रविवार, 25 फ़रवरी 2024

बेकाबू डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर से गुर्दा खराब होने का खतरा

 




बेकाबू डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर से गुर्दा खराब होने का खतरा


-हेलो डाक्टर

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जागरण संवाददाता, लखनऊ: डायबिटीज यानी मधुमेह वैसे तो एक आम, लेकिन लापरवाही होने पर यह गंभीर हो सकती है, जिससे दुनियाभर में करोड़ों मरीज जूझ रहे हैं। अनियंत्रित शुगर समय के साथ हृदय, रक्त वाहिकाओं, आंखों, गुर्दे (किडनी) और तंत्रिकाओं को गंभीर नुकसान पहुंचाता है। इसके मरीजों में किडनी डिजीज (बीमारी) होने की संभावना अधिक होती है। दरअसल, डायबिटीज में लगातार उच्च शर्करा से किडनी की छोटी रक्त वाहिकाओं को काफी नुकसान होता है। ये नुकसान धीरे-धीरे किडनी डैमेज करने की दिशा में अग्रसर हो जाता है। शुगर और हाई ब्लड प्रेशर नियंत्रित न होने से करीब 60 प्रतिशत मरीज गंभीर किडनी रोग से ग्रसित हो जाते हैं। ऐसे मरीज प्रत्येक तीन माह में आरएफटी (रीनल फंक्शन टेस्ट) व पेशाब की जांच जरूर कराएं। चिकित्सीय परामर्श के मुताबिक दवा लें। दवाओं से किडनी को खराब होने से रोका जा सकता है। कई मामलों में डायलिसिस भी बंद हो सकती है और रोगी सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है। यह कहना है एसजीपीजीआइ में गुर्दा रोग विभाग के अध्यक्ष डा. नारायण प्रसाद का। उन्होंने गुरुवार को दैनिक जागरण के हेलो डाक्टर कार्यक्रम में पाठकों की समस्याएं सुनी और उचित परामर्श दिए।


सवालः किडनी संबंधी परेशानी नहीं हो, इसके लिए कुल कितना पानी पीना चाहिए? -अनिल तिवारी, लखनऊ, 45 वर्ष

-जितनी प्यास लगे, उतना ही पानी पीना चाहिए। यह जरूरी नहीं कि सुबह उठकर एक बार में तीन से चार गिलास पानी पिएं। हमारा मस्तिष्क प्यास लगने पर खुद ही आपको सूचना देता है। जब प्यास लगे तो उसे नजरअंदाज नहीं करें। धूप में रहने और काम करने वाले व्यक्ति को तीन लीटर और सामान्य तापमान में रहने वाले व्यक्तियों को दो से ढाई लीटर पानी पीना चाहिए।


सवाल- पिछले साल सितंबर में जांच कराया तो मुझे क्रोनिक किडनी डिजीज बीमारी सामने आई। बीपी के साथ गुर्दा में सिस्ट भी है। क्या एहतियात बरतें? -सत्येंद्र कुमार, लखनऊ, 58 वर्ष


-यह गुर्दे की एक बीमारी है। इसमें धीरे-धीरे रोग बढ़ता है। रोजाना बीपी चेक करें और नियंत्रित रखने का हरसंभव प्रयास करें। भोजन में पांच ग्राम से अधिक नमक का सेवन न करें। ध्यान रहे कि आपका बीपी 130/80 से अधिक नहीं होना चाहिए।


सवाल-मेरी एक किडनी करीब 60 प्रतिशत खराब हो गई है। इलाज चल रहा है, लेकिन राहत नहीं है।- ब्रज किशोर सिंह, लखनऊ, 52 वर्ष

-दरअसल, आपकी किडनी में 60 प्रतिशत की खराबी हुए तीन माह से ज्यादा का समय बीत चुका है। ऐसे में आप हाई रिस्क ग्रुप में पहुंच चुके हैं। लेकिन, बीपी नियंत्रित और खानपान का विशेष ध्यान रखकर बीमारी की रफ्तार को रोक सकते हैं।


सवाल-मैं ब्लड प्रेशर का मरीज हूं। किडनी को स्वस्थ रखने के लिए क्या उपाय करें?- बजरंगी लाल गुप्ता, लखनऊ, 60 वर्ष


-बीपी की नियमित दवा लें। अगर नियंत्रित है तो सप्ताह में तीन बार चेक करें। दवा कतई बंद न करें। दवा के बाद भी अगर ब्लड प्रेशर बढ़े तो कार्डियोलाजिस्ट से संपर्क करें। संतुलित खानपान और अनुशासित जीवनशैली बहुत जरूरी है। रोजाना 45 मिनट ब्रिस्क वाक करें। भोजन में नमक का सेवन कम करें।


सवाल-मेरे दोनों किडनी में पथरी थी। अभी कुछ दिन पहले सर्जरी कराई। रात में कई बार पेशाब जाना पड़ता है। -जेके सीखिया, बहराइच, 70 वर्ष

-यह प्रोस्टेट बढ़ने का लक्षण है। अधिक उम्र होने पर यह समस्या ज्यादातर लोगों में होती है। प्रोस्टेट की दवा नियमित लें। ध्यान रहे कि आपको दोबारा किडनी में पथरी हो सकती है। इसलिए छह माह में एक बार अल्ट्रासाउंड और खून की जांच जरूर कराएं। टमाटर, पालक और काफी का सेवन कम करें।


सवाल-मेरी बेटी की उम्र 10 वर्ष है। उसे कुछ साल पहले ही नेफ्रोटिक सिंड्रोम की शिकायत हो गई। इलाज चल रहा है। क्या यह बीमारी पूरी तरह से ठीक हो सकती है।- जेके शर्मा, लखनऊ, 40 वर्ष


-अगर इलाज सही हो तो यह बीमारी उम्र बढ़ने के साथ पूरी तरह ठीक हो जाती है। मेरा मानना है कि 14-15 वर्ष की उम्र में आपकी बेटी नेफ्रोटिक सिंड्रोम से मुक्त हो जाएगी, लेकिन इसके बाद भी आपको नेफ्रोलाजिस्ट के संपर्क में रहना चाहिए। कुछ मरीजों में यह बीमारी वापसी भी करती है। हालांकि, इसका प्रतिशत बहुत कम है।


सवाल: ढाई साल पहले मैंने अपनी किडनी बेटी को दी थी। मुझे कोई रिस्क तो नहीं है? बेटी को बीपी रहता है। क्या उससे किडनी पर असर पड़ेगा? -आरके शर्मा, बहराइच, 64 वर्ष

-बेटी से कहें कि वह घर पर मशीन से अपना रक्तचाप नापती रहें। आपको किसी तरह का रिस्क नहीं है। अपने रक्तचाप, क्रिएटिनिन और मूत्र की प्रत्येक तीन माह में नियमित जांच करवाते रहें।


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बाक्स..........


इन बातों का रखें ध्यान

प्रो. प्रसाद के मुताबिक, खून में नमक की मात्रा अधिक होने पर किडनी डैमेज होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए पानी का सेवन अधिक करें। बिना चिकित्सीय परामर्श दर्द की दवा का सेवन करना भी किडनी के लिए घातक है। परिवार में पहले से किसी को बीमारी रही है तो 30 साल से अधिक उम्र वाले युवा जरूर नियमित चेकअप कराएं। यदि किडनी में सिस्ट मिलता है तो नियमित बीपी व आरएफटी जांच कराएं और चिकित्सीय परामर्श से दवा लेते रहें। 60 साल से अधिक उम्र के लोगों को छह माह में एक बार पीएसए की जांच जरूर कराना चाहिए। धूमपान से परहेज करें।


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किडनी की प्रमुख बीमारियां


1- एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआइ)


कारण: संक्रमण या किडनी को नुकसान पहुंचाने वाली दवा का सेवन, हाई बीपी, शुगर, मलेरिया, डायरिया आदि।

लक्षण: पेशाब में अचानक कमी होना, बुखार आना या अधिक दस्त होने की दशा में दवा लेने के बाद पेशाब में कमी होना।


उपचार: यह दवा से पूरी तरह ठीक हो जाता है।


2- नेफ्रोटिक सिंड्रोम

कारण: शरीर की प्रतिरोधी क्षमता का असामान्य होना


लक्षण: पेशाब में प्रोटीन आने की वजह से शरीर में सूजन

उपचार: सटीक इलाज से बीमारी पूरी तरह ठीक हो सकती है


3- गुर्दे की पथरी :


कारण: यूरिक एसिड का बढ़ना, पानी कम पीना आदि।

लक्षण: पेट में दर्द, उल्टी या बुखार होना, पेशाब में जलन, रुक-रुक कर पेशाब होना।


उपचार: दवा अथवा सर्जरी द्वारा पूरी तरह ठीक हो सकता है। समय पर उपचार नहीं कराने पर किडनी को नुकसान भी पहुंचा सकता है।


