गुरुवार, 22 मार्च 2018

20 फीसदी टीबी के मरीजों बैक्टीरिया पर बेअसर साबित हो रही दवाएं

20 फीसदी टीबी के मरीजों बैक्टीरिया पर बेअसर साबित हो रही दवाएं

एक साल में दो हजार मरीजों में  जांच के बाद सामने अाय तथ्य

जीन एक्सपर्ट जांच से सात घंटे में चल जाता है एमडीआऱ का पता  



जागरणसंवाददाता। लखनऊ

सही मात्रा सही समय तक टीबी की दवा न खाने के कारण 20 फीसदी लोगों में टीबी की दवाअों के खिलाफ प्रतिरोध पैदा हो गया है। यह टीबी के मरीज खुद के साथ दूसरो को भी प्रतिरोध टीबी के शिकार बना रहे हैं। प्रतिरोध वाले मरीजों को एमडीअार टीबी डाक्टरी भाषा में कहा जाता है। इस तथ्य का खुलासा संजय गांधी पीजीआई में विश्व टीबी दिवस ( 24 मार्च) के मौके पर अायोजित सीएमई में विशेषज्ञों ने दी। संस्थान के माइक्रोबायोलोजी विभाग की प्रो.रिचा मिश्रा ने बताया कि एमडीआर पता करने के नई तकनीक जीन एक्सपर्ट तकनीक हमारे विभाग में स्थापित है। साल भर में दो हजार मरीजों के बलगम को लेकर परीक्षण किया तो देखा बीस फीसदी में रिफाम्पशीन दवा के खिलाफ प्रतिरोध था यानि यह दवा इनमें काम नहीं कर रही थी। नई तकनीक से सात घंटे में हम जांच कर रिपोर्ट दे रहे हैं।  बताया कि टीबी की पुष्टि के लिए अाज भी चेस्ट एक्स-रे, बलगम स्मेयर और कल्चर है। हम लोग लाइन प्रोसेसस एेसे तकनीक भी स्थापित कर रहे है जिससे बाकी टीबी के खिलाफ भी प्रतिरोध का पता लगाना संभव हो गया है। संस्थान के पल्मोनरी मेडिसिन के प्रमुख प्रो.अालोक नाथ ने बताया कि जांच तकनीक के कारण एमडीअार टीबी के मामले तेजी से सामने अा रहे है । इनमें दवा 12 से 24 महीने तक देनी पड़ती है। बताया कि सबसे अधिक 20 से 50 अायु वर्ग के लोग टीबी के शिकार है। संस्थान के निदेशक प्रो.राकेश कपूर ने कहा कि टीबी को 2025 तक खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री ने लक्ष्य तय किया है । इस लक्ष्य को पाने के लिए नीचे के स्तर पर काम करना होगा। शऱीर के किसी भी अंग में टीबी हो सकता है।      


बच्चों में टीबी पता करने के लिए पेट से लिया जाता है पानी

प्रो. अालोक नाथ ने बताया कि बच्चों में टीबी का पता लगना थोडा कठिन होता है क्यों कि बच्चे बलगम थूक नहीं पाते । बलगम को निगल लेते है एेसे स्थित में हम लोग इंडोस्कोप पेट से पानी लेकर उसमें टीबी की जांच करते हैं। बताया कि टीबी का टीका करण 0 से 80 फीसदी तक ही कारगर साबित हो रहा है। अब एेसे टीके की जरूरत है जो पूरी तरह बचाव कर सके।  टीबी को खत्म करने के लिए जिस एरिया में टीबी की अधिक अाशंका है उस स्थान का पता लगा कर लोगों की जांच कर टीबी का इलाज करने की जरूरत है। मैन पावर बढा कर की टीबी को खत्म किया जा सकता है। लैब और क्लीनीशियन दोनों में बैलेंस बनाने की जरूरत है। 

15 फीसदी नहीं लेते सही दवा

संजय गांधी पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन के प्रो. जिया हाशिम ने कहा कि 10 से 20 फीसदी लोग शरीर के भार के अनुसार सही मात्रा में दवा नहीं खाते। सही समय तक दवा नहीं खाते बीच में छोड़ देते हैं। कई बार दवा की गुणवत्ता कम होती है तो कई बार जितनी दवा बतायी गयी उतनी नहीं खाते एक दवा या दो दवा कम कर देते है जिसके कारण टीबी के मामले खराब हो रहे हैं। इस लिए सही मात्रा में सही समय तक सही दवा लेकर टीबी के मुक्ति मिल जाती है।  
देखा गया है कि नए टीबी के तीन फीसदी मामलों में एमडीआर मिल रहा है यानि एमडीअार वाले मरीजों से इन्हे टीबी का इंफेक्शन हो रहा है। प्रो. हाशिम ने कहा कि टीबी की दवा खा रहे 5 से 10 फीसदी मरीजों में लिवर फंक्शन बिगड़ जाता है जिसके कारण लिवर फंक्शन प्रोफाइल की जांच गड़बड़ आती है जिसे हम लोग ठीक कर लेते हैं। इस लिए मरीजों को लगाातार फालोअप पर रहना चाहिए।    

पीजीआई ने निकाला बंगलादेशी का ग्लैंड और थम गया पारा

पीजीआई ने निकाला बंगलादेशी का ग्लैंड और थम गया पारा

इंडो क्राइन ग्लैंड ट्यूमर की परेशानी से जूझ रहे थे समसुद 


ढाका के रहने वाले 43 वर्षीय मुहम्द समसुद जमन मिया का ब्लड प्रेशर तमाम दवाअों के बाद तीन सौ से ऊपर रहता था यह तो गनीमत थी कि बढे पारे की वजह से कोई और परेशानी नहीं खडी हुई । ढाका में तमाम डाक्टरों  को दिखाय़ा  लेकिन राहत न मिलने पर सिंगापुर में नेशनल यूनिवर्सटी हास्पिटल में सलाह लेने पहुंचे वहां पता चला कि इन्हे फीयोक्रोमोसाइटोमा की परेशानी है जिसमें सर्जरी ही इलाज है। सिंगपुर सर्जरी का खर्च 25 लाख रूपया बताया । इनकी इतनी क्षमता न होने के कारण सिंगपुर के ही सर्जन से भारत में संजय गांधी पीजीआई में सर्जरी कराने की सलाह दी। सिंगपुर के सर्जन से इंडो सर्जन प्रो.अमित अग्रवाल को समसुद की पूरी डिटेल भेजी। प्रो.अमित ने सारी रिपोर्ट देखने के बाद समसुद को 10 मार्च को लखनऊ बुला लिया और 16 मार्च को इनके एड्रिनल ग्लैड की सर्जरी की । आज इन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी। प्रो. अमित अग्रवाल ने बताया कि पहले इनका ब्लड प्रेशर कम किया गया इसके बाद लेप्रोस्कोप से सर्जरी की गयी। सर्जरी में इंडो सर्जन सवारत्मन, डा. सुनील मट्टू, डा. रऊफ, एनेस्थेसिया के प्रो. अाशीष कनौजिया के अलावा रंजना, फणीष , दीप्ती शामिल हुए।  

क्या फीयोक्रोमोसाइटोमा 


प्रो.अमित अग्रवाल ने बताया कि गुर्दे के पासका एड्रिनल ग्रंथि होती है। यह ग्रंथि एड्रलीन हारमोन का स्राव करती है जो रक्त दाब को नियंत्रित करने में मदद करती है। एड्रिनल ग्रंथि में ट्यूमर दो तरह के हो स·ते हैं। एक ट्यूमर को फियोक्रोमोसाइटोमा कहते हैं इससे रक्तदाब अनियंत्रित रहता है। 
 इस बीमारी का पता लगाने के लिए एल्डोस्टेरान हारमोन एवं पोटेशियम का परीक्षण कराया जाता है। दोनों की मात्रा में वृद्घि से बीमारी की पुष्टि होती है। यह बीमारी पोटेशियम की मात्रा मिलने से कुछ हद तक ठी· हो जाती है लेकिन बीमारी का पूर्ण इलाज सर्जरी है। उच्च रक्त दाब नियंत्रित न होने पर फियोक्रोमोसाइटोमा ट्यूमर का परीक्षण किया जाता है। 



निजि अस्पताल से भी अच्छा है पीजीआई 



समसुद का कहना है कि पीजीआई के सुविधा किसी कारपोरेट अस्पताल से कम नहीं है अाने -जाने और सर्जरी तक में कुल एक लाख के अास -पास खर्च हुअा जबकि यही इलाज सिंगपुर में 25  लाख तक बताया जा रहा था। 

मंगलवार, 20 मार्च 2018

सामान्य बच्चों से भी आगे है यह स्पेशल चाइल्ड... साहिल


सामान्य बच्चों से भी आगे है यह स्पेशल चाइल्ड... साहिल







साहिल दे रहे है योगा का ज्ञान आगे बनेंगे योगा टीचर

कुमार संजय। विनय तिवारी 

 यदि आप का बच्चा डाउन सिंड्रोम( मानसिक रूप से कमजोर) का शिकार है तो हार मान कर बैठने की जरूरत नहीं है। आप सभी लोग साहिल सिंह के परिजनों से सीख लें सकते है। साहिल भी डाउन सिंड्रोम के शिकार है लेकिन उपबल्धियों की लिस्ट इतनी लंबी है कि सामान्य बच्चा भी इनकी बराबरी नहीं कर सकता है। आज विश्व डाउन सिंड्रोम जागरूरकता दिवस है ऐसे मौके पर साहिल तमाम उन बच्चों के परिजनों के लिए उम्मीद की किरण साबित हो सकता है जो हार मान कर बच्चों को घर में बैठौ दिए हैं। साहिल सिंह के पिता प्रो. रजनीश कुमार सिंह और माता डा. भवना सिंह की मेहनत का नतीजा है कि आज साहिल एक स्कूल में योगा प्रशिक्षक के रूप में काम कर रहे है आगे योगा के अध्यापक के रूप में तैनाती इसी स्कूल में होने की पूरी संभावना है। साहिल ने एशिया पेस्फिक रीजनल स्पेशल चाइल्ड ओलंपिक में तैराकी में सिलवर मेडल जीता । इस ओलंपित में एक हजार से अधिक बच्चों ने भाग लिया था। लखनऊ मैनेजमेंट एसोसिएशन ने यंग एचीवर का अवार्ड दिया। प्रदेश सरकार ने 2014 में बेस्ट रोल माडल का अवार्ड दिया। इनके अभिभावक कहते है कि आगे अपने पैर में कैसे खडे हो इसके लिए योगा का प्रशिक्षण लिया । योगा शिक्षक राजेश सिंह और कल्पना ने इन्हें प्रशिक्षित किया। अब इसी स्कूल में योगा का प्रशिक्षण दे रहे है। इस तरह स्कूल में तैनाती के बाद यह अपने पैर में खडे हो जाएंगे। इसी तरह हर अभिभावक थोडा हिम्मत से काम लें तो इनका स्पेशल चाइल्ड सामान्य चाइल्ड की तरह सब कुछ कर सकता है। 


डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चों के लिए अलग स्कूल क्यो

संजय गांधी पीजीआई के प्रो. रजनीश कुमार सिंह और डा. भवना सिंह कहते है कि डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चों के लिए अलग स्कूल की जरूरत नहीं है। सामान्य स्कूल में ही अलग सेक्शन हो जिससे बच्चे हर एक्टीविटी में भाग लें । स्पेशल बच्चे अपने को अलग न समझें। स्टडी हाल स्कूल में ऐसे बच्चों के लिए अलग सेक्शन है जिससे साहिल पढ़ते है। इनके विकास में स्कूल की अहम भूमिका है। 

इन बच्चों को मिले डाटा इंट्री आपरेटर जैसे जांब

यह बच्चे कंप्यूटर चलाने में भी दक्ष हो सकते है साहिल काफी काम कर लेते है । इस लिए ऐसे बच्चों को डाटा इंट्री जैसे जांब संस्थानों को देना चाहिए। पढने के लिए ओपेन स्कूल बेस्ट है क्योंकि इसमें एक या दो विषय की परीक्षा दे कर धीर-धीरे पास किया जा सकता है। साहिल ने हाई स्कूल पास कर लिया है अब इंटर कर रहे हैं।       


क्या है डाउन सिंड्रोम

 डाउन सिंड्रोम एक अनुवांशिकी बीमारी है। इस बीमारी के साथ पैदा होने वाले बच्चे मंद बुद्धि के होते हैं।  यह गुणसूत्रों की खराबी के कारण होती है। बच्चे के ं 21 वें नंबर के गुणसूत्र की 2 कापी होने बजाए तीन कापी हो जाती है। इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों की आई क्यू 40 से 60 तक पायी जाती है। चलना, बोलना यह सामान्य बच्चों के मुकाबले देर से शुरू करते हैं।   प्रो.रजनीश कहते है कि जल्दी  बीमारी का पता लगने पर स्टीमुलेशन थिरेपी देने से बच्चों के दिमाग विकसित होता है और मासपेशियां म जबूत  हो जाती है जिससे बच्चा  सामान्य तरह से जीवन जीता है।  





कैसे लगता है बीमारी का पता

शिशु में डाउन सिंड्रोम का पता लगाने के लिए ट्रिपल टेस्ट पाजिटिव आने के बाद अमीनीयोसेंटेसिस परीक्षण किया जाता है। इसमें गर्भ से पानी निकाल कर उसमें 21 वें गुणसूत्र की खराबी को केरिओटाइपिंग परीक्षण के जरिए देखा जाता है। गर्भ 18 से 19 हफ्ते का भी है तो फिश तकनीक से बीमारी का पता लग जाता है। इस परीक्षण से मां एवं गर्भस्थ शिशु पर कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता है। संस्थान में इस परीक्षण की कीमत पांच हजार रूपया है। 





यह जरूर ले अनुवांशिकी विशेषज्ञ से सलाह

- उम्र 35 से अधिक

-गर्भावस्था के दौरान मधुमेह

- परिवार में जंमजात शारीरिक बनावट में विकृति के अलावा दिल, दिमाग, हाथ पैर, आंख या आंत में बनावटी खराबी

- परिवार में किसी को थैलेसीमिया, हीमोफीलिया, डाउन सिंड्रोम की बीमारी

- परिवार में कोई मंद बुद्धि वाला बच्चा या व्यक्ति

- मृत शिशु का जंम







उम्र के साथ बढ़ती जाती है डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चा पैदा होने की आशंका

उम्र जंम लेने वाले बच्चों में से एक में डीएस की आशंका

20 ----  1450

25------ 1305

28 ----1150

35 ----350

38 ----150

40 ----110


रविवार, 18 मार्च 2018

न्यूरो इंडोक्राइन ट्यूमर के 80 फीसदी मामले होते है कैंसर विहीन



न्यूरो इंडोक्राइन ट्यूमर के 80 फीसदी मामले कैंसर विहीन

पीआरआरटी थिरेपी से कैंसर युक्त इंडोक्राइन ट्यूमर को खत्म करना हो गया संभव

पीजीआई हर साल आते है 20 मामले



कुमार संजय । लखनऊ

पेप्पाइट रिसेप्टर रोडियो न्यूक्लायड थिरेपी(पीआरआरटी) के जरिए न्य़ूरो इंडोक्राइन के कैंसर युक्त ट्यूमर को खत्म करना और कैंसर को बढने से रोकना असान हो गया है। इस थिरेपी के जरिए संजय गांधी पीजीआई सौ से अदिक मरीजों को राहत दे चुका है। संस्थान के इंडोक्राइनोलाजिस्ट प्रो.सुशील गुप्ता कहते है कि न्यूरो इंडोक्राइन ट्यूमर हारमोन स्रावित करने वाले ग्रंथि में होता है इस लिए इन मामलों को हम लोग ही देखते हैं। प्रो. गुप्ता ने बताया कि न्यूरो इंड्रोक्राइन ट्यूमर के 80 फीसदी मामलों में ट्यूमर कैंसर युक्त नहीं होता है इस लिए जिस इंडोक्राइन ग्लैंड में ट्यूमर है उस ट्यूमर की सर्जरी कर निकाल देने  इन 80 फीसदी लोगों में 95 फीसदी बिल्कुल फिट हो जाते है। दिमाग के पिट्यूटरी ग्लैंड में ट्यूमर होने पर न्यूरो सर्जरी को विभाग के सर्जन को शामिल करते हैं। शरीर के जिस भाग में होता है उस विभाग के सर्जन सर्जरी करते है लेकिन कई मामलों में सर्जरी संभव नहीं होती और ट्यूमर कैंसर युक्त होता है एसे में पीआरआरटी थिरेपी काफी कारगर होती है। हमरे संस्थान में 15 से 20 मामले हर साल अते है जिसे मैनेज करते हैं।   कैंसर होने पर सर्जरी के बाद रेडियोथिरेपी देनी होती है। कई बार सर्जरी से पहले कीमोथिरेपी दी जाती है । कैंसर होने पर भी इलाज की सफलता दर 80 फीसदी से अधिक हैं।     

क्या है न्यूरो इंडोक्राइन ट्यूमर

इंडोक्राइनोलाजिस्ट प्रो. सुशील गुप्ता का कहना है कि न्‍यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर एक ऐसा ट्यूमर है जो शरीर के हार्मोन पैदा करने वाले हिस्‍सों में पनपता है।  यह बीमारी काफी रेयर है लेकिन इसे काफी गंभीर माना जाता है। यह बॉडी के अलग-अलग हिस्सों में हो सकती है। किसी वजह से बॉडी में एंडोक्राइन हॉर्मोन का बैलेंस बिगड़ने के कारण ये ट्यूमर में बदलने लगते हैं। लंबे समय तक ऐसा रहने से न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर की कंडीशन बन जाती है।वास्तव में इसमें हार्मोन पैदा करने वाली एंडोक्राइन कोशिकाएं और नर्व कोशिकाएं दोनों शामिल होती हैं।

शऱीर के किसी भी अंग में हो सकता है

 न्‍यूरो एंडोक्राइन कोशिकाएं ब्रेन, पेट और आंत सहित फेफड़े, गैस्‍ट्रोइन्टेस्‍टाइन ट्रैक्ट जैसे हिस्सों में होती हैं। सबसे अधिक पैक्रियाज और एड्रीनल ग्लैंड में यह ट्यूमर होता है  यह ट्यूमर कई प्रकार का होता है। अगर इसका सही समय पर इलाज करवा लिया जाए तो इसके खतरे को कम किया जा सकता है।

इन कारणों से हो सकता है न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर

झ्र अगर परिवार में किसी को न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर है तो बच्चों को भी यह बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है।
झ्र अगर किसी व्यक्ति का इम्यून सिस्टम (बीमारियों से लड़ने की क्षमता) कमजोर है तो उसे ये बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है।

झ्र लंबे समय तक स्मोकिंग करने से न्यूरो एंड्रोक्राइन ट्यूमर का खतरा बढ़ सकता है।
झ्र बढ़ती उम्र के साथ बॉडी में कई तरह के हॉर्मोनल चेंजेस आते हैं। इसकी वजह से यह ट्यूमर चालिस  की उम्र के आसपास होने की आशंका बढ़ जाती है।

कई तरह के होते है न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर

इंडो सर्जन प्रो. ज्ञान चंद ने बताया कि न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर कई प्रकार का हो सकता है। इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर के किस हिस्से में है। इनमें फीयोक्रोमोसाइटोमा, मेर्केल सेल कैंसर, न्यूरोइंडोक्रिन कार्सिनोमा और परागंगलियोमा शामिल हैं। फीयोक्रोमोसाइटोमा क्रोमाफीन कोशिकाओं के साथ बढ़ता है, जो एड्रलीन हारमोन पैदा करता है। 



शुक्रवार, 16 मार्च 2018

पीजीआइ व एम्स ऋ षिकेश के बीच समझौता

पीजीआइ व एम्स ऋ षिकेश के बीच समझौता




जागरण संवाददाता, लखनऊ: संजय गांधी पीजीआइ और एम्स ऋषिकेश के बीच शोध एवं चिकित्सा शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शुक्रवार को समझौता हुआ है। दोनों संस्थान के विशेषज्ञ तकनीक हस्तांतरण के साथ ही चिकित्सा क्षेत्र की नयी चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए मिलकर शोध कार्य करेंगे। 1लखनऊ में हुए समझौते के दौरान पीजीआइ के निदेशक प्रो.राकेश कपूर, एम्स ऋषिकेश के निदेशक प्रो. रविकांत, पीजीआइ के हृदय शल्य चिकित्सक प्रो. एसके अग्रवाल, सीएमएस प्रो. अमित अग्रवाल, ट्रांस फ्यूजन मेडिसिन विभाग के प्रो. प्रशांत अग्रवाल के अलावा रिसर्च सेल के नोडल आफीसर सहित कई लोग मौजूद थे। प्रो. राकेश कपूर ने बताया कि अब दोनों संस्थानों के बीच तकनीक हस्तांतरण की राह आसान होगी। उदाहरण के तौर पर रोबोटिक सर्जरी व जीन फिक्वेंसिंग तकनीक एम्स ऋषिकेश में स्थापित हो चुकी है और पीजीआइ में इसको शुरू करने की तैयारी की जा रही है। 1इसी तरह एम्स ऋषिकेश चूंकि अभी नया खुला है और क्लीनिकल सर्विस अभी शुरू हो रही है, जबकि पीजीआइ में यह बहुत पहले से है। यही नहीं किडनी ट्रांसप्लांट, बाईपास सर्जरी, एंजियोग्राफी, इंटरवेनशन रोडियोलॉजी जैसी तमाम तकनीक भी पीजीआइ में अंतरराष्ट्रीय स्तर की है। दोनों संस्थान एक-दूसरे से उसकी तकनीक हासिल कर सकेंगे। शोध के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक व छात्र एक-दूसरे के यहां आएंगे जाएंगे। इसी को देखते हुए दोनों के बीच समझौता हुआ है।

बीएसएनल 99 का एसटीवी 26 दिन सभी काल फ्री


बीएसएनल 99 का एसटीवी 26 दिन सभी काल फ्री  


भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) ने शुक्रवार को अपने प्रीपेड उपभोक्ताओं के लिए नए स्पेशल टैरिफ वाउचर पेश किए। यह स्पेशल टैरिफ वाउचर अनलिमिटेड वॉयस कॉल (लोकल/एसटीडी), नेशनल रोमिंग (दिल्ली और मुंबई नहीं), पर्सनलाइज़्ड रिंग बैक टोन और 26 दिनों की वैधता के साथ आता है। 99 रुपये का स्पेशल टैरिफ वाउचर देशभर के लिए ग्राहकों के लिए उपलब्ध है। इसके साथ इस सरकारी टेलीकॉम कंपनी ने 319 रुपये का वाउचर भी पेश किया जिसके ज़्यादातर फायदे 99 रुपये वाले प्लान जैसे ही हैं। लेकिन इसकी वैधता 90 दिनों की है।

वैधता के अलावा बीएसएनएल के 99 रुपये और 319 रुपये वाले स्पेशल टैरिफ वाउचर में पर्सनलाइज़्ड रिंग बैक टोन की उपलब्धता का अंतर है।

999 का भी प्लान  

 बीएसएनएल ने प्रीपेड ग्राहकों के लिए 'मैक्सिमम' प्लान उतारा था, जो 999 रुपये के रीचार्ज में 365 दिन की वैधता के साथ 1 जीबी डेटा प्रतिदिन देगा। इसके अतिरिक्त यूज़र 181 दिन तक असीमित लोकल व एसटीडी कॉल का लाभ इस प्लान के ज़रिए उठा पाएंगे। बता दें कि नए बीएसएनएल प्रीपेड प्लान जम्मू कश्मीर और असम को छोड़कर सभी सर्कल में लागू होंगे।

हालांकि, पूरे 1 साल की वैधता के साथ आ रहे मैक्समम प्लान में 181 दिन के बाद कुछ बदलाव ज़रूर होते हैं। डेटा का लाभ जहां प्रतिदिन 1 जीबी मिलता है, वहीं सीमा समाप्त होने के बाद रफ्तार 40 केबीपीएस  पर सीमित हो जाती है। वॉयस कॉलिंग की बात करें तो सभी लोकल, एसटीडी और रोमिंग कॉल का लाभ (दिल्ली और मुंबई को छोड़कर सभी सर्कल में) मिलेगा। दिल्ली और मुंबई के लिए वॉयस कॉल 60 पैसे प्रति मिनट की दर से चार्ज की जाएंगी। यह टैरिफ 181 दिन के बाद बदल जाता है। फिर इसके ज़रिए होम व रोमिंग कॉल 60 पैसे प्रति मिनट की दर्ज से चार्ज की जाने लगेंगी।

शुरुआती 181 दिन बीएसएनएल के प्रीपेड यूज़र को जहां 100 एसएमएस प्रतिदिन मिलेंगे, वहीं, बाद में इसके लिए 25 पैसे प्रति लोकल एसएमएस व 35 पैसे प्रति नेशनल एसएमएस चार्ज लिया जाएगा। बीएसएनएल का यह 999 रुपये वाला प्लान काफी हद तक जियो और एयरटेल से मिलता-जुलता है। जियो इस राशि में 60 जीबी 4जी डेटा, असीमित वॉयस कॉल और 100 एसएमएस प्रतिदिन 90 दिनों की वैधता के साथ देती है।

गुरुवार, 15 मार्च 2018

दिल ही नहीं आंख की रोशनी भी छीन सकता है प्रेशर

पीजीआई में ग्लूकोमा पर सीएमई एवं जांच शिविर

दिल ही नहीं  आंख की रोशनी भी छीन सकता है प्रेशर

आईअोपी से काफी पहले लग सकता है ग्लूकोमा के खतरे का पता

दवा से रोकी जा सकती है घटती रोशनी


इंट्रा अाक्युलर प्रेशर( आईअोपी) जांच के जरिए ग्लूकोमा की अाशंका का पता काफी पहले लगाया जा सकता है। समय से इलाज कर ग्लूकोमा से बचा कर रोशनी कम होने से रोकी जा सकती है। यह जानकारी बुधवार को संजय गांधी पीजीआई के नेत्र रोग विशेषज्ञ प्रो. वैभव जैन ने ग्लूकोमा पर अायोजित सतत चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम एवं जागरूकता व्याख्यान में देते हुए बताया कि आईअोपी जांच के जरिए अांख में प्रेशर विशेष मशीन से देखा जाता है। आंख में प्रेशर  10 से 20 तक है तो यह सामान्य माना जाता है लेकिन बीस से अधिक है तो अांख में प्रेशर कम करने के लिए अाई ड्राप्स सहित दूसरी दवाएं दी जाती है। कई बार देखा गया है कि दवा से प्रेशर कम नहीं होता एेसे में हम लोग लेजर सहित दूसरी सर्जरी कर प्रेशर कम करते हैं। प्रो. जैन ने बताया कि ग्लूकोमा अांधता का दूसरा बडा कारण है। भारत में एक करोड बीस लाख लोग इस बीमारी से ग्रस्त है। ग्लूकोमा से बचा जा सकता है बशर्ते थोडा सा व्यक्ति सजग हो। प्रो. जैन ने बताया कि ग्लूकोमा मे अांख की अाप्टिक नर्व प्रेशर के कारण सूख जाती है जिससे हमेशा के लिए रोशनी चली जाती है । इसमें दोबारा रोशनी वापस नहीं अाती है। रोशनी धी-धीरे जाती है इसलिए इलाज कर रोशनी को कम होने रोका जा सकता है। विभाग की प्रमुख प्रो. कुमुदनी शर्मा ने बताया कि 
विभाग में अाईअोपी जांच कि सुविधा है जिसके अांख में प्रेशर अधिक है उन्हें लगातार फालोअप में रहना चाहिए। शिविर में पचास से अधिक लोगों में ग्लूकोमा का परीक्षण किया गया। 


यह जरूर कराएं जांच
 उच्च रक्त चाप, डायबटीज , अांख में भारी पन, तेज सिर दर्द, बार -बार चश्मे का नंबर बदल रहा है तो एेसे लोगों को ग्लूकोमा के लिए जरूर जांच करानी चाहिए। बताया कि पचास फीसदी लोगों में कोई लक्षण प्रकट नहीं होता है इसलिए चालिस के बाद सभी आअोपी जांच करा कर अांख का प्रेशर देखना चाहिए। 
अांख दवा डालने के बाद पांच बंद रखें अांख
नेत्र रोग विभाग के प्रो. विकास कनौजिया ने बताया कि हमेशा अाई ड्राप लेट कर डलना चाहिए। डालने से पहले हाथ धो लेना चाहिए। अांख में ड्राप डालने के बाद अांख को पांच मिनट बंद रखें लेकिन देखा गया है कि तमाम लोग दवा डालने के तुरंत बाद अांख खोल देते है इससे दवा का असर कम होता है। 
- ग्लूकोमा के मरीज एक साथ दो -तीन गिलास पानी न पीएं
- बीपी की दवा रात में दस बजे से पहले ही खा लें
- झुक कर कम काम करें

शुक्रवार, 9 मार्च 2018

दर्द भरी जिंदगी से मिलेगी राहत-ब्रेन स्ट्रोक कैंसर मल्टी ऑर्गन फेलियर के मामले में होती है कम उम्मीद

दर्द भरी जिंदगी से मिलेगी राहत




ब्रेन स्ट्रोक कैंसर मल्टी ऑर्गन फेलियर के मामले में होती है कम उम्मीद
कुमार संजय।
तमाम इलाज के बाद 5 से 10 फ़ीसदी ऐसे मामले होते हैं जिसमें डॉक्टर और दवाई हार मान लेती है।
 ऐसे मामलों में मरीज के अच्छी मौत की कामना परिवार वाले और डॉक्टर भी चाहते हैं लेकिन कानूनी अड़चनों के चलते अभी तक ऐसा संभव नहीं हो पाता था सुप्रीम कोर्ट ने लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर जिंदगी के दिन काट रहे उन मरीजों के कष्ट भरे जीवन को खत्म करने के लिए सपोर्ट सिस्टम हटाने के अनुमत दिए। 
 संजय गांधी पीजीआई के पोस्ट ऑपरेटिव यूनिट आईसीयू के प्रभारी प्रोफेसर देवेंद्र गुप्ता कहते हैं 100 में से 5 से 10 मामला ऐसे होते हैं जिनमें केवल मरीज की सांस चल रही होती है । यह लोग मल्टी ऑर्गन फेलियर जैसी परेशानियों के शिकार होते हैं इनके परिजनों को समझाया जाता है कि इन को घर ले जाइए सेवा करिए । इन मरीजों के दर्द भरे जीवन को आसान बनाने के लिए नया प्रावधान उपयोगी साबित हो सकता है।

संजय गांधी पीजीआई के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर सुनील प्रधान कहते हैं कि ब्रेन स्ट्रोक मेनेंजाइटिस जैसे मामलों में कई बार तमाम इलाज के बाद भी केवल साथ चलने की उम्मीद रहती है मरीज का जीवन है वह बिस्तर पर ही कटता है।  ऐसे ही में पढ़े-लिखे लोग कई बार कहते हैं कि सपोर्ट सिस्टम हटा लीजिए लेकिन हम लोग ऐसा नहीं करते थे इसे इच्छामृत्यु नहीं कहा जा सकता क्योंकि मरीज को तो होश रहता नहीं है । प्रोफेसर प्रधान कहते हैं कि  यंग एज  के मरीजों में  परिवार वाले  अंत तक उम्मीद लगाए रखते हैं  लेकिन  वृद्धों में  वह मानने को तैयार हो जाते हैं  अब जीवन  बचाना संभव नहीं है ।परिवार वालों के कहने पर ऐसा कर कर नहीं सकते नए कानून से ऐसे मरीजों को अच्छी मौत देना संभव होगा लेकिन लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने के लिए एक पैनल की जरूरत होगी जिससे इसका दुरुपयोग ना हो।
  गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर UC घोषाल कहते हैं कि 2 महीने में एक मामला ऐसा आता है जिनमें इलाज संभव नहीं होता ऐसे मरीजों में इस कानून से राहत मिल सकती है खास तौर पर यह मरीज पेट के कैंसर के मरीज होते हैं विशेषज्ञों का कहना है की कैंसर के मरीज दर्से तड़पते हैं वह चाहते हैं उनको मौत दे दी जाए इनके लिए भी कुछ ऐसे कानून की जरूरत है जिसमें इच्छामृत्यु दी जा सके विशेषज्ञों का कहना है PGI जैसे संस्थान में मौजूदा स्थिति मौजूदा स्थिति में कुल मरीजों के 10 से 15 फ़ीसदी मरीज गंभीर स्थिति में है खास तौर पर सीसीएम और आईसीयू में यह मरीज हैं जिनमें बहुत उम्मीद नहीं है

अपनो के लिए खुद का जीवन नही रखता मायने

अपनो के लिए खुद का जीवन नही रखता मायने 


किडनी देकर बचायी इन लोगों ने जिंदगी 

वो जिंदगी से कभी हार नहीं मानती हैं। घर-परिवार से लेकर बाहर तक जिम्मेदारियां हंसकर निभाती हैं। इतना ही नहीं, यदि अपनों की जान पर बन आए तो अपनी जान तक देने को हो जाती हैं तैयार। ऐसी हैं ये वीरांगनाएं। जी हां, इस दौर में भी सीता, सावित्री और गांधारी जैसी महिलाओं की कमी नहीं है जो हर हाल में पति का साथ देने के लिए तैयार रहती हैं। फिर चाहे वह अंगदान ही क्यों न हो। आठ मार्च को मनाए गए वल्र्ड किडनी डे और महिला दिवस के मौके पर ऐसी ही कुछ शक्ति स्वरूपा महिलाओं से रूबरू होने का मौका मिला। ये वो महिलाएं थीं जिन्होंने पति की जान बचाने के लिए अपनी किडनी तक दान कर दी। ऐसे मामलों में पुरुष थोड़ा कतराते हैं, इस बात को कुछ महिलाओं ने स्वीकारा भी। पांच से दस मार्च तक मनाए गए ‘वल्र्ड किडनी डे’ के मौके पर पीजीआइ हॉस्पिटल में बुलाई गईं सक्सेसफुल किडनी डोनर महिलाओं ने संगिनी में साझा किए अपने अनुभव। कुसुम भारती की रिपोर्ट..

पति भी दे सकते हैं किडनी

आजमगढ़ की नीलम त्रिपाठी कहती हैं, मेरी शादी 2001 में हुई थी। पति की दोनों किडनी खराब होने की बात साल 2013 में पता चली। इसके बाद डायलिसिस शुरू हुआ। मेरी ज्वाइंट फैमिली है और जब बात आई पति को किडनी दान करने की तो कोई आगे नहीं आया। जब परिवार के किसी सदस्य ने साथ नहीं दिया तो मैंने अपनी किडनी दान करने का फैसला लिया। यदि मुङो जरूरत पड़ती तो वह भी मुङो किडनी दे सकते थे।

पति अपनी किडनी न देते शायद!

जौनपुर से चेकअप कराने आईं, अनीता देवी कहती हैं, एक अगस्त 2016 में पता चला कि पति की दोनों किडनी खराब हैं। यह सुनकर मैं परेशान हो गई कि अब क्या होगा। उस वक्त पति की पूना में पान की दुकान थी जिससे घर का खर्च चलता था। उनका इलाज कैसे होगा यही सोचकर परेशान थी। पूना में ही उनका डायलिसिस शुरू हो चुका था। मैं किसी भी तरह उनकी जान बचाना चाहती थी। फिर मैंने अपनी किडनी देकर उनकी जान बचाई। परिवार में बारह साल का बेटा और आठ साल की बेटी है। पति के इलाज के लिए सांसद निधि से तीन लाख रुपये और मुख्यमंत्री की ओर से पांच लाख रुपये दिए गए जिससे इलाज हुआ। वह कहती हैं, प}ी हमेशा पति का साथ देने को खड़ी रहती है। यदि यह रोग मुङो होता तो शायद पति कभी अपनी किडनी नहीं देते।

भाई-बहन भी नहीं हुए तैयार

कानपुर की विनीता यादव कहती हैं, 2012 में पति की किडनी खराब हुई थीं। तब से लगातार उनका इलाज चला। पति का लोहे के बुरादे का कारोबार है। किसी तरह कई सालों तक हम इलाज कराते रहे। डायलिसिस कराने से पति को भी कष्ट होता था। बार-बार कष्ट के साथ पैसा भी खर्च हो रहा था। पति के तीन भाई और तीन बहने हैं। मगर, किडनी देने के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ। पर, मैं तो प}ी हूं इसलिए मुङो तो उनका साथ देना ही था। इस साल फरवरी में मैंने पति को अपनी किडनी दी। मेरा मानना तो यही है कि ऐसे काम केवल प}ियां ही कर सकती हैं।


पति की सोच पर निर्भर करता है सब

गोंडा की मंजू सिंह कहती हैं, पति सउदी अरब में काम करते थे। जब वहां उनकी तबियत ज्यादा खराब हुई तो वह इंडिया आ गए। इलाज के दौरान 2013 में पता चला कि उनकी दोनों किडनी खराब हैं। परिवार में ससुर, सास हैं जो शुगर की मरीज हैं। दो देवर और दो ननद हैं। किडनी देने के नाम पर कोई आगे आने को तैयार नहीं था। फिर मैंने उन्हें किडनी देने का फैसला लिया। जांच के दौरान जब मेरी किडनी में पथरी का पता चला तो डॉक्टरों ने कहा कि पहले तुम्हारा ऑपरेशन करेंगे उसके बाद किडनी ट्रांसप्लांट करेंगे। वह कहती हैं, पति-प}ी गाड़ी के दो पहिए हैं और एक-दूसरे के बिना दोनों अधूरे हैं। पर, अंगदान जैसे गंभीर मुद्दे पर प}ी तो तुरंत तैयार हो जाती है, लेकिन पति ऐसा करेगा या नहीं यह उसकी सोच पर निर्भर करता है।

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पति से है पत्नी की पहचान

ट्रांसपोर्ट नगर, लखनऊ निवासी, नविता श्रीवास्तव कहती हैं, अपने शरीर का एक अंग देना किसी के लिए भी बड़ी बात है। हर किसी के लिए यह इतना आसान नहीं है, पर एक प}ी की पहचान तो पति से ही होती है इसीलिए प}ियां आसानी से अपनी किडनी देने को तैयार हो जाती हैं। 2014 में मैंने पति को अपनी किडनी दी। वह पहले ही मुङो बहुत प्यार करते थे। ट्रांसप्लांट के बाद अब तो और भी चाहने लगे हैं क्योंकि उनका कहना है कि इतना बड़ा काम प}ी ही कर सकती है।

बड़ी हिम्मत का काम है अंगदान

महानगर निवासी साधना मिश्र कहती हैं, पति दिनेश मिश्र पीएसी में पुलिस इंस्पेक्टर हैं। 2011 में धीरे-धीरे लक्षण दिखने लगे फिर इलाज शुरू हुआ। सख्त ड्यूटी के चलते उनका ठीक से इलाज शुरू नहीं हो पाया। मैंने सोचा कि बार-बार डायलिसिस कराने से अच्छा है कि किडनी ट्रांसप्लांट करा दी जाए। परिवार में ससुर और देवर भी हैं पर ससुर को कैंसर और देवर डायबिटिक हैं इसलिए उनसे कह नहीं सकती थी। मैं खुद अस्थमा की मरीज हूं पर डॉक्टरों ने मुङो दिलासा दिया कि इलाज के बाद मैं पति को किडनी दे सकती हूं। 2015 में मैंने अपनी किडनी पति को दान दी। अपने शरीर का हिस्सा किसी को देना बहुत हिम्मत का काम है पर मुङो लगता है ज्यादातर प}ियां इस काम को आसानी से निभा ले जाती है।

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जागरूकता की कमी है

इंदिरानगर निवासी, श्रीवृद्धि शर्मा कहती हैं, किडनी को लेकर अभी भी लोगों में अवेयरनेस नहीं है, खासतौर से महिलाओं में। जब मुङो यह पता चला कि नेफ्रोटिक सिंड्रोम की बीमारी से ग्रस्त हूं तो मैं खुद हैरान रह गई थी। पीजीआइ में मेरा इलाज कर रहे डॉ. नारायन ने बताया कि यह किडनी की ऐसी बीमारी है जो बहुत रेयर है और लाखों में किसी एक को होती है। इस बीमारी के बारे में लोगों को जागरूक होने की जरूरत है। 2017 में मेरे चेहरे वगैरह पर सूजन आने लगी थी। उस वक्त मैं एमबीए करने इंदौर गई थी। डॉ. नारायन के इलाज के बाद मैं बिल्कुल ठीक हो गई। हालांकि, बीमारी का पता लगने के बाद मेरे पापा किडनी देने को तैयार थे, पर ऐसी नौबत आई नहीं।







तो हर दसवें के गुर्दे में कोई न कोई परेशानी




तो हर दसवें के गुर्दे में कोई न कोई परेशानी



परिवार की सेहत के प्रति संजीदा रहने वाली महिलाएं अक्सर खुद पर उतना ध्यान नहीं देती हैं। घर-गृहस्थी और नौकरी की व्यस्तता के चलते अपनी डाइट का ख्याल नहीं रखती हैं। ऐसे में, कब और किस बीमारी का शिकार हो जाएं, वे खुद नहीं जानती। अनुचित खानपान और बदलती लाइफ स्टाइल के चलते महिलाओं में किडनी की समस्या भी आम हो चुकी है। विश्व गुर्दा दिवस का उद्देश्य भी यही है कि दुनिया की सभी महिलाओं और लड़कियों को गुर्दा रोग के प्रति जागरूक करके विकराल होती इस बीमारी की रोकथाम के लिए प्रयास करना है। किडनी रोग के लक्षण व सावधानियों पर जानकारी दे रहे हैं, पीजीआइ में नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट में प्रोफेसर, डॉ. नारायण प्रसाद


