सोमवार, 28 मार्च 2022

जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र आवश्यक दस्तावेज

 





जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र आवश्यक  दस्तावेज



- पीजीआई में जन्म, मृत्यु अधिनियम के पंजीकरण पर सिद्धांत एवं व्यवहार पर हुई संगोष्ठी


 

 किसी भी व्यक्ति का जन्म और मृत्यु का पंजीकरण होना एक व्यवहारिक और जरुरी प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया को अनिवार्य रूप से ऑनलाइन माध्यम से पूरे भारत में लागू किया गया है। जन्म और मृत्यु के पंजीकरण से आबादी का डेटा भी सुरक्षित होता है, जिससे उस शहर से लेकर देश की आबादी की सही जानकारी प्राप्त होती है। साथ ही व्यक्ति के बारे में भी सही विवरण परिवारीजनों से लेकर सरकार तक के पास सुरक्षित रहता है। यह जानकारी शनिवार को पीजीआई के अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख और रजिस्ट्रार जन्म व मृत्यु विभाग ने दी। अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर राजेश हषर्वर्धन ने बताया कि

 जन्म, मृत्यु अधिनियम के पंजीकरण पर सिद्धांत एवं व्यवहार पर एक राज्य स्तरीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।  वक्ताओं ने अस्पताल के कर्मचारियों को विशेष रूप से किसी भी व्यक्ति के जन्म और मृत्यु के प्रमाण पत्र को निर्गत करने में तमाम प्रकार की सावधानी बरतने को कहा। उसके कानूनी प्रावधानों आदि के बारे में बताया गया। इस मौके निदेशक और संयुक्त रजिस्ट्रार जनरल सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम आईएएस शीतल वर्मा, निदेशक पीजीआई डॉ. आरके धीमन, डीसीओ सीआरएस सहायक निदेशक डॉ. गौरव पांडेय, डीसीओ आईटी उप निदेशक अनुपम सिंह सोमवंशी, राज्य सलाहकार यूनिसेफ डॉ. आकांक्षा पटेल, टाटा मेमोरियल सेंटर से डॉ. शारवरी महापंकर समेत अन्य लोग मौजूद रहे। 



30 फीसदी मरीज सही विभाग सही विशेषज्ञ के पास नहीं पहुंच पाते है



 

30 फीसदी मरीज सही विभाग सही विशेषज्ञ के पास नहीं पहुंच पाते है

 

सुपरस्पेशल्टी अस्पतालों में 70 फीसदी मरीजों का गलत होता है रेफरल

 


 

70 फीसदी से अधिक मरीज सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल में गलत रेफर हो कर आते है जिसके कारण इनमें से 30 फीसदी से अधिक मरीजों सही विभाग और सही विशेषज्ञ के पास इलाज के लिए जिस दिन आते है उस दिन नहीं पहुंच पाते है। शाम तक जब डॉक्टर के पास नंबर आता है तो पता चलता है कि इनकी बीमारी दूसरे विभाग की है फिर वह विभाग सही डॉक्टर या विभाग के पास इलाज के लिए रेफर करते है। इसलिए किसी भी बडे अस्पताल के लिए रेफर करते समय सही तरीके से रेफरेंस लेटर चिकित्सक को बनाना चाहिए। संजय स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में आल इंडिया एसोसिएशन आफ मेडिकल सोशल वर्क प्रोफेसनल के 9 वें वार्षिक अधिवेशन में आयोजक डा. आरपी सिंह ने बताया कि हमने देखा है कि रिफर करने वाले डॉक्टर मरीज के पर्चे पर लिखते है रिफर टू हायर सेंटर मरीज हायर सेंटर पर जब आते है तो सही बीमारी और विभाग न लिखे होने के कारण कई बार गलत विभाग में पंजीकृत हो जाते है। हमने एसजीपीजीआई, मेडिकल विवि, लोहिया संस्थान, सैफई जैसे बडे संस्थान में मरीजों पर शोध के पाया कि 70 फीसदी मरीज बिना सही रेफरेंस के आते है। इसलिए मरीज को जागरूक होना पड़ेगा।  रिफर कराते समय सही विभाग और बीमारी रिफर लेटर पर लिखा हो इसका ध्यान रखें। मेडिकल सोशल वेलफेयर ऑफिसर रमेश कुमार ने कहा कि 60 फीसदी मरीज जब अस्पताल आते है उनके लिए अस्पताल का वातावरण नया होता है ऐसे में मेडिकल सोशल वेलफेयर ऑफिसर( एमएसओ) की भूमिका बढ़ जाती है। सैफई संस्थान के निदेशक प्रो. पीके सिंह, संस्थान के निदेशक प्रो.आरके धीमन, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो. गौरव अग्रवाल और लोहिया ला कॉलेज के  पूर्व कुलपति प्रो. बलराज चौहान ने एमएसओ की भूमिका पर प्रकाश डाला।   

