गुरुवार, 28 नवंबर 2019

प्रो.एके त्रिपाठी को प्रो.राकेश कपूर ने सौपा पीजीआइ निदेशक का कार्यभार



प्रो.एके त्रिपाठी को प्रो.राकेश कपूर ने सौपा पीजीआइ निदेशक का कार्यभार



 कर्मचारी संगठन और अधिकारियों से मुलाकात 
(जासं)  संजय गांधी पीजीआइ का पांच साल निदेशक पद पर रहने के बाद प्रो.राकेश कपूर ने अपना कार्यभार लोहिया संस्थान के निदेशक प्रो.एके त्रिपाठी को कार्यभार गुरूवार को सुबह दस बजे सौप दिया। प्रो.कपूर ने यूरोलाजी विभाग में आज ज्वाइन कर लिया। दो दिसंबर को संस्थान में उनका अंतिम कार्य दिवस होगा। 12 बजे के बाद वह चले गए। प्रो. त्रिपाठी ने कार्य भार ग्रहण करने के बाद सहयोगी कर्मचारियों , अधिकारियों , मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो. अमित अग्रवाल सहित अन्य से मुलाकात करने के बाद वापस लोहिया संस्थान चले गए। बताया जा रहा है वह रोज दो बजे के बाद संस्थान में समय देंगे। इसी बीच कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष जितेंद्र यादव, महामंत्री धर्मेश कुमार, वरिष्ठ मंत्री रेखा मिश्रा , नर्सिग एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला और महामंत्री सुजान सिंह सहित तमाम कर्मचारी नेताओं ने औपचारिक मुलाकात कर स्वागत किया। कर्मचारी नेताओं ने कहा कि कार्यवाहक निदेशक का हर स्तर पर हम लोग सहयोग करेंगे। 

रविवार, 24 नवंबर 2019

प्रमोशन न होने से नाराज है पीजीआइ संकाय सदस्य -- मेडिकल एजूकेशन में लंबित है फाइल

पीजीआइ फैकल्टी फोरम की आम सभा में लगे उपेक्षा के आरोप



प्रमोशन न होने से नाराज है पीजीआइ संकाय सदस्य
मेडिकल एजूकेशन में लंबित है फाइल

संजय गांधी पीजीआइ फैकल्टी फोरम की आम सभा शनिवार को हुई जिसमें  में दो माह पहले हुए एसेस्समेंट के बाद भी प्रमोशन न होने पर रोष जताया गया। संकाय सदस्यों ने सरकार ने तुरंत हस्ताक्षेप करने की मांग की है। फोरम इस संबंध में सकार और राज्यपाल को ज्ञापन देने का फैसला लिया है। फोरम के पदाधिकारियों का कहना है कि दो माह पहले प्रमोशन के लिए एसेस्समेंट हुआ था जिसके बाद अनुमति के लिए फाइल शासन को भेजी गयी वहां से फाइल मेडिकल एजूकेशन भेज दी गयी जहां पर लंबित है। ऐसा पहली बार हुआ।  संस्थान की संकाय सदस्यों की समिति प्रमोशन के लिए  एस्समेंट करती है जिसमें कई पहलुओं पर सही पाए जाने पर प्रमोशन की संस्तुति करती है।   निदेशक की अनुमति के बाद शासन में नियुक्ति अधिकारी मुख्य सचिव की अनुमति मिल जाती थी और समय पर प्रमोशन हो जाता था लेकिन अब वहां से फाइल मेडिकल एजूकेशन भेज दी गयी जिससे यह परेशानी खडी हुई है। मेडिकल एजूकेशन विभाग ने दो बार जानकारी मांगी जिसमें पूछा गया कि आधार पर प्रमोशन हुआ आदि इसका जवाब भी संस्थान ने दे दिया । इसके बाद भी प्रमोशन नहीं हुआ। हम लोग दो साल से प्रमोशन का इंतजार कर रहे है समय पर प्रमोशन न होने से काफी रोष है। इसके आलावा सातवें वेतन आयोग के आनुसार पे फिक्स नहीं हुआ जिसमें गुणांक सही नहीं था यह भी 6 महीने से लंबित है। फोरम के सचिव प्रो.एमएस आंसारी, अध्यक्ष प्रो.अशोक कुमार के आलावा प्रो.संदीप साहू के आलावा   कई विभागों के संकाय सदस्यों ने अपनी बात रखी।   

दिल के वाल्व में खराबी हो सकती बिना सर्जरी भी दूर---गले का लंबा संक्रमण कर सकता है दिल का वाल्व खराब

दिल के वाल्व में खराबी हो सकती बिना सर्जरी भी दूर


गले का लंबा संक्रमण कर सकता है दिल का वाल्व खराब
पीजीआई में सी वी टी एस पर सेमिनार
-

बुखार 
 के साथ ही गले में यदि लगातार संक्रमण रहता है। इसके साथ ही यदि गले के अंदरूनी हिस्से में सूजन और जलन है तो संजीदा जो जाएं। यह रूमेटिक बुखार के लक्षण हैं। इसमें पैर और चेहरे के साथ ही शरीर में सूजन बढ़ जाती है। गले में यह संक्रमण स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया के द्वारा होता है। इसे रूमेटिक दिल की बीमारी (आरएचडी) कहते हैं। यह बातें रविवार को कार्डियक वैस्कुलर एंड थोरेसिक प्रोग्रेसिव एसोसिएशन द्वारा पीजीआई में आयोजित दिल के वाल्व की मरम्मत पर विषय पर आयोजित वर्कशाप में बंगलुरु के हार्ट सर्जन डॉ. प्रशन्ना सिम्हा ने कहीं। वर्कशाप में पीजीआई के हार्ट सर्जन प्रो. शान्तनु पाण्डेय और प्रो गौरंग मजूमदार, लोहिया संस्थान के डॉ. धर्मेन्द्र श्रीवास्तव, के अलावा डॉ. एके श्रीवास्तव, डॉ. खालिद, डॉ. विशाल व डॉ. विजयंत ने वॉल्व की मरम्मत के बारे में जानकारी दी।

वाल्व में सिकुड़न के साथ लीकज हो सकता

 यह बीमारी 5 से 15 साल के बच्चों को गिरफ्त में लेती है। यह बीमारी बच्चों के दिल के वाल्व में सिकुड़न के साथ ही दिल कमजोर कर देती है। इस सिकुड़न से दिल के वाल्व में लीकेज हो जाता है। वाल्व का समुचित इलाज नहीं मिलने पर दिल की धड़कन अनियंत्रित हो जाती है। इससे दिल में खून के थक्के जमने के साथ ही लकवा या पैरालिसिस और दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। इसका इलाज बैलून वाल्वोप्लास्टी और ओपन हार्ट सर्जरी के जरिए संभव है। यह काफी किफायती है।
निम्न आय वर्ग के बच्चों में ज्यादा बीमारी होती है

निम्न आय वर्ग में अधिक बीमारी
प्रो. शान्तनु पाण्डेय ने बताया भीड़भाड़ व अधिक जनसंख्या वाले इलाकों में रहने वाले बच्चे इस बीमारी की जद में ज्यादा आते हैं। यह बीमारी निम्न आय वर्ग के बच्चों में अधिक होती है। यदि इसका शुरूआती दौर में इलाज मिल जाए तो मरीज ठीक हो सकता है। कुछ बच्चों में वाल्व की दिक्कत जन्मजात होती है।


प्रो. शांतनु पाण्डेय ने बताया रूमेटिक हार्ट डिजीज के लक्षण पाए जाने पर दिल की जाँच समय समय पर करवाते रहिए।दिल की जाँच के लिए दिल के डॉक्टर (कार्डियोलॉजिस्ट) से ही जाँच करवाए।गले के संक्रमण को रोकने के लिए नियमित रूप से डॉक्टर की सलाह से एंटीबायोटिक की दवाइयाँ लेते रहिए।


सीरम क्रिएनिन अचानक बढे तो तुरंत न कराएं डायलसिस---इंफेक्शन और दर्द की दवा से एक दम से बढ़ सकता है क्रिएटनिन

सीरम क्रिएनिन अचानक बढे तो तुरंत न कराएं डायलसिस


सीरम क्रिएटनिन नौ देखकर हो हाती है डायलसिस की तैयारी
इंफेक्शन और दर्द की दवा से एक दम से बढ़ सकता है क्रिएटनिन
कुमार संजय। लखनऊ
62 वर्षीय अनंत कुमार को किडनी की परेशानी थी लेकिन सीरम क्रिएटनीन हमेशा सात से कम रहता था। किडनी के खराबी के कोई लक्षण उन्हें परेशान नहीं करता । लगातार जांच कराते रहते थे देखा कि सीरम क्रिएटनीन  नौ के आस-पास पहुंच गया।  कोई परेशानी नही लग रही थी फिर भी परेशान हो गए तुरंत भाग कर संजय गांधी पीजीआइ के किडनी रोग विशेषज्ञ प्रो.नरायन प्रसाद से मिले तो उन्होंने कहा कि इंतजार करिए कुछ करने की जरूरत नहीं है। अनंत कहते है कि आपने लोकल में डाक्टर को दिखाया तो तुरंत डायलसिस के लिए बोला था इसलिए आए है लेकिन प्रो.नरायन के सलाह से तुरंत डायलसिस कराने की झंझट से मुक्ति पा गए। किडनी रोग विशेषज्ञ प्रो.धर्मेंद्र भदौरिया के मुताबिक इस परेशानी के साथ केवल अनंत ही नहीं रोज संस्थान के विशेषज्ञों के पास दो से तीन मरीज पहुंचते है जिनमें क्रिएटनिन  एक दम से  सात से ऊपर हो जाता हैै । ऐसे लोगों की कई बार डायलसिस तक हो जाती है। संस्थान के प्रो.नरायन प्रसाद कहते है कि किडनी की खराबी के मरीजों में  कई बार इंफेक्शन, यूरनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन या दर्द की दवा सेवन करने के कारण सीरम क्रिएटनीन एक दम से बढ़ जाता है ऐसे लोगों में हम लोग होल्ड पर रखते है कारण देखने की कोशिश करते है। कई बार कारण ही दूर होने के साथ फिर सीरम क्रिएटनिन सात से कम हो जाता है। यदि सीरम क्रिएटनिन  सात से अधिक है और पोटैशियम बढा है। रक्त का पीएच 7.3 से अधिक है। सोडियम बाई कार्ब 17 से अधिक है। उल्टी हो रही है या मचली आ रही है। भूख एक दम नहीं लग रही है तो ऐसे मामलों में एक्टिव एक्शन की जरूरत होती है।

क्या है सीरम क्रिएटनिन
क्रिएटनिन एक मेटाबोलिक पदार्थ है जो भोजन को ऊर्जा में बदलने में सहायक होता है और टूटकर एक व्यर्थ पदार्थ ‘क्रिएटिनिन’ में बदल जाता है जिसे किडनी द्वारा ब्लड में छानकर यूरिन के ज़रिये शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। सामान्य तौर पर किडनी इसे छानकर, ब्लड से बाहर निकाल देती है और फिर यह वेस्ट प्रोडक्ट मूत्र के साथ बाहर निकल जाता है लेकिन जब इसकी मात्रा बढ़ जाती है तो ये प्रक्रिया सामान्य रूप से नहीं चल पाती और ऐसा होना किडनी के लिए ख़राब संकेत हो सकता है।

कितना होना चाहिए स्तर


वयस्क पुरुष - 0.6 से 1.2 मिलीग्राम प्रति लीटर प्रति डीएल
 वयस्क महिला-0.5 से 1.1 मिलीग्राम
 टीनेजर्स-  0.5 से 1.0 मिलीग्राम
 बच्चे- 0.3 से 0.7 मिलीग्राम


प्रो.नरायन प्रसाद के मुताबिक कई बार पेशाब के रास्ते में रूकावट के कारण भी सीरम क्रिएटनिन बढ़ जाती है ऐसे में यूरोलाजिस्ट से संपर्क कर कई बार बिना डायलसिस के ही पेशाब का रास्ता सामान्य कर या यूरीन बैग लगाकर से ब्लैडर को खाली करते है इससे भी क्रिएटनिन कम हो जाता है

पीजीआइ के प्रो.शिव कुमार को मिला सम्मान

पीजीआइ के प्रो.शिव कुमार को मिला सम्मान







भारत रत्न इंदिरा गांधी गोल्ड मेडल एवार्ड 


संजय गांधी पीजीआइ के रेडियोलाजिस्ट प्रो. शिव कुमार को भारत रत्न इंदिरा गांधी गोल्ड मेडल एवार्ड से ग्लोबल इकोनामिक प्रोग्रेस एंड रिसर्च एसोसिएशन ने बंगलौर में सम्मानित किया है। यह सम्मान उनके शोध और शिक्षण क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए मिला है। प्रो.शिव कुमार इंटरवेंशन रेडियोलाजी के क्षेत्र में कई तकनीक विकसित किए है जिसमें वैरीकोज वेन का इंरवेंशन तकनीक से इलाज के आलावा गर्भाशय ट्यूमर को बिना सर्जरी इलाज का तकनीक स्थापित किया है। इसके आलावा 55 शोध पत्र के आलावा ग्रामीण क्षेत्र में जा कर खास बीमारी का पता लगाने के लिए आयोध्या जिले में स्कूली बच्चो में गले का अल्ट्रासाउंड कर बच्चों में थायरायाड की बीमारी की दर देख रहे हैं। यह एलार्ड इन्हें आज ही बंगलौर में दिया गया। 

सोमवार, 18 नवंबर 2019

40 के बाद 38 फीसदी में बढ़ जाती है स्वतः गर्भ पात की आशंका


15 से 20 फीसदी महिलाओं में गर्भपात का व्रजपात







 उम्र बढने के साथ बढ़ती जाती है मिसकैरिज की आशंका

सामाजिक और मानसिक रूप से कमजोर बना रहा है मिसकैरिज

कुमार संजय।  लखनऊ

28 वर्षीया आरोही विवाह के दो साल बाद जब प्रिगनेंसी टेस्ट किया और टेस्ट पाजिटिव आया तो पूरा परिवार खूशी से झूम उठा। डाक्टर के पास गए सारी देख रेख होती रही लेकिन गर्भधारण कारण के 12 सप्ताह से पहले रक्त स्राव होने लगा तुरंत डाक्टर के पास गए तो बताया कि मां नहीं बन सकती है क्योंकि गर्भपात हो गया । भ्रण को तुरंत निकालना पडेगा। भ्रूण तो निकाल दिया गया डाक्टर ने दवा लिख कर घर भेज दिया। मां बनने की खुशी छिनने से आरोही शारीरिक और मानसिक रूप से टूट गयी। ऐसी एक नहीं कई आरोही की कहानी है जो गर्भधारण तो करती है लेकिन स्वतः गर्भपात के कारण मां नहीं बन पाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकडो पर गौर करें तो पता लगता है कि 26 लाख मृत शिशु का जंम होता है जिसमें 85 फीसदी मिसकैरेज होता है। संजय गांधी पीजीआइ के मैटर्नल एंड रीप्रेक्टिव मेडिसिन विभाग की स्त्री रोग विशेषज्ञ और इंर्फटलिटी एक्पसर्ट प्रो. इंदु साहू कहती है कि 20 से 25 आयु वर्ग के महिलाओं में 15 से 16 फीसदी प्रिगनेंसी मिस कैरिज होती है। 30 से 38 आयु वर्ग में यह दर 18 से 22 फीसदी देखी गयी है। और 45 के बाद में 70 फीसदी मामलों में मिस कैरिज होता है।  मिस कैरिज की शिकार महिलाएं मां न बनने के कारण समाज से कट जाती है। हमारे समाज में मां बनना एक बडी उपलब्धि मानी जाती है। हम लोग कारण पता कर कुछ हद गर्भधारण में भ्रूण को बचाने की कोशिश करते हैं। तमाम मामलों में कारण का पता नहीं लगता है।
क्या है गर्भपात

जब गर्भावस्था के 20वें सप्ताह से पहले गर्भ में भ्रूण की मृत्यु हो जाए, तो उसे गर्भपात कहते हैं। इसे स्वत: गर्भपात भी कहा जाता है। बहुत से लोगों को लगता है कि गर्भपात बहुत दुर्लभ स्थिति में होता है, लेकिन ऐसा नहीं है।


कारण

-हार्मोनल असंतुलन

-रोग-प्रतिरोधक क्षमता या ब्लड क्लॉटिंग की समस्या।

-थायरॉयड या मधुमेह जैसी समस्याएं।

-क्रोमोजोम असामान्यता

-गर्भाशय असामान्यताएं और असमर्थ सर्विक्स

-इम्यूनोलॉजी डिसऑर्डर

- पीसीओएस (पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम)


रविवार, 17 नवंबर 2019

पीजीआई अब दिमाग के पिछले हिस्से में एन्यूरिज्म का होगा बाईपास से इलाज

पीजीआई में वेस्कुलर न्यूरो सर्जरी अपडेट
अब दिमाग के पिछले हिस्से में एन्यूरिज्म का होगा बाईपास से इलाज
नस की रूकावट को दूर करेगा एम्बोलेक्टमी
















अब दिमाग की पिछले हिस्से में स्थित एन्यूरिज्म का इलाज संभव होगा। संजय गांधी पीजीआइ में आयोजित वेस्कुलर सर्जरी अपडेट में जपाना के प्रो. रूकैया सी दिमाग के पिछले हिस्से के एन्यूरिज्म के इलाज में बाईपास सर्जरी के तकनीक के बारे में जानकारी दी। अपडेट के आयोजक न्यूरोसर्जन प्रो. कुंतल कांति दास, प्रो. कमलेश बैसवारा और मेंदांता के डा. रवि शंकर ने बताया कि एन्यूरिज्म होने पर मुंह पर क्लिप लगाते है। एन्यूरिज्म में क्वायल डालते है लेकिन यह सब तकनीक दिमाग के अगले हिस्से में एन्यूरिज्म होने पर करते है पिछले हिस्से में होने पर केवल इटरवेंशन तकनीक से क्वायल डालते है जो काफी मंहगा है लेकिन आक्सीपोटल पाइवा बाईपास जैसी तकनीक से हम लोग पिछले हिस्से में बाई पास कर सकते हैं। अभी हम लोग इस तकनीक का अधिक इस्तेमाल नहीं करते थे लेकिन इस तकनीक की तमाम चटिलता को सरल बनाने की तकनीक बतायी गयी जिससे हम लोग भी अब करेगे। बाई पास के लिए हाथ और खोपडी की आर्टरी का इस्तेमाल करते है। इस तकनीक में जिस रक्त वाहिका में एन्यूरिज्म होता है उस वाहिका के रक्त प्रवाह को बंद करने के साथ नया रास्ता का रक्त प्रवाह के लिए बनाते हैं। क्वायल तकनीक में खून पतला करने की दवा चलानी पड़ती है । बाई पास में इसकी भी जरूरत खत्म हो जाएगी। इसमें खर्च पचास हजार तक ही आता है। इसके आलावा नसो की गुच्छा बनने की बीमारी एवीएम में सर्जरी के तकनी के बारे में जानकारी दी गयी। प्रो. अरूण श्रीवास्तव ने बताया कि  कई बार नस में क्लाट इंटरवेंशन से नहीं निकल पाता है ऐसे में नस को खोलकर क्लाट निकाल कर दोबारा नस को जोडा जा सकता है ।  यह माइक्रो सर्जरी है जो काफी जटिल होती है।  इस तकनीक  को एम्बोलेक्टमी कहते हैं। 

 क्या है एन्यूरिज्म
    प्रो. अरूण श्रीवास्तव ने बताया कि   धमनी के किसी स्थानीय हिस्से में उभार आ जाता हैं ।  धमनी एक नलिका के सामान होती हैं जहाँ रक्त संचार होता हैं लेकिन जब कही धमनी की दीवार कमजोर हो जाती हैं तो इस जगह दवाब बहुत अधिक बढ़ जाता हैं और उभार आ जाता हैं और यह गुब्बारे का आकर ले लेता हैं | यह दवाब कई बार इतना अधिक हो जाता हैं की धमनी की नलिका फट जाती हैं और खून आने लगता हैं और आसपास के उतकों में प्रभाव दिखना शुरू हो जाता हैं | इससे दिमाग के न्यूरान डैमेज हो जाते है

मिर्गी है तो न हो परेशान दवा से पूरी तरह संभव है इलाज

मिर्गी है तो न हो परेशान दवा से पूरी तरह संभव है इलाज


70 फीसदी पूरी तरह हो जाते है ठीक
 कुमार संजय। लखनऊ
25 वर्षीया रागिनी को 6 साल से मिर्गी के दौरे पड़ते हैं। जांच में पता लगा कि उन्हें मिर्गी है। शुरुआती 2-3 साल तो मैं लापरवाह रही। वक्त पर दवा और खाना नहीं खाती थी। न जब समस्या बढ़ गई तो मैंने ढंग से इलाज कराया। अब मैं वक्त पर पौष्टिक खाना खाती हूं । पूरी घंटे की नींद लेती हूं। तनाव से दूर रहती हूं।  किसी वजह से नींद पूरी न हो या तनाव हो जाए तो दौरा पड़ने के चांस रहते हैं।  शरीर अकड़ जाता हैचक्कर आने लगते हैंबोल नहीं पाती और कई बार गिर भी जाती थी।  चोट भी लगती है।  किसी भी बीमारी को अपनी जिंदगी से बड़ा न बनने दें। ऐसी तमाम मरीज रोज संजय गांधी पीजीआइ के न्यूरोलाजी विभाग में फालोअप पर वाले बयां करते है। विश्व मिर्गी जागरूकता दिवस (17 नवंबर) के मौके पर  संजय गांधी पीजीआइ के न्यूरोलाजिस्ट प्रो.सुनील प्रधान , प्रो,संजीव क्षा , प्रो.वीके पालीवाल , प्रो.विनीता एलिथाबेज ने बताया कि मिर्गी की  रुटीन ब्लड टेस्ट ,ईईजी एआरआईसीटी स्कैन से बीमारी की पुष्टि होती है। 70 फीसदी तक मरीज सिर्फ एक दवा खाने से ठीक हो जाते हैं।  करीब 15 फीसदी मरीजों को  2-3 दवाएं खानी पड़ती है।  15 फीसदी को ज्यादा दवाओं या सर्जरी आदि की जरूरत पड़ती है। 
प्रति एक हजार में पांच लोगों में मिर्गी की परेशानी
हमारे देश में औसतन प्रति हजार में से 5-6 लोग इस रोग से पीड़ित हैं।  देश में मिर्गी रोगियों की संख्या प्रति वर्ष पांच लाख की दर से बढ़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसारप्रतिवर्ष 25 लाख लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं।



क्या है मिर्गी 
दिमाग में असामान्य तरंगें पैदा होने लगती हैं। यह कुछ वैसा ही है जैसे कि शॉर्ट सर्किट में दो तारों के बीच गलत दिशा में तेज करंट दौड़ता है। इसमें मरीज को झटके-से महसूस होते हैंवह जमीन पर गिर जाता हैदांत भिंच जाते हैं और वह कुछ देर के लिए बेहोश हो जाता है। दिन के बच्चे से लेकर सौ साल के बुजुर्ग तक को मिर्गी हो सकती है।
किन स्थितियों में पड़ता है दौरा 
-बेहद तनाव 
-दवा मिस कर देना 
-कम नींद लेना 
-हॉर्मोंस में बदलाव 
-ज्यादा शराब पीना 
-ब्लड शुगर का गिर जाना 
-ब्लड प्रेशर का कम हो जाना 
-बेहद तेज रोशनी में आना 
लक्षण 
आंखों के आगे अंधेरा छाना 
शरीर का अकड़ जाना 
दांत भिच जाना 
मुंह से झाग आना 
अचानक गिर जाना 
बेहोश हो जाना 
आंखों की पुतलियों ऊपर की तरफ खिंचना 
हाथ या पैर का लगातार चलना या झटके से लगना 
होंठ या जीभ काट लेना 
कारण 
जनेटिक,इन्फेक्शन, सिर पर गंभीर चोट, स्ट्रोक या ब्रेन ट्यूमर, गर्भ में चोट, ऑटिजम होना,   बढ़ती उम्र,दिमाग में टेपवर्म- न्यूरोसाइटिसरकोसिस  यानी दिमाग में टेपवर्म (कीड़ा) चला गया हो, ब्रेन टीबी, कैल्शियम और सोडियम की कमी से भी छोटे बच्चों में दौरा पड़ सकता है। 

बुधवार, 13 नवंबर 2019

एक तिहाई लोगों को यह नहीं पता कि वह डायबटिक - हर तीसरे में डायबटीज की आशंका

वर्ल्ड डायबिटीज-डे आज



एक तिहाई लोगों को यह नहीं पता  कि वह डायबटिक  
हर तीसरे में डायबटीज की आशंका
 कुमार संजय। लखनऊ
संजय गांधी पीजीआइ के इंडोक्राइनोलाजिस्ट प्रो.सुशील गुप्ता और प्रो.सुभाष यादव ने तमाम शोध के बाद कहा कि राजधानी के बुजुर्गों में हर तीसरे को डायबिटीज अपनी चपेट में ले रहा है। वहीं 20 से 70 वर्ष की कुल आबादी को मिला लें तो इस रोग से 9 प्रतिशत लोग जूझ रहे हैं। इनमें से एक तिहाई लोगों को पता ही नहीं होता कि वे डायबेटिक हैंजो डायबिटीज से जुड़ी कॉम्प्लीकेशन को और बढ़ा देती है। प्रो. सुभाष कहते है कि हमने शोध किया तो पाया कि 16 प्रतिशत नागरिकों का शुगर लेवल उन्हें डायबिटिक बताने के लिए काफी था। साथ ही सामने आया कि इनमें से एक तिहाई लोगों को यह नहीं पता था कि वे इस रोग से पीड़ित हैं।

दिल और किडनी की बीमारी का गहरा रिश्ता

संजय गांधी पीजीआइ के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमार के मुताबिक डायबटीज नियंत्रित न होने पर दिल और किडनी की बीमारी की आशंका बढ़ जाती है। देेखा गया है कि डायबटीज के साथ 10 से 12 साल जिंदगी गुजारने वाले 15 से 20 फीसदी लोग अनियंत्रित शुगर के कारण दिल औक कीडनी की बीमारी  के चपेट में आते है। फालो अप पर लगातार रहना चाहिए। 
     
क्या है डायबिटीज
प्रो.सुभाष यादव के मुताबिक  जो भोजन लेते हैं उसे हमारी पाचन ग्रंथियां पचा कर ऊर्जा और हमारी वृद्धि के लिए उपयोग करती हैं। इस प्रक्रिया में भोजन का अधिकतर हिस्सा टूट कर ग्लूकोज बनाता है। ग्लूकोज एक किस्म की शुगर है और यह हमारे शरीर के लिए ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। यह ग्लूकोज हमारी रक्त में घुलकर कोशिकाओं तक पहुंचता है जिसका उपयोग कोशिकाएं करती हैं। लेकिन ग्लूकोज को कोशिकाओं में पहुंचाने के लिए इंसुलिन हार्मोन की जरूरत होती है जो पैंक्रियाज की बीटा सेल्स पैदा करती हैं। जब भी हम कुछ खाते हैं तो पैंक्रियाज यह इंसुलिन अपने आप जरूरी मात्रा में छोड़ती है। यही इंसुलिन शुगर कंट्रोलर की भूमिका अदा करता है। इंसुलिन को लेकर आई समस्या ही डायबिटीज का कारण होती है।

डायबिटीज टाइप
टाइप 1 : टाइप 1 डायबिटीज में पैंक्रियाज इंसुलिन बनाना पूरी तरह से बंद कर देता है। कुल डायबिटीज में यह करीब 10 प्रतिशत मामलों में है।
टाइप 2 : यहां इंसुलिन तो बनता हैलेकिन वह काफी कम होता है जो ग्लूकोज को कोशिकाओं में पहुंचाने के लिए काफी नहीं होता। 90 फीसदी डायबिटीज के मामले टाइप 2 के मिल रहे हैं।

  

इंसुलिन को बोझ नहीं मानें

 इंसुलिन लेने को पेशेंट्स बोझ मानने लगते हैं। ऐसा करना खतरे को बढ़ाता है। इसे जीवन भर के लिए अपनाना हैइसलिए गंभीरता से अपनाएं। जब शुगर का स्तर गोली से कंट्रोल नहीं होता तो हम लोग इंसुलिन देते है देखा गया कि तमाम लोग  बाद फिर गोली पर आ जाते है।  


बच्चों में बढ़ता मोटापा बढ़ा रहा रिस्क
प्रो. सुभाष यादव कहते है कि बच्चों में अब तक केवल डायबिटीज टाइप ही मिलता रहा है क्योंकि इसकी प्रमुख वजह अनुवांशिक होती है। लखनऊ में हर 10 हजार बच्चों में से एक में टाइप डायबिटीज पाया जा रहा है। लेकिन जैसे-जैसे बच्चों के खाने-पीने की आदतों में बदलाव आते जा रहे हैंउनमें मोटापा बढ़ रहा है और यही उन्हें डायबिटीज के रिस्क फैक्टर की ओर धकेल रहा है। 12 से 14 वर्ष की उम्र में बढ़ना शुरू हुआ मोटापा 20-22 की उम्र तक डायबिटीज में बदल रहा है।

आकंडे दे रहे है गवाही

-50  लाख लोग हर वर्ष दुनिया भर में डायबिटीज से मर रहे हैं
-40 करोड़ लोग डायबिटीज के साथ जी रहे हैं दुनिया मेंइनमें 7 करोड़ भारत में और 1.10 करोड़ यूपी में और 2.70 लाख लखनऊ में रह रहे हैं।
-225 खरब रुपये इसके इलाज पर दुनिया भर में लोगों को हर साल खर्च करने पड़ रहे हैं।
-10 हजार में से एक बच्चा डायबिटीज टाइप 1 का पेशेंट।
-12 से 14 वर्ष की उम्र में बढ़ते वजन की वजह से भी डायबिटीज टाइप 1 का रिस्क।

लक्षण : हो जाइए सजग अगर
-बार-बार पेशाब जाने की जरूरत महसूस होती है।
-अचानक वजन तेजी से घटने लगा है
-शरीर में एनर्जी की कमी महसूस हो रही है
-
प्यास और भूख बहुत लगने लगी है

नाश्ते में पौष्टिकता का रखें ध्यान
पीजीआइ की पोषण विशेषज्ञ अर्चना सिन्हा और निरूपमा सिंह के मुताबिक 70 प्रतिशत टाइप-2 डायबिटीज के रोगी इसकी चपेट में आने से बच सकते थे सही खान-पान और नियमित व्यायाम की आदतें विकसित की होती। नाश्ते में फलहरी सब्जियांसाबुत अनाजमेवेमछलीअंडे का उपयोग बढ़ाएं। साथ ही भोजन में स्वाद के बजाय पौष्टिकता को महत्व दें।
क्या नहीं खाएं 
-स्वादिष्ट लगने वाली पेस्ट्रीनाश्ते में परोसे जाने वाले अधिकतर सीरियल्सफ्राइड फूडकोल्ड ड्रिंक्समीठा दहीआदि।