अब युवाओं में भी कॉक्लियर इम्प्लांट सफल
-पीजीआई ने पढ़ने व नौकरी पेशा वाले 50 युवाओं का किया कॉक्लियर इंप्लांट
कुमार संजय
अब सात वर्ष के बच्चों की तरह दिमागी बुखार व दूसरे संक्रमण से सुनने की क्षमता गंवा चुके युवाओं में भी कॉक्लियर इंप्लांट सफल है। संजय गांधी पीजीआई ने दो वर्ष में पढ़ने और नौकरी पेशा वाले 50 युवाओं का इम्प्लांट किया है। इनकी उम्र 18 से 45 वर्ष के बीच है। इनमें से 48 युवाओं को 95 फीसदी सुन सकते हैं। बचे दो 60 फीसदी तक ही सुन सकते हैं। इम्पलांट के बाद यह भी सामान्य युवाओं की तरह पढ़ाई और अन्य कामकाज कर रहे हैं। पीजीआई के न्यूरो ऑटोलॉजी विभाग के प्रो. अमित केसरी ने यह कॉक्लियर इंप्लांट किये हैं। अक्तूबर में यह पेपर इंडियन जर्नल में प्रकाशित हुआ।
90 फीसदी से अधिक सुनाई देने लगा
पीजीआई के न्यूरो ऑटोलॉजी विभाग के प्रो. अमित केसरी ने बताया कि 50 युवाओं में किये गए कॉक्लियर इंप्लांट के अच्छे परिणाम आए हैं। इंप्लांट के बाद यह 90 से 95 फीसदी तक सुन सकते हैं। इंप्लांट के बाद इन युवाओं में एक उम्मीद जगी है। अब यह सामान्य युवाओं की तरह पढ़ाई, नौकरी व अन्य दूसरे कामकाज निपटा रहे। अब इन युवाओं को सुनाई न देने की वजह से स्कूल व कार्यालय में सहपाठी व अन्य से इन्हें हीन भावना व ताने सुनने से निजात मिल गई है।
इनमें कारगर है कॉक्लियर इम्प्लांट
प्रो. अमित केसरी का कहना है कि युवाओं में न सुनाई देने की समस्या जन्मजात नहीं होती है। यह सुन नहीं सकते हैं, लेकिन बोल व समझ सकते हैं। इनमें दिमागी बुखार, ऑटो इम्यून डिजीज व संक्रमण की वजह से सुनने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती है। संक्रमण की वजह से सुनने वाली नसे सूख जाती हैं। जिसकी वजह से 10 से 15 साल बाद दोनों कानों से सुनाई देना बंद हो जाता है। हेयरिंग हेड भी काम नहीं करता है। ऐसे में इंप्लांट ही आखिरी विकल्प बचता है। इम्पलांट में करीब साढ़े पांच लाख रुपये का खर्च आता है।
यह हैं कारण
-आनुवांशिक
-दिमागी बुखार
-ऑटो इम्यून डिजीज
-संक्रमण
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