शनिवार, 28 अक्तूबर 2023

गामा नाइफ की कमी ब्रेन ट्यूमर के इलाज में खड़ी कर रही है परेशानी

 

बेसकांन-2023


गामा नाइफ की कमी ब्रेन ट्यूमर के इलाज में खड़ी कर रही है परेशानी


अब गामा नाइफ से किसी भी साइज के ट्यूमर का इलाज संभव


 जागरण संवाददाता। लखनऊ


दिमागी के 20 से 25 फीसदी ट्यूमर स्कल बेस( दिमाग के निचले हिस्से) ट्यूमर का सटीक इलाज केवल इसलिए नहीं पा रहा है कि संजय गांधी पीजीआई सहित प्रदेश किसी भी संस्थान में गामा नाइफ नहीं है। गामा नाइफ की जरूरत के बारे में संस्थान में आयोजित स्कल बेस सर्जरी सोसाइटी ऑफ इंडिया( बेसकांन-2023) में लंबी चर्चा हुई। माना जाता रहा है कि गामा नाइफ केवल तीन सेमी से छोटे ट्यूमर के इलाज में कारगर है लेकिन अब किसी भी साइज के ट्यूमर में इसकी उपयोगिता है। आयोजक प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव के मुताबिक नए ट्यूमर के अलावा सर्जरी के दौरान किसी जटिलता के कारण बचे हुए ट्यूमर के खत्म करने में गामा नाइफ उपयोगी है। गामा नाइफ पर हमारे अलावा प्रो. अवधेश जायसवाल की ट्रेनिंग है। स्कल बेस के ट्यूमर का सर्जरी काफी जटिल होती है ऐसे में सर्जरी के बाद कई तरह की परेशानी की आशंका रहती है। गामा नाइफ से इलाज करने पर दूसरे परेशानी की आशंका कम हो जाती है।


क्या है गामा नाइफ


इस थेरेपी में मरीज को गामा किरणों की हाई डोज दी जाती है। इसका सबसे बड़ा फायदा है कि इस थेरेपी के माध्‍यम से उसी हिस्से पर बारी-बारी से रेडिएशन देते हैं जहां पर ट्यूमर होता है। इस थेरेपी को दिए जाने का समय आधे घंटे से लेकर तीन घंटे तक होता है, जो अलग-अलग मरीजों पर अलग-अलग होता है। इसके लिए सबसे पहले मरीज के सिर पर एक स्टील का हल्‍के वजन वाला फ्रेम लगाया जाता है। इमेजिंग के जरिए ब्रेन में ट्यूमर की सही जगह और उसका साइज पता करते हैं। इसके बाद इलाज और दवा के लिए प्लानिंग करते हैं और अंत में मरीज को गामा नाइफ थेरेपी के लिए लेकर जाया जाता है। गामा नाइफ थेरेपी सिर्फ ब्रेन ट्यूमर वाले मरीजों के लिए ही है। इस थेरेपी को गर्दन से नीचे नहीं दिया जा सकता है। इसलिए शरीर के दूसरे भाग में हुए ट्यूमर के लिए इलाज के दूसरे तरीकों पर ही जाना होता है।


 


4के से सुरक्षित हो गया स्कल बेस के परेशानी का इलाज


बेस में नसों का गुच्छा,बनावट में खराबी सहित कई तरह की परेशानी होती है। प्रो. अरूण श्रीवास्तव ने बताया कि 4 के विधि से लक्ष्य़ कई गुना अधिक बड़ा दिखता है । सर्जरी के दौरान विशेष लेंस से सर्जरी के लक्ष्य को बड़ा करके देखते है । नई ऑप्टिक्स लेंस से लक्ष्य और अधिक स्पष्ट होता है। इससे सर्जरी की सफलता दर काफी हद तक बढ़ जाती है। इससे इलाज के अलावा ट्रेनिंग भी काफी अधिक अच्छी होती है।

ट्यूमर को निकालने के लिए अब ब्रेन की दो सर्जरी नहीं करनी होगी, एक ही सर्जरी में पूरा ट्यूमर

 





स्कल बेस सर्जन सोसाइटी ऑफ इण्डिया सम्मेलन


पिट्यूटरी ग्लैंड ट्यूमर की सर्जरी के बाद आगे नहीं होगी परेशानी



संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान(एसजीपीजीआई) में शुरू हुई स्कल बेस सर्जन सोसाइटी ऑफ इण्डिया के तीन दिवसीय वार्षिक सम्मेलन ‘बेसकॉन-2023’ में न्यूरो सर्जन्स ने, पियूट्रीग्रंथि के ट्यूमर की लाइव सर्जरी के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों से रूबरू कराया,जिन्हें अमूमन चिकित्सक नजरअंदाज करते हैं और भविष्य में समस्याएं जन्म लेती हैं। इसी प्रकार ब्रेन में नो सर्जरी जोन कहे जाने वाले कैनेवरस साइनस पोसा टयूमर, जिसके इलाज देश में चुनिंदा संस्थानों को ही महारत हासिल है, लाइव सर्जरी द्वारा डेलीगेट्स सर्जन्स को समझाया गया है। इसके अलावा आयोजन सचिव प्रो.अरूण श्रीवास्तव ने बताया कि कैवेनरस साइनस पोसा ट्यूमर, जो कि स्कल के दो भागों के मध्य होता है, में ट्यूमर की अत्यंत जटिल सर्जरी, जिसे अभी तक केवल एम्स,हीम्स, पीजीआई चंढ़ीगढ़ व लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में ही होती है। दूसरी तरफ एसजीपीजीआई की ओटी में संपन्न होने वाली सर्जरी को ही, केजीएमयू के डॉ.क्षितिज श्रीवास्तव ने कैडेवर पर लाइव प्रसारण द्वारा इंडोस्कोपिक, कैवेरस साइनस और टेम्पोरल बांड डिशक्शन की सर्जरी से डेलीगेट्स को समझाई। 