4- आनुवांशिक बीमारी (पालिसिस्टिक किडनी डिजीज)

कारण: परिवार में यदि पहले किसी को यह बीमारी रही है तो संभावना रहती है।


लक्षण: बीपी बढ़ना, पेट में भारीपन, कभी-कभी लाल पेशाब होना।

उपचार: 30 वर्ष की उम्र के बाद बीपी और शुगर के साथ किडनी की जांच कराएं।


5- क्रोनिक किडनी डिजीज :


कारण: शुगर, बीपी या क्रोनिक नेफ्रोटिक सिंड्रोम का समय पर इलाज न कराने पर क्रोनिक किडनी डिजीज की संभावना रहती है।

लक्षण: भूख कम लगना, थकान होना, पैरों या चेहरे में सूजन, उल्टी आना, चलने-फिरने में परेशानी होना, सांस फूलना, रात के समय पेशाब ज्यादा आना।


उपचार: एक बार क्रोनिक होने पर दवा से बढ़ने की दर को धीमा किया जा सकता है। इससे डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की स्थिति को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है।


6- एंड स्टेज रीनल डिजीज (ईएसआरडी)

कारण: शुगर, बीपी या क्रोनिक नेफ्रोटिक सिंड्रोम का समय पर इलाज न कराने पर एंड स्टेज रीनल डिजीज की संभावना रहती है।


लक्षण: बीपी का अनियंत्रित बढ़ना, शरीर में सूजन, कमजोरी, भूख न लगना, जल्दी थक जाना आदि।

उपचार: मधुमेह के रोगियों में अधिकतर यह समस्या आती है। डायलिसिस नियमित अंतराल पर जरूरी हो जाता है, जब तक कि गुर्दा प्रत्यारोपण न हो।

शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

पीजीआई में दुर्लभ रोगों से पीड़ित 16 बच्चों का मुफ्त इलाज शुरू

 



पीजीआई में दुर्लभ रोगों से पीड़ित 16 बच्चों का मुफ्त इलाज शुरू


-80 फीसदी दुर्लभ रोग अनुवांशिक होते हैं

-पीजीआई के जनेटिक्स विभाग में हुआ कार्यक्रम

-रेयर डिजीज पॉलिसी के तहत पीजीआई को मिले 6.4 करोड़ रुपये 

 

संजय गांधी पीजीआई में दुर्लभ बीमारी गौचर और स्पाइनल मस्कुलर रोग से पीड़ित 16 बच्चों का इलाज नि:शुल्क शुरू हो गया है। केन्द्र सरकार ने रेयर डिजीज पॉलिसी के तहत पीजीआई को दुर्लभ रोगों के इलाज के लिए 6.4 करोड़ रुपये दिये हैं।  शनिवार को पीजीआई के मेडिकल जेनेटिक्स विभाग की प्रमुख प्रो. शुभा फड़के ने संस्थान में आयोजित रेयर डिजीज जागरूकता   कार्यक्रम में बताया कि  विल्सन रोग, टायरोसिनेमिया, ग्रोथ हार्मोन की कमी, इम्यूनोडेफिशिएंसी रोगियों को जल्द ही मुफ्त उपचार शुरू किया जाएगा। इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के यूपी चैप्टर और लखनऊ एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में दुर्लभ रोगों से पीड़ित करीब 100 बच्चों को सम्मानित किया गया। प्रदेश के कई जिलों से आए बाल रोग विशेषज्ञों को दुर्लभ बीमारियों की जानकारी दी गई।

80 फीसदी दुर्लभ बीमारी अनुवांशिक

मेडिकल जनेटिक्स विभाग की प्रमुख डॉ. शुभा फड़के ने बताया कि 80 फीसदी दुर्लभ रोग ( रेयर डिजीज) अनुवांशिक होते हैं। जबकि अन्य में बैक्टीरिया या वायरल संक्रमण समेत दूसरे कारण होते हैं। अनुवांशिक दुर्लभ बीमारियां जन्मजात होती हैं। इनके लक्षण तीन, छह व एक साल में दिखाई देने लगते हैं। डॉ. फड़के ने बताया कि पांच हजार तरह की दुर्लभ बीमारियां हैं। 10 हजार व 30 हजार में एक में दुर्लभ बीमारी होती है। संस्थान की ओपीडी में हर साल करीब तीन हजार बच्चे दुर्लभ बीमारियों के आते हैं। इनमें से 150 बच्चों का इलाज विभाग में चल रहा है। एनएचएम के जरिए नवजात स्क्रीनिंग कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके तहत 6500 नवजात की स्क्रीनिंग जन्मजात हार्मोनल बीमारी का पता लगाने के लिए किया गया है। कार्यक्रम में   राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन निदेशक पिंकी जोवेल, संस्थान के डीन डॉ. शालीन कुमार व डॉ. दीप्ति सक्सेना समेत अन्य ने विचार रखे।

प्रदेश के पांच मेडिकल कॉलेजों में पीजीआई शुरू कराएगा किडनी ट्रांसप्लांट

 



प्रदेश के पांच मेडिकल कॉलेजों में पीजीआई शुरू कराएगा किडनी ट्रांसप्लांट


गोरखपुर, मेरठ, आगरा, झांसी, प्रयागराज मेडिकल कॉलेज के नेफ्रोलाजिस्ट के साथ बैठक के बाद बनी कार्य योजना


6 महीने में ट्रांसप्लांट शुरू करने की कार्य योजना पर काम शुरू 




 


विकास मिश्रा। लखनऊ


प्रदेश में किडनी ट्रांसप्लांट की रफ्तार बढ़ाने के लिए संजय गांधी पीजीआई का नेफ्रोलाजी विभाग अग्रदूत की भूमिका में आने के लिए तैयारी कर लिया है। 6 महीने में प्रदेश के पांच मेडिकल कॉलेज जहां पर नेफ्रोलाजिस्ट और यूरो सर्जन उपलब्ध उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट के लिए प्रशिक्षण, तकनीक स्थापित करने में मदद करेगा। विभाग के प्रमुख प्रो. नरायन प्रसाद का कहना है कि प्रदेश में किडनी ट्रांसप्लांट सेंटर की कमी के कारण मरीजों को 1.5 से दो साल इंतजार करना पड़ रहा है। आर्थिक रूप से सक्षम दूसरे प्रदेश में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए चले जाते है। प्रदेश के झांसी , आगरा, गोरखपुर , प्रयागराज और मेरठ मेडिकल कालेज में नेफ्रोलाजिस्ट और यूरो सर्जन उपलब्ध है। इन सेंटर को किडनी ट्रांसप्लांट की मान्यता देने की प्रक्रिया शुरू करने जा रहे है। मान्यता मिलने के बाद यह सेंटर ब्रेन डेड लोगों के परिजनों के सहमति के बाद अंगदान ले सकेंगे। आर्गन निकाल कर जरूरत के अनुसार खुद भी अपने मरीज में किडनी ट्रांसप्लांट कर सकेंगे। मान्यता मिलने से पहले इन मेडिकल कालेज के नेफ्रोलाजिस्ट एवं यूरोलॉजिस्ट को उनके जरूरत के अनुसार प्रशिक्षित संस्थान में बुला कर करेंगे। पहले किडनी ट्रांसप्लांट के लिए जरूरत होगी तो हमारे संकाय प्रो.धर्मेंद्र भदौरिया, प्रो. मानस रंजन पटेल, प्रो. रवि शंकर या मैं खुद जाकर तकनीक स्थापित कराएंगे। प्रो. नरायन ने बताया कि झांसी मेडिकल कालेज में प्रो नरेंद्र सेंगर, आगरा में प्रो. अपूर्व जैन, प्रो. मुदित खुराना, मेरठ में प्रो. इंद्रजीत मेमिन, प्रो. अर्पित श्रीवास्तव, प्रो. अरविंद त्रिवेदी, गोरखपुर में प्रो. विजय , इलाहाबाद में प्रो. अरविंद मुख्य रूप से संस्थान में आए थे जिनसे विचार विमर्श के बाद यह तय किया गया है कि इन मेडिकल कालेज में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू किया जाएगा। हम लोगों  ने 6 महीने का लक्ष्य रखा है। इससे लाइव ट्रांसप्लांट को गति मिलने के साथ कैडेवर ट्रांसप्लांट को भी गति मिलेगी। इस योजना पर प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा  ने पूरी तरह सहयोग का आश्वासन दिया है। प्रदेश सरकार की मंशा है कि किडनी सहित अन्य ट्रांसप्लांट के लिए मरीजों को इतजार न करना पडे इस दिय़ा में काम शुरू कर दिया है।


