गुरुवार, 25 जून 2020

सरल बचाएगा नवजातों का बैक्टीरियल संक्रमण से जीवन






सरल बचाएगा नवजातों का बैक्टीरियल संक्रमण से जीवन



सरल गाइड लाइन को मिली भारत सरकार से मान्यता प्रदेश में लागू हो पायलट प्रोजेक्ट

कुमार संजय़। लखनऊ  



नवजात शिशुओं का जिंदगी बैक्टीरियल संक्रमण के कारण खतरे में न पडे इसके लिए चिकित्सा विज्ञानियों ने सरल इलाज की गाइड लाइन तैयार की है। इस सरलीकृत इलाज के तरीके से  नवजात शिशुओं के संभावित गंभीर जीवाणु संक्रमण( पासिबिल सीरियस बैक्टीरियल संक्रमण) के कारण होने वाली मृत्यु दर पर काफी हद तक लगाम लगायी जा सकती है। विज्ञानियों का कहना है कि  भारत सरकार ने पीएसबीआई  के सरलीकृत इलाज की गाइड लाइन पुष्टि करते हुए राष्ट्रीय दिशा-निर्देश जारी किए। राज्य सरकार के  पायलट प्रोजेक्ट लागू करने जा रहा है।  केंद्र सरकार के समर्थन के साथ  प्रदेश सरकार ७४ जिलों के लिए पीएसबीआई के लिए सरलीकृत उपचार का विस्तार करने की योजना बना रही है । किंग जार्ज मेडिकल विवि और डब्लूएचओ ने मिल कर यह सरल गाइड लाइन तैयार की है। 


क्या सरलीकृत गाइड लाइन

-एमाक्सलीन(मुंह)40 से 50 मिलीप्रित डोज- दो बार  सात दिन

-जेंटामाइसीव इंजेक्शन( 7 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम) एक बार सात दिन

-जिनमें केवल सांस तेज चलने की परेशानी है उनमें इंजेक्शन की जरूरत नहीं







कैसे हुआ शोध



विशेषज्ञों ने लखनऊ के गोसाइगंज. काकोरी, माल और सरोजनीनगर ब्लाक के 856106 की आबादी में 24,448 जन्म लेने वाले कुल शिशुओं में से 0 से 59 आयु के  1302  शिशुओं पीएसबीआई के संकेत (लक्षण) दिखे यानि 53 फीसदी में संक्रमण दिखा। लक्षणों की पहचान  मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) ने 81.2% मामलों की पहचान की जबकि शेष की पहचान परिवारों द्वारा की गई थी।  पीएसबीआई के मामलों में 7-59 दिनों की आयु के युवा शिशु में तेजी से सांस लेने के 13.3%  मामले मिले। इनमें से 147 का इलाज ओरल एमांक्सिलिन द्वारा किया गया और 95.2% ठीक हो गए। 0-6 दिनों की उम्र में अधिक तेजी से सांस लेने के 2.9% मामले मिले जिनमें से 34 को सरलीकृत उपचार किया गया  100 फीसदी ठीक हो गए। इसी तरह  66.5%  के मामले जिनमें गंभीर संक्रमण की परेशानी थी उनमें 658  सरलीकृत उपचार से  94.2%  ठीक हो गए। 


डब्लूएचओ और मेडिकल विव के 13 लोगों ने मिल कर किया शोध

आइडेंटी फिकेशन एंड मैनेडमेंट आफ यंग इनफैंटस विथ पासिबिल सीरीयस बैक्टीरियल इंफेक्शन वेयर रिफरल वाज नाट फिजिबिल इन रूरल लखनऊ शीर्षक से शोध में किंग जार्ज मेडिकल विवि बाल रोग विभाग से  डा. शैली अवस्थी, डा.नवीन केशरवानी, डा. राजकुमार वर्मा, डा.लक्ष्मी शंकर तिवारी, डा. रवि के मिश्रा, डा.लाल जी शुक्ला, डा. अरूण कुमार राउत, लखनऊ विवि के स्टेटिक्स विभाग के डा. गिरधर गोपाल अग्रवाल, डिपार्टमेंट आफ मैटर्नल न्यू बार्न चाइल्ड एंड एडलोसेंट ड्बलूएचओ जिनेवा डा. समीरा, डा. शमीम अहमद ,डा. य़ाशिर, डा.राजीव बहल और किंग जार्ज मेडिकल विवि के एसपीएम विभाग से डा. मोनिका अग्रवाल के शोध को प्लास वन इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल ने स्वीकार किया है।    

तो प्रदेश के 34 फीसदी को पड़ती है नशे की जरूरत


तो प्रदेश के 34 फीसदी को पड़ती है नशे की जरूरत
  मानसिक तनाव कम करने के लिए आजमाया जाता है नशा
कुमार संजय। लखनऊ

प्रदेश के लगभग 34 फीसदी लोग कोई न कोई नशा करते है कुछ लोग कभी –कभी करते है तो कुछ लोग नशें के आदी हो गए है। इस तथ्य का खुलासा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश सहित देश से 36 राज्यों में 186 जिलों से कुल  200,111 परिवारों पर सर्वे के बाद किया है। इनमें से  इन परिवार के कुल 473,569 व्यक्तियों का साक्षात्कार किया गया सर्वे के दौरान   वर्तमान उपयोग (पिछले 12 महीनों के भीतर उपयोग), हानिकारक उपयोग और निर्भरता के बारे में जानकारी हासिल की गयी तो पता लगा कि केवल उत्तर प्रदेश के 23.8 फीसदी लोग एल्कोहल के यूजर है । इसके अलावा भांग, गांजा, अफीम के आलावा नशे का इंजेक्शन भी लेते है।   

क्यों करते है नशा
मेडिकल विवि के मानसिक रोग विशेषज्ञ डा.एसके कार कहते है कि नशीला पदार्थ खून में जाते ही आदमी को खुशी और स्फूर्ति की अनुभूति कराता है। कुछ लोग  संगत में आकर दबाव या शौकवश नशा करने लगते हैं। मानसिक तनाव, अपमान, अभाव, प्रताड़ना, सजा, उपहास, द्वेष, बदला आदि स्थितियाँ नशा करने का कारण बन जाती हैं।

क्या है नशा

किसी सामान्य मनुष्य की मानसिक स्थिति को बदलकर नींद या मदहोशी की हालत में ला देने वाले पदार्थ नारकॉटिक्स, ड्रग्स या नशा कहलाते है। मॉर्फिन, कोडेन, मेथाडोन, फेंटाइनाइल आदि नारकॉटिक्स चूर्ण (पाउडर), गोली (टैब्लेट) और सुई (इंजेक्शन) के रूप में मिलते हैं। ये मस्तिष्क और आसपास के ऊतकों (टिशू) को उत्तेजित करते हैं। किसी मरीज को दर्द से राहत दिलाने के लिए कभी-कभी चिकित्सक अल्प मात्रा में इनका उपयोग करते हैं। केवल मौज-मजे के लिए पारंपरिक नशे (ज़र्दा, बीड़ी, सिगरेट, चिलम, गाँजा, भाँग, चरस, गांजा, अफीम, छिपकली की पूँछ, शराब आदि), सिंथेटिक ड्रग्स (स्मैक, हीरोइन, आईस आदि), ब्राउन शुगर, सल्फ़ी, मेडिकल नशा (मोमोटिल, कैरीसोमा, आयोडेक्स, कफ सिरप आदि), स्निफर्स (लिक्विड व्हाइट फ्लूड, पेट्रोल सूँघना, पंक्चर सेल्यूशन को सूँघना आदि) आदि का बार-बार उपयोग करना लत बनकर बेचैनी, पागलपन या मौत का कारण हो सकता है।

नशे से नुकसान

तम्बाकू के सेवन से टीबी, , निमोनिया और साँस की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। हिंसा, बलात्कार, चोरी, आत्महत्या आदि अनेक अपराधों के पीछे नशा एक बहुत बड़ी वजह है। शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए एक्सीडेंट करना, शादीशुदा व्यक्तियों द्वारा नशे में अपनी पत्नी से मारपीट करना।  मुँह, गले व फेफड़ों का कैंसर, ब्लड प्रैशर, अल्सर, यकृत रोग, अवसाद एवं अन्य अनेक रोगों का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार का नशा है।


कौन सा नशा कितने प्रतिशत
अल्कोहल- 23.8
 कैनबिस (भांग और गांजा/चरस) 7.36
 ओपिओइड (अफीम, हेरोइन और फार्मास्यूटिकल ओपिओइड) 2.11
 कोकीन-.02
 एम्फेटामाइन प्रकार उत्तेजक (एटीएस)-0.10
 इनहेलेंट-0.69


सोमवार, 22 जून 2020

न्यूक्लियर मेडिसिन का एक और रेजीडेंट फेल -- आरडीए ने लगाया उत्पीड़न का आरोप


न्यूक्लियर मेडिसिन का एक और रेजीडेंट फेल    

आरडीए ने लगाया उत्पीड़न का आरोप



संजय गांधी पीजीआई में कुछ हफ्ते पहले न्‍यूक्लियर मेडिसिन विभाग के रेजीडेंट डॉक्‍टर मनमोहन के बाद डॉ विपिन को फेल करने से नाराज डॉक्टरों ने कैंडिल मार्च निकाला। डॉक्‍टर्स एसोसिएशन ने इस पर हैरानी जताते हुए कहा है कि आखिर यह हो क्‍या रहा हैक्‍यों रेजीडेंट डॉक्‍टरों का उत्‍पीड़न किया जा रहा है। रेजीडेंट डाक्टर एसोसिएशन के अध्‍यक्ष डॉ आकाश माथुर व महासचिव डॉ अनिल गंगवार ने कहा कि  इस बार फैकल्‍टी का निशाना पूर्व में पीडि़त डॉ मनमोहन के साथी डॉ विपिन बने हैं।  उन्‍हें प्रैक्टिकल परीक्षा में अनुत्‍तीर्ण कर दिया गया है। आरोप लगाया कि यह सब दबाव बनाने के लिए किया गया हैक्‍योंकि डॉ मनमोहन ने परीक्षा प्रणाली पर कुछ बड़े सवाल खड़े करते हुए सत्याग्रह किया था।

डॉ माथुर ने बताया कि निदेशक द्वारा कमेटी गठित कर निष्पक्ष जाँच कराए जाने का आश्वासन प्राप्त कर डॉ. मनमोहन ने अपना सत्याग्रह खत्म किया था। कमेटी द्वारा हफ्तों बाद भी अभी कोई निर्णय नहीं दिया गया हैलेकिन निदेशक का लगातार कहना है कि कुछ वक्त और देंकमेटी का निर्णय आएगा। उन्‍होंने कहा कि निदेशक के आश्वासन पर सभी रेसिडेंट डॉक्टर सकारात्मक निर्णय तथा परीक्षा प्रणाली में सुधार की आस लगाए अभी कमेटी के निर्णय का इंतज़ार ही कर रहे थे कि विभाग से यह चौंकाने वाली खबर सामने आ गयी।  डॉ गंगवार ने बताया कि न्यूक्लीयर मेडिसिन विभाग में 2 रेसिडेंट डॉक्टर्स इस वर्ष परीक्षा में बैठे थेजहाँ डॉ. मनमोहन को लिखित परीक्षा में अनुतीर्ण कर दिया गया था वहीं उनके साथी डॉ. विपिन को प्रैक्टिकल परीक्षा में अनुतीर्ण कर दिया गया है। डा. गंगलार का कहना है कि इसके लिए पीडि़त डॉक्‍टर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ ही मुख्‍यमंत्री व चिकित्‍सा शिक्षा मंत्री से भी मिलकर अपना पक्ष रखेंगे। इस बारे में संस्थान प्रशासन का कहना है कि सभी पक्ष को ध्यान में रख कर फैसला लिया जाएगा।


योगा से डायबटीज मरीजों कम होगा दिल की बीमारी की बीमारी


योगा से डायबटीज मरीजों कम होगा दिल की बीमारी की बीमारी
देश के 17012 डायबटीज मरीजों पर हुआ शोध
डायबटीज ग्रस्त 29.1 फीसदी में बढा मिला कोलेस्ट्राल
कुमार संजय। लखनऊ

डायबटीज के मरीजों में दिल की बीमारी की आशंका को काफी हद तक योगा के जरिए कम किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि योगा के जरिए दिल की बीमारी के दुश्मन कोलेस्ट्राल के स्तर को कम कर दिल को सुरक्षित रखा जा सकता है। विज्ञानियों ने उत्तर प्रदेश सहित देश भर से बीस साल की आयु से अधिक 17012  लोगों पर शोध के बाद यह सबित किया है। डायबटीड से ग्रस्त  इन मरीजों में से 29.1 फीसदी लोगों में कोलेस्ट्राल ( टोटल कोलेस्ट्राल) का स्तर 200 मिलीग्राम प्रति डेसी लीटर से अधिक था। इनमें से 69 फीसदी शहरी और 31 फीसदी  ग्रामीण डायबटीज के मरीज थे।  तीन  महीने के योगा के बाद इनमें कोलेस्ट्राला का स्तर देखा गया को पता चला कि 60.3 फीसदी लोगों में कोलेस्ट्राल का स्तर 200 मिलीग्राम प्रति डेसी लीटर से कम हो गया। इफीसिएंसी आफ ए वैलीडेटेड योगा प्रोटोकाल आन डिसलिपिडिमिया इन डायबटीज पेशेंट विषय से हुए शोघ को मेडिसिन ( बेसील) ने स्वीकार करते हुए कहा कि डायबटीज गंभीर परेशानी है जिसमें दिल को बचाने के लिए योगा कारगर साबित हो सकता है। यह शोध सेंट्रल काउंसिल फार रिसर्च इन योगा एंड नेचुरोपैथी दिल्ली के देख –रेख में हुआ था।

डायबटीज के साथ बढा कोलेस्ट्राल है खतरनाक
उच्च रक्तचाप और हाइपरलिपिडिमिया टाइन टू डायबटीज से जुड़ी सबसे आम परेशानी है। यह  गुर्दे और हृदय संबंधी जटिलताओं को काफी बढावा देती है। मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन इन रोगियों में मृत्यु का सबसे आम कारण है। 

 प्रदेश 8.03 फीसदी डायबटीज से ग्रस्त
विकासशील देशों की तुलना में विकासशील देशों में वयस्कों में मधुमेह का प्रसार पिछले 35 वर्षों में पुरुषों में 4.3% से बढ़कर 9.0% और महिलाओं में 5.0% से 7.9% हो गया है।  भारत में, यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 66.8 मिलियन(66,800,000)  लोगों को मधुमेह से ग्रस्त है। उत्तर प्रदेश में 8.03% मधुमेह से पीड़ित है। उनमें 9.91% महिलाएं और 6.79% पुरुष  थे।

853.47 रूपया हर महीने डायबटीज के इलाज में खर्च
 दिलचस्प बात यह है कि टाइप टू डायबटीज के  प्रबंधन में औसत व्यय का आकलन किया और भारतीय रुपये 853.47 प्रति व्यक्ति औसत अनुमानित मासिक खर्च होने का खुलासा किया। यह खर्च बीमारी की अवधि के साथ बढ़ता है और इसके साथ जुड़ी जटिलताओं में वृद्धि की आशंका रहती है।

मंगलवार, 16 जून 2020

योगा की सलाह दे रहे है आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञ--- नेचुरल इम्यूनिटी बूस्टर है योगा

