सोमवार, 19 दिसंबर 2022

विशेष जांच की सुविधा नहीं तो भी संभव होगा तंत्रिका तंत्र के टीबी का इलाज- प्रो. रूचिका टंडन

 विशेष जांच की सुविधा नहीं तो भी संभव होगा तंत्रिका तंत्र के टीबी का इलाज



कम होगी मरीजों की दौड़ और समय पर शुरू हो सकेगा इलाज

शोध के मिली राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता

तंत्रिका तंत्र के टीबी के लक्षण और सीएसएफ की जांच के आधार किया जा सकता है इलाज

200 मरीजों में शोध किया शोध

 

तंत्रिका तंत्र में टीबी की पुष्टि के लिए गोल्ड स्टैंडर्ड कहे जाने वाले विशेष जांच जीन एक्सपर्ट, ब्लड कल्चर की सुविधा न होने पर लक्षण और सेरेब्रल स्पाइनल फ्लूइड( सीएसएफ) यानि तंत्रिका तंत्र के द्रव की जांच  के आधार पर इलाज किया जा सकता है। इससे इससे जों की दौड़ कम होती। जांच पर पैसा कम खर्च होगा। समय पर इलाज शुरू हो सकेगा। इन लक्षणों को बताने में

  कामयाबी संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान की न्यूरोलॉजिस्ट

 प्रो. रुचिका टंडन, ड. प्रतीश आनंद और प्रो. संजीव क्षा ने

 हासिल की है। इस शोध को न्यूरोजांली इंडिया में स्थान भी

 मिला है। विशेषज्ञों ने लक्षणों का पता करने के लिए 200

 मरीजों पर शोध किया। लक्षण के आधार पर एमआरआई, जीन

 एक्सपर्ट, ब्लड कल्चर और सीएसएफ द्रव की जांच किया। देखा

 इनमें 37.5 फीसदी में जीन एक्सपर्ट से टीबी की पुष्टि हुई।

 एमआरआई में बदलाव दिखा। सीएसएफ में रासायनिक तत्वों में

 बदलाव मिला। इसके आधार पर कह सकते है। लक्षण और

 सीएसएफ के जांच के आधार पर टीबी का इलाज किया जा

 सकता है। हमने तंत्रिका तंत्र टीबी के सभी मामलों में जिनमें

 जीन एक्सर्ट से पुष्टि नहीं हुई उनमें लक्षण के आधार पर इलाज

 किया जिसमें काफी सफलता मिली। विशेषज्ञों का कहना है कि

 सीएसएफ की जांच काफी सस्ती है किसी भी पैथोलॉजी जांच

 केंद्र पर हो सकती है। टीबी होने पर  सीएसएफ में  लिम्फोसाइट

 की मात्रा बढ़ जाती है। ग्लूकोज का स्तर कम हो जाता है। इस

 शोध को इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी में स्वीकार किया

 गया। शोध को संस्थान में हाल में ही आयोजित रिसर्च शो केस

 में भी रखा गया।


यह लक्षण तो शुरू करें टीबी का इलाज

-शरीर के भार में कमी

- बेहोश या होश में कमी

- उल्टी . दौरा पड़ना

- गर्दन में अकड़न खास तौर आगे की तरफ न झुकना

-सिर में पानी भरना( हाइड्रोसेफलस)

- शरीर के दूसरे अंगों में टीबी

- ट्यूबरकुलर मेनेंजाइटिस की स्टेज थ्री

 

क्या तंत्रिका तंत्र की टीबी

रीढ़ की हड्डी के स्पाइन कार्ड( नसें) और ब्रेन में टीबी हो सकती है। इसे सेंट्रल नर्वस सिस्टम टीबी कहते हैं। कुल टीबी के मामलों में से एक फीसदी मामले यह टीबी के होती हैं।  रीढ़ की हड्डी( स्पाइनल कार्ड) में टीबी होने पर लकवा की स्थिति आ जाती है। ब्रेन की टीबी होने पर शरीर के अंग काम नहीं करते हैं।समय पर इलाज न होने पर मृत्यु का कारण साबित हो सकती है। 

 

वर्जन

टीबी की पुष्टि के लिए गोल्ड स्टैंडर्ड तय किए गए लेकिन तमाम जगहों पर इन जांच की सुविधा नहीं है । ऐसे में केवल लक्षण और सस्ती और सुलभ सीएसएफ की जांच से आधार टीबी का इलाज शुरू करना चाहिए।  मरीजों को बीमारी की जटिलता और जीवन को बचाया जा सकता है....प्रो. रुचिका टंडन न्यूरोलॉजिस्ट एसजीपीजीआइएमएस लखनऊ

इंफ्रारेड टॉर्च बता देगा कितना हुआ है दिमाग में डैमेज



इंफ्रारेड टॉर्च बता देगा कितना हुआ है दिमाग में डैमेज

 

ब्रेन में चोट की गंभीरता के अनुसार इलाज की दिशा  होगी तय

 

  

रोड एक्सीडेंट में या किसी दूसरे दुर्घटना में घायल होने वाले किसी भी व्यक्ति के दिमाग पर कितना चोट लगा है यह वहां पर भी जनना संभव होगा  जहां पर एमआरआई या सीटी स्कैन की सुविधा नहीं है।  चिकित्सक इंफ्रारेड टॉर्च के जरिए यह पता लगा सकेंगे कि दिमाग को कितना नुकसान हुआ है।  इसके आधार पर वह आगे के लिए कहां पर भेजना है। कितना वह खुद इलाज कर सकते हैं।  इंफ्रारेड टॉर्च के जरिए आंख पर रोशनी डाली जाती है जिससे सेरेब्रॉस्पाइनल फ्लुएड को देखकर ब्रेन में इंजरी का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसके अलावा बायो मार्कर परीक्षण भी विकसित किया गया है जो किसी भी छोटे सेंटर पर या किया जा सकता है। इन बायोमार्कर के आधार पर  इंजरी का अंदाजा लगाया सकता है। यह परीक्षण प्रिगनेंसी टेस्ट की तरह ही है। संजय गांधी पीजीआई में आयोजित न्यू डिवलेंपमेंट इन न्यूरो सर्जरी विषय़ आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा में बताया कि  बार इंजरी के कारण लक्षण बाद में आते हैं और बायो मार्कर में बदलाव जल्दी आ जाते हैं।   बिना देर किए मरीज को इलाज के लिए भेजा जा सकेगा। पूर्व निदेशक एसजीपीजीआई प्रो.एके महापात्रा, एम्स दिल्ली के डा. दीपक अग्रवाल, निमहांस बैंगलोर के डा. धवल शुक्ला , अमेरिका के डा. मिलिंद देवगांवकर, संस्थान के प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव, डा. आशुतोष कुमार सहित अन्य लोगों ने नई तकनीक के बारे में जानकारी दी।   

 

ट्रामा मैनेजमेंट गाइडलाइन तैयार एमसीआई से होगी लागू करने की सिफारिश

 

 एम्स दिल्ली के पूर्व न्यूरो सर्जन प्रोफेसर सुमित सिन्हा ने कहा कि न्यूरोलॉजिकल सोसायटी आफ इंडिया और न्यूरो ट्रामा सोसाइटी ऑफ इंडिया ने मिलकर ट्रामा के मरीजों के इलाज के लिए गाइड लाइन तैयार किया है।  दूसरे देशों में  गाइड लाइन है लेकिन भारत में कोई गाइड लाइन अभी तक नहीं है।  हम लोगों ने मिलकर 2016 में प्रयास शुरू किया और अब यह गाइड लाइन बनकर तैयार हो गया है ।  इस गाइड लाइन के जरिए किस अस्पताल में कितना इलाज होना चाहिए और किस इलाज के लिए मरीज को दूसरे सेंटर भेजना चाहिए सहित तमाम मानक तय किए गए हैं। इसे लागू करने के लिए  मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया और ट्रामा मैनेजमेंट सिफारिश करेंगे।

 

वाकथान निकाल कर किया जागरूक

 वाकथान जरिए रोड एक्सीडेंट से बचाव का संदेश न्यूरो सर्जन सहित अन्य लोगों ने दिया। विभाग के प्रमुख एवं ट्रामा सेंटर  के प्रभारी ने बताया कि  सीट बेल्ट जरूर लगाएं हेलमेट पहने ट्रैफिक रूल का फॉलो करें ओवर स्पीड गाड़ी मत चलाएं और शराब पीकर कभी गाड़ी मत चलाएं। 




शुक्रवार, 16 दिसंबर 2022

कंबीनेशन थेरेपी से लिवर के मरीजों को राहत और लंबी जिंदगी- स्थापित किया रिस्पांस गाइडेड स्लो एलब्यूमिन , फ्यूरोसीमाइड एंड टेरलीप्रेसिन इंफ्यूजन थिरेपी

 





कंबीनेशन थेरेपी से लिवर  के मरीजों को राहत और लंबी जिंदगी

 स्थापित किया रिस्पांस गाइडेड स्लो एलब्यूमिन फ्यूरोसीमाइड एंड टेरलीप्रेसिन इंफ्यूजन थिरेपी 

 

-लिवर की खाराबी में शरीर में होता है साइटोकाइन स्टार्म

 

-दिल को कम मिलता है खून और किडनी पर बढ़ता है प्रेशर

 


 

 

संजय गांधी स्नातकोत्तर आर्युविज्ञान संस्थान के गैस्ट्रोएंट्रोलाजिस्ट प्रो. गौरव पाण्डेय ने कार्डियोलाजी, क्लीनिकल इम्यूनोलाजी के विशेषज्ञों के साथ मिल कर कंबीनेशन थिरेपी स्थापित किया है। इस थेरेपी से   लिवर सिरोसिसएक्यूट लिवर फेल्योरक्रानिक लिवर डिजीज के मरीजों को राहत मिलेगी। जिंदगी लंबी होगी। इसे थेरेपी को  रिस्पांस गाइडेड स्लो एलब्यूमिन फ्यूरोसीमाइड एंड टेरलीप्रेसिन इंफ्यूजन  नाम दिया है।   इस थिरेपी से एक्यूट लिवर फेल्योर के  135  मरीजों में इलाज किया गया जिसमें काफी अच्छे परिणाम मिले है।  लिवर की इन परेशानियों में क्या होता है शोध किया । रक्त में साइटोकाइनइंडोटाक्सिन का स्तर का अध्ययन किया। देखा कि यह बढा जाता है।  लिवर को खून सप्लाई करने वाली पोर्टल वेन चौडी हो जाती है।  लिवर के बंधे के रूप में काम करता है। दिल को पूरा खून नहीं मिल पाता है।  आंत में सूजन आ जाता है। ईंडो टाक्सिन साइटोकाइन मुख्य रक्त प्रवाह में शामिल हो जाता है। इससे शरीर की रक्त वाहिकाएं चौडी हो जाती है।  रक्त दाब कम हो जाता है।   किडनीहार्ट पर असर पड़ता है। पेट में पानी भर जाता है। फेफडे में पानी जमा हो जाता है। पैर में सूजन होने लगता है। शरीर को संक्रमण से बचाने वाले न्यूट्रोफिल की कार्य शक्ति कम हो जाती है। इससे बार बार बुखारशरीर के दूसरे अंगों में संक्रमंण की परेशानी होती है। बार बार भर्ती होना पड़ता है।  रिस्पांस गाइडेड( जितनी जरूरत उतनी दवा) थिरेपी विकसित किया। इसमें  टेरलीप्रेसीन एलब्यूमिनरक्त संचार बढाने के लिए नार एड्रिलीन और डाई यूरेटिक ( फेरोसामाइड) चार दवाओं का कंबीनेशन दिया  । इससे सूजन कम होता है। दिल को रक्त पर्याप्त मात्रा में मिलता है। हार्ट का कार्य शक्ति ठीक होती है।

