शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

सजगता से शुरूआती दौर में पकड़ में आया प्रोस्टेट कैंसर- पीजीआइ के प्रो.यूपी सिंह ने किया रोबोटिक सर्जरी

सजगता से शुरूआती दौर में पकड़ में आया प्रोस्टेट कैंसर

रोबोटिक सर्जरी कर निकाला कैंसर सेल दोबारा की आशंका खत्म
तेजी से गिर रहा था वजन जिसका कारण खोजने में लग गया चार महीना
कुमार संजय। लखनऊ
बस्ती जिले के रहने वाले 65 वर्षीय आर के मिश्रा का बजन धीरे-धीरे गिरने लगा तो उनके परिजन काफी परेशान हो गए । इनके बेटे पंकज कहते है कि  किसी ने कहा कि डायबटीज के कारण वजन गिर रहा है लेकिन शुगर पूरी तरह नियंत्रण में रहा इसलिए इसे स्वीकार नहीं कर पाए। हारमोन की जांच करायी तो वह भी ठीक। थोड़ी पेशाब में केवल बार खून आया था जिस कारण खुद ही  प्रोस्टेट स्फेस्पिक एंटीजन( पीएसए) की जांच करायी । वह भी सामान्य आया। वजन गिरने का कारण न मिलने के कारण का पता न लगने से परेशान पंकज  चार महीने के तमाम भटकाव के बाद उन्हे लेकर संजय गांधी पीजीआइ के यूरोलाजिस्ट और किडनी ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ प्रो.यूपी सिंह से सलाह लेने पहुंचे। प्रो. सिंह ने भी पीएसए की जांच करायी और कहा कि इस पर लगातार नजर रखना होगा क्योंकि कई बार प्रोस्टेट निकालने के बाद भी कैंसर होने की आशंका रहती है लेकिन पीएसए का स्तर इनमें लगातार सामान्य रहा। कैंसर का कोई और लक्षण नहीं था वजन गिरने का कोई कारण नहीं मिल रहा था। प्रोस्टेट एरिया का  एमआरआई कराया। देखा कि प्रोस्टेट में कैंसर की शुरूआत है। प्रो. सिंह कहते है कि एक बार मैं भी कंफर्म नहीं  था कि कैंसर हो होगा क्योंकि कोई  विशेष लक्षण नहीं था साथ ही पीएसए भी नहीं बढ़ा था। बजन गिरना एक बडी आशंका की तरफ इशारा कर रहा था।  आरके मिश्रा के परिजन की जागरूकता के कारण ही शुरूआती दौर में कैंसर पकड़ में आया। कैंसर का पता लगते है बाकी जांच करा कर 17 दिसंबर को रोबोटिक सर्जरी कर कैंसर सेल को निकाल दिया । सर्जरी पूरी तरह सफल रही और आर के मिश्रा को अस्पताल से छुट्टी मिल गयी। इस सर्जरी के बाद दोबारा कैंसर की आशंका खत्म हो गयी है क्योंकि कैंसर का पता शुरूआती दौर में लग गया जो फैला नहीं था सारे कैंसर लेकर रोबोट से 360 डिग्री कोड़ पर घुमा कर निकाल लिया गया।

इस तरह के केस बहुत कम आते है सामने
प्रो.सिंह कहते है कि इस तरह मामले काफी कम आते है क्योंकि लोग एडवांस स्टेज में आते है। इस केस में प्रोस्टेट का आपरेशन पहले ही हो चुका था जिसके कारण पीएसए स्तर शायद नहीं बढ़ा। कैंसर सेल प्रोस्टेट के स्थान पर ही लोकलाइज था।


नहीं होगी रेडियोथिरेपी की जरूरत
प्रो.यूपी सिंह का कहना है कि कैंसर का पता काफी शुरूआती दौर में लगने के कारण कोई फैलाव नहीं था रोबोटिक सर्जरी के कारण पूरा कैंसर सेल निकल गया।  

यह तो जरूर कराएं जांच
प्रो.यूपी सिंह के मुताबिक इस मरीज में प्रोस्टेट पहले निकल चुका था जिसके कारण पेशाब में रूकावट नहीं हुई लेकिन एक बार पेशाब में खून आया इसके साथ ही वजन हो रहा था।  लगातार वजन कम होना भी प्रॉस्टेट कैंसर का लक्षण है। यदि बिना कोई उपाय किए शरीर का वजन तेजी से कम होना भी कैंसर की ओर इशारा है।  जब पाचन क्रिया सही तरह से काम नहीं करे तो समझ लेना चाहिए कि आप प्रॉस्टेट कैंसर की चपेट में हैं।  बार-बार पेशाब आना, विशेष तौर पर रात में। पेशाब रुक कर आना या इंफेक्शन होना। पेशाब करते वक्त दर्द व जलन होना। पेशाब या सीमन में खून आना। कूल्हे, जांघ की हड्डियां और पीठ में लगातार दर्द होना। वीर्य में खून आना सामान्य लक्षण है। .

बुधवार, 25 दिसंबर 2019

लंबी लड़ाई , गोद में खुशियां आई..अविवाहित आदित्य ने लिया डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चे को गोद

अवनीश ने बदला देश का  सिंगल पैरेट कानून जो ले सकते है बच्चा गोद

सिंगल पैरेट आदित्य तिवारी ने दिया लाखों युवाओं को संदेश
डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चे को लिया गोद
कुमार संजय । लखनऊ
हर नव युवक का सपना होता है कि वह शादी करे और स्वस्थ्य बच्चे का पिता लेकिन भोपाल के मूल निवासी आदित्य तिवारी ने बिना शादी किए ही डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चे को गोद लेकर देश के उन लाखों युवाओं के संदेश दिया है कि ऐसे बच्चों को खुशी दी जा सकती है और उनसे खुशी ली जा सकती है यदि मन बडा हो। संजय गांधी पीजीआइ के आनुवांशिकी विभाग द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने वह आए था जहां पर उन्होंने तमाम अनुभव साझा किया। आदित्य के मुताबिक
बच्चे को गोद लेने के लिए उन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी । प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति सहित तमाम लोगों से गुहार लगाने के बाद सकार वह कानून बदला  'चाइल्ड एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटीने सिंगल लोगों के लिए नियमों में फेरबदल किए।  सिंगल पेरेंट्स की उम्र को 25 साल से 55 वर्ष तक कर दिया। क्योंकिपहले बच्चे को गोद लेने की उम्र 30 साल थी और हम 30 साल से कम उम्र के थे। इसी के चलते मैं जनवरी 2016 को मैं गोद ले पाया।
अनाथ आश्रम में पड़ा था अकेला
 पहली बार हम अपने पिता का जंम दिन मनाने भोपाल के एक नाथ आश्रम गए जहां पर बताया कि एक बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग है जिसके माता –पिता उसे यहां छोड़ गए कि ऐसा बच्चा पाल क्या करेंगे। इस बच्चे पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था।  मैने बच्चे को उठाया तो वह मेरी आंख में देख रहा था और उसने मेरी ऊंगली पकड़ी तभी तय किया इस बच्चे को गोद लेंगे लेकिन मेरी उम्र कम थी साथ ही मैं सिंगल था जिसके कारण यह संभव नहीं था फिर लंबी कानूनी लड़ाई के बाद जीत हासिल हुई। आज इस अवनीश के कारण मुझे पहचान मिली ।
देख-भाल से दूर हो गयी कई परेशानी
जब 2016 एक जनवरी को गोद लेकर पुणे जहां बतौर साफ्ट वेयर इंजीनियर काम करता हूं लेकर आया तो पता चला कि दिल में दो छेद है।  पैर टेढे है।  आंख में भेंगापन है। लिंग के पास तमाम दाने निकले है । मैने 6 महीने की छुट्टी ली और देख-भाल शुरू किया सब कुछ सामान्य हुआ । दिल  सर्जरी के लिए डाक्टर पास गया को पता चला कि छेद भर गया।  आज3.5 साल है।  वह स्कूल जा रहा है। आदित्य बताते हैं," मेरे माँ बाप ने हर कदम पर सपोर्ट किया । अब बिन्नी का नाम अवनीश है और आज भी मेरे मां – पापा उसका पूरा ख्याल रखते हैं

ऐसे बच्चों का लोग मरने का करते है इंतजार
डाउन सिंड्रोम ग्रस्त बच्चों को लोग स्वीकार नहीं कर पाते है कई लोग मरने का इंतजार करते है। इसका सबसे बडा कारण होने वाले संतान से उम्मीद है। बच्चा खुद तो आया नहीं है हम अपनी गर्ज से लाते है तो उम्मीद क्यों करना। इन्हें स्वीकार करिए यह भी सामान्य बच्चों की तरह सब कुछ कर सकते है बस थोड़ा समय लगता है।
न करें दूसरे बच्चे से तुलना
  इसके अलावा कभी भी किसी दूसरे बच्चे की तुलना अपने बच्चे से न करें। हमेशा यह सोचें कि मेरे बच्चे ने जो कुछ किया हैवह अपनी क्षमता के अनरूप सबसे अच्छा किया है। आपके द्वारा साझा किए गए बंधन आपके बच्चे के प्यार को जोड़ने के लिए लंबा रास्ता तय करेंगे।"

डाउन सिंड्रोम ग्रस्त 25 फीसदी में  थायरायाड हारमोन असंतुलन
 डाउन सिंड्रोम बच्चों के लिए सरकार से खास उम्मीद
जागरण संवादताता। लखनऊ
आनुवाशंकि विभाग की प्रमुख प्रो.शुभा फड़के और इंडोक्राइन विभाग की प्रो.प्रीती दबड़घाव ने बताया कि डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त 30 से 35 फीसदी बच्चों में थायरायड ग्लैड से स्राविक होने वाले हारमोन असुंतलन की परेशानी होती है। यह हारमोन मानसिक विकास में अहम भूमिका निभाते है। इन बच्चों का साल में एक बार जरूर टीएसएच जांच करना चाहिए जिससे पहले से मानसिक कमी के शिकार बच्चों में हारमोन के कारण विकास न रूके। हम लोग रिपोर्ट के आधारा पर दवा दे कर असंतुलन दूर करते है जिससे काफी हद तक राहत मिलती है। इसके आलावा 20 फीसदी बच्चों में डायबटीज की परेशानी होती है जिससे दवा से नियंत्रित करते है। इस लिए कुछ नहीं होगा यह मान कर बैठ जाना ठीक नहीं है। फालोअप पर रहना चाहिए। बताया कि यह अनुवांशिकी बीमारी है जिसका पता गर्भस्थ शिशु में ही लगाया जा सकता है। इस लिए बच्चा प्लान करने से पहले और गर्भधारण करने के बाद लगातार संपर्क में रहना चाहिए। यह बच्चे भी सामान्य बच्चों की तरह सभी कुछ कर सकते है बस ट्रेनिंग की जरूरत है। विशेषज्ञों ने इन बच्चों के जीवन निर्वहन के लिए सरकार को विशेष इंतजाम करना होगा क्यों कि हर पैरेंट की चिंता है कि हमारे बाद क्या होगा। इस मौके पर डा. प्रेऱणा कपूर ने कहा कि लोगों को माइंड सेट बदलने की जरूरत है। इस मौके पर कर्मचारी महासंघ के महामंत्री धर्मेश कुमार ने कहा कि डाउन सिंड्रोम बच्चों को केवल दिव्यांग कहने से काम नहीं चलेगा डिसएबिल नाम ही प्रचलित है सरकार को इन बच्चों के लिए कुछ योजना पर काम करना होगा। 

