मंगलवार, 24 मई 2022

पेट की चाल को ठीक करने के लिए विशेषज्ञ तैयार करेगा आई फोरम

 पेट की चाल को ठीक करने के लिए विशेषज्ञ तैयार करेगा आई फोरम




जीआई फंक्शनल डिजीज एक्सपर्ट मिलेंगे आप के नजदीक


जल्दी पकड़ में आएगी बीमारी कम होगा इलाज पर खर्च


इंडियन मोटैलिटी एंड फंक्शनल डिजीज एसोसिएशन ने तैयार की कार्य योजना

 

कुमार संजय। लखनऊ

 

देश और प्रदेश में पेट रोग विशेषज्ञों की कमी को देखते हुए इंडियन मोटैलिटी एंड फक्शन डिजीज एसोसिएशन(आईएमएफए) ने सामान्य फिजिशियन को ट्रेंड करने का खाका तैयार किया है। इसके तहत इच्छुक फिजिशिन को जोड़ कर फंक्शनल डिजीज से जुड़ी बीमारियों के इलाज की नई जानकारी देने के साथ ही इलाज में आ रही परेशानी भी दूर करने की कोशिश की जाएगी। इससे इस बीमारी का पता शुरुआती दौर में लगेगा। इलाज के लिए कई दवाएं नहीं देनी पड़ेगी। इलाज का खर्च कम होगा। इलाज के लिए बडे शहरों और बड़े डॉक्टरों तक भागदौड़ कम होगी। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के गैस्ट्रो एन्ट्रोलॉजी विभाग के प्रमुख एवं एसोसिएशन के संस्थापक प्रो. यूसी घोषाल के बताया कि हाल में एसोसिएशन की बैठक में यह फैसला लिया गया। इस पर काम भी शुरू कर दिया गया। इसके लिए आई फोरम ( इंडियन फिजिशियन फोरम फार मोटैलिटी एंड फंक्शनल जी आई डिसऑर्डर) वेबसाइट तैयार किया है। इसके माध्यम से फिजिशियन ज्वाइन मीटिंग आइकन के जरिए जुड़ सकेंगे। इसके आलावा इंडियन कॉलेज ऑफ फिजिशियन से भी बात हुई है। इसके माध्यम से फिजिशियन को जोड़ने के लिए जागरूक किया जाएगा। सोशल मीडिया के जरिए भी जोड़ने की कोशिश होगी। प्रो. घोषाल ने बताया कि साल में 6 मीटिंग अभी रखी जाएगी जिसका समय और दिन फिक्स होगा। इस मीटिंग में डाक्टर को थियरी नहीं केस बेस जानकारी दी जाएगी। कोशिश होगी उत्तर प्रदेश के हर जिले में एक फिजिशियन को फंक्शल डिजीज के बारे में ट्रेंड किया जाए। इस कोशिश देश में काफी संख्या में फंक्शनल डिजीज के मरीजों को राहत मिलेगी।

 

60 फीसदी पेट के फंक्शनल डिजीज से ग्रस्त

प्रो. घोषाल ने बताया कि पेट के कुल मरीजों में 60 फीसदी से अधिक लोगों में फंक्शनल डिजीज की परेशानी होती है जिसमें आमाशय, आंत सहित अन्य अंगों की गति कम या अधिक हो जाती है। देखा गया है कि इस बीमारी से ग्रस्त 20 से 30 फीसदी मरीज इलाज के लिए फिजिशियन के पास जाते है। इनको सही जानकारी होने पर सही इलाज मिलना संभव होगा। इन परेशानियों में कब्ज, एसिड रिफलेक्स, उल्टी, पेट में गैस, भूख न लगने सहित कई परेशानी रहती है।

सोमवार, 23 मई 2022

आठ साल से बंद दिल की नस खोलने में मिली कामयाबी

 आठ साल से बंद दिल की नस खोलने में मिली कामयाबी



 दूसरी बार पढ़ा अटैक तो पहुंचा पीजीआई


दिल को खून पहुंचाने वाली नस में आठ साल से रूकावट को दूर करने में कामयाबी संजय गांधी स्नात्कोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान  के हृदय रोग विशेषज्ञ ने हासिल की है।  दोबारा हार्ट अटैक पड़ने पर गंभीर स्थिति में मरीज को संस्थान में लाया गया था।  दिल को रक्त पहुंचाने वाली नस पूरी तरह से बंद थी। इसकी वजह से दिल को पर्याप्त खून नहीं मिल पा रहा है।  सेहत में सुधार के बाद मरीज को डिस्चार्ज कर दिया गया है।
बस्ती निवासी एक 52 पुरुष को आठ साल पहले दिल का दौरा पड़ा। परिवारीजन स्थानीय अस्पताल ले गए। जांच कराई। दिल को खून पहुंचाने वाली बाई तरफ की नस पूरी तरह से बंद मिली। डॉक्टरों ने एंजियोप्लास्टी की सलाह दी थी। आर्थिक तंगी की वजह से परिवारीजन इलाज नहीं करा सके। लिहाजा दवाओं से इलाज कराया। पर, कोई फायदा नहीं हुआ। मरीज को फिर से दिल का दौरा पड़ा। स्थानीय अस्पताल में परिवारीजन मरीज को लेकर पहुंचे। डॉक्टरों ने हालत गंभीर बताते हुए मरीज को पीजीआई रेफर कर दिया।


