नेट पास करने वाली पहली थैलेसीमिया पीड़ित बनी स्निग्धा
1380 यूनिट खून चढ़ाया गया यह जीवन
थैलेसीमिया पीड़ित 300 बच्चों की देखभाल हो रही है
जीवन रक्षा के लिए अब तक 1380 यूनिट खून चढ़ाना पड़ा और आगे भी खून चढ़ेगा तब तक जीवन रहेगा। गोरखपुर में रहने वाली स्निग्धा चटर्जी को तीन महीने की उम्र में थैलेसीमिया का पता चला। इसी महीने से संजय गांधी परिवार का खून लेकर दो बार चढ़ रहा है। एक बार दो यूनिट खून चढ़ता है। बीमारी से प्रकाशित स्निग्धा ने पढ़ाई रिलीज की इस समय मंजिल में फिल्म कर रही हैं। नेट नेटवर्क लिया गया है। लेक्चर की योग्यता हासिल की गई है। इतनी योग्यता हासिल करने वाली थैलेसीमिया पीड़ित प्रथम प्रदेश की लड़की है।
पढ़ाई और सहायता से मिल मंजिल हो सकती है
यह उन लोगों को संदेश देता है जो बीमारी से पीड़ित हैं, बीमारी है तो क्या हुआ है, याद है और परिवार का सहयोग है तो यह लोग जीवन भर कुछ न कुछ हासिल कर सकते हैं जो सामान्य बच्चे हासिल कर सकते हैं। स्निग्धा का कहना है कि मेरे पिता सनत कुमार चटर्जी और मां ने कभी हमें कोई मतलब नहीं बताया जो करना चाहा। हर कदम साथ दिया जिससे यहां हासिल किया जा सके।
थैलेसीमिया पीड़ित 300 बच्चों की देखभाल
स्निग्धा अध्ययन के साथ ही गोरखपुर में फाइट अगेंस्ट थैलेसीमिया संस्था भी चल रही है जिसमें 300 से अधिक बच्चों के लिए रक्त की व्यवस्था, लाइफ स्टाइल की प्रति जानकारी के अलावा अध्ययन करना शामिल है।
मुख्यमंत्री ने पदस्थापित किया
विश्व थैलेसीमिया दिवस के अवसर पर संजय गांधी महोत्सव में आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में भाग लेने आई स्निग्धा ने बताया कि 2013 में आईएससी बोर्ड से हाई स्कूल 81 प्रतिशत अंक के साथ पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सम्मानित किया गया था। 2015 में इंटरनेशनल बिजनेस बोर्ड से 76 फीसदी के करीब हो गए। गोरखपुर विश्वविद्यालय से बीएस, एमए करने के लिए मुख्यमंत्री आदित्य नाथ ने मिशन शक्ति के तहत डिग्री प्राप्त की। 2019 में नेट पर भी इंटरव्यू लिया गया। लेक्चरर बनने की योग्यता मिल गई है। ईश्वर ने चाहा तो कहीं न कहीं शिक्षण कार्य भी मिलेगा।
जागरूकता की है कमी
स्निग्धा का कहना है कि थैलेसीमिया को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी है। 50 से अधिक ऐसे परिवार हैं जिनमें पहले बच्चे का जन्म थैलेसीमिया से होता है और उसके बाद दूसरा और तीसरा बच्चा भी थैलेसीमिया से पीड़ित होता है। इस अनुवांशिक बीमारी के माता-पिता दोनों का कैरियर होता है जिससे बच्चे में यह बीमारी होती है। शोध के बाद इस बीमारी का परीक्षण, गर्भस्थ शिशु, शिशु शिशु कक्ष में करा कर ऐसे बच्चों का जन्म लिया जा सकता है।
कई और डिग्रीयाँ
इस मशीन पर थैलेसीमिया के मरीज़ मुकेश प्रजापति ने बांसुरी वादन और कविता पाठ किया। विभाग के प्रमुख प्रो. शुभा फेडके ने कई थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों और आलोचकों को सम्मानित करते हुए आगे बढ़ने की शुभ कामना दी।
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