रविवार, 19 जनवरी 2020

.........बोलने और सुनने लगा सिदार्थ- पीजीआइ में लगा इलेक्ट्रानिक कान




.........बोलने और सुनने लगा सिदार्थ
पीजीआइ में लगा इलेक्ट्रानिक कान
जब मम्मी बोला तो मिला सुकुन
कुमार संजय । लखनऊ   
पांच  साल पहले गोंडा की मूल निवासी नंदनी पाठक को पता चला कि उनका लाल न सुन सकता है न तो बोल सकता है तो लगा कि उनकी दुनिया ही सिमट गयी। उनका लाल बडा हो कर क्या करेगा लेकिन उम्मीद की किरण तब जगी एक परिवार ने बताया कि यह बच्चे भी पढ़ लिख कर कुछ बन सकते हैं। इसी उम्मीद को लेकर वह लखनऊ के बचपन डे केयर स्कूल में बच्चे का दाखिला करा दिया जहां पर ऐसे ही बच्चों की शिक्षा की व्यस्था सरकार करती है। इसी बीच कई डाक्टरों को दिखाया तो हियरिंग एड लगा दिया लेकिन उससे कोई खास फायदा नहीं हुआ। इसी बीच संजय गांधी पीजीआइ के न्यूरो आटोलासिस्ट प्रो. अमित केशरी को प्रदेश सरकार से 10 बच्चों में इलेक्ट्रानिक कान( काक्लियर इंपलांट) लगाने के लिए अनुदान मिला। प्रो. केशरी ने इसी स्कूल के प्रमुख लोगों से संपर्क कर गरीब बच्चों को चिन्हित कर भेजने को कहा तो उसमें सिदार्थ को शामिल किया गया। तमाम चांच के बाद सिदार्थ को सर्जरी के लिए फिट पाया गया। 6 महीने पहले इनमें इलेक्ट्रानिक मशीन लगा दिया गया वह काफी हद तक सुनने और बोलने लगे है। अब वह सामान्य बच्चों के स्कूल में जाने लगा है। सिदार्थ ने कहा कि वह पढ़ लिख कर अफसर बनेगा।
काक्लियर इंपाल्ट बच्चों का हुआ संवाद
संस्थान ने सुनो सुनओ के तहत संवाद का आयोजन किया जिससे पहले इंप्लांट करा चुके बच्चे और उनके परिजन जल्दी कराने वाले परिजनों और बच्चों को बता सके कि वह बिल्कुल सामान्य होंगे। प्रो. केशरी ने बताया कि 10 बच्चों में इंप्लांट के लिए पैसा विकलांग कल्याण विभाग ने दिया।  डिप्टी डायरेक्टर एमके पर्वत ने बताया कि इस साल 60 बच्चों के लिए बजट जारी किया गया है जिसमें से इस साल भी 10 बच्चों में इंप्लांट होगा। आडियोटेक्नोलाजिस्ट राकेश कुमार श्रीवास्तव और केके चौधरी के मुताबिक सुनने की क्षमता का परीक्षण आडियोमेट्री से करने के बाद तय किया जाता है कि कितनी परेशानी है क्या बेहत उपचार है।

एक हजार में 6 बच्चों में सुनने की परेशानी
 प्रो.केशरी के मुताबिक एक हजार में 6 बच्चों में सुनने की परेशानी होती है जिसमें दो से तीन बच्चों में इंप्लांट की जरूरत होती है बाकी में हियरिंग एड से काम चल जाता है। इलाज बच्चे के एक साल की उम्र के बाद होने से सफलता दर अदिक होती है।
कैसे होता है इंप्लांट
कॉकलियर इंप्लांट उपकरण हैजिसे सर्जरी के द्वारा कान के अंदरूनी हिस्से में लगाया जाता है और जो कान के बाहर लगे उपकरण से चालित होता है। कान के पीछे कट लगाते है और मैस्टॉइड बोन (खोपड़ी की अस्थाई हड्डी का भाग) के माध्यम से छेद किया जाता है। इस छेद के माध्यम से इलेक्ट्रॉइड को कॉक्लिया में डाला जाता है। कान के पिछले हिस्से में पॉकेट को बनाया जाता हैजिसमें रिसीवर को रखा जाता है।  सर्जरी के लगभग एक महीने के बादबाहरी उपकरणों जैसे माइक्रोफोनस्पीच प्रोसेसर और ट्रांसमीटर को कान के बाहर लगा दिया जाता है। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें