बेकाबू डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर से गुर्दा खराब होने का खतरा
-हेलो डाक्टर
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जागरण संवाददाता, लखनऊ: डायबिटीज यानी मधुमेह वैसे तो एक आम, लेकिन लापरवाही होने पर यह गंभीर हो सकती है, जिससे दुनियाभर में करोड़ों मरीज जूझ रहे हैं। अनियंत्रित शुगर समय के साथ हृदय, रक्त वाहिकाओं, आंखों, गुर्दे (किडनी) और तंत्रिकाओं को गंभीर नुकसान पहुंचाता है। इसके मरीजों में किडनी डिजीज (बीमारी) होने की संभावना अधिक होती है। दरअसल, डायबिटीज में लगातार उच्च शर्करा से किडनी की छोटी रक्त वाहिकाओं को काफी नुकसान होता है। ये नुकसान धीरे-धीरे किडनी डैमेज करने की दिशा में अग्रसर हो जाता है। शुगर और हाई ब्लड प्रेशर नियंत्रित न होने से करीब 60 प्रतिशत मरीज गंभीर किडनी रोग से ग्रसित हो जाते हैं। ऐसे मरीज प्रत्येक तीन माह में आरएफटी (रीनल फंक्शन टेस्ट) व पेशाब की जांच जरूर कराएं। चिकित्सीय परामर्श के मुताबिक दवा लें। दवाओं से किडनी को खराब होने से रोका जा सकता है। कई मामलों में डायलिसिस भी बंद हो सकती है और रोगी सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है। यह कहना है एसजीपीजीआइ में गुर्दा रोग विभाग के अध्यक्ष डा. नारायण प्रसाद का। उन्होंने गुरुवार को दैनिक जागरण के हेलो डाक्टर कार्यक्रम में पाठकों की समस्याएं सुनी और उचित परामर्श दिए।
सवालः किडनी संबंधी परेशानी नहीं हो, इसके लिए कुल कितना पानी पीना चाहिए? -अनिल तिवारी, लखनऊ, 45 वर्ष
-जितनी प्यास लगे, उतना ही पानी पीना चाहिए। यह जरूरी नहीं कि सुबह उठकर एक बार में तीन से चार गिलास पानी पिएं। हमारा मस्तिष्क प्यास लगने पर खुद ही आपको सूचना देता है। जब प्यास लगे तो उसे नजरअंदाज नहीं करें। धूप में रहने और काम करने वाले व्यक्ति को तीन लीटर और सामान्य तापमान में रहने वाले व्यक्तियों को दो से ढाई लीटर पानी पीना चाहिए।
सवाल- पिछले साल सितंबर में जांच कराया तो मुझे क्रोनिक किडनी डिजीज बीमारी सामने आई। बीपी के साथ गुर्दा में सिस्ट भी है। क्या एहतियात बरतें? -सत्येंद्र कुमार, लखनऊ, 58 वर्ष
-यह गुर्दे की एक बीमारी है। इसमें धीरे-धीरे रोग बढ़ता है। रोजाना बीपी चेक करें और नियंत्रित रखने का हरसंभव प्रयास करें। भोजन में पांच ग्राम से अधिक नमक का सेवन न करें। ध्यान रहे कि आपका बीपी 130/80 से अधिक नहीं होना चाहिए।
सवाल-मेरी एक किडनी करीब 60 प्रतिशत खराब हो गई है। इलाज चल रहा है, लेकिन राहत नहीं है।- ब्रज किशोर सिंह, लखनऊ, 52 वर्ष
-दरअसल, आपकी किडनी में 60 प्रतिशत की खराबी हुए तीन माह से ज्यादा का समय बीत चुका है। ऐसे में आप हाई रिस्क ग्रुप में पहुंच चुके हैं। लेकिन, बीपी नियंत्रित और खानपान का विशेष ध्यान रखकर बीमारी की रफ्तार को रोक सकते हैं।
सवाल-मैं ब्लड प्रेशर का मरीज हूं। किडनी को स्वस्थ रखने के लिए क्या उपाय करें?- बजरंगी लाल गुप्ता, लखनऊ, 60 वर्ष
-बीपी की नियमित दवा लें। अगर नियंत्रित है तो सप्ताह में तीन बार चेक करें। दवा कतई बंद न करें। दवा के बाद भी अगर ब्लड प्रेशर बढ़े तो कार्डियोलाजिस्ट से संपर्क करें। संतुलित खानपान और अनुशासित जीवनशैली बहुत जरूरी है। रोजाना 45 मिनट ब्रिस्क वाक करें। भोजन में नमक का सेवन कम करें।
सवाल-मेरे दोनों किडनी में पथरी थी। अभी कुछ दिन पहले सर्जरी कराई। रात में कई बार पेशाब जाना पड़ता है। -जेके सीखिया, बहराइच, 70 वर्ष
-यह प्रोस्टेट बढ़ने का लक्षण है। अधिक उम्र होने पर यह समस्या ज्यादातर लोगों में होती है। प्रोस्टेट की दवा नियमित लें। ध्यान रहे कि आपको दोबारा किडनी में पथरी हो सकती है। इसलिए छह माह में एक बार अल्ट्रासाउंड और खून की जांच जरूर कराएं। टमाटर, पालक और काफी का सेवन कम करें।
सवाल-मेरी बेटी की उम्र 10 वर्ष है। उसे कुछ साल पहले ही नेफ्रोटिक सिंड्रोम की शिकायत हो गई। इलाज चल रहा है। क्या यह बीमारी पूरी तरह से ठीक हो सकती है।- जेके शर्मा, लखनऊ, 40 वर्ष