क्रॉनिक किडनी रोग (सीकेडी)
यह एक ग्लोबल पब्लिक हेल्थ समस्या है। प्रत्येक दस में से एक व्यक्ति गुर्दा रोग से ग्रसित है। सीकेडी से दुनिया भर में करीब डेढ़ करोड़ महिलाएं प्रभावित हैं और वर्तमान में महिलाओं में मौत का आठवां प्रमुख कारण है। हर साल करीब छह लाख महिलाओं की मौत गुर्दा रोग से संबंधित रोगों के कारण होती है। कुछ अध्ययनों के मुताबिक सीकेडी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में होने की ज्यादा संभावना होती है। हालांकि, कुछ प्रारंभिक जांचों से इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है।

सेहत को लेकर रहें सावधान
अक्सर महिलाएं घर के काम करने के बाद थकावट महसूस करती हैं। घरेलू कामों में थोड़ी-बहुत थकावट होना आम है, लेकिन ज्यादा थकावट होना भी इस बीमारी का एक लक्षण है। ऐसे में, लापरवाही न करें और तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।

गर्भवती महिलाएं रखें खास ख्याल

गर्भावस्था के दौरान दूसरी जांचों के साथ ही किडनी संबंधी जांचें भी महिलाओं को करानी चाहिए। इसके लिए वे अपनी गाइनोकोलॉजिस्ट से परामर्श ले सकती हैं। यदि किडनी की बीमारी किसी गर्भवती महिला को हो जाती है तो यह उसके बच्चे के लिए भी खतरनाक हो सकती है। वहीं, प्री-मैच्योर डिलीवरी होने के ज्यादा चांस होते हैं।

हर छह माह पर कराएं जांच1
चालीस से पचास वर्ष के ऊपर की महिलाएं समय-समय पर अपना ब्लड प्रेशर, शुगर और ब्लड शुगर की जांच जरूर कराएं। बेवजह दवाओं के सेवन से बचें। महिलाएं अक्सर अपनी सेहत के प्रति लापरवाही बरतती हैं जो उनके लिए कई बार खतरनाक साबित होता है। पूरे परिवार का ख्याल रखने वाली महिलाओं को सबसे पहले अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए तभी तो वह परिवार का ख्याल रख सकेंगी।

प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थो से बनाएं दूरी
वैसे तो खान-पान का संबंध किडनी से नहीं है। लेकिन किसी कारणवश यदि किडनी खराब हो जाती है तो ऐसे में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए क्योंकि यह किडनी के मरीजों के लिए हानिकारक होते हैं।

नशीले पदार्थो से रहें दूर
यह बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। आजकल तो बच्चों में भी किडनी संबंधी रोग बढ़ रहे हैं। युवा अक्सर छिपकर नशा करने लगते हैं। नशीले पदार्थ भी किडनी को प्रभावित करते हैं, इससे बचने के लिए सिगरेट, शराब व अन्य नशीले पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए।

व्यायाम बहुत जरूरी है

संतुलित भोजन के साथ ही नियमित व्यायाम करना भी जरूरी है। इसके अलावा शरीर में चर्बी न बढ़ने दें। किडनी की बीमारियों में ओबेसिटी भी एक मुख्य कारण है। घर के काम-काज खुद करने का प्रयास करें जिससे फिजिकल एक्सरसाइज होती रहे।
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 करें बचाव

-चालीस वर्ष से अधिक उम्र के पुरुष व महिलाओं को खून में क्रिटिनाइन, पेशाब में प्रोटीन व लाल रक्त कण और ब्लड प्रेशर की जांच हर छह महीने में जरूर करानी चाहिए।
-पानी खूब पीना चाहिए। दिनभर में एक स्वस्थ व्यक्ति को आठ-दस गिलास पानी का सेवन करना चाहिए।
-सेक्सुअली एक्टिव महिलाओं को सेक्स के बाद यूरीनेट (पेशाब) करना चाहिए।
-प्रेगनेंसी में 20 हफ्ते के बाद यदि बीपी बढ़ जाए तो तुरंत जांच करानी चाहिए।
-प्रेगनेंसी के दौरान हाइपर टेंशन में अचार, पापड़ व ब्रेड आदि का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इनमें सोडियम की मात्र अधिक होती है।
-40 वर्ष से ऊपर की महिलाएं अपना खास ख्याल रखें। हेल्दी डाइट लें और मोटापा न बढ़ने दें।
-बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआइ) को संतुलित रखें और इसे 25 से कम रखें।
-सामान्य व स्वस्थ महिलाएं अपने भोजन में काबरेहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, मिनरल और विटामिन की मात्र को संतुलित रखें
-मोटी महिलाएं प्रोटीन व फाइबर को अपनी डाइट में अधिक शामिल करें। वसायुक्त व काबरेहाइड्रेट युक्त पदार्थ न खाएं। समय पर नाश्ता व भोजन करें।

इन लक्षणों को न करें अनदेखा

ब्लड प्रेशर बढ़ना, पैरों और चेहरे पर सूजन आना, खून की कमी होना, बार-बार और बहुत ज्यादा पेशाब आना। पेशाब के रास्ते में संक्रमण या जलन, गर्भपात और प्रसव के समय अत्यधिक रक्तस्राव आदि कारणों से महिलाओं में किडनी रोग की आशंका बढ़ जाती है। प्रेगनेंसी के दौरान हाइपर टेंशन होना। यदि इस प्रकार के लक्षण किसी में दिखाई दें तो तुरंत जांच करानी चाहिए क्योंकि किडनी संबंधी बीमारियां जल्दी पकड़ में नहीं आती हैं।

