विश्व किडनी जागरूकता दिवस 11 मार्च की थीम है लिविंग वेल विथ किडनी डिजीज है। किडनी की बीमारी से बचाव, इलाज सहित अन्य तमाम जानकारी
संजय गांधी पीजीआई के नेफ्रोलाजी विभाग के प्रमुख गुर्दा रोग विशेषज्ञ प्रो. नरायन प्रसाद
क्या आप का गुर्दा ठीक है....
किडनी की परेशानी के लक्षण शुरूआती दौर में तो समहसू नहीं होते है इस लिए अपनी किडनी के बारे में खुद ही जानकारी हासिल करने की जरूरत है यानि क्या आपका गुर्दा ठीक है...यह अपने से सवाल करें कि यही सवाल अपने मित्रों और रिश्तेदारों से करें। इस सवाल का जवाब केवल पेशाब के परीक्षण से ही मिल सकता है। हाई रिस्क ग्रुप के लोगों को हर हाल में परीक्षण कराते रहना चाहिए। डायबटीज और उच्च रक्त चाप से ग्रस्त लोगों में गुर्दा प्रभावित होने की आशंका दूसरे लोगों की तुलना में दस गुना अधिक है। मोटापा, धूम्रपान, डायबटीज, उच्च रक्त चाप, उम्र पचास से अधिक, गुर्दे में पथरी, पेशाब में रूकावट है तो आप हाई रिस्क ग्रुप में आते हैं। किडनी खराबी 65 फीसदी से ऊपर हो जाए तो ही पता चलता है। वह भी जांच के जरिए ही सामने आता है।
सौ में 17 की किडनी बीमार
सौ में से 17 लोगों की किडनी बीमार है। डायबिटीज के कारण तीस-चालीस फीसदी लोग किडनी फेल्योर के शिकार होते हैं। पंद्रह फीसदी लोग हाइपरटेंशन की वजह से इसकी चपेट में आते हैं। हर साल लगभग दो लाख लोग किडनी ट्रांसप्लांट की लाइन में होते हैं, पर बमुश्किल तीन हजार मरीजों को ही यह सहूलियत मिल पाती है।
क्या है किडनी
मुट्ठी के आकार की किडनी शरीर के निचले हिस्से में कमर में दाएं व बाएं दोनों तरफ होती है। स्त्री - पुरुष दोनों में आकार लगभग समान होता है। एक खराब हो जाए तो भी दूसरी काम करती रहती है। इसका मुख्य काम है शरीर के विषैले तत्वों को पेशाब के रास्ते बाहर निकालना। हृदय द्वारा पंप किए गए रक्त का बीस फीसदी हिस्सा किडनी में आता है। किडनी यहां खून में मौजूद विषैले तत्वों को छानकर अलग कर देती है और खून साफ हो जाता है।
सौ रूपए में संभव जानना किडनी का हल
पचास से सौ रूपए खर्च कर अपने गुर्दे को खराबी के अतिम स्टेज में पहुंचने से बचा सकते हैं। यह फैसला आप को लेना है कि कि आप सौ रूपया या इलाज के लिए तीन से चार लाख रूपए खर्च करना चाहते हैं। गुर्दा की खराबी की लास्ट स्टेज में जाने से रोकें। गुर्दा एक दिन में खराब नहीं होता है खराबी की अंतिम स्टेज में आने में आठ से दस साल लगते हैं।
सीरम क्रिएटनिन लेवल से लगता है गुर्दे की स्थित का पता
गुर्दे की खराबी का पता काफी पहले स्टेज में सिरम क्रिएटनिन एवं पेशाब में प्रोटीन का परीक्षण कर लगाया जा सकता है। इस परीक्षण से भी एडवांस परीक्षण पेशाब में माइक्रोएलब्यूमनि परीक्षण है जिसमें 24 घंटे का पेशाब एकत्र कर उसमें इसका परीक्षण किया जाता है। देखा गया है कि अस्सी फिसदी लोग तब अस्पताल तब आते हैं जब गुर्दा अपने खराबी के अंतिम स्टेज में होता है। इसे क्रानिक किडनी डिजीज कहते हैं।
