रविवार, 25 अप्रैल 2021

हेलो अंबरीश.....कैसे हैं.....................कोई परेशानी तो तुरंत बताएं..पीजीआई के विभाग के प्रमुख ले रहे है हाल

 







पीजीआइ- हेलो अंबरीश कैसे हो कोई परेशानी हो तुरंत बताएं

विभाग के संकाय सदस्य ऐसे ही लें जिम्मेदारी तो नहीं परेशान होंगे संक्रमित


केस- हेलो अंबरीश ...  कैसे हो कोई परेशानी तो नहीं.....ऑक्सीजन लेवल कितना है...बुखार तो नहीं आ रहा है...प्रणाम मैडम सब कुछ ठीक है थोडी परेशानी है....कोई बात नहीं दवा लेते रहो कोई परेशानी हो तो तुरंत फोन करना...क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी की प्रमुख प्रो. अमिता अग्रवाल के यह विभाग में कोरोना संक्रमित लोगों के संजीवनी की तरह काम कर रहा है। विभाग में प्रो. दुर्गा प्रसन्ना, डा. रुद्रा और विनोद त्रिवेदी की एक समिति बना दिया है जो सबका ध्यान रख रहा है। विभाग के 50 फीसदी लोग और उनके परिवार  संक्रमित है।

केस- सिस्टर अनामिक परेशान न होन अपने पति को लेकर आए अभी भर्ती कराने के लिए हर संभव कोशिश करता हूं .जी सर लेकर आती रात में 1.30 पर पल्मोनरी मेडिसिन के प्रमुख प्रो. आलोक नाथ ने भर्ती कराया । इनके आलावा प्रो. जिया हाशिम और प्रो. अजमल जो विभाग के संकाय सदस्य है विभाग के कर्मचारियों के लिए हर संभव कोशिश लगातार कर रहे है।

संजय गांधी पीजीआइ संस्थान प्रशासन ने संस्थान में बढ़ते कोरोना संक्रमित कर्मचारियों की संख्या देख कर निर्देश जारी किया विभाग के प्रमुख अपने विभाग की जिम्मेदारी ले कर अपने कर्मचारियों के हर स्तर पर मदद करें । स्थिति के अनुसार भर्ती कराने के व्यवस्था करें । ऐसा कुछ ही विभाग के प्रमुख कर रहे है। नर्सिग एसोसिएशन की अध्यक्ष सीमा शुक्ला और कर्मचारी महासंघ के महामंत्री धर्मेश कुमार कहते है कि  सभी संकाय सदस्य केवल अपने विभाग के कर्मचारियों की जिम्मेदारी लें ले तो किसी कर्मचारी को कोई परेशानी नहीं होगी। इसी तरह न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. संजय बिहारी जिनके परिवार के लोग संक्रमित है लेकिन वह किसी भी कर्मचारी के परेशानी लगातार फोन से संपर्क बनाए हुए है। इस समय संस्थान में सात से अधिक कर्मचारी, अधिकारी , संकाय सदस्य, रेजीडेंट डाक्टर  संक्रमित है। भर्ती होने के लिए कर्मचारी परेशान हो रहा है। कई मामले में कर्मचारी नेता दिन भर हेल्थ केयर कमेटी को फोन करते है । कई बार रिस्पांस नहीं मिलता है। भर्ती न होने के कारण कर्मचारियों में काफी रोष व्याप्त है।   

कोरोना संक्रमित है तो तीन महीने लगवा सकते है वैक्सीन

 





कोरोना पाजिटिव  सुनते है हमारी मनोदशा बदल जाती है तनाव बढ़ जाता है कि क्या होगा ऐसे में सही सलाह संंजीवनी साबित हो सकती है। कोरोना संक्रमित ऐसे लोग जो होम आइसोलेशन में है उन्हें कब दवा खानी है , क्या खानी , बुखार है तो क्या करना है उनके तमाम सवाल का जवाब देकर उनको मनोबल बढाया। इसके साथ है कोविड के बचाव के लिए टीका के बारे में कई सवाल कर लोगों को संतुष्ट किया। संजय गांधी पीजीआई के एनेस्थेसिया विभाग के प्रमुख प्रो. अनिल अग्रवाल, प्रो. प्रभात तिवारी, प्रो, संदीप साहू, एसोसिएशन आफ एनेस्थेसिया टेक्नोलजिस्ट एसोसिएशन के राजीव श्रीवास्तव ने जूम के जरिए लोगों को आमंत्रित किया जिसमें जरिए तमाम सवालों का जबाव दिया। विशेषज्ञों ने कहा कि  पॉजिटिव आने पर जिस परिवेश में आपने आप को पाते है जिन हालातों से हम गुजरते है इससे अच्छे हार्मोन निकलना बंद हो जाता है बुरे हारमोन बनने लगते है इससे मेटाबोलिक डिसऑर्डर की आशंका रहती है। इस लिए मेडिटेशन करते रहे और व्यस्त रहे। कोरोना संक्रमित या सामान्य लोग भी 9415575730 पर व्हाटसअप पर राजीव से सवाल पूछ सकते हैं। राजीव का कहना है कि सही जानकारी  लोगों में संजीवनी का काम करता है।      

