बेसकांन-2023
गामा नाइफ की कमी ब्रेन ट्यूमर के इलाज में खड़ी कर रही है परेशानी
अब गामा नाइफ से किसी भी साइज के ट्यूमर का इलाज संभव
जागरण संवाददाता। लखनऊ
दिमागी के 20 से 25 फीसदी ट्यूमर स्कल बेस( दिमाग के निचले हिस्से) ट्यूमर का सटीक इलाज केवल इसलिए नहीं पा रहा है कि संजय गांधी पीजीआई सहित प्रदेश किसी भी संस्थान में गामा नाइफ नहीं है। गामा नाइफ की जरूरत के बारे में संस्थान में आयोजित स्कल बेस सर्जरी सोसाइटी ऑफ इंडिया( बेसकांन-2023) में लंबी चर्चा हुई। माना जाता रहा है कि गामा नाइफ केवल तीन सेमी से छोटे ट्यूमर के इलाज में कारगर है लेकिन अब किसी भी साइज के ट्यूमर में इसकी उपयोगिता है। आयोजक प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव के मुताबिक नए ट्यूमर के अलावा सर्जरी के दौरान किसी जटिलता के कारण बचे हुए ट्यूमर के खत्म करने में गामा नाइफ उपयोगी है। गामा नाइफ पर हमारे अलावा प्रो. अवधेश जायसवाल की ट्रेनिंग है। स्कल बेस के ट्यूमर का सर्जरी काफी जटिल होती है ऐसे में सर्जरी के बाद कई तरह की परेशानी की आशंका रहती है। गामा नाइफ से इलाज करने पर दूसरे परेशानी की आशंका कम हो जाती है।
क्या है गामा नाइफ
इस थेरेपी में मरीज को गामा किरणों की हाई डोज दी जाती है। इसका सबसे बड़ा फायदा है कि इस थेरेपी के माध्यम से उसी हिस्से पर बारी-बारी से रेडिएशन देते हैं जहां पर ट्यूमर होता है। इस थेरेपी को दिए जाने का समय आधे घंटे से लेकर तीन घंटे तक होता है, जो अलग-अलग मरीजों पर अलग-अलग होता है। इसके लिए सबसे पहले मरीज के सिर पर एक स्टील का हल्के वजन वाला फ्रेम लगाया जाता है। इमेजिंग के जरिए ब्रेन में ट्यूमर की सही जगह और उसका साइज पता करते हैं। इसके बाद इलाज और दवा के लिए प्लानिंग करते हैं और अंत में मरीज को गामा नाइफ थेरेपी के लिए लेकर जाया जाता है। गामा नाइफ थेरेपी सिर्फ ब्रेन ट्यूमर वाले मरीजों के लिए ही है। इस थेरेपी को गर्दन से नीचे नहीं दिया जा सकता है। इसलिए शरीर के दूसरे भाग में हुए ट्यूमर के लिए इलाज के दूसरे तरीकों पर ही जाना होता है।
4के से सुरक्षित हो गया स्कल बेस के परेशानी का इलाज
बेस में नसों का गुच्छा,बनावट में खराबी सहित कई तरह की परेशानी होती है। प्रो. अरूण श्रीवास्तव ने बताया कि 4 के विधि से लक्ष्य़ कई गुना अधिक बड़ा दिखता है । सर्जरी के दौरान विशेष लेंस से सर्जरी के लक्ष्य को बड़ा करके देखते है । नई ऑप्टिक्स लेंस से लक्ष्य और अधिक स्पष्ट होता है। इससे सर्जरी की सफलता दर काफी हद तक बढ़ जाती है। इससे इलाज के अलावा ट्रेनिंग भी काफी अधिक अच्छी होती है।