धूमपान उत्पादों के प्रचार-प्रसार में भी काफी वृद्धि हुई है। इसमें वर्ष 2009-10 में जहां उत्पादों के प्रचार का औसत 10.3 रहा, वहीं अब बढ़कर 16.3 हो गया।

तंबाकू सेवन के आंकड़ों पर एक नजर
पुरुष महिलाएं शहरी ग्रामीण
52.1 17.7 26.6 38.5

यूपी 12वें नंबर पर
तंबाकू उत्पादों के सेवन करने वालों में यूपी 12वें नंबर पर है। कुल औसत की बात करें तो त्रिपुरा में 64.5 फीसद लोग तंबाकू उत्पादों का सेवन करते हैं। वहीं मिजोरम में 58.7 व यूपी 12वें ़ नंबर पर हैं, यहां कुल 35.5 फीसद लोग तंबाकू उत्पादों का सेवन करते हैं।

20 फीसद लोग सुबह उठकर करते सेवन
तंबाकू की लत ऐसी है कि 20 फीसद लोग सुबह आंख खोलते ही पांच मिनट में सेवन करते हैं। वह तंबाकू उत्पादों को सेवन करने के बाद ही फ्रेश होने जाते हैं।

फिर से बनेगा प्लान
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि तंबाकू सेवन करने वाला का आकड़ा बढऩा चिंताजनक है। ऐसे में इस पर अंकुश लगाने के लिए फिर से प्लान बनाना होगा। शिक्षा व नगर निगम विभाग को भी शामिल करना होगा। वहीं, स्कूल के आस-पास तंबाकू उत्पादों की बिक्री प्रतिबंधों पर कड़ाई से लागू करना होगा। इस दौरान डीजी हेल्थ डॉ. पदमाकर सिंह, सीएमओ डॉ. जीएस वाजपेयी व केजीएमयू के डॉ. सूर्यकांत भी मौजूद रहे।



सोमवार, 1 जनवरी 2018

डाक्टर और पैरामेडिकल के खराब व्यवहार से संस्थान की इमेज होती है प्रभावित

पीजीआई के न्यूरोलाजी विभाग का स्थापना दिवस 




 डाक्टर और पैरामेडिकल के खराब व्यवहार से संस्थान की इमेज होती है प्रभावित

सरकारी अस्पतालों के डाक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ को सिखाया जाए कम्युनिकेशन स्किल 
जागरणसंवाददाता। लखनऊ
अमूमन मरीज या उनके तीमारदार शिकायत करते है कि डाक्टर , नर्सेज और दूसरे पैरामेडिकल स्टाफ ठीक से बात नहीं करते। बात -बात पर झिड़क देते है खास तौर पर सरकारी अस्पताल में।  इस शिकायत को संजय गांधी पीजीआई के न्यूरोलाजी विभाग ने महसूस किया । इसी लिए विभाग के स्थापना दिवस के मौके पर विभाग में काम करने वाले डाक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ के लिए  मरीज या तीमारदार से बात करें  विषय पर वर्कशाप का अायोजन किया। अाकाशवाणी के निदेशक पृथ्वीराज चौहान ने कहा कि कोई किसी का दुश्मन या मित्र जंम से नहीं होता है लेकिन यह वाणी ही दोस्त और दुश्मन बनाती है इसलिए बोलने से पहले थोडा सा जरूर सोचना चाहिए।मेडिकल प्रोफेशन में यह अाम शिकायत है कि ठीक से बात नहीं करते है इसके पीछे वर्क लोड के साथ ,डाक्टर की उम्र है। इन सब तमाम तर्कों के बीच यह सोचना जरूरी है कि अाप के पास परेशान अादमी अाता है अाप के दो मीठे बोल से उसे काफी राहत मिल सकती है। अाप के खराब व्यवहार से अाप की इमेज तो खराब होती ही है साथ ही संस्थान की इमेज भी प्रभावित होती है।  इस मौके पर विभाग के प्रो.संजीव क्षा, प्रो.विनीता के अलावा नर्सेज, टेक्नोलाजिस्ट सहित कई लोग मौजूद थे। प्रो. झा ने कहा कि यह वर्कशाप हम लोगों के अंदर काफी असर लाएगा।   

मीठी वाणी से दूर हो जाती है मरीज की साइकोलाजिकल परेशानी

विभाग के प्रमुख प्रो.सुनील प्रधान ने कहा कि अाप के पास सौ परेशान अाते है लेकिन अगला जो अा रहा है वह अापके लिए 101 वां है लेकिन मरीज या तीमारदारा के लिए वह पहला है। वन टू वन का रिश्ता है अाप की अच्छी भाषा से साइकोलाजिकल परेशानी 25 से 30 फीसदी तक दूर हो जाती है। किसी भी बीमारी के शारीरिक पहलू के साथ मानसिक पहलू होता है जिस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। हर अगले मरीज से डाक्टर और पैरामेडिक स्टाफ का नया रिश्ता बनता है इस लिए रिश्ता मजबूत हो कोई गांठ न हो ध्यान देने की जरूरत है।    


कम्युनिकेशन स्किल पर नहीं जोर

विभागके  प्रो.वीके पालीवाल ने  कहा कि डाक्टर को केवल डाक्टरी पढाई जाती है एजूकेशन सिस्टम कम्युनिकेशन स्किल नहीं सिखाया जाता है। अपील किया सुनने की स्किल अपने अंदर विकसित करें हमारे संस्थान में इसके लिए 01, 02 कोर्स कराया जाता है जिसमें स्किल दी जाती है लेकिन यह काफी कम है।