सोमवार, 2 अक्तूबर 2023

मैसेंजर आरएनए की खोज करने वाले वैज्ञानिकों को मिला 2023 का नोबल- इसी तकनीक पर बना कोरोना वैक्सीन

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में कैटालिन कारिको और ड्रयू वीसमैन को मिला पुरस्कार






नोबल प्राइज 2023


 इस साल कैटालिन कारिको और ड्रू वीसमैन को चिकित्सा का नोबेल दिया गया. इन्हें न्यूक्लियोसाइड बेस संशोधनों से संबंधित उनकी खोजों के लिए यह सम्मान दिया गया. इस खोज की वजह से कोरोना वायरस (Covid-19) के खिलाफ प्रभावी एमआरएनए  टीकों के विकास में मदद मिली. नोबेल समिति के सचिव थॉमस पर्लमैन ने कोरोलिंस्का संस्थान में विजेता की घोषणा की.


 चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार  2023 फिजियोलॉजी या मेडिसिन क्षेत्र 2023 के लिए इस सम्मान के विजेताओं के नाम का ऐलान किया गया. इस साल कैटालिन कारिको और ड्रू वीसमैन को चिकित्सा का नोबेल दिया गया. इन्हें न्यूक्लियोसाइड बेस संशोधनों से संबंधित उनकी खोजों के लिए यह सम्मान दिया गया. इस खोज की वजह से कोरोना वायरस (Covid-19) के खिलाफ प्रभावी एम आरएनए टीकों के विकास में मदद मिली. इसे फाइजर, बायो एन टेक और मॉडर्ना ने बनाया था.
कोरोना महामारी से पहले यह तकनीक एक्सपेरिमेंटल फेज में थी, लेकिन अब इसे वैक्सीन के रूप में दुनिया भर के लाखों लोगों को दे दिया गया है. इसी एम आरएनए तकनीक पर अब अन्य बीमारियों और यहां तक कि कैंसर के लिए भी रिसर्च किया जा रहा है.

 एमआरएनए  टेक्नोलॉजी क्या है 

 मैसेंजर-RNA जेनेटिक कोड का एक छोटा सा हिस्सा है, जो हमारी सेल्स (कोशिकाओं) में प्रोटीन बनाती है। इसे आसान भाषा में ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब हमारे शरीर पर कोई वायरस या बैक्टीरिया हमला करता है, तो यह टेक्नोलॉजी हमारी सेल्स को उस वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने के लिए प्रोटीन बनाने का मैसेज भेजती है। इससे हमारे इम्यून सिस्टम को जो जरूरी प्रोटीन चाहिए, वो मिल जाता है और हमारे शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है।
इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि इससे कन्वेंशनल वैक्सीन के मुकाबले ज्यादा जल्दी वैक्सीन बन सकती है। इसके साथ ही इससे शरीर की इम्युनिटी भी मजबूत होती है। ये पहली बार है जब एमआरएन टेक्नोलॉजी पर बेस्ड वैक्सीन दुनिया में बन रही है।

 एमआरएन टेक्नोलॉजी डेवलप करने वाले वैज्ञानिकों 

1. कैटलिन कारिकोः जिन्होंने एमआरएनए टेक्नोलॉजी बनाई
कैटलिन कारिको का जन्म 17 अक्टूबर 1955 को हंगरी में हुआ। कारिको ने कई सालों तक हंगरी की सेज्ड यूनिवर्सिटी में आरएनए पर काम किया। 1985 में उन्होंने अपनी कार ब्लैक मार्केट में 1200 डॉलर में बेच दी और अमेरिका आ गई। यहां आकर उन्होंने पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में एमआरएए टेक्नोलॉजी पर काम शुरू किया।
इसकी की खोज तो 1961 में हो गई थी, लेकिन अब भी वैज्ञानिक इसके जरिए ये पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि इससे शरीर में प्रोटीन कैसे बन सकता है? कारिको इसी पर काम करना चाहती थीं। लेकिन उनके पास फंडिंग की कमी थी। 1990 में पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में कारिको के बॉस ने उनसे कहा कि आप या तो जॉब छोड़ दें या फिर डिमोट हो जाएं। कारिको का डिमोशन कर दिया गया। कारिको पुरानी बीमारियों की वैक्सीन और ड्रग्स बनाना चाहती थीं।कारिको का डिमोशन कर दिया गया। उसी समय दुनियाभर में भी इस बात की रिसर्च चल रही थी कि क्या मैसेंजर आरएनए का इस्तेमाल वायरल से लड़ने के लिए खास एंटीबॉडी बनाने के लिए किया जा सकता है? 1997 में पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में ड्रू वीसमैन आए।


ड्रू वीसमैन ने फंडिंग कर सहारा दिया...

  • ड्रू मशहूर इम्युनोलॉजिस्ट हैं। ड्रू ने कारिको को फंडिंग की। बाद में दोनों ने पार्टनरशिप करके इस टेक्नोलॉजी पर काम शुरू किया। 2005 में ड्रू और कारिको ने एक रिसर्च पेपर छापा, जिसमें दावा किया कि मॉडिफाइड मैसेंजर आरएनए के जरिए इम्युनिटी बढ़ाई जा सकती है, जिससे कई बीमारियों की दवा और वैक्सीन भी बन सकती है।
  • हालांकि उनके इस रिसर्च पर कई सालों तक किसी ने ध्यान नहीं दिया। 2010 में अमेरिकी वैज्ञानिक डैरिक रोसी ने मॉडिफाइड मैसेंजर आरएनए से वैक्सीन बनाने के लिए बायोटेक कंपनी मॉडर्ना खोली। 2013 में कारिको को जर्मन कंपनी बायोएनटेक में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट अपॉइंट किया गया था।

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