मंगलवार, 20 मार्च 2018

सामान्य बच्चों से भी आगे है यह स्पेशल चाइल्ड... साहिल


सामान्य बच्चों से भी आगे है यह स्पेशल चाइल्ड... साहिल







साहिल दे रहे है योगा का ज्ञान आगे बनेंगे योगा टीचर

कुमार संजय। विनय तिवारी 

 यदि आप का बच्चा डाउन सिंड्रोम( मानसिक रूप से कमजोर) का शिकार है तो हार मान कर बैठने की जरूरत नहीं है। आप सभी लोग साहिल सिंह के परिजनों से सीख लें सकते है। साहिल भी डाउन सिंड्रोम के शिकार है लेकिन उपबल्धियों की लिस्ट इतनी लंबी है कि सामान्य बच्चा भी इनकी बराबरी नहीं कर सकता है। आज विश्व डाउन सिंड्रोम जागरूरकता दिवस है ऐसे मौके पर साहिल तमाम उन बच्चों के परिजनों के लिए उम्मीद की किरण साबित हो सकता है जो हार मान कर बच्चों को घर में बैठौ दिए हैं। साहिल सिंह के पिता प्रो. रजनीश कुमार सिंह और माता डा. भवना सिंह की मेहनत का नतीजा है कि आज साहिल एक स्कूल में योगा प्रशिक्षक के रूप में काम कर रहे है आगे योगा के अध्यापक के रूप में तैनाती इसी स्कूल में होने की पूरी संभावना है। साहिल ने एशिया पेस्फिक रीजनल स्पेशल चाइल्ड ओलंपिक में तैराकी में सिलवर मेडल जीता । इस ओलंपित में एक हजार से अधिक बच्चों ने भाग लिया था। लखनऊ मैनेजमेंट एसोसिएशन ने यंग एचीवर का अवार्ड दिया। प्रदेश सरकार ने 2014 में बेस्ट रोल माडल का अवार्ड दिया। इनके अभिभावक कहते है कि आगे अपने पैर में कैसे खडे हो इसके लिए योगा का प्रशिक्षण लिया । योगा शिक्षक राजेश सिंह और कल्पना ने इन्हें प्रशिक्षित किया। अब इसी स्कूल में योगा का प्रशिक्षण दे रहे है। इस तरह स्कूल में तैनाती के बाद यह अपने पैर में खडे हो जाएंगे। इसी तरह हर अभिभावक थोडा हिम्मत से काम लें तो इनका स्पेशल चाइल्ड सामान्य चाइल्ड की तरह सब कुछ कर सकता है। 


डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चों के लिए अलग स्कूल क्यो

संजय गांधी पीजीआई के प्रो. रजनीश कुमार सिंह और डा. भवना सिंह कहते है कि डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चों के लिए अलग स्कूल की जरूरत नहीं है। सामान्य स्कूल में ही अलग सेक्शन हो जिससे बच्चे हर एक्टीविटी में भाग लें । स्पेशल बच्चे अपने को अलग न समझें। स्टडी हाल स्कूल में ऐसे बच्चों के लिए अलग सेक्शन है जिससे साहिल पढ़ते है। इनके विकास में स्कूल की अहम भूमिका है। 

इन बच्चों को मिले डाटा इंट्री आपरेटर जैसे जांब

यह बच्चे कंप्यूटर चलाने में भी दक्ष हो सकते है साहिल काफी काम कर लेते है । इस लिए ऐसे बच्चों को डाटा इंट्री जैसे जांब संस्थानों को देना चाहिए। पढने के लिए ओपेन स्कूल बेस्ट है क्योंकि इसमें एक या दो विषय की परीक्षा दे कर धीर-धीरे पास किया जा सकता है। साहिल ने हाई स्कूल पास कर लिया है अब इंटर कर रहे हैं।       


क्या है डाउन सिंड्रोम

 डाउन सिंड्रोम एक अनुवांशिकी बीमारी है। इस बीमारी के साथ पैदा होने वाले बच्चे मंद बुद्धि के होते हैं।  यह गुणसूत्रों की खराबी के कारण होती है। बच्चे के ं 21 वें नंबर के गुणसूत्र की 2 कापी होने बजाए तीन कापी हो जाती है। इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों की आई क्यू 40 से 60 तक पायी जाती है। चलना, बोलना यह सामान्य बच्चों के मुकाबले देर से शुरू करते हैं।   प्रो.रजनीश कहते है कि जल्दी  बीमारी का पता लगने पर स्टीमुलेशन थिरेपी देने से बच्चों के दिमाग विकसित होता है और मासपेशियां म जबूत  हो जाती है जिससे बच्चा  सामान्य तरह से जीवन जीता है।  





कैसे लगता है बीमारी का पता

शिशु में डाउन सिंड्रोम का पता लगाने के लिए ट्रिपल टेस्ट पाजिटिव आने के बाद अमीनीयोसेंटेसिस परीक्षण किया जाता है। इसमें गर्भ से पानी निकाल कर उसमें 21 वें गुणसूत्र की खराबी को केरिओटाइपिंग परीक्षण के जरिए देखा जाता है। गर्भ 18 से 19 हफ्ते का भी है तो फिश तकनीक से बीमारी का पता लग जाता है। इस परीक्षण से मां एवं गर्भस्थ शिशु पर कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता है। संस्थान में इस परीक्षण की कीमत पांच हजार रूपया है। 





यह जरूर ले अनुवांशिकी विशेषज्ञ से सलाह

- उम्र 35 से अधिक

-गर्भावस्था के दौरान मधुमेह

- परिवार में जंमजात शारीरिक बनावट में विकृति के अलावा दिल, दिमाग, हाथ पैर, आंख या आंत में बनावटी खराबी

- परिवार में किसी को थैलेसीमिया, हीमोफीलिया, डाउन सिंड्रोम की बीमारी

- परिवार में कोई मंद बुद्धि वाला बच्चा या व्यक्ति

- मृत शिशु का जंम







उम्र के साथ बढ़ती जाती है डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चा पैदा होने की आशंका

उम्र जंम लेने वाले बच्चों में से एक में डीएस की आशंका

20 ----  1450

25------ 1305

28 ----1150

35 ----350

38 ----150

40 ----110


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