गुरुवार, 31 जनवरी 2019

पीजीआई रेजीडेंट डाक्टरों ने की एक संस्थान -एक विधान की मांग भत्ते न मिलने से होगा डाक्टरों का पलायन




पीजीआई रेजीडेंट डाक्टरों ने की एक संस्थान -एक विधान की मांग
भत्ते न मिलने से होगा डाक्टरों का पलायन


संजय गांधी पीजीआइ के रेजीडेंट डाक्टर एसोसिएशन ने एक संस्थान -एक विधान की मांग की है। एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. आशुतोष एवं महामंत्री डा. अक्षय सहित अन्य ने पत्रकार वार्ता कर कहा कि हम लोगों को संकाय सदस्यों की तरह एम्स के वेतन और भत्ते दिए जाएं। हाल में ही कैबिनेट संस्थान के शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों को एम्स के समान वेतन और भत्ते देने का फैसला लिया लेकिन हम लोगों को कोई जिक्र है। हम लोगों को ट्रांसपोर्ट एलाउंस सहित अन्य भत्ते न देने की मंशा है जबकि यह एम्स दिल्ली और पीजीआई चंडीगढ़ में दिया जा रहा है। मध्य प्रदेश सरकार के अधिकारी यहां आकर हम लोगों को आमंत्रित कर रहे है अलग से भत्ते देने को कह रहे है क्योंकि वहां पर डाक्टर नहीं मिल रहे हैं। ऐसे हालात यहां भी पैदा करने की कोशिश की जा रही है। हम लोग 14 से 18 घंटे काम करते है। भत्ते न मिलने पर रेजीडेंट डाक्टरों का पलायन होगा। अभी पहली प्राथमिकता पीजीआई लखनऊ रहती है।  संस्थान का देश के टाप  चार संस्थान में नाम है जिसमें रेजीडेंट डाक्टर का बडा रोल है। एम्स और पीजीआई चंडीगढ में हम लोगों को संकाय सदस्यों के साथ ही शैक्षणिक संवर्ग माना जाता है। संस्थान में 70 हजार हर साल फीस है जबकि राजस्थान में 18050 रूपया फीस है यहां पर कम वेतन दिया जाता जो फीस से एडजस्ट हो जाता है। निदेशक प्रो. राकेश कपूर का कहना है कि नियमानुसार जो हक होगा इन्हे मिलेगा।  

शैक्षणिक संवर्ग का यह तर्क
- मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया के नियमानुसार  रेजीडेंट के तीन साल को सहायक प्रोफेसर की तैनाती में शैक्षणिक अनुभव माना जाता है 
- एम्स दिल्ली और पीजीआई चंडीगढ़ में हम लोगों को संकाय सदस्यों के साथ रखा गया है
- रेजीडेंसी रूल के अनुसार सारे भत्ते देय है
- सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में भी रेजीडेंट डाक्टरों को सारे भत्ते देय है 


मंगलवार, 29 जनवरी 2019

पीजीआई में आयुष्मान के तहत इलाज शुरू

पीजीआई में आयुष्मान के तहत महिला मरीज का पहला रजिस्ट्रेशन हुआ

पीजीआई में आयुष्मान योजना के तहत गुरुवार को महिला मरीज का पहला
रजिस्ट्रेशन हुआ। रेडियोथीरेपी विभाग के डॉक्टरों ने फैजाबाद निवासी
कैंसर पीड़ित मंजू तिवारी का इलाज शुरू कर दिया है। इसके अलावा एक अन्य
मरीज राजकुमार का आयुष्माना योजना के तहत कार्ड बनाया गया।  प्रदेश सरकार
द्वारा एक करोड़ रुपये मिलने के बाद संस्थान ने आयुष्मान योजना पर काम
शुरू कर दिया था।
 पीएमएसएसवाई बिल्डिंग में बने आयुष्मान योजना के काउंटर पर गुरुवार को
कैंसर पीड़ित मंजू का रजिस्ट्रेशन किया गया। संस्थान में महिला मरीज का
योजना के तहत इलाज मिलेगा। इसके अलावा कांउटर के कर्मचारियों ने एक अन्य
मरीज राजकुमार का आयुष्मान योजना के तहत कार्ड बनाया। संस्थान प्रशासन का
कहना है कि मरीज की अभी जांचे की जा रही हैं। जांच में बीमारी की पुष्टि
होने के बाद ही मरीज को आयुष्मान योजना के तहत मुफ्त में इलाज मिलेगा।
गुरुवार को अस्पताल प्रशासन विभाग के प्रमुख डॉ. राजेश हर्षवर्धन ने
गुरुवार को काउंटर पर मौजूद कर्मियों को रजिस्ट्रेशन सम्बंधी दिशा
निर्देश दिये। दिन में दर्जन भर से ज्यादा मरीजों ने काउंटर पर आकर योजना
से जुड़ी जानकारियां भी जुटायी। इन लोगों ने योजना के पात्र मरीजों के
रिकार्ड व अन्य दस्तावेज देखें।