 

 

प्रश्न-   कोरोना पॉजिटिव रह चुके है वैक्सीन कब लगवानी है- रजनी भटनागर बरेली

जवाब-    कोरोना निगेटिव होने के तीन महीने तक वैक्सीन लगवाने की जरूरत नहीं है। एंटीबॉडी शरीर में रहती है जिससे कोरोना से बचाव की पूरी संभावना है। तीन महीने के बाद वैक्सीन लगवा सकते है।

प्रश्न-    मेरे पति को एलर्जी है, त्वचा पर चकत्ते हो जाते है क्या वैक्सीन लग सकता है—रिचा पाण्डेय लखनऊ

जवाब-    एलर्जी का कारण जाने बिना वैक्सीन लगवाने की सलाह नहीं दे सकते है पहले कारण पता करने के लिए किसी डॉक्टर से सलाह लें फिर वैक्सीन के बारे में सोचे

प्रश्न-    मेरे पापा को डायबिटीज है क्या वैक्सीन लग सकता है- राम सकल पाण्डेय फैजाबाद

जवाब-    डायबिटीज और कोरोना वैक्सीन से कोई संबंध नहीं है। टीका लगवा लें और शुगर को नियंत्रित रखें

प्रश्न-    कोरोना संक्रमित हूं बुखार 103 रहता है क्या करें- आशीष जैन लखनऊ

जबाव-    हर 6 घंटे पेरासिटामोल 650 मिली ग्राम लेते रहे यदि 500 मिलीग्राम ले रहे है तो हर चार घंटे पर ले सकते है। अधिकतम तीन ग्राम तक पैरासिटामोल लिया जा सकता है 24 घंटे में। इसके अलावा नहा कर पंखे में बैठ जाए इससे भी बुखार उतर जाएगा। चाहे तो गुनगुने पानी से भी नहा सकते हैं।

प्रश्न-    कोरोना संक्रमित हूं ऑक्सीजन लेवल कितना होना चाहिए- हरिओम लखनऊ

जवाब-    ऑक्सीजन लेवल 95 से 96 के बीच है तो कोई परेशानी नहीं है। 92 से नीचे है तो ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत है

प्रश्न-    कोरोना संक्रमित हूं, गर्भवती हूं क्या प्रोन पोजीशन( पेट के बल) में लेट सकती है – आतिफा सिद्दीकी लखनऊ

जवाब-    नहीं..पेट बल लेटने से पेट पर दबाव पडेगा इससे गर्भस्थ शिशु को परेशानी हो सकती है। ऑक्सीजन लेवल कम हो रहा है तो ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत है

प्रश्न-    कोरोना संक्रमण के 13 दिन हो गए है आरटी पीसीआर कब कराएं

जबाव-    जांच कराने की कोई जरूरत नहीं है । आईसीएमआर के नए नियम के अनुसार 10 से 14 दिन में माना जा रहा है  कि 90 फीसदी लोगों में निगेटिव हो जाता है । इस लिए कोई परेशानी नहीं है तो मास्क लगा कर काम पर जा सकते हैं।

प्रश्न-    बदन और सिर में दर्द है, नाक बह रही है क्या करें- रवि सीतापुर

जबाव-    यह कोरोना संक्रमण के लक्षण हो सकते है। इस लिए जांच कराएं । इसमें समय लग रहा है तो एंटी एलर्जिक दवा के साथ, भाप लें, गरारा करें और घर में आइसोलेट हो जाए। पेरासिटामोल दर्द के लिए ले सकते हैं।  


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कोविड सहायता ग्रुप बेड दिलाने में करेगा मदद


ऐसे लोग जिन्हे बेड के लिए सही जानकारी नहीं मिल पा रही है कहां लेकर जाए ऐसे लोगों को कहां पर बेड मिल सकता है जानकारी देने के लिए कोविड सहायता ग्रुप व्हाटसअप पर बनाया गया है। मदद के लिए परमीत मिश्रा 7705002213   से व्हटसअप पर संपर्क कर सकते है। परमीत का कहना है इस ग्रुप के जरिए हमने निजि अस्पताल जो कोविड के इलाज के लिए मान्य है उनको जोड़ा है जिससे पता करते है कि कहां पर मदद हो सकती है। यह ओपोलो से भी जुडे है ।    


शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

तांबा करेगा कोरोना वायरस और बैक्टीरिया का खात्मा

 

तांबा करेगा कोरोना वायरस और बैक्टीरिया का खात्मा

 