       कैवेनर साइनस पोसा ट्यूमर की जटिल सर्जरी


 सिर में आगे से लेकर पिछले हिस्से तक फैल चुके ट्यूमर को निकालने के लिए अब ब्रेन की दो सर्जरी नहीं करनी होगी, एक ही सर्जरी में पूरा ट्यूमर निकालने की सफलता मिल चुकी है। एसजीपीजीआई के न्यूरो सर्जन एवं कार्यशाला आयोजन सचिव डॉ.अरूण श्रीवास्तव ने बताया कि दिमाग के बीच में मिडिल पोसा को खोलकर, नीचे की हड्डी (पोस्टियर पोसा) को हटाकर स्कल के पिछले हिस्से तक पहुंचते हैं, और सावधानी पूर्वक पूरा ट्यूमर एक ही बार में निकाल देते हैं। उन्होंने बताया, नो सर्जरी जोन की संज्ञा से परिभाषित कैनेवर साइनस की सर्जरी उच्च संस्थानों में होने लगी है। इस हिस्से से शरीर की आंख और चेहरे को कंट्रोल करने वाली नसे मात्र एक से डेढ़ सेमी के दायरे में रहती हैं, साथ ही दिमाग को खून सप्लाई करने वाली कैरोनरी आर्टरी भी समीप से गुजरती है, अर्थात अतिसंवेदनशील नर्व का जंक्शन होता है। मामूली असावधानी भी शरीर के अंगों को प्रभावित न कर दे, इसलिए डॉक्टर सर्जरी करने से परहेज करते हैं। अन्यथा आंख की रोशनी जा सकती है, चेहरा सुन्न हो सकता है, आर्टरी प्रभावित होने से लकवा पड़ सकता है।

गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

Caution: Every third woman and sixth man has a hollow bone- Bone breaks due to injury caused by crosser

 





Caution: Every third woman and sixth man has a hollow bone.




      Bone breaks due to injury caused by crosser.




          Crosser- BMD exposes the silent disease




           Kumar Sanjay




               Lucknow    . 64 year old Meera Di looks healthy but due to a slight blow, a bone in her leg broke. When he was taken to a big hospital in the capital, he was plastered but even after four months the bone did not join. When his family members brought him to Apex Trauma Center of Sanjay Gandhi PGI, the orthopedic specialist here, Prof. Amit Kumar performed the operation. The bone joined. After lying in bed for a long time, normal life was about to begin when the bone of her other leg broke. The operation took place again. According to Dr. Jaya Krishnan of the endocrine department of the institute, the reason for frequent bone fractures was attributed to osteoporosis. Due to this disease, the bone becomes brittle and weak due to which even the slightest shock or impact causes fracture. Symptoms do not appear until a fracture occurs. To avoid this disease, bone mineral density should be tested after crossing the age of forty. The disease is detected by this test. By taking precautions one can avoid fractures.




 




Apprehension in every third woman and sixth man




Endocrine expert of Sanjay Gandhi PGI, Prof. Sushil Gupta says that 50 percent of women and 36 percent of men who have crossed the age of fifty are affected by this disease. 29.8 percent women and 24.3 percent men are standing at the mouth. Every third woman and every sixth man is vulnerable to this disease. Due to this disease, spine of seven lakh people, hip of three lakh people, wrist of two lakh people and other bones of thirty thousand people get fractured. Twenty people who suffer from hip fracture die due to infection, bed noise and the remaining 50 percent become disabled. This disease in children is known as rickets.



Calcium starts decreasing after 30




         




Calcium accumulates in the bones until the age of 30, after which erosion begins. Therefore, calcium rich foods should be consumed in abundance so that bone mass increases. He said that two new medicines, calcitonin and isophosphonate, have been introduced which can reduce the effects of the disease to a great extent. Calchitonin increases bone mass while diphosphonate reduces calcium erosion.




protect yourself like this




 --BMD test should be done




  -should do weight bearing exercises




  - Should consume milk and sunlight




 Calcium and Vitamin D should be consumed




 -Alcohol and smoking should be avoided




box-----




   Intake of necessary amount of calcium to avoid disease




 




Age and gender Calcium intake (daily)




  Janjat -6 months - 400 ml




 6 months to one year – 600 mg




One year to ten years – 8000-1200 mg




11 to 24 years – 1200-1500 mg




Pregnant women – 1200-1500 mg, post menopause – 1000 mg




(normal woman)




 50 to 64 – 1500 ml




  Women over 65 – 1500 mg




normal man




  Age 25 to 64 – 1000 mg




   Over 65 – 1500 mg




You can take advice here


Every Friday in SGPGI, special OPD of Bone Health is held in Endocrine Department. All testing facilities are available in the department.





Surgery for skull base tumor and artificial defect is successful

 




Convention of Skull Base Surgery Society of India



20 percent tumors occur in the lower part of the brain




 Surgery for skull base tumor and artificial defect is successful




 




20 to 25 percent of brain tumors occur in the skull base (lower part of the brain). Apart from the tumor, there are many other problems including bundle of nerves in the skull base and structural defects. Skull base surgery is very complex. To teach the technique of this surgery to new neurosurgeons and to share their experience, Sanjay Gandhi PGI is going to organize the annual convention of the Skull Base Surgery Society of India from Friday. Organizing Secretary Prof. Arun Kumar Srivastava and head of the department Prof. Rajkumar told that surgery will be done on two patients in live surgery. Along with providing training in surgery on cadaver, a scientific session will be organized in the medical university. Pro. Arun Srivastava told that brain tumor can occur in any part of the brain. 20 to 25 brain tumors occur in the skull base. If there is a cancerous tumor, there is a possibility of recurrence. In noncancerous tumors, tumors do not recur for seven to eight years. The priority of surgery is decided based on the complexity of the case. Skull base surgery requires a team of specialists which includes neuro-otologists, anaesthesiologists, plastic surgeons, radiologists and rehabilitation specialists. Experts in skull base surgery from all over the country are coming to the convention. An expert is especially coming from America. There are 50 to 60 experts in skull base surgery in the entire country and this convention will help in increasing their number.