100 फीसदी बंद थी नस

परिवारीजन मरीज को लेकर पीजीआई पहुंचे। इमरजेंसी में मरीज को भर्ती किया गया। कॉर्डियोलॉजी विभाग के प्रो सतेंद्र तिवारी की देखरेख में मरीज का इलाज शुरू हुआ। प्रो तिवारी  ने बताया कि दिल को खून पहुंचाने वाली बाई तरफ की नस पहले ही 100 फीसदी बंद थी। चिकित्सा विज्ञान में इस बीमारी को एन्टीरियल वॉल मायोकार्डियल इन्फाक्शन कहते हैं। अब दाहिनी तरफ की नस भी बंद हो गई। इससे दिल का गंभीर दौरा पड़ा।



नस के छोर का पता लगाना था चुनौती

 एंजियोप्लास्टी कर दाहिनी तरफ की नस खोलने का फैसला किया। मरीज की हालत बेहद नाजुक थी। गुब्बारे की मदद से नस खोली। उसमें स्टंट डाला। इससे मरीज को थोड़ी राहत मिली। अब दोबारा बाई तरह की नस खोलने की तैयारी की गई। इससे पहले आठ साल से बंद नस की स्थिति का पता लगाने के लिए जांच कराई गई है। जांच में नस की सेहत ठीक मिली। डॉ. सतेंद्र ने बताया कि बाई तरह की नस में रूकावट के छोर का पता लगाना चुनौती बन गया। डॉ रूपाली खन्ना ने इंट्रावैस्कुलर अल्ट्रासाउंड तकनीक के प्रयोग कर रूकावट के छोर को ढूंढा। फिर अतिरिक्त कड़े तारों की मदद से अवरुद्ध धमनी को खोला गया। साथ में स्टंट डाला गया। संस्थान के निदेशक प्रो आरके धीमान व कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो आदित्य कपूर ने टीम को बधाई दी।

रक्तदाब पर रखें नजर सुरक्षित रहेगी मां और शिशु की जिंदगी

 विश्व प्री एक्लेम्पसिया डे 


 

 

रक्तदाब पर रखें नजर सुरक्षित रहेगी मां और शिशु की जिंदगी  

 

गर्भावस्था के दौरान सात फीसदी महिलाओं में चढ़ जाता है पारा

 

गर्भावस्था के दौरान चढ़ा हुआ पारा मां और शिशु के लिए खड़ी कर सकता है परेशानी

 

ब्लड प्रेशर प्रबंधन से संभव है सुरक्षित प्रसव

 


सात  से दस  फीसदी महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान चढा हुआ पारा ( हाई बीपी) शिशु और मां दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान बढ़ने रक्तदाब को  प्री एक्लेम्पसिया  कहते है। इस स्थिति का पता समय रहते लग जाए तो काफी हद तक दोनों का जीवन सुरक्षित किया जा सकता है।  22 मई को विश्व एक्लेम्पसिया जागरूकता दिवस है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के एमआरएच( मैटरनल एंड री प्रोडेक्टिव हेल्थ)  विभाग की प्रो. इंदु लता साहू के मुताबिक प्री नेटल चेकअप के दौरान बीपी पर विशेष नजर रखने की जरूत है। जल्दी  पता चलने पर एक्लेम्पसिया  से बचाया जा सकता है। रक्तदाब नियंत्रित न होने पर  गर्भस्थ शिशु का विकास प्रभावित होता है। प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव की आशंका रहती है। समय से पहले प्रसव, गर्भ में शिशु की मौत की आशंका रहती है ।  20 से कम और 40 से अधिक उम्र की गर्भवती महिलाओं में आशंका अधिक होती है।    एक्लेम्पसिया की स्थिति में दौरे पड़ने लगते हैं। हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमार के मुताबिक उच्च रक्तचाप कारण का पता लगा कर ब्लड प्रेशर प्रबंधन के जरिए सुरक्षित प्रसव संभव है। 

 

 

प्री-एक्लेमप्सिया क्या है?

 

 प्लेसेंटा सही ढंग से काम न करने से  प्लेसेंटा से रक्त के प्रवाह कम हो जाता है।   गर्भस्थ शिशु को पर्याप्त ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं मिलता है। विकास बाधित हो सकता है। गर्भावस्था का आधा चरण पार कर लेने, गर्भधारण करने करने के 20 सप्ताह  बाद या फिर शिशु के जन्म के कुछ ही समय बाद होता है।

 

 

 

 

यह परेशानी तो तुरंत लें सलाह

 

  - हाई ब्लड प्रेशरपेशाब में प्रोटीन 

- पैरों, टांगों और बांह में सूजन

-तेज सिरदर्द

 धुंधला दिखना या आंखों के आगे कुछ चमकता सा दिखना

 -मितली या उल्टी

 

-बहुत ज्यादा एसिडिटी व सीने में जलन (हार्टबर्न)

 


किसमें कितनी परेशानी की आशंका

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ वोमेन हेल्थ  के मुताबिक उत्तर भारत में  गर्भावस्था के दौरान  होने से परेशानी की आशंका

 

 

फीसदी      परेशानी

 

90   - शरीर में सूजन

26.46 - पेशाब में प्रोटीन

42.2 - केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की परेशानी

 47.0-  बिलीरुबिन का बढा

 स्तर,

 6.4- देखने में परेशानी

 11.3-  योनि से रक्तस्राव

2.80 -   एचईएलपी (हेमोलिसिसबढ़ा लीवर एंजाइम कम प्लेटलेट ) सिंड्रोम

 2.8-   मातृ मृत्यु एक्लेम्पसिया से ग्रस्त

16.9-   मृत शिशु का जंम

मंगलवार, 17 मई 2022

समय से पता लगे किडनी की परेशानी नहीं आएगी डायलिसिस , ट्रांसप्लांट की नौबत

 समय से पता लगे किडनी की परेशानी नहीं आएगी डायलिसिस , ट्रांसप्लांट की नौबत

 


-40 फीसदी किडनी की परेशानी का कारण ग्लोमेरूलर डिजीज

-सही इलाज से दोबारा काम करने लगती है किडनी

 

किडनी की बीमारी सुनते है डायलिसिसकिडनी ट्रांसप्लांट जैसे जटिल इलाज की प्रक्रिया से गुजरने की आहट होने लगती है लेकिन किडनी की खराबी के 30 से 40 फीसदी मरीजों में ऐसी बीमारी होती है जिसमें किडनी को काफी हद तक बचाया जा सकता है। डायलिसिस और ट्रांसप्लांट की नौबत नहीं आने पाती है। बस समय से बीमारी का पता लग जाए और विशेषज्ञ के पास इलाज शुरू हो जाए। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के नेफ्रोलॉजी विभाग के 35 वें स्थापना दिवस के मौके पर विभाग ने इन्हीं बीमारियों के इलाज बीमारी पकड़ने पर विशेष रूप से सीएमई का आयोजन किया हाइब्रिड मोड में किया गया। विभाग के प्रमुख प्रो. नारायण प्रसाद और  प्रो. धर्मेंद्र भदौरिया ने बताया कि किडनी खराबी के 40 फीसदी में खराबी का कारण ग्लोमेरूलर डिजीज होता है। इसमें किडनी फिल्टर फैल जाता है। इसमें कई तरह की बीमारियां होती है। इन बीमारियों का पता शुरुआती दौर में लग जाए तो किडनी के कार्यप्रणाली को दोबारा ठीक किया जा सकता है। एम्स दिल्ली के प्रो.एके बग्गा ने बताया कि  किस तरह का ग्लोमेरूलर डिजीज है यह किडनी बायोप्सी से पता लगाते है जिसके बाद इलाज की दिशा तय की जाती है। एम्स दिल्ली के नेफ्रोलाजिस्ट प्रो.विवेका नंद झा ने बताया कि  गलोमेरूलर डिजीज में आईजीए नेफ्रोपैथीमिनिमल चेंजमेब्रेनो पालीफरेटिव ग्लूमलर नेफ्राइटिसल्यूपस नेफ्राइटिस,  फोकल सेगमेंटल ग्लोमेरुलोस्केलेरोसिस सहित अन्य किडनी की परेशानी होती है । पीजीआई चंडीगढ़ के प्रो.एचएस कोहली इन बीमारियों में अधिक परेशानी  न होने के कारण लोग नजरअंदाज करते है। 

चेन्नई के प्रो. न गोपालकृष्णन, यूके के जानथन बराट सहित अन्य लोगों ने व्याख्यान दिया। निदेशक प्रो. आरके धीमन ने सीएमई का उद्घाटन करते हुए कहा कि विभाग लगातार किडनी मरीजों के इलाज की दिशा में आगे बढ़ रहा है।    



आईजीए नेफ्रोपैथी के लिए बच्चों में हो स्क्रीनिंग

 

आईजीए नेफ्रोपैथी में किडनी के फिल्टर पर आईजीए इम्युनोग्लोबुलिन जमा हो जाता है जिसके कारण किडनी की कार्य शक्ति कम हो जाती है। इस परेशानी का पता शुरुआती दौर में नहीं लगता है क्योंकि कोई परेशानी नहीं होती है। साइलेंट किडनी डिजीज कहा जाता है। इसका पता लगाने के लिए पेशाब में आरबीसी की जांच करना चाहिए जिसे माइक्रोस्कोपिक हीमेच्योरिया कहते है। यदि पेशाब में लाल रक्त कणिका है तो नेफ्रोलाजिस्ट से सलाह लेना चाहिए। इसके लिए स्कूलों में स्क्रीनिंग प्रोग्राम चलाने की जरूरत है।

 

ग्लोमेरूलर डिजीज के लक्षण

-   पेशाब में लाल रक्त कणिका

-   पेशाब में प्रोटीन

-   शरीर में सूजन  

विभाग का एक साल में काम

-   14 हजार नए मरीज

-   91 हजार फालोअप

-   तीन हजार डायलिसिस

-   140 किडनी ट्रांसप्लांट

-   45 पेरीटोनियल डायलिसिस

 

आगे साल की योजना

-300 किडनी ट्रांसप्लांट

- 6 हजार डायलिस

-250 बेड

-   इंटरवेंशन नेफ्रोलॉजी ( जिसमें फिस्टुला बनने के नस के बंद होने पर खोलना सहित अन्य)

-    किडनी क्रिटिकल केयर यूनिट में आठ आईसीयू बेड है इसकी संख्या दो गुनी

पित्ताशय कैंसर के मरीजों को अंतिम दिनों को सुकुन देने में कारगर साबित हो रही है पीटीबीडी

 पीजीआई में चौथी टेक एस्पायर




कैंसर को राहत देगा इंटरवेंशन रेडियोलाजिकल पित्ताशय तकनीक पीटीबीडी
जिंदगी के अंतिम दिनों को सुकुन देने में कारगर साबित हो रही है पीटीबीडी

पित्ताशय कैंसर के ऐसे मरीज जिनमें कैंसर लिवर तक फैल चुका होता है इनमें बहुत इलाज तो संभव नहीं है लेकिन इनकी जिंदगी के अंतिम दिनों को राहत देने के लिए रेडियोलाजिकल इंटरवेंशन तकनीक प्री क्यूटेनियस ट्रांस हिपेटिक विलयरी ड्रेनेज ( पीटीबीटी) कारगर साबित हो रही है। इस तकनीक में रेडियो टेक्नो लाजिस्ट की अहम भूमिका है। संजय स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के रेडियोलॉजी विभाग द्वारा आयोजित चौथे  टेक एस्पायर मास्टर क्लास में रेडियोलॉजी विभाग की प्रो. रजनीकांत और टेक्नोलॉजिस्ट देवाशीष चक्रवर्ती ने बताया कि मरीज का सीरम क्रिएटिनिन, रक्त का थक्का जमने का समय, मरीज की पूरे डिटेल टेक्नोलॉजिस्ट पहले से तैयार करते है। पित्ताशय कैंसर के मरीजों में कैंसर लीवर तक कई बार फैल जाता है ऐसे में हैपेटिक डक्ट बंद हो जाते है ।  पीलिया बढ़ जाता है। भूख में कमी, शरीर में खुजली , बुखार , दर्द की परेशानी होती है। पीटीबीटी तकनीक के जरिए अल्ट्रासाउंड और डॉप्लर टेस्ट एक साथ करके पित्त की नली और रक्त वाहिकाओं को चिन्हित करते है । अल्ट्रासाउंड से देखते हुए गाइड वायर पित्त की नली में डालते है। पित्त की नली को डायलेटर से फुला कर कैथेटर के जरिए पित्त शरीर से बाहर निकाल देते है। पीलिया कम होने के बाद पित्त की नली में स्टंट लगा देते है जिससे पित्त छोटी आंत में चला जाता है। कैथेटर निकल जाता है। पीलिया की स्थिति में कोई भी इलाज संभव नहीं होता है। इस परेशानी को कम करने के बाद मरीज को रेडियोथेरेपी के लिए भेजा जाता है। इससे मरीज की परेशानी कम होती है । लाइफ भी बढ़ जाता है। आयोजक टेक्नोलॉजिस्ट सरोज वर्मा ने बताया कि 250 से अधिक टेक्नोलॉजिस्ट बिहार, नेपाल, झारखंड सहित अन्य प्रदेशों से जुडे।