तांबे पर चार घंटे के अंदर हो जाता है  कोरोना बेदम

अस्पताल में भी कम होगा हॉस्पिटल एक्वायर्ड इंफेक्शन




तांबे के इस्तेमाल से बैक्टीरिया और वायरस से निपटना संभव होगा।

 तांबे के इस्तेमाल से अस्पताल में होने वाले हॉस्पिटल एक्वायर्ड इंफेक्शन से भी राहत मिलेगी। शोध विज्ञानियों ने भी साबित किया है कि तांबे की सतह पर बैक्टीरिया और कोरोना वायरस भी लंबे समय तक टिक नहीं पाता है। कॉपर बैक्टीरिया वायरस के सुरक्षात्मक परतों के साथ क्रियाशील होकर इसकी महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को बाधित करता है। इससे वायरस और अन्य कीटाणुओं मर सकते हैं। अस्पतालों और अन्य स्थानों पर कॉपर के इस्तेमाल  कीटाणु फैलने की संभावना को रोका जा सकता है। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के शोध विषय एइरीसोल एंड सर्फेस स्बेबिटिलिटी आफ कोरोना वायरस के अनुसार कॉपर सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ प्रभावी हो सकता है । अध्ययन से पता चला  कि चार घंटे के बाद वायरस  तांबे की सतह पर संक्रामक नहीं था । इसकी तुलना में कोरोना वायरस ७२ घंटे के बाद प्लास्टिक की सतहों पर  संक्रामक था ।इस शोध के एक और शोध बल देता है । हेल्थ एनवायरमेंट रिसर्च एंड डिजाइन जर्नल के शोध के अनुसार कॉपर  बैक्टीरिया  एमआरएसएई. कोलाई,इन्फ्लूएंजा ए,नोरोवायरस,को नष्ट करने में प्रभावी साबित हुआ है।  इसे कांटेक्ट किलिंग के रूप में जाना जाता है।

 

कैसे करता है तांबा

 

यह बैक्टीरियल सेल झिल्ली को बाधित करता है - तांबा आयन कोशिका की झिल्ली या "लिफाफे" को नुकसान पहुंचाता है और माइक्रोब के डीएनए या आरएनए को नष्ट कर सकता है। यह बैक्टीरियल कोशिकाओं पर ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस उत्पन्न करता है और हाइड्रोजन पेरोक्साइड बनाता है जो कोशिका को मार सकता है। यह प्रोटीन के साथ क्रिया करता है जो महत्वपूर्ण कार्यों को संचालित करते हैं जो बैक्टीरियल कोशिकाओं को जीवित रखते हैं

 

तांबे के इस्तेमाल कम हो गया बैक्टीरियल लोड

तांबे का इस्तेमाल  अस्पताल के कमरे में बैक्टीरिया या वायरस जमा होने वाले   सतहों बिस्तर कॉल बटनकुर्सी ट्रेटेबलडेटा इनपुटऔर आईवी पोल जैसे कई जगह तांबे का सतह बनाया जा सकता है। जिससे बैक्टीरिया वायरस उस पर मर जाएं। देखा गया है कि पारंपरिक सामग्रियों के साथ बने कमरों की तुलना मेंतांबे के घटकों वाले कमरों में सतहों पर बैक्टीरियल लोड में 83% की कमी आई थी। इसके  रोगियों की संक्रमण दरों में 58% की कमी की गई थी। अस्पताल के वातावरण में बैक्टीरिया होते है जो सतहों पर जमा रहते है जिससे सामान्य लोगों को भी संक्रमण की आशंका रहती है। इसे हॉस्पिटल एक्वार्ड इंफेक्शन कहते है।

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

रेमडेसिविर के फीछे मत भागें यह राम बाण नहीं.......

 




रेमडेसिवीर कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए कितना प्रभावी  है

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल में ही कहा है कि  मरीज के गंभीर लक्षणों या जानलेवा परिस्थितियों पर रेमडेसिवीर का कोई असर नहीं दिखा है। रेमडेसिवीर कोई जादुई दवा नहीं है और ना ही ये कोई ऐसी दवा है जो मृत्यु दर को कम कर सकती है । इसके भी साइड इफेक्ट हैं।

 लीवर के एंजाइम्स का बढ़ा स्तरएलर्जिक रिएक्शनब्लड प्रेशर और हार्ट रेट में बदलावऑक्सीजन ब्लड का घटा हुआ स्तरबुखारसांस लेने में दिक्कतहोठोंआंखों के आसपास सूजन। ब्लड शुगर भी बढ़ा हुआ दिखा है। फार्मा बेस्ड स्टडी में कहा गया है कि रेमडेसिवीर कोविड-19 रिकवरी टाइम को पांच दिन तक घटा देता है। तीमारदार यह सोच कर परेशान न हों कि मिल जाता तो मेरा परिजन बच जाता या ठीक हो जाएगा। इसकी कोई गारंटी नहीं कि यह देने से वह ठीक हो जाएगा।   

 

 

 

-क्या सबको रेमडेसिवीर इंजेक्शन की जरूरत है?

