मंगलवार, 14 जनवरी 2020

विशेषज्ञ छोड़ रहे है सरकारी संस्थान--जागरण का संपादकीय

डॉक्टरों का पलायन



संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान और अन्य बड़े चिकित्सा संस्थानों से विशेषज्ञ डॉक्टरों का निजी अस्पतालों की ओर पलायन चिंता की बात है। जो डॉक्टर धन के आकर्षण में निजी और कारपोरेट अस्पतालों में जा रहे हैं, न सिर्फ उनकी शिक्षा में सरकार का योगदान है बल्कि उन्होंने विशिष्टता भी एसजीपीजीआइ और केजीएमयू जैसे संस्थानों के साधनों का इस्तेमाल करके हासिल की। ख्याति अर्जित करते ही डॉक्टरों का पलायन इन संस्थानों के लिए बड़ा झटका है। हाल ही में एसजीपीजीआइ के कई प्रतिष्ठित डॉक्टर कारपोरेट अस्पतालों में चले गए। हालत यह है कि संस्थान के कई विभागों में डॉक्टरों की कमी है, जिसके चलते चिकित्सा, शिक्षा और शोध गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। केंद्र और राज्य सरकार को इस समस्या के बारे में गहन चिंतन करना चाहिए। कोई भी बड़ा संस्थान सिर्फ भवन, उपकरणों या प्रयोगशालाओं से बड़ा नहीं बन जाता। एसजीपीजीआइ और केजीएमयू जैसे संस्थान बड़े डॉक्टरों की वजह से बड़े बने। अब वही डॉक्टर बड़े संस्थानों से मुंह मोड़ रहे हैं तो स्वाभाविक रूप से इन संस्थानों की विश्वसनीयता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। स्पष्ट है कि राजकीय संस्थान छोड़कर कारपोरेट अस्पतालों की ओर डॉक्टरों के आकृष्ट होने की मुख्य वजह धन का आकर्षण है। मेधा और मेहनत के जरिये अधिक धन अर्जित करने की अभिलाषा में कुछ भी अनुचित नहीं है। सरकारों को इस पहलू पर ध्यान देना चाहिए। बेहतर होगा कि राज्य सरकार इस परिस्थिति का अध्ययन करके इस समस्या के समाधान के सुझाव देने के लिए वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों और चिकित्सा विज्ञानियों की एक समिति गठित कर दे। यदि विशेषज्ञ डॉक्टर राजकीय संस्थानों से विदा लेते रहेंगे तो सर्वाधिक खमियाजा उन मरीजों को भुगतना पड़ेगा जो कारपोरेट अस्पतालों का भारी खर्च उठाकर इलाज कराने में असमर्थ हैं। एसजीपीजीआइ और केजीएमयू जैसे संस्थानों में कोई भी मरीज पांच-दस रुपये का पर्चा बनवाकर बड़े डॉक्टरों का परामर्श प्राप्त कर सकता है। सरकार को ऐसी नीति-रणनीति बनानी चाहिए जिससे डॉक्टरों का पलायन रोका जा सके बल्कि जो डॉक्टर जा चुके हैं, उन्हें फिर उन्हीं संस्थानों में वापस लाया जा सके।
सरकार को ऐसी नीति-रणनीति बनानी चाहिए जिससे डॉक्टरों का पलायन रोका जा सके बल्कि जो डॉक्टर जा चुके हैं, उन्हें फिर उन्हीं संस्थानों में वापस लाया जा सके।

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