देशी नुस्खा दिलाएगा छोटी आंत के बैक्टीरियल संक्रमण से मुक्ति
स्माल इंटेस्टाइनल बैक्टीरियल ओवर ग्रोथ का इलाज अब 60 गुना सस्ता
पीजीआई के प्रो. घोषाल के शोध से प्रभावित होकर भारतीय कंपनी ने बनायी कम कीमत वाली दवा
छोटी आंत में बैक्टीरिया के संक्रमण(सीबो से निजात अब 60 गुना कम कीमत पर भी संभव है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रो. यूसी घोषाल को शोध से प्रभावित हो कर भारतीय कंपनी से सस्ती दवा तैयार किया है। । इस परेशानी के इलाज के लिए विदेशी कंपनी का दवा का इस्तेमाल मरीजों में करना पड़ता जिसके पूरे कोर्स में लगभग 60 हजार का खर्च आता था । देशी दवा में केवल पूरे कोर्स का खर्च एक हजार आता है। देशी दवा से इलाज के खर्च में 60 गुना की कमी आ गई है। दवा का असर विदेशी दवा से जरा भी कम नहीं है। 1200 से 1600 मिली ग्राम रोज दो सप्ताह मरीज को दी जाती है। देशी दवा से मरीजों को काफी राहत आर्थिक तौर पर मिल रही है। रिफाक्सीमिन रिफैम्पिन के तरह संरचात्मक रसायन है। यह डीएनए पर निर्भर आरएनए पोलीमरेज़ से जुड़कर बैक्टीरिया आरएनए संश्लेषण को रोकता है। इस दवा का अवशोषण आंत में कम होता है। यह माइक्रोबियल दवा है जो एरोबिक और एनारोबिक ग्राम-पॉजिटिव और ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया दोनों के खिलाफ प्रभावी है। सीबो के साथ 1331 रोगियों सहित 32 अध्ययनों के एक विश्लेषण में देखा गया कि रिफाक्सीमिन उपचार के साथ सीबो को ठीक करने 70.8 फीसदी तक कारगर है। आईबीएस के 20 से 30 फीसदी लोगों में सीबो जुड़ा हुआ होता है। यह दवा आईबीएस(इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम) के लक्षणों को दूर करने के लिए 41 फीसदी तक प्रभावी रहा है। 15 रोगियों में 87.5 फीसदी में 1 महीने में इलाज के लिए अच्छा परिणाम मिला है। सीबो के बिना आईबीएस के 65 मरीजों में 25 फीसदी रोगियों अच्छे परिणाम मिले हैं।
कब्ज में भी कारगर
एलएचबीटी( लैक्टूलोज हाइड्रोजन ब्रेथ टेस्ट) के जरिए देखा गया कि सांस में अधिक मीथेन गैस पुरानी कब्ज और धीमी कोलन ट्रांजिट(आंत की गति) से जुड़ा हुआ है। देखा गया है कि रिफाक्सीमिन, नियोमाइसिन या इन दोनों के संयोजन दवाओं के साथ उपचार से सांस में मीथेन में कमी होती है । कब्ज में सुधार होता है। देखा गया है कि सांस में मीथेन की कमी लाने और कोलन ट्रांजिट के कमी के इलाज में रिफाक्सीमिन प्रभावी रहा है।
यह परेशानी तो लें सलाह
गैस बनने, पेट फूलनेस बार-बार मल द्वार से हवा निकलने, भूख में कमी, पेट में दर्द की परेशानी शुरूआती दौर में होती है। एडवांस स्टेज मे इन परेशानियों के सात शरीर के भार में कमी, विटामिन एवं मिनिरल की कमी, न्यूरोपैथी
वर्जन
स्माल इंटेस्टाइन बैक्टीरियल ओवर ग्रोथ(सीबो) और आंत सहित पेट के भीतरी आंगों की अनियमित गति से कुल पेट रोगियों में 50 से 60 फीसदी होते है। इनमें इलाज की दिशा तय करने के लिए विशेष सावधानी की जरूरत है। सीबो कई अन्य बीमारियों में बढ़ जाता है । इसके इलाज के लिए खास एंटीबोयिटक दवा इस्तेमाल होती है। देशी दवा आने के बाद इलाज सस्ता हो गया। यह मेक इंडिया के दिशा में बडी सफलता है....प्रो.यूसी घोषाल विभागाध्यक्ष गैस्ट्रोइंट्रोलाजी एसीजीपीजीआई
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