 

 

 

नहीं। केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि रेमडेसिवीर सिर्फ उसे ही लगाया जाएजो अस्पताल संक्रमण के गंभीर स्थिति में भर्ती हो और हाई  ऑक्सीजन सपोर्ट ले रहा हो। जो लोग घर पर आइसोलेशन में हैंउन्हें इस इंजेक्शन की कोई आवश्यकता नहीं है। हमारे पास कोई और एंटीवायरल दवा नहीं है इसलिए हम रेमडेसिवीर का इस्तेमाल बहुत ही कम फीसदी लोगों में कर रहे हैं।  रेमडेसिवीर को किसी रेगुलर एंटीबायोटिक  की तरह नहीं लिया जा सकता। रेमडेसिवीर का घर पर मौजूद मरीज पर इस्तेमाल करने का सवाल ही नहीं उठता। केमिस्ट शॉप्स पर इसके लिए लाइन लगाने का कोई मतलब ही नहीं है। समझ नहीं आ रहा कि डॉक्टर भी धड़ल्ले से क्यों इस इंजेक्शन को प्रिस्क्राइब कर रहे हैं। यह केवल वायरस को बढ़ने से रोकता है जब एआरडीएस हो गया तो इस दवा से कोई खास फायदा होने की संभावना नहीं है।  

 

 

 

--रेमडेसिवीर दवा नहीं मिल रही है तो क्या विकल्प हो सकता है

 

 

 

कोरोना संक्रमित मरीजें में एआरडीएस( एक्यूट रेस्पीरेटरी ड्रिसट्रेस सिंड्रोम) रोकना और बढने से रोकना ही जरूरी है। इसके डेक्सामेथासोन सहित अन्य स्टेरायड है तो काफी कारगर साबित होती है। नान कोविड मरीजों में इस दवा का प्रभाव हजारों मरीजों में देखा गया है। इसके भी साइड इफेक्ट है इसलिए डॉक्टर निगरानी में देने की जरूरत है। इस समय डॉक्टर से सलाह नहीं मिल पा रही है तो 8 मिली ग्राम एक बार देने में कोई हर्ज नहीं खास तौर जब ऑक्सीजन का स्तर 90 से कम हो। यदि डायबिटीज है तो चार चार मिली ग्राम दो बार बांट कर दिया जा सकता है। इसका फायदा इंट्रावेनस देने में परिणाम ठीक देखे गए है।     

 

 

 

 

 

 

 

 

 

- रेमडेसिवीर का संकट अचानक कैसे खड़ा हो गया?

 

 

 

दिसंबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच डेली केस की संख्या 30 हजार से भी कम रह गई थी। फरवरी में भारत में कोरोना वायरस के नए केसेज घटकर कुछ हजार रह गए थे। ऐसा लग रहा था कि महामारी खत्म होने के कगार पर है। इसके पहले से ही नए केस घटने लगे थेतब दिसंबर से ही दवा कंपनियों ने रेमडेसिवीर का उत्पादन घटा दिया था।

 

 

 

 

 

क्या है रेमडेसिवीर

 

 

 

 

 

रेमडेसिवीर एक एंटी-वायरल दवा हैजो कथित तौर पर वायरस के बढ़ने को रोकती है। 2009 में अमेरिका के गिलीड साइंसेज ने हेपेटाइटिस सी का इलाज करने के लिए इसे बनाया था। 2014 तक इस पर रिसर्च चला और तब इबोला के इलाज में इसका इस्तेमाल हुआ। रेमडेसिवीर का इस्तेमाल उसके बाद कोरोना वायरस फैमिली के मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम और सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम  के इलाज में किया गया।

 

 

 

 

 

क्या लाइफ सेविंग दवा है

 

 

 

भारत सरकार ने भी कहा है कि यह इंजेक्शन लाइफ सेविंग दवा में शामिल नहीं है। इसे घर पर देना भी नहीं है। फिर भी पिछले हफ्ते केंद्र ने रेमडेसिवीर इंजेक्शन की कीमत 3500 रुपए तय की। यह भी कहा कि अप्रैल के आखिर तक उत्पादन दोगुना हो जाएगा। इसके लिए 6 और कंपनियों को इसके उत्पादन की मंजूरी दे दी गई है।

 

 

 

भारत में रेमडेसिवीर कितनी कंपनियां बना रही हैं?

 

 

 

भारत में 7 दवा कंपनियां इस समय रेमडेसिवीर बना रही हैं। इनमें हिटेरो ड्रग्सजायडस कैडिलासन फार्मा और सिप्ला भी शामिल हैं। गिलीड से इन्होंने लाइसेंसिंग एग्रीमेंट किए हुए हैं। इन कंपनियों की कुल उत्पादन क्षमता 39 लाख शीशी हर महीने बनाने की है। जायडस ने मार्च में 100 मिग्रा शीशी की कीमत 2,800 रुपए से घटाकर 899 रुपए कर दी।

 

 

-संक्रमित के बुखार आने पर क्या करें

 

-पहले हफ्ते में बुखार, सिर दर्द अधिक परेशान करता है। लोगों की शिकायत है कि बुखार नहीं उतर रहा है तो बुखार आने का इंतजार न करें हर 6 घंटे में बुखार लेते रहे है। चार घंटे पर भी रिपीट की जा सकती है यदि बुखार नहीं उतर रहा है। कोल्ड स्पंजिंग भी करते रहे।

 

एक तय समय पर ही खाएं दवा

 हल्के कोरोना संक्रमण में  इवरमेक्टिन, डाक्सीसाइक्लीन है सहित अन्य दवाएं दी जाती है। ध्यान देना है कि  दवा एक फिक्स पर ही लेना है। जैसे सात सुबह आज इवरमेक्टिन लिया तो अगले दिन सुबह सात बजे ही लेना है। दो बार लेनी है कोई दवा तो सुबह और शाम में 12 घंटे का अंतर होना चाहिए। इसके अलावा जिंक, विटामिन सी आदि भी एक फिक्स समय पर ही लें। टहलते भी रहे जिससे खून न थक्का न जमने पाए।

फेफड़ों का व्यायाम जरूरी

 

फेफड़े फुलाने की व्यायाम करें जिसमे शंख बजाना , गहरी सांस लेना और छोड़ना काफी कारगर है। इसके अलावा खूब पानी पीये।  दो से तीन लीटर पानी पीएं। दिन में चार भार भांप स नमक पानी का गरारा जरूर करें।

80 फीसदी में माइल्ड होता है संक्रमण

 

    80 फीसदी लोगों में माइल्ड कोरोना संक्रमण देखा गया इस लिए बहुत घबडाएं नहीं। यदि सांस फूले एक मिनट 20 से 24 बार हो जाए , ऑक्सीजन की मात्रा 92 से 94 आए तब किसी डॉक्टर से सलाह लें।  इस वर्ग के लाखों लोग पूरे विश्व में घर पर ही ठीक हो रहे हैं। 

पीजीआईः मरीजों के हित में आउटसोर्स कर्मचारियों ने कार्य बहिष्कार टाला हम अपना जीवन दे रहे जो आप भी हमारा पेट परिवार देखिए सर

       



      पीजीआईः  मरीजों के हित के लिए  आउटसोर्स कर्मचारियों  ने कार्य बहिष्कार टाला

 



हम अपना जीवन दे रहे जो आप भी हमारा पेट परिवार देखिए सर

 

 

 

 


 

संयुक्त स्वास्थ्य आउटसोर्सिंग संविदा कर्मचारी संघ की पीजीआइ इकाई ने गुरूवार  22 अप्रैल) को प्रस्तावित  कार्य बहिष्कार टाल दिया है। कर्मचारियों का कहना है कि कोरोना के बढ़ते संकट के कारण यह आंदोलन टाला जा रहा है। एक घंटे भी कार्य बहिष्कार के तमाम मरीजों की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगा। संघ के पदाधिकारियों की बैठक हुई जिसमें कहा गया कि हम लोग निदेशक, सरकार को पत्र के माध्यम से अपनी मांग के बारे में अवगत कराने के साथ इसे पूरा करने के लिए अनुरोध करेंगे। हम अल्प वेतन भोगी जैसे इस आपदा में अपने जीवन की बाजी लगाकर सेवा परमानेंट के बराबर कर रहे है तो सरकार और संस्थान को भी हम लोगों जीवन के बारे में सोचना चाहिए। हम लोग केवल एम्स के समान वेतन, 60 साल तक सेवा की गारंटी मांग रहे है । खाली पेट सेवा  संभव नहीं है जब मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान रहेंगे तो कैसे गुणवत्ता परक सेवा होगी। सेवा प्रदाता कंपनी के पुष्कर श्रीवास्तव ने भी  कर्मचारियों से कहा कि हम आप के साथ लेकिन इस समय हालात ठीक नहीं है। हमें एम्स के समान वेतन देने में  परेशानी नहीं है बस हमें भी सरकार उतना पैसा दे।    

 

 पिछले कोरोना काल में पूरी जान लगा कर हम लोगों ने सेवा किया लेकिन संस्थान प्रशासन ने कुछ नहीं किया। हमें कुछ हो जाए तो कोई जिम्मेदार नहीं होता है। केवल काम के लिए पूछा जाता है बीमार होने पर कोई पूछने वाला नहीं है। कर्मचारी सीपी तिवारीसाधनाविमलरिजवानअंजलीअभिषेकस्वाती अनिरुद्धतपशीरनिशांतपंकज कादिर सहित अन्य का कहना है कि संस्थान के निदेशक को सरकार ने वेतन बढ़ाने का अधिकार भी दे दिया लेकिन कुछ नहीं हुआ। 

