पीजीआई में होगी पीआईडी का होगा फ्री परीक्षण
20 रुपए की टीएलसी जांच से सामान्य चिकित्सक भी भांप सकते है पीआईडी
प्राइमरी इम्यूनो डिफिशिएंसी (पीआईडी) के आशंका का पता शुरुआती दौर में सामान्य चिकित्सक भी लगा सकते हैं। किसी भी उम्र के व्यक्ति को यदि बार –बार संक्रमण हो रहा है। सामान्य खाने वाली एंटीबायोटिक से सुधार नहीं हो रहा है। भर्ती करना पड़ रहा है और लिम्फोसाइट की संख्या कम है तो पीआईडी के आशंका की पुष्टि कराने के लिए विशेषज्ञ से पास भेजने की जरूरत है। संजय गांधी पीजीआई के क्लिनिकल इम्यूनोलाजी विभाग की प्रमुख प्रो. अमिता अग्रवाल और फाउंडेशन फार पीआईडी अमेरिका प्रो. सुधीर गुप्ता ने इंडियन सोसाइटी ऑफ पीडीआई के अधिवेशन में बताया कि टीएलसी की जांच बीस से तीस रूपए में किसी भी पैथोलॉजी पर हो जाती है। इस बीमारी के पुष्टि के लिए आगे इम्युनोग्लोबुलिन आईजी, आईजीए और आईजीएम की जांच के साथ लिम्फोसाइट सब सेल की जांच फ्लोसाइमेंट्री से करने के बाद विशेष पुष्टि के लिए जेनेटिक जांच कराते हैं। फाउंडेशन फार पीआईडी ने संस्थान में मरीजों के फ्री परीक्षण के लिए आर्थिक सहयोग किया है । गरीब मरीजों की फ्री जांच करेंगे। फाउंडेशन इलाज में भी मदद करने के लिए आश्वस्त किया है। इस बीमारी भारत सरकार रेयर डिजीज पॉलिसी में भी शामिल कर लिया है इससे इलाज संभव हो रहा है। अधिवेशन में अमेरिका से डा. ट्रोआंय टोरगर्सन, डा. सेरींगो रोसेनजवींग. डा. डान कस्टेनर सहित कई विशेषज्ञों ने जानकारी दी। निदेशक प्रो. आरके धीमान ने अधिवेशन के उद्घाटन में कहा कि संस्थान हर संसाधन उपलब्ध कराएगा।
हर वर्ष 25 से 30 नए मरीज
प्रो. अमिता अग्रवाल ने बताया कि हर साल 25 से 30 नए मरीज पीआईडी के डायग्नोस होते है। जांच और जागरूकता की कमी के कारण देश में 16 हजार मरीज डायग्नोस है जबकि संख्या 10 लाख के आस पास है। इलाज के लिए इंट्रावेनस आईजीजी दिया जाता है।
10 फीसदी होते है मिस डायग्नोस
पांच से 10 फीसदी मिस डाग्योनस होते है क्योंकि पीआईडी में स्किन, फेंफड़ा, आटो इम्यून डिजीज , लिवर सहित कई परेशानी रहती है। कई बार पीआईडी का पता नहीं लगता है।
इलाज से बढ़ती है जिंदगी
पीआईडी का इलाज न होने पर 20 साल में 50 फीसदी मरीजों की मृत्यु हो सकती है। इलाज से लंबी जिंदगी मिलती है।
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