मंगलवार, 2 मार्च 2021

किडनी दुरूस्त हो गयी लेकिन दिल दे गया धोखा..हेलो .....दवा खत्म हो रही है ...जल्दी दिलवा कर भेज देना--संस्मरण दिलीप सर

 







सालों पहले की बात जब मनीष श्रीवास्तव दैनिक जागरण के मेडिकल रिपोर्टर थे उसी समय की बात है राजू मिश्रा सर ने दैनिक जागरण ज्वाइन कराने के लिए दिलीप सर के पास भेजा ..कमरे में पहुचते ही स्नेह से बैठाया ...मैने तमाम शर्ते रखी सब हां करते रहे एक शर्त यह भी थी मेरे भाई जैसे अऩिल त्रिपाठी को भी ज्वाइन कराया जाए यह भी मान गए ....विशेष कारणों मैं ज्वाइन नही कर पाया लेकिन अनिल त्रिपाठी ने ज्वाइन कर लिया ......समय बीतता रहा .....पांच साल पहले एक बार फिर जगदीश जोशी सर ने बुलाया कहा ज्वाइन कर लो ....हिन्दुस्तान में अच्छा चल रहा था ....जोशी जी कहने पर ज्वाइन कर लिया....दिलीप सर की किडनी की समस्या शुरू हो चुकी थी .....लेकिन डायलसिस की जरूरत नहीं थी फिर भी प्रो. नरायान प्रसाद ने ट्रांसप्लांट के लिए तैयारी शुरू कर दी थी जिसमें डोनर से लेकर दिलीप जी तमाम जांचे हो रही थी ...दिलीप जी पीजीआई आते लेकिन कभी किसी सहयोग के लिए नहीं कहते है ...जांच चलती रही इसी बीच डायलसिस शुरू हो गयी लेकिन पीजीआइ में रेगुलर डायलसिस संभव नहीं थी यह यहां की पालसी है....इसके लिए वह निजि अस्पताल में जाते रहते...इसी बीच ट्रांसप्लांट की पूरी तैयारी हो गयी ..तब दिलीप जी तमाम कुछ -कुछ जरूरत पर बडी सरलता से कहते .....नरायन सर तो हमेशा नजर रखते ....ट्रांसप्लांट के दौरान और बाद में हर पल जुड़ा रहा।ट्रांसप्लांट के दिन आशुतोष सर, जेके सर, राजू मिश्रा, संदीप पाण्डेय,,रूमा जी सुबह आठ बजे से पीजीआइ के ओटी के सामने सपलता की प्रार्थना कर रहे है....ट्रांसप्लांट खत्म होने के बाद ....भी यह सभी वरिष्ट लगातार .........नजर रख रहे थे........ ट्रांसप्लांट सफल रहा पीजीआइ से छुट्टी मिल गयी......दोबारा अखबार ज्वाइन कर लिया ......इसी बीच दिलीप ने अखबार छोड़ दिया....जब अखबार में नहीं रहे तो और जुड़ाव हो गया उनसे ...दवा के लिए सोएब को भेजते तो पहले ही फोन कर देते मै सीएल वर्मा , आरए यादव के सहयोग से दवा फार्मेसी से दिलवाने की कोशिश करता, जांच के सैंपेल लेकर सोएब आते सहित तमाम छोटे -छोटे सहयोग की जरूरत पड़ती थी....मैं सोचता था कि पद पर रहने पर तमाम लोग आगे-पीछे लगे रहते है .जब वह पद पर नहीं है तो मेरी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है क्योंकि उन्हे यह न लगे कि संपादक था जब तो संजय सहयोग करता था अब नहीं कर रहा है....किडनी तो दुरूस्वत हो गयी लेकिन दिल ने धोखा दे लिया....वह संकोची भी थे... .....बहुत जरूरत पर ही फोन करते ...... होले.....संजय .........देख लेना जो संभव हो ........यह हमेशा याद आता रहेगा।

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