मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

खानपान में परहेज करें लेकिन पूरी तरह से कोई भी चीज बंद न करें गुर्दा के मरीज

मरीजों के लिये इलाज के साथ ही खानपान अहम है
दो दिवसीय द सोसायटी आफ रीनल न्यूट्रीशन एण्ड मेटाबोल्जिम पाठ्यक्रम में जुटे 130 नेफ्रोलॉजिस्ट 

गुर्दा रोग के मरीजों के लिये इलाज के साथ ही खानपान की अहम भमिका होती है। मरीज बिना डॉक्टर और न्यूट्रीशयंस की परामर्श के खाने में बहुत सी चीजों का परहेज करने लगते हैं। जो सेहत के लिये हानिकारक है। खासकर दूध, दही और अण्डा आदि के न खाने से मरीजों में कुपोषण बढ़ने लगता है। यह बातें शनिवार को पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग द्वारा गोमतीनगर के एक होटल में आयोजित कांफ्रेंस में द सोसायटी आफ रीनल न्यूट्रीशन एण्ड मेटाबोल्जिम (एसआरएनएम) की सचिव डॉ. अनीता सक्सेना ने दी। 
डॉ. सक्सेना बताती हैं कि खानपान में परहेज करें लेकिन पूरी तरह से कोई भी चीज बंद नही करनी चाहिये। गुर्दा शरीर में अनावश्यक पदार्थों और गंदगी को बाहर करता है। गुर्दा मरीजों को प्रोटीन, सोडियम और पोटेशियम की मात्रा बिल्कुल नही बंद करनी चाहिये। शरीर के लिये यह तत्व जरूरी हैं। खानपान के लिये न्यूट्रीशियन की मदद लें। डायलिसिस न कराने वाले मरीजों को 0.6 ग्राम प्रति किलो वजन के हिसाब से प्रोटीन लेनी चाहिये। जबकि डायलिसिस कराने वाले मरीजों को 1.2 ग्राम प्रति किलो वजन के हिसाब से प्रोटीन लेनी चाहिये। दो दिवसीय एडवांस पाठ्यक्रम में भारत और नेपाल के करीब 130 नेफ्रोलॉजिस्ट शामिल हुये। डॉक्टरों ने गुर्दे की बीमारी के इलाज और खानपान पर अपने-अपने अनुभव साझा किये।
हर साल में दो लाख नये गुर्दा मरीज बढ़ रहे 
 पद्मश्री अवार्डी और एसआरएनएम के अध्यक्ष व दिल्ली के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. एके भल्ला कहते हैं साल भर में दो लाख नये भारतीय गुर्दा की बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। जबकि 10 लोगों में से एक व्यक्ति गुर्दे की बीमारी की चपेट में है। इसके बावजूद देश में सिर्फ 1500 नेफ्रोलॉजिस्ट और 50 न्यूट्रीशंस हैं। इतने डॉक्टरों में पुराने मरीजों को देखना मुश्किल हो रहा है तो नये मरीजों को कैसे इलाज मिलेगा। सरकार को कड़े कदम उठाने की जरूरत है। गुर्दे की बीमारी के बचाव व इलाज के लि-मरीजों के लिये इलाज के साथ ही खानपान अहम है

मामूली जांचों से बचाव संभव
पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. अमित गुप्ता बताते हैं कि भूख कम लगना, थकान, पेशाब में प्रोटीन व झाग और पैर में सूझन को नजर अंदाज न करें। यह गुर्दे की बीमारी के लक्षण हैं। इससे बचने के लिये लोगों को पेशाब और खून की मामूली जांच से बचाव संभव है।

नवजातों में होती है ये दिक्कतें
 पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉ. नारायण प्रसाद बताते हैं कि जन्म के समय नवजात में यदि पेशाब रूक-रूक कर हो रहा है। पेशाब लाल रंग है, पेशाब के वक्त नवजात रोता है। तो तुरन्त नेफ्रोलॉजिस्ट की सलाह लें। क्योंकि यह गुर्दे के बीमारी के लक्षण हो सकते हैं। डॉ. नारायण बताते हैं कि अगर यह लक्षण हैं तो नवजात में गुर्दा सम्बंधी दिक्कत हो सकती है। जन्म के समय नवजात के सभी अंगों को देखना चाहिये। उन्होंने बताया कि बेवजह दर्द की दवा और एंटीबायटिक दवाओं के सेवन से बचाना चाहिये। वह बताते हैं कि बहुत से मरीज ऐसे आते हैं जिन्हें इन दवाओं के सेवन से गर्दे की दिक्कत हो गई है।


मामूली जांचों से बचाव संभव
पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. अमित गुप्ता बताते हैं कि भूख कम लगना, थकान, पेशाब में प्रोटीन व झाग और पैर में सूझन को नजर अंदाज न करें। यह गुर्दे की बीमारी के लक्षण हैं। इससे बचने के लिये लोगों को पेशाब और खून की मामूली जांच से बचाव संभव है।

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