योगा की सलाह दे रहे है आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञ

नेचुरल इम्यूनिटी बूस्टर है योगा

कुमार संजय। लखनऊ

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञ भी योगा की सलाह देते है। बशर्ते किसी योगा एक्सपर्ट के देख-रेख में सही तरीके से किया जाए। नियमित योग करने से इम्यून सिस्टम  को बेहतर बनाया जा सकता है. इम्यूनिटी ही हमें संक्रमण, वायरल से बचाने में मदद करती है। इम्यूनिटी अच्छी है तो हम किसी भी वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण से बच सकते हैं।  गतिहीन जीवनशैली  कमजोर इम्यून सिस्टम का कारण हो सकता है।  इम्यून सिस्टम कमजोर होने पर आप अक्सशर सर्दी जुकाम और बुखार से परेशान रहते हैं।  इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए योग एक बेहतर ऑप्शन हो सकता है।  कई लोग इम्यूनिटी बढ़ाने के नेचुरल तरीके  ढूंढते हैं।  योग भी इन्ही में से एक है। योग एक नेचुरल इम्यूइनिटी बूस्टर।  संजय गांधी पीजीआइ के क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट एंड रूमैटोलाजिस्ट प्रो. विकास अग्रवाल कहते है कि आटो इम्यून डिजीज खास तौर रूमैटायड अर्थराइटस में योगा से लाभ होता है। हम खुद मरीजों को इसकी सलाह देते है।  



हाई बीपी में  योगा से कम हो जाती है दवा की डोज

भाग-दौड़ भरी जिंदगी की छोटी-छोटी समस्यानएं कब आपका टेंशन बढ़ा कर आपको ब्लडप्रेशर का मरीज बना देती हैं जिसका पता नहीं चलता है। इसी वजह से इसे साइलेंट किलर भी कहा जाता है। इसके उपचार के लिए तमाम दवाएं है लेकिन इसके साथ योगा भी काफी कारगर है । संजय गांधी पीजीआइ के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो.सुदीप कुमार कहते है कि दवा बिना डाक्टरी सलाह के बंद न करें।   बल्डप्रेशर को नियंत्रित करने के लिए   योगा का भी रास्ता अपनाएं। देखा गया है कि योगा से दवा का डोज कम हो जाता है।  हाई ब्लडप्रेशर से इंसान थका हुआ व चिड़चिड़ा हो जाता है। योगा से शरीर से टॉक्सिन (विषैले तत्वों) को बाहर निकालता है, जिससे आप तनावमुक्त महसूस करते हैं।

रक्त संचार को सामान्य करता है योगा

योगा तनाव को कम करके रक्तसंचार को सामान्य करने का सबसे कारगर तरीका है। उच्च रक्तचाप से ग्रस्त व्यक्ति को  व्यायाम के अलावा भी कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। ऐसा कोई भी काम नही करना चाहिए जिससे कि दिल की धडकन तेज हो। इसके अलावा समय पर सोना-उठना, आरामदायक व साफ बिस्तर, सोने वाले स्थान पर शांति आदि का ख्याल रखना चाहिए।



हाई बीपी से कई खतरे

उच्च  रक्तचाप से  हार्ट-अटैक, नस फटने और किडनी फेल होने का खतरा होता है इसलिए प्रेशर के रोगी को नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए।



दो सौ से अधिक शोध पत्र दे रहे है योगा की गवाही

उत्तर प्रदेश के दौ से अधिक शोध इस बात की गवाही दे रहे है कि योगा के जरिए दिल, मानसिक, थायरयाड , मासिक स्राव, मोटापा   यहां तक किडनी की बीमारी में राहत मिली है। यह सभी शोध पत्र इटरनेशनल मेडिकल जर्नल ने स्वीकार किए जो नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ-स नेशनल लाइब्रेरी आफ मेडिसिन(एनआईएच) में लिस्टेड है। एनआईएच उन्ही मेडिकल जर्नल को आपने लिस्ट में शामिल करता है जिनकी विश्वसनियता विज्ञानी बिरादरी में होती है।