हजार में 6 बच्चों में होती है कम सुनने की परेशानी
जंम के दो से तीन माह बाद ही करें सुनने क्षमता का आकलन
जागरण संवाददाता। लखनऊ
यदि आपके एक से चार वर्ष तक के बच्चे को बोलने और सुनने में दिक्कत है तो ईएनटी सर्जन तुंरत दिखाए । परिवारीजन बच्चे के पैदा होने पर उसके बोलने और सुनने की क्षमता का आंकलन दो से तीन वर्ष या उससे अधिक समय तक करते रहते हैं। ऐसा करना सही नहीं है। संजय गांधी पीजीआइ के न्यूरो ईएनटी सर्जनी प्रो. अमित केसरी ने संस्थान में आयोजित 37वें यूपीएओआई कॉन 2019 में बताया कि विदेशों में बच्चे के पैदा होने पर ही उसके कान का टेस्ट किया जाता है पर भारत में ऐसा नहीं है। कान के तीन हिस्से होते हैं, जिनमें एक बाहरी आवरण होता है जो कि सामान्य तरीके से दिखता है। दूसरा मिडिल ईयर जिसमें कान में पर्दा और हड्डी होती है। तीसरे हिस्से को चिकित्सा की भाषा में काकलिया बोलते हैं। यह काकलिया दिमाग और कान के बीच आने वाला हिस्सा है जो कि गर्भावस्था के दौरान (18 से 20 सप्ताह) ही विकसित हो जाता है। यदि पैदा होने के कुछ दिन बाद से बच्चा सही से नहीं सुनता और बोलता है तो उसका मतलब है कि काकलिया सही से विकसित नहीं हुआ है। इससे आवाज दिमाग तक नहीं पहुंच पाती है। एक हजार बच्चों में से चार से छह बच्चों को सुनने की समस्या होती है।
कान की हड्डी मूवमेंट न होने सुनना हो सकता है बंद
अचानक सुनाई देना बंद हो गया तो सलाह लें कई बार कान का पर्दा तो ठीक है पर कान की एक हड्डी का मूवमेंट न होने से सुनने की क्षमता खत्म हो जाती है। दूरबीन विधि से 0.5 एमएम के छेद से पिस्टन इम्प्लांट डाला जाता । जबकि पहले कान के पीछे 1 एमएम का चीरा लगाकर किया जाता था। डॉक्टरों का कहना है कि पहले सर्जरी के बाद करीब दस प्रतिशत मरीजों में चक्कर की दिक्कत आती है, लेकिन दूरबीन विधि से यह समस्याएं नहीं आती है।
नाक बंद और नाक से खून तो संभव है ट्यूमर
सांस लेने में तकलीफ हो जो इसे नजरअंदाज न करें कई बार नाक का एक हिस्सा बंद हो जाता है। उसके आठ महीने बाद नाक से खून आने लगता है। नाक का दूसरा हिस्सा भी बंद होने की स्थिति में आ जाता है। इससे मरीज की सांस उखड़ने लगी। हम लोग जांच में देखते तो कई बार ट्यूमर होता है। समय पर न निकालने से आंख तक पहुंच जाता है। एंडोस्कोपी विधि से नाक के रास्ते जाकर ट्यूमर निकाल देते है।
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