रविवार, 8 मई 2022

पीजीआई ने बताया खट्टी डकार से राहत का सटीक नुस्खा हेलिकोबैक्टर पायलोरी के संक्रमण के कारण होने वाली एसिड से होता है गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स

 मोटैलिटी एंड फंक्शनल डिजीज एसोसिएशन का अधिवेशन

 


 

 

पीजीआई ने बताया खट्टी डकार से राहत का  सटीक नुस्खा

 

 हेलिकोबैक्टर पायलोरी के संक्रमण के कारण होने वाली एसिड से होता है गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स

 

 

 

 

 

हेलिकोबेक्टर पायलोरी बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण पेट में एसिडिटी के परेशानी होती है यह परेशानी लंबे समय तक बनी रहने पर पेट में अल्सर की आशंका रहती है। इसकी वजह से खट्टी डकार आती है। सीने में जलन होती है। इस स्थित को  गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स  कहते है।  एसिडिटी की परेशानी को कम करने के लिए प्रोटान पंप इनहिबिटर दवाएं सामान्य तौर पर दी जाती है। इसके लिए मामतौर पर ओमी प्रोजोल दवाएं दी जाती है लेकिन देखा गया है कि इससे अधिक राहत मरीजों को नहीं मिलती है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. यूसी घोषाल ने इस परेशानी से निजात दिलाने के लिए शोध किया 80 मरीजों पर शोध किया जिसमें 41 मरीजों को प्रचलित दवा ओमीप्राजोल और 39 मरीजों को डेक्सलानसोप्राजोल दवा दिया। तो देखा कि डेक्सलानसोप्राजोल दवा लेने वाले मरीजों को काफी राहत मिली। इस तथ्य को प्रो. घोषाल ने  इंडियन मोटैलिटी एंड फंक्शनल डिजीज एसोसिएशन के वार्षिक अधिवेशन में प्रस्तुत किया। प्रो. घोषाल ने बताया कि ब्रेथ टेस्ट से एच पायलोरी संक्रमण का पता ब्रेथ टेस्ट से लगता है जिसमें सांस में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर देखते है। संक्रमण होने पर सांस में इसकी मात्रा बढ़ जाती है।

 

  क्या है एच पायलोरी

 

 

 

एच पाइलोरी एक सामान्य प्रकार का बैक्टीरिया है जो पाचन तंत्र में बढ़ता है और पेट की परत पर हमला करता है। लगभग 44 प्रतिशत लोगों को एच. पाइलोरी संक्रमण की आशंका होती  है।एच पाइलोरी संक्रमण आमतौर पर हानिरहित होते हैंलेकिन वे पेट और छोटी आंत में अधिकांश अल्सर के लिए जिम्मेदार होते हैं।

क्या होता है इसोफेगल रिफलक्स

 

पेट के ऊपर मौजूद स्फिंक्टर अगर ढंग से बंद नहीं है तो पेट में बनने वाला एसिड ऊपर की तरफ़ एसिड एसोफैगस (  यानी खाने की नली) तक आने लगता है। यह परेशानी लंबे समय तक रहने पर सीने में जलन, खाने की नली के खराब होने की आशंका रहती है।  

 

 

 

हाथ –पैर में ही नहीं पेट में भी मारता है लकवा

 

हाथ पैर ही नहीं पेट में भी लकवा मार सकता है। आमाशय  की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है जिसके कारण पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। रायबरेली निवासी 19 वर्षीय ओम इसी परेशानी से ग्रस्त थे। उल्टी, कब्ज, शरीर के भार में लगातार कमी की परेशानी के साथ वह संजय गांधी पीजीआई गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग मे आए। तमाम परीक्षण के पता चला कि वह गैस्ट्रोपैरेसिस से ग्रस्त है। इस मामलों को कैप्सूल केस के रूप में शनिवार को मोटैलिटी एंड फंक्शनल डिजीज एसोसिएशन के अधिवेशन में ए पेशेंट विथ क्रोनिक ओमटिंग के रूप में प्रस्तुत किया गया। विभाग के प्रमुख प्रो.यूसी घोषाल ने बताया कि इस लड़के हाइपरमोबैलिटी इन ज्वाइंट की परेशानी की थी जिसके कारण आमाशय की मांसपेशियां कमजोर पड़ गयी थी। खाने के बाद पाचन नहीं होता था क्योंकि मांसपेशियों में गति नहीं होता था । इस बच्चे के इलाज के लिए आमाशय में खास जगह पर बोटॉक्स इंजेक्ट किया गया जिससे मांसपेशियों में कसाव हो गया। परेशानी काफी हद तक दूर हो गयी।

 

60 फीसदी पेट के मरीजों में फंक्शन डिजीज

प्रो. गौरव पाण्डेय ने बताया कि पेट के 60 फीसदी से अधिक लोगों में डिजीज आफ ब्रेन एंड गट एक्किस की परेशानी होती है जिनमें पेट के भीतरी अंगों की चाल कई बार कम हो जाती है तो कई बार अधिक भी हो जाती है। इनमें गैस बनने, कब्ज, पेट में दर्द, वजन कम होना, मल में खून, मल में तेल आने की परेशानी होती है। बीमारी के गंभीरता के आधार पर हम लोग मनोमेट्री टेस्ट कर चाल की गति पता करते है । इसका इलाज दवाओं से काफी हद तक संभव है।    

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