पीजीआइः स्थापित हुई आमाशय कैंसर की लेप्रोस्कोपिक सर्जरी तकनीक
कैंसर युक्त आमाशय को निकाल और छोटी आंत से दुरुस्त किया खाने का रास्ता
अमूमन ओपन होने वाली सर्जरी को लेप्रोस्कोप से दिया अंजाम
संजय गांधी पीजीआइ के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग ने आमाशय कैंसर की सर्जरी में लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की तकनीक स्थापित करने में सफलता हासिल की है। आमाशय में कैंसर होने पर फिलहाल ओपेन सर्जरी ही की जाती रही है लेकिन अब यह सर्जरी लेप्रोस्कोप से भी संभव हो गया है। इस तकनीक से सर्जरी करने में मरीज को बहुत ही जल्दी स्वास्थ्य लाभ होता है साथ ही संक्रमण की आशंका कम होती है। इलाज का खर्च भी कम होता है। विभाग के प्रो, अशोक कुमार (सेकेंड) ने इस सर्जरी को एनेस्थीसिया विभाग के प्रो सुजीत गौतम, डा सुरुचि के साथ स्थापित किया। गैस्ट्रो सर्जरी के सीनियर रेजिडेंट डा सोमनाथ, डा किरन, डा चंदन, के साथ एनेस्थीसिया रेजिडेंट डॉक्टर के सहयोग से यह सर्जरी संभव हो पायी। प्रो. अशोक के मुताबिक ओपन विधि से २०-२५ सेंटीमीटर के चीरे की जरूरत होती है, लेकिन लेप्रोस्कोपिक विधि से यह कार्य बिना बड़ा चीरा लगाए किया जाता है साथ ही अंदर के अंगो में भी कम खींचतान , कम इंजरी तथा काम ब्लड लॉस होता है, और इसी कारणवश ऑपरेशन के बाद दर्द भी कम होता है, और घाव से संबंधित कॉम्प्लिकेशन भी कम होते हैं। मरीज को हॉस्पिटल्स से जल्द छुट्टी मिल जाती है
ऐसे हुई सर्जरी
प्रो. अशोक के मुताबिक प्रतापगढ़ निवासी प्रदीप सिंह आमाशय कैंसर से ग्रस्त थे जिसके कारण उन्हें कई तरह की परेशानी हो रही थी। कैंसर के कारण वह खाना नहीं खा पा रहे थे जिसके कारण वह कुपोषण के शिकार हो गए । तमाम आवश्यक तत्वों की कमी हो गयी थी। पहले उनमें आवश्यक तत्वों की कमी पूरी की गयी। फिर अमूमन ओपेन विधि ( पेट पर लंबा चीरा लगा कर) होने वाली सर्जरी को लेप्रोस्कोप से करने का फैसला लिया गया। कैंसर आमाशय के मुंह पर था जिसके लिए बहुत छोटा होल बना कर अंदर जा कर खाने की नली और आमाशय को अलग करने के साथ आमाशय के 75 फीसदी हिस्से को निकाला साथ ही आमाशय के आस पास की नसों की ग्रंथियों और ओमेंटम को भी निकालना पड़ता है, जो कि एक बड़ी जटिल और अति सतर्क होकर करने वाली प्रक्रिया है। जिससे दोबारा कैंसर की आशंका न रहे। फिर बचे हुए 25 फीसदी आमाशय को छोटी आंत से जोड़ दिया जिससे आमाशय की कमी भी पूरी हो गयी। सर्जरी पूरी तरह सफल रही।
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यह होती है परेशानी
आमाशय का कार्य खाने को मथने और पचाने का होता है। इसमें कैंसर होने पर मरीज को खाने पीने में तकलीफ, उल्टी होती है और उसका वजन धीरे धीरे कम होने लगता है
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