सोमवार, 23 दिसंबर 2019

याददाश्त में कमी का पता लगाने के लिए खोजा बायोमार्कर

अब शुरूआती दौर में लगेगा भूलने की बीमारी का पता

याददाश्त में कमी का पता लगाने के लिए खोजा बायोमार्कर
 उम्र बढ़ने के साथ 10 फीसदी में होने लगती है भूलने की परेशानी

कुमार संजय। लखनऊ
उम्र बढने के साथ भूलने की परेशानी आम है जिसे डाक्टरी भाषा में डिमेंशिया , अल्जाइमर डिजीज कहते है। जब भूलने की परेशानी काफी हद तक बढ़ जाती है जब परिजनों को परेशानी का पता लगता है लेकिन अब चिकित्सा वैज्ञानिकों ने भूलने की बीमारी का गंभीर रूप पकडने से पहले शुरूआती दौर में लगाने के लिए बायो मार्कर खोज निकाला है। पहली बार कुछ बायो मार्कर पकड़ में आएं जिसके स्तर रक्त में देख कर बताया जा सकता है कि डिमेंशिया का पता शुरूआती दौर में लगाया जा सकता है। इस खोज के बारे में पहली बार खुलासा शोध टीम में शामिल इस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस बीएचयू के न्यूरोलाजिस्ट प्रो. विजय नाथ मिश्रा ने किया। प्रो.  संजय गांधी पीजीआइ विजिट पर आए थे। प्रो. मिश्रा ने बताया कि यह शोध उन्होंने सीडीआरआई के सहयोग से किया है।  देखा कि डिमेंशिया शुरू होने पर  लैक्टेट, एन-एसीटाइल एसपारटेट, हिस्टीडिन का स्तर बढा होता है इसके साथ फारमेट, कोलीन, एलानिन, क्रिएटनीन और ग्लुकोज का स्तर खून के प्लाज्मा में कम हो जाता है। आगे यह भी देखा कि कोलीन का सीधा संबंध माइस्ड कोगनेटिव इमपेयरमेंट ( याददाश्त में हल्की कमी) से हैं। प्रो.मिश्रा का कहना इन बायोमार्कर के स्तर को देख कर शुरूआती दौर में ही डिमेशिया का पता लगाना संभव है। शोध में बीएचयू की ही डा.विनीता सिंह के आलावा सीडीआरआई के एनएमआर डिवीजन के डा. गुरू दयाल प्रजापति, डा. रवि शंकर के आलावा बीएचयू के जूलोजी विभाग के डा. एमके ठाकुर शामिल थे। प्रो. मिश्रा ने बताया कि हम लोग उत्तर प्रदेश और बिहार के दो हजार लोगों का स्क्रीनिंग किया जिनकी उम्र 58 से अधिक थी दो देखा कि इनमें से दो सौ लोगों में याददाश्त की हल्की कमी थी अब इन्हे डिमेशिया या अल्जाइमर की परेशानी है पता लगाने के लिए इनमे से दस लोगों और 10 सामान्य लोगों में बायोमार्कर का शोध किया तो यह परिणाम मिला।

क्यों होती है भूलने की परेशानी
दिमाग की कोशिकाओं का एक-दूसरे से जुड़ाव और खुद कोशिकाओं के कमज़ोर और खत्म होने की वजह से याददाश्त और अन्य महत्वपूर्ण दिमागी काम करने की क्षमता नष्ट हो जाती है। याददाश्त कम होना और भ्रम मुख्य लक्षण हैं।  दवाओं और सही प्रबंधन से अस्थायी रूप से लक्षणों में सुधार हो सकता है.

रविवार, 22 दिसंबर 2019

शरीर के सिपाही ही बन गए शरीर के दुश्मन- पीजीआइ के दो विभागों ने बचा लिया सुमन का जीवन

