आठ साल से बंद दिल की नस खोलने में मिली कामयाबी
दूसरी बार पढ़ा अटैक तो पहुंचा पीजीआई
दिल को खून पहुंचाने वाली नस में आठ साल से रूकावट को दूर करने में कामयाबी संजय गांधी स्नात्कोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के हृदय रोग विशेषज्ञ ने हासिल की है। दोबारा हार्ट अटैक पड़ने पर गंभीर स्थिति में मरीज को संस्थान में लाया गया था। दिल को रक्त पहुंचाने वाली नस पूरी तरह से बंद थी। इसकी वजह से दिल को पर्याप्त खून नहीं मिल पा रहा है। सेहत में सुधार के बाद मरीज को डिस्चार्ज कर दिया गया है।
बस्ती निवासी एक 52 पुरुष को आठ साल पहले दिल का दौरा पड़ा। परिवारीजन स्थानीय अस्पताल ले गए। जांच कराई। दिल को खून पहुंचाने वाली बाई तरफ की नस पूरी तरह से बंद मिली। डॉक्टरों ने एंजियोप्लास्टी की सलाह दी थी। आर्थिक तंगी की वजह से परिवारीजन इलाज नहीं करा सके। लिहाजा दवाओं से इलाज कराया। पर, कोई फायदा नहीं हुआ। मरीज को फिर से दिल का दौरा पड़ा। स्थानीय अस्पताल में परिवारीजन मरीज को लेकर पहुंचे। डॉक्टरों ने हालत गंभीर बताते हुए मरीज को पीजीआई रेफर कर दिया।
100 फीसदी बंद थी नस
परिवारीजन मरीज को लेकर पीजीआई पहुंचे। इमरजेंसी में मरीज को भर्ती किया गया। कॉर्डियोलॉजी विभाग के प्रो सतेंद्र तिवारी की देखरेख में मरीज का इलाज शुरू हुआ। प्रो तिवारी ने बताया कि दिल को खून पहुंचाने वाली बाई तरफ की नस पहले ही 100 फीसदी बंद थी। चिकित्सा विज्ञान में इस बीमारी को एन्टीरियल वॉल मायोकार्डियल इन्फाक्शन कहते हैं। अब दाहिनी तरफ की नस भी बंद हो गई। इससे दिल का गंभीर दौरा पड़ा।
नस के छोर का पता लगाना था चुनौती
एंजियोप्लास्टी कर दाहिनी तरफ की नस खोलने का फैसला किया। मरीज की हालत बेहद नाजुक थी। गुब्बारे की मदद से नस खोली। उसमें स्टंट डाला। इससे मरीज को थोड़ी राहत मिली। अब दोबारा बाई तरह की नस खोलने की तैयारी की गई। इससे पहले आठ साल से बंद नस की स्थिति का पता लगाने के लिए जांच कराई गई है। जांच में नस की सेहत ठीक मिली। डॉ. सतेंद्र ने बताया कि बाई तरह की नस में रूकावट के छोर का पता लगाना चुनौती बन गया। डॉ रूपाली खन्ना ने इंट्रावैस्कुलर अल्ट्रासाउंड तकनीक के प्रयोग कर रूकावट के छोर को ढूंढा। फिर अतिरिक्त कड़े तारों की मदद से अवरुद्ध धमनी को खोला गया। साथ में स्टंट डाला गया। संस्थान के निदेशक प्रो आरके धीमान व कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो आदित्य कपूर ने टीम को बधाई दी।
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