शुक्रवार, 1 सितंबर 2023

क्या दलित वोट को खींचने की कोशिश कर रहे है स्वामी

  


क्या दलित वोट को खींचने की कोशिश कर रहे है स्वामी 


समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय महासचिव और विधान परिषद सदस्य स्वामी प्रसाद मौर्य की 27 अगस्त को की गई धार्मिक टिप्पणी ने एक बार फिर राजनीतिक माहौल गरमा दिया है. एक कार्यक्रम के दौरान स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, “ब्राह्मणवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं और सारी विषमता का कारण भी ब्राह्मणवाद ही है. हिंदू नाम का कोई धर्म है ही नहीं, हिंदू धर्म केवल धोखा है. सही मायने में जो ब्राह्मण धर्म है, उसी ब्राह्मण धर्म को हिंदू धर्म कहकर के इस देश के दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों को अपने धर्म के मकड़जाल में फंसाने की एक साजिश है. अगर हिंदू धर्म होता तो आदिवासियों का भी सम्मान होता है, दलितों का भी सम्मान होता, पिछड़ों का भी सम्मान होता लेकिन क्या विडंबना है...”

   सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा, “यह उनकी व्यक्तिगत राय है, इसका पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है. सपा सभी धर्मों का सम्मान करती है. हम धर्मनिरपेक्षता को मानने वाले लोग हैं.” सपा नेताओं ने स्वामी के बयान से किनारा करने के साथ ही उन्हें नसीहत भी दी. विधानसभा में सपा के मुख्य सचेतक मनोज कुमार पाण्डेय ने कहा, “अपनी राजनीति को चमकाने के लिए कोई भी नेता धर्म को निशाना न बनाए. सपा सभी धर्मों का सम्मान करती है. हमें किसी भी जाति व धर्म के खिलाफ बोलने का अधिकार नहीं है.” 


 सपा नेता आइपी सिंह ने  “एक्स” (ट्विटर) पर पोस्ट लिखी, “आपने वर्षों पहले बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था, इसका यह मतलब कतई नहीं है कि आप हिंदू धर्म की लगातार आलोचना करें. आपने पांच वर्ष भाजपा में रहते हुए ये मुद्दे नहीं उठाए. ऐसे विचारों से पार्टी हरगिज सहमत नहीं हो सकती, ये आपके निजी विचार हो सकते हैं.” 


यह पहली बार नहीं है जब स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादास्पद बयान सपा के ही गले पड़ गए हों. इस वर्ष की शुरुआत में मौर्य ने गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस की कुछ पंक्त‍ियों पर आपत्त‍ि जताते हुए इसे हटाने की मांग की थी. सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था, “कई करोड़ लोग रामचरित मानस को नहीं पढ़ते, सब बकवास है.


 सपा अध्यक्ष अखि‍लेश यादव ने इसे दलित राजनीति से जोड़ने की कोशिश की थी. उन्होंने कहा था, “भाजपा हम लोगों को शूद्र मानती है. मैं विधानसभा में सीएम योगी से कहूंगा कि वो इसके बारे में पढ़कर सुनाएं.” रामचरित मानस पर हुए विवाद पर कोई स्पष्ट स्टैंड न लेने की रणनीति सपा सुप्रीमो ने उस वक्त भी अपनाई जब स्वामी प्रसाद मौर्य ने बद्रीनाथ, केदारनाथ और जगन्नाथपुरी को बौद्ध मठ करार दिया था. मौर्य ने विभिन्न इतिहासकारों, लेखक और बौद्ध धर्म के विद्वान पंडित राहुल सांकृत्यायन, स्वामी विवेकानंद और दयानंद सरस्वती के हवाले से कहा था, “आदि गुरु शंकराचार्य, उनके सहयोगियों और उन्हें मानने वाले राजाओं ने प्राचीन काल में बड़े पैमाने पर बौद्ध मठों को तुड़वाया. पुरी का प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर भी बौद्ध मठ को परिवर्तित करके बनाया गया है. उत्तराखंड के कुमाऊं में भी ऐसा बड़े पैमाने पर किया गया.”


हिंदु मंदिरों को बौद्ध मठ बताने के तीन हफ्ते बाद 21 अगस्त को प्रदेश की राजधानी लखनऊ में समाजवादी पार्टी 'महासम्मेलन' में पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने देश को भगवान बुद्ध का रास्ता अपनाने की सलाह दी. 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर इस सम्मेलन का लक्ष्य कुशवाहा, मौर्य, सैनी और शाक्य समुदाय को अपने साथ जोड़ने पर रहा. 


अखिलेश यादव ने अपने भाषण में 15 अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का जिक्र करते हुए कहा, “कुछ दिनों पहले मैं प्रधानमंत्री के भाषण को सुन रहा था जिसमें देश को विकसित बनाने का संकल्प लिया जा रहा था... मैं कुशवाहा, मौर्य, सैनी और शाक्य लोगों से कह सकता हूं कि जो लाल किले से विकसित देश बनाने की बात और संकल्प दोहरा रहे थे वे केवल भगवान बुद्ध का रास्ता अपना लें तो भारत अपने आप विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा दिखाई देगा.” स्वामी प्रसाद मौर्य की सरपरस्ती में हुए इस सम्मेलन से स्पष्ट हो गया था कि सपा सुप्रीमो की नजर बसपा के उस वोटबैंक पर है जो वर्ष 2014 के बाद से भाजपा की ओर मुड़ गया है. 


“वर्ष 2022 में सपा ने विधानसभा चुनावों में अब तक का सबसे ज्यादा 32.06% वोट हासिल किए. वर्ष 2017 के चुनाव की तुलना में वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को मिले मतप्रतिशत में 10% से अधिक की बढ़ोतरी बसपा के वोटबैंक के एक बड़े हिस्से के साइकिल की तरफ शिफ्ट से होने से हुई थी.” 


सपा 2024 के लोकसभा चुनाव में भी अपने वोटप्रतिशत में बढ़ोतरी को कायम रखना चाहती है.. इसीलिए सपा दलितों के साथ मौर्य, सैनी, कुशवाहा जैसी जातियों में पैठ बढ़ाने के लिए स्वामी प्रसाद मौर्य का सहारा ले रही है. इसीलिए स्वामी प्रसाद मौर्य कांशीराम के जमाने में दिखने वाले जातिगत आक्रामक बयानों के जरिए इन लक्षि‍त जातियों को संदेश देने की कोशिश कर रहे 




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