समय से पता लगे किडनी की परेशानी नहीं आएगी डायलिसिस , ट्रांसप्लांट की नौबत
-40 फीसदी किडनी की परेशानी का कारण ग्लोमेरूलर डिजीज
-सही इलाज से दोबारा काम करने लगती है किडनी
किडनी की बीमारी सुनते है डायलिसिस, किडनी ट्रांसप्लांट जैसे जटिल इलाज की प्रक्रिया से गुजरने की आहट होने लगती है लेकिन किडनी की खराबी के 30 से 40 फीसदी मरीजों में ऐसी बीमारी होती है जिसमें किडनी को काफी हद तक बचाया जा सकता है। डायलिसिस और ट्रांसप्लांट की नौबत नहीं आने पाती है। बस समय से बीमारी का पता लग जाए और विशेषज्ञ के पास इलाज शुरू हो जाए। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के नेफ्रोलॉजी विभाग के 35 वें स्थापना दिवस के मौके पर विभाग ने इन्हीं बीमारियों के इलाज , बीमारी पकड़ने पर विशेष रूप से सीएमई का आयोजन किया हाइब्रिड मोड में किया गया। विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद और प्रो. धर्मेंद्र भदौरिया ने बताया कि किडनी खराबी के 40 फीसदी में खराबी का कारण ग्लोमेरूलर डिजीज होता है। इसमें किडनी फिल्टर फैल जाता है। इसमें कई तरह की बीमारियां होती है। इन बीमारियों का पता शुरुआती दौर में लग जाए तो किडनी के कार्यप्रणाली को दोबारा ठीक किया जा सकता है। एम्स दिल्ली के प्रो.एके बग्गा ने बताया कि किस तरह का ग्लोमेरूलर डिजीज है यह किडनी बायोप्सी से पता लगाते है जिसके बाद इलाज की दिशा तय की जाती है। एम्स दिल्ली के नेफ्रोलाजिस्ट प्रो.विवेका नंद झा ने बताया कि गलोमेरूलर डिजीज में आईजीए नेफ्रोपैथी, मिनिमल चेंज, मेब्रेनो पालीफरेटिव ग्लूमलर नेफ्राइटिस, ल्यूपस नेफ्राइटिस, फोकल सेगमेंटल ग्लोमेरुलोस्केलेरोसिस सहित अन्य किडनी की परेशानी होती है । पीजीआई चंडीगढ़ के प्रो.एचएस कोहली इन बीमारियों में अधिक परेशानी न होने के कारण लोग नजरअंदाज करते है।
चेन्नई के प्रो. न गोपालकृष्णन, यूके के जानथन बराट सहित अन्य लोगों ने व्याख्यान दिया। निदेशक प्रो. आरके धीमन ने सीएमई का उद्घाटन करते हुए कहा कि विभाग लगातार किडनी मरीजों के इलाज की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
आईजीए नेफ्रोपैथी के लिए बच्चों में हो स्क्रीनिंग
आईजीए नेफ्रोपैथी में किडनी के फिल्टर पर आईजीए इम्युनोग्लोबुलिन जमा हो जाता है जिसके कारण किडनी की कार्य शक्ति कम हो जाती है। इस परेशानी का पता शुरुआती दौर में नहीं लगता है क्योंकि कोई परेशानी नहीं होती है। साइलेंट किडनी डिजीज कहा जाता है। इसका पता लगाने के लिए पेशाब में आरबीसी की जांच करना चाहिए जिसे माइक्रोस्कोपिक हीमेच्योरिया कहते है। यदि पेशाब में लाल रक्त कणिका है तो नेफ्रोलाजिस्ट से सलाह लेना चाहिए। इसके लिए स्कूलों में स्क्रीनिंग प्रोग्राम चलाने की जरूरत है।
ग्लोमेरूलर डिजीज के लक्षण
- पेशाब में लाल रक्त कणिका
- पेशाब में प्रोटीन
- शरीर में सूजन
विभाग का एक साल में काम
- 14 हजार नए मरीज
- 91 हजार फालोअप
- तीन हजार डायलिसिस
- 140 किडनी ट्रांसप्लांट
- 45 पेरीटोनियल डायलिसिस
आगे साल की योजना
-300 किडनी ट्रांसप्लांट
- 6 हजार डायलिस
-250 बेड
- इंटरवेंशन नेफ्रोलॉजी ( जिसमें फिस्टुला बनने के नस के बंद होने पर खोलना सहित अन्य)
- किडनी क्रिटिकल केयर यूनिट में आठ आईसीयू बेड है इसकी संख्या दो गुनी
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