बीच में न बंद करें दवा

एमएसओ दिव्या सिंह, मदांसा द्विवेदी, अवनीश त्रिपाठी, ने बताया कि कई बार मरीज दवा बीच में बंद करत देते क्यों कि उन्हें परेशानी से आराम मिल जाता है जिसमें डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, दिल, टीबी , न्यूरोला जिस्कल सहित अन्य में देखने को मिलता है। मरीजों को इलाज पूरा करने के लिए काउंसलिंग में एमएसओओ की अहम भूमिका है।

 

   

 

40 फीसदी मरीजों को होती है फाइनेंशियल हेल्प की जरूरत

डा. आरपी सिंह ने बताया कि सरकारी अस्पताल में आने वाले 40 फीसदी से अधिक लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती है इन्हें फाइनसिय़ल सपोर्ट की जरूरत होती है जिसके आयुष्मान , आसाध्य रोग, काम धेनु से सहायता योजना सरकार और संस्थान संचालित है। हम लोग दो से तीन फीसदी लोगों को ही मदद दे पा रहे है। मदद दिलाने में एमएसओ की अहम भूमिका है।

गुरुवार, 24 मार्च 2022

रक्त में बढ़ा शुगर बेअसर कर देता है टीबी की दवा



 रक्त में बढ़ा शुगर बेअसर कर देता है टीबी की दवा

अनियंत्रित शुगर तो काम नहीं करती टीबी की दवाएं

 एनीमिया और कैल्शियम की कमी के कारण बच्चों में काम

 नहीं करती है टीबी की दवाएं 

 


डायबिटीज के परेशानी पहले से है और टीबी का संक्रमण हो

 जाए तो टीबी की दवा के साथ शुगर के स्तर पर नजर

 रखने की जरूरत है। शुगर का स्तर नियंत्रण में नहीं है 

तो टीबी की दवा काम नहीं करेगी। संजय गांधी पीजीआई के

 पल्मोनरी मेडिसिन विभाग में हर सप्ताह चार से पांच ऐसे

 मरीज आते है जिनमें टीबी की दवा का असर नहीं होता है 

कारण पता करने पर कारण अनियंत्रित शुगर का स्तर होता 

है। विभाग के प्रमुख प्रो. आलोक नाथ ने विश्व टीबी दिवस 

पर बताया कि शुगर का स्तर बढा होने पर इम्यून सिस्टम 

कमजोर होता है जिसके कारण दवा का असर नहीं होता है। 

 किडनीलिवर की परेशानी है तो भी दवा का नए तरीके से 

निर्धारित करनी होती है। प्रो. आलोक के मुताबिक बच्चों में 

टीबी का इलाज देने के समय इनमें कैल्शियम और आयरन 

स्तर पर नजर रखने की जरूरत है। इसका स्तर कम है तो 

दवा का ठीक तरीके से काम नहीं करती है। कैल्शियम और 

आयरन की कमी के कारण इम्यून रिस्पांस कम हो जाता है। 

बच्चों में आयरन की कमी एक बड़ी परेशानी है। देखा गया है 

कि 25 फीसदी बच्चे कुपोषित होते है।  इस लिए बच्चों में 

पोषण पर ध्यान रखने की जरूरत है जिससे टीबी की दवा का 

पूरा लाभ  मिले।

 

ब्रोंकोस्कोपी से चलता है टीबी का पता


रोज दो से तीन मरीजों में  टीबी का पता लगाने के लिए 

ब्रोंकोस्कोपी का सहारा लेना पड़ता है। इनमें टीबी ग्लैड फेफड़े 

के अंदर होती है जिसके लिए इस तकनीक से फेफड़े के 

अंदर 

से द्रव लेकर उसमें टीबी की जांच की जाती है।

यह परेशानी तो तुरंत ले सलाह

-छाती में दर्द

- खांसी: खून के साथ या दीर्घकालीन

-अच्छा महसूस न करनाथकानपसीना आनाबुखारभूख न लगनाया रात में पसीना

- बलगम

- बिना कारण वज़न में बहुत ज़्यादा कमी होना

- मांसपेशी का नुकसान

 सांस फूलना

- सूजी हुई लसीका ग्रंथियां यानी लिम्फ़ नोड (छोटे बीज के आकार की ग्रंथियां जो पूरे शरीर में होती हैं)