   प्रदेश में घटेगी किडनी ट्रांसप्लांट की वेटिंग


प्रो. नरायन का कहना है कि संस्थान में हर साल में 120 से 130 किडनी ट्रांसप्लांट हो रहा है इसको बढ़ाने की कोशिश जारी है। लोहिया संस्थान और किंग जार्ज मेडिकल विवि में भी हम लोगों ने किडनी ट्रांसप्लांट शुरू कराया है अभी संख्या कम है आगे संख्या बढेगी।  अभी प्रदेश के सरकारी संस्थानों में  साल में 150 ट्रांसप्लांट हो रहे है इन मेडिकल कॉलेजों में ट्रांसप्लांट शुरू होने के बाद दो से 450 तक ट्रांसप्लांट साल में होना संभव होगा। एक बार ट्रांसप्लांट शुरू होने के बाद इन मेडिकल कॉलेजों में संख्या बढ़ेगी जिससे वेटिंग लिस्ट प्रदेश में कम हो जाएगी।

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

पीजीआई ट्रामा में बिना पास के तीमारदार को नहीं मिलेगा प्रवेश

 


पीजीआई ट्रामा में बिना पास के तीमारदार को नहीं मिलेगा प्रवेश


संजय गांधी पीजीआई के एपेक्स ट्रामा सेंटर में तीमारदारों द्वारा डॉक्टर के साथ मारपीट की घटना के बाद संस्थान प्रशासन ने सख्ती बढ़ा दी है। अब तीमारदारों को बिना पास के प्रवेश नहीं मिलेगा। वह भी निर्धारित समय पर ही मरीज से मिल सकेंगे। इसके अलावा अन्य समय में नहीं जा सकेंगे। मुख्य गेट और वार्ड के बाहर सुरक्षा गार्ड बढ़ा दिये हैं।

संस्थान के ट्रामा सेंटर में मंगलवार रात नशे में धुत आधा दर्जन तीमारदारों ने जबरन वार्ड में घुसकर डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मियों के साथ मारपीट और हंगामा किया था। संस्थान के रजिस्ट्रार ने आरोपियों के खिलाफ पीजीआई कोतवाली में एफआईआर दर्ज करायी है। एपेक्स ट्रामा सेंटर के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. राजेश हर्षवर्धन ने बताया कि प्रत्येक मरीज के भर्ती होने पर उनके घर वालों को पास मुहैया कराया जाता है। इस पास के साथ ही तीमारदारों को प्रवेश दिया जाता। मरीज से मिलने का समय निर्धारित है। इसके बावजूद रात में जबरन घुसे तीमामादारों ने मारपीट की। इस घटना के बाद से सख्ती बढ़ायी गई है। ताकि दोबारा से ऐसी घटना न हो। प्रो. हर्षवर्धन ने बताया कि यदि बिना पास के कोई तीमारदार जबरन घुसने का प्रयास करता है। तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।


दोषियों के खिलाफ कार्रवाई पर अड़े कर्मचारी



 कर्मचारी महासंघ के पूर्व महामंत्री धर्मेश कुमार , मेडिटेक एसोसिएशन के प्रेसिडेंट डी  के सिंह, महामंत्री सरोज वर्मा ,  ने गुरुवार को संस्थान निदेशक डॉ. आरके धीमान से कर्मचारियों की सुरक्षा की मांग किया। एनएसए अध्यक्ष लता सचान,  महामंत्री विवेक शर्मा सहित अन्य ने  निदेशक से कहा कि कर्मचारियों के साथ तीमारदारों द्वारा अभद्र व्यवहार, धमकाने व मारपीट के मामले में कड़ी कार्रवाई की जाये। प्रवेश द्वार और वार्ड में सुरक्षाकर्मी बढ़ाये जाएं। मुख्य गेट पर कारपोरेट अस्पतालों की तर्ज पर मेटल डिटेक्टर से तलाशी की व्यवस्था लागू की जाये।  ट्रामा में डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मियों के साथ मारपीट करने वाले आरोपी तीमारदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग रखी।

बार-बार डायरिया का कारण हो सकता है पीआईडी





 जीन परीक्षण से खुला डायरिया राज

बार-बार डायरिया का कारण हो सकता है पीआईडी

पीआईडी के कारण चार साल की बच्ची बार –बार हो रही थी डायरिया और पेचिश का शिकार


 

बार –बार डायरिया, पेचिश से परेशान का इलाज 4 वर्षीय रतिका के माता-पिता काफी चिंतित थे। आम इलाज से कोई फायदा नहीं हो रहा था किसी तरह डायरिया रुका भी तो दस दिन भी नहीं बीतता दोबारा डायरिया की परेशानी शुरू हो जाती थी। घर वाले परेशान हो कर संजय गांधी पीजीआई के पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंट्रॉलजी में सलाह के लिए आए । विभाग के प्रो. मोइनक सेन शर्मा ने देखा तो समझ गए कि यह आम डायरिया या पेचिश नहीं है। रतिका की इतनी खराब थी कि मलद्वार के पास छननी(धाव) जैसा बन गया। आंत में अल्सर हो गया था। वजन नहीं बढ़ रहा था।   रतिका को केस के रूप में रविवार को संस्थान में इंडियन सोसाइटी आफ पीआईडी(पीडीकांन-2024) के अधिवेशन में प्रस्तुत करते हुए बताया कि बच्ची के आंत पर भार कम करने के लिए छोटी आंत और बड़ी आंत के बीच गैस्ट्रो सर्जरी विभाग ने डायवर्जन किया। इसी बीच तमाम परीक्षण जो अन्य कारण थे सब सामान्य थी। पीआईडी जानने के लिए अन्य जांच के साथ जीन की जांच कराया तो बच्ची में आईएल 10 जीन में खराबी मिली जिसके कारण बच्ची का इम्यून सिस्टम काफी कमजोर था बार संक्रमण के कारण डायरिया हो रहा था। इस परेशानी का इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही प्राथमिक उपचार के बाद परिजन इसके लिए दूसरे संस्थान ले गए। प्रो. मोइनक ने बताया कि इम्यून सिस्टम में कमी के कारण कई तरह का डायरिया हो सकता है कुछ का इलाज केवल इंट्रावेनस इम्यूनोग्लोबुलिन इलाज से संभव होता है। 40 से अधिक बच्चे देखरेख में है। जागरूकता की कमी के कारण कई बच्चे की डायरिया से मृत्यु हो जाती है।

 

कई प्राथमिक इम्युनोडेफिशिएंसी विकार विरासत में मिले हैं - एक या दोनों माता-पिता से प्राप्त होते हैं। आनुवंशिक कोड में समस्याएं जो शरीर की कोशिकाओं (डीएनए) के उत्पादन के लिए ब्लूप्रिंट के रूप में कार्य करती हैंप्रतिरक्षा प्रणाली में इनमें से कई दोषों का कारण बनती हैं।

क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग की प्रमुख  प्रो. अमिता अग्रवाल के मुताबिक प्राथमिक इम्युनोडेफिशिएंसी 500 से अधिक प्रकार हैं। प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रभावित हिस्से के आधार पर उन्हें मोटे तौर पर छह समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है

-बी सेल (एंटीबॉडी) की कमी

-टी सेल की कमी

- बी और टी कोशिका की कमी

- दोषपूर्ण फैगोसाइट्स

- कंपलीमेंट की कमी

 

 

 

 यह परेशानी तो ले सलाह

 

प्राथमिक इम्युनोडेफिशिएंसी यह लक्षण है । यह परेशानी है तो वह विभाग में ओपीडी में संपर्क कर सकते हैं।

  

-बार-बार निमोनियाब्रोंकाइटिससाइनस संक्रमणकान में संक्रमणमेनिनजाइटिस या त्वचा संक्रमण

-आंतरिक अंगों की सूजन और संक्रमण

- कम प्लेटलेट काउंट या एनीमिया

पाचन संबंधी समस्याएं, ऐंठनभूख न लगनामतली और दस्त

-ऑटोइम्यून विकारजैसे ल्यूपसरुमेटीइड गठिया या टाइप 1 मधुमेह

डायबिटीज से ग्रस्त 60 फीसदी से अधिक है लापरवाह - अनियंत्रित ब्लड शुगर बना सकता है बीमारी का टोकरा

 




डायबिटीज से ग्रस्त 60 फीसदी से अधिक है लापरवाह


अनियंत्रित ब्लड शुगर बना सकता है बीमारी का टोकरा


66.4 फीसदी में मिला अनियंत्रित ब्लड शुगर

65 .7 फीसदी में एचबी ए वन सी मिला अनियंत्रित

 राजधानी के लोगों पर शोध से मिला तथ्य

 