अच्छी इमेज तो सही बीमारी का पता
प्रो. अर्चना गुप्ता  ने बताया कि रेडियो इमेजिंग में टेक्नोलॉजिस्ट की अहम भूमिका है। इमेज अच्छी होगी तभी रेडियोलाजिस्ट अच्छी रिपोर्ट दे पाएगा। बीमारी का सही पता लगेगा। टेक्नोलॉजिस्ट को अपग्रेड करने के लिए इस सीएमई का आयोजन किया गया। टेक्नोलॉजिस्ट सरोज वर्मा के मुताबिक चेस्ट करने में काफी सावधानी बरतने की जरूरत है।

गर्भवती में सीटी स्कैन से बरते विशेष एहतियात
प्रो. अर्चना ने बताया कि गर्भवती महिला यदि गर्भधारण के शुरू के चार महीने हुए है तो टेक्नोलॉजिस्ट को विशेष ध्यान रखना होता है । महिला के पेट को फुल कवर करना होता है जिससे रेडिएशन का प्रभाव गर्भस्थ पर न पडे। 

शुक्रवार, 13 मई 2022

ट्रेड नर्सेज झेल रही है बेरोजगारी का दंश कमी का फैलाया जा रहा है अफवाह

 विश्व नर्सेज डे आज 

 


ट्रेड नर्सेज झेल रही है बेरोजगारी का दंश कमी का फैलाया जा रहा है अफवाह

प्रदेश में हर साल 19 हजार ट्रेंड हो कर निकल रही नर्सेज


 आउटसोर्सिंग पर काम लेकर किया जा रहा है शोषण


जागरण संवाददाता। लखनऊ  

केस -वन -सरला तिवारी के पिता के पास रोजी रोटी का सहारा चार बीघा खेत है। बेटी को किसी तरह तीन लाख लगा कर जीएनएम कराया कि घर की हालत ठीक हो जाएगी लेकिन सरला आउट सोर्स पर 15 हजार की नौकरी करने को मजबूर है। 

केस टू-  अनीता उपाध्याय की शादी जल्दी हो गई। घर में कोई कमाने वाला नहीं था पति ने एक बीघा जमीन बेच कर पत्नी को जीएनएम कराया लेकिन ट्रेनिंग दो साल भी निजी नर्सिंग होम 4 हजार की नौकरी करने को मजबूर है।

ऐसी एक नहीं हजारों की संख्या में ट्रेड नर्सेज है जो बेरोजगारी का दंश सह रही है। ट्रेड नर्सेज एसोसिएशन के डा. अजय सिंह और आउट सोर्स नर्सेज संघ की अध्यक्ष साधना और महामंत्री मलखान कहते है कि नर्सेज की कमी बता कर रोज कालेज निजी और सरकारी क्षेत्र में खुल रहे है लेकिन रोजगार के नाम पर केवल शोषण है। कहते है कि उत्तर प्रदेश में एक लाख पांच 263 से अधिक नर्स पंजीकृत है । सरकारी क्षेत्र के पीएमएस में लगभग 10 हजार और चिकित्सा शिक्षा में तीन हजार नौकरी है । इस तरह कुल तेरह हजार नौकरी है । इससे साफ है कि पंजीकृत हजारों नर्सेज बेरोजगार है लेकिन प्रदेश में ट्रेनिंग लगातार जारी है। हर साल उत्तर प्रदेश के नर्सिंग कॉलेज से लगभग 19 हजार नर्सेज ट्रेंड होकर निकलती है।  साल-दर –साल संख्या बढ़ती जा रही है ।  इस पेशे में 90 फीसदी लड़कियां है जिनका शोषण हो रहा है। मजे की बात यह है कि  तेजी से निजि नर्सिग कालेजों की संख्या बढी है जिससे बेरोजगार नर्सेज की लंबी फौज है। नर्सिंग काउंसिल आफ इंडिया के अनुसार 2018 में सरकारी क्षेत्र के केवल 8 और निजी क्षेत्र  272 नर्सिग कालेज थे जिसमें 20 फीसदी संख्या कालेजों की बढ़ चुकी है क्योंकि कमाई का अच्छा व्यापार है।   ट्रेंड नर्सेज की भारी कमी है लेकिन हकीकत कुछ और है कमी होती तो आउटसोर्सिंग पर काम करने के लिए नर्सेज कैसे मिलती। मानक के अनुसार प्रदेश में 500 की संख्या पर एक नर्स की तैनाती होनी चाहिए इस तरह चार लाख नर्स की तैनाती होनी चाहिए लेकिन मानक के अनुसार तैनाती न कर ट्रेंड नर्सेज को शोषण के लिए छोड़ दिया गया।  

 

संविदा सीएचओ के 28 सौ 80 हजार से अधिक आवेदन


नर्सेज की कमी कहां है सीएचओ 28 सौ पद के लिए हाल में जगह निकली थी जिसमें 80 हजार से अधिक आवेदन आए। इसी तरह पीजीआई में 475 नर्सेज की जगह के 50 हजार से अधिक आवेदन आए।

रविवार, 8 मई 2022

 


 


सोलह साल बाद मिला कब्ज  और रक्तस्राव से राहत

 

 जंम से कम थी आंत की चाल और आंत में थी गांठ

 


 

 

 

नेपाल की रहने वाली सोलह वर्षीय रंजीता जब से होश संभाल कब्ज की परेशानी की शिकार थी। इसके साथ रक्तस्राव को भी परेशानी थी।  तमाम इलाज चला लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ। परिजन इनको लेकर संजय गांधी पीजीआई के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग में आए। इलाज की बाद रंजीता को राहत मिल गयी है। इस विशेष मामले को शनिवार को इंडियन मिलिट्री एंड फंक्शनल डिजीज एसोसिएशन के वार्षिक अधिवेशन में संस्थान के सहायक प्रोफेसर डा. आकाश माथुर ने कैप्सूल केस श्रृंखला में प्रस्तुत किया। बताया कि आंत की चाल में जन्मजात कमी के कारण इन्हें कब्ज की परेशानी रहती थी। जंम से ही इनके आंत में गैनलियान सेल की कमी थी जिसके कारण आंत की चाल कम थी यह कब्ज का कारणथा। आंत के एक हिस्से में मेकल डायवर्टिकुलम की परेशानी के कारण आंत में रक्तस्राव की परेशानी थी जिससे मल से खून भी आता था। दो परेशानी के कारण इलाज दो तरफा करना था जिसके लिए प्लानिंग किया गया। आंत की चाल बढ़ाने के लिए ऐसी दवाएं दी गयी जो गट ब्रेन एक्सिस पर क्रियाशील हो कर आंत की चाल को बढ़ाता है। इससे कब्ज की परेशानी में राहत मिला। रक्तस्राव भी दवा के माध्यम से रोका गया। डा. माथुर ने बताया कि इसके आगे के इलाज के लिए सर्जरी की प्लानिंग की गई है जिसमें आंत के जिस भाग में सेल कम है उस भाग को निकाल कर आत को आप को आपस में जोड़ दिया जाएगा। रक्तस्राव के परमानेंट इलाज के लिए भी सर्जरी उसी दौरान की जाएगी फिलहाल रंजीता को राहत मिल गयी है। रक्त स्राव के कारण हीमोग्लोबिन भी कम हो रहा था उसमें सुधार हुआ है। कब्ज की परेशानी कम होने के बाद काफी राहत मिली है। 

 

 

 

क्या है मेकल डायवर्टिकुलम  

 

 

 

    मेकेल का डायवर्टिकुलम एक जन्मजात (जन्म के समय मौजूद) छोटी आंत के निचले हिस्से में उभार या उभार होता है। इसकी वजह से रक्तस्राव की आशंका रहती है।

 

 क्या है कब्ज

 

 

 

हफ्ते में तीन बार कम मल विसर्जन के जाना। कडा मल होना कब्ज का लक्षण है।

 

 

 

 

 

 

पेट के भीतरी अंगों की चाल में गड़बड़ी के कारण हो सकता है डिस्पेप्सिया

मेदांता के पेट रोग विशेषज्ञ डा.  अभय वर्मा ने बताया कि फंक्शनल बावेल डिजीज में कब्ज. डिस्पेप्सिया  और आईबीएस तीन तरह की परेशानी होती है। 30 से 40 फीसदी लोगों में इसकी परेशानी रहती है । 20 से 25  फीसदी लोगों में डिस्पेप्सिया के साथ कब्ज की परेशानी तो इतने ही लोगों में तीनो परेशानी रहती है। डिस्पेप्सिया में पेट में भारीपनपेट में जलनगैस बनने की परेशानी होती है। यदि यह परेशानी 6 महीने से अधिक समय तक है यह डिस्पेप्सिया की परेशानी होती है।

 

 

कोरोना से उबरने के बाद पेट की परेशानी

 

प्रो.यूसी घोषाल और डा. आकाश माथुर ने बताया कि कोरोना संक्रमित होने वाले लोग इस संक्रमण से ठीक होने के बाद पेट की उन परेशानी के गिरफ्त में आए जिसमें पेट के भीतरी अंगों की गति के कारण होती है। कोरोना से ठीक होने वाले 264 मरीजों पर शोध किया तो लगभग 10 फीसदी लोगों में लंबे समय फंक्शल डिजीज की परेशानी रही है। इसके कारण उल्टी, मिचली, डायरिया, कब्ज पेट में दर्द की परेशानी रही।

पीजीआई ने बताया खट्टी डकार से राहत का सटीक नुस्खा हेलिकोबैक्टर पायलोरी के संक्रमण के कारण होने वाली एसिड से होता है गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स

 मोटैलिटी एंड फंक्शनल डिजीज एसोसिएशन का अधिवेशन

 


 

 

पीजीआई ने बताया खट्टी डकार से राहत का  सटीक नुस्खा

 

 हेलिकोबैक्टर पायलोरी के संक्रमण के कारण होने वाली एसिड से होता है गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स

 

 

 

 

 

हेलिकोबेक्टर पायलोरी बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण पेट में एसिडिटी के परेशानी होती है यह परेशानी लंबे समय तक बनी रहने पर पेट में अल्सर की आशंका रहती है। इसकी वजह से खट्टी डकार आती है। सीने में जलन होती है। इस स्थित को  गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स  कहते है।  एसिडिटी की परेशानी को कम करने के लिए प्रोटान पंप इनहिबिटर दवाएं सामान्य तौर पर दी जाती है। इसके लिए मामतौर पर ओमी प्रोजोल दवाएं दी जाती है लेकिन देखा गया है कि इससे अधिक राहत मरीजों को नहीं मिलती है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. यूसी घोषाल ने इस परेशानी से निजात दिलाने के लिए शोध किया 80 मरीजों पर शोध किया जिसमें 41 मरीजों को प्रचलित दवा ओमीप्राजोल और 39 मरीजों को डेक्सलानसोप्राजोल दवा दिया। तो देखा कि डेक्सलानसोप्राजोल दवा लेने वाले मरीजों को काफी राहत मिली। इस तथ्य को प्रो. घोषाल ने  इंडियन मोटैलिटी एंड फंक्शनल डिजीज एसोसिएशन के वार्षिक अधिवेशन में प्रस्तुत किया। प्रो. घोषाल ने बताया कि ब्रेथ टेस्ट से एच पायलोरी संक्रमण का पता ब्रेथ टेस्ट से लगता है जिसमें सांस में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर देखते है। संक्रमण होने पर सांस में इसकी मात्रा बढ़ जाती है।

 

  क्या है एच पायलोरी

 

 

 

एच पाइलोरी एक सामान्य प्रकार का बैक्टीरिया है जो पाचन तंत्र में बढ़ता है और पेट की परत पर हमला करता है। लगभग 44 प्रतिशत लोगों को एच. पाइलोरी संक्रमण की आशंका होती  है।एच पाइलोरी संक्रमण आमतौर पर हानिरहित होते हैंलेकिन वे पेट और छोटी आंत में अधिकांश अल्सर के लिए जिम्मेदार होते हैं।

क्या होता है इसोफेगल रिफलक्स

 

पेट के ऊपर मौजूद स्फिंक्टर अगर ढंग से बंद नहीं है तो पेट में बनने वाला एसिड ऊपर की तरफ़ एसिड एसोफैगस (  यानी खाने की नली) तक आने लगता है। यह परेशानी लंबे समय तक रहने पर सीने में जलन, खाने की नली के खराब होने की आशंका रहती है।  

 

 

 

हाथ –पैर में ही नहीं पेट में भी मारता है लकवा

 

हाथ पैर ही नहीं पेट में भी लकवा मार सकता है। आमाशय  की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है जिसके कारण पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। रायबरेली निवासी 19 वर्षीय ओम इसी परेशानी से ग्रस्त थे। उल्टी, कब्ज, शरीर के भार में लगातार कमी की परेशानी के साथ वह संजय गांधी पीजीआई गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग मे आए। तमाम परीक्षण के पता चला कि वह गैस्ट्रोपैरेसिस से ग्रस्त है। इस मामलों को कैप्सूल केस के रूप में शनिवार को मोटैलिटी एंड फंक्शनल डिजीज एसोसिएशन के अधिवेशन में ए पेशेंट विथ क्रोनिक ओमटिंग के रूप में प्रस्तुत किया गया। विभाग के प्रमुख प्रो.यूसी घोषाल ने बताया कि इस लड़के हाइपरमोबैलिटी इन ज्वाइंट की परेशानी की थी जिसके कारण आमाशय की मांसपेशियां कमजोर पड़ गयी थी। खाने के बाद पाचन नहीं होता था क्योंकि मांसपेशियों में गति नहीं होता था । इस बच्चे के इलाज के लिए आमाशय में खास जगह पर बोटॉक्स इंजेक्ट किया गया जिससे मांसपेशियों में कसाव हो गया। परेशानी काफी हद तक दूर हो गयी।

 

60 फीसदी पेट के मरीजों में फंक्शन डिजीज

प्रो. गौरव पाण्डेय ने बताया कि पेट के 60 फीसदी से अधिक लोगों में डिजीज आफ ब्रेन एंड गट एक्किस की परेशानी होती है जिनमें पेट के भीतरी अंगों की चाल कई बार कम हो जाती है तो कई बार अधिक भी हो जाती है। इनमें गैस बनने, कब्ज, पेट में दर्द, वजन कम होना, मल में खून, मल में तेल आने की परेशानी होती है। बीमारी के गंभीरता के आधार पर हम लोग मनोमेट्री टेस्ट कर चाल की गति पता करते है । इसका इलाज दवाओं से काफी हद तक संभव है।    