बुधवार, 23 मार्च 2022

बीपाल 6 महीने में ठीक करेगा एमडीआर टीबी

 



बीपाल 6 महीने में ठीक करेगा एमडीआर टीबी

 

नई दवाओं से एमडीआर टीबी का इलाज समय घटा

 

 

टीबी के फर्स्ट लाइन दवाओं से प्रतिरोध होने की दशा में एमडीआर( मल्टी ड्रग रजिस्टेंस) हो जाता है जिसमें इलाज के लिए दूसरी दवाएं देनी होती है। पहले एमडीआर के मामले में 24 महीने इलाज देना होता था लेकिन कई नई दवाएं आ गयी है जिससे इलाज 18 महीने में ही पूरा हो जाता है। बेडाक्वीलिन दवा से ऐसा संभव हुआ है। यह जानकारी संजय गांधी पीजीआई में विश्व टीबी दिवस दिवस पर आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम में संस्थान के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख   प्रो. आलोक नाथ ने दी। बीपाल रेजीमेंट ( गाइडलाइन ) भी है जिसमें 6 महीने में टीबी का पूरा इलाज संभव है। पूरी तरह से मौखिकतीन-दवा आहार है जिसका उपयोग टीबी के अत्यधिक दवा प्रतिरोधी रूपों वाले लोगों के इलाज के लिए किया जाता है। इसमें एंटीबायोटिक प्रीटोमेनिड के साथ-साथ दो अन्य एंटीबायोटिक्स शामिल हैं बेडाक्विलाइन और लाइनज़ोलिड। साल भारत में दवा नियामक द्वारा बीपीएल आहार को मंजूरी दी गई थी। मेडिकल विवि के प्रो. सूर्यकांत ने कहा कि 2025 तक टीबी खत्म करने के लिए मिशन मोड पर काम करने की जरूरत है। एसजीपीजीआई के  प्रो. जिया हाशिम ने टीबी के लक्षण दिखते है तुरंत जांच कराने की सलाह दिया।  

 

 

कहीं टीबी का गलत इलाज तो नहीं  

 

डॉक्टरों और मरीजों को इलाज के प्रति जागरूक करना होगा। टीबी का इलाज सभी डॉक्टर कर रहे है लेकिन जानकारी न होने की वजह से हर सप्ताह दो से तीन मरीज ऐसे आते है जिनमें दवा का पर्चा गलत होता है। प्रो. आलोक नाथ का कहना है कि इन पर्चों में एमडीआर का पता न होना, दवा की सही मात्रा न होना देखने को मिलता है। नेशनल एकेडमी आफ मेडिकल साइंस के प्रो. इमिरेटस प्रो. राजेंद्र प्रसाद कहते है कि हमने स्टडी किया तो देखा कि गलत इलाज 40 फीसदी लोगों में गलत इलाज देखने को मिला। इस लिए सामान्य चिकित्सकों के लिए भी एजुकेशनल प्रोग्राम चलाने की जरूरत है।      

 

50 हजार ही पा रहे है इलाज

 

प्रो. राजेंद्र प्रसाद के मुताबिक पिछले साल एक लाख 24 नए एमडीआर के केस सामने आए जिसमें 50 हजार को ही इलाज मिल रहा है बाकी लोग लोगों को खोज कर इलाज देना जरूरी है क्योंकि यह तमाम लोगों को संक्रमित कर सकते हैं। सबसे अधिक पल्मोनरी टीबी से संक्रमण का खतरा रहता है। एमडीआर से बचाव के लिए जरूरी है कि  सही मात्रा पर सही समय तक इलाज ले कर ही बचा जा सकता है।    

 

 

12 बच्चों को डॉक्टरों ने लिया जिम्मा

टीबी ग्रस्त 12 बच्चों के पोषण और इलाज का जिम्मा डा. प्रीति दबड घाव, प्रो. अमिता अग्रवाल. डा. मोइनक सेन , डा. भावना सहित अन्य लोगों ने लिया। प्रदेश में अभी राज्यपाल के अपील 38 हजार बच्चों का जिम्मा पोषण के लिए गया है।     

 

सोमवार, 21 मार्च 2022

सिर मे लगी किसी भी चोट को हल्के में मत लें.

 विश्व सिर चोट जागरूकता दिवस पर पीजीआई में कार्यक्रम





-पीजीआई में सिर की चोट वाले ओपीडी में 20 से 30 मरीज आते हैं



सड़क हादसे, ऊंचाई से गिरने व सिर में लगने वाली किसी भी चोट को हल्के में न लें। चोट लगने के तुरंत बाद घायल बेहोश हो सकता है। कई बार जान पर आ जाती है। कई बार लोग सिर में चोट लगने पर नजर अंदाज कर देते हैं। कोई खास दिक्कत न होने पर डॉक्टर की सलाह तक नहीं लेते हैं। ऐसे लोगों में कुछ समय बाद इनके व्यक्तित्व और व्यवहार में बदलाव, चिड़चिड़ापन व भूलने की समस्या समेत कई दूसरी दिक्कतें हो जाती हैं। यह बातें रविवार को
विश्व सिर चोट जागरूकता दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में  विशेषज्ञों ने कहा कि विश्व में 2050 तक मृत्यु दर का प्रमुख कारण सिर की चोट होगा। लिहाजा लोग सिर की चोट को हल्के में कतई न लें। हर साल 20 मार्च को विश्व सिर चोट जागरूकता दिवस मनाया जाता है।



ट्रामा सेंटर के प्रभारी प्रोफेसर राज कुमार ने कहा कि देश में सड़क यातायात दुर्घटनाओं में हर साल लगभग 80,000 लोग मारे जाते हैं। जो दुनिया भर में होने वाली मौतों का लगभग 13% है। पीजीआई के ट्रॉमा सेंटर व न्यूरोलॉजी विभाग की ओपीडी में सिर में चोट लगने से होने वाली समस्याओं के करीब 20 से 30 मरीज आते हैं।  ट्रॉमा सेंटर में सुविधाएं और बढ़ाये जा रहे हैं।


 सिर की चोट को नजरअंदाज न करें

निदेशक प्रोफेसर आरके धीमन ने कहा कि सिर की चोट से इंसान जीवन भर दिव्यांग हो सकता है। ऐसे में सिर की चोट को नजरअंदाज न करें। सिर में चोट लगने पर डॉक्टर की सलाह लें।
डॉ. राजकुमार ने कहा कि यातायात नियमों का सख्ती से पालन कर हादसों से बचा जा सकता है।

यह अपनाएं
-यातायात नियमों का पालन करें
-अच्छी गुणवत्ता का हेलमेट पहनें
- हमेशा सीट बेल्ट लगायें।
- सड़क पर चलते समय मोबाइल पर बात न करें।

एनीमिया से छुटकारा दिलाएगा बिना साइड इफेक्ट एफईए( फेरस एस्कॉर्बेट)

 गर्भवती को एनीमिया से छुटकारा दिलाएगा बिना साइड इफेक्ट एफईए





एनीमिया से निपटने में फेरस एस्कॉर्बेट को बताया बेस्ट

 भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने प्रचलित रसायन को लेकर कराया शोध

 कुमार संजय। लखनऊ

 गर्भवती महिलाओं में आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया (आईडीए ) पोषण की कमी से होता है।  मां के साथ-साथ भ्रूण के स्वास्थ्य पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इस परेशानी में खाने के लिए आयरन सप्लीमेंट इलाज के लिए दिया जाता है। आयरन सप्लीमेंट के रूप में फेरस सल्फेट,  आयरन हाइड्रॉक्साइड पॉलीमाल्टोज कॉम्प्लेक्स (आईपीसी) और फेरस एस्कॉर्बेट (एफईए) रसायन को दिया जाता है। देखा गया है कि यह रसायन   गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल म्यूकोसा के लिए विषाक्त होते है।  परेशानी को सह नहीं पाती है हैं। दवा कई बार बंद हो जाती है। इस परेशानी का हल खोजने के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने शोध कराया जिसमें देखा गया कि फेरस एस्कॉर्बेट (एफईए) बाकी दोनों के मुकाबले बेहतर है। हीमोग्लोबिन का स्तर तो बढ़ता ही साथ में पेट की परेशानी भी कम होती है। विशेषज्ञों ने 50-50 के तीन वर्ग को तीनों अलग आयरन सप्लीमेंट देने के 90 दिन बाद हीमोग्लोबिन का स्तर देखा तो पाया फेरस सल्फेट (  एफएस) वर्ग के  की तुलना में फेरस एस्कॉर्बेट (एफईए)  समूह में हीमोग्लोबिन का स्तर काफी अधिक था। 

प्रचलित रसायन में होती है यह परेशानी

प्रयोग किया जाने वाला सबसे आम लौह पूरक एफएस है। यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल साइड इफेक्ट (मतलीउल्टीपेट दर्दकब्ज और दस्त) पैदा करने के लिए जाना जाता है।

 

 

 

क्या होती है एनीमिया में परेशानी

संजय गांधी पीजीआई के एमआरएच विभाग की प्रो. इंदु लता साहू कहती है कि  गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की व्यापकता लगभग 65-75 प्रतिशत है। एनीमिया का मां के स्वास्थ्य के साथ-साथ भ्रूण पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इससे समय से पहले प्रसवशिशु कम विकासमंदताजन्म के समय कम वजनप्रसवोत्तर रक्तस्रावहृदय की विफलता और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। यह शोध एनीमिया के इलाज दी जाने वाली आयरन सप्लीमेंट से  कुप्रभाव होने के कारण दवा बंद हो जाती थी इससे राहत मिलेगी और पूर्ण दवा का कोर्स करना संभव होगा।   

 

 किसको कितना दिया गया आयरन सप्लीमेंट

  ग्रुप ए – फेरस सल्फेट- 60 मिलीग्राम दो बार  

ग्रुप बी - आईपीसी -  एक बार 100 मिलीग्राम

ग्रुप सी – एफईए  - 100 मिलीग्राम एलिमेंटल आयरन और 1.5 मिलीग्राम फोलिक एसिड प्रतिदिन एक बार

 

 

90 दिन बाद हीमोग्लोबिन में बढोत्तरी

एफएस  समूह  8.56 – 10.99 

आईपीसी  समूह 8.46- 11.13

एफईए  समूह 8.61 - 11.3

 

सीरम फिरेटिन का स्तर

एफसी – 8.84 - 28.59

आईपीसी-8.62-30.44

एफईए- 8.7 -31.80

 

प्रतिकूल प्रभाव बताया गया किस वर्ग में कितना

 

 फेरस सल्फेट- - 62 फीसदी

आईपीसी – 46 फीसदी

एफईए- 42 फीसदी

 

यह हुई साबित

 

 मतलीपेट दर्द और कब्ज तीन सबसे आम प्रतिकूल प्रभाव थे इस दवा से  पेट में दर्ददस्त और उल्टी की परेशानी कम हुई। एफएसआईपीसी और एफईए की गर्भावस्था में एनीमिया के प्रभावकारिता है लेकिन आईपीसी और एफईए दोनों में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रतिकूल प्रभाव की घटना कम थी।

 

 

इन्होंने किया किया शोध

कपरेजिन आफ इफिशिएंसी ऐंड सेफ्टी ऑफ आयरन पालीमालटोस कॉम्प्लेक्स एंड फेरस एस्कॉर्बेट विथ फेरस सल्फेट विथ आयरन डिफिशिएंसी आफ एनीमिया को लेकर    डा.सुयश चव्हाणडा.  राणा प्रोतीशडा. रेवा  त्रिपाठीडा. उमा ठाकुर ने शोध किया जिसे इंडियन जर्नल आफ मेडिकल रिसर्च ने स्वीकार किया है।

शुक्रवार, 11 मार्च 2022

चार साल बाद पीजीआई ने आइएलबीएस के साथ दिया लिवर ट्रांसप्लांट को अंजाम

 





चार साल बाद पीजीआई ने आइएलबीएस के साथ

दिया लिवर ट्रांसप्लांट को अंजाम

 

आटोइम्यून डिजीज के कारण नहीं काम रहा था लिवर 



संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान ने आईएलबीएस (इंस्टिट्यूट ऑफ लीवर एंड बिलरी साइंस) दिल्ली के विशेषज्ञों के साथ मिल कर लिवर ट्रांसप्लांट को अंजाम दिया। सर्जरी के बाद सब ठीक रहने के बाद शुक्रवार को मरीज( लिवर प्राप्तकर्ता) को छुट्टी दी गयी। जनवरी 2019 के बाद संस्थान में लिवर ट्रांसप्लांट ठप हो गया था जिसे दोबारा शुरू किया गया। 12 फरवरी में नए सिरे से तैयारी के बाद लिवर ट्रांसप्लांट किया गया जो सफल रहा।   डोनर को ऑपरेशन के पश्चात सब कुछ सामान्य होने पर आज रोगी को पूर्ण स्वतंत्र अवस्था में डिस्चार्ज किया गया।  