डायबिटीज से ग्रस्त लोग  काफी लापरवाह है। लापरवाही इनको बीमारी का टोकरा बना सकती है। अनियंत्रित शुगर लेवल लंबे समय तक रहने से  किडनी, दिल, संवेदी तंत्रिका तंतु( नर्व) सहित अन्य अंगों को क्षति ग्रस्त होने की आशंका रहती है।   किंग जार्ज मेडिकल विवि के  विशेषज्ञों ने पहली बार  डायबिटीज क्लीनिक में आने वाले 41.1 से   58.9 आयु वर्ग के 300 डायबिटीज टाइप टू से ग्रस्त लोगों पर  पर शोध किया तो पता चला कि केवल 37 फीसदी लोग डायबटीज  सेल्फ केयर( खुद की देखभाल) अच्छी तरह से करते हैं। 67 फीसदी लोग काफी लापरवाह है ।   सेल्फ केयर बहुत ही खराब मिला। इनमें से 66.4 फीसदी में  ब्लड शुगर  का लेवल अनियंत्रित 217 से 352.4 मिलीग्राम/डीएल  मिला। इनमें 65.7 फीसदी में  ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन स्तर(एचबी ए वन सी) 6.4 से 10.6 तक मिला जो अनियंत्रित है। यह तीन महीने में शुगर के स्तर का औसत बताता है।

 

 

यहां से शोध में शामिल किए गए

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सरोजिनी नगर और चिनहट सिविल अस्पताल और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के ओपीडी में आने वाले मरीजों को शोध में शामिल किया गया। 

 

 

 

 

इन्हों ने किया शोध

किंग जार्ज मेडिकल विवि के सामुदायिक चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग से  डा. माविया खान, मेडिसिन विभाग से   डा. उस्मान कौसर,  जरा चिकित्सा चिकित्सा विभाग डा. मोनिका अग्रवाल, बॉयोस्टैटिसटिक्स और स्वास्थ्य सूचना विज्ञान विभाग एसीजीपीजीआई ने सांख्यिकी विशेषज्ञ के तौर पर डा,  प्रभाकर मिश्रा ने प्रिवलेंस आफ सेल्फ केयर प्रैक्टिस एमंग टाइप टू डायबिटीज मेलिटस पेशेंट एंड इट्स इफेक्ट ऑफ ग्लायसेमिक कंट्रोल विशेष को लेकर शोध किया जिसे   इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एप्लाइड बेसिक मेडिकल रिसर्च ने हाल में स्वीकार किया है।

 

 

 

प्रदेश में 10 .5 फीसदी डायबिटीक

 

भारत - 8.3 फीसदी

भारत में - 7.7  करोड़ मधुमेह रोगी

भारत में 2045 तक - 13.4 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित होंगे

उत्तर प्रदेश - 10.5 फीसदी

 

 

डायबिटीज के कारण यह परेशानी-फीसदी

 

रेटिनोपैथी( आंख) -34.1 फीसदी

 

 नेफ्रोपैथी( किडनी की परेशानी) -   26.6

 

न्यूरोपैथी( संवेदी तंत्रिका तंतु)-30.9

 

हृदय रोग-28.0

पेरिफेरल वैस्कुलर डिजीज( रक्त परिसंचरण तंत्र) -  8.3

 

 

 

किस मामले में कैसा सेल्फ केयर -फीसदी

 

केयर            अच्छा          खराब

डाइट             36.7          63.3

शारीरिक गतिविधि    36.7         63.3

ब्लड शुगर परीक्षण    17.7        82.2

पैर की देखभाल   24.3      75.7

चिकित्सा        6.3         93.7

कुल सेल्फ केयर    37.0         63.0

 

 

 

 

 

शहरी अच्छा करता है डायबिटीज केयर

 

शहरी क्षेत्र -  42.2 फीसदी

ग्रामीण क्षेत्र - 24.6 फीसदी

रविवार, 11 फ़रवरी 2024

Foundation Day of PGI Pulmonary Medicine Department - Vaccine will reduce the problem of COPD

 






Foundation Day of PGI Pulmonary Medicine Department


Vaccine will reduce the problem of COPD


TB patients are more likely to develop COPD


 



COPD (Chronic Obstructive Pulmonary Disease) patients can reduce their problems by getting influenza and pneumococcal vaccines. Head of Pulmonary Medicine Department of Sanjay Gandhi PGI, Prof. Alok nath and Prof. Mansi Gupta told in the session organized on Air Way Diseases on the occasion of foundation  day of the department and alumni meet that if there is cough, phlegm and difficulty in breathing for more than two months, then consult a pulmonary specialist and there is a possibility of COPD. can be reduced to a minimum. During this problem, the air passages of the lungs shrink, due to which there is difficulty in breathing. When this happens, carbon dioxide is not able to come out from inside the body. The risk of this disease in people suffering from TB is higher than that of ordinary people, hence TB treatment should also be taken completely. This problem has increased so much that it is being known as TB Associated COPD (TOPD). The main reason for this problem is pollution along with smoking. Anti-IgE, anti-IL-5 and anti-IL-RA biological medicines have also been used for the treatment of this disease, which are providing considerable relief. Bronchodilator inhalers are the most important medications in initial treatment. They relax the airways to keep them open. Some bronchodilators start working within a few seconds and can last for 4-6 hours. Used immediately when trouble occurs. Long-acting bronchodilators take longer to start working but last longer. These are taken daily. May be combined with steroids. The conference was inaugurated by Director Prof. RK Dhiman did it and expressed happiness over the progress of the department. Medical University Prof. Suryakant, Prof. Rajendra Prasad, Prof. Ved Prakash, Prof. KB Gupta and others gave information about COPD and asthma.

वैक्सीन से कम होगी सीओपीडी की परेशानी- टीबी के मरीजों में अधिक है सीओपीडी की आशंका


पीजीआई पल्मोनरी मेडिसिन विभाग का स्थापना  दिवस

वैक्सीन से कम होगी सीओपीडी की परेशानी

टीबी के मरीजों में अधिक है सीओपीडी की आशंका

 


सीओपीडी(क्रोनिक आब्सट्रेक्शन पल्मोनरी डिजीज) के मरीज इंफ्लुएंजा और न्यूमोकोकल वैक्सीन लगवा कर परेशानी कम कर सकते हैं।  संजय गांधी पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. आलोक नाथ एवं  प्रो, मानसी गुप्ता ने विभाग के स्थापना एवं एल्युमिनाई मीट के मौके पर एयर वे डिजीज पर आयोजित अधिवेशन में  बताया कि दो महीने से अधिक खांसी, बलगम और सांस लेने में परेशानी हो तो किसी पल्मोनरी विशेषज्ञ से सलाह ले कर सीओपीडी की आशंका को कम कम किया जा सकता है। इस समस्या के दौरान फेफड़ों के वायु मार्ग सिकुड़ जाते हैंजिस वजह से सांस लेने में परेशानी आती है. ऐसा होने पर शरीर के अंदर से कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर नहीं निकल पाता है।टीबी ग्रस्त लोगों में इस बीमारी की आशंका आम लोगों के मुकाबले अधिक है इसलिए टीबी का भी इलाज पूरी तरह से लेना चाहिए । यह परेशानी इतनी बढ़ गयी है कि इसे टीबी एसोसिएटेड सीओपीडी (टीओपीडी) के नाम से जाना जा रहा है। इस परेशानी का मुख्य कारण धूम्रपान के साथ प्रदूषण है। इस बीमारी के इलाज के लिए एंटी आईजीई , एंटी आईएल -5 और एंटी आईएल आरए बायोलॉजिकल दवाएं भी गयी है काफी राहत दे रही है। प्रारंभिक इलाज में  ब्रोंकोडाइलेटर इनहेलर सबसे महत्वपूर्ण दवाएं हैं। वे वायुमार्गों को खुला रखने के लिए उन्हें शिथिल करते हैं। कुछ  ब्रोन्कोडायलेटर कुछ ही सेकंड में काम करना शुरू कर देते हैं और 4-6 घंटे तक रह सकते हैं। परेशानी होने के दौरान तुरंत उपयोग किया जाता है।लंबे समय तक काम करने वाले ब्रोंकोडाईलेटर्स को काम शुरू करने में अधिक समय लगता है लेकिन लंबे समय तक टिकते हैं। इन्हें प्रतिदिन लिया जाता है। स्टेरॉयड के साथ जोड़ा जा सकता है। अधिवेशन का उद्घाटन निदेशक प्रो. आरके धीमान ने किया और विभाग के प्रगति पर हर्ष जताया। मेडिकल विवि के प्रो. सूर्यकांत, प्रो. राजेंद्र प्रसाद, प्रो. वेद प्रकाश, प्रो. केबी गुप्ता सहित अन्य लोगों ने सीओपीडी और अस्थमा के बारे में जानकारी दी।    


PID will be tested for free in PGI Even general doctors can detect PID with TLC test







 PID will be tested  free in PGI


 


Even general doctors can detect PID with TLC test 

 




Even a general practitioner can detect the possibility of primary immunodeficiency (PID) in the early stages. If a person of any age is getting repeated infections. There is no improvement with normal oral antibiotics. If you have to be admitted and the lymphocyte count is low, then you need to consult a specialist to confirm the suspicion of PID. Professor, Head of Clinical Immunology Department of Sanjay Gandhi PGI. Amita Aggarwal and Foundation for PID America Prof. Sudhir Gupta told in the convention of Indian Society of PDI that TLC test for any pathology can be done for twenty to thirty rupees. To confirm this disease, further immunoglobulin Ig, IgA and IgM tests are done along with lymphocyte sub-cell testing by flow cytometry and then genetic testing is done for specific confirmation. Foundation for PID has provided financial support for free testing of patients in the institute. Will examine poor patients for free. The Foundation has assured to help in the treatment also. This disease has also been included in the Rare Disease Policy of the Government of India, making its treatment possible. Dr. Troyan Torgerson, Dr. Siringo Rosenzwing from America attended the convention. Many experts including Dr. Dan Kastner gave information. Director Prof. RK Dhiman said in the inauguration of the convention that the institute will provide every resource.


 


25 to 30 new patients every year


Pro. Amita Aggarwal said that every year 25 to 30 new patients are diagnosed with PID. Due to lack of testing and awareness, 16 thousand patients are diagnosed in the country while the number is around 10 lakh. Intravenous IgG is given for treatment.






10 percent are miss diagnosed


Five to 10 percent of missed diagnoses occur because PID causes many problems including skin, lungs, auto immune disease, liver etc. Many times PID is not detected.






 Life increases with treatment



If PID is not treated, 50 percent of patients may die within 20 years. Treatment leads to longer life.

पीजीआई में होगी पीआईडी का होगा फ्री परीक्षण-टीएलसी जांच से सामान्य चिकित्सक भी भांप सकते है पीआईडी

 





पीजीआई में होगी पीआईडी का होगा फ्री परीक्षण

 

20 रुपए की टीएलसी जांच से सामान्य चिकित्सक भी भांप सकते है पीआईडी  

 


प्राइमरी इम्यूनो डिफिशिएंसी (पीआईडी) के आशंका का पता शुरुआती दौर में सामान्य चिकित्सक भी लगा सकते हैं। किसी भी उम्र के व्यक्ति को यदि बार –बार संक्रमण हो रहा है। सामान्य खाने वाली एंटीबायोटिक से सुधार नहीं हो रहा है। भर्ती करना पड़ रहा है और लिम्फोसाइट की संख्या कम है तो पीआईडी के आशंका की पुष्टि कराने के लिए विशेषज्ञ से पास भेजने की जरूरत है।  संजय गांधी पीजीआई के क्लिनिकल इम्यूनोलाजी विभाग की प्रमुख प्रो. अमिता अग्रवाल और फाउंडेशन फार पीआईडी अमेरिका प्रो. सुधीर गुप्ता  ने इंडियन सोसाइटी ऑफ पीडीआई के अधिवेशन में बताया कि टीएलसी की जांच बीस से तीस रूपए में किसी भी पैथोलॉजी पर हो जाती है। इस बीमारी के पुष्टि के लिए आगे इम्युनोग्लोबुलिन आईजी, आईजीए और आईजीएम की जांच के साथ लिम्फोसाइट सब सेल की जांच फ्लोसाइमेंट्री से करने के बाद विशेष पुष्टि के लिए जेनेटिक जांच कराते हैं। फाउंडेशन फार पीआईडी ने संस्थान में मरीजों के फ्री परीक्षण के लिए आर्थिक सहयोग किया है । गरीब मरीजों की फ्री जांच करेंगे। फाउंडेशन इलाज में भी मदद करने के लिए आश्वस्त किया है। इस बीमारी भारत सरकार रेयर डिजीज पॉलिसी में भी शामिल कर लिया है इससे इलाज संभव हो रहा है। अधिवेशन में अमेरिका से डा. ट्रोआंय टोरगर्सन, डा. सेरींगो रोसेनजवींग. डा. डान कस्टेनर सहित कई विशेषज्ञों ने जानकारी दी। निदेशक प्रो. आरके धीमान  ने अधिवेशन के उद्घाटन में कहा कि संस्थान हर संसाधन उपलब्ध कराएगा।

 

हर वर्ष 25 से 30 नए मरीज

प्रो. अमिता अग्रवाल ने बताया कि हर साल 25 से 30 नए मरीज पीआईडी के डायग्नोस होते है। जांच और जागरूकता की कमी के कारण देश में 16 हजार मरीज डायग्नोस है जबकि संख्या 10 लाख के आस पास है। इलाज के लिए इंट्रावेनस आईजीजी दिया जाता है। 



10 फीसदी होते है मिस डायग्नोस

पांच से 10 फीसदी मिस डाग्योनस होते है क्योंकि पीआईडी में स्किन, फेंफड़ा, आटो इम्यून डिजीज , लिवर सहित कई परेशानी रहती है।  कई बार पीआईडी का पता नहीं लगता है।



 इलाज से बढ़ती है जिंदगी


पीआईडी का इलाज न होने पर 20 साल में 50 फीसदी मरीजों की मृत्यु हो सकती है। इलाज से  लंबी जिंदगी मिलती है।  

शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

सही समय पर सही इलाज से सेप्सिस से बच सकता जीवन

 



आईएमए ने सेप्सिस पर आयोजित किया जागरूकता कार्यशाला


 


सही समय पर सही इलाज से सेप्सिस से बच सकता जीवन


 


किसी भी तरह का घाव तो सफाई और ड्रेसिंग का रखें ध्यान


 


एंटीबायोटिक इस्तेमाल बिना सलाह न करें इस्तेमाल


   


भारत में हर साल 1 करोड़ लोग सेप्सिस से ग्रस्त होते है जिसमें 30 लाख असमय मृत्यु के शिकार हो जाते है। दुनिया भर में 5 में से 1 मौत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सेप्सिस से संबंधित है। यह जानकारी संजय गांधी पीजीआई के इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन के सदस्य एवं संजय गांधी पीजीआई के इमरजेंसी मेडिसिन के प्रो. तनमय घटक ने  आईएमए( इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ) लखनऊ की तरफ से आयोजित सेप्सिस पर जागरूकता कार्यशाला मे दी। प्रो.  तनमय ने बताया कि हाथ की सफाई करें, अपने आप एंटीबायोटिक का इस्तेमाल न करें, बुखार लंबा होने पर डाक्टर से सलाह ले कर काफी हद तक सेप्सिस से बचा जा सकता है।  सेप्सिस की पहचान है और यदि शीघ्र निदान किया जाए तो इसका आसानी से इलाज किया जा सकता है। सेप्सिस से होने वाली मृत्यु दर और जटिलताओं को कम कर सकें। डा. आरके सिंह, डॉ. देवेन्द्र गुप्ता, डॉ. पीके दास, डॉ. हैदर अब्बास, डॉ. यश जावेरी, डॉ. फारूक, डॉ. सोमनाथ लोंगानी सहित अन्य विशेषज्ञों ने बताया कि कोई भी घाव होने पर उसकी सफाई और ड्रेसिंग पर विशेष ध्यान देना चाहिए।


 


 


इनमें अधिक है सेप्सिस का खतरा


-65 वर्ष से अधिक उम्र के लोग, नवजात शिशु और शिशु, और गर्भवती लोग।


-मधुमेह , मोटापा , कैंसर और गुर्दे की बीमारी जैसी चिकित्सीय स्थितियों वाले लोग ।


-कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग।


-जो लोग अन्य चिकित्सीय कारणों से अस्पताल में हैं।


गंभीर चोटों वाले लोग, जैसे बड़े जले हुए या घाव।


कैथेटर, आईवी या श्वास नलिका वाले लोग।


 


 


 


सेप्सिस का कारण क्या है?


जीवाणु संक्रमण सेप्सिस के सबसे आम कारणों में से एक है। फंगल, परजीवी और वायरल संक्रमण भी सेप्सिस के संभावित कारण हैं। आपको सेप्सिस तब हो सकता है जब कोई संक्रमण आपके पूरे शरीर में एक श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया शुरू कर देता है जिससे अंग निष्क्रिय हो जाते हैं।सेप्सिस की ओर ले जाने वाला संक्रमण शरीर के कई अलग-अलग हिस्सों में शुरू हो सकता है। सामान्य स्थान और संक्रमण के प्रकार जो सेप्सिस का कारण बन सकते हैं उनमें शामिल हैं:

शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2024

माई बॉडी माई चॉइस ,,,,,पतन का कारण



my body my choice  फिर जब लड़की एक तरह की ,,,, बन जाती है तो फिर वो चाहती है कि सभी ऐसी हों, ताकि उसे समाज तिरस्कृत न कर पाए..



