समय से पहले जन्म और कम है वजन तो सुनने की क्षमता प्रभावित होने की आशंका
कम सुनाई देने से दिमाग भी होगा कम विकसित
विश्व श्रवण दिवस पर पीजीआई में जागरूकता कार्यक्रम
समय से पहले और कम वजन के साथ जन्म लेने शिशुओं में सुनने की परेशानी की आशंका सामान्य शिशुओं के मुकाबले अधिक होती है। इन शिशुओं में तुरंत सुनने की क्षमता का आकलन करने की जरूरत है। आगे के इलाज के लिए विशेषज्ञ से सलाह लेने की जरूरत है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में विश्व श्रवण दिवस के मौके पर सुनो-सुनाओ जागरूकता के कार्यक्रम में न्यूरो ओंटोलॉजी विभाग के प्रो.अमित केशरी ने बताया कि हम लोग सुनने की परेशानी को दूर करने के लिए कॉक्लियर इंप्लांट कर रहे है। इससे काफी बच्चों का लाभ मिला है। विशेषज्ञों ने बताया कि सुनने की क्षमता कम है या नहीं है तो शिशु के दिमाग का विकास प्रभावित होता है। सुनने की कमी का इलाज जितना जल्दी संभव हो कराने की जरूरत है। सुनने की क्षमता का पता आडियो टेस्ट से होता है ।
प्रो केशरी ने बताया कि जन्म लेने सभी शिशुओं के सुनने की क्षमता का परीक्षण करता है जिसमें पांच मिनट का समय लगता है। आवाज जब शोर बन जाता है तो वह सुनने की क्षमता को प्रभावित करता है। रोज पर हार्न , तेज आवाज में संगीत सुनने की क्षमता को धीरे-धीरे कम करता है। हार्न न बजाने की शुरुआत हम सभी को करनी है। नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नरायन प्रसाद ने कहा कि किडनी से प्रभावित बच्चों में सुनने की क्षमता में कमी देखने के मिलती है।
प्रो केशरी ने बताया कि जिनकी उम्र 60 साल से अधिक हो गई है यदि उन्हें काम सुनाई देने की समस्या है तो समय से इसका इलाज करना चाहिए। इलाज न करने पर उनमें बोलने की समस्या के साथ भूलने की भी समस्या होने की परेशानी हो सकती है। इस मौके पर 20 बच्चों को सुनने की मशीन भी दी गई निदेशक प्रोफेसर आरके धीमान ने हर संभव मदद करने की बात कही
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