सोमवार, 28 जनवरी 2019

पीजीआई में चार साल बाद फिर शुरू हुआ लिवर ट्रांसप्लांट - नौ साल के बच्चे के लिवर ट्रांसप्लांट की तैयारी में जुटे डॉक्टर

पीजीआई में चार साल बाद फिर शुरू हुआ लिवर ट्रांसप्लांट
- नौ साल के बच्चे के लिवर ट्रांसप्लांट की तैयारी में जुटे डॉक्टर
- बहराइच की महिला अपने बेटे को दे रही है लिवर लोब

पीजीआई में चार साल बाद फिर से लिवर ट्रांसप्लांट शुरू किया जा रहा है।
गुरुवार को बहराइच के नौ साल के सुहैल का लिवर ट्रांसप्लांट करने की दिन
भर कवायद चलती रही। देर रात में उसे लिवर ट्रांसप्लांट के लिए यूनिट में
ले जाया गया। अस्पताल के आला अफसरों ने बताया कि दर्जन भर से अधिक
डॉक्टरों की टीम रात भर लिवर ट्रांसप्लांट को सफल बनाने में जुटी रहेगी।
ट्रांसप्लांट शुरू होने से पीजीआई के अफसरों, डॉक्टरों में खासा उत्साह
है। साथ ही मरीजों को भी ट्रांसप्लांट की उम्मीद की आस जग गई है।
नौ साल के बच्चे को किया भर्ती
पीजीआई गेस्ट्रो सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. राजन सक्सेना की देखरेख में
बहराइच के सुहैल को लिवर ट्रांसप्लांट यूनिट में भर्ती रखा गया है।
विश्वस्त सूत्रों की माने तो सुहैल को उसकी मां से लिवर लोब लेकर
ट्रांसप्लांट किया जाना तय है। गुरुवार देर रात में गेस्ट्रो सर्जरी और
लिवर ट्रांसप्लांट से जुड़े वरिष्ठ डॉक्टरों की टीम यूनिट में सुहैल को
ले गई। उसके बाद से डॉक्टरों से संपर्क नहीं हो पा रहा है। माना जा रहा
है कि सुहैल का गुरुवार रात को ही लिवर ट्रांसप्लांट हो जाएगा।
चार साल पहले हुआ था ट्रांसप्लांट
पीजीआई में लंबे समय से बंद चल रहे लिवर ट्रांसप्लांट यूनिट में वर्ष
2015 में ट्रांसप्लांट शुरू किया गया था। इसके लिए गुड़गांव से लिवर
ट्रांसप्लांट के विशेषज्ञ डॉ. अभिषेक यादव को लाया गया था। तब डॉ. राजन
सक्सेना की ही टीम में डॉ. अभिषेक, डॉ. सुप्रिया शर्मा समेत अन्य
डॉक्टरों ने दो मरीजों का लिवर ट्रांसप्लांट भी किया था। पर, डॉ. अभिषेक
के अचानक से संस्थान छोड़ने पर एक बार फिर से लिवर ट्रांसप्लांट को झटका
लग गया था।
वर्जन
पीजीआई में लिवर ट्रांसप्लांट की यूनिट बिल्कुल तैयार है। सभी डॉक्टर
जल्द ही एक बच्चे का लिवर ट्रांसप्लांट करने वाले हैं। काफी उम्मीद के
साथ डॉक्टरों की टीम इसे सफल बनाने में जुटी है।
डॉ. राकेश कपूर, निदेशक, पीजीआई

मंगलवार, 15 जनवरी 2019

अब कनाडा सुधारेगा नवजातों की सेहत-बनेगा नियोनेटल एडवांस सिमुलेशन ट्रेनिंग रिसर्च सेंटर

अब कनाडा सुधारेगा नवजातों की सेहत


पीजीआइ  कनाडा के साथ मिल कर नवजात बच्चों के एक्सीलेंस केयर के लिए बनाएगा ट्रेनिंग सेंटर

कनाडा के सहयोग से खुलेगा  नियोनेटल एडवांस सिमुलेशन ट्रेनिंग रिसर्च सेंटर   

जागरण संवाददाता। लखनऊ

संजय गांधी पीजीआइ का नियोनेटल विभाग कनाडा के टोरेंटो स्थित मेडिकल संस्थान के साथ नवजात बच्चों के एक्सीलेंस केयर के लिए ट्रेनिंग सेंटर तैयार करेगा। इस सेंटर प्रदेश के नवजात बच्चों से जुडी बीमारी के इलाज के लिए अति विशिष्ट प्रशिक्षण दिया जाएगा। इससे नवजात बच्चों के मृत्यु दर में कमी आने की उम्मीद है। नियोनेटल विभाग के प्रमुख प्रो. गिरीश गुप्ता, कनाडा के माउंट सिनी हास्पिटल के डा. सूकी ली और विश्व स्वास्थ्य संगठन के डा. राजीव बहल ने बताया कि नवजात बच्चों के केयर में अभी बहुत सुधार की जरूरत है जिसे पूरा करने के लिए डाक्टर के साथ ही नर्सेज को प्रशिक्षण की जरूरत है। कनाडा इसके लिए अपने विशेषज्ञ पीजीआई भेजेगा। ट्रेनिंग के साथ ही रिसर्च पर जोर दिया जाएगा जिससे भारतीय स्थिति के अनुसार गाइड लाइन बनायी जा सकेगी। बताया कि नियोनेटल एडवांस सिमुलेशन ट्रेनिंग रिसर्च सेंटर बनाया जाएगा। 


न्यू बार्न केयर में सुधार की जरूरत
विशेषज्ञों ने बताया कि प्रदेश में 174 न्यू बार्न केयर सेंटर है लेकिन यहां पर इलाज की गुणवत्ता में काफी सुधार की जरूरत है। इंफेक्शन कंट्रोल, रिसपाइरेटरी सपोर्ट सहित कई कमियां है। यह केवल एक डाक्टर से संभव नहीं है वहां पर नर्सेज को सी पैप के लिए चलाने के लिए काफी ट्रेनिंग की जरूरत है। इसमें लगातार ऐसे केयर देना जिसमें फेफड़े और दिमाग को क्षति न हो जिसकी अधिक आशंका रहती है। प्रदेश में एक हजार में से 37 नवाज की मौत हो जाती है जिसको कम करने की जरूरत है।    


नवजात में होती है तीन बडी परेशानी
-30 फीसदी में नवजातो में इंफेक्शन होता है जिसके कारण निमोनिया, सेप्टीसीमिया, बेहोशी सहित कई परेशानी होती है। 
- 30 फीसदी नवजात जो 39 सप्ताह से पहले जंम लेते है उनमें सांस लेने में परेशानी के साथ, आंत, दिमाग कम विकसित होने की परेशानी होती है
- 15 से 20 फीसदी बच्चों में बर्थ एफेक्सिया जिसमें जंम के समय तुरंत आक्सीजन की पूर्ति न होने के कारण कई परेशानी होती है।  

एडवांस ट्रेनिंग एंड रिसर्च सेंटर खुलने से प्रदेश के नवजात विशेषज्ञों को अच्छी ट्रेनिंग मिलेगी । इससे प्रदेश के नवजातों को अच्छा इलाज मिलेगा । सरकार को प्रस्ताव भेजा जा रहा है......प्रो.राकेश कपूर निदेशक एसपीजीआइ लखनऊ 

शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

...हर पांचवा स्लीपिंग डिसआर्डर का शिकार-स्लीपिंग पिल खडी कर सकता है कई परेशानी

....हर पांचवा स्लीपिंग डिसआर्डर का शिकार

डिसआर्डर के शिकार 20 फीसदी ले रहे है गोली के सहारे नींद
स्लीपिंग पिल खडी कर सकता है कई परेशानी

कुमार संजय। लखनऊ
देश और प्रदेश के हर पांचवें व्यक्ति स्लीपिंग डिसआर्डर का शिकार है। इनमें से 20.3 फीसदी लोग इस परेशानी से स्लीपिंग पिल का सहारा लेते हैं।  विशेषज्ञों का कहना है यह सही है कि कुछ समय के लिए यह गोलियां सुकून देती हैं लेकिन इनकी आदात डाल लेना परेशानी खडी करता है। डॉक्टरों की मानें तो नींद की गोलियां ज्यादा खाने से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। वैज्ञानिकों ने नींद की दवाओं में मौजूद तत्व जोपिडेम को दिल की बीमारियों की वजह बताया है। रोजमर्रा के रूटीन में फेरबदल कर नींद की गोलियों से बचा जा सकता है। संजय गांधी पीजीआई के न्यूरोलाजिस्ट प्रो.संजीव झा कहते है कि भाग-दौड़ की जिंदगी, जिंदगी की रेस में आगे निकलने की चाहत, तनाव, सोशल मीडिया( फेसबुक, व्हाटसअप आदि) पर अधिक समय देने के साथ खान पान स्लीपिंग डिसआर्डर का बडा कारण है।  
कोमा का खतरा 
जो लोग रोज एक गोली लेने के बजाए उससे ज्यादा गोलियां खाते हैंउनके कोमा में जाने का खतरा होता है। रीढ़ की हड‌्डी और दमे की दिक्कत वाले मरीजों के लिए यह खतरा और ज्यादा होता है। इन गोलियों से ब्लड प्रेशरसिरदर्द और स्नायु संबंधी रोग हो जाते हैं। 

याददाश्त बिगड़ना 
लंबे समय तक नींद की गोलियां लेने से याददाश्त कमजोर हो जाती है। नींद की गोलियां नर्वस सिस्टम को कमजोर कर देती हैं। इससे नर्वस सिस्टम संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। रक्त नलिकाओं में थक्के भी बन जाते हैं। हाई डोज में गोलियां लेने से भूख घट जाती 

थकान महसूस होना 
रोजाना नींद की गोलियां लेने से हर समय आलस्यसुस्ती और थकान रहती है। 

मोटे लोगों के लिए खतरा अधिक 
वैसे लोग जो मोटापे का शिकार हैं उन्हें तो भूल से भी नींद की गोलियां नहीं लेनी चाहिए वरना खतरा बढ़ जाता है।


कैसे लें अच्छी नींद
- एल्कोहल से बचे
- सोने के दो घंटे चाय, काफी न लें  कैफीन का असर से तीन से चार घंटे रहता है
- डिनर और जंक फूड में सैचुरेटेड फैट होता है जो पाचन सिस्टम को धीमा करता है इससे नींद नहीं आती है।
- डार्क चाकलेट न लें इसमें थ्रिएब्रोमाइन नाम का उत्तेजक पदार्थ होता है हार्ट रेट बढाता है। बेचैनी के साथ असहजता महसूस होती है। 

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

........पीजीआइ फुल-- गंभीर मरीज को सीधे न लेकर आएं पीजीआइ

...........पीजीआइ फुल
गंभीर मरीज को सीधे न लेकर आएं पीजीआइ-निदेशक
केस समरी लेकर पहले डाक्टर लें सलाह आईसीयू में 150 वेंटिंग
जागरण संवाददाता। लखनऊ 

संजय गांधी पीजीआइ संस्थान प्रशासन ने साफ कहा कि गंभीर मरीज को सीधे लेकर न आएं। देखा गया है कि गंभीर मरीज जिन्हे वेंटीलेटर, आईसीयू की जरूरत होती है सीधे लेकर संस्थान में चले आते है यहां पर पहले बेड फुल होने के कारण मरीजों को भर्ती नहीं कर पाते हैं। ऐसे में मरीज को परिजनों को निराशा हाथ लगती है और मरीज के जान को खतरा हो सकता है। निदेशक प्रो. राकेश कपूर और मुख्य चिकित्सा अधीक्षख प्रो. अमित अग्रवाल ने पत्रकार वार्ता कर  प्रदेश भर लोगों से अपील किया कि पहले मरीज की केस समरी लेकर यहां संपर्क करें जैसा विशेषज्ञ सलाह दें उस पर अमल करें। यह जरूरी नहीं है कि मरीज यही लाने से सुधार हो सकता है हम लोग दवा दूसरे सलाह भी देंगे जिससे मरीज  जहां भर्ती वहां पर भी आराम मिल सकता है। प्रो. कपूर ने बताया कि हमारे यहां आईसीयू के लिए 150 से अधिक वेंटिग है। इमरजेंसी में तीस बेड है जो हमेशा फुल रहते हैं। देखा गया है कि गंभीर लेकर लोग इमरजेंसी के बाहर घंटे पडे रहते है ऐसे में मरीज के तीमारदार जान -बूझ कर जान खतरें में डालते हैं। संस्थान प्रशासन ने लिखित अपील भी जारी किया है जिसमें यह कहा गया है कि गंभीर मरीज सीधे लेकर न आएं लेकिन लोग अभी भी सीधे लेकर चले आ रहे हैं। खास तौर पर जिले के अस्पताल और निजि नर्सिग होम बिना स्थित जाने मरीज को रिफर कर देते हैं। 

वेटिंग
इमरजेंसी- 30 -फुल
आईसीयू( सीसीएम) - 18 - 150 वेंटिंग
गैस्ट्रो मेडिसिन- 76  -फुल
न्यूरो मेडिसिन-76 - फुल
नूरो सर्जरी-76- फुल
नेफ्रोलाजी- 76 -फुल
गैस्ट्रो सर्जरी- 76 -फुल
 

रविवार, 6 जनवरी 2019

कैस्प थिरेपी से आएगी स्ट्रोक के बाद हाथ-पैर में जान

कैस्प थिरेपी से आएगी स्ट्रोक के बाद हाथ-पैर में जान

पीजीआइ के न्यूरोलाजिस्ट प्रो.सुनील प्रधान ने खोजा नया तरीका
न्यूरोलाजी इंडिया मेडिकल जर्नल किया नए तरीके की थिरेपी को स्वीकार
कुमार संजय। लखनऊ
संजय गांधी पीजीआइ के  न्यूरोलाजिस्ट  पदम श्री प्रो.सुनील प्रधान ने ब्रेन स्ट्रोक के बाद मरीजों के हाथ -पैर में जान (ताकत) डालने के लिए नया तरीका खोजा है।   कैस्प( करेक्टेड एसिस्सटेड सिंक्रोनाइज्ड पियारोडिक )  थिरेपी नाम दिया है। इस थिरेपी के सफलता जानने के लिए स्ट्रोक के बाद 61 मरीजों पर शोध किया । 31 मरीजों को कैस्प थिरेपी के अनुसार हाथ-पैर का एक्ससाइज कराया और 30  मरीजों को प्रचलित फिजियोथेरेपी के जरिए एक्साइज कराया। तीन से 6 महीने थिरेपी देने के बाद हाथ-पैर में कमजोरी में कमी, मांसपेशियों की दृढ़ता का स्कोर देखा तो पता चला कि कैस्प थिरेपी वाले मरीजों प्रचलित तरीके के मुकाबले  कैस्प थिरेपी वाले मरीजों के हाथ-पैर में कमजोरी अधिक दूर हुआ। मांशपेशियों की जकड़न भी कम हुई। इस थिरेपी के न्यूरोलाजी इंडिया स्वीकार करते हुए कहा है कि इस थिरेपी से स्ट्रोक के मरीज को अधिक दिनों तक दूसरे के सहारे नहीं रहना पड़ेगा। प्रो.सुनील प्रधान का कहना है कि स्ट्रोक के बाद मरीजों की मांशपेशियां में जकड़न हो जाती है। मांश पेशियां कमजोर हो जाती है जिसके कारण ज्वाइंट मे भी जकड़न हो जाती है। इस कारण मरीजों दूसरे पर आश्रित रहता है। यंग ऐज के लोग काम पर नहीं जा पाते है जिसके कारण वह मानसिक और सामाजिक रूप से कमजोर हो जाते हैं।
 
क्या है कैस्प थिरेपी
- हाथ-पैर को सही स्थित में लाना
- जितना हाथ-पैर अपने -आफ चला सकता है उससे आगे सहारा देकर चलाना
- शरीर के दूसरे हाथ का सहारा न लेना
- इस प्रक्रिया को दोर से पांच से 6 बार करना 

पांच मिनट में ही आ गया हल्का सुधार
गोंडा की रहने वाली 86 वर्षीय जामवंती देवी के तीन महीने पारसियल ब्रेन स्ट्रोक पडा जिसके कारण बायां हिस्से में कमरोजी आ गयी है। इनके बेटे प्रेम शंकर डाक्टर को दिखाए तो उन्होंने दवा के साथ सामान्य मालिश करने की सलाह दी। इससे खास सुधार न होने पर वह माता को लेकर पीजीआई न्यूरोलाजी ओपीडी में प्रो.सुनील प्रधान के पास आए उऩ्होंने सीटी स्कैन देखने के बाद बताया कि ब्रेन स्ट्रोक के कारण कमजोरी आयी है । इनका हाथ बहुत कम चल रहा था । प्रो.प्रधान ने कैस्प थिरेपी के तहत हाथ का एक्ससाइज पांच मिनट कराया तो हल्की -हल्की मुट्ठी बंद होने लगी। हाथ थोड़ा -थोडा आगे पीछे होने लगा।

अब एआरबी संभालेगा किडनी की सेहत


अब एआरबी संभालेगा किडनी की सेहत


डायबटीज और उच्च रक्तचाप के कारण प्रभावित किडनी की खराबी दूर करना संभव
कुमार संजय। लखनऊ
डायबटीज और उच्च रक्त चाप के कारण चालिस फीसदी लोगों की किडनी कम काम करने लगती है। इस खराबी को समय से दूर कर दिया जाए तो किडनी को पूरी तरह खराब होने से बचाया जा सकता है। संजय गांधी पीजीआइ के किडनी रोग विशेषज्ञ प्रो.नारायन प्रसाद ने  बताया कि एआरबी( एंजियोटेंनसिन रिसेप्टर ब्लाकर) दवाएं रेनिन एंडियोटेंनसिन एल्डोस्ट्रान सिस्टम पर क्रियाशील होती है जिससे रक्त चाप कम होता है। इसके साथ ही किडनी का जीएफआऱ भी बढ़ जाता है। एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि 55 ऐसे किडनी के मरीजों को एआरबी( टेलमीसारटन) दिया गया जिसमें से 96.3 फीसद हाइपरटेंसिव और 63.61 फीसद डायबटिक थे। इनको तीन महीने 40 मिलीग्राम दो बार देने दिया गया। देखा गया कि रक्त दाब कम हुआ साथ ही जीएफआर( ग्लूमर फिल्टरेशन रेट) बढ़ गया है। जीएफआर से किडनी कितना विषाक्त तत्व छान रही है इसका पता चलता है। सिरम क्रिटएनिन भी कम हुआ। प्रो.नरायन का कहना है कि पेशाब में प्रोटीन आते ही यदि सही इलाज दिया जाए तो किडनी को पूरी तरह खराब होने से बचाया जा सकता है। 

क्या करता है एआरबी
प्रो. नरायन ने बताया कि यह दवा किडनी से छन कर निकलने वाले खून वाली नली पर बदाव करती है जिससे किडनी पर प्रेशर कम हो जाता है। किडनी में खून का छानने के लिए ग्लूमर होते है। इस पर दबाव होने पर अधिक ग्लूमर अधिक फिल्टरेशन करने लगता है जिससे हाइपर फिल्टर इंजरी हो जाती है। इससे फिल्टरेशन कम हो जाता है। 

आठ फीसदी लोग डायबटिक

8.03फीसदी लोग डायबटीज के गिरफ्त में है। पुरूषों के मुकाबले महिलाएं अधिक डायबटीज के चपटे में है। देखा गया कि डायबटीज ग्रस्त लोगों में से 9.91 फीसदी महिलाएं और 6.79 फीसदी पुरूष चपेट में हैं। इसी तरह 10 से 15 फीसदी लोग उच्च रक्त चाप के चपेट में ऐेसे में किडनी की खराबी की आशंका अधिक लोगों में है। 
   


पीजीआइ ने खोजा एंजियोप्लास्टी के सुरक्षित बनाने का नुस्खा- टीएमजेड करेगा दिल की मांसपेशियों की रक्षा


पीजीआइ ने खोजा एंजियोप्लास्टी के सुरक्षित बनाने का नुस्खा


टीएमजेड करेगा एंजियोप्लास्टी के दौरान दिल की मासपेशियों की रक्षा
एंजियोप्लास्टी के सात दिन पहले से ही देनी होगी टीएमजेड की खुराक
कुमार संजय। लखनऊ

एंजियोप्लास्टी को और सुरक्षित बनाने का नुस्खा संजय गांधी पीजीआइ के हृदय रोग विशेषज्ञों ने खोज  है। इस खोज को इंडियन जर्नल आफ हार्ट ने स्वीकार किया है। विशेषज्ञों ने दिल के 98 मरीजों में शोध के बाद कहा है कि एंजियोप्लास्टी( प्रीक्यूटेनियस कोरोनरी इंटरवेंशन) के सात दिन पहले यदि मरीज को ट्राइमीटाजाइडीन रोज 70 मिलीग्राम दियाजाए तो इंटरवेंशन के दौरान के दौरान दिल की मांसपेशियों को  होने वाले नुकसान में कमी लायी जा सकती है। संस्थान के हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो.आदित्य कपूर की अगुवाई में हुए शोध में शामिलप्रो. सुदीप कुमारप्रोनवीन गर्ग , प्रो.सत्येंद्रतिवारीप्रो. रूपाली खन्नाडा. दानिशडा. अर्चना सिन्हाडा. पी अंबेशडा. श्रीधर कश्यप  ने रोल आफ मेटाबोलिक मनीपुलेटर इन लिमिटिंग पीसीआई इंड्यूज्ड मयोकार्डियल इंजरी विषय पर शोध किया। दिल के 48 मरीजों को टीएमजेड 35 मिग्री दो बार इंटरवेशन से पहले दिया गया। 50  मरीजों को पहले से तय मानक पर रखा गया। दोनों वर्ग के मरीजों में दिल की इंजरी को बताने वाले ट्रोपोनिन –आई और सीके ( क्रेटनिन काइनेज) एमबी का स्तर खून में आठ घंटे और 24 घंटे पर देखा गया। पता चला कि टीएमजेड पर रहने वाले मरीजों के दिल की मांसपेशियों में इंजरी का स्तर बताने वाले मार्कर का  स्तर  कम था। इससे साबित हुआ कि टीएमजेड एंजियोप्लास्टी करने से पहले शुरू कर दिया जाए तो दिल की मांसपेशियों में इंजरी कम होगी। प्रो. आदित्य कपूर ने कहा कि दिल की बीमारी के इलाज एंजियोप्लास्टी काफी अहम साबित हो रही है 70 फीसदी से अधिक लोगों में औपेन सर्जरी की जरूरत खत्म हो गयी है। इस तकनीक को और सुरिक्षत बनाने में यह काफी महत्व पूर्ण है।   

क्या है करता है टीएमजेड
ट्राइमीटाजाइडीन मेटाबोलिक माडीलयूलेटर है जो फैटी एसिड को कार्बोहाइड्रेट में बदलता है। इससे दिल की मांसपेशियों में आक्सीडेशन बढ़ जाता है। दिल में रक्त प्रवाह बढ़ जाता है। इससे दिल की मांसपेशियों में इंजरी कम होती है। मांसपेशियों में अधिक इंजरी से दिल की पंपिंग क्षमता कम हो जाती है। इससे कई बार हार्ट फेल्योर की स्थित हो जाती है।

क्या है एंजियोप्लास्टी और कब पड़ती है जरूरत  


एंजियोप्लास्टी ब्लॉक हो चुकी दिल की धमनियों को सर्जरी से खोलने का एक तरीका है। इसमें नस के जरिए जहां रूकावट होती है वहा पहुंत कर उसे खोल कर उस जगह पर दोबारा सिकुडन हो इसके लिए स्टंट लगाया जाता है। कोरोनरी  धमनियां दिल की मांसपेशियों को ऑक्सीजन और पोषक तत्वों से भरपूर रक्त की आपूर्ति करती हैं। जब इन धमनियों में रुकावट आ जाती है तो ये हृदय की मांसपेशियों तक सही ढंग से ब्लड की सप्लाई नहीं कर पातीं। नतीजतन इससे एन्जाइना पेन (सीने में दर्द ) शुरू हो जाता है। ऐसी स्थिति में कुछ रोगियों को एंजियोप्लास्टी की आवश्यकता हो सकती है।