 

 

बहन ने दिया बहन को लिवर

 

गोरखपुर की निवासी 18 वर्षीय बालिका( साहिबा)  आटो इम्यून डिजीज से ग्रस्त थी जिसके कारण लिवर काम करना बंद कर दिया था। इसका इलाज लिवर ट्रांसप्लांट ही था। इनकी  26 वर्षीय बड़ी बहन( करीमुन )  ने जो चार बच्चों की एक स्वस्थ मां है ने  अपने लिवर का बाया लोब  प्रत्यारोपण के लिए दिया। लगभग 15 घंटे चली सर्जरी के बाद इस सर्जरी को अंजाम दिया। सर्जरी के बाद सभी मानक सही होने पर विशेषज्ञों ने राहत की सांस ली।

 

15 लाख आया खर्च जिसे सरकारी योजना से जुटाया

 

 

अब संस्थान में लिवर प्रत्यारोपण सेवा नियमित आधार पर प्रदान की जाएंगी। इस प्रत्यारोपण की कुल लागत (प्रदाता और प्राप्तकर्ता दोनो को मिला कर) 15 लाख से भी कम आई हैजिसके लिये विभिन्न सरकारी योजनाओं से सहयोग जुटाया गया

 

 

 

    

 

इस टीम के किया सफल प्रत्यारोपण  

 

पी जी आई की टीम में हेपेटोलॉजिस्ट प्रो. आर के धीमनडा. आकाश रॉयडॉ सुरेंद्र सिंहसर्जिकल टीम में प्रो. राजन सक्सेनाप्रो. आरके सिंहडॉ सुप्रिया शर्माडॉ. राहुल और डा. आशीष सिंह । एनेस्थीसिया और क्रिटिकल केयर टीम से प्रो. देवेंद्र गुप्ताडा. दिव्या श्रीवास्तवडा. रफत शमीमडा. तापस सिंह.  पैथोलॉजी  डॉ नेहा निगम  माइक्रोबायोलॉजी प्रो. आर एस के मारकडॉ रिचा मिश्रा व डॉ चिन्मय साहू ।  दिल्ली की आईएलबीएस से प्रो. वी पमेचा के नेतृत्व में सदस्य शामिल थे। एचआरएफ से प्रभारी अभय मेहरोत्रा, एचआरएफ यूनिट शिवेंद्र मिश्रा, अऩिता , पूजा,  लैब टेक्नोलाजिस्ट अऩिल वर्मा।   

 

गुरुवार, 10 मार्च 2022

80 फीसदी लोग किडनी की खराबी के खराब दौर में पहुंचते है विशेषज्ञ के पास

 




विश्व किडनी जागरूकता दिवस आज

 

80 फीसदी लोग किडनी की खराबी के खराब दौर में पहुंचते है विशेषज्ञ के पास

किडनी खराबी के तीन महीने बाद जटिल हो जाता है इलाज 

  

जल्दी पता लगे तो संभव है किडनी की कार्यक्षमता को वापस लाना  


 

80 फीसदी लोग किडनी की बीमारी ( खराबी) के डायलिसिस के स्टेज में संजय गांधी पीजीआई सहित अन्य विशेषज्ञ के पास पहुंचते है। ऐसे में इलाज जटिल हो जाता है किडनी को दोबारा काम लायक बनान संभव नहीं होता है। किडनी खराबी की बीमारी एक्यूट किडनी इंजरी( एकेआई) नेफ्रोटिक सिंड्रोम, वैस्कुलाइटिस, ल्यूपस नेफ्राइटिस सहित कई किडनी की बीमारी का इलाज शुरुआती दौर में हो जाए तो किडनी की कार्य क्षमता को वापस लाना संभव होता है। किडनी खराबी के साथ तीन महीने बीत जाने पर दोबारा किडनी कार्य क्षमता स्थापित करना जटिल होता है।

 विश्व किडनी जागरूकता दिवस( 10 मार्च)  के मौके पर पर संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नरायन प्रसाद ने सलाह दिया कि हाई रिस्क ग्रुप के लोगों को किडनी की बीमारी का आशंका का पता लगाने के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट कराते रहना चाहिए। इससे बीमारी का पता शुरुआती दौर में लग जाता है। किडनी की कार्यक्षमता का पता जीएफआर( ग्लूमलर फिल्ट्रेशन रेट) से लगाते है यदि यह 10 से कम है तो ऐसी स्थिति में डायलिसिस करना जरूरी हो जाता है।

