बुधवार, 25 दिसंबर 2019

लंबी लड़ाई , गोद में खुशियां आई..अविवाहित आदित्य ने लिया डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चे को गोद

अवनीश ने बदला देश का  सिंगल पैरेट कानून जो ले सकते है बच्चा गोद

सिंगल पैरेट आदित्य तिवारी ने दिया लाखों युवाओं को संदेश
डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चे को लिया गोद
कुमार संजय । लखनऊ
हर नव युवक का सपना होता है कि वह शादी करे और स्वस्थ्य बच्चे का पिता लेकिन भोपाल के मूल निवासी आदित्य तिवारी ने बिना शादी किए ही डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चे को गोद लेकर देश के उन लाखों युवाओं के संदेश दिया है कि ऐसे बच्चों को खुशी दी जा सकती है और उनसे खुशी ली जा सकती है यदि मन बडा हो। संजय गांधी पीजीआइ के आनुवांशिकी विभाग द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने वह आए था जहां पर उन्होंने तमाम अनुभव साझा किया। आदित्य के मुताबिक
बच्चे को गोद लेने के लिए उन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी । प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति सहित तमाम लोगों से गुहार लगाने के बाद सकार वह कानून बदला  'चाइल्ड एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटीने सिंगल लोगों के लिए नियमों में फेरबदल किए।  सिंगल पेरेंट्स की उम्र को 25 साल से 55 वर्ष तक कर दिया। क्योंकिपहले बच्चे को गोद लेने की उम्र 30 साल थी और हम 30 साल से कम उम्र के थे। इसी के चलते मैं जनवरी 2016 को मैं गोद ले पाया।
अनाथ आश्रम में पड़ा था अकेला
 पहली बार हम अपने पिता का जंम दिन मनाने भोपाल के एक नाथ आश्रम गए जहां पर बताया कि एक बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग है जिसके माता –पिता उसे यहां छोड़ गए कि ऐसा बच्चा पाल क्या करेंगे। इस बच्चे पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था।  मैने बच्चे को उठाया तो वह मेरी आंख में देख रहा था और उसने मेरी ऊंगली पकड़ी तभी तय किया इस बच्चे को गोद लेंगे लेकिन मेरी उम्र कम थी साथ ही मैं सिंगल था जिसके कारण यह संभव नहीं था फिर लंबी कानूनी लड़ाई के बाद जीत हासिल हुई। आज इस अवनीश के कारण मुझे पहचान मिली ।
देख-भाल से दूर हो गयी कई परेशानी
जब 2016 एक जनवरी को गोद लेकर पुणे जहां बतौर साफ्ट वेयर इंजीनियर काम करता हूं लेकर आया तो पता चला कि दिल में दो छेद है।  पैर टेढे है।  आंख में भेंगापन है। लिंग के पास तमाम दाने निकले है । मैने 6 महीने की छुट्टी ली और देख-भाल शुरू किया सब कुछ सामान्य हुआ । दिल  सर्जरी के लिए डाक्टर पास गया को पता चला कि छेद भर गया।  आज3.5 साल है।  वह स्कूल जा रहा है। आदित्य बताते हैं," मेरे माँ बाप ने हर कदम पर सपोर्ट किया । अब बिन्नी का नाम अवनीश है और आज भी मेरे मां – पापा उसका पूरा ख्याल रखते हैं

ऐसे बच्चों का लोग मरने का करते है इंतजार
डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चों को लोग स्वीकार नहीं कर पाते है कई लोग मरने का इंतजार करते है। इसका सबसे बडा कारण होने वाले संतान से उम्मीद है। बच्चा खुद तो आया नहीं है हम अपनी गर्ज से लाते है तो उम्मीद क्यों करना। इन्हें स्वीकार करिए यह भी सामान्य बच्चों की तरह सब कुछ कर सकते है बस थोड़ा समय लगता है।
न करें दूसरे बच्चे से तुलना
  इसके अलावा कभी भी किसी दूसरे बच्चे की तुलना अपने बच्चे से न करें। हमेशा यह सोचें कि मेरे बच्चे ने जो कुछ किया हैवह अपनी क्षमता के अनरूप सबसे अच्छा किया है। आपके द्वारा साझा किए गए बंधन आपके बच्चे के प्यार को जोड़ने के लिए लंबा रास्ता तय करेंगे।"

डाउन सिंड्रोम ग्रस्त 25 फीसदी में  थायरायाड हारमोन असंतुलन
 डाउन सिंड्रोम बच्चों के लिए सरकार से खास उम्मीद
जागरण संवादताता। लखनऊ
आनुवाशंकि विभाग की प्रमुख प्रो.शुभा फड़के और इंडोक्राइन विभाग की प्रो.प्रीती दबड़घाव ने बताया कि डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त 30 से 35 फीसदी बच्चों में थायरायड ग्लैड से स्राविक होने वाले हारमोन असुंतलन की परेशानी होती है। यह हारमोन मानसिक विकास में अहम भूमिका निभाते है। इन बच्चों का साल में एक बार जरूर टीएसएच जांच करना चाहिए जिससे पहले से मानसिक कमी के शिकार बच्चों में हारमोन के कारण विकास न रूके। हम लोग रिपोर्ट के आधारा पर दवा दे कर असंतुलन दूर करते है जिससे काफी हद तक राहत मिलती है। इसके आलावा 20 फीसदी बच्चों में डायबटीज की परेशानी होती है जिससे दवा से नियंत्रित करते है। इस लिए कुछ नहीं होगा यह मान कर बैठ जाना ठीक नहीं है। फालोअप पर रहना चाहिए। बताया कि यह अनुवांशिकी बीमारी है जिसका पता गर्भस्थ शिशु में ही लगाया जा सकता है। इस लिए बच्चा प्लान करने से पहले और गर्भधारण करने के बाद लगातार संपर्क में रहना चाहिए। यह बच्चे भी सामान्य बच्चों की तरह सभी कुछ कर सकते है बस ट्रेनिंग की जरूरत है। विशेषज्ञों ने इन बच्चों के जीवन निर्वहन के लिए सरकार को विशेष इंतजाम करना होगा क्यों कि हर पैरेंट की चिंता है कि हमारे बाद क्या होगा। इस मौके पर डा. प्रेऱणा कपूर ने कहा कि लोगों को माइंड सेट बदलने की जरूरत है। इस मौके पर कर्मचारी महासंघ के महामंत्री धर्मेश कुमार ने कहा कि डाउन सिंड्रोम बच्चों को केवल दिव्यांग कहने से काम नहीं चलेगा डिसएबिल नाम ही प्रचलित है सरकार को इन बच्चों के लिए कुछ योजना पर काम करना होगा। 

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