गर्भावस्था के दौरान थायराइड हार्मोन की कमी की 30 फीसदी में आशंका

 



गर्भावस्था के दौरान थायराइड हार्मोन की कमी की 30 फीसदी में आशंका

 हार्मोन की कमी और आयरन की कमी के बीच नहीं रिश्ता

हार्मोन की कमी से शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास हो सकता है बाधित

समय से पता चले परेशानी तो दवा से संभव है इलाज

कुमार संजय। लखनऊ

 

गर्भावस्था और हाइपोथायरायडिज्म के बीच रिश्ता गहरा होता जा रहा है। अभी तक माना जाता रहा है कि गर्भावस्था के दौरान हाइपोथायरायडिज्म की परेशानी की आशंका 4.8 से 11 फीसदी तक है लेकिन हाल के शोध ने साबित किया है इस परेशानी की आशंका 31 से 33 फीसदी तक हो सकती है। इस तथ्य का खुलासा  एसोसिएशन आफ फिजिशियन ऑफ इंडिया के शोध रिपोर्ट मे किया गया है। यह भी पता चला है कि  हाइपोथायरायडिज्म और आयरन की कमी( एनीमिया) के बीच कोई संबंध नहीं है। एनीमिया और हाइपोथायरायडिज्म दो अलग परेशानी है दोनो पर नजर रखने की जरूरत है।

 प्रिवलेंश ऑफ थायराइड डिजीज इन प्रिगनेंशी एंड इट्स रिलेशन टू आयरन डिफिशिएंसी विषय को लेकर हुए शोध में   491 गर्भवती महिलाओं पर शोध हुआ तो पता चला कि 31.77 फीसदी महिलाएं हाइपोथायरायडिज्म की शिकार थी इनमें टीएसएच का स्तर 2.5 से अधिक था और टी4 का स्तर कम  ( ओवर्ट हाइपोथायरायडिज्म) था। 1.42 थायरोटोक्सीकोसिस की परेशानी मिली। इन सभी महिलाओं में आयरन की कमी पता लगाने के लिए सीरम फेरिटिन का भी स्तर देखा गया । हाइपोथायरायडिज्म से ग्रस्त 38.46 में आयरन की कमी मिली जबकि 61.53 फीसदी में आयरन का स्तर सामान्य मिला। इससे साबित हुआ कि हाइपोथायरायडिज्म की परेशानी काफी अधिक है और इसका आयरन की कमी से कोई रिश्ता नहीं है।


हाइपोथायराइड के लक्षण

थकान- 35.6 फीसदी

बाल गिरना- 31.7

 ठंड लगना- 16.9

ड्राइ स्किन- 6.72

कब्ज- 2.65

शरीर का भार बढ़ना- 2.24

याददाश्त में कमी- 2.04

गले में गांठ( घेघा)- 6.41



क्या होता है हाइपोथायरायडिज्म

एसजीपीजीआई के एमआरएच विभाग की प्रो. इंदु लता साहू के मुताबिक थायराइड ग्रंथि से थायरायड हॉर्मोन के अपर्याप्त उत्पादन के कारण होता है। यह आयोडीन की कमी से या प्रसव के पश्चात् थायरायडिज्म के परिणामस्वरूप भी हो सकता है। टीएसएच के उच्च स्तर और टी4 के निम्न स्तर है तो  थायराइड की परेशानी है।  टीएसएच के बढ़े हुए स्तर मगर टी4 के सामान्य स्तर का मतलब यह हो सकता है कि भविष्य में  थायराइड होने का खतरा है।

 

थायराइड की परेशानी से यह होने की आशंका

प्रो.  इंदु लता कहती है कि थायराइड के स्तर का परीक्षण और इलाज गर्भाधान से पहले ही या गर्भावस्था में जितना जल्दी हो सके कर लेना चाहिए। गर्भावस्था की शुरुआत में इसका पता चलने और उचित दवाएं लेने पर शिशु के स्वस्थ होने की पूरी संभावना होती है।

 

थायराइड हार्मोन की कमी (हाइपोथायरायडिज्म) भ्रूण के शारीरिक और दिमागी विकास पर कुप्रभाव डाल सकता है। इससे शिशु का बौद्धिक स्तर (आईक्यू) कम हो सकता है।इसके अलावा गर्भपात, समय से पहले जन्म, प्री-एक्लेमप्सिया, मृत शिशु का जन्म (स्टिलबर्थ) की आशंका रहती है।