 

 

 

 वर्जन

 

 लिवर सोरोसिस के 50 फीसदी से अधिक लोगों मे दूसरे आंगों पर कुप्रभाव पड़ता है जिसके कारण कई परेशानी होती है। स्प्लेनचेनिक और प्रणालीगत हेमोडायनामिक्स में सुधारआंतों की पारगम्यता और एंडोटॉक्सिमिया  न्यूट्रोफिल कार्यों में सुधारऔर संचलन में प्रो-इंफ्लेमेटरी साइटोकिन्स को कम होता है जिससे लिवर सिरोसिसएक्ट लिवर फेल्योर के मरीजों को राहत मिलती है---प्रो. गौरव पाण्डेय पेट रोग विशेषज्ञ एसजीपीजीआइएमएस

 

 

 

 

शोध को मिली विश्व स्तर पर स्वीकार्यता

 

 

 

रिसपांस गाइडेड स्लो इंफ्युजन आफ एल्ब्यूमिन वासोकांसट्रिकटर एंड फ्यूरोसमाइड इंप्रूव एसाइिटसमोबिलाइजेशन एंड सरवाइवल इन एक्यूट आन क्रोनिक लिवर फेल्योर नाम से शोध किया जिसे जर्नल आफ इंफ्लामेशन ने स्वीकार किया है। शोध मे क्लीनिकल इण्यूनोलाजी विभाग के शरीर प्रतिरक्षा विशेषज्ञ   प्रो. विकास अग्रवाल और प्रो. दुर्गा प्रसन्ना मिश्रा कार्डियोलॉजी विभाग के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमारपेट रोग विशेषज्ञ प्रो. प्रवीर राय  ने इस शोध रूप से भागीदार रहे।  

 

 

 

 

 

बुधवार, 14 दिसंबर 2022

लक्षण और हिस्ट्री पर ध्यान दें तो 15 से 20 फीसदी में पड़ेगी जांच की जरूरत

 पीजीआई का 39 वां स्थापना दिवस समारोह

  

लक्षण और हिस्ट्री पर ध्यान दें तो  15 से 20 फीसदी में पड़ेगी जांच की जरूरत  

 70 फीसदी में बन जाती है डायग्नोसिस

क्षेत्रीय परेशानी को लेकर हो शोध और हो पॉलिसी   चेंजर  


 

संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के 39 वें स्थापना दिवस पर किंग जॉर्ज मेडिकल विवि के पूर्व मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो.एमके मित्रा से स्थापना दिवस व्याख्यान में कहा कि आर्ट ऑफ क्लीनिक मेडिसिन को सीखने और पालन करने की जरूरत है। लक्षण किसी भी मरीज में प्लेट में परोसे हुए नाश्ते की तरह । लक्षण और हिस्ट्री का विश्लेषण करने से ही 70 फीसदी लोगों में बीमारी की डायग्नोसिस बन जाएगी। 15 से 20 फीसदी में फिजिकल एग्जामिनेशन की जरूरत है। 15 से 20 फीसदी में ही केवल रेडियोलाजिकल एवं पैथोलाजिकल परीक्षण की जरूरत पडेगी। सेल्फ आडिट पर ध्यान चिकित्सक ध्यान दें। आप दुनिया या किसी को नहीं बदल सकते है लेकिन अपने को बदल सकते हैं। डॉक्टर क्या मरीज के साथ ऐसा व्यवहार कर रहे है जो आप या अपने मरीज के भर्ती होने पर व्यवहार की अपेक्षा करते हैं।  प्रो. मित्रा ने कहा कि शोध को क्षेत्रीय समस्याओं पर केंद्रित करे साथ में एसा शोध हो सरकार की नीति बदल सकें। नेफ्रोलाजिस्ट  प्रो. नरायन प्रसाद के शोध नेफ्रोटिक सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चों में स्टेरायड प्रतिरोध पर किए। विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया।  प्रो. यूसी घोषाल के छोटी आंत से पानी निकालने के लिए देसी कैथेटर माइक्रोबायोटा सैंपलर विकसित किया जिसे पेटेंट मिला। आयोडीन की कमी को लेकर एम्स दिल्ली में शोध हुए जिसके बाद आयोडीन युक्त नमक बनाने की नीति बन गयी। प्रो. मित्रा ने पढाई रोचक बनाने की सलाह दिया। चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह ने कहा कि उच्च गुणवत्ता की नर्सेज नहीं है। ट्रेंड नर्सेज की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन एग्जाम में वह पास नहीं कर पाती है। प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा आलोक कुमार ने कहा कि डॉक्टर और नर्सेज का अनुपात ठीक करने की जरूरत है। विशेषज्ञ पैरा मेडिकल स्टाफ भी विकसित करने की जरूरत पर बल दिया। निदेशक प्रो.आरके धीमन ने संस्थान की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत किया। डीन प्रो.शुभा फड़के ने अतिथियों के प्रति आभार प्रकट किया। इस मौके पर रक्तदान और वृक्षारोपण भी किया गया।

 

सरकार की योजनाएं लोगों तक पहुंचे- राज्यपाल

राज्यपाल एवं संस्थान की विजिटर आनंदीबेन पटेल ने कहा कि सरकार की योजनाएं सभी तक पहुंचे इस पर काम करने की जरूरत है। शोध के परिणाम को लोगों तक पहुंचाएं इससे दूसरे लोगों को लाभ मिलता है। कहा कि संस्थान किसी एक या दो लोगों से नहीं चलता है । सम्मान केवल डाक्टर , नर्स या टेक्नीशयन का नहीं सफाई कर्मचारी, लैब में काम करने वाले छोटे कर्मचारियों का भी सम्मान होना चाहिए। आयोग द्वारा आयोजित  नर्सेज एक्जाम में एक लाख में से 27 हजार पास कर पायी यह चिंता का विषय़ है। यह भी शोध का विषय है। अच्छे शिक्षक, लैब , संसाधन से परिणाम बेहतर आएंगे।जी -20 का सम्मेलन 13 फरवरी को लखनऊ में होगा। इसमें कई देशों से डॉक्टर भी आंएंगे।  इनसे नई चीजें सीखी जा सकती है। भारत का अध्यक्ष होना गर्व का विषय़ है।       

 

एक साल लेखा जोखा

ओपीडी में सलाह - 4.5 लाख

भर्ती -38 हजार

सर्जरी- 11 हजार

 

 

 

इनको मिला बेस्ट का सम्मान

1-बेस्ट सीनियर रेजिडेंट (डीएम) डॉ. निधि गुप्ता नेफ्रोलॉजी

2 बेस्ट सीनियर रेजिडेंट (एमसीएचडॉ. सराह इदरीस एंडोक्राइन सर्जरी

3 बेस्ट जूनियर रेजिडेंट (एमडी) डॉ. योगिता

खंडेलवाल न्यूक्लियर मेडिसिन

4 बेस्ट नर्सिंग स्टाफ जीआर-1 नीलमणि एस्थर सीसीएम

5 सर्वश्रेष्ठ नर्सिंग स्टाफ जीआर -2 सीनियर सुनीता पाल एंडोक्रिनोलॉजी

6 बेस्ट टेक्नीशियन जीआर-1 राशिद अख्तर पैथोलॉजी

7 सर्वश्रेष्ठ तकनीशियन जीआर -2  चंद्रेश

कश्यप एनेस्थिसियोलॉजी

 

छात्रों की श्रेणी में  कोमल और डा. सना अव्वल

क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग शोध सहायक  कोमल सिंह ने क्लीनिकल रिसर्च में प्रथम स्थान हासिल किया है।  कोमल ने प्रो. अमिता अग्रवाल के निर्देशन में किसमें टीबी के संक्रमण की आशंका है जानने के लिए मार्कर खोजने में कामयाबी हासिल की है। दूसरा स्थान एंडोक्राइन सर्जरी डा. स्पंदना को मिला है । प्रो. शब्बा रत्नम के निर्देशन में शोध किया। तीसरा स्थान नेफ्रोलॉजी विभाग की डा. निधि गुप्ता को मिला है । इन्होंने प्रो. नरायन प्रसाद ने निर्देशन में शोध किया है। सांत्वना पुरस्कार नियोनेटल के डा. नेहा, न्यूरोलॉजी के डा. अंकित गुप्ता और न्यूक्लियर मेडिसिन के डा. लोकेश्वरन

 

  बेसिक साइंस की श्रेणी में

पहला पुरस्कार इंडोक्राइनोलॉजी के डा. सना राजा , दूसरा स्थान  न्यूरोलॉजी के डा. अभिलाषा त्रिपाठी , तीसरा स्थान गैस्ट्रोएंट्रॉलजी की शिखा साहू । सांत्वना सम्मान में हिमैटोलॉजी की मनाली जैन , ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन की डा. वसुंधरा सिंह, मॉलिक्यूलर मेडिसिन की डा. अंजलि सिंह

 

संकाय सदस्यों प्रो. उज्जवल और प्रो.राजन रहे अव्वल

 

प्रथम स्थान पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंट्रॉलजी के प्रो. उज्जवल पोद्दार , दूसरे स्थान पल्मोनरी मेडिसिन के डा. जिया हासिम, तीसरा स्थान कार्डियोलॉजी के डा. अंकित साहू , चौथा स्थान नियोनेटल के डा. अभिजीत राय। सर्जिकल श्रेणी में प्रथम स्थान गैस्ट्रो सर्जरी के प्रो. राजन सक्सेना. दूसरा स्थान एंडोसर्जरी के डा. शब्बा रत्नम , तीसरा स्थान  गैस्ट्रो सर्जरी के डा. राहुल , चौथा स्थान यूरोलॉजी डा. प्रियांक यादव  

 

बेसिक साइंस श्रेणी में संकाय सदस्य

प्रथम स्थान मॉलिक्यूलर मेडिसिन,  डा. स्वाति तिवारी,दूसरा स्थान  हिमैटोलॉजी के डा. खलीकुर रहमान, तीसरा स्थान हिमैटोलॉजी के डा. सीपी चतुर्वेदी, चौथा स्थान यूरोलॉजी के डा, नवीन गौतम

सोमवार, 12 दिसंबर 2022

आनुवांशिक बीमारियों की जानकारी गर्भधारण से पहले जरूरी


आनुवांशिक बीमारियों की जानकारी गर्भधारण से पहले जरूरी : प्रो.शुभा फड़के
सियामकॉन 2022

 बाल रोग विशेषज्ञों को उनके तीन पीढ़ियों की पूरी जानकारी लेनी चाहिए

लखनऊ । यदि किसी के परिवार की तीन पीढ़ियों में बच्चा मंदबुद्धि रहा हो या फिर किसी बच्चे को मांसपेशियों की बीमारी रही हो। इसके अलावा परिवार में खून की कमी की बीमारी और हीमोफीलिया से कोई ग्रसित रहा हाे। ऐसे परिवार की महिलाओं को गर्भधारण से पहले आनुवांशिक रोग विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए। यह कहना है एसजीपीजीआई स्थित मेडिकल जेनेटिक्स विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो.शुभा फड़के का। वह रविवार को एसजीपीजीआई स्थित ऑडिटोरियम में आयोजित सियामकॉन - 2022 के 7वें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं। रविवार को आयोजित इस कार्यशाला में लखनऊ और कानपुर के बाल रोग विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया और आनुवांशिक बीमारियों में प्री-प्रेगनेंसी काउंसलिंग और जांचों की बारिकियां जानी। प्रो.शुभा फड़के ने बताया कि जिन परिवारों में बच्चों की अचानक मौत हुई हो या फिर किसी भी गंभीर बीमारी से पीड़ित रहे हों । ऐसे परिवारों के बच्चों का इलाज करते समय बाल रोग विशेषज्ञों को उनके तीन पीढ़ियों की पूरी जानकारी लेनी चाहिए। जिससे उस परिवार में आने वाले बच्चे को गंभीर बीमारियों से बचाया जा सके।
डॉ.शुभा फड़के ने बताया कि इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य आम लोगों के साथ ही बाल रोग विशेषज्ञों और महिला रोग विशेषज्ञों में आनुवांशिक बीमारियों को लेकर जागरुकता लाना था। क्योंकि आम व्यक्ति को आनुवांशिक बीमारियों की जानकारी नहीं होती है। ऐसे में उन चिकित्सकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है जो नवजात बच्चों और गर्भवती महिलाओं का इलाज करते हैं। बाल रोग विशेषज्ञ नवजात को देखकर यह तय कर सकते हैं कि आनुवांशिक बीमारियों की जांच करनी है या फिर जेनेटिक विशेषज्ञ से सलाह लेनी है।

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12 साल बाद कम हो रही है रोशनी तो कराएं जीन की जांच

 सोसाइटी फार इंडियन एकेडमी ऑफ मेडिकल जेनेटिक्स



 12 साल बाद कम हो रही है रोशनी तो कराएं जीन की जांच



जीन में खराबी के कारण रेटिना हो जाती है प्रभावित


कुछ मामलों में इलाज है संभव


 




12 से 15 साल  की उम्र पार करने के बाद यदि आंख की रोशनी कम हो रही है तो आगे चल कर रोशनी पूरी तरह जा सकती है। इस परेशानी का कारण अनुवांशिक होता है जिसमें जीन में बदलाव के कारण यह परेशानी होती है। इस परेशानी को रेटिनाइटिस पिंगमेनटोसा कहते है । यह कई प्रकार होता है जीन स्टडी कर टाइप का पता लगाकर इलाज की दिशा तय करने से कुछ मामलों में परेशानी की गति को कम किया जा सकता है। कुछ मामलों में जीन थिरेपी से पूरा इलाज भी संभव है। यह जानकारी संजय गांधी स्नातकोत्र आर्युविज्ञान संस्थान के मेडिकल जेनटिक्स विभाग द्वारा आय़ोजित सोसाइटी फार इंडियन एकेडमी आफ मेडिकल जेनटिक्सम में सेंट मैरी हास्पिटल यूके की डा. चारुलता देश पांडे ने दी । बताया कि नवजात या बच्चों में बीमारी का पता लगाना एक बड़ी चुनौती है। बिना बीमारी पता किए इलाज का कोई फायदा नहीं होता है। ऐसे में जीन सिक्वेंसिंग काफी कारगर साबित हो रहा है। इस तरह के अधिवेशन ने नई बीमारियों के बारे में जानकारी मिलती है। डा. देशपांडे के मुताबिक  बार्डेट-बिडल सिंड्रोम में से एक दृष्टि हानि एक प्रमुख परेशानी है।   दृष्टि की हानि तब होती है जब आंख के पीछे प्रकाश-संवेदी ऊतक (रेटिना) धीरे-धीरे बिगड़ने लगता है। उम्र बढ़ने के साथ  रात देखने की  समस्याएं होने लगती है। धीर-धीरे रोशनी पूरी तरह खत्म हो जाती है। यह परेशानी 12 तरह की होती है। जीन परीक्षण से किस तरह की बीमारी का है पता लगाकर कुछ मामलों में इलाज संभव है।


एक गोत्र में  विवाह से बचे


अमेरिका की अनुवांशिक रोग विशेषज्ञा डा. माधुरी हेगड़े ने कहा कि एक गोत्र में विवाह करने से बचे क्योंकि बीमारी वाले जीन बच्चों में ट्रांसफर होने की आशंका रहती है। देखा है कि एक भारतीय समुदाय में नजदीकी शादी होते है जिसमें नौ अनुवांशिक बीमारी वाले जीन होते है। शादी करनी है तो पहले इन जीन का परीक्षण कराना चाहिए देखने चाहिए कि इन बीमारी के करियर तो नहीं है। यदि करियर है शिशु में जीन की जांच कर कर देखना चाहिए बीमारी तो नहीं है।  विभाग की प्रमुख प्रो. शुभा फड़के  ने बताया कि विभाग के पास कई बीमारियों के जीन का परीक्षण  स्थापित किया है।