गुरुवार, 8 मार्च 2018

किडनी की खराबी से लड़ चुके लोगों दिया लड़ने का मंत्र

किडनी की खराबी से लड़ चुके लोगों दिया लड़ने का मंत्र

किडनी ठीक करने की कोई दवा नहीं सपोर्टिव इलाज से रूक जाती बीमारी की बढ़त

किडनी मरीज नमक का मान लें दुश्मन


विश्व किडनी दिवस के मौके पर किडनी की खराबी से निपट चुके सामान्य लोगों ने इस बीमारी के साथ संघर्ष कर रहे लोगों हौसला रखने का संदेश दिया। परेशानी तो सबके जीवन में अाती है कुछ में कम तो कुछ में अधिक लेकिन मुकाबले हिम्मत के साथ करना है। अपने अंदर मानसिक कमजोरी कभी मत अाने दें। पुलिस विभाग के पूर्व बडे अधिकारी रहे एल बनर्जी ने बताया कि  2011 में किडनी ट्रांसप्लांट कराया जिसके बाद से बिल्कुल फिट हूं। बताया कि किडनी को ठीक करने की कोई दवा नहीं है लेकिन सपोर्टिव ट्रीटमेंट से बीमारी को बढने की गति को कम किया जा सकता है। किडनी के इलाज के चरन -चटनी के चक्कर मे कतई न पड़े देखा है कि इससे किडनी और खराब हो जाती है। बनर्जी ने कहा कि किडनी ट्रांसपालंट के बाद लोग बहुत अच्छी पुरानी जिंदगी जी रहे है जिसमें मै भी शामिल हूं। कहा कि अपने को एक्टिव रखें इससे अाप में डिप्रेशन नहीं होगा। सलाह दिया कि जैसे गांधी ने नमक सत्याग्रह चलाया था उसी तरह किडनी के मरीजों को नमक के इस्तेमाल से बचने की जरूरत है। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप अवस्थी ने कहा मेरी पत्नी जैसे पहले साथ दिया वैसे ही मेरी किडनी खराब होने के बाद किडनी देकर धर्म निभाया । महिलाएं हमेशा से अादरणीय रही है रहेंगी क्योंकि उन्हें अपनों के अपना जीवन लगाती है। पहले मैं नानवेंज के साथ ड्रिंक ले लेता था लेकिन पत्नी के शाकाहारी किडनी लगने के बाद बिल्कुल किडनी शाकाहारी हो गई जिसमें मेंनटेन रखा है। सलाह दिया कि किडनी ट्रांसप्लांट के बाद रेगुलर फालोअप पर रहें इससे किडनी रिजेक्शन की अाशंका कम हो जाती है। 

पेरीटोनियल डायलसिस पर दस से कर रहा सारा काम

कई बार कई लोग किडनी ट्रांसप्लांट नहीं करा पाते है एेसे में पेरीटोनियल डायलसिस जिंदगी जीने के लिए बढिया तरीका है। पेशे से अध्यापक रहे प्रो. केपी कुलश्रेष्ठ ने बताया कि वह 2010 से पेरीटोनियल डायलिसस पर बिल्कुल फिट है। इसके साथ वह पूरी अध्यापन का कार्य किए । रोज वाक करते है। केवल फालोअप पर रहते हैं। इनकी किडनी ने 2008 में जवाब दिया लेकिन वह ट्रांसप्लांट नहीं करा पाए इसके बाद से पीजीआई के विशेषज्ञों ने पेरीटोनिलल डायलिसस पर रहनेका सलाह दिया। कहा कि पत्नी ने पूरा साथ दिया। 59 वर्षीय मीना चौधरी ने बताया कि वह 9 साल से पेरीटोनियल डायलसिस पर है । घर के लोग कहते है कि खानाा मत बनाओ लेकिन खाना बनाने के साथ ही घर के छोटे -मोटे काम करने के साथ एक्टिव रहती है। 

समय से पहले जंम लिए बच्चों में हो सकती है आगे किडनी की परेशानी

किंग जार्ज मेडिकल विवि की प्रो. माधवी गौतम ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान 35 वें सप्ताह तक गर्भस्थ शिशु में अंगों का निर्माण होता है जिसमें किडनी भी शामिल है। समय से पहले जंम लेने वाले बच्चों के किडनी में नफ्रान की संख्या कम होने की अाशंका रहती है जिससे इनमें आगे चल कर किडनी की परेशानी की अाशंका रहती है। एेसे बच्चों का समय पर जांच कराते रहना जरूरी है। प्री मेच्योर प्रसव से बचने के लिए गर्भवती को डाक्टर से सपर्क में रहना चाहिए। 

किडनी की परेशानी तो गर्भधारण से बचे

संजय गांधी पीजीआई के गुर्दा रोग विशेषज्ञ प्रो. धर्मेंद्र भदौरिया ने कहा कि किडनी की परेशानी है तो गर्भधारण करने से पहले विशेषज्ञ से सलाह लें सीरम क्रिएटनिन 1.5 से 2.0 की बीच है तो गर्भधारण करना ठीक रहता है। कई बार गर्भावस्था के दौरान किडनी फक्शन गड़बड़ा जाता है। गुर्दे की परेशानी वाली महिलाअों गर्भधारण से बचने के लिए अोरल पिल्स नहीं लेना चाहिए केवल बैरियन ( कंडोम , डायफ्राम, स्पंज) का इस्तेमाल करना चाहिए। 

यूटीआई से बचने के लिए रखें यह ध्यान

डा.राम मनोहर लोहिया की किडनी रोग विशेषज्ञ डा. नम्रता राव ने कहा कि यूटीआई( मूत्र मार्ग संक्रमण) के कारण भी कई किडनी खराब हो सकती है। इससे बचने के लिए मासिक के दौरान सेनटरी पैड बदलें। सेक्स से पहले और बाद में यूरीन करने जरूर जाएं। स्पर्म जेली का इस्तेमाल मत करें। खूब पानी पीएं। जनांग को साफ रखें। जब भी जब पेशाब में जलन हो पेशाब की जांच करााएं दवा से इंफेक्शन ठीक हो जाती है। 

किडनी का स्टोन तो तुरंत कराएं इलाज

संजय गांधी पीजीआई के यूरोलैाजिस्ट प्रो.एमएस अंसारी ने कहा कि किडनी में स्टोन है तुरंत इलाज कराना चाहिए 10 से 15 फीसदी मामलों में किडनी की खराबी का कारण स्टोन होता है। स्टोन की परेशानी पुरूषों में अधिक होती है। कैल्शियम अधिक लेने से स्टोन नहीं बनता बल्कि अाक्जलेट अदिक होने पर दोनों मिल कर स्टोन बनाते हैं। प्रो.संजय सुरेखा ने कहा कि किडनी कैंसर होने पर तुरंत निकाल देना चाहिए यह भी किडनी की खारबी का बडा कारण है। 

अंगदान में हम पीछे

किंग जार्ज मेडिकल विवि के प्रो.संत पाण्डेय ने कहा कि ब्रेन डेड के प्रति जागरूकता न होने, संसाधान की कमी सहित अन्य कारणों से अंग प्रत्यारोपण के लिए अंग नहीं मिल रहे है। देश में दो लाख किडनी की जरूरत है लेकिन केवल पांच हजार किडनी का प्रत्यारोपण हो रहा है। पचास हजार लिवर की जरूरत है केवल 750 लिवर प्रत्यारोपण हो रहा है।

पुरूष भी महिलाअों का रखें ध्यान- प्रो.राकेश कपूर 

 पीजीआई के नेफ्रोलाजिस्ट प्रो. अार के शर्मा, प्रो. नरायान प्रसाद, डा. अार पी एल्हेस, डा. अनिल कुमार सिंह , डा. सिद्रार्थ सोनकर सहित अन्य विशेषज्ञों ने तमाम पहलुअों पर जानकारी दी। इस मौके पर वाक थान का अायोजन किया गया जिससे प्रो. निदेश कपूर ने रवाना किया कहा कि किडनी खराब होने पर कई मामलों में इलाज मंहगा है इसलिए बचाव की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। कहा कि महिलाएं कभी मां, बहन , पत्नी के रूप में हमेशा पुरूषों की देखभाल करती है हमारी भी जिम्मेदारी है कि हम इनका ध्यान रखें।