पीजीआइः दो सौ बच्चों में लगा इलेक्ट्रानिक कान दौड़ पड़ी जिंदगी की गाड़ी
न्यूरोआंटोलाजी में शुरू होगा पाठयक्रमविश्व श्रवण दिवस पर पीजीआई में हुआ जागरूकता कार्यक्रम
जंम से सुनाई न पड़ने की परेशानी से ग्रस्त दो सौ से अधिक बच्चों में इलेक्ट्रानिक कान उनके जिंदगी में तेजी ला दी है। विश्व श्रवण दिवस के मौके पर संजय गांधी पीजीआई में सुनो ..सुनाओं थीम पर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में न्यूरो सर्जरी विभाग के ईएनटी विशेषज्ञ प्रो अमित केशरी ने बताया कि इलेक्ट्रानिक कान जंम जात बहरे पन के शिकार बच्चों के जीवन में उम्मीद की लहर पैदा कर रही है। दौ से अधिक ऐसे बच्चों में काक्लियर इंपलांट किया गया है। इस मौके पर कब और किसमें इसकी जरूरत है सहित तमाम जानकारी से युक्त पुस्तिका भी जारी की गयी है। काक्लियर इंपलांट लगाने के लिए अनुदान भी मिल रहा है जिसमें विकलांग कल्याण विभाग के अलावा दूसरे स्रोतों से सहायता मिल रही है। इलेक्ट्रानिक मशीन के इंपलांट के बाद बच्चे सुनने और बोलने लगे है। अब वह सामान्य बच्चों के स्कूल में जाने लगा है। निदेशक प्रो.आरके धीमन ने पुस्तिका का विमोचन करने के बाद कहा कि भारत में न्यूरो आंचोलाटी विभाग नहीं है। इसको बढावा देने के साथ इस क्षेत्र में कोर्स शुरू करने की जरूरत है। सुनाई न देना एक बडी विकलांगता है । यूपी में यह परेशानी अधिक है। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो. सोनिया नित्यानंद ने कहा कि बुजुर्गों में भी सुनाई न देने की परेशानी है जिसके कारण याददाश्त में कमी आती है। इस दिशा में काम करने की जरूरत है। न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. संजय बिहारी ने कहा कि सही समय पर सही इलाज से सुनाई देने की क्षमता वापस आ सकती है।
एक हजार में 6 बच्चों में सुनने की परेशानी
प्रो.केशरी के मुताबिक एक हजार में 6 बच्चों में सुनने की परेशानी होती है जिसमें दो से तीन बच्चों में इंप्लांट की जरूरत होती है बाकी में हियरिंग एड से काम चल जाता है। इलाज बच्चे के एक साल की उम्र के बाद होने से सफलता दर अघिक होती है।
विकलांग कल्याण विभाग ने 30 बच्चों में कराया इंपलांट
विकलांग कल्याण विभाग ने दिया। डिप्टी डायरेक्टर रोहित और कोआर्डीनेटर विजय लक्ष्मी ने बताया कि पीजीआइ में 30 बच्चों में काक्लियर इंपलांट के लिए विभाग ने मदद किया जो आगे भी जारी रहेगी। आडियोटेक्नोलाजिस्ट राकेश कुमार श्रीवास्तव और केके चौधरी के मुताबिक सुनने की क्षमता का परीक्षण आडियोमेट्री से करने के बाद तय किया जाता है कि कितनी परेशानी है क्या बेहतर उपचार है।
कैसे होता है इंप्लांट
कॉकलियर इंप्लांट उपकरण है, जिसे सर्जरी के द्वारा कान के अंदरूनी हिस्से में लगाया जाता है और जो कान के बाहर लगे उपकरण से चालित होता है। कान के पीछे कट लगाते है और मैस्टॉइड बोन (खोपड़ी की अस्थाई हड्डी का भाग) के माध्यम से छेद किया जाता है। इस छेद के माध्यम से इलेक्ट्रॉइड को कॉक्लिया में डाला जाता है। कान के पिछले हिस्से में पॉकेट को बनाया जाता है, जिसमें रिसीवर को रखा जाता है। सर्जरी के लगभग एक महीने के बाद, बाहरी उपकरणों जैसे माइक्रोफोन, स्पीच प्रोफेसर और ट्रांसमीटर को कान के बाहर लगा दिया जाता है।
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