मंगलवार, 14 जनवरी 2020

एम्स दिल्ली के बाद पीजीआइ जहां संभव है पार्किसंस का डीबीएस तकनीक से इलाज

इतना हाथ कांपता था कि खाना-पीना, टूथ ब्रश करना और कपडे पहना तक हो गया था मुश्किल



एम्स दिल्ली के बाद पीजीआइ जहां संभव है पार्किसंस का डीबीएस तकनीक से इलाज


संजय गांधी पीजीआइ उत्तर भारत का दूसरा संस्थान बन गया है जहां डीप ब्रेन स्टिमुलेशन के जरिए पाक्रिसंस का इलाज संभव हो गया है। संस्थान की पहली सर्जरी संस्थान के न्यूरोलाजी, न्यूरोसर्जरी, एनेस्थेसिया, रेडियोलाजी और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के विशेषज्ञों ने अमेरिका के डीबीएस एकस्पर्ट न्यूरो सर्जन प्रो.मिलिंद देवगावकर के निर्देशन में पूरा किया।
 न्यूरोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो.सुनील प्रधान, न्यूरोसर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो.संजय बिहारी, न्यूरोसर्जन प्रो. अरूण श्रीवास्तव , एनेस्थेसिया के प्रो. देवेंद्र गुप्ता , न्यूरोसर्जन प्रो. पवन, प्रो. वेद प्रकाश, प्रो. कुंतल कांति दास, न्यूरोलाजिस्ट प्रो. रूचिका टंडन, एनेस्थेसिया के डा.रूद्र, ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के प्रो अतुल सोनकर , सिस्टर इंचार्ज नारदी, एस्तर  के साथ प्रो. मिलिंद ने बताया कि पहली सर्जरी 64 वर्षीय एक मरीज में की गयी। इन्हे पार्किसंस की परेशानी लंबे समय थी । दवाओं का असर कम हो गया था। दवा के साइड इफेक्ट भी आ गए थे। चलने –फिरने में लाचार हो गए थे। शरीरिक संतुलन कम हो गया था। हाथ में बहुत अधिक कंपन होता था जिसके कारण खान-पीना, टूथ ब्रश करना  , कपड़े पहनना तक कठिन हो गया था। दवा से दवा अच्छी तरह से काम नहीं कर रही है ।  डिस्केनेसिया (अनियंत्रितअनैच्छिक कंपन) हो रहा है। असंतुलन कठोरतासुस्ती और कंपन के मोटर लक्षणों को कम करने यह सर्जरी की जाती है।

डीबीएस के बाद दवा की मात्रा हो जाती है कम
डीबीएस के बाद न्यूरोस्टीमुलेटर को एडजस्ट करने के साथ ही दवा की मात्रा तय की जाती है। डीबीएस के बाद दवा कम होने के कारण दवा के कप्रभाव नहीं सहने पड़ते हैं।
   
.क्या होता है पार्किसंस
   
दिमाग में तंत्रिका कोशिका का नुकसान डोपमाइन के स्‍तर को गिरा देता हैजिससे पार्किंसन के लक्षण उभरते है। इसके कारण अंगो को सही तरीके दिमाग से सिगनल नहीं मिलता है।  किसी एक हाथ में कंपन के साथ शुरू होता है।  अन्य लक्षणों में धीमी गतिकड़ापनऔर संतुलन खोना शामिल हैं



क्या होता है डीप ब्रेन स्टिमुलेशन
यह मस्तिष्क में असामान्य विद्युत सिग्नलिंग पैटर्न को नियंत्रित करता है। अंगो की गति नियंत्रित करने के लिए  मस्तिष्क की कोशिकाएं विद्युत संकेतों का उपयोग करके अंगो के कोशिकाएं साथ संवाद करती हैं। डीबीएस अनियमित सिग्नलिंग पैटर्न को नियमित या बाधित कर सकता है जिससे कोशिकाएं अधिक सुचारू रूप से संचार कर सकें और लक्षण कम हों।

कैसे होती है सर्जरी

डीबीएस सर्जरी मेंसर्जन पतली तारों को मस्तिष्क के एक या दोनों किनारों पर सबथैलेमिक न्यूक्लियस या ग्लोबस पैलिडस इंट्रा में रखता है जो अंगो के मूवमेंट को नियंत्रित करते हैं। मरीज  सर्जरी के दौरान जागते रहते हैं ताकि  सवालों के जवाब दे सकें सही जवाब देने से और इलेक्ट्रोड लगाने के बाद ओटी टेबिल पर ही कंपन कम हो जाता है। इससे पता लगता है कि  इलेक्ट्रोड सही ढंग सही जगह पर लगा है। इलेक्ट्रोड लगने के 7 से 8 घंटे  बाद। बेहोश कर इलेक्ट्रोड को  बैटरी से चलने वाले उपकरण (कार्डियक पेसमेकर के समान) से जोड़ा ।  कॉलरबोन के नीचे की त्वचा के नीचे रखा जाता है। यह उपकरणजिसे न्यूरोस्टिम्यूलेटर कहा जाता है।  लेक्ट्रोड के माध्यम से निरंतर इलेक्ट्रिक पल्स तार के जरिए दिमाग को देता है। 

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