विश्व किडनी जागरूकता दिवस आज
80 फीसदी लोग किडनी की खराबी के खराब दौर में पहुंचते है विशेषज्ञ के पास
किडनी खराबी के तीन महीने बाद जटिल हो जाता है इलाज
जल्दी पता लगे तो संभव है किडनी की कार्यक्षमता को वापस लाना
80 फीसदी लोग किडनी की बीमारी ( खराबी) के डायलिसिस के स्टेज में संजय गांधी पीजीआई सहित अन्य विशेषज्ञ के पास पहुंचते है। ऐसे में इलाज जटिल हो जाता है किडनी को दोबारा काम लायक बनान संभव नहीं होता है। किडनी खराबी की बीमारी एक्यूट किडनी इंजरी( एकेआई) नेफ्रोटिक सिंड्रोम, वैस्कुलाइटिस, ल्यूपस नेफ्राइटिस सहित कई किडनी की बीमारी का इलाज शुरुआती दौर में हो जाए तो किडनी की कार्य क्षमता को वापस लाना संभव होता है। किडनी खराबी के साथ तीन महीने बीत जाने पर दोबारा किडनी कार्य क्षमता स्थापित करना जटिल होता है।
विश्व किडनी जागरूकता दिवस( 10 मार्च) के मौके पर पर संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नरायन प्रसाद ने सलाह दिया कि हाई रिस्क ग्रुप के लोगों को किडनी की बीमारी का आशंका का पता लगाने के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट कराते रहना चाहिए। इससे बीमारी का पता शुरुआती दौर में लग जाता है। किडनी की कार्यक्षमता का पता जीएफआर( ग्लूमलर फिल्ट्रेशन रेट) से लगाते है यदि यह 10 से कम है तो ऐसी स्थिति में डायलिसिस करना जरूरी हो जाता है।
100 रुपए में कराएं स्क्रीनिंग में यह जांच
प्रो. धर्मेंद्र भदौरिया ने बताया कि पेशाब में प्रोटीन, आरबीसी के जांच के साथ खून में सीरम क्रिएटिनिन की जांच करना चाहिए। डायबिटीज, हाइपर टेंशन, किडनी डिजीज की फेमली हिस्ट्री, किडनी स्टोन, मोटापा और 60 से अधिक उम्र के लोग हाई रिस्क ग्रुप में आते है। इन्हें हर 6 महीने में यह जांच कराना चाहिए इससे बीमारी का पता का पता शुरुआती दौर में लग जाता है। यह सब जांच सौ रुपए में हो जाती है।
साल के अंत की बढ़ जाएगी इलाज की क्षमता
प्रो. नरायन प्रसाद ने बताया कि प्रदेश में 50 हजार से अधिक लोग किडनी की परेशानी से ग्रस्त है। इनके इलाज के लिए संसाधन कम है। जिला स्तर पर डायलिसिस की सुविधा शुरू की गयी है फिर भी संसाधन की कमी है। संस्थान में साल के अंत तक डायलिसिस की क्षमता रोज 220 तक करने की तैयारी में है। किडनी ट्रांसप्लांट साल में 140 से 150 हो रहा है जिसे बढ़ा कर 300 तक करने के लिए रीनल ट्रांसप्लांट सेंटर विकसित किया जा रहा है।
नान कम्युनिकेबल डिजीज में कमी लेकिन किडनी में नहीं
अन्य नान कम्युनिकेबल बीमारी से मौत में कमी आयी है लेकिन किडनी की बीमारी( क्रोनिक किडनी डिजीज) से मौत 12 स्थान से बढ़ कर पांचवें स्थान पर 2040 तक पहुंचने की आशंका है। इसके पीछे जागरूकता में कमी और संसाधन का अभाव है। कार्डियो वैस्कुलर डिजीज से 30 फीसदी, कैंसर में 15 फीसदी, लंग डिजीज में 41 फीसदी मौत में कमी आयी है लेकिन किडनी डिजीज के कारण मौत की दर बढ़ रही है।
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