गुरुवार, 22 मार्च 2018

20 फीसदी टीबी के मरीजों बैक्टीरिया पर बेअसर साबित हो रही दवाएं

20 फीसदी टीबी के मरीजों बैक्टीरिया पर बेअसर साबित हो रही दवाएं

एक साल में दो हजार मरीजों में  जांच के बाद सामने अाय तथ्य

जीन एक्सपर्ट जांच से सात घंटे में चल जाता है एमडीआऱ का पता  



जागरणसंवाददाता। लखनऊ

सही मात्रा सही समय तक टीबी की दवा न खाने के कारण 20 फीसदी लोगों में टीबी की दवाअों के खिलाफ प्रतिरोध पैदा हो गया है। यह टीबी के मरीज खुद के साथ दूसरो को भी प्रतिरोध टीबी के शिकार बना रहे हैं। प्रतिरोध वाले मरीजों को एमडीअार टीबी डाक्टरी भाषा में कहा जाता है। इस तथ्य का खुलासा संजय गांधी पीजीआई में विश्व टीबी दिवस ( 24 मार्च) के मौके पर अायोजित सीएमई में विशेषज्ञों ने दी। संस्थान के माइक्रोबायोलोजी विभाग की प्रो.रिचा मिश्रा ने बताया कि एमडीआर पता करने के नई तकनीक जीन एक्सपर्ट तकनीक हमारे विभाग में स्थापित है। साल भर में दो हजार मरीजों के बलगम को लेकर परीक्षण किया तो देखा बीस फीसदी में रिफाम्पशीन दवा के खिलाफ प्रतिरोध था यानि यह दवा इनमें काम नहीं कर रही थी। नई तकनीक से सात घंटे में हम जांच कर रिपोर्ट दे रहे हैं।  बताया कि टीबी की पुष्टि के लिए अाज भी चेस्ट एक्स-रे, बलगम स्मेयर और कल्चर है। हम लोग लाइन प्रोसेसस एेसे तकनीक भी स्थापित कर रहे है जिससे बाकी टीबी के खिलाफ भी प्रतिरोध का पता लगाना संभव हो गया है। संस्थान के पल्मोनरी मेडिसिन के प्रमुख प्रो.अालोक नाथ ने बताया कि जांच तकनीक के कारण एमडीअार टीबी के मामले तेजी से सामने अा रहे है । इनमें दवा 12 से 24 महीने तक देनी पड़ती है। बताया कि सबसे अधिक 20 से 50 अायु वर्ग के लोग टीबी के शिकार है। संस्थान के निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने कहा कि टीबी को 2025 तक खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री ने लक्ष्य तय किया है । इस लक्ष्य को पाने के लिए नीचे के स्तर पर काम करना होगा। शऱीर के किसी भी अंग में टीबी हो सकता है।      


बच्चों में टीबी पता करने के लिए पेट से लिया जाता है पानी

प्रो. अालोक नाथ ने बताया कि बच्चों में टीबी का पता लगना थोडा कठिन होता है क्यों कि बच्चे बलगम थूक नहीं पाते । बलगम को निगल लेते है एेसे स्थित में हम लोग इंडोस्कोप पेट से पानी लेकर उसमें टीबी की जांच करते हैं। बताया कि टीबी का टीका करण 0 से 80 फीसदी तक ही कारगर साबित हो रहा है। अब एेसे टीके की जरूरत है जो पूरी तरह बचाव कर सके।  टीबी को खत्म करने के लिए जिस एरिया में टीबी की अधिक अाशंका है उस स्थान का पता लगा कर लोगों की जांच कर टीबी का इलाज करने की जरूरत है। मैन पावर बढा कर की टीबी को खत्म किया जा सकता है। लैब और क्लीनीशियन दोनों में बैलेंस बनाने की जरूरत है। 

15 फीसदी नहीं लेते सही दवा

संजय गांधी पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन के प्रो. जिया हाशिम ने कहा कि 10 से 20 फीसदी लोग शरीर के भार के अनुसार सही मात्रा में दवा नहीं खाते। सही समय तक दवा नहीं खाते बीच में छोड़ देते हैं। कई बार दवा की गुणवत्ता कम होती है तो कई बार जितनी दवा बतायी गयी उतनी नहीं खाते एक दवा या दो दवा कम कर देते है जिसके कारण टीबी के मामले खराब हो रहे हैं। इस लिए सही मात्रा में सही समय तक सही दवा लेकर टीबी के मुक्ति मिल जाती है।  
देखा गया है कि नए टीबी के तीन फीसदी मामलों में एमडीआर मिल रहा है यानि एमडीअार वाले मरीजों से इन्हे टीबी का इंफेक्शन हो रहा है। प्रो. हाशिम ने कहा कि टीबी की दवा खा रहे 5 से 10 फीसदी मरीजों में लिवर फंक्शन बिगड़ जाता है जिसके कारण लिवर फंक्शन प्रोफाइल की जांच गड़बड़ आती है जिसे हम लोग ठीक कर लेते हैं। इस लिए मरीजों को लगाातार फालोअप पर रहना चाहिए।    

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