 जहां सनी लियोनी खड़ी हो जाये हजारो की भीड़ कर रहे थे। इससे बेटियों-बहनों ने क्या सीखा कि वो आप आज टिकटोक-रील्स के मुजरों में देख ही रहे हो।

ज्यादा बताने की जरूरत नही कि कैसे गन्द भरे समाज की ओर हम बढ़ रहे हैं जहां अपनी पीढ़ीयां बचानी हर दिन के साथ मुश्किल ही होगी। पूरा पश्चिम इसी तरह बर्बाद, परिवारविहीन, डिप्रेस, लोनली, ड्रग्स एडिक्ट और ना जाने क्या क्या बना है।


   अभी बड़ा मजा आ रहा है सबको। चुइये बाप अपनी बेटियों के साथ टिकटोक मे ठुमके लगा रहे हैं। नोरा जैसियों ने रियल्टी शो के डांस, भांडो के चोली के पीछे जैसे गानों से भी बुरे कर दिए हैं कि माँ बाप अपनी छोटी छोटी बच्चियों(4-5 साल की) से भौंडे स्टेप्स करा तालियां पीटते हैं।  नाटक वाली जिन्हें घर घर देखा जाता है और फेवरेट बनाया जाता है जब वो इंस्टा में आती हैं तो अपने असली रंग दिखा रही होती हैं। फिल्मी कोठे का तो क्या ही बताना क्योंकि जितना लिखो कम ही होगा।


   शोहरत का शॉर्टकट घर घर खराब कर रहा है। एक भी मोहल्ला अब इस सांस्कृतिक प्रदूषण से बचा नही है। सबने मोटो अपना लिया है कि बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हो रहा है। और ये गन्द तो अभी चल ही रही थी कि इससे बड़ा सांस्कृतिक प्रहार भारत मे प्रवेश कर चुका है LGBTQ के नाम पर जिसमें अपना चंदा मामा लेवल का भी मुख्य सिपाही है।


     ये गन्द तो वो हाल करेगा कि लोग अपनी बेटियों से खुद कहेंगे कि बेटी बन ले तू जितनी मर्जी सेक्सी, करा लें जैसे मर्जी बोल्ड शूट, यहां तक कि न्यूड शूट... बस हाथ जोड़कर विनती है कि लड़की ही बने रहना और इस LGBTQ के आतंक के चुंगल में मत फंसना।


आजकल जो मेट्रो, सड़क आदि पर नंगी पुंगी लड़कियां हैं वो इसी का बाय प्रोडक्ट है। लड़कियों ने ये समझ लिया है कि नंगई तो सबसे आसान तरीका है रातोरात प्रसिद्धि पाने और पैसा बनाने का। इंस्टाग्राम इसी वजह से सेमी पोर्न का अड्डा बन गया है। माँ बाप इसी में खुश हैं कि उनकी बेटी तो सेलेब्रिटी बन गयी है। लड़के नंगे नही हो सकते तो उनका शॉर्टकट है कि गालीगलौज करो, फूहड़ता दिखाओ। बाकी और क्या करना है तो पश्चिम वाले इंस्टा में क्या कर रहे हैं, उसकी नकल करो और उधर तो निप्पल शो हो रहे हैं। पुट्ठे दिखाने की होड़ है तो यहां भी बच्चे को दूध पिलाने के बहाने से लेकर नहाने के वीडियो बना अपने अंग दिखाए जा रहे हैं। गांव गांव तक कि लड़कियां चूल्हे में रोटी बनाने के बहाने से क्लीवेज से लेकर निप्पल दिखा रही हैं। कुछ तो खुद का सेक्स तक दिखा रही हैं तो कुछ चुम्माचाटी का वीडियो डाल रही हैं। ऊपर से पश्चिम की डिमांड पर फेसबुक जो इंस्टा का भी मालिक है उसने निप्पल या पुट्ठे दिखाने अब allow कर दिए हैं। अब ऐसे में आपकी ID पर रिपोर्टिंग भी नही हो सकती कि ये अश्लीलता फैला रही है।


, my body my choice  फिर जब लड़की एक तरह की वैश्या बन जाती है तो फिर वो चाहती है कि सभी ऐसी हों, ताकि उसे समाज तिरस्कृत न कर पाए..


इस खेल का सबसे आसान माध्यम इंस्टा बन गया है। उसी तरह इंटरनेट इस #CulturalCrusade का सबसे बड़ा हथियार बन गया है। आप बैन कीजिये वो VPN के माध्यम से आपके पास पहुंच जाएगा। सरकार ने टिकटोक पर बैन किया तो इंस्टा आ गया। इंस्टा पर बैन होगा तो कुछ और आजायेगा। कानून बना भी इसे रोका नही जा सकता क्योंकि यहां तो पोर्न बैन करने पर लोग विरोध करने आ गए थे कि ये तो निजता पर हमला है। आप कानून बनाइये दूसरी तरफ कोर्ट में बैठे नालीवादी इसे निरस्त कर देंगे।


और उन माँ बापों को कैसे रोकेंगे जो खुद अपनी औलादों की आड़ में प्रसिद्धि पाने का जुगाड़ करे हुए हैं। ये तो वो प्रदूषण बन गया है जिसमे आपको खुद घर मे ऑक्सीजन मास्क लगाकर रहना पड़ेगा। मास्क हटते ही आपके घर मे भी ये प्रदूषण आपके बच्चे के फेफड़े खराब करना शुरू कर देगा।


भारत में पोर्न महामारी कैसे बन गया? ऐसा क्या हुआ कि इंटरनेट यूज करने वाले लोग पोर्न को सर्च करने लगे? गूगल के कुछ उपयोगी टूल्स के जरिए हमने इन सवालों के जबाव तलाशने की कोशिश की और जो नतीजे सामने आए वह हैरतअंगेज हैं।

गूगल साल 2004 से अब तक के सर्च इंट्रेस्ट आंकड़े उपलब्ध करवाता है। 2004 से 2010 तक भारत कभी भी पोर्न सर्च करने वाले शीर्ष दस देशों में नही रहा। 2011 में भारत पहली बार इस सूची में 9वें स्थान पर आया। लेकिन 2012 में भारत इस सूची में पांचवे स्थान पर था और पिछले साल में हम चौथे स्थान पर है।(ये आंकड़ा भी पुराना है)। त्रिनिदाद एवं टोबैगो, पापुआ न्यू गिनी और पाकिस्तान हमसे आगे हैं।


यही हाल सेक्स शब्द सर्च करने का भी है। भारत गूगल पर सेक्स सर्च करने के मामले में हमेशा से आगे रहा है। लेकिन सितंबर 2011 के बाद इसमें भी अप्रत्याशित तेजी आई। अब सवाल यह उठता है कि 2011 में ऐसा क्या हुआ कि पोर्न भारत में महामारी की तरह फैला और लगातार फैलता जा रहा है। तो इसका जबाव है कि 2011 में पहली बार एक पोर्न स्टार मेनस्ट्रीम मीडिया के जरिए खबर बनी। दरअसल सनी लियोन ने बिग बॉस के जरिए भारतीय एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में कदम रखा। बिग बॉस का हिस्सा बनते ही सनी लियोनी खबरों में छाई रही। यदि गूगल सर्च कीवर्ड्स के इंट्रेस्ट पर नजर डालें तो साल 2012 में सनी लियोनी एकमात्र ऐसी सख्शियत थी जो राइसिंग सर्च में टॉप टेन कीवर्ड्स में जगह बना सकीं। यानि 2011-2012 में सनी लियोनी को खूब सर्च किया गया और सनी लियोनी को सर्च करते-करते भारतीय पोर्न तक पहुंच गए। हालत यह हुए कि इंटरनेट पर पोर्न से दूर रहने वाले भारतीय दो साल के भीतर ही सबसे ज्यादा पोर्न सर्च करने के मामले में चौथे नंबर पर आ गए।


 इस देश मे दिल्ली की सड़कों पर "Kiss of love" चलाया गया। असली कारण इसी में छुपा था क्योंकि इसे ऑर्गनाइज करने वाले खुद सेक्स रैकेट चलाते पकड़े तक जा चुके थे। इतना ही नही इस अभियान के पीछे  वो थे जो शादी को कहते हैं कि ये एक संस्थागत वैश्यावृत्ति है जहां बाप अपनी बेटी को पराए मर्द को भोगने को सौंप देता है और वो उसका मैरिटल रेप करता है। असली प्यार तो चुनकर करना है और एक से क्यों देश मे Free Sex होना चाहिए जहां लड़की चाहे जितना मर्जी और जितनों से मर्जी सेक्स करे। ऐसा नही करोगे तो हम तुम्हे वैश्यावृत्ति से जन्मी सन्तान मानेंगे।