डायलसिस और पेरीटोनियल डायलसिस के जरिए मिलती ही राहत
हीमो डायलसिस और पेरीटोनियल डायलसिस के जरिए कुछ हद तक रहात संभव है लेकिन यह पूर्ण उपचार नहीं है। होमो डायलसिस के लिए डायलसिस सेंटर जाना पड़ता है पेरीटोनियल डायलसिस घर पर ही संभव होती है। हम लोगों दोनो तकनीक से काम कर रहे है। दोनो डायलसिस के अपनी जटिलताएं है।
ट्रांसप्लांट ही पूर्ण उपचार
किडनी ट्रांसप्लांट ही पूर्ण उपचार है । ट्रांसप्लांट के बाद दवाओं पर रहना होता है और तमाम सावधानी के जरिए 15 से 20 साल तक लोग ठीक रहते है। हम लोग किडनी दाता का ब्लड ग्रुप मैच नहीं कर रहा है तो भी किडनी ट्रांसप्लांट करने में सफल हो रहे है। किडनी ट्रांसप्लांट मंहगा होने के साथ ही संसाधन की कमी पूरे देश में है। किडनी ट्रांसप्लांट से पहले और ट्रांसप्लांट के तुरंत बाद से गुर्दा रोग विशेषज्ञ की देख –भाल में रहना होता है।
एक्ट किडनी इंजरी के मामले में दोबोरा काम करने है किडनी
एक्यूट किडनी इंजरी जिसमें किडनी एक दम से काम करना बंद कर देता है। ऐसे 90 फीसदी मामलों में सही समय पर सही इलाज से किडनी दोबारा सही तरीके से काम करने लगती है। इन मरीजों को हमेशा फालोअप में रहना चाहिए क्योंकि इनमें दोबारा किडनी खराबी की परेशानी दोबारा संभव है। खास तौर यदि एकेआई से बाद पेशाब में प्रोटीन, आरबीसी और डब्लूबीसी लगातार आ रहा है। 30 फीसदी किडनी खराबी के मामले एक्यूट किडनी इंजरी के होते है । इनमें से आठ फीसदी लोगों में क्रानिक किडनी डिजीज की आशंका रहती है। इस लिए फालोअप पर रहना चाहिए। हर साल 10 लाख से ज़्यादा मामले देश में होते हैं। कारण पता करने के लिए प्रयोगशाला परीक्षणों , इमेजिंग की हमेशा आवश्यकता होती है। कुछ ही घंटों या दिनों के भीतर गुर्दे तेज़ी से अचनाक काम करना बंद कर देते हैं। यह घातक हो सकता है। गंभीर रूप से बीमार और पहले से ही अस्पमताल में दाखिल लोगों के साथ ऐसा सबसे ज़्यादा होता है।
यह आदते किडनी के लिए भारी
आम आदतें, जो किडनी खराब करती हैं पेशाब रोकना , कम पानी पीना , बहुत ज्यादा नमक खाना,’ हाई बीपी व शुगर के इलाज में लापरवाही , ज्यादा मात्र में दर्द निवारक दवाएं लेना , सॉफ्ट ड्रिंक्स, सोडा और बहुत शराब पीना , विटामिन-डी की कमी , प्रोटीन, पोटैशियम, सोडियम, फॉस्फोरस वाले खाद्य पदार्थों का बहुत ज्यादा लेना ’ अनियमित जीवन शैली जब हो जाए। गुर्दे में पथरी छोटे आकार की पथरियां कई बार ज्यादा पानी पीने से ही मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती हैं।
किडनी रहेगी बची
- विटामिन-डी और विटामिन-बी 6 की आपूर्ति दुरुस्त हो तो किडनी की बेहतर सुरक्षा होती है।
-’ विटामिन-सी किडनी की सेहत के लिए अच्छा रहता है। नींबू-पानी, आंवला, संतरा आदि पर्याप्त लें।’
