गुरुवार, 11 मार्च 2021

डायलिसिस पर रहने वाले किडनी मरीजों में कुछ साल बाद हो जाता है मल्टी आर्गन फेल्योर -ऐसे में तीमारदार लें समझ कर फैसला

 

डायलिसिस पर रहने वाले किडनी मरीजों में कुछ साल बाद हो जाता है मल्टी आर्गन फेल्योर

 

 डायबिटीज और हाई बीपी सबसे बडा किडनी का दुश्मन 

 



किडनी के काम न करने की स्थित में 80 फीसदी मरीजों में इंड स्टेज रीनल डिजीज( ईआरडीएस) होता है जिसमें जिंदगी चलाने के लिए हीमोडायलिसिस या पेरीटोनियल डायलिसिस ही सहारा होता है खास तौर पर उन लोगों के लिए जो किडनी ट्रांसप्लांट नहीं करा सकते है। किडनी ट्रांसप्लांट होने के पीछे आर्थिक स्थित के आलावा मरीज की शारीरिक स्थिति और संसाधन की कमी बड़ा कारण है। विश्व किडनी दिवस के मौके पर संजय गांधी पीजीआइ के नेफ्रोलाजी विभागके प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद कहते है कि डायलिसिस पर रहने वाले मरीजों की कुछ सालों में 70 से 80 फीसदी लोगों की शारीरिक स्थित खराब हो जाती है जिसमें लिवर,दिलफेफड़े सहित कई अंगों की कार्यप्रणाली गड़बड़ हो जाती है। मल्टी ऑर्गन फेल्योर हो जाता है।  ऐसे में मरीज को आईसीयू की जरूरत होती है ।  इस स्थित में आईसीयू मेंभी कुछ करने को नहीं होता केवल वेंटीलेटर पर मरीज की सांस चलती है। इसलिए बचाव ही उपाय है। डायबिटीज और हाई बीपी सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर है इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।  

सत्य को करें स्वीकार 

ऐसी स्थिति  मरीज के सहायक और तीमारदार के लिए काफी जटिल होती है । बड़े धैर्य से सोचने की जरूरत है कि आखिर कब तक आईसीयू में सांस चलाएंगे.... सोचते है कि चमत्कार हो जाएगा। आर्थिक फायदा होता और मरीज के तीमारदार आर्थिक शोषण के शिकार होते है। प्रो.नरायन कहते है कि ऐसी स्थित में परिजनों को बहुत गंभीर होकर सोचने की जरूरत है। ऐसे में पैलेटिव केयर की जरूरत होती है जिससे सम्मान जनक बिना दर्द के जीवन अंतिम पल मरीज के कट सके।

 

तीमारदार भी हो रहे बीमार

 मरीज के साथ तीमारदार भी हो रहे है बीमार प्रो.नारायण प्रसाद कहते है कि किडनी मरीज के तीमारदार भी शारीरिकसामाजिक और आर्थिक परेशानी के शिकार हो जाते है। ऐसे में उनको मरीज के साथ इलाज के हर पहलू से अवगत कराना जरूरी है। देखा है कि तीमारदारों में  थकानदर्दअवसादसंज्ञानात्मक हानिजठरांत्र संबंधी समस्याएं और नींद की समस्या देखने को मिलती है।   

 

एक साल में 111 डायलिसिस स्टेशन 

 

प्रो. नरायन प्रसाद ने बताया कि  इस वर्ष के अंत  तक डायलिसिस स्टेशनों को 60 से बढ़ाकर 111 करने का लक्ष्य है। कोशिश होगी कि संस्थान में डायलिसिस के आने वाले किसी मरीज को निराश न होना पड़े। 60 डायलिसिस मशीन   प्रति दिन तीन शिफ्ट चलाते हैं जिससे प्रति वर्ष 35,000 से 40,000 डायलिसिस करते हैं।   


400 लोग कर रहे ट्रांसप्लांट का इंतजार


 रीनल सेंटर तैयार हो रहा है जिसके जरिए आने वाले पांच साल में  प्रति सप्ताह 6-8 प्रत्यारोपण और अगले 10 साल 10-15 मरीजों में किडनी ट्रांसप्लांट संभव होगा। अभी साल में 120 से 130 किडनी ट्रांसप्लांट संभव हो पा रहा है जिसके कारण 400 लोग वेटिंग में है।  

 

 फैक्ट-   

300 मरीजों की रोज ओपीडी

-    150 मरीज पेरीटोनियल डायलिस पर

-    1500 मरीज ट्रांसप्लांट मरीज फालोअप पर

-    40 हजार हीमो डायलिसिस हर साल

 -    1600 डायलिसिस सेशन कोरोना काल में

    - 45 किडनीट्रांसप्लांट कोरोना काल में

 - 40,000हीमोडायलिसिस हर साल

- 10 से 12 हजार हीमो डायलिसिस  पर हर माह खर्च

- 15 से 18 हजार पेरीटोनियल डायलिसिस पर हर माह खर्च

- 3 लाख ट्रांसप्लांट पर खर्च

- 15 से 20 हजार हर माह ट्रांसप्लांट के पहले साल दवा पर खर्च

- 4 से 5 हजार माह ट्रांसप्लांट के एक साल बाद खर्च

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