इसका बिजनेस पहलू समझना हो तो ये है कि भले ही सनी लियोनी के आने से पहले भले ही लोग पोर्न देखते रहें हों लेकिन एक तो इस मात्रा में नही देखते थे, दूसरा कितनी पोर्न वाली/वाले का नाम जानते थे। इसके उलट आज की पीढ़ी कम से कम दर्जन भर ऐसों का नाम जानती है और न सिर्फ जानती है बल्कि इतना कॉमन कर चुकी कि ये न्यू नॉर्मल बना दिया गया है। इससे पोर्न इंडस्ट्री ने जबरदस्त मार्किट खड़ा किया अपना भारत में। ऐसा ही मॉडलिंग इंडस्ट्री, फिटनेस इंडस्ट्री, अंडरगारमेंट्स इंडस्ट्री और कितनी ही इंडस्ट्री भारत मे फल फूल गयी। नतीजा, जब पोर्न इंडस्ट्री यहां भी खुद को पोर्न"स्टार" कहलवाने लगी तो फ़िल्म तो बड़ी पिछड़ी सोच की हो गयी तो हुआ ये कि पहले किसिंग नॉर्मल बनी, फिर क्लीवेज नॉर्मल किया गया और अब पुट्ठे नॉर्मल किये जा रहे हैं। पोर्न, फ़िल्म, फिटनेस, मॉडलिंग, अंडरगारमेंट सभी का संगम ये बन गया है। 

इसके साथ ही एकाएक ऐसी फिल्मों की बाढ़ आ गयी है जो बस सेक्स और वो भी explicit लेवल का सेक्स बना बना बेच रहा है। आज फैमिली शो, अवार्ड शो आदि में भी किस तरह ये "सेलेब्रिटी" कपड़े पहनकर आती हैं आप TV लगाकर खुद परिवार के साथ लज्जित होते है। टिकटोक के ठुमको से शुरू हुई कहानी Only fans जैसे एप्प तक जा चुकी हैं जहां कुछ रुपयों में आप भरपूर वर्चुअल सेक्स और अंग प्रदर्शन का आनंद ले सकते हैं।


कहते थे कि लज्जा स्त्री का गहना होती है लेकिन लज्जा तो इन इंडस्ट्री के सामने गिरवी रखे जाने लगी है। जिसका नुकसान ये है कि जब आप शरीर को सिर्फ भोग और प्रदर्शन का माध्यम समझने लगते हैं तो फिर आप उसी तरह नही रुक पाते जैसे एक नशे का एडिक्टेड नही रुक पाता। और फिर बड़ा आसान हो जाता है समझौता करना भी। इसका उदाहरण दूं तो ब्रिटेन में 50% टीनएज लड़कियां अपने लैंड लार्ड से किराए के बदले सेक्स करती हैं। इसका कारण भी उनका समाज है जहां परिवार सिस्टम तरीके से तोड़ा गया कि 18 की होते ही वहां घर छोड़ "इंडिपेंडेंट" होना ही होना है वरना समाज ही तुम्हे कच्चा चबा जाएगा कि तू बालिग होकर भी मां बाप के साथ कैसे रह सकती है। अब ये लड़कियां बच्ची तो होती हैं और जरूरते बड़ी बड़ी। जॉब ऐसी मिल नही पाती की शौक भी पूरे हों। ले देकर घर ढूंढती हैं जहां समझौते करने पड़ते हैं। बॉयफ्रेंड बनाती हैं जो कुछ शौक पूरे कर सके। इधर उधर हाथ पैर मारती हैं ताकि बेहतर जॉब हाथ लग सके जहां भी समझौते करने पड़ते हैं। अब चूंकि समाज पहले से ही फ्री सेक्स समर्थक होता है तो ये आसानी से तैयार हो जाती हैं और आसानी से फिर सामने वाले के सामने खुद को सरेंडर कर देती हैं, बस काम निकलना चाहिए।।


  यही बच्चियां फिर जब बड़ी होती जाती हैं तो इनके लिए वन मैन वुमन रहना मुश्किल हो जाता है क्योंकि जैसे ही मन भरा या शौक पूरे होने में कमी आयी तो तुरन्त रिलेशन खत्म करने से भी ये पीछे नही हटती जो आपको हमको इनके एक पति से दूसरे, दूसरे से तीसरे, तीसरे से चौथे में जाते दिखता है। स्कारलेट जॉनसन(अवेंजर की नताशा रोमनोफ) का तो आपको आर्टिकल है जहां वो कहती है कि कोई औरत एक मर्द के साथ पूरी जिंदगी कैसे रह सकती है।


  इसी का एडिशन वन नाईट स्टैंड इनके गानों फिल्मों यहां तक कि असल जिंदगी में देखते हैं कि तुरन्त कोई मर्द पकड़ा रात बिताई और टाटा बाई बाई। इसी के अन्य दुष्परिणाम हमें सिंगल मदर, लोनली जीवन, डिप्रेशन, ड्रग एडिक्शन, पागलपन, सुसाइड आदि में दिखते हैं। इसी का दुष्परिणाम परिवार सिस्टम ध्वस्त होना होता है। इसी का दुष्परिणाम पेरेंटिंग का खात्मा होता है जो वैल्यू सिखाता है, जो ट्रेडिशन सिखाता है, जो कल्चर सिखाता है। बिना इसके एक पढा लिखा लेकिन जानवर माफिक समाज बनने लगता है जिसे अपनी जिम्मेदारी का कोई एहसास नही, कम से कम पारिवारिक जिम्मेदारी का। बच्चा और कुत्ता ऐसे समाज मे एक समान होता है कि बेबी कर लो या पप्पी ले आओ, जब तक बड़ा हो खूब दुलार करो और फिर एक दिन कुत्ता 18 साल में मर जायेगा और बच्चा 18 होते ही घर छोड़ देगा।


पोर्न इंडस्ट्री के आने से सिर्फ इतना ही नही हुआ। पोर्न ने नंगई के साथ साथ बौद्धिक नंगई भी बढ़ाई है स्टेप सिस्टर सेक्स, स्टेप डॉटर सेक्स, स्टेप ब्रदर सेक्स, स्टेप फादर सेक्स जैसी चीजें दिमाग मे घुसेड़ के सिर्फ अभी अपनी सगी बहन, मां, बाप, भाई ही छूट रखे हैं बाकी के कजिन अब उस नजर से देखे जाने लगे हैं। और ये भी कब नॉर्मल हो जाये बस दिमाग मे भरने की बात भर जितना दूर है। आज ट्विंकल खन्ना कहती है कि मेरा बेटा मुझे माँ की नजर से नही देखता। ये वो बॉलीवुड सोसायटी है जो सबसे ज्यादा पश्चिम से कनेक्टेड है। पश्चिम में हॉट मॉम, हॉट सिस्टर इस तरह कॉमन हो गया कि लड़के का दोस्त इसे मुंह पर बोल देता है अपने दोस्त को और इसे हामी भर स्वीकार लिया जाता है। भारत मे है किसी की हिम्मत कि किसी की माँ बहन के लिए उसका दोस्त ऐसे शब्द कह दे।


भारत की तो लड़कियां भी बेचारी कन्फ्यूज हैं। वो जबरदस्ती इंडियन-वेस्टर्न का घालमेल कर गलतफहमी में जी रही हैं। उन्हें ट्विंकल खन्ना की उस बात को ध्यान से समझना चाहिए क्योंकि तुम्हारे ही बच्चे फिर इसके प्रभाव में आने वाले हैं। तुम जो अभी उछल रही हो, कल को तुम्हारे कारनामे जब बच्चे बड़े होकर देखेंगे तो तुम्हारा भी ट्विंकल बनना तय है। तुम खुद ऐसी हो तो तुम्हारी बेटी को उससे ज्यादा गन्दा होने से कैसे रोक पाओगी क्योंकि ये बीमारी रिवर्स में तो चलेगी नही कि मम्मा हॉट थी मैं सिंपल बनूंगी, बल्कि होगा ये कि मम्मा हॉट थी मैं सुपरहॉट बनूंगी। रोक पाओगी उसे? किस मुंह से रोक पाओगी?


