यह एक अत्यंत चिंताजनक मुद्दा है कि यदि ऐसा ही जारी रहता है और डॉक्टर अस्पताल छोड़ते रहते हैं, तो डॉक्टर साहब जहां बैठेंगे वहां उनकी दुकान चल जाएगी, जिससे हमारे और आपके लिए भी फर्क पड़ेगा क्योंकि जो सलाह हमें पहले ₹50 में मिलती थी वही इलाज और सलाह अब हमें ₹1500 में मिलेगी।
1. सरकारी डॉक्टरों पर अत्यधिक दबाव और जांचें: छोटी-मोटी त्रुटियों पर कठोर कार्यवाही जैसे निलंबन और बर्खास्तगी से डॉक्टरों का मनोबल टूट रहा है।
2. कॉर्पोरेट अस्पतालों का बढ़ता प्रभाव: सरकार से नाराज़ होकर या दबाव से बचने के लिए डॉक्टर कॉर्पोरेट अस्पतालों का रुख कर रहे हैं, जिससे इलाज महँगा हो रहा है।
3. गरीब जनता का नुकसान: पहले जो इलाज ₹50 में मिलता था, वह अब ₹1000+ में मिलेगा, जिससे गरीबों को भारी मार झेलनी पड़ेगी।
4. चिकित्सकों की अंतरराष्ट्रीय योग्यता: KGMU, PGI, SGPGI जैसे संस्थानों से निकले डॉक्टर कहीं भी सफलता पा सकते हैं — वे किसी एक संस्था के मोहताज नहीं हैं।
5. न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन: डॉक्टरों पर बिना ठोस प्रमाण के वित्तीय और प्रशासनिक कार्यवाही करना न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था को कमजोर करता है।
निश्चित ही यह बात सही है कि डॉक्टर एक अत्यंत मेहनत और संघर्ष से निकले हुए वर्ग से आते हैं। यदि उन्हें उनके कार्यस्थल पर उचित सम्मान, सहयोग और सुरक्षा नहीं मिलेगी, तो उनका पलायन रोक पाना मुश्किल होगा।
सरकार को यह समझना होगा कि यदि डॉक्टर नहीं होंगे, तो सरकारी अस्पताल ईंट-पत्थर की इमारत बनकर रह जाएंगे।
"संस्था प्रमुख छोटी गलतियों पर चेतावनी या अन्य हल्की कार्यवाही करें", एक बहुत ही व्यावहारिक और संतुलित दृष्टिकोण है।
1. चिकित्सकों के लिए एक न्यायसंगत अनुशासनात्मक प्रणाली बनाई जानी चाहिए, जिसमें निष्पक्ष जांच और बचाव का पूरा अवसर मिले।
2. चिकित्सकों के साथ संवाद बढ़ाया जाए ताकि उनकी चिंताओं को सुना और समझा जा सके।
3. सरकारी संस्थानों को चिकित्सकों के लिए अनुकूल कार्य वातावरण उपलब्ध कराना चाहिए।
बाक़ी यह समाज प्रबुद्ध वर्ग से भरा पड़ा हैं ,ख़ुद विचार करे की मैंने ग़लत लिखा या सही? इस पोस्ट से किसी को तनिक भी पीड़ा पहुँचे तो मैं पहले ही माफ़ी माँग ले रहा हूँ।
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