अचानक मौत के पीछे तीस फीसदी अनुवांशिक कारण - पहले परेशानी की आशंका का पता लगाकर जीवन बचाना संभव

 अचानक मौत के पीछे तीस फीसदी अनुवांशिक कारण

पहले परेशानी की आशंका का पता लगाकर जीवन बचाना संभव

 


  

अचानक मौत के तीस फीसदी मामलों में कारण अनुवांशिक होता है। इन कारणों का पता काफी पहले जीन सिक्वेंसिंग के जरिए लगाया जा सकता है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में आयोजित सोसाइटी फार इंडियन एकेडमी ऑफ मेडिकल जेनेटिक्स( सैमकांन2022) में भाग लेने आए जिनोमिक मेडिसिन फाउंडेशन के प्रमुख प्रो. धावेंद्र कुमार ने बताया कि हमने अचानक मृत्यु के शिकार लोगों का डीएनए टेस्ट कर कारण पता लगाने पर शोध किया तो देखा कि 30 फीसदी लोगों में कारण अनुवांशिक होते है। आशंका का पता लग जाए तो इय लोग पहले से एहतियात बरत कर जीवन बचा सकते हैं। देखा गया कि अचानक मृत्यु के पीछे कारण दिल की कई बीमारियां होती है जिसमें एरेदमिया , कार्डियोमायोपैथी, दिल में करंट की कमी प्रमुख कारण है। कहा कि इन मामलों में पोस्टमार्टम के साथ साथ डीएनए ऑटोप्सी भी होनी चाहिए। इससे सटीक  कारण का पता लगता है। देखा गया खेलते समय, जिम करते समय, दौड़ते समय मौत हो जाती है।  

एक हजार में 20 नवजात में दिल की बीमारी की आशंका

प्रोय धावेंद्र कुमार ने कहा कि एक हजार नवजात शिशुओं में से 20 से 30 बच्चों में दिल की बीमारी की आशंका रहती है। जिस परिवार में दिल के बीमारी की हिस्ट्री रही हो उन परिवार के लोगों को जेनेटिक काउंसलिंग करानी चाहिए। इससे पहले बीमारी का पता लगता है। कई मामलों में इलाज भी संभव है।   

 

बच्चों में पहले ही लगेगा दिल की बीमारी का पता

प्रो. धावेंद्र कुमार ने बताया कि बच्चों में कार्डियोपैथी की परेशानी होती है जिसमें दिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है। यह अचानक मौत का बड़ा कारण है। यह परेशानी सात तरह की होती है । जीन सिक्वेंसिंग से इन कारणों का पता लगा कर समय पर इलाज किया जा सकता है। जिन बच्चों में दवा से इलाज संभव नहीं होता है उनमें बाई वेंट्रीकुलर सिंक्रोनाइजेशन डिवाइस लगाया जाता है। इसी तरह एरदेमिया का पता भी पहले लग सकता है।

 

नवजात में हो सकती मांसपेशियों की कमजोरी

नवजात में मांसपेशियों के कमजोरी, सांस लेने में तकलीफ, झटके आने की परेशानी पर काम करने वाले  यूएसए डा. पंकज अग्रवाल ने बताया कि नवजात हमें इन परेशानियों का पता नहीं लग पाता था जिसके कारण इलाज भी संभव नहीं हो पाता था। हम लोगों ने इन बीमारियों का पता लगाने के जीन सिक्वेंसिंग तकनीक कारगर साबित हो रही है। इन बीमारियों का इलाज दवाओं से काफी हद तक संभव है।

 

किसी भी उम्र में असर दिखा सकती है अनुवांशिक बीमारी

संस्थान के जेनेटिक्स विभाग की प्रमुख प्रो. शुभा फड़के ने बताया कि अनुवांशिकी बीमारी का असर किसी भी उम्र में आ सकता है। नेक्स्ट जनरेशन सिक्वेंसिंग में सारी जीन का स्टडी का पहले ही करना चाहिए। 6 हजार जेनेटिक बीमारियां है जिनका पता लगाया जा सकता है। 

मंगलवार, 29 नवंबर 2022

पीजीआई में पहली बार स्थापित हुई गैस्ट्रो जेजुनोस्टॉमी -पेट के कैंसर मरीजों की जिंदगी होगी आसान -छोटी आंत और आमाशय के बीच बनाया खाना जाने का रास्ता

 




पीजीआई में पहली बार स्थापित हुई गैस्ट्रो जेजुनोस्टॉमी

-पेट के कैंसर मरीजों की जिंदगी होगी आसान

 -छोटी आंत और आमाशय के बीच बनाया खाना जाने का रास्ता 

-छोटी आंत और आमाशय के बीच में कैंसर के कारण नहीं खा पा - रहे खाना होती थी उल्टी

 


 

45 वर्षीय पुरुष के छोटी आंत और आमाशय के बीच में कैंसर के कारण खाना जाने का रास्ता पूरी तरह बंद हो गया था। इसके कारण यह लगातार उल्टी, खाना  खाने में परेशानी हो रही थी। पोषण न मिलने  के कारण शरीर के भार में गिरावट तेजी से हो रही है। इस परेशानी में अमूमन कैंसर के सर्जरी कर निकाला जाता है लेकिन  शारीरिक हालत ठीक न होने के कारण इनमें सर्जरी संभव नहीं थी।  ऐसे में इनकी जिंदगी को सरल बनाने के लिए संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट प्रो. प्रवीर राय ने एंडोस्कोपिक  अल्ट्रासाउंड  तकनीक से गैस्ट्रो जेजुनोस्टॉमी तकनीक से आमाशय और खाने के बीच में विशेष स्टंट डालकर खाने का रास्ता बना दिया। नया रास्ता बनने के  अगले दिन से यह खाना खाने लगे और उल्टी की परेशानी दूर हो गई।  यह तकनीक स्थापित करने वाला प्रदेश का पहला संस्थान व विभाग है।  उत्तर भारत के केवल तीन संस्थानों में  ही यह तकनीक स्थापित है।  प्रो राय के मुताबिक अभी तक आमाशय और छोटी आंत के बीच जो स्टंट डाला जाता है वह कैंसर कोशिकाओं के बीच से या पास से डाला जाता है। इसके कारण यह रास्ता दोबारा बंद हो जाता है।  ऐसे में दोबारा परेशानी शुरू हो जाती है।  हमने यह  रास्ते अलग बनाया जहां पर कैंसर सेल नहीं होते है। दोबारा यह परेशानी नहीं होगी। अमूमन बाकी केंद्रों पर सर्जरी की जाती है

 

प्रो. राय चुने गए एशियन एंडोस्कोपी अल्ट्रासाउंड ग्रुप के सदस्य

 

 एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड तकनीक से होने वाले पेट के कई बीमारियों के इलाज के लिए प्रोफेसर राय को एशियन एंडोस्कोपी ग्रुप का सदस्य चुना गया है । यह उत्तर भारत के अकेले पेट रोग विशेषज्ञ हैं जिन्हें इस ग्रुप में स्थान मिला है।  एशियाई देशों से गिने –चुने लोग  शामिल किए गए हैं जिसमें प्रोफेसर राय शामिल हैं। प्रो. 15 साल से पेट की तमाम बीमारियों के इलाज बगैर सर्जरी

एंडोस्कोपिक तकनीक से विकसित करने में लगे हैं।

 

 

पीजीआई की होगी एशियाई देशों में भागीदारी

 

एशियन एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड ग्रुप में शामिल होने के बाद पीजीआई की भागीदारी एशियाई देशों में होगी।  भारत में यह ग्रुप  तकनीक का विस्तार करेगा ।  पीजीआई उत्तर भारत के नए पेट रोग विशेषज्ञ को इस तकनीक में दक्ष करेगा और पहले से कर रहे विशेषज्ञों को नई तकनीक से अपडेट करेगा। पेट के तमाम बीमारियों के इलाज में सर्जरी की जरूरत कम की जा सकेगी। मरीजों को बिना सर्जरी के भी आराम मिलेगा

 

 

कैंसर के कारण तमाम परेशानी होती है जिससे जिंदगी काफी जटिल हो जाती है ऐसे में ऐसे मरीजों को बची हुई जिंदगी को सरल बनाने के लिए यह तकनीक काफी कारगर है खास तौर पर जब आमाशय और छोटी आंत के बीच में कैंसर हो।  इस तकनीक से उतना ही फायदा होता है जितना सर्जरी में फायदा होता है...प्रो. प्रवीर राय गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट एसजीपीजीआई लखनऊ

 

रविवार, 27 नवंबर 2022

पीजीआई में पहली बार जी पोयम तकनीक से दुरुस्त की गई पाचन शक्ति

 पीजीआई में पहली बार जी पोयम तकनीक से दुरुस्त की गई पाचन शक्ति




पीजीआई में 'गैस्ट्रोपैरेसिस' रोग के उपचार पर कार्यशाला


संजय गांधी पीजीआई के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग द्वारा गैस्ट्रोपैरेसिस रोग की बिना आपरेशन चिकित्सा 'गैस्ट्रिक जी पोयम' (गैस्ट्रिक पर ऑरल एंडोस्कोपिक मायटॉमी) तकनीक से इलाज किया गया। इसके साथ ही यह तकनीक संस्थान में स्थापित हो गई।
विभाग ने इस तकनीक को स्थापित करने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें इस तकनीक के विशेषज्ञ
  नागपुर डॉ सौरभ मुकेवार   शामिल हुए। 39 वर्ष
महिला
लगभग 2 साल से परेशानी बहुत ज्यादा बढ़ गयी थी जिसमें इस तकनीक से इलाज किया गया।

क्या है 

पीजीआई है गैस्ट्रोपैरेसिस

 गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो उदय घोषाल ने बताया कि 'गैस्ट्रोपैरेसिस' विकार में पाचन प्रक्रिया अत्यंत धीमी हो जाती है और भोजन पचने के बजाय पेट में ज्यादा समय तक रहता है ।ऐसा पेट की मांसपेशियों की गति धीमी या निष्क्रिय होने तथा पाचन तंत्र के वाल्व में विकार आ जाने से होता है।

क्या है जी पोयम प्रक्रिया

'जीपोयम' प्रक्रिया द्वारा बिना ऑपरेशन पाचन तंत्र में मुंह के रास्ते एंडोस्कोप (कैमरे के साथ एक संकीर्ण ट्यूब) डालकर चिकित्सा कर दी जाती है।

यह होती है परेशानी

संस्थान के पेट रोग विशेषज्ञ डॉ आकाश माथुर ने बताया कि
'गैस्ट्रोपैरेसिस' रोग (धीमी पाचन प्रक्रिया) में रोगी को
उल्टी आना, जी मिचलाना,पेट फूलना ,पेट में दर्द,पेट भरा हुआ महसूस होना, सीने में जलन, भूख में कमी आदि लक्षण आते हैं, जो पाचन तंत्र के अन्य सामान्य विकार या रोग जैसे हैं अतः इस विकार की पहचान मुश्किल हो जाती है।

