ट्रांसप्लांट एसोसिएटेड इंफेक्शन पर वर्कशाप एवं सीएमई
एक बार में एक ही नमूने लगेगा 15 से अधिक संक्रमण का पता
मल्टीप्लेक्स पीसीआऱ शुरू करने वाला पहला केंद्र
अंग प्रत्यारोपण के बाद 50 से 80 फीसदी में होती है संक्रमण की आशंका
वायरस, फंगस, बैक्टीरिया और परजीवी है ट्रांसप्लांट कराए लोगों के दुश्मन
अब किसी मरीज में किस तरह का और किस बैक्टीरिया या वायरस, फंगस या परवीजी का संक्रमण है एक बार पता लगाना संभव हो गया है। संजय गांधी पीजीआई मल्टीप्लेक्स पीसीआर शुरू करने जा रहा है। इस परीक्षण से एक बार में ही 15 से अधिक संक्रामक का पता एक ही नमूने से एक बार में लगेगा। मरीज का अलग –अलग परीक्षण नहीं करना पड़ेगा। एक बार संक्रामक का पता लगने से इलाज जल्दी शुरू होगा। मरीज को काफी राहत भरा होगा। इसी माह यह परीक्षण शुरू हो जाएगा। विभाग की प्रमुख प्रो. रूंगमी एस के मर्क ने बताया कि किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट के बाद संक्रमण की आशंका 50 से 80 फीसदी की रहती है। संक्रमण का पता सही समय पर लग जाए तो दवाओं से संक्रमण को खत्म कर इन्हें लंबी और सफल जिंदगी मिल सकती है। इनमें वायरल फंगल संक्रमण की आशंका सबसे अधिक होती है। इसके बाद बैक्टीरियल और पैरासाइट के संक्रमण की आशंका रहती है। विभाग द्वारा ट्रांसप्लांट एसोसिएटेड इंफेक्शन पर आयोजित सीएमई एवं वर्कशाप में एरा मेडिकल कालेज की प्रो. विनीता खरे, एसजीपीजीआई के प्रो. चिन्मय शाहू और डा. आशिमा ने बताया कि ट्रांसप्लांट के मरीजों में इम्यूनोसप्रेसिव चलता है जिससे प्रत्यारोपित अंग के शरीर एंटीबॉडी न बने और शरीर अंग को स्वीकार करे। इण्यूनोसप्रेसिव की वजह से इण्यून सिस्मटम कमजोर रहता है। न्यूट्रोफिल की कमी हो सकती है जिसके कारण वायरल और फंगल इंफेक्शन की आशंका अधिक रहती है।
यह परेशानी तो तुरंत ले सलाह
प्रो. मर्क ने कहा कि संक्रमण के लक्षण बुखार, कमजोरी और थकान महसूस कम भूख की परेशानी होने पर तुरंत अपने ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर को भी संक्रमण के बारे में सोचना चाहिए । देखा गया है कि ट्रांसप्लांट कार चुके लोगों में टीबी संक्रमण की भी आशंका रहती है। सही समय पर संक्रमण के कारण का पता लगा कर सही इलाज से काफी हद तक इन्हें बचाया जा सकता है।
यह है ट्रांसप्लांट कराए लोगों के दुश्मन
वायरस
-हरपीस समूह (सीएमवी, ईबीवी, एचएचवी6, 7, 8, एचएसवी, वीजेडवी)
-हेपेटाइटिस वायरस (एचएवी, एचबीवी, एचसीवी, एचईवी)
-रेट्रोवायरस (एचआईवी, एचटीएलवी-1 और 2)
- वेस्ट नाइल (डब्ल्यूएनवी), लिम्फोसाइटिक कोरियोमेनिनजाइटिस वायरस, रेबीज
जीवाणु
-ग्राम-पॉजिटिव और ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया ( स्टैफिलोकोकस एसपीपी., स्यूडोमोनास एसपीपी., एंटरोबैक्टीरियासी, रोगाणुरोधी-प्रतिरोधी जीव), लीजिओनेला एसपीपी।
-माइकोबैक्टीरिया (क्षय रोग और गैर तपेदिक)
-नोकार्डिया एसपीपी
फंगस
-कैंडिडा एसपीपी.
-एस्परगिलस एसपीपी.
-क्रिप्टोकोकस एसपीपी.
- सेडोस्पोरियम , म्यूकोर्मिकोसिस के एजेंट, फियोहाइफोमाइकोसिस)
परजीवी
-टोकसोपलसमा गोंदी
-ट्रिपैनोसोमा क्रूज़ी
-स्ट्रांगाइलोइड्स स्टेरकोरेलिस
-लीशमैनिया एसपीपी।
- बालामुथिया एसपीपी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें