सोसाइटी फार इंडियन एकेडमी ऑफ मेडिकल जेनेटिक्स
12 साल बाद कम हो रही है रोशनी तो कराएं जीन की जांच
जीन में खराबी के कारण रेटिना हो जाती है प्रभावित
कुछ मामलों में इलाज है संभव
12 से 15 साल की उम्र पार करने के बाद यदि आंख की रोशनी कम हो रही है तो आगे चल कर रोशनी पूरी तरह जा सकती है। इस परेशानी का कारण अनुवांशिक होता है जिसमें जीन में बदलाव के कारण यह परेशानी होती है। इस परेशानी को रेटिनाइटिस पिंगमेनटोसा कहते है । यह कई प्रकार होता है जीन स्टडी कर टाइप का पता लगाकर इलाज की दिशा तय करने से कुछ मामलों में परेशानी की गति को कम किया जा सकता है। कुछ मामलों में जीन थिरेपी से पूरा इलाज भी संभव है। यह जानकारी संजय गांधी स्नातकोत्र आर्युविज्ञान संस्थान के मेडिकल जेनटिक्स विभाग द्वारा आय़ोजित सोसाइटी फार इंडियन एकेडमी आफ मेडिकल जेनटिक्सम में सेंट मैरी हास्पिटल यूके की डा. चारुलता देश पांडे ने दी । बताया कि नवजात या बच्चों में बीमारी का पता लगाना एक बड़ी चुनौती है। बिना बीमारी पता किए इलाज का कोई फायदा नहीं होता है। ऐसे में जीन सिक्वेंसिंग काफी कारगर साबित हो रहा है। इस तरह के अधिवेशन ने नई बीमारियों के बारे में जानकारी मिलती है। डा. देशपांडे के मुताबिक बार्डेट-बिडल सिंड्रोम में से एक दृष्टि हानि एक प्रमुख परेशानी है। दृष्टि की हानि तब होती है जब आंख के पीछे प्रकाश-संवेदी ऊतक (रेटिना) धीरे-धीरे बिगड़ने लगता है। उम्र बढ़ने के साथ रात देखने की समस्याएं होने लगती है। धीर-धीरे रोशनी पूरी तरह खत्म हो जाती है। यह परेशानी 12 तरह की होती है। जीन परीक्षण से किस तरह की बीमारी का है पता लगाकर कुछ मामलों में इलाज संभव है।
एक गोत्र में विवाह से बचे
अमेरिका की अनुवांशिक रोग विशेषज्ञा डा. माधुरी हेगड़े ने कहा कि एक गोत्र में विवाह करने से बचे क्योंकि बीमारी वाले जीन बच्चों में ट्रांसफर होने की आशंका रहती है। देखा है कि एक भारतीय समुदाय में नजदीकी शादी होते है जिसमें नौ अनुवांशिक बीमारी वाले जीन होते है। शादी करनी है तो पहले इन जीन का परीक्षण कराना चाहिए देखने चाहिए कि इन बीमारी के करियर तो नहीं है। यदि करियर है शिशु में जीन की जांच कर कर देखना चाहिए बीमारी तो नहीं है। विभाग की प्रमुख प्रो. शुभा फड़के ने बताया कि विभाग के पास कई बीमारियों के जीन का परीक्षण स्थापित किया है।
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