-किडनी स्वस्थ है तो पर्याप्त मात्र में पानी पिएं। उसके बाद डॉक्टर की सलाह से पानी की मात्र तय करें। कई स्थिति में ज्यादा पानी पीना नुकसानदेह भी हो सकता है।
- नमक कम खाएं। कई बार नमक कम करने या बंद कर देने से किडनी को काफी राहत मिल जाती है। ’
- प्रोटीन की मात्र नियंत्रित रखें। -शरीर के वजन के हिसाब से 0.5 से 0.8 मिलीग्राम प्रति किलो हर रोज के लिए काफी है।
- खीरा, ककड़ी, गाजर, पत्तागोभी, लौकी, आलू और तरबूज का रस फ़ायदेमंद होता है। सब्जियों में तोरी, घीया. टिंडा, धनिया, परवल कच्चा पपीता, कच्चा केला सेम सहजन की फली खाना फ़ायदेमंद रहता है।
-’ जामुन और करौंदा जैसे फल किडनी से यूरिक एसिड और यूरिया को बाहर निकालने में सहायता करते हैं।
- दैनिक आहार में दही और छाछ शामिल करें। इससे मूत्र मार्ग के संक्रमण कम होते हैं।
- सेब, पपीता, अनन्नास, अमरूद, बेर जैसे फल खाएं।
- 35 के बाद वर्ष में कम से कम एक बार बीपी और शुगर की जांच कराएं। बीपी या डायबिटीज़ के लक्षण मिलने पर हर छह माह में यूरिन और खून की जांच कराएं।
किडनी स्टोन का समय पर उपचार न होने पर किडनी पर पड़ता है कुप्रभाव
ऐसे में किडनी में स्टोन का पाया जाना अब आम बीमारी हो गई है। गर्मी के दिनों में इसका अटैक 40 फीसदी तक बढ़ जाता है। डिहाइड्रेशन की वजह से भी किडनी में स्टोन होने की संभावना बढ़ जाती है, क्यों कि पसीना निकलने की वजह से शरीर में पानी की मात्रा कम होने लगती है। किडनी में स्टोकन को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इसकी वजह से गुर्दे फेल होने की संभावना बढ़ जाती है।
क्यो बनता है किडनी स्टोन
जब भोजन में कैल्शियम, फॉस्फोरस और ऑक्जेलिक अम्ल की मात्रा अधिक होती है तो पथरी का निर्माण होने लगता है। इन तत्वों के सूक्ष्म कण मूत्र के साथ निकल नहीं पाते और किडनी में एकत्र होकर पथरी की उत्पत्ति करते हैं। सूक्ष्म कणों से मिलकर बनी पथरी किडनी में असहनीय पीड़ा को देती है। उन्हों्ने बताया कि किडनी में स्टोन की बीमारी को लेकर आजकल 25 से 45 वर्ष आयु के ज्यादा मरीज सामने आ रहे हैं। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में इसकी समस्या ज्यादा होती है।
कैल्शिायम और यूरिक एसिड से होते हैं किडनी स्टोन
किडनी का स्टोन आमतौर से कैल्शियम और यूरिक एसिड की वजह से होते हैं, लेकिन 90 से 95 फीसदी कैल्शियम ऑक्ज्लेट की वजह से बनते हैं। किडनी में स्टोन के कोई लक्षण नहीं होते, जब तक कि वह यूरिनरी ट्रैक में रुकावट पैदा नहीं कर दे। जब इसमें रुकावट होती है तो यूरिनरी ट्रैक फैल जाती है और खिंचाव के कारण मांसपेशियों में ऐंठन शुरू होने लगती है। इस वजह से पेट के निचले हिस्से और किडनी में तेज दर्द होने लगता है।
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