सफल है स्कल बेस ट्यूमर और बनावटी खराबी की सर्जरी


 स्कल बेस सर्जरी सोसाइटी ऑफ इंडिया का अधिवेशन


दिमाग के निचले हिस्से में होते है 20 फीसदी ट्यूमर


 सफल है स्कल बेस ट्यूमर और बनावटी खराबी की सर्जरी


 


दिमागी के 20 से 25 फीसदी ट्यूमर स्कल बेस( दिमाग के निचले हिस्से) में होते है।  ट्यूमर के अलावा स्कल बेस में नसों का गुच्छा, बनावट में खराबी सहित कई तरह की परेशानी होती है। स्कल बेस की सर्जरी बहुत ही जटिल होती है। इस सर्जरी की तकनीक नए न्यूरो सर्जन को  सिखाने के लिए और अनुभव साझा करने के लिए संजय गांधी पीजीआई स्कल बेस सर्जरी सोसाइटी ऑफ इंडिया का वार्षिक अधिवेशन का आयोजन शुक्रवार से करने जा रहा है। आयोजक सचिव प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव एवं विभाग के प्रमुख प्रो. राजकुमार ने बताया कि लाइव सर्जरी में दो मरीजों की सर्जरी की जाएगी। मेडिकल विवि में कैडेवर पर सर्जरी की ट्रेनिंग देने के साथ वैज्ञानिक सत्र का आयोजन होगा। प्रो. अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि ब्रेन ट्यूमर दिमाग के किसी भी हिस्से में हो सकता है। 20 से 25 ब्रेन ट्यूमर स्कल बेस में होते है। कैंसर ट्यूमर होने पर दोबारा होने की आशंका रहती है।  कैंसर विहीन ट्यूमर में सात से आठ साल तक दोबारा ट्यूमर नहीं होता है। सर्जरी की प्राथमिकता केस की जटिलता के आधार पर तय की जाती है। स्कल बेस सर्जरी के लिए विशेषज्ञों  की टीम की जरूरत होती है जिसमें न्यूरो ऑटोलॉजिस्ट, एनेस्थेसिया, प्लास्टिक सर्जन, रेडियोलाजिस्ट एवं रिहैबिलिटेशन विशेषज्ञों की जरूरत होती है। अधिवेशन में पूरे देश से स्कल बेस सर्जरी के विशेषज्ञ आ रहे है । अमेरिका से विशेष रूप से एक विशेषज्ञ आ रहे हैं। पूरे देश में स्कल बेस सर्जरी से 50 से 60 विशेषज्ञ है इनकी संख्या बढ़ाने में इस अधिवेशन से मदद मिलेगी।

सावधान: हर तीसरी महिला एवं छठां पुरूष की हड्डी खोखली क्रासर-जरा से चोट पर टूट जाती है हड्डी

 





सावधान: हर तीसरी महिला एवं  छठां पुरूष की हड्डी खोखली    


      क्रासर-जरा से चोट पर टूट जाती है हड्डी 


          क्रासर- खामोश बीमारी की पोल खोलता है बीएमडी 


           कुमार संजय


               लखनऊ    । 64 वर्षीय मीरा दी देखने में  यूं तो स्वस्थ्य है लेकिन हल्का सा छटका उनके पैर की हड्डी  टूट गई। राजधानी के बडे अस्पताल में दिखाया तो प्लास्टर कर दिया लेकिन चार नहीने बाद भी हड्डी नहीं जुडी। उनके परिजन संजय गांधी पीजीआई के एपेक्स ट्रामा सेंटर लेकर आए तो यहां के हड्डी रोग विशेषज्ञ प्रो. अमित कुमार ने आपरेशन किया। हड्डी जुड़ गयी।   बाद लंबे समय तक बिस्तर पर पड़ी रही अब सामान्य जिंदगी शुरु होने वाली थी कि दूसरे पैर की हड्डी टूट गयी। दोबारा फिर आपरेशन हुआ । संस्थान इंडोक्राइन विभाग के डा. जया कृष्णन के मुताबिक  बार-बार हड्डी टूटने की वजह आस्टियोपोरोसिस बताया। इस बीमारी की वजह से हड्डी भुर-भुरी एवं कमजोर हो जाती है जिससे जरा सा भी झटका या आघात लगने पर फ्रैक्चर हो जाता है।  लक्षण तब तक प्रकट नहीं होती जब तक कि फ्रैक्चर नहीं हो जाता है। इस बीमारी से बचने के लिए  चालिस की उम्र पार करने के बाद बोन मिनिरल डेंसटी का परीक्षण  कराना चाहिए। इस परीक्षण से बीमारी का पता लग जाता है। एहतियात बरत कर फ्रैक्टर से बचा  सकता है।


 


हर तीसरी महिला और 6 वां पुरूष में आशंका


संजय गांधी पीजीआई के इंडोक्राइन विशेषज्ञ प्रो. सुशील गुप्ता बताते हैं कि पचास की उम्र पार कर चुके ५० फीसदी महिलाएं एवं ३६ फीसदी पुरूष इस बीमारी के चपेट में हैं। २९.८ फीसदी महिलाएं एवं २४.३ फीसदी पुरूष मुहाने पर खड़े हैं। हर तीसरी महिला एवं हर छठां पुरूष इस बीमारी के चपेट में है। इस बीमारी की वजह से सात लाख लोगो के रीढ़ की हड्डी,तीन लाख लोगो के कूल्हे,दो लाख लोगों को कलाई एवं तीस हजार लोगों के दूसरी अन्य हड्डीयों में फ्रैक्चर होता है। कूल्हे में फ्रैक्चर के शिकार २० लोगों की मौत संक्रमण ,बेड शोर के कारण हो जाती है बाकी ५० फीसदी लोग विकलांग हो जाते हैं। बच्चों में इस बीमारी को रिकेट के नाम से जाना जाता है।


 


क्यों होता है आस्टियोपोरोसिस


 


हड्डीयां कोलेजन नामक प्रोटीन के जाल पर एकत्रित कैल्शियम के हाइड्रोआक्सापेटाइड लवण से बनी होती है। यदि कोलेजन का मैट्रिक्स सामान्य हो कैल्शियम कम हो जाए तो इसे आस्टोमलेसिया (मुलायम हड्डी) हो जाता है। यह बीमारी विटामिन डी की कमी से होती है। जब कोलेजन एवं कैल्शियम होने कम हो जाता है तो इस बीमारी को आस्टियोपोरोसिस कहते हैं। 


30 के बाद कम होने लगता है कैल्शियम


         


३० साल की उम्र तक हड्डी में कैल्शियम जमा होता है इसके बाद क्षरण शुरू हो जाता है। इसलिए कैल्शियम युक्त खाद्यपदार्थो का सेवन खूब करना चाहिए ताकि बोन मास बढ़ जाए। उन्होंने बताया कि कैल्शीटोनिन एवं वायोफास्फोनेट दो नई दवाएं आ गई जिससे बीमारी के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। कैल्शीटोनिन बोन मास बढ़ता है जबकि वायोफास्फोनेट कैल्शियम का क्षरण कम करता है।


एसे करें बचाव  


 --बीएमडी जांच कराना चाहिए 


  --वजन सहन करने वाले व्यायाम करना चाहिए


  -- दूध और धूप का सेवन करना चाहिए 


 -- कैल्शियम एवं विटामिन डी का सेवन करना चाहिए


 --शराब एवं धूम्रपान से बचना चाहिए 


बाक्स----- 


   बीमारी से बचने के आवश्यक कैल्शियम की मात्रा का सेवन


 


उम्र एवं लिंग              कैल्शियम की मात्रा (प्रतिदिन)


  जंमजात -६ माह - ४०० मिली ग्राम 


 ६माह से एक साल - ६०० मिली ग्राम 


एक साल से दस साल - ८०००-१२०० मिली ग्राम 


११ से २४ साल  -   १२००-१५०० मिली ग्राम 


गर्भवती महिला -  १२००-१५०० मिली ग्राम            मीनोपाज के बाद - १००० मिली ग्राम                 


(सामान्य महिला) 


 ५० से ६४ -    १५०० मिली ग्राम 


  ६५ से अधिक महिला -  १५०० मिली ग्राम


सामान्य पुरूष


  २५ से ६४ आयु - १००० मिली ग्राम 


   ६५ से अधिक  आयु - १५०० मिली ग्राम  


यहां ले सकते है सलाह

एसजीपीजीआई में हर शुक्रवार को बोन हेल्थ की विशेष ओपीडी इंड्रोक्राइन विभाग में होती है।  विभाग में सभी जांच की सुविधा उपलब्ध है। 



बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

Strength in hands and legs can return even after paralysis but do not delay

 


Strength in hands and legs can return even after paralysis but do not delay

 

 

With physical treatment, 50 to 60 percent people can regain their strength as before.

 

 

 

 

 

Awadh Association of Physical Medicine's seminar at Apex Trauma Center

 

 

 

 

 

Brain stroke, head injury, spinal cord injury (SCI) and multiple sclerosis result in weakness or total loss of strength in the arms and legs in more than 90 percent of cases. Even after treatment, weakness in body parts does not go away. The patient becomes dependent on family members. The family members also feel that the condition could not be returned to the previous condition due to the treatment. In such a situation, physical medicine rehabilitation can prove to be very effective. It can be improved to a great extent through medicine, surgery, spelling, occupational therapy and vocational therapy. 50 to 60 percent people become able to go to work as before.

Prof. of the department in the seminar of Awadh Association of Physical Medicine organized by the Department of Physical Medicine and Rehabilitation at Apex Trauma Center of Sanjay Gandhi PGI. Siddharth Rai told that the family members bring the patient after 6 to 7 months of treatment. In such a situation, the success rate of treatment reduces considerably. If physical treatment is started immediately after the treatment of brain stroke or spine injury, the success rate increases significantly. High blood pressure is a major cause of brain stroke or brain injury in road accidents. Spinal cord injury is a major cause of road accidents. In-charge of Trauma Center and Head of Neuro Surgery Department, Prof. Raj Kumar and Medical Superintendent and Head of Hospital Department, Prof. Rajesh Harsh Vardhan said that the Physical Medicine department of Apex Trauma Center is the first department of any trauma center in the state. This department is needed in every trauma center. Through physical treatment, the weakness in arms and legs caused by the disease can be removed and a person can lead a normal life. Prof. Anil Kumar Gupta, Head of the PMR Department of King George's Medical University, said that he is helping at the level in setting up new departments. More than 150 people received information from Lochia Institute, AIIMS Gorakhpur, KGMU and other institutes in the seminar.

 

There are many types of paralysis

 

 

 

 

 

 Monoplegia – where one limb is paralyzed, Hemiplegia – where the arms and legs on one side of the body are paralyzed, Paraplegia – where both legs and sometimes the pelvis and some of the lower body are paralyzed, Tetraplegia – where Both arms and legs become paralyzed (also called quadriplegia).

 

 

 

 

 

Many problems can occur if paralysis is not treated.

 

 

 

 

 

If paralysis is left untreated for a long time, the muscles and tissues of the affected area may waste away. Urinary incontinence (inability to control the flow of urine) and bowel incontinence (where stool leaks from the back passage) may occur. Pressure ulcers or bed sores (sores that develop when the affected area of ​​tissue is placed under too much pressure).

शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

लकवा के बाद भी लौट सकता है हाथ और पैर में दम लेकिन न करें देर

 





लकवा के बाद भी लौट सकता है हाथ और पैर में दम लेकिन न करें देर


फिजिकल ट्रीटमेंट से 50 से 60 फीसदी लोगों में पहले जैसे आ सकता है दम


 


अवध एसोसिएशन आफ फिजिकल मेडिसिन का एपेक्स ट्रामा सेंटर में सेमिनार


 


ब्रेन स्ट्रोक, सिर की चोट, रीढ़ की हड्डी की चोट (एससीआई) और मल्टीपल स्केलेरोसिस  की वजह से 90 फीसदी से अधिक मामलों में हाथ-पैर में कमजोरी या बिल्कुल शक्ति कम हो जाती है। इलाज के बाद भी शरीर के अंगों में कमजोरी दूर नहीं होती है। मरीज परिजनों पर निर्भर हो जाता है। परिजन भी सोचते है कि इलाज से वापस पहले वाली स्थिति नहीं आ पायी । ऐसे में फिजिकल मेडिसिन रिहैबिलिटेशन काफी कारगर साबित हो सकती है। दवा, सर्जरी, स्पेलिंग, ऑक्युपेशनल थेरेपी और वोकेशनल थेरेपी के जरिए काफी हद तक सुधारा जा सकता है। 50 से 60 फीसदी लोग पहले की तरह काम पर जाने लायक हो जाते है। 


संजय गांधी पीजीआई के एपेक्स ट्रामा सेंटर में फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन विभाग द्वारा अवध एसोसिएशन आफ फिजिकल मेडिसिन के सेमिनार में विभाग के प्रो. सिद्धार्थ राय ने बताया कि इलाज के 6 से 7 महीने बाद परिजन मरीज को लेकर आते है । ऐसे में इलाज की सफलता दर काफी कम हो जाती है। ब्रेन स्ट्रोक या स्पाइन इंजरी के इलाज के तुरंत बाद यदि फिजिकल ट्रीटमेंट शुरू किया जाए तो सफलता दर काफी बढ़ जाती है।उच्च रक्तचाप रोड एक्सीडेंट का ब्रेन स्ट्रोक या ब्रेन इंजरी का बड़ा कारण है। स्पाइनल कॉर्ड इंजरी रोड एक्सीडेंट का बड़ा कारण है। ट्रामा सेंटर के प्रभारी एवं न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. राजकुमार एवं चिकित्सा अधीक्षक एवं अस्पताल विभाग के प्रमुख प्रो. राजेश हर्ष वर्धन ने कहा कि एपेक्स ट्रामा सेंटर का फिजिकल मेडिसिन विभाग प्रदेश के किसी भी ट्रामा सेंटर का पहला विभाग है। हर ट्रामा सेंटर में इस विभाग की जरूरत है। फिजिकल ट्रीटमेंट से बीमारी के कारण हाथ- पैर की आयी कमजोरी को दूर कर व्यक्ति के सामान्य जिंदगी दी जा सकती है। किंग जॉर्ज मेडिकल विवि के पीएमआर विभाग के प्रमुख प्रो, अनिल कुमार गुप्ता ने कहा कि नए विभाग स्थापित करने में वह स्तर पर मदद कर रहे हैं। सेमिनार में लोहिया संस्थान, एम्स गोरखपुर, केजीएमयू सहित अन्य संस्थानों से 150 से अधिक लोगों ने जानकारी हासिल की।  



 


कई तरह का होता है लकवा


 


 मोनोप्लेजिया - जहां एक अंग लकवाग्रस्त हो जाता है, हेमिप्लेजिया - जहां शरीर के एक तरफ के हाथ और पैर लकवाग्रस्त हो जाते हैं, पैराप्लेजिया - जहां दोनों पैर और कभी-कभी श्रोणि और शरीर के कुछ निचले हिस्से लकवाग्रस्त हो जाते हैं, टेट्राप्लेजिया - जहां दोनों हाथ और पैर लकवाग्रस्त हो जाते हैं (जिसे क्वाड्रीप्लेजिया भी कहा जाता है)। 


 


लकवा का इलाज न होने पर हो सकती है कई परेशानी


 


लंबे समय तक पक्षाघात का इलाज न किए जाने पर प्रभावित हिस्से की ' मांसपेशियां और ऊतक बर्बाद हो सकते हैं।  मूत्र असंयम (मूत्र के प्रवाह को नियंत्रित करने में असमर्थता) और आंत्र असंयम (जहां मल पीछे के मार्ग से लीक होता है) हो सकता है।  दबाव अल्सर या बेड शोर  (घाव जो तब विकसित होते हैं जब ऊतक के प्रभावित क्षेत्र को बहुत अधिक दबाव में रखा जाता है) ।

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

यू पी नेडा 14,000 मेगावाट की सौर परियोजनाओं के लिए टी एन सी इंडिया के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर

 




यू पी नेडा 14,000 मेगावाट की  सौर परियोजनाओं के लिए टी एन  सी  इंडिया के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर


 सौर और पवन परियोजनाओं  पर होगा काम



  सौर और पवन ऊर्जा विकास में तेजी लाने की दिशा में लक्षित हस्तक्षेप को आगे बढ़ाने के लिए, उत्तर प्रदेश नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (यूपीएनईडीए) और द नेचर कंजर्वेंसी (टीएनसी) इंडिया ने एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। ) लखनऊ में हुआ। इस सहयोग के हिस्से के रूप में, टीएनसी इंडिया उत्तर प्रदेश के लिए एक अनुकूलित साइटराइट टूल तैनात करेगा, जो पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभावों को रोकने के साथ-साथ भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करने के लिए सौर और पवन परियोजनाओं के लिए स्थानों का चयन करने में मदद करेगा।

एमओयू पर यूपीएनईडीए के निदेशक और उत्तर प्रदेश सरकार के ऊर्जा विभाग के विशेष सचिव श्री अनुपम शुक्ला और टीएनसी इंडिया की प्रबंध निदेशक डॉ. अन्नपूर्णा वंचेश्वरन की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए।


  14,000 मेगावाट सौर ऊर्जा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।" 2027 तक परियोजनाएं और सामाजिक और पर्यावरणीय कारकों पर विचार करते हुए इन उपयोगिता पैमाने की सौर परियोजनाओं के लिए भूमि पार्सल की पहचान करना राज्य के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को समयबद्ध तरीके से प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है।  डॉ. वंचेश्वरन ने कहा कि "टीएनसी और यूपीएनईडीए के बीच सहयोग नवीकरणीय ऊर्जा विकास परियोजनाओं के लिए कम प्रभाव वाले भूमि पार्सल को प्राथमिकता देने में मदद करेगा और भारत के राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक प्रोत्साहन देगा।