 

100 रुपए में कराएं स्क्रीनिंग में यह जांच

प्रो. धर्मेंद्र भदौरिया ने बताया कि पेशाब में प्रोटीन, आरबीसी के जांच के साथ खून में सीरम क्रिएटिनिन की जांच करना चाहिए। डायबिटीज, हाइपर टेंशन, किडनी डिजीज की फेमली हिस्ट्री, किडनी स्टोन, मोटापा और 60 से अधिक उम्र के लोग हाई रिस्क ग्रुप में आते है। इन्हें हर 6 महीने में यह जांच कराना चाहिए इससे बीमारी का पता का पता शुरुआती दौर में लग जाता है। यह सब जांच सौ रुपए में हो जाती है।  

 

साल के अंत की बढ़ जाएगी इलाज की क्षमता

प्रो. नरायन प्रसाद ने बताया कि प्रदेश में 50 हजार से अधिक लोग किडनी की परेशानी से ग्रस्त है। इनके इलाज के लिए संसाधन कम है। जिला स्तर पर डायलिसिस की सुविधा शुरू की गयी है फिर भी संसाधन की कमी है। संस्थान में साल के अंत तक डायलिसिस की क्षमता रोज 220 तक करने की तैयारी में है। किडनी ट्रांसप्लांट साल में 140 से 150 हो रहा है जिसे बढ़ा कर 300 तक करने के लिए रीनल ट्रांसप्लांट सेंटर विकसित किया जा रहा है।

 

नान कम्युनिकेबल डिजीज में कमी लेकिन किडनी में नहीं

 

अन्य नान कम्युनिकेबल बीमारी से मौत में कमी आयी है  लेकिन किडनी की बीमारी( क्रोनिक किडनी डिजीज) से मौत 12 स्थान से बढ़ कर पांचवें स्थान पर 2040 तक पहुंचने की आशंका है। इसके पीछे जागरूकता में कमी और संसाधन का अभाव है। कार्डियो वैस्कुलर डिजीज से 30 फीसदी, कैंसर में 15 फीसदी, लंग डिजीज में 41 फीसदी मौत में कमी आयी है लेकिन किडनी डिजीज के कारण मौत की दर बढ़ रही है।

 


सोमवार, 7 मार्च 2022

संक्रमण के कारण अचानक जा सकती है सुनने की शक्ति

 संक्रमण के कारण अचानक जा सकती है सुनने की शक्ति



 72 घंटे के अंदर इलाज मिलने से संभव है इलाज

अचानक सुनाई न देने पर डॉक्टर से संपर्क करें

-विश्व श्रवण दिवस आज


यदि किसी को अचानक सुनाई देना कम हो जाय तो तुरंत नाक, कान व गला (ईएनटी) के डॉक्टर की सलाह लें। 72 घण्टे के भीतर उपचार मिलने से मरीज की सुनने की क्षमता पहले जैसी वापस आ सकती है। इलाज में ज्यादा देर होने पर सुनने की क्षमता प्रभावित हो भी सकती है। यह जानकारी विश्व श्रवण दिवस की पूर्व संध्या पर पीजीआई के ईएनटी सर्जन प्रो अमित केशरी ने दी। वह बताते हैं कि पीजीआई की ओपीडी में हर माह करीब चार मरीज अचानक सुनाई न देने की समस्या वाले आते हैं।

सुनने वाला हिस्सा प्रभावित होता है
प्रो. अमित केशरी बताते हैं कि वायरल संक्रमण व बुखार और चक्कर आने की वजह से दिमाग मे सुनने वाला हिस्सा प्रभावित होता है। जिसकी वजह से अचानक सुनाई देना बन्द हो जाता है। ऐसे लोगों को 72 घंटे में उपचार मिल जाना चाहिए। उपचार के तौर पर इनके कान में दवाएं, इंजेक्शन और स्टेरॉयड देते हैं। मरीजों को भर्ती करने की जरूरत नही होती है। ओपीडी में उपचार देकर ठीक किया जा सकता लेकिन ज्यादा समय होने पर मरीज को सुनने वाली मशीन का प्रयोग करना पड़ सकता है।
प्रो. अमित केशरी बताते हैं कि अमूमन उम्र बढ़ने के साथ लोगों में सुनने की क्षमता कम होती जाती है। कुछ लोगों में यह अनुवांशिक समस्या होती है। इसके अलावा जिन्हें डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, गुर्दे की गभीर बीमारी व कैंसर मरीज सतर्क रहें। 

जागरूकता कार्यक्रम आज
विश्व श्रवण दिवस पीजीआई में न्यूरो ओटो  सर्जरी विभाग द्वारा जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। सुनने की समस्या और उसके इलाज पर जानकारी दी जाएगी

समय से पहले जन्म और कम है वजन तो सुनने की क्षमता प्रभावित होने की आशंका

 






पीजीआई में विश्व श्रवण दिवस पर सुनो-सुनाओ  

पीजीआई ने तय किया अनावश्यक नहीं बचाएंगे हार्न

समय से पहले जन्म और कम है वजन तो सुनने की क्षमता प्रभावित होने की आशंका

 

जागरण संवाददाता। लखनऊ

 

समय से पहले और कम वजन के साथ जन्म लेने शिशुओं में सुनने की परेशानी की आशंका सामान्य शिशुओं के मुकाबले अधिक होती है। इन शिशुओं में तुरंत सुनने की क्षमता का आकलन करने की जरूरत है। आगे के इलाज के लिए विशेषज्ञ से सलाह लेने की जरूरत है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में विश्व श्रवण दिवस के मौके पर सुनो-सुनाओ जागरूकता के कार्यक्रम में न्यूरो ओंटोलॉजी विभाग के प्रो.अमित केशरी ने बताया कि हम लोग सुनने की परेशानी को दूर करने के लिए कॉक्लियर इंप्लांट कर रहे है। इससे काफी बच्चों का लाभ मिला है। विशेषज्ञों ने बताया कि सुनने की क्षमता कम है या नहीं है तो शिशु के  दिमाग का विकास  प्रभावित होता है। सुनने की कमी का इलाज जितना जल्दी संभव हो कराने की जरूरत है। सुनने की क्षमता का पता आडियो टेस्ट से होता है जिसे टेक्नोलॉजिस्ट केके चौधरी, आरके श्रीवास्तव अंजाम देते हैं।  

 नियोनेटल विभाग की प्रो. कृति ने बताया कि  संस्थान के नियोनेटल विभाग संस्थान में  जन्म लेने सभी शिशुओं के सुनने की क्षमता का परीक्षण करता है जिसमें पांच मिनट का समय लगता है। फिजिशियन डा. प्रेरणा कपूर ने कहा कि  बताया कि हम लोगों ने तय किया संस्थान परिसर और आप-पास हम लोग हार्न का इस्तेमाल नहीं करेंगे। आवाज जब शोर बन जाता है तो वह सुनने की क्षमता को प्रभावित करता है। रोज पर हार्न , तेज आवाज में संगीत सुनने की क्षमता को धीरे-धीरे कम करता है। हार्न न बजाने की शुरुआत हम सभी को करनी है। नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. नरायन प्रसाद ने कहा कि किडनी से प्रभावित बच्चों में सुनने की क्षमता में कमी  देखने के मिलती है। निदेशक प्रो. आरके धीमन और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रो. गौरव अग्रवाल ने विभाग के कार्य पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि श्रवण शक्ति में कमी के परेशानी दूर करने के लिए हर स्तर पर कोशिश जारी रहेगी। प्रो. धीमन ने कहा कि बड़ों में भी संक्रमण के कारण सुनने की परेशानी हो सकती है।  

 

अब हम भी सुन सकते है

 अब मेरी बेटी भी दूसरे बच्चों की तरह आगे बढेगी। काकोरी निवासी पूजा बताती है कि उनकी बेटी में सुनने की परेशानी पांच महीने की थी तब पता लगा जिसके बाद हम लोग काफी परेशान हुए। मेडिकल विवि में दिखाया तो वहां से यहां भेजा गया दो नवंबर 2021 में  बेटी में कॉक्लियर इंप्लांट लगा है। अब वह सुनने लगी है। कॉक्लियर इंप्लांट करा चुके बच्चों ने कविता सुना कर साबित किया कि वह अब दूसरे बच्चों की तरह वह सब कर सकते है जो सामान्य बच्चे करते है। कार्यक्रम में कॉक्लियर इंप्लांट करा चुके 15 से अधिक बच्चों ने भाग लिया।