एक और चीज जहां इंडियन लड़कियां कंफ्यूज हैं या मजबूरी का शिकार हैं कि किसी को खुद पर बहनजी का ठप्पा नही चाहिये। यहां लड़कियां तीन वजह से सेक्सी एंड हॉट बनने को उतारूँ हैं। पहला कि उन्हें किसी से कमतर नही दिखना है, दूसरा उन्हें अटेंशन पाना है और तीसरा उन्हें मोडर्न लगना है। कमतर का अर्थ है कि तू कर सकती है तो मैं भी कर सकती हूँ। अटेंशन का अर्थ है कि सेक्सी दिखूंगी तो फॉलोवर बढ़ेंगे, लोग नोटिस करेंगे और क्या पता मैं भी सेलेब्रेटी बन जाऊं। और मोडर्न का मतलब कि ऐसी नही बनूंगी तो पिछड़ी कहलाऊंगी और लोग मजाक बनाएंगे कि आ गयी संस्कारी बहनजी। और इस वजह से दिल भले ही भारतीय हो शरीर पश्चिम हो गया है। ये लड़कियां पूजा पाठ भी कर लेती हैं, मन्दिर भी चली जाती हैं, परिवार वाली बनना चाहती हैं, बस कपड़ों और हरकतों से भारतीय नही बनना चाहती।। और जैसा बताया कि कपड़े पश्चिमी करने तो शुरुआत भर है, आगे सब कुछ पश्चिमी होता जाएगा जब नालिवाद आपको जकड़ना शुरू करेगा जो अभी its my body and its my choice के पहले गियर में है। और जहां शर्म गयी वहां सब कुछ यूं फिसलता जाएगा जैसे मुट्ठी से रेत फिसलती है और इसे कोई कितनी भी कोशिश कर ले ये रुकेगा ही नहीं। 100 में से 10 शायद वापसी कर भी लें 90 पश्चिम वाले मकड़जाल में फंसते ही चले जायेंगी जिसका अंत परिवार सिस्टम का अंत है और इसकी शुरुआत ही इसलिए साजिशतन हुई थी कि न्यू वर्ल्ड ऑर्डर वाले चाहते थे कि कोई परिवार न रहे जिससे फिर कोई समाज न टिक पाए और फिर ये एक नया जॉम्बी समाज बनाएं जो इनके इशारे पर काम करे जहां कोई अपना कल्चर न मानता हो, जहां कोई अपना ट्रेडिशन न मानता हो, जहां कोई अपना बिलीफ न मानता हो और जहां कोई अपनी सोच समझने की शक्ति न रखता हो।


बिगबॉस जो बिग ब्रदर का भारतीय वर्जन है यदि वह उसका विदेशी वर्जन देख लेते तो समझ जाते कि यह किस लेवल का घटिया शो है. विदेश में तो लड़की को नंगी होकर टास्क से लेकर खुलेआम ऑन कैमरा कपड़े बदलना, नहाना और सेक्स करना तक दिखाते हैं और वो वामपंथ में जकड़े लोग बड़ी बेशर्मी से खुलेआम यह "टास्क" करते भी हैं.


यह शो ही सांस्कृतिक पतन करने का जरिया है.. फिर वो विदेश हो या देश. इसी शो ने इस देश को अंतराष्ट्रीय वैश्या सनी लियोनी पेश की थी जो आज यदि सड़क पर खड़ी हो जाए तो हजारों यही संस्कृति की दुहाई देने वाले उसे देखने को खड़े रहते हैं. इसी शो के स्क्रिप्टेड कहानी से आपको यह दिखाया जाता है कि "बड़े" लोग किस तरह जीते हैं, सोचते हैं... ताकि आप भी उनकी सोच की कॉपी कर सको और उनकी सोच हमेशा इसी तरह होगी कि जब सनी लियोनी बताएगी कि "I am a porn star" तो "बड़े" लोग तालियों से उसका स्वागत करें और फिर जब कोई आम भारतीय उसे वैश्या कहे तो "बड़े" लोगों जैसा बनने वाले उस आम भारतीय को छोटी सोच और दकियानूसी ख्यालात वाला कहने लगें.


नतीजा-- आज हर दूसरी भारतीय लड़की फिल्मों(मुख्यत: वेब्सिरिज) में नंगी हो रही है.... क्योंकि एक तो उसे इससे पैसे मिल रहे हैं दूसरा जब समाज इस चीज को स्वीकार करकर शोहरत भी दे रहा है तो फिर ये संस्कृति-संस्कार का चूतियापा लेकर काहे अपना नुकसान करवाना? 

वैसे भी इस देश में भांड "हीरो" "हीरोइन" होते हैं।


अब फिर बिग बॉस के चर्चें हैं। गाली दी जा रही है कि ऐसे लोग कैसे जीत रहे हैं लेकिन लोग ये नही समझ रहे कि दुनिया का कोई भी रियल्टी शो में सिर्फ उसका नाम रियल होता है बाकी अब स्क्रिप्टेड होता है जो छपरी जीत रहे हैं ये जिताये जा रहे हैं ताकि इस तरह ही छपरी पीढ़ी जिसे GenZ कहते हैं वो तैयार कराई जाए। इनका बौद्धिक विकास नगण्य रहता है इसलिए इनको शिकार बनाना भी आसान है और इनके देखा देखी बाकी के युवा भी इसके लपेटे में आते हैं जब वो इस तरह के शो की चर्चा करते करते इसका शिकार हो जाते हैं वरना ये ZenG उन्हें अपने बगल में बिठाने से बहिष्कृत कर देंगे। इन्हें जिताकर लाइम लाइट में लाने का उद्देश्य है कि आप इन्हें फॉलो करें। न सिर्फ सोशल मीडिया पर बल्कि असली जीवन मे भी वरना आप कूल नही हैं बल्कि आप तो धरती पर बोझ बनकर जी रहे हैं। फिर जो जो इनसे करवाया जाएगा वो आपको करना ही पड़ेगा कूल दिखने को और ये किस तरह के निम्न बुद्धि के होते हैं ये कोई भी समझदार समझ सकता है। बिग बॉस बना ही इसलिए है ताकि आप उस "घर" की तुलना अपने घर से करें और मायूस होकर सोचें कि आपके घरवाले, रिश्तेदार, मोहल्ले तो साले बकवास जीवन जीते हैं, असली जीवन तो बिग बॉस वालों का है। फिर जब आप इन्हें निजी जीवन मे जीते हैं तो आप घर से बागी बनते हैं कि मुझे ऐसी चुइया जिंदगी नही चाहिए मुझे तो मेरे "आदर्श" की तरह जीना है। आपको हैरानी नही होती कि 3 महीने चलने वाला ये शो क्यों साल में दो बार कर दिया गया है अर्थात आपके जीवन के प्रत्येक वर्ष आप आधे वर्ष इन्हें ही देख रहे हैं।


समाज इसी तरह बागी बनता है। एक 3 घण्टे की फ़िल्म से ज्यादा प्रभाव इस तरह के शो बनते हैं जो घर मे आसानी से उपलब्ध भी है और हर दिन इनकी चर्चा आप स्कूल कॉलेज में भी कर रहे हैं कि आज तो ये हुआ और आज तो वो हुआ। यही काम तो डेली सोप ने घर की महिलाओं के साथ किया कि सास कैसे बनना है, बहु कैसे बनना है, क्लेश कैसे सीखने है आदि आदि। एकता कपूर तो इन नाटकों के जरिये परिवारों में आग लगवाने को माहिर ही है। इसपर कितने लोग पहले कितनी बातें कर भी चुके हैं।


यही बिग बॉस भी का काम है। ऊपर की पोस्ट दो चार पुरानी पोस्टों की मिक्स है तो आप बार बार सनी लियोनी शब्द देख रहे होंगे और सोचते होंगे कि अब सनी लियोनी को कौन ध्यान देता है लेकिन सनी लियोनी ही वो पहली सीढ़ी थी जहां से शुरुआत हुई थी जो अब किस स्तर पर है आपको भी पता है। ऐसे ही बिग बॉस का भविष्य देखना हो तो बिग ब्रदर के इंटरनेशनल शोज़ देखिए और आप समझ जाएंगे कि ये आपके घर परिवार समाज को कहां ले जाएगा। अभी तो इसका उससे रिलेशन, उसका उसके बाहों में पड़े रहना, स्विमिंग पूल में नहाना, चुम्बन, क्लेश, एक दूसरे को एक्सपोज़ करना जैसा शुरुआती पड़ाव है जैसा सनी लियोनी थी और जब आप इसमें ढल जाएंगे तो आप वैसे ही कहँगे कि ये भी कोई बात करने की चीज है जो अब पुरानी बात हो चुकी जैसा आप सनी लियोनी को कहँगे कि वो भी अब चर्चा की बात है क्योंकि अब तो सनी लियोनियाँ भर चुकी हैं समाज में।।


आप में से बहुत से लोग इसके लोगो, इल्युमिनाटी आदि से परिचित होंगे तो जानते होंगे कि ये डीप स्टेट का हिस्सा ही है। वही डीप स्टेट जो दुनिया मे woke कल्चर का क्रुसेड छेड़े है। कोई भी जनरेशन ऐसे ही किसी बीमारी से ग्रसित नही होती। उसके लिए हर जगह अपना सिस्टम इंस्टाल किया जाता है। बिग बॉस भी उन्ही का एक प्लेटफॉर्म है।।

साभार पवन त्रिपाठी फेस बुक वॉल