जिंदगी से जंग जीतने बाद अब मां बनने का इंतजार
दस दिन वेंटिलेटर पर किया जीवन के संघर्ष
वेंटीलेटर पर जाने के बाद जिंदगी की उम्मीद की लौ काफी धीमी हो जाती है । वेंटिलेटर पर जाने के वेंटिलेटर एसोसिएटेड इंफेक्शन सहित कई परेशानी की आशंका रहती है लेकिन किंग जार्ज मेडिकल विवि के विशेषज्ञों के काफी मेहनत से 10 दिन वेंटिलेटर पर जीवन से संघर्ष कर जिंदगी से खुद की लडाई जीतने के साथ गर्भ में पल रहे शिशु को भी जिंदगी मिल गई। अब यह मां बनने के इंतजार कर रही है। आईसीयू से इन्हें छुट्टी दे दी गयी है। लखनऊ की ही रहने वाले 23 वर्षीय राधा देवी 26 महीने से गर्भवती है। 13 मार्च से खांसी बुखार और सांस लेने में तकलीफ शुरू हुआ ।
पहले वो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गई जहां 2 दिन के उपचार के बाद आराम नहीं मिलने से उसे तुरंत क्वीन मेरी हॉस्पिटल केजीएमयू में रेफर कर दिया गया । क्वीन मेरी हॉस्पिटल से उन्हें 16 मार्च को एनेस्थीसिया विभाग का आईसीयू सीसीयू -2 में शिफ्ट किया गया। सीसीयू के प्रो. विपिन सिंह के मुताबिक ऑक्सीजन की कम से नाज़ुक स्थिति बनी हुई थी । ऑक्सीजन लेवल बहुत कम होने से माँ और भ्रूण दोनों को जान का खतरा था । इसलिए राधा को तुरंत वेंटिलेटर पर ले गए । छाती का एक्सरे कराने पे पाया गया कि दोनों फेफड़े बिलकुल छतिग्रस्त हो गये हैं कारण वायरल निमोनिया था। ए आर डी एस ( एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम ) कहते हैं। अगर वेंटीलेटर समय से नहीं लगाया गया तो मृत्यु की आशंका थी । 3 दिन के बाद 18 मार्च को मरीज की ट्रेकियोस्टोमी ( गले में छेद कर के वेंटिलेटर लगाना ) की गई ताकि उसका निमोनिया ठीक होने में सहायता मिल सके ।
शुरू के 3 दिन तक 100 प्रतिशत ऑक्सीजन देना पड़ा फिर चौथे दिन से ऑक्सीजन की ज़रूरत कम होने लगी । क़रीब 10 दिन वेंटिलेटर पर रखने के बाद को 30 मार्च को वेंटिलेटर हटाया गया और 2 अप्रैल को ट्रेकियोस्टोमी ट्यूब भी निकाल दिया गया । अब मरीज का खाना पीना और सहारे से चलना नियमित रूप से शुरू हो गया है । एनेस्थीसिया विभाग की प्रमुख प्रो. मोनिका कोहली ने भी पूरे इलाज के दौरान मरीज के स्वास्थ्य की जानकारी लेती रहीं और टीम को बधाई देते हुए कहा कि यह जटिल इलाज था।
गर्भावस्था में इलाज होता है जटिल
प्रो. विपिन सिंह ने बताया कि गर्भवती महिला को ठीक करना इसलिए आसान नहीं होता क्योंकि इसमें ब्लड प्रेशर और ऑक्सीजन लेवल कम होने से माँ के साथ साथ बच्चे के जान का खतरा रहता है। उपचार के दौरान दवाइयों का चुनाव बहुत सावधानी से करना होता है क्योंकि दवाइयाँ बच्चे के विकास में नुकसान कर सकती हैं ।
ऱाधा के साथ गर्भस्थ शिशु सुरक्षित
रे इलाज के दौरान गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य पे भी ध्यान दिया गया । क़रीब 29 हफ़्ते का बच्चा मां की कोख में अब भी जीवित और सुरक्षित है ।
इस टीम ने किया इलाज
आईसीयू फैकल्टी प्रो. विपिन सिंह ,डा. बी बी कुशवाहा के रेज़िडेंट डॉ स्वाति , डॉ अंकुर, डॉ दानिश डॉ सृष्टि तथा नर्सिंग इंचार्ज निशा और ममता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
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