-अगर इलाज सही हो तो यह बीमारी उम्र बढ़ने के साथ पूरी तरह ठीक हो जाती है। मेरा मानना है कि 14-15 वर्ष की उम्र में आपकी बेटी नेफ्रोटिक सिंड्रोम से मुक्त हो जाएगी, लेकिन इसके बाद भी आपको नेफ्रोलाजिस्ट के संपर्क में रहना चाहिए। कुछ मरीजों में यह बीमारी वापसी भी करती है। हालांकि, इसका प्रतिशत बहुत कम है।
सवाल: ढाई साल पहले मैंने अपनी किडनी बेटी को दी थी। मुझे कोई रिस्क तो नहीं है? बेटी को बीपी रहता है। क्या उससे किडनी पर असर पड़ेगा? -आरके शर्मा, बहराइच, 64 वर्ष
-बेटी से कहें कि वह घर पर मशीन से अपना रक्तचाप नापती रहें। आपको किसी तरह का रिस्क नहीं है। अपने रक्तचाप, क्रिएटिनिन और मूत्र की प्रत्येक तीन माह में नियमित जांच करवाते रहें।
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इन बातों का रखें ध्यान
प्रो. प्रसाद के मुताबिक, खून में नमक की मात्रा अधिक होने पर किडनी डैमेज होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए पानी का सेवन अधिक करें। बिना चिकित्सीय परामर्श दर्द की दवा का सेवन करना भी किडनी के लिए घातक है। परिवार में पहले से किसी को बीमारी रही है तो 30 साल से अधिक उम्र वाले युवा जरूर नियमित चेकअप कराएं। यदि किडनी में सिस्ट मिलता है तो नियमित बीपी व आरएफटी जांच कराएं और चिकित्सीय परामर्श से दवा लेते रहें। 60 साल से अधिक उम्र के लोगों को छह माह में एक बार पीएसए की जांच जरूर कराना चाहिए। धूमपान से परहेज करें।
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किडनी की प्रमुख बीमारियां
1- एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआइ)
कारण: संक्रमण या किडनी को नुकसान पहुंचाने वाली दवा का सेवन, हाई बीपी, शुगर, मलेरिया, डायरिया आदि।
लक्षण: पेशाब में अचानक कमी होना, बुखार आना या अधिक दस्त होने की दशा में दवा लेने के बाद पेशाब में कमी होना।
उपचार: यह दवा से पूरी तरह ठीक हो जाता है।
2- नेफ्रोटिक सिंड्रोम
कारण: शरीर की प्रतिरोधी क्षमता का असामान्य होना
लक्षण: पेशाब में प्रोटीन आने की वजह से शरीर में सूजन
उपचार: सटीक इलाज से बीमारी पूरी तरह ठीक हो सकती है
3- गुर्दे की पथरी :
कारण: यूरिक एसिड का बढ़ना, पानी कम पीना आदि।
लक्षण: पेट में दर्द, उल्टी या बुखार होना, पेशाब में जलन, रुक-रुक कर पेशाब होना।
उपचार: दवा अथवा सर्जरी द्वारा पूरी तरह ठीक हो सकता है। समय पर उपचार नहीं कराने पर किडनी को नुकसान भी पहुंचा सकता है।
4- आनुवांशिक बीमारी (पालिसिस्टिक किडनी डिजीज)
कारण: परिवार में यदि पहले किसी को यह बीमारी रही है तो संभावना रहती है।
लक्षण: बीपी बढ़ना, पेट में भारीपन, कभी-कभी लाल पेशाब होना।
उपचार: 30 वर्ष की उम्र के बाद बीपी और शुगर के साथ किडनी की जांच कराएं।
5- क्रोनिक किडनी डिजीज :
कारण: शुगर, बीपी या क्रोनिक नेफ्रोटिक सिंड्रोम का समय पर इलाज न कराने पर क्रोनिक किडनी डिजीज की संभावना रहती है।
लक्षण: भूख कम लगना, थकान होना, पैरों या चेहरे में सूजन, उल्टी आना, चलने-फिरने में परेशानी होना, सांस फूलना, रात के समय पेशाब ज्यादा आना।
उपचार: एक बार क्रोनिक होने पर दवा से बढ़ने की दर को धीमा किया जा सकता है। इससे डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की स्थिति को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है।
6- एंड स्टेज रीनल डिजीज (ईएसआरडी)
कारण: शुगर, बीपी या क्रोनिक नेफ्रोटिक सिंड्रोम का समय पर इलाज न कराने पर एंड स्टेज रीनल डिजीज की संभावना रहती है।
लक्षण: बीपी का अनियंत्रित बढ़ना, शरीर में सूजन, कमजोरी, भूख न लगना, जल्दी थक जाना आदि।
उपचार: मधुमेह के रोगियों में अधिकतर यह समस्या आती है। डायलिसिस नियमित अंतराल पर जरूरी हो जाता है, जब तक कि गुर्दा प्रत्यारोपण न हो।
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