बुधवार, 1 मई 2024

लिवर का प्रोटीन ही बन रहा है लिवर का दुश्मन

 

लिवर का प्रोटीन ही बन रहा है लिवर का दुश्मन




ऑटोइम्यून हैपेटाइटिस से ग्रस्त 157 मरीजों में खोजा कारण और दी लंबी जिंदगी



 लिवर की परेशानी में कारण जानने के लिए आटो इम्यून मार्कर भी रखना होगा नजर




कुमार संजय। लखनऊ


लिवर की खराबी का कारण शराब, मोटापा और हेपेटाइटिस वायरस माना जाता रहा है। संजय गांधी पीजीआई के विशेषज्ञों ने साबित किया है कि लिवर के प्रोटीन खुद लिवर के दुश्मन बन कर लिवर की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है जिससे लिवर फेल्योर होता है। संस्थान के विशेषज्ञों ने ऐसे मरीजों को इलाज के लिए नया तरीका भी खोजा है खास तौर पर उन मरीजों में जिनमें स्टेरायड काम नहीं करता है। इसके साथ ही कौन सी एंटीबॉडी लिवर को खराब करता है। लिवर की खराबी के 157 मरीजों पर शोध किया जिसे इंटरनेशनल लेवल पर स्वीकार किया गया है। लिवर की खराबी के यह मरीज 32 से 55 आयु वर्ग के थे। इनमें लिवर के खराबी के आम कारण नहीं थे । इन मरीजों में एंटीन्यूक्लियर एंटीबॉडी, एंटी स्मूथ मसल एंटीबॉडी, एंटी न्यूट्रोफिल साइटोप्लाज्मिक एंटीबॉडी और एंटी माइटोकॉन्ड्रियल एंटीबॉडी का परीक्षण कराया तो देखा कि 88 फीसदी में एंटी न्यूक्लियर एंटीबॉडी, 60 से 68 फीसदी में एंटी स्मूथ मसल एंटीबाडी, 8 से 7 फीसदी में एंटी न्यूट्रोफिल साइटोप्लाज्मिक एंटीबॉडी और 11.7 फीसदी महिलाओं में एंटी माइटोकॉन्ड्रियल एंटीबॉडी लिवर की खराबी के लिए जिम्मेदार है। गैस्ट्रो एन्ट्रोलॉजी विभाग के प्रो. गौरव पाण्डेय के मुताबिक लिवर की खराबी के 35 फीसदी से अधिक लोगों में दूसरे आटोइम्यून डिजीज त्वचा पर चकत्ते, जोड़ों में दर्द, किडनी की परेशानी देखने को मिली।


 


इन्होंने किया शोध


 


 इंपलीकेशन ऑफ जेंडर ऑन द आउटकम इन पेशेंट विथ ऑटोइम्यून हैपेटाइटिस विषय पर शोध क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी एंडी रूमेटोलॉजी विभाग के प्रो. विकास अग्रवाल, गैस्ट्रो एन्ट्रोलॉजी विभाग पूर्व विभाग के प्रमुख रहे प्रो. यूसी घोषाल, प्रो. समीर मोहिंद्रा सहित अन्य के साथ किया जिसे नेचर ग्रुप के मेडिकल जर्नल क्यूरेस ने स्वीकार किया।  


 


 


 


यह इलाज रहा कारगर


 


क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग के प्रो. विकास अग्रवाल के मुताबिक कई ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के मरीजों में इम्यूनोसप्रेसिव स्टेरायड का प्रतिरोध होता है देखा कि टैक्रोलिमस के साथ स्टेरॉयड देने पर काफी अच्छा परिणाम मिलता है। दोनो रसायन साथ देने से लिम्फोसाइट स्टेरॉयड को रिजेक्ट नहीं कर पाता है। इनमें सीरम आईजी बढा हुआ होता है। हमारे विभाग में ऑटोइम्यून हिपेटाइटस से जुडी जांच उपलब्ध है।

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