डायबिटीज मरीजों में अधिक आशंका

 डायबिटीज के रोगियों में इस विकार के पाए जाने की संभावना अधिक होती है।
 निदेशक प्रो राधाकृष्ण धीमान के अनुसार पाचन संबंधित विकारों के लिए पीजीआई 'सेंटर ऑफ एक्सीलेंस' (उत्कृष्टता का केंद्र) है। कार्यशाला का आयोजन गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के सहा. प्रोफेसर डॉ आकाश माथुर ने किया।

बुधवार, 23 नवंबर 2022

देशी नुस्खा दिलाएगा छोटी आंत के बैक्टीरियल संक्रमण से मुक्ति - पीजीआई के प्रो. घोषाल के शोध से प्रभावित होकर भारतीय कंपनी ने बनायी कम कीमत वाली दवा

 देशी नुस्खा दिलाएगा छोटी आंत के बैक्टीरियल संक्रमण से मुक्ति

 


स्माल इंटेस्टाइनल बैक्टीरियल ओवर ग्रोथ का इलाज अब 60 गुना सस्ता

 

पीजीआई के प्रो. घोषाल के शोध से प्रभावित होकर  भारतीय  कंपनी ने बनायी कम कीमत वाली  दवा

 

छोटी आंत में बैक्टीरिया के संक्रमण(सीबो से निजात अब 60 गुना कम कीमत पर भी संभव है।   संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. यूसी घोषाल को शोध से प्रभावित हो कर  भारतीय कंपनी से सस्ती दवा तैयार किया है।  । इस परेशानी के इलाज के लिए विदेशी कंपनी का दवा का इस्तेमाल मरीजों में करना पड़ता जिसके पूरे कोर्स में लगभग 60 हजार का खर्च आता था । देशी दवा में केवल पूरे कोर्स का खर्च एक हजार आता है। देशी दवा से इलाज के खर्च में 60 गुना की कमी आ गई है। दवा का असर विदेशी दवा से जरा भी कम नहीं है। 1200 से 1600 मिली ग्राम रोज दो सप्ताह मरीज को दी जाती है।   देशी दवा से मरीजों को काफी राहत आर्थिक तौर पर मिल रही है। रिफाक्सीमिन  रिफैम्पिन के तरह संरचात्मक रसायन है। यह डीएनए पर निर्भर आरएनए पोलीमरेज़ से जुड़कर बैक्टीरिया आरएनए संश्लेषण को रोकता है। इस दवा का   अवशोषण आंत में  कम होता है। यह माइक्रोबियल दवा है जो एरोबिक और एनारोबिक ग्राम-पॉजिटिव और ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया दोनों के खिलाफ प्रभावी है। सीबो  के साथ 1331 रोगियों सहित 32 अध्ययनों के एक विश्लेषण में देखा गया कि रिफाक्सीमिन उपचार के साथ सीबो  को ठीक करने   70.8 फीसदी तक कारगर है।  आईबीएस के 20 से 30 फीसदी लोगों में  सीबो   जुड़ा हुआ होता  है। यह दवा  आईबीएस(इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम)  के लक्षणों को दूर करने के लिए 41 फीसदी तक  प्रभावी रहा है।  15 रोगियों में  87.5 फीसदी में 1 महीने में इलाज के लिए अच्छा परिणाम मिला है। सीबो के बिना आईबीएस के  65 मरीजों में   25 फीसदी  रोगियों अच्छे परिणाम मिले हैं।

 

कब्ज में भी कारगर 

एलएचबीटी( लैक्टूलोज हाइड्रोजन ब्रेथ टेस्ट)  के जरिए देखा गया कि सांस में  अधिक  मीथेन गैस पुरानी कब्ज और धीमी कोलन ट्रांजिट(आंत की गति)  से जुड़ा हुआ है। देखा गया है कि  रिफाक्सीमिननियोमाइसिन या इन दोनों के संयोजन दवाओं के साथ उपचार से सांस में  मीथेन में कमी होती है ।  कब्ज में सुधार होता है। देखा गया है कि सांस  में मीथेन की कमी  लाने और कोलन ट्रांजिट के कमी   के इलाज में रिफाक्सीमिन प्रभावी रहा है।


यह परेशानी तो लें सलाह

गैस बनने, पेट फूलनेस बार-बार मल द्वार से हवा निकलने, भूख में कमी, पेट में दर्द की परेशानी शुरूआती दौर में होती है। एडवांस स्टेज मे इन परेशानियों के सात  शरीर के भार में कमी, विटामिन एवं मिनिरल की कमी, न्यूरोपैथी 

वर्जन


स्माल इंटेस्टाइन बैक्टीरियल ओवर ग्रोथ(सीबो) और आंत सहित पेट के भीतरी आंगों की अनियमित गति से कुल पेट रोगियों में 50 से 60 फीसदी होते है। इनमें इलाज की दिशा तय करने के लिए विशेष सावधानी की जरूरत है। सीबो कई अन्य बीमारियों में बढ़ जाता है । इसके इलाज के लिए खास एंटीबोयिटक दवा इस्तेमाल होती है। देशी दवा आने के बाद इलाज सस्ता हो गया। यह मेक इंडिया के दिशा में बडी सफलता है....प्रो.यूसी घोषाल विभागाध्यक्ष गैस्ट्रोइंट्रोलाजी एसीजीपीजीआई