सोमवार, 20 जनवरी 2025

कबूतर व तोते के पंखों के संपर्क में लंबे समय तक रहते हैं तो फेफड़े की दुर्लभ

 

 बीट से फेफड़े की बीमारी का खतरा


अगर आपके घर के आस-पास कबूतरों का डेरा है या घर में पक्षी पले हैं तो यह आपके लिए खतरे की घंटी हो सकती है। कबूतर व तोते के पंखों के संपर्क में लंबे समय तक रहते हैं तो आप फेफड़े की दुर्लभ और गंभीर बीमारी हाइपर संसिटिविटी न्यूमोनाइटिस की चपेट में आ सकते हैं। वैसे तौ यह एक तरह की एलजीं है, लेकिन यह धीरे- धीरे फेफड़े को खोखला बना सकती है।


पक्षियों से होनी वाली वीमारियों के संबंध में विकास मिश्र की रिपोर्ट-


लखनऊः कबूतर जैसे अन्य पक्षियों के संपर्क में लंबे समय तक गाना आपकी सेहत के लिए घातक हो सकता है। केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष प्रो. सूर्यकांत का कहना है कि हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस को यर्ड फैनसियर के फेफड़े के रूप में भी जाना जाता है, जो पक्षियों की बोट या पंखों के संपर्क में लंबे समय तक रहने के कारण होता है।


इसके अलावा बैक्टोरिया, फंगी, एनिमल एंड प्लांट प्रोटीन के साथ दूसरी एलर्जी भी हदपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस का कारण हो सकते हैं। लक्षण को पहचान कर समय से सटीक इलाज करने पर बीमारी पूरी तरह ठीक हो सकती है। रोजाना ओपीडी में आने वाले 100 में से 10 मरीज हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस के लक्षण वाले होते हैं।


कैसे करें बचाव


यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। इससे बचाव ही सबसे अच्छा उपचार है। अगर आप ऐसी जगहों पर काम करते हैं या रहते है, जहां पक्षियों, लकड़ी, कागज या अनाज है तो अच्छी गुणवता का मास्क लगाएं। घर के अंदर, बाहर और कबूतर, तोता या किसी पक्षी को न पालें और न ही दाना डालें।


घर को चिड़ियाघर न बनाएं, लक्षण को पहचानें: प्रो. सूर्यकांत प्रो. सूर्यकांत कहते हैं, आजकल घर के अंदर पशु- पक्षी पालने का चलन बढ़ गया है, लेकिन ज्यादातर लोग इस बात से बेफिक्र होते हैं कि इससे उनके स्वास्थ्य को भी खतरा रहता है। दरअसल, कुछ पशु पक्षी के पंखों के छोटे कण सांस की नली में एलजीं पैदा करते हैं, जिसकी वजह से सांस की नली में सिकुड़न आ जाती है। धीरे-धीरे इसका दुष्प्रभाव फेफड़े को होता है, जी हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस का


लक्षणों को पहचानें


सांस लेने में परेशानी, सूखी खांसी, छाती में तनाव, थकान, कमजोरी व लंबे समय तक बुखार मांसपेशियों में दर्द होना, वजन घटने लगना


अंगुली या पैर की अंगुली का मुड़ना


कारण बनता है। न्यूमोनाइटिस में मरीज के फेफड़े और सांस की नली में सूजन आ जाती है। कई बार डाक्टर इसके लक्षण की अस्थमा या टीबी मानकर इलाज करते हैं। ऐसे में गलत इलाज और शुरुआती लक्षण को नजरअंदाज करने से फेफड़े में फाइब्रोसिस (फेफड़े का सिकुड़न) हो सकता है। फाइब्रोसिस होने पर फेफड़े का एक हिस्सा निष्क्रिय हो जाता है और उतना हिस्से में आक्सीजन का प्रवाह नहीं होता है।


200 बीमारियों

का एक समूह है आइएलडी जिसमें हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस भी एक है।


10 शहरों के 27 केंद्रों पर आइएलडी मरीजों का पंजीकरण कराया गया


1,084 मरीजों पर


किया

: हो चुका है शोध


एचएसआइएलडी- 47.3%


सीटीडी आइएलडी-13.9%


आइपीएफ-13.7%


 आइएनएसआइपी-8.5%


सारकोहोसिस-7.8%


न्यूमोकोनियोसिस- 3%


अन्य समस्याएं मिलीं-5.7%


एडवांस स्टेज में लाइलाज है बीमारी


 प्रो. सूर्यकांत के मुताबिक, अगर समय से सही उपचार न हो तो धीरे-धीरे मरीज का आक्सीजन स्तर 90 के नीचे आ जाता है और मरीज गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है, जहां से उबरना मुश्किल हो जाता है। ऐसे रोगी का जीवन अधिकतम एक से पांच वर्ष तक होता है। कुछ मरीजों को लंग ट्रांसप्लांट की भी जरूरत पड़ती है। अगर किसी व्यक्ति दो सप्ताह से अधिक खासी आ रही है तो उसे बलगम और एक्सरे की जांच जरूर कराना चाहिए। बलगम की जांच रिपोर्ट निगेटिव हो सकती है, लेकिन एक्सरे में फेफड़े की सिकुड़न (फाइब्रोसिस) दिखेगी। इस बीमारी की सटीक पहचान के लिए दो जांच जरूरी है। पहली हाई रिजुलेशन सीटी स्कैन और दूसरी पीएफटी। तीन से छह माह में बीमारी की पहचान कर सही इलाज हो तो पूरी तरह ठीक होना संभव है। लक्षण दिखने पर रेस्थिरेटरी मेडिसिन के विशेषज्ञ को ही दिखाएं। अगर आप छत पर गौरैया या अन्य छोटे पक्षी को दाना डालते हैं तो डरने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इनसे कोई खतरा

 200बीमारियों

का एक समूह है आइएलडी जिसमें हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस भी एक है।


10 शहरों के 27 केंद्रों पर आइएलडी मरीजों का पंजीकरण कराया गया


1,084 मरीजों पर


किया गया अध्ययन


में यह शोध 2017 अमेरिकन


जर्नल में प्रकाशित

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें