मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

पीजीआई अब करेगा गुड़ बैक्टीरिया का ट्रांसप्लांट

पीजीआई अब करेगा गुड़ बैक्टीरिया का ट्रांसप्लांट 

देश का चौथा संस्थान इसी महीने कर रहा शुरू

अल्सरेटिव कोलाइटिस सहित कई परेशानी का कम खर्च में होगा इलाज संभव 
कुमार संजय। लखनऊ
संजय गांधी पीजीआई का गैस्ट्रोइंट्रोलाजिस्ट अब गुड बैक्टीरिया का ट्रांसप्लांट कर अल्सरेटिव कोलाइटिस, क्रोन्स, एंटीबायोटिक के कारण होने वाले डायरिया का इलाज कम खर्च  में करने जा रहा है। विभाग के प्रो. यूसी घोषाल ने इसकी पूरी तैयारी कर ली है। चार मरीजों ने इसके लिए सहमति भी दे दी है। इसी महीने यह ट्रांसप्लांट शुरू होने की पूरी उम्मीद है। प्रो. घोषाल के मुताबिक स्वस्थ्य व्यक्ति के फीकल( मल) से गुड बैक्टीरिया को अलग कर यह तैयार किया जाता है जिसे यलो सूप भी कहते हैं।  हम लोग इस गुड बैक्टीरिया युक्त घोल को कोलोनोस्कोप या इंडो स्कोप से मरीज के डायजेस्टिव ट्रैक में सीधे डास देंगे। इससे पेट में गुड बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाएगी। इस तकनीक से इलाज में एक बार का खर्च दस हजार के आस-पास आएगा। अभी तक हम लोग बायोसिमिलर दवाएं देते है जिसके एक बार डोज की कीमत 1.5 लाख के आस-पास आती है। हम मरीज इतना खर्च वहन नहीं कर सकता है। पीजीआई देश का चौथा संस्थान है जो गुड़ बैक्टीरिया ट्रांसप्लांट करने जा रहा है। अभी तक एम्स दिल्ली, आईएलबीएस दिल्ली, दयानंद मेजिकल कालेज लुधियाना में इस तकनीक से इलाज हो रहा है। 

पीजीआइ में बनेगा गुड बैक्टीरिया युक्त घोल

प्रो. घोषाल के मुताबिक मरीज के फेमली मेम्बर से फ्रेश मल लेकर उसे लैब में प्रोसेस कर गुड बैक्टीरिया रिच युक्त घोल तैयार तैयार करेंगे। खुद से तैयार यह घोल मरीजों में इंजेक्ट करेंगे। 



बायोसिमिलर के मुूकाबले फास्ट है रिकवरी

देखा गया है कि बाय़ोसिमिलर के मुूकाबले फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांट दो गुना तेजी से रिकवरी होती है।  गुड बैक्टीरिया ट्रांसप्लांट से इलाज की सफलता दर 70 फीसदी रही जबकि बायोसिमिलर से 20 से 30 फीसदी में रिकवरी हुई।     

यह परेशानी तो लें सलाह
अल्सरेटिव कोलाइटिस के लक्षण सूजन की गंभीरता के आधार पर भिन्न हो सकते हैं.
- रक्त के साथ दस्त
- पेट दर्द और मरोड़
- रेक्टल पेन
- मलाशय से रक्तस्राव
- ब्‍लड की हानि के कारण थकान और एनीमिया
एक अन्य प्रकार की सूजन आंत रोग (आईबीडी) क्रोन की बीमारी है जिसमें मुंह से किडनी तक कहीं भी सूजन दिखाई दे सकती है. यह आमतौर पर आंत की वॉल्‍स को प्रभावित करता है.

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