मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

पीजीआइ...किडनी, पेट, क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट कर रहे है डेंगू का इलाज

डेंगू मरीज के कारण पीजीआइ के सुपरस्पेशिएलटी विभागों में बढ़ी बेड की किल्लत
किडनी, पेट, क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट कर रहे है डेंगू का इलाज


जागरण संवाददाता। लखनऊ

केस- 40 वर्षीय आटो इम्यून डिजीज से ग्रस्त है। बीमारी एक्टिव स्टेज में है लेकिन वार्ड  में बेड खाली न होने पाने के कारण दो दिन से इंतजार कर रहे है।
केस- 30 वर्षीय अजीत कुमार की किडनी काम नहीं कर रही है। नेफ्रालाजी वार्ड में भर्ती होना है लेकिन बेड खाली न होने के   कारण तीन दिन से इंतजार कर रहे हैं।

संजय गांधी पीजीआइ के सुपर स्टेसिएलटी विभागों में बेड तो रहती है लेकिन डेंगू किल्लत और बढा दिया है। डेंगू को सामाजिक जिम्मेदारी मानके हुए संस्थान प्रशासन संस्थान के विशेषज्ञ डाक्टरों को डेंगू के मरीज को मैनेज करने का जिम्मा दे दिया है। डेंगू के ऐसे मरीज जिनमें प्लेटलेट्स काउंस 20 हजार से कम होने के साथ डेंगू पाजिटिव है उन मरीजों को बेड की उपलब्धता के आधार विशेषज्ञता वाले विभागों  में भर्ती कर रहा है जिसके कारण उस विभाग के मरीजों को इंतजार करना पड़ रहा है। किडनी, पेट, आटो इम्यून डिजीज सहित अन्य का इलाज केवल पीजीआइ में संभव है क्योंकि इसकी विशेषज्ञता वाले डाक्टर के साथ सुविधाएं कम है लेकिन डेंगू का इलाज कहीं भी संभव है । प्लेटलेट्स कम है तो उसे चढाने के आलावा जनरल मेडिसिन की जरूरत है। संस्थान में जनरल मेडिसिन विभाग न होने के कारण जरनल फिजिशियन भी नहीं है जिसके कारण विशेषज्ञ डाक्टरों को डेंगू मैनेज करना पड़ रहा है । विशेषज्ञों का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइड लाइन है कि 20 हजार से कम प्लेटलेटस होने पर केवल एहतियात की जरूरत है पांच 6 दिन में वायरस का प्रभाव कम हो जाता है।  
सामाजिक  दायित्व के कारण हम लोग डेंगू के मरीज बेड की उपलब्धता के आधारा पर भर्ती कर रहे है। जरनल मेडिसिन विभाग न होने के कारण विशेषज्ञ डाक्टर डेंगू मैनेज कर रहे हैं....निदेशक प्रो.राकेश कपूर
डेंगू का इलाज तो जिला अस्पताल में भी हो सकता है लेकिन मरीजों को यहां भेजा जा रहा है। डेंगू का इलाज कहीं भी हो सकता है लेकिन किडनी, पेट, आटो इम्यून बीमारी का इलाज केवल यहीं संभव है।  डेंगू के मरीज भर्ती के कारण विशेषज्ञता वाले मरीजों के भर्ती में परेशानी तो रही है लेकिन सामाजिक जिम्मेदारी के कारण डेंगू भी मैनेज हमारे विशेषज्ञ कर रहे हैं...मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो. अमित अग्रवाल 

पीजीआइ नर्सेज अनशन पर बैठी

पीजीआइ नर्सेज अनशन पर बैठी   
एमएसीपीएस और आउट सोर्सिग बंद करने की मांग लेकर आक्रोश
 संजय गांधी पीजीआइ नर्सेज एसोसिएशन का आज से प्रशासनिक भवन के सामने क्रमिक अनशन शुरू हो गया।  नर्सेज एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला और महामंत्री सुजान सिंह ने कहा कि एमएसीपीएस, पुर्नगठन करने और आउट सोर्सिग पर रोक लगाने के लिए नोटिस दिया था लेकिन संस्थान प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया। संस्थान के अधिकारी  रूटीन काम डीपीसी और एमएसीपीएस तक नहीं कर रहे है लंबे समय से यह लंबित है। अपर निदेशक भी इन मामलों मं कोई रूचि नहीं ले रहे है बस आश्वासन दे रहे हैं। संस्थान प्रशासन राज्यपाल से अनुमति लेकर निति गत फैसला भी ले सकते है यह तो रूटीन काम है।  पदनाम में एम्स की तरह बदवलाव, एमएसीपीएस, कैडर का पुर्नगठन, आउट सोर्स बंद करते पहले काम रही आउट सोर्स नर्सेज को एम्स के समान सीधे संविदा पर रखते हुए वेतन देने सहित अन्य मांगो के लेकर ज्ञापन दिया था।  बताया कि हम लोग 10 अक्टूबर से काला फीता बांद कर काम करके सांकेतिक विरोध प्रदर्शन किए लेकिन इस बीच कोई काम नहीं हुआ जिससे मजबूर हो कर हम लोग आज से क्रमिक अनशन शुरू किए है।

सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

स्ट्रोक संबंधित निमोनिया को काफी पहले भांप लेगा ए2डीएस2 स्कोर

स्ट्रोक संबंधित निमोनिया को काफी पहले  भांप लेगा ए2डीएस2 स्कोर


82 फीसदी संवेदनशील है नया पैमाना
स्ट्रोक ग्रस्त एक तिहाई में 2 से सात दिन में होता है निमोनिया
कुमार संजय। लखनऊ  
स्ट्रोक बडा बीमार करने  और मृत्यु का बडा कारण है। भारत में महमारी के रूप में साबित हो रहा है। स्ट्रोक मृत्यु दर का दूसरा प्रमुख कारण है। भारत में विभिन्न अध्ययनों से पता चला कि स्ट्रोक की स्ट्रोक का हर प्रति एक लाख में 107 लोग हर साल शिकार होते हैं। स्ट्रोक के बाद निमोनिया एक बडा परेशानी का कारण बनता है। देखा गया कि  स्ट्रोक संबंधित निमोनिया एक तिहाई स्ट्रोक के रोगियों में हुआ।  एक महीने के भीतर तीन गुना मृत्यु दर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। यह मुख्य रूप से बीमारी की शुरुआत के बाद 2 से 7 दिनों के भीतर प्रकट होता है।
ऐसे हुआ शोध
विशेषज्ञों ने निमोनिया की आशंका भापने के लिए एक विशेष पैमाना तैयार किया जिसे ए2डीएस2 नाम दिया है। इस पैमाने में  स्कोर (उम्रअलिंद फैब्रिलेशनहार्ट रेट) डिस्पैगिया(निगलने में परेशानी) सेक्स और स्ट्रोक की गंभीरता  को शामिल किया है। विशेषज्ञों ने इस पैमाने पर 46 स्ट्रोक के मरीजों में निमोनिया की आशंका का देखने के बाद कहा है कि यह पैमाना स्ट्रोक एसोसिएटेड निमोनिया की भविष्यवाणी करने में 82 फीसदी तक हाई सेंसटिव ( सटीक) है।  राम मनोहर लोहिया संस्थान के डा. एल व्यास, डा. दिनकर , डा. प्रदीप, डा. अजय सिंह , डा. अब्दुल और डा. अनुपम ठक्कर ने  ए2डीएस2 स्कोर टू प्रिडिक्ट द रिस्क आफ स्ट्रोक एसोसिएटेड निमोनिया इन एक्यूट स्ट्रोक विषय पर शोध किया जिसे जर्नल आफ न्यूरोसाइंस इन रूरल प्रैक्टिस ने स्वीकार कर करते हुए काफी उपयोगी बताया है। विशेषज्ञों ने  स्ट्रोक के 250 मरीजों पर शोध किया जिसमें  इस्केमिक और रक्तस्रावी दोनों तरह के स्ट्रोक के मरीजों को शामिल किया गया। देखा कि इनमें  46 मरीजों में निमोनिया हुआ। पैमाने( स्कोर)  को दो भागों में विभाजित किया गया तो देखा कि स्ट्रोक की गंभीरता   उच्च (5-10) और  कम (0–4) था।  अधिकांश रोगियों में उच्च स्कोर के साथ निमोनिया विकसित हुआ।

उम्र और अस्पताली संक्रमण है बड़ा कारण
संजय गांधी पीजीआई के न्यूरोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो.सुनील प्रधान कहते है कि  उम्र के साथ निमोनिया की परेशानी बढ़ती गयी । अभी तक  स्ट्रोक के रोगियों में निमोनिया की भविष्यवाणी करने के एक्यूट इस्केमिक स्ट्रोक-एसोसिएटेड न्यूमोनिया स्केलपूर्णांक-आधारित न्यूमोनिया स्कोर और एसीसीडी4 को इस्तेमाल किया जाता है। एसएपी के कारणों में सबसे अधिक हास्पिटल एक्वायर्ड इंफेक्शन है।  बेडसाइड स्क्रीनिंग और डिस्फेगिया की शुरुआती पहचान ने स्ट्रोक के रोगियों में निमोनिया की घटनाओं को काफी कम कर दिया


क्या है स्ट्रोक का कारण
 पीजीआइ के ही न्यूरोलाजिस्ट प्रो. संजीव झा कहते है कि उच्च रक्तचापमधुमेहउपापचयी(मेटाबोलिक) सिंड्रोममोटापाडिस्लिपिडेमियाधूम्रपानतम्बाकू सेवनआलिंद फिब्रिलेशन(हार्ट रेट में बदलाव) आहार में फल और हरी सब्जियों की कमी और गतिहीन जीवन शैली हैं। स्ट्रोक प्रबंधन में कारकतीव्र स्ट्रोक देखभाल और स्ट्रोक से बचे लोगों में दीर्घकालिक पुनर्वास का नियंत्रण शामिल है।

निमोनिया के आलावा यह होती है स्ट्रोक के बाद परेशानी
पीजीआइ की न्यूरोलाजिस्ट प्रो. विनीता कहती है कि पोस्टस्ट्रोक रोगियों में चिकित्सीय जटिलताओं में मुख्य रूप से निमोनियामूत्र मार्ग में संक्रमणकार्डियक डिसफंक्शनडिस्पैजियाउच्च रक्तचापहाइपरथर्मियाडीप वेन थ्रम्बोसिस, पल्मोनरी एम्बोलिज्म,  बेडसोर, पोस्ट स्ट्रोक अवसाद सहित कई परेशानी होती है जो और बीमार बनाती है। 

रविवार, 20 अक्तूबर 2019

पीजीआइ एम्स जोधपुर को देगा किडनी ट्रांसप्लांट में रफ्तार


पीजीआइ एम्स जोधपुर को देगा किडनी ट्रांसप्लांट में रफ्तार
एक्सपर्ट टीम दो बार पहुंच कर किया लाइव किडनी ट्रांसप्लांट
कुमार संजय। लखनऊ
संजय गांधी पीजीआइ अब एम्स जोधपुर में किडनी ट्रांसप्लांट स्थापित करने के लिए टेक्निकल मदद के साथ लाइव ट्रांसप्लांट कर बीराकियों को बताएगा। इसके लिए संस्थान के विशेषज्ञों के साथ पैरा मेडिकल ( नर्सेज, अन्य) टीम  वहां जा चुकी है।  दो मरीजों में लाइव किडनी ट्रांसप्लांट करके दिखाया जिसे वहां के विशेषज्ञों ने तमाम बारीकियों को जाना और समझा। संस्थान के गुर्दा रोग विशेषज्ञ प्रो. धर्मेद्र भदौरिया, किडनी ट्रांसप्लांट एक्पर्ट प्रो. अनीश श्रीवास्तव, प्रो. यूबी सिंह निश्चेतना विशेषज्ञ प्रो. संदीप साहू के आलावा नर्सेज की टीम वहां पर किडनी ट्रांसप्लांट प्रोग्राम विकसित करने में मदद कर रही है। ट्रांसप्लांट के पहले की तैयारी और ट्रांसप्लांट के तुरंत बाद किडनी रोग विशेषज्ञ ( नेफ्रोलाजिस्ट) का अहम रोल है । इसके साथ लाइव से किडनी निकाल कर मरीजों में रोपित करना एक जटिल प्रक्रिया है क्यों कि इसमें डोनर के साथ ही मरीज पर विशेष ध्यान देना होता है। किडनी ट्रांसप्लांट के लिए एक्सपर्ट निश्चेतना विशेषज्ञ की जरूरत होती है। डोनर और मरीज को बेहोशी देनी होती है जिसमें कितने समय के लिए किस तकनीक से बेहोशी देनी है यह तय करना होता है। इसके साथ ट्रांसप्लांट के आईसीयू केयर भी निश्चेतना विशेषज्ञ देते हैं। संस्थान के विशेषज्ञों ने इन तमाम तकनीक को वहां के विशेषज्ञों के लाइव दिखाया। इससे पहले संस्थान मेडिकल विवि के साथ ही राम मनोहर लोहिया में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू करमें में मदद किया जिसके बाद लोहिया संस्थान में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू हो गया है। जोधपुर में डा. हिमांशू और डा. गौतम ट्रांसप्लांट सर्जन , डा. नितिन बाजपेयी नेफ्रोलाजिस्ट और डा. मनोज, डा. अंकुर और डा. मृत्युंजय निश्चेतना विशेषज्ञ है ।  
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पीजीआइ में दो साल की वेटिंग
निदेशक एवं किडनी ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट प्रो.राकेश कपूर के मुताबिक किडनी ट्रांसप्लांट के लिए संस्थान में दो साल की वेटिंग है। हम साल में 110 से 135 मरीजों में ट्रांसप्लांट कर रहे हैं। देश के दूसरे संस्थान में प्रोग्राम शुरू होने के साथ मरीजों को राहत मिलेगी।  


रविवार, 13 अक्तूबर 2019

पीजीआइ - 6 महीने के आउट सोर्स नर्सेज की भर्ती परमानेंट भर्ती के बाद बाहर

पीजीआइ नर्सेज से वार्ता विफल आंदोलन होगा तेज

6 महीने के आउट सोर्स नर्सेज की भर्ती परमानेंट भर्ती के बाद बाहर
आउट सोर्स के लिए नही बनी पालसी तो घटेगी इलाज की गुणवत्ता 

संजय गांधी पीजीआइ नर्सेज एसोसिएशन के आंदोलन को खत्म कराने के लिए संस्थान प्रशासन ने लंबी वार्ता हुई लेकिन वार्ता सफल नहीं रही। नर्सेज एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला और महामंत्री सुजान सिंह ने कहा कि आंदोलन और तेज होगा क्योंकि कोई बात संस्थान प्रशासन के लोग मानने को तैयार नहीं है। संस्थान प्रशासन की तरफ से अतिरिक्त निदेशक अमित कुमार बंसल, मुख्य चिकित्सा अधीक्षख प्रो.अमित अग्रवाल, प्रशासनिक अधिकारी मनोज सक्सेना के आलावा कई अधिकारी से वार्ता हुई लेकिन यह लोग किसी भी कीमत पर आउट सोर्स के जरिए एक हजार नर्सेज की तैनाती बंद करने को तैयार नहीं है। कहा कि 6 महीने के लिए आउट सोर्स पर रखेंगे जब परमानेंट पद पर तैनााती होती ही हटा दिया जाएगा। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि 6 महीने के आउट सोर्स तैनात करके उन्हें बेपकूफ बनाया जाएगा। पहले से संस्थान में तैनात इन नर्सेज का शोषण किया जा रहा है। एम्स का जब सारा नियम लागू है तो वहां पर संविदा नर्सेज के बराबर वेतन यहां क्यों नहीं दिया जा रहा हैै।
कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष जितेंद्र यादव व महामंत्री धर्मेश कुमार ने कहा कि आउट सोर्स कर्मचारियों के लिए सम्मान जनक पालसी की जरूरत है ताकि यहां से प्रशिक्षित होने के बाद यहीं के मरीजों को फायदा मिले। इसके आलावा परमानेंट कर्मचारियों का एमएसीपीसीएस , कैडर पुर्नगठन सहित कई मुद्दे लंबिता है जिस पर केवल वात होती है।  
कर्मचारी महासंघ (एस) की अध्यक्ष सावित्री सिंह ने कहा कि हम लोग अति विशिष्ठ नर्सिग केयर करते है तभी इलाज की सफलता दर अधिक है ऐेसे में आउट सोर्स नर्सेज भी यहां पर दक्ष हो रही है इन्हें एम्स के बराबर वेतन के साथ समय के साथ परमानेंट करने की पालसी की जरूरत है नहीं तो मरीजों का केयर खराब होगा।

शनिवार, 12 अक्तूबर 2019

अब अंग प्रत्यारोपण के लिए प्रदेश का होगा अपना कानून- पीजीआइ के प्रो. राजेश हर्ष वर्धन को मिली जिम्मेदारी


अब अंग प्रत्यारोपण के लिए प्रदेश का होगा आपना कानून



पीजीआइ के प्रो. हर्ष वर्धन को मिला जिम्मा


अभी तक उत्तर प्रदेश में अंग और टिशू प्रत्यारोपण केंद्रीय कानून जो नेशनल आर्गन एंड टिशू अर्गनाइजेश ने बनाया उसके तहत होता है लेकिन अब केंद्रीय अर्गनाइजेश ने स्टेट अर्गनाइजेश के लिए अनुमति दे दी है। स्टेट अर्गनाजेशन की जिम्मेदारी संजय गांधी पीजीआइ के अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख प्रो. राजेश हर्ष वर्धन को दिया है। इस बारे में जानकारी देने के लिए आयोजित अधिवेशन में प्रो. हर्ष वर्धन ने बताया कि अभी कितने लोगों को अंगो की जरूरत है कितनी उपलब्धता है इसका कोई लाइव डाटा प्रदेश का नहीं है । इसके साथ ही प्रदेश की स्थितियों के आधार पर डोनर और लेने वाले के लिए कोई पालसी नहीं है। कुछ प्रदेश और देश  में अपनी पालसी है जिसके कारण जिसके परिवार में अंग दान के लिए लोग नहीं है उनके प्राविधान है।  स्टेट अर्गनाइजेश अब  प्रदेश की परिस्थिति के अनुसार पालसी बनेएगा। प्रो. हर्ष वर्धन ने बताया कि अंग प्रत्यारोपण, अंग का वितरण और अंग निकालने के लिए पालसी बनने पर किसी ब्रेन डेड के मिले अंग को किसे दिया जाए इसके लिए अपना नियम होगा। अभी केंद्रीय व्यवस्था के तहत आस-पास के जिले के लोग, लेने वाले मरीज का स्वास्थ्य सहित अन्य नियम है। संगोष्ठी में हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो.सत्येंद्र तिवारी ने ग्रीन कैरीडोर की महत्व पर जानकारी दी। निदेशक प्रो.राकेश कपूर और मुख्य चिकित्सा अधीक्षख प्रो.अमित अग्रवाल ने अंग दान के लिए सक्रिया होने की अपील की।  

अब प्रदेश में बनेगा टिशू बैंक

प्रो. हर्ष वर्धन के मुताबिक प्रदेश में अपना टिशू बैंक बनेगा जिसमें हार्ट वाल्व, स्टेम सेल, टिशू , स्किन , कार्निया सहित अन्य शामिल होंगे। इसके आलावा आर्गन डोनेशन के लिए टोल फ्री नंबर होगा जिससे अंग दान के इच्छुक  यदि आंख दान करना है तो टोल फ्री नंबर सूचना देते है टीम वहां पहुंच कर कार्निया लेगी। इसी तरह दूसरे अंग के दान के लिए भी कोशिश होगी इसके लिए जाहरूकता अभियान चलाया जाएगा।  


इलेक्ट्रान और इम्यूनोफ्लोरसेंस तकनीक से जल्दी लग सकता है किडनी खराबी का पता


इलेक्ट्रान और इम्यूनोफ्लोरसेंस तकनीक से जल्दी लग सकता है किडनी खराबी का पता 
   
किडनी खराबी के 30 फीसदी मामलों में दवा से इलाज संभव
   रीनल एंड ट्रांसप्लांट पैथोलॉजिस्टो का  पीजीआइ में सम्मेलन  
  

संजय गांधी पीजीआइ में  इंडियन सोसाइटी ऑफ रीनल एंड ट्रांसप्लांट पैथोलॉजी के वार्षिक अधिवेशन में रीनल हिस्टोपैथोलाजिस्ट और किडनी रोग विशेषज्ञ प्रो. नरायन प्रसाद ने बताया कि यदि किडनी के अंदर की खराबी का पता सही समय पर लग जाए तो 20 से 30 फीसदी किडनी के मरीजों में किडनी को और खराब होने से बचाने के अलावा किडनी को ठीक किया जा सकता है। खराबी का पता किडनी बायोप्सी से ही संभव होता है। किडनी के अंदर की कोशिका को देख कर बीमारी का पता करने के लिए विशेषज्ञता की जरूरत होती है। बताया कि किडनी खराबी के ग्रस्त 15 से 20 फीसदी लोगों की किडनी दवाओं से ठीक हो सकती है । ऐसा ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज के लोगों में संभव है बशर्ते उन्हें सही समय पर सही इलाज मिले। ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज के तहत कई बीमारियां हैं।  मिनिमल चेंज ग्लूमेरूलर डिजीज , फोकल सिंगमेंटल ग्लूमेरूलर स्कोलोरोसिस, ( एफएसजीएन) , मेंमबरेन प्रोलीफरेटिव ग्लूमेरूलर नेफ्राइटिस,( एमपीजीएन), रैपिड प्रोग्रेसिव ग्लूमेरूलर नेफ्राइटिस( आरपीजीएन) सहित कई बीमारिया आती है।हम लोग किडनी बायोप्सी कर पता करते है कि किस तरह का ग्लूमेरूलर डिजीज है। इसके आधार पर इलाज करते है। किडनी की परेशानी से ग्रस्त साल में 12 सौ से अधिक मरीज ऐसे आते है जिनमें कारण ग्लूमेरूलर किडनी डिजीज होता है। संगोष्टी के आयोजक हिस्टोपैैथोलाजिस्ट प्रो. मनोज जैन,  प्रो.विनीता अग्रवाल ने बताया कि रीनल पैथोलाजिस्ट की कमी है जिसको पूरा करने के लिए हम लोग पीडीसीसी करा रहे हैं। अमेरिका की डा. सूर्या वी शेषन , नीदरलैंड की डा. आई बजीमा, अमरेकि के डा. जोसेफ पी गाउट, यूरे के डा. ईवान राबर्ट सहित अन्य विशेषज्ञों ने बताया कि इम्यूनोफोलरसेंस , इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोपी तकनीक के आने से किडनी के ग्लूमरस में सूक्ष्म बदलाव का भी पता लग रहा है जिसके कारण किडनी को बचाना संभव हो रहा है।  

क्या है किडनी खराबी
प्रो. नरायन के मुताबिक किडनी में खून को फिल्टर करने के लिए नसों के गुच्छे की झिल्ली होती है जिसमें रक्त फिल्टर होता है जो टिब्यूलर में जाता है। यहां से शुद्ध खून शरीर में चला जाता और विषाक्त तत्व पेशाब के जरिए बाहर आ जाता है। कई बार इस झिल्ली  की पारगम्यमा बढ़ जाती है । जिसके कारण झिल्ली से शरीर के अच्छे तत्व प्रोटीन भी बाहर पेशाब से निकलने लगते है। इसे ही किडनी खराबी कहते है।      


समय पर इलाज न होने पर स्थित हो जाती है खराब  
 फोकल सिंगमेंटल ग्लूमेरूलर स्कोलोरोसिस, ( एफएसजीएन) सहित अन्य में समय पर इलाज न होने पर इंड स्टेज रीनल डिजीज में वदल जाता है जब किडनी ट्रांसप्लांट और डायलसिस के आलावा कोई रास्ता नहीं बचता है।


यह परेशानी तो तुरंत लें सलाह
- पेशाब में प्रोटीन
-पेशाब में लाली
- पेशाब में आरबीसी
- शरीर में सूजन
- थकान   

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

पीजीआइ नर्सेज ने किया विरोध प्रदर्शन आउट सोर्स नर्सेज को एम्स की तरह वेतन सहित अन्य मांगो को लेकर आक्रोश


पीजीआइ नर्सेज ने किया विरोध प्रदर्शन

आउट सोर्स नर्सेज को एम्स की तरह वेतन सहित अन्य मांगो को लेकर आक्रोश

संजय गांधी पीजीआइ की नर्सेज ने आउट सोर्स बंद कर पहले से तैनात नर्सेज को समान कार्य समान वेतन देने, एमएसीपीएस और कैडर की दोबारा संरचना सहित अन्य मांगों को काला फीता बांध कर काम किया। नर्सेज एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला , महामंत्री सुजान सिंह, कर्मचारी महासंघ(एस) की अध्यक्ष सावित्री सिंह ने कहा कि नर्सेज को उनका हक नहीं दिया जा रहा है। पहले से तैनात आउट सोर्स नर्सेज को एम्स , रेलवे आदि की तरह वेतन नहीं दिया जा रहा है। छुट्टी भी नहीं दी जा रही है केवल 26 दिन का वेतन आउट सोर्स नर्सेज को दिया जा रहा है। परमानेंट नर्सेज की डीपीसी और कैडन का पुर्नगठन लंबे समय से लंबित है। हम लोग सांकेतिक विरोध कर रहे है यदि समाधान नहीं किया गया तो पहले एक घंटे कार्य बहिष्कार करेंगे। 

पीजीआइ करेगा राज्य ऊतक एवं अंग प्रत्यारोपण संगठन की स्थापना

पीजीआइ करेगा राज्य ऊतक एवं अंग प्रत्यारोपण संगठन की स्थापना 



 राज्य ऊतक एवं अंग प्रत्यारोपण संगठन स्थापित करने की अनुमति संजय गांधी पीजीआइ को नेशऩल ऊतक एवं अंग प्रत्यारोपण संगठन ने दिया है। संगठन के नोडन आफीसर अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख प्रो. राजेश हर्ष वर्धन बनाए गए है। नोडल आफीसर ने बताया कि इससे राज्य में अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण को बढावा मिलेगा साथ ही इसकी कानूनी प्रक्रिया को जानने में संस्थानों को मदद मिलेगी। इसी उद्देश्य से विभाग 12 अक्टूबर को सूचान प्रसार संगोष्ठी का आयोजन करने जा रहा है। संगोष्ठी में विशेषज्ञ प्रत्यारोपण से जुडी जानकारी देने कई विशेषज्ञ आ रहे हैं। इसमें प्रत्यारोपण, अंग लेने( रीट्राइवल) , ऊतक बैंक से जुडी जनाकारी दी जाएगी। संगोष्ठी का उद्घाटन निदेशक प्रो.राकेश कपूर और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो. अमित अग्रवाल करेंगे। प्रो. हर्ष वर्धन ने बताया कि प्रदेश में संजय गांधी पीजीआइ किडनी, लिवर , स्टेम सेल , राम मनोहर लोहिया संस्थान किडनी एवं मेडिकल विवि लिवर प्रत्यारोपण कर रहा है। प्रदेश के दूसरे सेंटर जिसमें कारपोरेट अस्पताल भी शामिल है प्रत्यारोपण शुरू करेंगे जिनके लिए संगठन मदद करेंगे। 

बायोप्सी से खुलता है खामोश किडनी का राज

बायोप्सी खुलता है खामोश किडनी का राज


प्रत्यारोपण की सफलता भी बता सकती है किडनी बायोप्सी
पीजीआइ में में इंडियन सोसाइटी ऑफ रिनल एंड ट्रांसप्लांट पैथोलॉजी का अधिवेशन

किडनी की खराबी का मुख्य कारण किडनी में छननी में खराबी है जो कई बार सही तरीके से काम नहीं करती है। किडनी की अंदर की खराबी का पता करने में किडनी बायोप्सी का अहम भूमिका है। यह जानकारी संजय गांधी पीजीआइ में इंडियन सोसाइटी ऑफ रिनल एंड ट्रांसप्लांट पैथोलॉजी के वार्षिक अधिवेशन के आयोजक हिस्टोपैथोलाजिस्ट प्रो. मनोज जैन ने दी बताया कि किडनी की कई परेशानी ऐसी होती है जिसका पता लगा कर केवल दवा से इलाज संभव है ।   एफएसजीएस (फोकल सेगमेंटल ग्लोमेरुलोस्क्लेरोसिसएमजीएन (मेम्ब्रेनस ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिसएमपीजीएन (मेम्ब्रेन प्रोलिफरेटिव ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिसआईजीए नेफ्रोपैथी और मेसैंजियोप्रोलिफरेटिव ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस का पता बायोप्सी से ही लगता है। कई बार  किडनी के फिल्टर में सूजन हो जाती है। किडनी का फिल्टर किडनी में बहुत छोटी रक्त वाहिकाओं से बना होता हैजिसे ग्लोमेरुली कहा जाता है। सूजन  अचानक शुरू होता है तो यह गंभीर  हो सकता है ।  जब इसकी शुरुआत धीरे-धीरे होती है तो यह क्रोनिक हो सकता है। प्रो.जैन ने बताया कि अदिवेशन में देश विदेश से तीन सौ से अधिक हिस्टोपैथैलाजिस्ट शामिल हुए है । इसमें किडनी की बीमारी पता करने के साथ ही प्रत्यारोपित किडनी की सफलता पता लगाने के लिए भी बायोप्सी में क्या देखना होता है जानकारी दी जा रही है। संस्थान में रोज आठ से दस मरीजों में किडनी बायोप्सी नेफ्रोलाजिस्ट कराते है।    

 आकारा सामान्य तो किडनी बायोप्सी जरूरी
किडनी का आकार सामान्य हैतो किडनी बायोप्सी की आवश्यकता हो सकती है। बायोप्सी की रिपोर्ट से चिकित्सक को आपके लिए सबसे अच्छा इलाज की योजना बनाने में मदद मिलती है।


यह परेशानी तो लें सलाह
जागने पर चेहरे पर सूजनपानी जमा होने के कारण टखनों में सूजन

— भूरे रंग का मूत्र या मूत्र में रक्त आना

— मूत्र में झाग होना

— मूत्र में प्रोटीन मौजूद होना

— कम पेशाब होना

— फेफड़े में तरल का होना जिसके कारण खांसी और सांस लेने में दिक्कत होना

— उच्च रक्त चाप

बुधवार, 9 अक्तूबर 2019

पीजीआइ नर्सेज आज से करेंगी विरोध प्रदर्शन






पीजीआइ नर्सेज आज से करेंगी विरोध प्रदर्शन
एमएसीपीएस और आउट सोर्सिग बंद करने की मांग लेकर आक्रोश
(जांस)संजय गांधी पीजीआइ नर्सेज एसोसिएशन आज से काला फीता बांध कर सांकेतिक विरोध प्रदर्शन करेगा। नर्सेज एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला और महामंत्री सुजान सिंह ने कहा कि  एमएसीपीएस, पुर्नगठन करने और आउट सोर्सिग पर रोक लगाने के लिए 15 दिन पहले नोटिस दिया था लेकिन संस्थान प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया। संस्थान के अधिकारी  रूटीन काम डीपीसी और एमएसीपीएस तक नहीं कर रहे है लंबे समय से यह लंबित है। अपर निदेशक भी इन मामलों मं कोई रूचि नहीं ले रहे है बस आश्वासन दे रहे हैं। संस्थान प्रशासन राज्यपाल से अनुमति लेकर निति गत फैसला भी ले सकते है यह तो रूटीन काम है।  पदनाम में एम्स की तरह बदवलाव, एमएसीपीएस, कैडर का पुर्नगठन, आउट सोर्स बंद करते पहले काम रही आउट सोर्स नर्सेज को एम्स के समान सीधे संविदा पर रखते हुए वेतन देने सहित अन्य मांगो के लेकर ज्ञापन दिया था।  सीमा शुक्ला का कहना है कि एक घंटे भी कार्य बहिष्कार यदि सभी नर्सेज न कर दिया तो मरीजों पर आफत आ जाएगी इस लिए पहले सचेत कर रहे है इस लिए मरीजों के हित में हम लोग सांकेतिक विरोध कर रहे है यदि नहीं ध्यान दिए तो बडे आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।  

दूसरी बीमारियां बढा रही मानसिक रोग-- यूपी में एक हजार में 65 लोग मेंटल डिसआर्डर के शिकार

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस आज
दूसरी बीमारियां बढा रही मानसिक रोग
यूपी में एक हजार में 65 लोग मेंटल डिसआर्डर के शिकार



कुमार संजय । लखनऊ
विश्व स्वावस्थ संगठन का कहना है कि यह दर दूसरी बीमारी अस्थमा, डायबटीज, सीओपीडी, अर्थराइटिस,स्किन डिजीज, कैंसर और ट्यूमर के साथ और बढ़ जाती है। इन बीमारियों से ग्रस्त 50 फीसदी लोग मानसिक बीमारी के चपेट में होते हैं। सबसे अधिक लोग  मानसिक बीमारी डिप्रेशन के गिरफ्त में हैं।  भारत जैसे देश कुल बजट का एक फीसदी से कम हिस्सा मेंटल हेल्थ पर खर्च करते हैं जिसके वजह से मानसिक बीमारों को इलाज व निदान नहीं मिल पा रहा है।  इंडियन जर्नल आफ कम्युनटिी मेडिसिन के मुूताबिक उत्तर प्रदेश में हर एक हजार में से  65.4 लोग मेंटल डिसआर्डर के शिकार है। शहरी लोगों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्र के लोग अधिक इस परेशानी की गिरफ्त में है। महिलाएं पुरूषों के  के मुकाबले अधिक मेंटल डिसआर्डर की शिकार हैं। सबसे अधिक लोग 15.95 फीसदी लोग  अवसाद के शिकार होते है जिसका समय पर इलाज न होने पर खतरनाक कदम तक उठा  लेते हैं।   

अभी भी झाड फूक का लोग ले रहे है सहारा

 विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत जैसे मध्यम आय वर्ग देश में रहने वाले वाले नब्बे फीसदी मानसिक रोगियों में आज भी बीमारी की निदान(डायग्नोसिस) तक नहीं हो पाता है।  यह लोग इलाज के लिए झाड़ फूंक या पारंपरिक इलाज का ही सहारा लेते हैं। इसके पीछे बड़ा सबसे कारण है डाक्टरों और विशेषज्ञों की कमी।    विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर)  के मौके पर कहना है कि मेंटल हेल्थ के लिए और बजट बढ़ाया जाए। 

  22 फीसदी लोग पूरे जीवन काल में होते हैं मेंटल डिसआर्डर के शिकार  
संगठन ने कहा है कि भारत में कुल आबादी के पांच फीसदी मेंटल डिस आर्डर की परेशानी से ग्रस्त हैं।  देश 22 फीसदी लोग पूरे जीवन काल में कभी न कभी  मानसिक या व्यवहारिक डिसआर्डर के शिकार  होते हैं।  

रविवार, 6 अक्तूबर 2019

पीजीआई और सेना के बीच हुआ करार - पीजीआई और आर्मी मिलकर लोगों की सेहत ठीक करेंगे


पीजीआई और सेना के बीच हुआ करार

पीजीआई और आर्मी मिलकर लोगों की सेहत ठीक करेंगे


एसजीपीजीआई और आर्मी के डॉक्टर मिलकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करेंगे। शोध और प्रशिक्षण के जरिए नई तकनीक इजाद होगी। शैक्षिक तिविधियों के जरिए दोनों संस्थान के डॉक्टर आपस में अनुभव और विचार साझा करेंगे। इससे इलाज की गुणवत्ता में सुधार होगा। इसके दूरगामी परिणाम मिलेंगे। शनिवार को पीजीआई आए आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल सर्विसेज (एएफएमएस) एण्ड सीनियर कोलोनेल कमाण्डेंट के पीवीएसएम, पीएचएस व डायरेक्टर जनरल लेफ्ट. जनरल बिपिन पुरी ने संस्थान निदेशक प्रो. राकेश कपूर के साथ एमओयू स्ताक्षर किया है। श्री पुरी ने संस्थान को हर संभव मदद का आश्वासन दिया। 
पीजीआई के  निदेशक प्रो   राकेश कपूर और नियोनेटल के प्रमुख डॉ. गिरीश गुप्ता बताते हैं कि सेनाओं के साथ जुड़ने से शोध, चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण के जरिए बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। खासकर सेनाओं की मदद से पीजीआई के डॉक्टर पहाड़, बर्फ और पानी वाले क्षेत्र में जाकर शोध, प्रशिक्षण आदि कर सकेंगे।  पीजीआई सीएमएस  प्रो अमित अग्रवाल के कहा कि सेनाओं के डाक्टर और जवान कम संसाधनों के बीच काम करते हैं। दोनों के डॉक्टर एक दूसरे केसंस्थान में जाकर तकनीक सीखेंगे। शोध करने के साथ ही आपस में अनुभव साझा करेंगे। इस मौके पर अपर निदेशक अमित कुमार बंसल और अस्पताल प्रशासन के प्रमुख डॉ. राजेश हर्षवर्धन मौजूद थे।




बुधवार, 2 अक्तूबर 2019

पीजीआइ ने गर्भस्थ शिशु में लगाया दिल की गड़बडी का पता

गर्भ में पल रहे शिशु का दिल भी हो सकता है गड़बड़
पीजीआइ ने गर्भस्थ शिशु में लगाया दिल की गड़बडी का पता
26.9 फीसदी गर्भस्थ शिशु के दिल में मिली गड़बडी
कुमार संजय। लखनऊ

संजय गांधी पीजीआइ के विशेषज्ञों ने लंबे शोध के बाद साबित किया है कि गर्भस्थ शिशु में सबसे अधिक दिल की बनावटी परेशानी होती है इस परेशानी का पता लगा कर जंम के तुरंत बाद सही निर्णय लेकर इन शिशुओं को तमाम परेशानी से बचाया जा सकता है। विशेषज्ञों ने देखा कि हाई रिस्क प्रिगनेंसी के मामलों में 26.9 फीसदी गर्भस्थ शिशु में दिल की बनावटी खराबी है। इनमें से सबसे अधिक दिल में छेद , दिल की अनियंत्रित धड़कन इसके आलावा सबसे अधिक डाउन सिंड्रोम की परेशानी देखने को मिली। मैटर्नल एंड रीप्रोडेक्टिव हेल्थ विभाग की प्रो.नीता सिंह, प्रो. संगीता यादव और प्रो.मंदाकनी प्रधान की इस शोध में कहा गया है कि गर्भस्थ शिशु में दिल की परेशानी का जल्दी पता लगने से सुरक्षित प्रसव और शिशु को परेशानी से बचाने की प्लानिंग करना संभव होता साथ है समय पर शिशु को इलाज उपलब्ध कराना संभव होता नहीं तो कई बार जंम के बाद शिशु में परेशानी का पता न होने पर समय से इलाज नहीं मिल पाता है और शिशु की तमाम कोशिश के बाद भी मौत हो जाती है। विशेषज्ञों ने हाई रिस्क प्रिगनेंसी वाले 782 गर्भवती महिलाओं का एटी नेटल केयर के तहत उच्च गुणवत्ता का अल्ट्रासाउंड परीक्षण जिसे टीफा भी कहते है कि तो देखा कि इनमें 211 गर्भस्थ शिशु य़ानि 26.9 फीसद शिशु के दिल में परेशानी थी । स्पेक्ट्रम आफ एंटीलेटली डायग्नोसिस कार्डियक एनामली इन टर्सरी  रिफरल सेंटर आफ नार्थ इंडिया विषय पर शोध किया जिसे हार्ट इंडिया जर्नल ने स्वीकार करते हुए कहा कि समय पर गर्भस्थ शिशु में परेशानी का पता कर काफी हद गर्भस्थ शिशु को बचा कर प्रसव कराया जा सकता है।
  क्या होती है हाई रिस्क प्रेग्नेंसी?
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का मतलब है प्रेग्नेंसी के दौरान ऐसी समस्याएं होना जो बच्चे के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। इसके मुख्य कारणों में खून की कमी के साथ ही मां का कम या ज्यादा उम्र का होनाकमजोर या मोटा होनाएचआइवी पॉजीटिव होनाब्लड प्रेशर की समस्या होनाएक से अधिक बार गर्भपात होनागर्भस्थ शिशु का वजन मानक के कम होनाबच्चे का विकास धीमी गति से होनाडायबिटीजटीबीपीलियाथायराइड होना शामिल है।