मंगलवार, 10 अक्तूबर 2023

पीजीआई में जल्द होगा शुरू होगा दिल का प्रत्यारोपण, तैयारियां पूरी

 पीजीआई में जल्द होगा शुरू होगा दिल का प्रत्यारोपण, तैयारियां पूरी



प्रत्यारोपण के लिए शुरू हुई मरीजों की स्क्रीनिंग



संजय गांधी पीजीआई में जल्द ही दिल का प्रत्यारोपण शुरू होगा। संस्थान प्रशासन ने तैयारियां पूरी कर ली हैं। ब्रेन स्टेम डेथ मरीज का दिल मिलते ही प्रत्यारोपण किया जाएगा। संस्थान के सीवीटीएस विभाग ने प्रत्यारोपण वाले मरीजों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी है। दिल का प्रत्यारोपण करने वाला पीजीआई प्रदेश का पहला संस्थान होगा। संस्थान में प्रत्यारोपण का खर्च पांच से 10 लाख रुपये के बीच आएगा। पीजीआई निदेशक डॉ. आरके धीमन का कहना है कि संस्थान में दिल का प्रत्यारोपण की तैयारियों से लेकर डॉक्टरों की टीम तैयार है। ब्रेन स्टेम डेड मरीज का दिल लेकर प्रत्यारोपित किया जाएगा। स्टेट आर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट (सोटो) की मदद ली जा रही है। जिस दिन ब्रेन  डेथ मरीज का दिल मिल जाएगा। उसी दिन पीजीआई में प्रत्यारोपण किया जाएगा। 
युवाओं में बढ़ रही दिल की समस्या
संस्थान के सीवीटीएस विभाग के प्रो. एसके अग्रवाल ने बताया कि युवाओं में धमनियों में रुकावट (कोरोनरी आर्टरीज डिजीज) की समस्या तेजी से बढ़ रही है। करीब 15 साल पहले तक यह समस्या 60 साल के बाद होती थी, लेकिन अब यह समस्या 40 साल के युवाओं में देखने को मिल रही है। इसकी बड़ी वजह प्रदूषषण, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, तनाव व बदला खानपान और जीवन शैली है। संस्थान की ओपीडी में रोजाना करीब 250 मरीज आते हैं। इनमें से करीब 80 मरीज नए होते हैं।
यह है प्रत्यारोपण टीम
संस्थान में दिल प्रत्यारोपण की टीम में संस्थान के सीवीटीएस विभाग के प्रो एसके अग्रवाल, प्रो. शांतनु पाण्डेय और कार्डियोलॉजी विभाग के प्रो. आदित्य कपूर व प्रो. सत्येंद्र तिवारी समेत कई डॉक्टरों की टीम बनायी गई है। यह टीम प्रशिक्षण भी ले चुकी हैं।

क्या है ब्रेन डेथ

ब्रेन डेड एक ऐसी स्थिति है, जिसमें दिमाग काम करना बंद कर देता है। जब दिमाग में रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद हो जाती है, तब ब्रैंड डेड होता है।  इस सिचुएसन में दिमाग में किसी तरह की कोई भी प्रतिक्रिया नहीं होती है। ब्रेन डेड होने पर दिमाग छोड़कर बाकी सभी अंग जैसे  हार्ट, लिवर, किडनी काम करते हैं।

यह अंग हो सकते है दान

 मस्तिष्क मृत्यु (ब्रेनडेथ) के बाद ही हृदय, फेफड़े, यकृत, गुर्दे, बड़ी आंत, पेनक्रियाज जैसे अंग दान किए जा सकते हैं। हृदय के वाल्व, हड्डियां, टेंडन, लिगामेंट्स, त्वचा और कॉर्निया को हृदय बंद होने के बाद दान किया जा सकता है।


पीजीआई में खुलेगा देश का पहला पेरी ऑपरेटिव मेडिसिन विभाग

 पीजीआई में खुलेगा देश का पहला पेरी ऑपरेटिव मेडिसिन विभाग   



सर्जरी के पहले की बीमारियों को एक छत के नीचे होगा इलाज   

संजय गांधी पीजीआई देश का पहला संस्थान होगा जो पेरी ऑपरेटिव मेडिसिन विभाग शुरू करने जा रहा है। इससे सर्जरी की सफलता दर बढ़ेगी । सर्जरी के पहले होने वाले प्री एनेस्थीसिया चेकअप के बाद पता चलने वाली बीमारियों के इलाज के लिए मरीजों को भटकना नहीं पड़ेगा। एक ही छत के नीचे बीमारियों को नियंत्रित कर सर्जरी के लिए मरीजों को तैयार किया जा सकेगा। यह जानकारी उप मुख्य मंत्री बृजेश पाठक ने संस्थान में  नेशनल कान्फ्रेंस ऑफ इंडियन सोसाइटी इंटेंसिव केयर एंड पेरी ऑपरेटिव मेडिसिन(आईसीआईपीएम) के उद्घाटन के मौके पर दी। 
   मरीजों की दौड़ बचाने में पहले से रही बीमारियों को नियंत्रित करने के बाद ही सर्जरी सफल हो सकती है। इसमें पेरी ऑपरेटिव केयर की अहम भूमिका है।  बहुत से ऐसे विभाग पीजीआई ने शुरू किए हैं, जिन्हें बाद में देश के दूसरे बड़े संस्थानों ने स्वीकार किया। पेरी ऑपरेटिव मेडिसिन की सुविधा में शुरू होने से मरीजों को फायदा मिलेगा। इससे हाई रिस्क सर्जरी के मरीजों की देखभाल होगी। सर्जरी में  देरी नहीं होगी और सर्जरी की सफलता दर बढ़ेगी। 
 कार्यक्रम में पीजीआई निदेशक डॉ. आर. के. धीमान, रजिस्ट्रार डॉ. एसपी अम्बेस, डीन डॉ. शालीन कुमार, कर्नल वरुण वाजपेई, डॉ. पुनीत गोयल व लोहिया संस्थान में एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष डॉ. दीपक मालवीय समेत अन्य  मौजूद रहे।

पीजीआई ने रेयर डिजीज के तीन मरीजों किया इलाज

 पीजीआई ने रेयर डिजीज के तीन मरीजों किया इलाज



रेयर डिजीज के मामले में  बना प्रदेश का पहला संस्थान


संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस ने नेशनल पॉलिसी ऑफ रायर डिसिजेस, 2021 के तहत दुर्लभ आनुवंशिक विकार, गौशे रोग वाले 3 बच्चों को मुफ्त में एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी देने वाला राज्य का पहला संस्थान बन गया है। 

गौशे  आनुवंशिक विकार है ।  प्रभावित व्यक्तियों में एक आनुवंशिक संस्करण के कारण एक प्रमुख लिपिड पदार्थ, ग्लूकोसेरेब्रोसाइड को तोड़ने के लिए एंजाइम की कमी से विभिन्न अंगों, हड्डियों और मस्तिष्क में ग्लूकोसेरेब्रोसाइड का संचय होता है जिसके परिणामस्वरूप एनीमिया, हड्डियों में दर्द, ऑर्गेनोमेगाली और विकास विफलता जैसे लक्षण होते हैं।
यह विकार 40,000 जीवित जन्मों में से 1 को प्रभावित करता है।
नेशनल पॉलिसी ऑफ रायर डिसिजेस,2021 के तहत, सरकार ने गौशे रोग जैसे विकारों के लिए मुफ्त उपचार को मंजूरी दी। यह कदम उन रोगियों के लिए एक महत्वपूर्ण है जो उपलब्धता के बावजूद चिकित्सा का खर्च नहीं उठा सकते थे। इस कदम से एसजीपीजीआईएमएस में दुर्लभ बीमारी वाले 18 बच्चों को लाभ होगा, जिन्हें गौशे रोग, स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी, टायरोसिनेमिया और वंशानुगत एंजियोएडेमा है।
3 रोगियों को 10 अक्टूबर को एंजाइम दिया गया था और 8 और रोगियों को 11 अक्टूबर को भर्ती किया जाएगा।  निदेशक डॉ. आरके धीमान, कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. आदित्य कपूर और मेडिकल जिनैटिक विभागाध्यक्ष डॉ. एसआर फड़के ने बच्चों को मिठाई बांटकर बच्चों का उत्साह बढ़ाया और माता-पिता से उपचार का सख्ती से पालन करने का अनुरोध किया।

एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अमिता मोइरांगथेम के साथ रेजिडेंट डॉक्टर पूजा और नीलादारी  की निगरानी में दवा का इन्फ़ुशन दिया गया । 

बुधवार, 4 अक्तूबर 2023

दुनिया के शीर्ष 2 फीसदी वैज्ञानिकों की सूची में पीजीआई के 15 शिक्षकों को स्थान



 मरीजों के देखभाल और चिकित्सा शोध में एसजीपीजीआई ने एक बार फिर दुनिया में अपना परचम लहराया है। कैलिफोर्निया (अमेरिका) के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की ओर से हाल में जारी की गई दुनिया के शीर्ष 2 फीसदी वैज्ञानिकों की सूची में यहां के 15 शिक्षकों ने अपना स्थान बनाकर इसे साबित भी कर दिया है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी हर साल विश्व के 2 प्रतिशत शीर्ष वैज्ञानिकों की सूची जारी करती है, इसमें हर क्षेत्र के शोधकर्ताओं को शामिल किया गया है। पहली सूची कैरियर डाटा पर आधारित है व दूसरी सूची वर्ष 2022 में किए गए वैज्ञानिकों के काम के आकलन के आधार पर तैयार की गई है। 


इन चिकित्सकों ने संस्थान का गौरव बढ़ाया


एसजीपीजीआई डॉक्टर


संजय गांधी पीजीआई के निदेशक और हेपटोलॉजी  विभाग के प्रोफेसर आरके धीमन, न्यूरोलॉजी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर यूके मिश्रा, गैस्ट्रो सर्जरी  के सेवानिवृत्त प्रोफेसर विनय कपूर, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के और वर्तमान में जिपमेर पांडिचेरी के डायरेक्टर प्रोफेसर राकेश अग्रवाल, क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अमिता अग्रवाल ,क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ दुर्गा प्रसन्ना मिश्रा  गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर उदय चंद्र घोषाल,  न्यूरोलॉजी की प्रोफेसर जयंती कालिता, एंडोक्राइन एंड ब्रेस्ट सर्जरी के प्रोफेसर गौरव अग्रवाल, पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी की प्रोफेसर अंशु श्रीवास्तव, इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर एस अग्रवाल, नेफ्रोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नारायण प्रसाद, क्रिटिकल केयर मेडिसिन के प्रोफेसर मोहन गुर्जर, बायोस्टैटिस्टिक्स एंड हेल्थ इंफॉर्मेटिक्स के एडिशनल प्रोफेसर डॉ प्रभाकर मिश्रा, और एंडोक्रिनोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.  रोहित सिन्हा।

यूपीएनएचएम 1700 परिणाम जारी न होने के विरोध में विरोध प्रदर्शन

 



यूपीएनएचएम 1700 परिणाम जारी न होने के विरोध में विरोध प्रदर्शन 


यूपी एनएचएम 17000 + परीक्षा परिणाम घोषित करने की मांग को लेकर आक्रोशित अभ्यर्थी पांच अक्टूबर को एनएचएम आफिस के सामने विरोध प्रदर्शन करेंगे। अभ्यर्थी राम कुमार ने बताया कि  वैकेंसी का नोटिफिकेशन दिनांक 26 नवंबर 2022 को जारी किया गया था जिसकी परीक्षा भी बहुत जल्दी दिनांक 27,28 और 29 दिसंबर 2022 को करवा लिया गया। आज परीक्षा आयोजित होने के पूरे 9 महीने हो गए हैं लेकिन  परिणाम अभी भी आयोग के तरफ से जारी नहीं किया गया है।  28 अहस्त  को  कई छात्र के द्वारा आपके दरबार में ज्ञापन  भी दिया गया ।  संतुष्ट करने के लिए कहा था अधिकतम 3 सप्ताह में 17000 परिणाम घोषित हो जायेंगे लेकिन  4 सप्ताह बाद भी परिणाम जारी नहीं किया गया।

सोमवार, 2 अक्तूबर 2023

मैसेंजर आरएनए की खोज करने वाले वैज्ञानिकों को मिला 2023 का नोबल- इसी तकनीक पर बना कोरोना वैक्सीन

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में कैटालिन कारिको और ड्रयू वीसमैन को मिला पुरस्कार






नोबल प्राइज 2023


 इस साल कैटालिन कारिको और ड्रू वीसमैन को चिकित्सा का नोबेल दिया गया. इन्हें न्यूक्लियोसाइड बेस संशोधनों से संबंधित उनकी खोजों के लिए यह सम्मान दिया गया. इस खोज की वजह से कोरोना वायरस (Covid-19) के खिलाफ प्रभावी एमआरएनए  टीकों के विकास में मदद मिली. नोबेल समिति के सचिव थॉमस पर्लमैन ने कोरोलिंस्का संस्थान में विजेता की घोषणा की.


 चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार  2023 फिजियोलॉजी या मेडिसिन क्षेत्र 2023 के लिए इस सम्मान के विजेताओं के नाम का ऐलान किया गया. इस साल कैटालिन कारिको और ड्रू वीसमैन को चिकित्सा का नोबेल दिया गया. इन्हें न्यूक्लियोसाइड बेस संशोधनों से संबंधित उनकी खोजों के लिए यह सम्मान दिया गया. इस खोज की वजह से कोरोना वायरस (Covid-19) के खिलाफ प्रभावी एम आरएनए टीकों के विकास में मदद मिली. इसे फाइजर, बायो एन टेक और मॉडर्ना ने बनाया था.
कोरोना महामारी से पहले यह तकनीक एक्सपेरिमेंटल फेज में थी, लेकिन अब इसे वैक्सीन के रूप में दुनिया भर के लाखों लोगों को दे दिया गया है. इसी एम आरएनए तकनीक पर अब अन्य बीमारियों और यहां तक कि कैंसर के लिए भी रिसर्च किया जा रहा है.

 एमआरएनए  टेक्नोलॉजी क्या है 

 मैसेंजर-RNA जेनेटिक कोड का एक छोटा सा हिस्सा है, जो हमारी सेल्स (कोशिकाओं) में प्रोटीन बनाती है। इसे आसान भाषा में ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब हमारे शरीर पर कोई वायरस या बैक्टीरिया हमला करता है, तो यह टेक्नोलॉजी हमारी सेल्स को उस वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने के लिए प्रोटीन बनाने का मैसेज भेजती है। इससे हमारे इम्यून सिस्टम को जो जरूरी प्रोटीन चाहिए, वो मिल जाता है और हमारे शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है।
इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि इससे कन्वेंशनल वैक्सीन के मुकाबले ज्यादा जल्दी वैक्सीन बन सकती है। इसके साथ ही इससे शरीर की इम्युनिटी भी मजबूत होती है। ये पहली बार है जब एमआरएन टेक्नोलॉजी पर बेस्ड वैक्सीन दुनिया में बन रही है।

 एमआरएन टेक्नोलॉजी डेवलप करने वाले वैज्ञानिकों 

1. कैटलिन कारिकोः जिन्होंने एमआरएनए टेक्नोलॉजी बनाई
कैटलिन कारिको का जन्म 17 अक्टूबर 1955 को हंगरी में हुआ। कारिको ने कई सालों तक हंगरी की सेज्ड यूनिवर्सिटी में आरएनए पर काम किया। 1985 में उन्होंने अपनी कार ब्लैक मार्केट में 1200 डॉलर में बेच दी और अमेरिका आ गई। यहां आकर उन्होंने पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में एमआरएए टेक्नोलॉजी पर काम शुरू किया।
इसकी की खोज तो 1961 में हो गई थी, लेकिन अब भी वैज्ञानिक इसके जरिए ये पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि इससे शरीर में प्रोटीन कैसे बन सकता है? कारिको इसी पर काम करना चाहती थीं। लेकिन उनके पास फंडिंग की कमी थी। 1990 में पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में कारिको के बॉस ने उनसे कहा कि आप या तो जॉब छोड़ दें या फिर डिमोट हो जाएं। कारिको का डिमोशन कर दिया गया। कारिको पुरानी बीमारियों की वैक्सीन और ड्रग्स बनाना चाहती थीं।कारिको का डिमोशन कर दिया गया। उसी समय दुनियाभर में भी इस बात की रिसर्च चल रही थी कि क्या मैसेंजर आरएनए का इस्तेमाल वायरल से लड़ने के लिए खास एंटीबॉडी बनाने के लिए किया जा सकता है? 1997 में पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में ड्रू वीसमैन आए।


ड्रू वीसमैन ने फंडिंग कर सहारा दिया...

  • ड्रू मशहूर इम्युनोलॉजिस्ट हैं। ड्रू ने कारिको को फंडिंग की। बाद में दोनों ने पार्टनरशिप करके इस टेक्नोलॉजी पर काम शुरू किया। 2005 में ड्रू और कारिको ने एक रिसर्च पेपर छापा, जिसमें दावा किया कि मॉडिफाइड मैसेंजर आरएनए के जरिए इम्युनिटी बढ़ाई जा सकती है, जिससे कई बीमारियों की दवा और वैक्सीन भी बन सकती है।
  • हालांकि उनके इस रिसर्च पर कई सालों तक किसी ने ध्यान नहीं दिया। 2010 में अमेरिकी वैज्ञानिक डैरिक रोसी ने मॉडिफाइड मैसेंजर आरएनए से वैक्सीन बनाने के लिए बायोटेक कंपनी मॉडर्ना खोली। 2013 में कारिको को जर्मन कंपनी बायोएनटेक में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट अपॉइंट किया गया था।