पीजीआइ के दो विभागों ने बचा लिया सुमन का जीवन



कुमार संजय ’ लखनऊ
रायपुर (छत्तीसगढ़) की रहने वाली 36 वर्षीय सुमन मिश्र को वहां के डाक्टरों ने कह दिया कि हार्ट अटैक है, तुरंत एंजियोप्लास्टी करनी पड़ेगी। दो लाख का इंतजाम करें। इससे पहले पैर में घाव न भरने पर पैर की नस का भी ऑपरेशन कर दिया। सांस लेने में भी परेशानी हो रही थी। घर वाले काफी परेशान थे। वे सीधे लेकर संजय गांधी पीजीआइ आ गए।
हृदय रोग विभाग के हार्ट स्पेशलिस्ट प्रो. सुदीप कुमार की देखरेख में मरीज को भर्ती किया गया। सिमटम्स ऐसे थे जिससे प्रो. सुदीप को लगा कि कोई ऑटोइम्यून डिजीज है। प्रो. सुदीप ने क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग के प्रो. विकास अग्रवाल और प्रो. दुर्गा प्रसन्ना मिश्र से सलाह मांगी। इन विशेषज्ञों ने देखते ही सुमन को आपने वार्ड में शिफ्ट कर लिया, क्योंकि वह लक्षण के आधार पर जान गए कि सुमन में परेशानी की जड़ ऑटोइम्यून डिजीज सिस्टमिक ल्यूपस एथ्रोमेटस (एसएलई) है। जांच में इसकी पुष्टि हो गई। इलाज शुरू होने के साथ पैर का घाव भर गया। सांस लेने में परेशानी दूर हो गई, साथ ही दिल भी काफी हद तक काम करने लगा। 12 दिन बाद सुमन को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। प्रो. विकास और प्रो. दुर्गा के मुताबिक हम लोगों ने एंटीन्यूक्लियर एटीबॉडी के साथ ही डीएसडीएनए और ईएनए जांच की। इसमें बीमारी की पुष्टि हुई। इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं देकर आंगो पर शरीर के अंदर के दुश्मन के हमले के प्रभाव को कम किया। प्रो. विकास के मुताबिक प्रति दस लाख लोगों में 30 में यह बीमारी होती है। पुरुषों की तुलना में महिलाएं इससे अधिक प्रभावित होती हैं।
क्या होता है एसएलई: सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमैटोसस (एसएलई) एक ऑटोइम्यून बीमारी है। इससे दिल, फेफड़े, किडनी और दिमाग को भी नुकसान पहुंच सकता है और जान भी जा सकती है।
यह परेशानी तो लें सलाह : ल्यूपस के लक्षण समय के साथ अलग-अलग हो सकते हैं। सामान्य लक्षणों में थकान, जोड़ों में दर्द व सूजन, सिरदर्द, गालों व नाक पर तितली के आकार के दाने, त्वचा पर चकत्ते, बालों का झड़नाए एनीमिया, रक्त के थक्के बनने की प्रवृत्ति में वृद्धि और खराब परिसंचरण प्रमुख हैं। हाथों व पैरों की अंगुलियां ठंड लगने पर सफेद या नीले रंग की हो जाती हैं, जिसे रेनाउड्स फेनोमेनन कहा जाता है।

क्यों होता एसएलई
इंफेक्शन एजेंट, बैक्टीरिया और बाहरी रोगाणुओं से लड़ने के लिए इम्यून सिस्टम शरीर में एंटीबॉडीज बनाता है। एसएलई यानी ल्यूपस वाले लोगों के खून में ऑटोएंटीबॉडीज बनने लगती हैं, जो संक्रामक रोग से लड़ने की बजाय शरीर के स्वस्थ ऊतकों और अंगों पर हमला करते हैं।

सोमवार, 16 दिसंबर 2019

पीजीआइ ट्रामा सेंटर --घुटने गति देने वाले टेंडन का किया रिपेयर आ गयी पैर में जान



घुटने गति देने वाले टेंडन का किया रिपेयर आ गयी पैर में जान


क्वाडरीसेप्स टेंडन रिपेयर की पहली सर्जरी पीजीआइ ट्रामा सेंटर रही सफल

चोट के बाद बैशाखी के सहारे आ गयी थी जिंदगी

कुमार संजय। लखनऊ
बरेली के रहने वाले 65 वर्षीय रमेश दुर्घटना के शिकार हुए तो पूरा पैर फट गया था तुरंत वहां के डाक्टर ने ऊपर से मरहम, पट्टी कर घाव तो ठीक कर दिया लेकिन चलना –फिरना असंभव हो गया काफी इलाज कराया लेकिन कहीं से कोई फायदा नहीं हुआ किसी के सलाह पर वह संजय गांधी पीजीआइ के एपेक्स ट्रामा सेंटर में इलाज के लिए पहुंचे तो आर्थोपैडिक सर्जन प्रो. पुलक शर्मा ने गंभीरता से कारण जानने के लिए फिजिकल परीक्षण के साथ ही एमआरआई और अल्ट्रासाउंड परीक्षण कराया तो घुटने को गति देने वाला क्वाडरीसेप्स टेंडन टूट गया है  जिसके कारण घुटने में गति ही नियंत्रित नहीं हो पा रही है जिसके कारण चलना फिरना कठिन हो गया है। प्रो. पुलक ने पने टीम के साथ सर्जरी का फैसला लिया जो काफी जटिल था चुनौती थी कि टेंडन अपने मूल मगह से 6-6 इंच ऊपर खिसक गया था फिर भी चैलेज को स्वीकार करते हुए पहले टेंडन को पास में लाए फिर फाइबर टेप से उसे आपस जोड कर टेंडन को मजबूत किए। कुछ दिन रेस्ट देने के बाद फिजियोथिरेपी कराने लेगे । धीर-धीरे पैर में जान आ गयी। अब  रमेश बिना किसी सहारे आपने आप चल सकते है। प्रो. पुलक के मुताबिक एपेक्स ट्रामा सेंटर में इस तरह की पहली सर्जरी है। इस तकनीक को  क्वाडरीसेप्स प्लास्टी एंड ट्रांसोसीअस सूचर रिपेयर कहते हैं।   किसी को भी घुटने में चोट लगे और कुछ समय बाद पैर में दम न लगे तो एक बार यहां पर सलाह लिया जा सकता है। टीम में प्रो. सिदार्थ, डा. ललित शामिल रहे प्रभारी प्रो. अमित अग्रवाल की सहयोग के कारण हम लोग जटिल सर्जरी स्थापित करने में सफल हुए।  

अब नहीं लेना पडेगा किसी का सहारा

रमेश कहते है कि घुटनो पर दर्द बना रहता था और बिना बैसाखी और पट्टे के सहारे चलना असम्भव था।  कई और अस्पतालों में भी इलाज कराया लेकिन आराम नही मिला और  कठनाई बढ़ती ही गयी लेकिन अब किसी के सहारे के जरूरत नहीं पड़ती है।

 एक लाख में से दो लोगों में होती है यह परेशानी
ऐसी चोट बहुत कम पायी जाती है। औसतन 100000 में 1 या 2 लोगों मे इस तरह की चोट देखी जाती है। समय पर सही इलाज न होने के कारण इस चोट ने बहूत जटील रूप ले लिया था। कई घंटो के आपरेशन के उपरांत टूटी हूयी डोरी को सही तरह वापस अपनी जगह लाकर सिला गया।

रविवार, 15 दिसंबर 2019

पीजीआइ का 36 वां स्थापना दिवस -फोर्टीफाइड फोलेट फूड कम करेगा न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट



पीजीआइ का 36 वां स्थापना दिवस समारोह


फोर्टीफाइड फोलेट फूड कम करेगा न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट
पीएचसी और जिला अस्पताल को करना होगा मजबूत

हर मां चाहती है उसका संतान स्वस्थ्य और सुंदर पैदा हो लेकिन देश में एक हजार जंम लेना बच्चो में से 1.3 में न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट(रीढ़ की हड्डी में फोड़ा) , स्पाइना बाई फीडा की परेशानी के साथ पैदा होते है। मां यदि फोलिक एसिड का सेवन गर्भधारण करने से पहले शुरू कर दे तो इस परेशानी की आशंका को काफी हद तक कम किया जा सकता है। संजय गांधी पीजीआइ के 36 वें स्थापना दिवस सामोरह के मुख्य वक्ता भारतीय चिकित्सा अनुसंदान परिषद के पूर्व महानिदेशक पद्म श्री डा. एनके गांगुली ने कहा कि रोज मर्रा के जीवन में फोलेट को शामिल करने के लिए फोलेट युक्त फोर्टीफाइड फूड बनाने की जरूरत है। इससे न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट, जंमजात बहरे पन की आशंका काफी कम हो सकती है। इसके साथ ही एनीमिया की परेशानी काफी हद तक कम हो जाएगी। हम लोग अभी भी एनीमिया में कमी नहीं ला पा रहे हैं। कहा कि टर्सरी केयर हेल्थ केयर का बोन है इसके साथ सेकेंड्री और पब्लिक हेल्थ सिस्टम पर काफी काम करने की जरूरत है। इस मौके पर निदेशक प्रो.एके त्रिपाठी ने संस्थान की प्रगति के बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत किया। डीन प्रो.एसके मिश्रा ने धन्यवाद प्रस्ताव पर रखा। इस मौके पर पूर्व निदेशक प्रो.राकेश कपूर, संस्थान की स्त्री रोग विशेषज्ञा डा.दीपा कपूर, प्रो.एसके अग्रवाल सहित कई विशेषज्ञ मौजूद रहे।
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पीजीआइ की इन विभागों ने स्थापित किया रोल माडल
डा. गांगुली ने कहा कि संस्थान के न्यूरो साइंस, क्लीनिकल इम्यूनोलाजी एंड रूमैटोलाजी, न्यूक्लियर मेडिसिन, सीवीटीएस और गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग  देश के रोल माडल है। इन विभागों ने देश में इलाज और विशेज्ञ तैयार करने में अहम भूमिका निभायी है।
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80 करोड़ लोग के पास नहीं है इलाज की सुविधा
डा. गांगुली ने कहा कि 33 करोड़ कही भी इलाज करा सकते है चाहे वह विदेश में ही क्यो न कराना पडे । 20 करोड़ लोग इलाज के लिए थोड़ा बजत करते है हेल्थ इंश्योरेंस आदि के सहारे रहते है जबकि 80 करोड़ लोगों के पास इलाज के लिए कोई कुछ नहीं है वह पूरी तरह सरकार के सिस्टम पर निर्भर है इन लोगों के लिए आयुष्मान जैसी योजना कारगर साबित हो सकती है।
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इनको मिला सम्मान
इस मौके पर    बेस्ट डीएम स्टुडेंट एवार्ड सीसीएम के डा. बीके भास्कर ने क्रिटिकल केयर में विशेष शोध किया है।  बेस्ट एमसीएच स्टुडेट यूरोलाजी के डा. नवीन कुमार इन्होने कैंसर युक्त ब्लैडर को निकाल कर आंत से मूत्राशय बनाने के साथ ही 6  शोध किया है। बेस्ट टेक्नोलाजिस्ट आवार्ड हिमैटोलाजी विभाग के मनोज कुमार सिंह और माइक्रोबायलोजी विभाग से शत्र्तुघन सिंह को दिया जाएगा। इसके साथ ही नेफ्रोलाजी विभाग की रोसीलिना और इंडोक्राइन विभाग के मुं यूसुफ खान बेस्ट नर्स को दिया जाएगा।
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मनोज सिंह हिमौटोलाजी विभाग में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए 2005 से लगातार काम कर रहे है। यह एफेरसिस तकनीक के लिए बौन मैरो से स्टेम सेल को अलग करते है साथ इसको क्रोयो फ्रीज कर आगे के लिए सुरक्षित रखते है। इसी स्टेम सेल को ब्लड कैंसर के मरीजों में प्रत्यारोपित किया जाता है। बताया कि स्टेम सेल को जनाने के लिए सीडी 34 जांच कर सेल को परखा जाता है।
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समारोह के समय लो लेकर आक्रोश
कर्मचारी महासंघ के महामंत्री धर्मेश कुमार, अध्यक्ष जितेंद्र यादव समारोह के समय को आक्रोश जाहिर किया। समारोह 5.45 शाम से करने के कारण तमाम कर्मचारी और उनके परिवार के लोग भाग नहीं ले पाए। शनिवार को तो एक बजे छुट्टी हो जाती है ऐसे में देर शाम से समारोह शुरू के पीछे साजिश करार दिया। धर्मेश कुमार ने निदेशक और डीन  को पत्र लिख कर कहा है कि आगे से ऐसे समारोह दो से शाम 5 बजे के बीच संपन्न कराएं जाएं।  समारोह में संस्थान के कर्मचारी और छात्र कल्चरल प्रोग्राम देते है देर रात होने के कारण बाहर रहने वाले तमाम लोग  शामिल नहीं हो पाते है।

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संस्थान की वरिष्ठ जन संपर्क अधिकारी मोनालिसा चौधरी की पुस्तक चिकित्सा क्षेत्र में जन संपर्क का विमोचन डा.एनके गांगुली ने किया। यह पुस्तक हिंगी में लिखी गयी जिससे पत्रकारिता के छात्रों को नई जानकारी मिलेगी   

परंपराएं देती है सुरक्षित चलने का संदेश

परंपराएं देती है सुरक्षित चलने का संदेश

6 से 8 घंटे के नींद के बाद ही चलााएं वाहन

घर से निकलते घर के बडे कई बार माथे पर रोली और चावल का टीका लागे है । छींक आने पर रूक कर पानी पीने कर जाने को कहते हैै। रास्ता बिल्ली काट तो सजग रहने या रूक कर जाने को कहते है यह तमाम टोटके कई लोगों को लिए अंध विश्वास हो सकता है लेकिन संजय गांंधी पीजीआइ के न्यूरोलाजी विभाग के प्रमुख प्रो.सुनील प्रधान कहते है कि यह हमे सचेत करते है कि सावधानी पूर्वक जाए । घर सुरक्षित वापस आए आप घर के लिए महत्व पूर्ण है। संस्थान के न्यूरोलाजी विभाग और शुभम सोती फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में रोड सेफ्टी वाकथान में प्रो. प्रधान ने कहा कि नींद बडा दुर्घटना का कारण है। कई बार झपकी आ जाती है उतनी ही देर में गाडी भिड़ जाती है। इस लिए सुबह चार -पांच बजे जब निकलना हो तो रात में आठ बजे तक सो जाए। 6 से 8 घंटे की नींद बहुत जरूरी है। जाम में वाहनो से निकलने वाले प्रदूषक की कई बार एलर्टनेस में कमी लाते है। सीवीटीएस विभाग के प्रमुख प्रो.निर्मल गुप्ता ने कहा कि लगत दिशा में चलने के कारण सबसे अधिक एक्सीडेंट देश में  उत्तर प्रदेश में होता है। रोड और टाउन प्लानिंग पर विशेष ध्यान देने की जरूरत हैै। बाईकरनी ग्रुप की प्राची जैन ने कहा कि यही तो जाना  है सोच कर कई बार हेलमेट नहीं लगाते है लेकिन किसी को नहीं पता कहां एक्सीडेंट हो जाए। अपील किया जब भी किसी को बिना हेलमेट देखे तो बिना संकोच उसे टोके कई बार इसका असर पड़ता है। वाकहार्ट के क्षेतीय प्रबंधक अभिनेश शर्मा ने कहा कि हाथ-पैर में चोट तो ठीक हो जाती है लेकिन सिर पर लगी चोट की वजह से कई बार लोग कोमा में चले जाते है। कई बार मौत का कारण बनता है इस लिए सिर को सुरक्षित रखना जरूरी है। इस मौके पर फाउंडेशन के प्रमुख पीआरअो आशुतोष सोती ने कई लोगो के हेलमेट देकर हमेशा हेलमेट पहनने को प्ररेति किया। 1090 में तैनात भूप सिंह ने कहा कि हमेशा एक गाड़ी और दूसरी गाडी के बीच तीन गाडी के बार बर दूरी बना कर रखनी चाहिए क्योंकि आगे का वाहन कब ब्रेक ले कछ नहीं पता होता है। 

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

पीजीआइ का 36 वां स्थापना दिवस- मनोज सिंह सहित 6 लोगों को मिलेगा सम्मान

पीजीआइ का 36 वां स्थापना दिवस आज


मनोज सिंह सहित 6 लोगों को मिलेगा सम्मान
जागरण संवाददाता। लखनऊ
संजय गांधी पीजीआइ का 36 वां स्थापना समारोह आज मनाया जाएगा। समारोह मुख्य वक्ता पदम विभूषण डा. एनके गांगुली होगे जो जन समान्य की स्वाथ्य में आज का हेल्थ एजूकेशन विषय पर व्याख्यान देंगे। निदेशक प्रो.एके त्रिपाठी और डीन प्रो.एसके मिश्रा ने पत्रकार वार्ता कर बताया कि संस्थान मरीजों के हित के लिए लगातार काम कर रहा है। इमरजेंसी में बेड की किल्लत दूर करने के लिए इमरजेंसी मेडिसिसन विभाग स्थापित किया जा रहा है। समारोह शाम 5.45 पर शुरू होगा। इस मौके पर बेस्ट डीएम स्टुडेंट एवार्ड सीसीएम के डा. बीके भास्कर, बेस्ट एमसीएच स्टुडेट यूरोलाजी के डा. नवीन कुमार, बेस्ट टेक्नोलाजिस्ट आवार्ड हिमैटोलाजी विभाग के मनोज कुमार सिंह और माइक्रोबायलोजी विभाग से शत्र्तुघन सिंह को दिया जाएगा। इसके साथ ही नेफ्रोलाजी विभाग की रोसीलिना और इंडोक्राइन विभाग के मुं यूसुफ खान बेस्ट नर्स को दिया जाएगा।
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मनोज सिंह हिमौटोलाजी विभाग में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए 2005 से लगातार काम कर रहे है। यह एफेरसिस तकनीक के लिए बौन मैरो से स्टेम सेल को अलग करते है साथ इसको क्रोयो फ्रीज कर आगे के लिए सुरक्षित रखते है। इसी स्टेम सेल को ब्लड कैंसर के मरीजों में प्रत्यारोपित किया जाता है। बताया कि स्टेम सेल को जनाने के लिए सीडी 34 जांच कर सेल को परखा जाता है। 

गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

एक साल में एपेक्स ट्रामा सेंटर के 210 बेड होंगे क्रियाशील



पीजीआइ का 36 वां स्थापना दिवस गिनायी उपलब्धियां और बतायी जरूरत


एक साल में एपेक्स ट्रामा सेंटर के 210 बेड होंगे क्रियाशील
बेड और सर्जरी के लिए वेटिंग की परेशानी दूर करने की होगी कोशिश
जागरण संवाददाता। लखनऊ
संजय गांधी पीजीआइ के 36 वें स्थापना दिवस ( 14 दिसंबर) के मौके पर संस्थान के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक और एपेक्स ट्रामा सेंटर के प्रभारी प्रो. अमित अग्रवाल ने वादा किया एक साल के अंदर पर ट्रामा सेंटर में 210 बेड को क्रिया शील करेंगे। इसके लिए वह मानव संसाधान, संकाय सदस्य सहित अन्य संसाधन जुटाने के लिए हर स्चर पर कोशिश कर रहे हैं। सेंटर में फिल हाल 66 बेड क्रिया शील है जिसके जरिए 579 मरीजों में जटिल सर्जरी की गयी जिसे तमाम विशेषज्ञता शामिल है। इसके आलावा 2905 मरीजों को देखा गया साथ ही 7705 मरीज फालोअप पर है। इस मौके पर तमाम उपब्धियों और जरूरतों के बारे में बताते हुए कहा कि इमरजेंसी में बेड और सर्जरी के साथ ही विभागों में बेड की किल्लत लगातार बनी हुई है क्यों कि हमारे संस्थान की विश्वसनीयता के कारण सुपरस्पेशिएल्टी में लंबी कतार है। तत्कालीन निदेशक प्रो. राकेश कपूर के प्लानिंग के कारण हम लोग आगे वाले चुनौतियों की तैयारी कर काम किए जिसका फायदा प्रदेश के मरीजों को मिलेगा।   
-    रोबोटिक सर्जरी प्रदेश में पहली बार शुरू जिसके जरिए 55 से अधिक यूरोलाजी और सीवीटीएस सर्जरी हुई
-    इमरजेंसी मेडिसिन की स्थापना पर तेजी काम हो रहा है
-    रीनल ट्रांसप्लांट सेंटर शुरू करने के लिए काम चल रहा है
-    इंडोस्कोपी लैब का विस्तार
-    - पोस्ट आफ आईसीयू में 10 बेड का विस्तार
-    सीवीटीएल आईसीयू में 6 बेड का विस्तार
-    तीन नई ओटी
-    नया न्यूरो लैब
-    ओपीडी एचआरएफ का काउंटर का विस्तार
-    कोर लैब में नई सुविधाएं आईआरएफ से मिले पाच करोड़ से
-    संस्थान की रैंकिंग देश में तीसरा
-    शोध पत्र की गुणवत्ता और संख्या में विस्तार पर संकाय सदस्य 1.22 शोध पत्र
-    स्किल डिवलेपमेंट के लिए बायोमेडिकल स्टार्ट अप शुरू की योजना पर भारत सरकार के सहयोग से काम
-    नयी अपीडी में 134 बेड का विस्तार जिससे रेडियोलाजी, न्यूक्लियर मेडसिन रेडियोथिरेपी, पैलेटिव केयर सहित अन्य विभागों के मरीजों भर्ती करने की सुविधा     

मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

पीजीआइ में पहली बार हुआ ब्रेन स्ट्रोक का वेब तकनीक से बिना नश्तर लगाए इलाज

पीजीआइ में पहली बार हुआ ब्रेन स्ट्रोक का वेब तकनीक से बिना नश्तर लगाए इलाज

इंडो वेस्कुलर एम्बोलाइजेशन आफ ब्रेन एन्यूरिज्म यूजिंग वेब डिवाइस तकनीक हुई स्थापित
देश में कुल पांच केस में हुआ है इस तकनीक से इलाज
कुमार संजय़। लखनऊ
संजय गांधी पीजीआइ देश के उन गिने चुने संस्थान में शामिल हो गया जहां पर ब्रेन एन्यूरिज्म विथ वाइड माउथ का इलाज बिना दिमाग खोले वेब तकनीक से संभव हो गया है। इस तकनीक को डाक्टरी भाषा में इंडो वेस्कुलर एम्बोलाइजेशन आफ ब्रेन एन्यूरिज्म यूजिंग वेब डिवाइस कहते है। इस तकनीक से देश में केवल चार –पाच मरीजों में इलाज हुआ है। पीजीआइ में पहला केस इस तकनीक से किया गया जो पूरी तरह सफल रहा। तकनीक को आंजाम देने में इंटरवेंशन रेडियोलाजिस्ट प्रो. विवेक सिंह, प्रो. सूर्या नंदन, एनेस्थेसिया विशेषज्ञ डा. मनीष सिंह और आदित्य, शिवम , इंद्रजीत शामिल रहे। प्रो. विवेक सिंह के मुताबिक 60 वर्षीय उमरावती को ब्रेन स्ट्रोक हुआ जिसके बाद परिवार वाले डाक्टर के पास सीटी स्कैन में पता चला कि ब्रेन एऩ्यूरिज्म हुआ जिससे नस फट गयी दिमाग में रक्त स्राव हुआ। डाक्टर ने सीधे संस्थान के इंटरवेंशन रेडियोलाजी विभाग में भेज दिया। हम लोगों ने देखा कि एन्यूरिज्म का माउथ काफी चौडा है जिसमें प्रचलित तकनीक क्वायलिंग से इलाज जटिल था और सफलता की संभावना कम थी । हम लोगों ने इस नई तकनीक के जरिए इलाज का विकल्प पर काम किया। इसी दोबारा एन्यूरिज्म हुआ और फट गया । हम लोगों ने वेब तकनीक से दिमाग में स्थित दो मिमी की एकांम अर्टरी जहां पर एन्यूरिज्म था वहां पहुंच कर वेव को प्लांट कर दिया जिससे एन्यूरिज्म में रक्त प्रवाह बंद हो गया। मरीज पूरी तरह फिट है । बेब डिवाइस एक तरह का गुब्बारा होता जिसे नस के जरिए जहां पर एन्यूरिज्म होता है वहां फिट किया जाता है।   
क्या एन्यूरिज्म
 दिमाग की किसी नस का फैलकर उसमें खून भर जाने से कमज़ोर हो जाना( गुब्बारा बनना)।  हर साल 10 लाख से कम मामले मामले होते है।  खोपड़ी के अंदर नसों में होने वाले ज़्यादातर ऐन्यूरिज़्म दिमाग के निचले भाग और खोपड़ी के तल के बीच होते हैं।  ऐन्यूरिज़्म से खून निकल सकता है या नस फट सकती है।  जिससे बहुत ज़्यादा खून निकलता हैजो जानलेवा भी हो सकता है।
यह परेशानी तो तुरंत करें संपर्क
फटने से पहले आमतौर पर ऐन्यूरिज़्म का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता लेकिन अचानक बहुत तेज सिरदर्द होना, उल्टी  ऐन्यूरिज़्म के फट जाने का प्रमुख लक्षण है.

रविवार, 1 दिसंबर 2019

अब छोटी आंत से बच्चों में बनेगा मूत्राशय और पेशाब पर होगा नियंत्रण- पीजीआइ ने स्थापित किया तकनीक



अब छोटी आंत से बच्चों में बनेगा मूत्राशय और पेशाब पर होगा नियंत्रण


पीजीआइ ने शुरू किया बच्चों में मूत्राशय बनाने के साथ स्फिंटर रिपेययर
नर्व स्टुमुलेटर से खोजी बिखरी स्फिंटर नर्व   
कुमार संजय । लखनऊ
जंमजात बनावटी खराबी के कारण तीन वर्षीय सोनू का मूत्राशय और मूत्र नलिका नहीं बनी थी जिसके कारण पेशाब हमेशा टपकता रहता था । शरीर से हमेशा बदबू आती रहती थी। पैंट गीली रहती थी जिसको सूखा रखने के लिए तमाम उपाय घर वाले करते। संजय गांधी पीजीआइ के पिडियाट्रिक यूरोलाजिस्ट प्रो.एमएस अंसारी ने सोनू को इस परेशानी से मुक्ति दिला दी।  अब सोनू दूसरे बच्चों की तरह स्कूल जा कर मां –बाप के सपने सच कर सकेगा। जौनपुर के रहने वले रामू के परिवार में जब बच्चे ने जंम लिया तो खुशी का ठिकाना न रहा लेकिन यह खुशी ठहर नहीं सकी ,जब देखा कि पेशाब लगातार टपक रहा है। कई डाक्टर को दिखाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। यहां जांच के बाद पता चला कि मूत्राशय पूरा बना ही नहीं है।  इसके साथ ही लिंग में स्थित मूत्र नलिका भी नहीं बनी है । इसी कारण किडनी से पेशाब निकल कर लगातार बह रहा है। इस बीमारी को डाक्टरी भाषा में एक्सट्राफी ऐसपीस्पेडियास कहते है।
पांच हजार मे से एक में होती है परेशानी
 पांच हजार जंम लेने वाले बच्चों में से एक में होती है। प्रो.अंसारी के मुताबिक छोटी आंत का 15 सेमी का टुकडा  लेकर मूत्राशय बना कर अर्ध विकसित मूत्राशय बनाया इसे किडनी से निकलने वाली पेशाब की ट्यूब से जोड़ दिया।  इसके साथ लिंग में मूत्र नलिका भी बना दिया। 

पेशाब पर नियंत्रण के पहली बार शुरू किया स्फिंटर रिपेयर
 मूत्राशय के भरने पर पेशाब अपने आप हो जाता था इस परेशानी को खत्म करने के लिए 6 महीने बाद  बार मूत्राशय के पास पेशाब पर नियंत्रण रखने वाले स्फिंटर जो बिखरा पड़ा था उसे नर्व स्टुमुलेटर से खोज कर रिपेयर किया जिससे पेशाब पर भी नियंत्रण सोनू रखने लगा।  स्फिंटर रिपेयर की सर्जरी इन मामलों में हम लोगों ने पहले बार शुरू करी है । देश के दूसरे सेंटर पर बच्चों में केवल मूत्राशय ही बनाया जाता है

समय मूत्राशय न बनाने पर खराब हो जाती है किडनी
प्रो.असांरी के मुताबिक समय पर सही सर्जरी कर इस बीमारी का इलाज न होने पर बारा-बार संक्रमण ( यूरो सिस्टम) होता है जिसके कारण किडनी खराब हो जाती है। हमारे पास इस बीमारी से ग्रस्त तमाम बच्चे 15 से 16 की उम्र में किडनी खराब होने के बाद ऐसे में रिपेयर करने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। इस लिए शिशु का पेशाब टपक रहा है तो तुरंत सलाह लेना जरूरी है।