                                      

पीजीआइः आरडीए ने कोरोना से निपटने के लिए दिया मंत्र - रेजीडेंट डाक्टर, नर्सेज की तुरंत की जाए भर्ती

 

पीजीआइः आरडीए ने कोरोना से निपटने के लिए दिया मंत्र  

 

 

रेजीडेंट डाक्टर, नर्सेज की तुरंत की जाए भर्ती

 

एमबीबीएस छात्रों को सैंपल कलेक्शन और जांच में लगाया जाए

 

 

 सरकारी संस्थान में खर्च वहन करने वाले लोगों न मिले फ्री इलाज

 

 

 

संजय गांधी पीजीआइ रेजीडेंट डाक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. आकाश माथुर और सचिव डा. अनिल गंगवार ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए कई मंत्र दिया है। कहा कि तुरंत सरकारी चिकित्सालयों में भर्ती निकाल डॉक्टर्स, नर्सेज और अन्य पैरामेडिक स्टाफ  की संख्या और फिर पलंग बढ़ाए जाएँ प्रदेश के बड़े सरकारी चिकित्सालयों में पहले से ही स्वीकृत सीनियर रेसिडेंट्स के पद खाली हैं। किसी एक विभाग में भर्ती हेतु ज्यादा प्रतिभागी हैं तथा किसी अन्य विभाग में कम तो ऐसी स्थिति में सभी उपलब्ध पदों का एक साझा पूल बना सभी इच्छुक प्रतिभागियों को समायोजित कर लिया जाए |    आयुष चिकित्सालयों को  एल वन, टू अस्पताल के रूप में विकसित किया जाए।  एमबीबीएस छात्रों को उचित मानदेय तथा प्रशिक्षण दे उन्हें कोविद सैंपल कलेक्शन हेतु लगाया जा सकता है जिससे कलेक्शन सेंटर्स पर भीड़ काम होगी तथा आसानी से सैंपल दिए जा सकेंगे | प्राइवेट अस्पतालों में सरकार कोविड प्रबंधन हेतु सब्सिडी दे तथा पीपीई किट सरकार सस्ती दरों पर उपलब्ध कराए |  सरकारी संस्थानों में जो मरीज़ खर्च वहन कर सकते हैं (खास तौर पर वह जो प्राइवेट वार्ड में भर्ती हैं) उनका उपचार मुफ्त ना हो | बड़े संस्थानों द्वारा भी स्वास्थ्यकर्मियों को सुरक्षित रखने हेतु किये जा रहे प्रयास नाकाफी सिद्ध हुए हैंइस बाबत हमारा आग्रह है की रेजिडेंट डॉक्टर्स, नर्सेज. पैरा मेडिकल स्टाफ जैसे प्रथम पंक्ति में सीधा ग्राउंड पर रह कर कार्य करने वाले लोगों से सुझाव ले स्वास्थ्यकर्मियों में संक्रमण की रोकथाम एवं उचित प्रबंधन हेतु सक्रिय प्रयास किये जाएं।बड़े होटलों में प्राइवेट अस्पतालों द्वारा अपने संसाधन उपयोग में ला अस्थायी अस्पताल चलाये जाएं। स्वास्थ्य कर्मियों के क्वारंटाइन हेतु पूर्व की भांति सरकार द्वारा उचित व्यवस्था की जाएसंस्थानों द्वारा की जा रही व्यवस्था नाकाफी सिद्ध हो रही हैं।


बुधवार, 21 अप्रैल 2021

रेमडेसिवीर की पीछे मत करिए 20 हजार खर्च ,दो रूपए की डेक्सामेथासोन भी है कारगर

 





रेमडेसिवीर की पीछे मत करिए 20 हजार खर्च ,दो रूपए की डेक्सामेथासोन भी है कारगर  

ऑक्सीजन लेवल कम तो कारगर साबित होगा डेक्सामेथासोन

 

एआरडीएस रोकने में कारगर है यह स्टेरॉयड

 रेमडेसिवीर  वैसा ही एंटीबायोटिक खाओ तो न खाओ तो  वायरल सात में ठीक  

 


कोरोना से संक्रमित अपने परिजन की जांन बचाने के लिए रेमडेसिवीर की मुंह मागी कीमत लोग देने को तैयार जिन्होंने किसी तरह पा लिया और लगवा भी दिया क्या वह बच गए यह बडा सवाल है। इस बारे में विशेषज्ञ कहते है कि इस इंजेक्शन का कोई खास फायदा नहीं है इसलिए इस दवा को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता नहीं दिया। रेमडेसिवीर का वहीं हाल है जैसे वायरल फीवर में एंटीबायोटिक खाओ तो सात दिन में ठीक न खाओ तो भी सात दिन में ठीक.........एआरडीएस रोकने में इसकी कोई भूमिका नहीं है। रिसर्च सोसाइटी ऑफ एनेस्थीसिया एंड क्लीनिकल फार्माकोलॉजी के सचिव और  संजय गांधी पीजीआइ  के आईसीयू एक्पर्ट प्रो, संदीप साहू ने साफ शब्दों में कहा कि रेमेडिसवीर के पीछे भागने से कोई फायदा नहीं है। डॉक्टर भी तीमारदार को इसके पीछे भागने के रोकें। कोरोना संक्रमित में एआरडीएस रोकने में कोई खास फायदा नहीं है। न्यू इंग्लैंड जर्नल आफ मेडिसिन के हाल के शोध का हवाला देते हुए प्रो. साहू कहते है कि डेक्सामेथासोन सबसे सस्ती और आसानी से मिलने वाली दवा है। यह दवा एआरडीएस रोकने में काफी कारगर साबित होती है। ऐसा हमने में भी कोरोना मरीजों में देखा है खास तौर पर जिनमें लो ऑक्सीजन की जरूरत है । इनमें यह आठ से दस मिली ग्राम 24 घंटे में एक बार देने से वेंटिलेटर पर जाने के आशंका काफी कम हो जाती है। शोध वैज्ञानिकों ने दो हजार कोरोना संक्रमित ऐसे मरीजों पर शोध किया जिनमें आक्सीजन लेवल 90 से कम था इन्हें डेक्सामेथासोन देने के बाद 28 दिन बाद परिणाम देखा गया तो पता चला कि इनमें मृत्यु दर कम थी इसके साथ ही वेंटिलेटर की जरूरत कम पडी। रेमडेसिवीर  केवल एक खास वर्ग में राहत दे सकती है।  हाई ऑक्सीजन की जरूरत होती है। यह केवल पहले सप्ताह में ही देने से  राहत की संभावना होती है। इस दवा का कोई खुली स्टडी नहीं है केवल फार्मा इंडस्ट्री द्वारा प्रायोजित शोध ही सामने आए है।


क्या है एआरडीएस

तीव्र श्वसन संकट सिंड्रोम (एआरडीएस) एक ऐसी स्थिति है जिसमें फेफड़ों की हवा की थैलियों में तरल जमा हो जाने के कारण अंगों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। गंभीर रूप से बीमार या कोरोना संक्रमित लोगों में सांस संबंधित तंत्र में गंभीर समस्या का सिंड्रोम हो सकता है। यह अकसर घातक होता है। उम्र के साथ खतरा और बीमारी की गंभीरता से बढ़ती जाती है। एआरडीएस से पीड़ित लोगों को गंभीर रूप से सांस की तकलीफ होती है और वेंटीलेटर के सहारे के बिना वे खुद सांस लेने में असमर्थ होते हैं।





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एआरडीएस रोकने में कारगर रहा है डेक्सामेथासोन नान कोविड में

 

प्रो.संदीप साहू कहते है कि नान कोविड मरीज जो आईसीयू में भर्ती होते है उनमें डेक्सामेथासोन एआरडीएस रोकने में कारगर रहा है। ऐसा हजारों मरीजों में देखा गया है। इस दवा की सही मात्रा देने से साइटोकाइन स्टार्म रोकने में सफलता मिलती है। यह एंटी इंफ्लामेटरी गुण वाली दवा है।



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रेमडेसिविर कोरोना संक्रमित मरीजों में देने से कोई खास फायदा नहीं है ऐसे विश्व स्वास्थ्य संगठन सॉलिडेटरी स्टडी में सामने आयी है। कोरोना संक्रमित मरीजों में एआरडीएस की परेशानी होती है जिसमें फेफडे की कार्य शक्ति कम हो जाती है। आक्सीजन स्तर कम होने के साथ डेक्सामेथासोन , प्रेडनिसोन दवा सही मात्रा में देने से काफी हद कर फेफड़े को बचाया जा सकता है।  ....प्रो.अमिता अग्रवाल हेड क्लीनिकल इम्यूनोलॉजी विभाग संजय गांधी पीजीआई


शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

दिल ही नहीं पैर की होगी बाई पास सर्जरी बचेगा पैर -- पैर के गैंग्रीन का होगा इलाज संभव





दिल ही नहीं पैर की होगी बाई पास सर्जरी बचेगा पैर

 

50 फीसदी डायबिटिक फुट के कारण होते है भर्ती

पीजीआइ ने स्थापित किया डायबिटिक फुट के  इन्फ्रा इन गुवाइनल बाईपास  तकनीक

 

बचे रहेंगे मरीज़ों के पैर नहीं आएगी कटने की नौबत

 

 

 कुमार संजय। लखनऊ

 

 डायबिटीज की वजह से पैरों में होने वाले घाव का इलाज अब आसान हो गया है। इसे बाईपास सर्जरी के जरिए ठीक किया जा सकेगा। संजय गांधी पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी विभाग ने पैर की बाईपास सर्जरी तकनीक स्थापित कर ली है। प्लास्टिक सर्जरी विभागाध्यक्ष प्रो राजीव अग्रवाल के मुताबिक  मधुमेह की वजह से पैरों में होने वाला घाव बढ़ता रहता है। रक्त की कोशिकाओं में थक्के जमा हो जाते हैं और ये कोशिकाएं ब्लॉक हो जाती हैं। इस अवस्था मे  पैरों में रक्त का प्रवाह अत्यन्त कम हो जाता है और इसी कारण से उंगलियों अथवा पैर में गैंग्रीन भी हो जाती है। इसे डॉक्टरी भाषा में डायबिटिक फुट है। डायबिटीज मरीजों में पैर काटने तक की नौबत आ जाती है। बताया कि अनियंत्रित डायबिटीज के कारण पैरों की प्रधान रक्त वाहिकाएं या तो संकुचित हो चुकीं हैं या वसा के थक्के के कारण कई स्थानों पर ब्लॉक होने पर  प्लास्टिक सर्जरी विभाग में नई तकनीक से ऑपरेशन किया जाता है। इस ऑपरेशन को इन्फ्रा इनगुइनल बाईपास कहते हैं। जिससे कि शरीर की ही स्वस्थ रक्त वाहिका का प्रयोग करके, ब्लाक वाली वाहिका को बाईपास किया जाता है। यह ऑपरेशन हृदय के बाईपास जैसा हीं हैबस अंतर इतना ही है कि जो बाईपास हृदय रोग में किया जाता हैउसी तरह का बाईपास मधुमेह से ग्रसित पैरों के संकुचित वाहिकाओं को बाईपास करने में किया जाता है । पिछले माह में करीब 10 रोगियों में इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए ऑपरेशन किया गया।

 

50 फीसदी डायबिटिक फुट के कारण होते है भर्ती

 

250 डायबिटिक मरीजों में से पांच से सात फीसदी मरीजों के पैर में घाव की आशंका रहती है जिसका सही समय पर इलाज न होने पर पैर को काटना पड़ जाता है। देखा गया है कि हर तीस सेकेंड में एक डायबटिक मरीज का पैर काटा जाता है । 50 फीसदी डायबिटिक मरीज पैर में घाव के कारण भर्ती होते है। डायबिटिक मरीज के पैर में घाव होने की आशंका सामान्य के मुकाबले 15 गुना अधिक होती है। बताया कि एक पैर कटने के बाद दूसरे पैर में घाव की आशंका काफी बढ़ जाती है क्योंकि दूसरे पैर पर प्रेशर बढ़ जाता है साथ दिल की बीमारी भी आशंका बढ़ जाती है। इस लिए पैर को कटने से बचाने के लिए पहले से एहतियात जरूरी है।  

 

 

 

 

क्या है खासियत

यह आपरेशन अत्यन्त जटिल एवं हाइ मैग्नीफिकेशन में माइक्रोस्कोप के द्वारा किया जाता है। इसमें पैर कि हीं रक्त वाहिका से माइक्रो सर्जरी के द्वारा एक खास विधी से जोड़ा जाता है। इस आपरेशन में पाँच से  दस घंटे का समय लग सकता ळे तथा रोग के अनुरूप लम्बी रक्त वाहिनीयों का प्रयोग किया जाता हैंजो कि एक से डेढ़ फिट तक लम्बी भी हो सकती हैं। 

 

 

क्या है डायबिटीज फूड

डायबिटीज का असर रेटिना,गुर्दे,रक्त कि नलियां,तंत्रिकाएं एवं पैर पर पड़ता है। मधुमेह के कारण रोगीयों में पैरों में घाव जल्दी हो जाते हैं। छोटी सी चोट लगने के बाद भी घाव भरने में अधिक समय लगता है। कई बार ऐसे घाव  ठीक हीं नही होते हैं । इन्हें डायबिटीक फुट अल्सर कहा जाता है। सही प्रकार से इलाज न मिलने पड़ एक छोटा सा भी ऐसा घाव बढ़ते-बढ़ते पूरे पैर को भी प्रभावित कर लेता है। 

 

क्या है लक्षण

मधुमेह में सबसे पहले पैरों के रंग में बदलाव आता हैऔर फिर सुजन और दर्द से रोग का आरंभ होता है। इस अवस्था में अगर चलते हुएनाखुन काटते हुए या किसी अन्य कारण से पैर में छोटी सी चोट भी लगती हैतो यह आसानी से ठीक नही होती है और जल्दी हीं बड़ा रूप ले लेती है। यदि पैर का कोई हिस्सा संकुचित हो जाएलंबे  समय तक घाव ना भरे कालापन हो तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए।